सौजन्य- मनोहर कहानियां
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 20 मार्च को जब आरोप लगाया कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सचिन वाझे को हर महीने बार, रेस्तरां और दूसरे स्रोतों से 100 करोड़ रुपए उगाहने के निर्देश दिए थे, तो आम लोगों को भले ही खाकी और खादी की ऐसी लूटखसोट पर हैरानी हुई हो, लेकिन राजनीति करने वालों और नौकरशाहों को इस पर कतई आश्चर्य नहीं हुआ था.
करीब एक करोड़ 20 लाख लोगों की आबादी वाले मुंबई महानगर की जान फिल्म इंडस्ट्री तो है ही, साथ ही डेढ़ हजार से ज्यादा बार, रेस्तरां और नाइट क्लब भी हैं. कहा जाता है कि मुंबई कभी नहीं सोती. यह सच भी है. दुनिया का ऐसा कोई कालासफेद धंधा नहीं है, जो मुंबई में न होता हो. जो मुंबई को समझ गया, उसे मुंबई ने गले लगा लिया और वह मालामाल होता चला गया.
शायद इसीलिए मुंबई में अपराधी गिरोह पनपते रहे. संगठित अपराधियों ने बेताज बादशाह बनने के लिए एक से बढ़ कर एक अपराध किए. आजादी के बाद सब से पहले कुख्यात तस्कर के रूप में हाजी मस्तान का नाम उभर कर सामने आया था.
बाद में अंडरवर्ल्ड के अपराधियों के आने से गैंगवार और खूनखराबा होने लगा. बड़े उद्योगपतियों, कारोबारियों और फिल्म वालों से वसूली की जाने लगी. यह लगभग 21वीं सदी की शुरुआत तक चलता रहा.
इस के बाद सरकारों की सख्ती से अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं ने पड़ोसी देशों में अपने ठिकाने बना लिए, लेकिन उन के गुर्गे मुंबई में लोगों को डरातेधमकाते और वही तमाम अपराध करते रहे, जो पहले होते थे. फर्क इतना था कि इन अपराधों में कुछ पुलिस वाले भी शामिल होते चले गए. इस के भयानक रूप कई बार सामने आए हैं. अब एक नया रूप निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे के कारनामों से सामने आया है.
सचिन वाझे महाराष्ट्र पुलिस का कोई बहुत बड़ा अफसर नहीं है. वह सहायक पुलिस निरीक्षक है. दूसरे राज्यों में यह पद एक थानेदार के बराबर होता है. एक थानेदार की हैसियत वाला सचिन वाझे मुंबई पुलिस में सब से ज्यादा रुतबेदार और ताकतवर था.
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पुलिस महकमे के प्रोटोकाल के हिसाब से उसे अपराध शाखा में अपने वरिष्ठ अधिकारियों एसीपी, डीसीपी, एडिशनल सीपी और जौइंट सीपी को रिपोर्ट करनी चाहिए थी, लेकिन सरकार के वरदहस्त से वह इन अफसरों को कुछ नहीं समझता था. पुलिस में तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह उस के बौस थे और उद्धव सरकार में गृहमंत्री अनिल देशमुख उस के संरक्षक.
सचिन वाझे ‘खलनायक’ है या ‘मोहरा’ या फिर ‘सब से बड़ा खिलाड़ी’, यह बात मुंबई पुलिस के अलावा देश की प्रमुख सुरक्षा एजेंसियों एनआईए और सीबीआई की जांच से भी अभी तक साफ नहीं हुई, लेकिन जो परतें खुली हैं, उन से जरूर सामने आ गया है कि वह मंझा हुआ खिलाड़ी है.
वाझे ‘खलनायक’ कैसे बना, यह कहानी बहुत लंबी है. जबकि नई कहानी की शुरुआत इसी साल 25 फरवरी को हुई.
अंबानी परिवार था निशाना
उस दिन दक्षिण मुंबई के पैडर रोड पर एशिया के सब से अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के 27 मंजिला आवास ‘एंटीलिया’ के सामने लावारिस हालत में एक स्कौर्पियो गाड़ी खड़ी मिली थी. उस गाड़ी के ड्राइवर या मालिक का पता नहीं लगने पर अंबानी के सुरक्षाकर्मियों ने गामदेवी पुलिस को सूचना दी.
पुलिस ने पहुंच कर गाड़ी का एक शीशा तोड़ कर अंदर देखा. गाड़ी के अंदर जिलेटिन की छड़ें थीं. तलाशी ली गई तो उस में जिलेटिन की 2 किलो 600 ग्राम वजन की 20 छड़ें मिलीं.
जिलेटिन की छड़ें विस्फोट करने के काम आती हैं, लेकिन धमाके के लिए इन छड़ों के साथ कोई डेटोनेटर नहीं था. इन छड़ों के साथ पुलिस को कागज का एक पुर्जा भी मिला. टाइप किए हुए इस पुर्जे पर हिंदी में लिखा था, ‘ये तो सिर्फ एक ट्रेलर है. नीता भाभी, मुकेश भैया फैमिली, ये तो सिर्फ एक झलक है. अगली बार ये सामान पूरा हो कर तुम्हारे पास आएगा.’
पुलिस ने स्कौर्पियो सहित जिलेटिन की छड़ें और धमकी भरा पत्र जब्त कर लिया. अंबानी के आवास की सुरक्षा सीआरपीएफ संभालती है. मुकेश अंबानी को जेड प्लस और उन की पत्नी नीता को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है.
अंबानी की सुरक्षा से जुड़ा मामला होने के कारण आला अफसरों ने इस की जांच मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की इंटेलिजेंस यूनिट के प्रमुख सचिन वाझे को सौंप दी. जांचपड़ताल में उस स्कौर्पियो पर लगी नंबर प्लेट नकली निकली. उस पर लिखा नंबर अंबानी परिवार के सुरक्षा काफिले में शामिल गाडि़यों जैसा था.
दूसरे दिन ही पुलिस को पता लग गया कि स्कौर्पियो का मालिक मनसुख हिरेन है. पुलिस ने हिरेन को तलब किया. उस ने बताया कि 18 फरवरी को उस की गाड़ी चोरी हो गई थी. उस ने पुलिस में इस की शिकायत भी दर्ज करा दी थी. बाद में हिरेन ने वाझे के कहने पर मुंबई पुलिस के आला अफसरों को पत्र लिख कर आरोप लगाया कि पुलिस उसे एंटीलिया मामले में बेवजह परेशान कर रही है, क्योंकि उस की गाड़ी चोरी हो गई थी.
इसी दौरान पहली मार्च को सोशल मीडिया ऐप टेलीग्राम के एक चैनल के पोस्ट में अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक रखने के लिए जैश उल हिंद नामक आतंकी संगठन ने खुद को जिम्मेदार बताया. लेकिन इस के अगले ही दिन दिल्ली पुलिस ने कहा कि जैश उल हिंद नाम का कोई आतंकी संगठन है ही नहीं.
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पुलिस इस मामले की जांच कर ही रही थी कि 4 मार्च को मनसुख हिरेन लापता हो गए. हिरेन घर पर अपनी पत्नी विमला से कह कर गए थे कि तावड़े नाम के किसी पुलिस वाले का फोन आया है, उस ने पूछताछ के लिए बुलाया है.
इस के बाद हिरेन वापस घर नहीं लौटे. पत्नी विमला ने रात को उन्हें फोन किया, तो उन का मोबाइल बंद मिला.
इस के अगले ही दिन 5 मार्च को हिरेन की लाश उत्तरपश्चिम मुंबई के रेतीबंदर की मुंब्रा खाड़ी में तैरती हुई मिली. उन के हाथ बंधे हुए थे और मुंह में कई रुमाल ठूंसे हुए थे. इसे ले कर ठाणे पुलिस ने दुर्घटना में मौत का मामला दर्ज किया.
हिरेन की पत्नी विमला ने अपने पति की हत्या करवाने का आरोप वाझे पर लगाया. करीब 49 साल के मनसुख हिरेन कार डेकोरेशन का काम करते थे. हिरेन की पत्नी की शिकायत पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया.
हिरेन की हत्या हो जाने से यह मामला और पेचीदा हो गया. इस के बाद महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को सौंप दी. दूसरी ओर, अंबानी परिवार को धमकी देने के मामले में आतंकी संगठन का नाम आने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 8 मार्च को इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी.
अगले भाग में पढ़ें- हिरेन की हत्या में हुई गिरफ्तारी