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अपनी बातों के दरम्यान वह आमतौर पर हम का ही इस्तेमाल करती थी. अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार थी. कभी मूड में होती थी तो मजे की बातें करती थी, वरना आमतौर पर मेरे सामने आ कर बैठ जाती थी और बड़ीबड़ी आंखों से एकटक देखा करती थी. मेरे अलावा उस घर में कभीकभार एक लड़का दिखाई दिया करता था. उस का नाम नासिर था.

मुझे यह नहीं मालूम था कि उस का घर से क्या रिश्ता है मगर वह बड़ी बेतकल्लुफी से शाहीना से बात किया करता था. शाहीना ने बस सिर्फ इतना बताया था कि वो उन का रिश्तेदार है. कई बार मन होता कि उस से सवाल करूं कि रिश्ता क्या है? मगर यह सोच कर छोड़ दिया कि मुझे पेड़ गिनने से क्या मतलब?

शाहीना मुझ पर मरती थी. जेब कभी खाली नहीं रहती थी. तनख्वाह 2 सौ रुपए थी. 100 रुपए अब्बू ऐंठ लिया करते थे, 50 अम्माजी की भेंट चढ़ जाते थे. मेरे हिस्से में केवल 50 रुपए रह जाते थे. खुद सोच लें कि एक आवारागर्द लड़के को कितने दिन मजे से रख सकते थे.

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महीने के शुरू के दिनों में ही जेब खाली हो जाती थी. शाहीन को मैं ने अपनी आर्थिक स्थिति शुरू में ही बता दी थी कि मैं फोरेस्ट डिपार्टमैंट में काम करने वाले एक मामूली से नौकर की छठी औलाद हूं.

बाप अपनी 3 बहनों और 2 बेटियों की शादी करने के बाद बिलकुल कंगाल हो चुका है. इसलिए मेरी तालीम के खर्चे बड़ी मुश्किल से पूरे हो पाते हैं. अम्मी अकसर बीमार रहती हैं. उन का अच्छी तरह इलाज नहीं हो सका है. रिजल्ट के बाद प्राइवेट तौर पर इम्तिहान की तैयारी करूंगा. अच्छी नौकरी मेरी जिंदगी का मकसद है.

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