Social Update: औरतों की अपनी भी जिंदगी है

Social Update, लेखक – डा. इम्तियाज अहमद गाजी

शादीशुदा औरतों के अपने पति को छोड़ कर अपने से कम उम्र के दूसरे लड़कों के साथ भाग जाने की खबरें लगातार आ रही हैं. लगातार हो रही इन घटनाओं में यह साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि औरतें लोकलाज को परे रख कर अपनी निजी जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने को अब प्राथमिकता देने लगी हैं.

एक के बाद एक हो रही घटनाओं से दूसरी औरतों को भी प्रेरणा मिल रही है. ये घटनाएं मर्दों को सावधान करने वाली हैं, साथ ही उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अगाह करने वाली भी हैं. अगर मर्दों ने इन वजहों की तह में जा कर अपनेआप को दुरुस्त नहीं किया तो इस तरह की घटनाएं किसी के भी साथ हो सकती हैं. कोई भी पति अपनी पत्नी से हाथ धो सकता है.

ऐसी घटनाओं से पति को अपनी पत्नी के बिछुड़ जाने का सिर्फ दर्द ही नहीं होता, इस के साथसाथ समाज में मुंह दिखाना भी बेहद मुश्किल हो जाता है.

पिछले दिनों सब को चौंका देने वाली घटना उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई. एक औरत ने अपनी बेटी की शादी एक लड़के से तय कर दी. शादी की तारीख तय होने के बाद लड़का अकसर ही अपनी ससुराल आनेजाने लगा और फोन पर भी बातें करने लगा.

इस दौरान उस लड़के की त्यादातर बातें अपनी होने वाली सास से होने लगीं. बातोंबातें में अपनापन इतना ज्यादा बढ़ा कि दोनों में प्यार हो गया. चंद रोज ही शादी को बचे थे. इसके बावजूद वह औरत आपने होने वाले दामाद के साथ भाग गई.

दूसरी घटना भी उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर में हुई. यहां एक 50 साल की औरत को अपने रिश्ते के 30 साल के पोते से प्यार हो गया. प्यार इतना ज्यादा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी रचा ली.

उत्तर प्रदेश के ही बदायूं जिले में बेटाबेटी की शादी तय करने के दौरान होने वाले समधी और समधन में प्यार हो गया. इस घटना में 4 बच्चों की मां अपने होने वाले समधी के साथ घर से भाग गई.

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में एक बूआ अपने भतीजे से प्यार करने लगी. घर वालों का विरोध और गुस्सा देख कर वह अपने भतीजे के साथ घर से भाग गई. दूसरे शहर में जा कर उस ने भतीजे से शादी रचा ली.

इसी तरह एक औरत ने अपने पति को छोड़ कर अपने से कम उम्र के चाचा के साथ शादी रचा ली. एक औरत के घर उस के बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्यूटर आता था. वह औरत लोकलाज को किनारे रख कर ट्यूटर से प्यार करने लगी और अब वह उसी से शादी करने को अड़ी है. उस का पति अरब देश में नौकरी करता है.

इस तरह की तमाम दूसरी घटनाएं लगातार सामने आ रही है. इन सारी ही घटनाओं में तकरीबन सभी औरतों की उम्र 50 साल या इस से ज्यादा है. इस तरह के कुछ मामले प्रकाश में आते हैं, बहुत सारे प्रकाश में नहीं आ पाते. इन की जड़ों में जा कर देखा जाए तो एक तरह से ये औरतों के जागरूक होने के मामले दिखाई दे रहे हैं.

आमतौर पर होता यह है कि ऐसी औरतें अनदेखी की शिकार होती हैं. इन की जिंदगी बेटाबेटी और नातेरिश्तेदारों की देखभाल में ही गुजर रही होती है. इन पर परिवार की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा डाल दी जा रही हैं कि उन की अपनी जिंदगी बदरंग हो जाती है.

ऐसे मामलों में औरतें घुटघुट कर जीने को मजबूर हो रही हैं. उन की अपनी जिंदगी कोई माने नहीं रख
रही है, जबकि हर इनसान की तरह उम्रदराज घरेलू औरतों को भी प्यार, सैक्स और हमदर्दी की बेहद जरूरत होती है. इन के बिना उन की अपनी जिंदगी बेमतलब सी दिखाई देती है.

इन्हें अपने परिवार से यह संदेश मिलने लगता है कि तुम्हारी अपनी जिंदगी कुछ भी नहीं. तुम्हें अपने पति, बच्चों और दूसरे परिवार वालों को ही खुश करने और उन्हें कामयाब बनाने के लिए काम करना और जीना है, जबकि हर किसी की अपनी निजी जिंदगी भी होती है.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अगर किसी औरत को उस के पति का प्यार नहीं मिलता, उस के सैक्स की भरपाई नहीं होती, घर के लोग उस की खुशी और दुख पर ध्यान नहीं देते हैं, तब वह औरत एक तरह से दिमागीतौर पर बीमार हो जाती है. फिर उसे ऐसे लोग बहुत अच्छे लगने लगते हैं, जो उस की निजी जिंदगी की खुशी और दुख का ध्यान रखते हैं, उस की बातें करते हैं.

ऐसी औरतों की जिंदगी में जब कोई ऐसा मर्द आ जाता है, तब वे उस से प्यार करने लगती हैं. ऐसे हालात में उन के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि सामने वाला उम्र में उन से छोटा है या उन का सगासंबंधी है.

ऐसे हालात में पति को अपनी पत्नी की निजी जिंदगी पर खूब ध्यान देने की जरूरत है. उस के साथ प्यार भरा बरताव करें और उस की सैक्स की भूख को भी समझें, वरना उन के साथ भी ऐसी ही घटना घट सकती है. Social Update

औरतों की आजादी कहां

ईरान में 39 साल बाद महिलाओं ने फिर आजादी का जश्न मनाया और हजारों की संख्या में तेहरान के सब से बड़े आजादी स्टेडियम में एक बड़ी स्क्रीन पर रूस में हुए फुटबौल विश्व कप का मैच देखा. दरअसल, यहां की महिलाओं को 1979 की इसलामिक क्रांति के बाद से ही खेल स्टेडियमों में आने की इजाजत नहीं थी. इस प्रतिबंध का संबंध सीधे धर्म से था.

पर 27 जून, 2018 को स्पेन और ईरान के मैच से पहले स्टेडियम को महिलाओं के लिए खोल दिया गया. ईरान के रूढिवादी नेताओं ने इस फैसले का विरोध किया. महाअभियोजक मोहम्मद जफर मोंटेजरी ने महिलाओं द्वारा इस तरह सिर से स्कार्फ हटा कर जश्न मनाने, गाने और नृत्य करने को शर्मनाक बताया. गौरतलब है कि ईरान में महिलाओं के लिए सिर पर स्कार्फ पहनना जरूरी है.

कुछ अरसा पहले स्कार्फ की अनिवार्यता के चलते भारत की शतरंज चैंपियन सौम्या स्वामीनाथन ने ईरान में एशियन टूरनामैंट में खेलने से इनकार कर दिया था. 29 साल की ग्रैंडमास्टर सौम्या ने इस नियम को मानवाधिकार का उल्लंघन बताया था. इस से पहले शूटर हिना सिद्द्धू ने 2016 में ईरान के एशियाई एअरगन मुकाबले से खुद को अलग कर लिया था. भारत के अलावा और कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी भी ऐसा कर चुके हैं. सऊदी अरब, ईरान जैसे मुसलिम और दूसरे पिछड़े देशों में महिलाओं के ऊपर तरहतरह की पाबंदियां लगी हुई हैं. सऊदी अरब में ऐसे बहुत से काम हैं, जो महिलाएं नहीं कर सकतीं.

ये भी पढ़ें- किस काम का हिंदू विवाह कानून

महिलाओं को घूमने, बैंक अकाउंट खोलने, पासपोर्ट बनवाने, शादी, तलाक, किसी तरह का कौंट्रैक्स साइन करने के लिए अपने घर के पुरुष सदस्यों से इजाजत लेनी जरूरी है.

महिलाएं वैसे कपड़े नहीं पहन सकतीं जो उन्हें खूबसूरत दिखाते हों.

अपने रिश्तेदारों के सिवा अन्य पुरुषों से महिलाएं एक सीमित समय तक ही बात कर सकती हैं.

संयुक्त अरब की महिलाएं सार्वजनिक स्वीमिंग पूल्स में नहीं जा सकतीं. उन्हें केवल महिलाओं के लिए बने जिम और स्पा में ही जाने की इजाजत है.

शौपिंग करने गई महिलाओं को ट्रायलरूम में कपड़े बदलने की भी इजाजत नहीं. उन्हें बिना ट्राई किए ही कपड़े पसंद करने होते हैं.

महिलाएं मातापिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार नहीं होतीं.

भारत में भी कमोबेश यही हाल है. कभी मासिकधर्म के नाम पर, कभी परदाप्रथा के नाम पर, कभी सड़ीगली परंपराओं के नाम पर तो कभी असुरक्षित माहौल के नाम पर उन के पैरों में बंदिशों की मोटीमोटी जंजीरें डाल दी जाती हैं. महिलाओं के कपड़ों को ले कर अकसर बखेड़े होते रहते हैं. लगता है जैसे शरीर महिलाओं का नहीं तथाकथित संस्कारों और परंपराओं का भार ढोते हुए समाज को सही रास्ता दिखाने का ठेका लेने वाले धर्मगुरुओं व पोंगापंडितों का है.

महिलाओं के साथ कोई अपराध हो तो उन्हें ही दोषी करार दिया जाता है. उन्हें परदे के अंदर रहने की हिदायत दी जाती है. हर तरह की चैलेंजिंग जौब से दूर रखा जाता है.

कोमलता कमजोरी नहीं

सवाल उठता है कि क्या महिला होना अपराध है? क्या पुरुषों की तरह औरतें इंसान नहीं? क्या उन का शरीर किसी और चीज से बना है? क्या उन के पास दिल और दिमाग नहीं? क्या वे सोचसमझ नहीं सकतीं? अपने फैसले खुद नहीं ले सकतीं? उन्हें इस कदर बांध कर और पुरुषों के अधीन क्यों रखा जाता है? यदि वे अपने बल पर जीने या कुछ कर दिखाने के काबिल हैं, तो उन्हें रोका क्यों जाता है? शरीर, हां एक शरीर ही है जो पुरुषों से थोड़ा अलग है. पुरुषों के मुकाबले महिलाएं शारीरिक रूप से थोड़ी नाजुक होती हैं. इसी कोमल तन और मन के नाम पर उन के साथ नाइंसाफियां की जाती हैं.

महिला की कोमलता को उस की कमजोरी मानने वाले पुरुष यह भूल जाते हैं कि इसी कोमल शरीर ने एक से एक ताकतवर पुरुषों को जन्म दिया है. पुरुषों ने इस हकीकत को नजरअंदाज करते हुए कोमलता के नाम पर महिलाओं के शरीर पर अधिकार जमाया.

ये भी पढ़ें- धर्म के नाम पर चंदे का धंधा

देह पर किस का अधिकार

देह पर अधिकार को ले कर हाल ही में अटौर्नी जनरल मुकुल रोहतगी का एक दिलचस्प बयान सामने आया. आधार कार्ड को ले कर सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा कि नागरिक अपने शरीर के अंगों पर पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकते. वे आधार नामांकन के लिए डिजिटल फिंगरप्रिंट और आइरिस को लेने से मना नहीं कर सकते. भाजपा सरकार की ओर से रोहतगी ने तर्क दिया कि कोईर् भी व्यक्ति अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि कानून लोगों को आत्महत्या करने और महिलाओं को ऐडवांस स्टेज पर गर्भपात करने से रोकता है. यदि उन का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार होता तो लोग अपने शरीर के साथ जो भी करना चाहते वह करने के लिए स्वतंत्र होते. बाद में उन के इस तर्क को कोर्ट ने सिरे से नकार दिया.

हालांकि यहां देह की बात दूसरे संदर्भ में की गई, मगर जब हम महिलाओं की देह की बात करते हैं तो कहीं न कहीं यही मानसिकता हमारे अंदर सिर उठाए रखती है. जहां तक इस बयान का हकीकत से संबंध है, महिलाओं के संदर्भ में इसे वास्तव में लागू किया जाता है. महिलाओं का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार नहीं. पूर्ण क्या, बहुत सी जगह तो महिलाओं को अपने शरीर पर थोड़ा भी हक देने की फितरत नहीं रखी जाती.

टूट रही हैं दीवारें

लंबे अरसे से सऊदी अरब की महिलाओं को ड्राइविंग यानी गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं था. वे केवल पिछली सीट पर बैठ सकती थीं. समयसमय पर वहां की महिलाएं इस के खिलाफ आवाज उठाती रहीं. 1990 में जब 47 महिलाओं ने इस के खिलाफ नारा बुलंद किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन के पासपोर्ट जब्त कर लिए गए. 2007 में महिला ऐक्टिविस्ट्स ने तत्कालीन उस समय के किंग अबदुल्लाह को ड्राइविंग से बैन हटाने के लिए 1000 हस्ताक्षरों के साथ एक याचिका दी पर कोईर् सुनवाई नहीं हुई. नवंबर, 2014 को संयुक्त अरब अमीरात तक ड्राइव करने की कोशिश के बाद ऐक्टिविस्ट्स लूजा इन हथलाउल और मायसा अल अमूदी को 73 दिनों तक हिरासत में रखा गया. इन पर आतंकवाद से जुड़े केस दर्ज किए गए.

बीते साल सितंबर में किंग सलमान ने अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान द्वारा सुधारों को लागू किए जाने के बाद महिलाओं की ड्राइविंग पर लगे बैन को हटाने का आदेश दिया और फिर गत 24 जून की आधी रात से महिलाओं की ड्राइविंग पर लगा बैन पूरी तरह से हट गया. महिलाएं कारों का स्टीयरिंग थामे इस आजादी का जश्न मनाती सड़कों पर नजर आने लगीं. आधिकारिक तौर पर उन्हें सड़कों पर ड्राइविंग करने की इजाजत जो मिल गई थी. लाइसैंस बनवाने के लिए महिलाओं की लंबी लाइनें लग गईं.

ये भी पढ़ें- ‘भाभीजी’ ड्रग्स बेचती हैं

संयुक्त अरब अमीरात दुनिया का ऐसा आखिरी देश है जहां इस तरह का प्रतिबंध कायम था. इस प्रतिबंध के हटने से खाड़ी देशों की 1.5 करोड़ से ज्यादा महिलाएं पहली बार सड़कों पर गाडि़या चला सकेंगी.

सोच बदलनी जरूरी भले ही प्रतिबंधों के टूटने पर महिलाओं का उत्साह बढ़ता है पर प्रतिबंधों को हटाने के साथसाथ लोगों की मानसिकता भी बदलनी जरूरी है. उदाहरण के लिए एक तरफ जहां संयुक्त अरब अमीरात की महिलाएं ड्राइविंग का हक मिलने के बाद आजादी का जश्न मना रही थीं, तो वहीं दूसरी तरफ इस खबर की रिपोर्टिंग करते हुए एक महिला रिपोर्टर का ऐसा वीडियो वायरल हुआ कि उसे देश छोड़ कर भागना पड़ा.

संयुक्त अरब अमीरात प्रशासन ने उस रिपोर्टर के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए. वजह थी रिपोर्टिंग के दौरान अश्लील कपड़े पहनना, दरअसल, टीवी की रिपोर्टर शिरीन का हैडस्कार्फ ढीला था और उस ने थोड़ा खुला गाउन पहना था. इसी बात को उछालते हुए संस्कृति के तथाकथित रखवालों ने ट्विटर पर नैकेड वूमन ड्राइविंग इन रियाद हैशटैग से वीडियो वायरल कर दिया.

आज के दौर में समाज की उन्नति के लिए स्त्रियों के बढ़ते कदमों को हौसला देने की जरूरत है न कि अपनी कुंठाओं और घटिया सोच के बोझ तले उन के अरमानों को कुचलने और बंदिशों की डोर से बांधने की.

ये भी पढ़ें- फांसी से बचाने के लिए सालाना खर्च करते हैं 36 करोड़ रुपए

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें