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इसी उधेड़बुन में अंकिता खोई रहती थी कि वह कैसे शाहरुख से पीछा छुड़ाए जिस से वह उसे बाजार या ट्यूशन जाने के दौरान कभी नहीं मिल पाए? लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था. हमेशा वह उस से टकरा ही जाता था. हर बार उस के तेवर बदले हुए तल्ख होते थे. कई बार तो वह उसे दूर से देख कर ही भयभीत हो जाती थी. डर जाती थी, पता नहीं क्या बोल दे.

घर में पढ़ाई करने के वक्त एक बार उस के भाई ने आ कर कहा कि दीदी ‘पठान’ फिल्म का बायकाट हो रहा है. उस ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘अरे उस में शाहरुख खान है न! वह भी तो मुसलमान है.’’ यह कहता हुआ भाई वहां से चला गया.

लेकिन शाहरुख का नाम सुनते ही मोहल्ले वाले शाहरुख का चेहरा अचानक उस के दिमाग में घूम गया. वह एकदम से सहम गई. कुछ समय के लिए निस्तब्ध बनी रही. क्योंकि वह तो उस के नाम से ही खौफ खाने लगी थी.

मूलरूप से दुमका के रानीश्वर ब्लौक के गांव आसनबनी के रहने वाले शाहरुख के पिता की मौत हो चुकी थी. पिता की मौत के बाद जरुआडीह में स्थित अपनी ननिहाल में वह रहने लगा. उस का बड़ा भाई सलमान मोटर मैकेनिक है और मामा राजमिस्त्री का काम करते हैं.

कई तरह के विचारों में खोई अंकिता के कानों में अचानक दादी की आवाज आई, ‘‘अंकिता, सावन चला गया तो तुम मंदिर जाना भी भूल गई. आज सोमवार है. तुम को उठने में भी देर हो गई. जाओ, जल्दी से नहा लो. मंदिर हो आओ.’’

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