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आशुतोष ने उन की हां में हां मिलाई और निखिल से बात करते हुए बोला, ‘‘ले कर दिया तेरा जुगाड़, अब जल्दी तैयार हो जा. जो काम निपटाने हैं, निपटा ले. मैं बस एक घंटे में पहुंच जाऊंगा. पहले सौरभ को रिसीव करूंगा फिर तुझे’’ कहते हुए आशुतोष ने काल डिस्कनेक्ट कर दी.

निखिल से बात करने के एक घंटे बाद आशुतोष कार ड्राइव करता हुआ सौरभ के घर के नजदीक पहुंच गया. उस ने उसे फोन कर सड़क के मोड़ तक आने के लिए कहा.

सौरभ आ गया तो उसे गाड़ी में बिठा कर वे निखिल के घर की ओर बढ़ चले. निखिल को भी रिसीव करने के बाद आशुतोष ने गाड़ी मोड़ ली अपने ‘अड्डे’ की ओर, जहां पर वे अकसर शराब पीने और मस्ती करने के लिए जाया करते थे.

बिहार के दनियावान, बिहारशरीफ, नवादा के रास्ते दोस्तों की ये तिकड़ी झारखंड के कोडरमा, झुमरी तलैया होते हुए तिलैया बांध पर पहुंच गई. करीब 190 किलोमीटर का सफर और 5 घंटे की इस यात्रा को पूरा करने के बाद आशुतोष, निखिल और सौरभ अपने अड्डे पर आ पहुंचे थे.

वहां पहुंचने से पहले आशुतोष ने झारखंड के कोडरमा शहर में गाड़ी रोक कर वहां की सरकारी शराब की दुकान से व्हिस्की और बीयर की बोतलें खरीद ली थीं. साथ में खानेपीने के लिए कुछ और भी सामान खरीद लिया था.

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5 घंटे की इस ड्राइविंग ने तीनों दोस्तों को बुरी तरह से थका दिया था. वे वहां पर दोपहर के 2 बजे पहुंच चुके थे. गाड़ी से निकलते ही तीनों ने अंगड़ाइयां लीं.

जब उन की थकान थोड़ी हलकी हुई और उन्होंने नजर घुमा कर देखा तो तिलैया बांध के चारों ओर दिन के समय ही काफी दूरदूर तक लोग 4-5 के झुंड में शराब पीते और मस्ती करते हुए नजर आ रहे थे.

कोडरमा बन गया शराबियों का अड्डा

दरअसल इस इलाके में ऐसा होना आम बात थी. जब से बिहार में शराबबंदी हुई थी, लगभग तभी से लोगों की शराब की तलब उन्हें यहां खींच लाती थी.

बिहार में शराबबंदी के बाद बिहार की सीमा से सटा झारखंड का कोडरमा जिला शराबियों का अड्डा बन गया है. यहां पर बिहार के विभिन्न जिलों से लोग शराब पार्टी के लिए आते हैं.

यहां पर बिहार के नंबरों की तमाम गाडि़यां खड़ी मिल जाती हैं. वैसे ये इलाका है भी पिकनिक स्पौट लायक. नदी, बांध, पेड़पौधे इत्यादि की वजह से ये इलाका बेहद आकर्षक लगता है.

इसी इलाके में आशुतोष का एक और स्थानीय दोस्त, सूरज कुमार भी रहता था, जिसे उस ने यहां पहुंचने से पहले ही फोन कर के आने के लिए कह दिया था.

निखिल और सौरभ, सूरज को जानते तो थे लेकिन उस के साथ उन की उतनी घनिष्ठ दोस्ती नहीं थी जिस तरह से आशुतोष के साथ थी. सूरज खानेपीने का कुछ और सामान अपने साथ ले आया था.

दोपहर के 2 बज रहे थे लेकिन दिन बेहद हल्का था, धूप नहीं थी. यही देखते हुए आशुतोष ने सौरभ और निखिल से बीयर की बोतलें खोलने के लिए कहा.

वह बोला, ‘‘बीयर की बोतल अभी ठंडी ही है, दिन भी हल्का है. एक काम करते हैं, एकएक बीयर की बोतल यहीं पी लेते हैं और यहां से अब रात को ही जाएंगे. पास के होटल वाले से मैं ने पहले ही बात कर रखी है. वो 2 कमरे हमारे लिए खाली रखेगा. क्या कहते हो?’’

निखिल और सौरभ को आशुतोष का आइडिया बुरा नहीं लगा. उन दोनों ने तुरंत आशुतोष के सवाल का जवाब देते हुए हामी भर दी.

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आशुतोष ने अपनी गाड़ी से एक थैला निकाला, खानेपीने, चकना व बीयर की बोतलें उस में डाल कर और अपनी गाड़ी लौक कर के वे सब बांध के उस हिस्से के करीब जा पहुंचे जहां दूरदूर तक शांति थी.

तिलैया बांध के मैदान में शुरू हुई पार्टी

मैदान में एक जगह पहुंचने के बाद उन चारों ने नीचे घास पर अपनी तशरीफ टिका ली. आशुतोष ने अपने थैले से बीयर की 4 बोतलें, नमकीन के पैकेट निकाले और खानेपीने का सामान निकाला. चारों गोल घेरे में बैठ कर एकएक कर के बीयर की बोतलें खोल कर पीने लगे, और सब के बीच हंसीमजाक होने लगा.

ऐसे ही करते हुए करीब 4 बजे के आसपास नशे में धुत हर कोई अपने फोन से एक दूसरे की फोटो खींचने लगा.

इतने में नशे में अपना होश खो बैठे आशुतोष ने फोटो और अच्छे से खींचने और खिंचवाने के लिए अपनी पैंट की कमर से अपनी सर्विस पिस्तौल निकाल ली.

आशुतोष की सर्विस पिस्तौल को देखने के बाद निखिल, सूरज और सौरभ हैरान रह गए. निखिल को छोड़ कर सूरज और सौरभ ने अपने जीवन में पहली बार हकीकत में इतनी नजदीक से पिस्तौल देखी थी.

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वह उसे पकड़ कर महसूस करना चाहते थे कि आखिर इसे हाथ में पकड़ कर कैसा महसूस होता है. निखिल इसलिए हैरान हो गया था क्योंकि उसे लगा था कि आशुतोष इसे अपने घर ही छोड़ आया होगा.

उस समय वहां मौजूद चारों दोस्त नशे में धुत थे. इतने में सौरभ ने नशे में आशुतोष से उस की पिस्तौल मांगते हुए कह, ‘‘भाई, दिखा जरा. आखिर हम भी तो देखें कि कैसा लगता है इसे पकड़ कर.’’

आशुतोष अपने दोस्त को पिस्तौल थमाते हुए लड़खड़ाती जबान में बोला, ‘हां भाई, ले न. पूछ क्या रहा है. तेरी ही तो चीज है.’

अगले भाग में पढ़ें- रंज में बदल गई पार्टी

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