हर भाई- बहन को ‘रक्षाबंधन’ का बेसब्री से इंतजार होता है. यह भाई-बहन के अटूट बंधन को दर्शाने वाला फेस्टिवल है. भाई-बहन का रिश्ता बेहद प्यारा होता है. इस रिश्ते में इमोश्न्स के साथ-साथ कई सीक्रेट्स भी होते हैं. तो इस खास मौके पर हम आपके लिए लेकर आये हैं सरस सलिल की टॉप 10 रक्षाबंधन स्पेशल कहानियां. अगर आप कहानियां पढ़ने के शौकिन हैं तो यहां पढ़िए Top 10 Raksha Bandhan Story in Hindi.
- तृप्त मन- राजन ने कैसे बचाया बहन का घर?
अमेरिका में स्थायी रूप से रह रहे राजन के ताऊ धर्म प्रकाश को जब खबर मिली कि उन के भतीजे राजन ने आई.टी. परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो उन्होंने फौरन फोन से अपने छोटे भाई चंद्र प्रकाश को कहा कि वह राजन को अमेरिका भेज दे…यहां प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण के बाद नौकरी का बहुत अच्छा स्कोप है.
चंद्र्र प्रकाश भी तैयार हो गए और बेटे को अमेरिका के लिए पासपोर्ट, वीजा आदि बनवाने में लग गए. लेकिन उन की पत्नी सरोजनी के मन को कुछ बहुत अच्छा नहीं लगा. कुल 2 बच्चे राजन और उस से 5 साल छोटी 8वीं में पढ़ रही राशी. अब बेटा सात समुंदर पार चला जाएगा तो मां को कैसे अच्छा लगेगा. उस ने तो पति से साफ शब्दों में मना भी किया.
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2. ज्योति- क्यों सगे भाईयों से भी बढ़कर निकले वो तीनों लड़के?
‘‘हां मां, खाना खा लिया था औफिस की कैंटीन में. तुम बेकार ही इतनी चिंता करती हो मेरी. मैं अपना खयाल रखता हूं,’’ एक हाथ से औफिस की मोटीमोटी फाइलें संभालते हुए और दूसरे हाथ में मोबाइल कान से लगाए सुमित मां को समझाने की कोशिश में जुटा हुआ था.
‘‘देख, झूठ मत बोल मुझ से. कितना दुबला गया है तू. तेरी फोटो दिखाती रहती है छुटकी फेसबुक पर. अरे, इतना भी क्या काम होता है कि खानेपीने की सुध नहीं रहती तुझे.’’ घर से दूर रह रहे बेटे के लिए मां का चिंतित होना स्वाभाविक ही था, ‘‘देख, मेरी बात मान, छुटकी को बुला ले अपने पास, बहन के आने से तेरे खानेपीने की सब चिंता मिट जाएगी. वैसे भी 12वीं पास कर लेगी इस साल, तो वहीं किसी कालेज में दाखिला मिल जाएगा,’’ मां उत्साहित होते हुए बोलीं.
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3. सत्य असत्य- क्या निशा ने कर्ण को माफ किया?
कर्ण के एक असत्य ने सब के लिए परेशानी खड़ी कर दी. जहां इसी की वजह से हुई निशा के पिता की मौत ने उसे झकझोर कर रख दिया, वहीं खुद कर्ण पछतावे की आग में सुलगता रहा. पर निशा से क्या उसे कभी माफी मिल सकी?
घर की तामीर चाहे जैसी हो, इस में रोने की कुछ जगह रखना.’ कागज पर लिखी चंद पंक्तियां निशा के हाथ में देख मैं हंस पड़ी, ‘‘घर में रोने की जगह क्यों चाहिए?’’
‘‘तो क्या रोने के लिए घर से बाहर जाना चाहिए?’’ निशा ने हंस कर कहा.
‘‘अरे भई, क्या बिना रोए जीवन नहीं काटा जा सकता?’’
‘‘रोना भी तो जीवन का एक अनिवार्य अंग है. गीता, अगर हंसना चाहती हो तो रोने का अर्थ भी समझो. अगर मीठा पसंद है तो कड़वाहट को भी सदा याद रखो. जीत की खुशी से मन भरा पड़ा है तो यह मत भूलो, हारने वाला भी कम महत्त्व नहीं रखता. वह अगर हारता नहीं तो दूसरा जीतता कैसे?’’
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4. दागी कंगन- क्या निहाल अपनी बहन को उस दलदल से निकाल पाया
‘‘मुन्नी, तुम यहां पर कैसे?’’ ये शब्द कान में पड़ते ही मुन्नी ने अपनी गहरी काजल भरी निगाहों से उस शख्स को गौर से देखा और अचानक ही उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘निहाल भैया…’’
वह शख्स हामी भरते हुए बोला, ‘‘हां, मैं निहाल.’’
‘‘लेकिन भैया, आप यहां कैसे?’’
‘‘यही सवाल तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि मुन्नी तुम यहां कैसे?’’
अपनी आंखों में आए आंसुओं के सैलाब को रोकते हुए मुन्नी, जिस का असली नाम मेनका था, बोली, ‘‘जाने दीजिए भैया, क्या करेंगे आप जान कर. चलिए, मैं आप को किसी और लड़की से मिलवा देती हूं. मुझ से तो आप के लिए यह काम नहीं होगा.’’
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5. भाईदूज – राधा ने मोहन को कैसे बनाया भाई
‘‘मेरे सामने तो तुम उसे राधा बहन मत बोलो. मुझे तो यह गाली की तरह लगता है,’’ मालती भड़क उठी.
‘‘अगर उस ने बिना कुछ पूछे अचानक आ कर मुझे राखी बांध दी, तो इस में मेरा क्या कुसूर? मैं ने तो उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था,’’ मोहन बाबू तकरीबन गिड़गिड़ाते हुए बोले.
‘‘हांहां, इस में तुम्हारा क्या कुसूर? उस नीच जाति की राधा से तुम ने नहीं, तो क्या मैं ने ‘राधा बहन, राधा बहन’ कह कर नाता जोड़ा था. रिश्ता जोड़ा है, तो राखी तो वह बांधेगी ही.’’
‘‘उस का मन रखने के लिए मैं ने उस से राखी बंधवा भी ली, तो ऐसा कौन सा भूचाल आ गया, जो तुम इतना बिगड़ रही हो?’’
‘‘उंगली पकड़तेपकड़ते ही हाथ पकड़ते हैं ये लोग. आज राखी बांधी है, तो कल को भाईदूज पर खाना खाने भी बुलाएगी. तुम को तो जाना भी पड़ेगा. आखिर रिश्ता जो जोड़ा है. मगर, मैं तो ऐसे रिश्तों को निभा नहीं पाऊंगी,’’ मालती ने अपने मन का सारा जहर उगल दिया.
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6. स्लीपिंग पार्टनर- मनु की नजरों में अनुपम भैया
मनु को एक दिन पत्र मिलता है जिसे देख कर वह चौंक जाती है कि उस की भाभी यानी अनुपम भैया की पत्नी नहीं रहीं. वह भैया, जो उसे बचपन में ‘डोर कीपर’ कह कर चिढ़ाया करते थे.
पत्र पढ़ते ही मनु अतीत के गलियारे में भटकती हुई पुराने घर में जा पहुंचती है, जहां उस का बचपन बीता था, लेकिन पति दिवाकर की आवाज सुन कर वह वर्तमान में लौट आती है. वह अनुपम भैया के पत्र के बारे में दिवाकर को बताती है और फिर अतीत में खो जाती है कि उस की मौसी अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ दिन सपरिवार रहने आ रही हैं. और सारा इंतजाम उन्हें करने को कहती हैं.
आखिर वह दिन भी आ जाता है जब मौसी आ जाती हैं. घर में आते ही वह पूरे घर का निरीक्षण करना शुरू कर देती हैं और पूरे घर की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले लेती हैं. पूरे घर में उन का हुक्म चलता है.
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7. कड़वा फल- क्या अपनी बहन के भविष्य को संवार पाया रवि?
अपने मम्मी पापा की शादी की 10वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में हुई भव्य पार्टी की यादें आज भी मेरे दिलोदिमाग में तरोताजा हैं. वह पार्टी लंबे समय तक हमारे परिचितों के बीच चर्चा का विषय बनी रही थी.
पार्टी क्लब में हुई थी. करीब 500 मेहमानों की आवभगत वरदीधारी वेटरों की पूरी फौज ने की थी. अपनीअपनी रुचि के अनुरूप मेहमानों ने जम कर खाया, और देर रात तक डांस करते रहे. इतने सारे गिफ्ट आए कि पापा को उन्हें कारों से घर पहुंचाने के लिए अपने 2 दोस्तों की सहायता लेनी पड़ी.
मेरे लिए वे बेहद खुशी भरे दिन थे. हम ने एक बड़े घर में कुछ महीने पहले शिफ्ट किया था. मेरी छोटी बहन शिखा और मुझे अपना अलग कमरा मिला. मम्मी ने उसे बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया था.
अपने नए दोस्तों के बीच मेरी धाक शुरू से ही जम गई. मेरी साइकिल हो या जूते, कपड़े हों या स्कूल बैग, हर चीज सब से ज्यादा कीमती और सुंदर होती.
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8. कितने अजनबी- क्या रश्मि अपने भाई-बहन के मतभेद को खत्म कर पाई?
हम 4 एक ही छत के नीचे रहने वाले लोग एकदूसरे से इतने अजनबी कि अपनेअपने खोल में सिमटे हुए हैं.
मैं रश्मि हूं. इस घर की सब से बड़ी बेटी. मैं ने अपने जीवन के 35 वसंत देख डाले हैं. मेरे जीवन में सब कुछ सामान्य गति से ही चलता रहता यदि आज उन्होंने जीवन के इस ठहरे पानी में कंकड़ न डाला होता.
मैं सोचती हूं, क्या मिलता है लोगों को इस तरह दूसरे को परेशान करने में. मैं ने तो आज तक कभी यह जानने की जरूरत नहीं समझी कि पड़ोसी क्या कर रहे हैं. पड़ोसी तो दूर अपनी सगी भाभी क्या कर रही हैं, यह तक जानने की कोशिश नहीं की लेकिन आज मेरे मिनटमिनट का हिसाब रखा जा रहा है. मेरा कुसूर क्या है? केवल यही न कि मैं अविवाहिता हूं. क्या यह इतना बड़ा गुनाह है कि मेरे बारे में बातचीत करते हुए सब निर्मम हो जाते हैं.
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9. राखी का उपहार
इस समय रात के 12 बज रहे हैं. सारा घर सो रहा है पर मेरी आंखों से नींद गायब है. जब मुझे नींद नहीं आई, तब मैं उठ कर बाहर आ गया. अंदर की उमस से बाहर चलती बयार बेहतर लगी, तो मैं बरामदे में रखी आरामकुरसी पर बैठ गया. वहां जब मैं ने आंखें मूंद लीं तो मेरे मन के घोड़े बेलगाम दौड़ने लगे. सच ही तो कह रही थी नेहा, आखिर मुझे अपनी व्यस्त जिंदगी में इतनी फुरसत ही कहां है कि मैं अपनी पत्नी स्वाति की तरफ देख सकूं.
‘‘भैया, मशीन बन कर रह गए हैं आप. घर को भी आप ने एक कारखाने में तबदील कर दिया है,’’ आज सुबह चाय देते वक्त मेरी बहन नेहा मुझ से उलझ पड़ी थी. ‘‘तू इन बेकार की बातों में मत उलझ. अमेरिका से 5 साल बाद लौटी है तू. घूम, मौजमस्ती कर. और सुन, मेरी गाड़ी ले जा. और हां, रक्षाबंधन पर जो भी तुझे चाहिए, प्लीज वह भी खरीद लेना और मुझ से पैसे ले लेना.’’
‘‘आप को सभी की फिक्र है पर अपने घर को आप ने कभी देखा है?’’ अचानक ही नेहा मुखर हो उठी थी, ‘‘भैया, कभी फुरसत के 2 पल निकाल कर भाभी की तरफ तो देखो. क्या उन की सूनी आंखें आप से कुछ पूछती नहीं हैं?’’
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10. बड़े भैया- क्यों स्मिता अपने भाई से डरती थी?
बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था.
‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा.
‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया.
‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’
स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’