सौजन्य-सत्यकथा
साली के इश्क में अंधे शंभू ने पत्नी रूबी की ढाई लाख रुपए में सुपारी दे दी. पेशगी के तौर पर उसे 50 हजार रुपए देने थे. उस समय उस के पास किलर को देने के लिए केवल 20 हजार रुपए थे.
बाकी पैसे के लिए उस ने बैंक से 30 हजार रुपए पर्सनल लोन लिया. उस ने किलर ऋषि को पेशगी के तौर पर 50 हजार रुपए दे दिए, बाकी के 2 लाख रुपए काम होने के बाद देना तय हुआ.
रकम पाने के बाद शूटर ऋषि अपने काम को अंजाम देने में जुट गया. कहते हैं जाको राखे साइयां, मार सके न कोय. कुछ ऐसा ही रूबी के साथ भी हुआ. रूबी की हत्या के लिए ऋषि ने कई प्रयास किए, लेकिन वह अपनी योजना को अंजाम नहीं दे सका. नया साल यानी 2020 का मार्च महीना बीत गया, रूबी सहीसलामत रही.
इसी बीच रूबी गर्भवती हो गई. उस के पांव भारी होते ही शंभू का मन यह सोच कर पिघल गया कि हो सकता है, इस बार वह अपने कुल के लिए एक चिराग दे दे तो सब कुछ ठीक हो जाए. पत्नी के लिए शंभू का प्यार छलक पड़ा. इस प्यार में भी उस का ही स्वार्थ था.
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लेकिन सब से बड़ा सवाल यह था कि उस की कोख में पल रहा बच्चा बेटा है या बेटी. इस का पता तो 3 महीने बाद ही चल सकता था. तब तक उसे इंतजार ही करना था लेकिन शंभू ने यह फैसला कर लिया था कि अगर इस बार भी उस ने बेटी को जना तो उस का मरना तय है.