जम्मू के कठुआ इलाके की रहने वाली एक डोगरी लेखिका को दिल्ली के एक साहित्यिक कार्यक्रम में आने का न्योता दिया गया. होटल में रुकने के साथसाथ हवाईजहाज से आनेजाने की टिकट भी भेजी गई. पर उन लेखिका को अकेले दिल्ली आने में डर लग रहा था. सोचा कि दिल्ली तो हवाईजहाज से पहुंच जाएंगी, पर उस से आगे इतने बड़े शहर में अपने होटल कैसे पहुंचेंगी? उन का डर जायज था, क्योंकि दिल्ली में अकेली किसी औरत या लड़की को लूट लेने की खबरें वे रोजाना अखबारों में पढ़ लेती थीं.
लेकिन उन लेखिका ने हिम्मत नहीं हारी और इंटरनैट पर इस का समाधान ढूंढ़ना शुरू किया. थोड़ी सी मेहनत करने के बाद उन्हें पता चला कि दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनैशनल हवाईअड्डे पर एक अनूठी कैब सेवा की शुरुआत की गई है. इस का नाम ‘सखा कैब’ रखा गया है. इस कैब सेवा की खास बात यह है कि इसे केवल महिला ड्राइवर ही चलाएंगी और इस कैब सेवा का फायदा भी केवल महिलाएं या फिर परिवार के साथ सफर करने वाले लोग ही उठा पाएंगे.
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इस कैब सेवा को एक निजी स्वयंसेवी संस्था आजाद फाउंडेशन की मदद से खासतौर पर अकेले सफर कर रही महिलाओं की हिफाजत को ध्यान में रख कर शुरू किया गया है, जिस के तहत महिलाओं को ड्राइविंग के साथसाथ सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग भी दी जाती है. इस के अलावा जीपीएस के जरीए कैब का संपर्क सीधा कंट्रोल रूम से रहता है, जिस से किसी भी हालत में सूचना नजदीकी पुलिस स्टेशन तक पहुंच जाएगी.
इस सेवा का नाम ‘वुमन विद ह्वील्स’ रखा गया है और इस का दिल्ली के किसी भी हिस्से में फायदा उठाया जा सकता है. इस कैब सेवा में मर्दों को बैठने की तभी इजाजत दी जाती है, जब वे किसी महिला या अपने परिवार के साथ हों.
कमजोर बैकग्राउंड की महिलाओं को पेशेवर ड्राइवर बनने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है.
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‘सखा’ के नाम ऐसी और कई उपलब्धियां हैं, जो एकदम नई हैं. जैसे, इस ने डीटीसी को पहली महिला बस ड्राइवर दी थी. साथ ही, यूनिसैफ, अमेरिकी दूतावास, लीला होटल, दिल्ली महिला आयोग, इंदौर नगरनिगम, कोलकाता के पार्क होटल और ओबरौय होटल को भी पहली महिला ड्राइवर देने का क्रेडिट ‘सखा’ को ही जाता है.