लेखक- सुनील
जब मैं नीलम सिंह से फरीदाबाद के एक जिम में मिला था, तो एक अजीब सा वाकिआ हुआ था. चूंकि नीलम सिंह एकदम लड़कों के स्टाइल में रहती हैं और शरीर से भी मजबूत हैं, तो जिम में हमारे लिए फोटो खिंचवाने की खातिर वे सैंडो और शौर्ट्स में थीं. लड़कों वाला हेयर स्टाइल देख कर जिम में ऐक्सरसाइज कर रहे कुछ लड़के उन्हें पहचान नहीं पाए और किसी लड़के ने अपने साथी को गाली दे दी.
नीलम सिंह ने तुरंत उस लड़के को टोक दिया और बोलीं, ‘‘जिम में गाली दोगे तो बौडी नहीं बनेगी…’’ इतना कह कर वे लेडी वाशरूम में चली गईं, जबकि वह लड़का तिलमिला गया कि बिना जानपहचान उसे टोक कैसे दिया?
इसी बीच उस जिम का कोई मुलाजिम वहां आया और उस लड़के ने उस से पूछा कि ये महिला कौन हैं. थोड़ी देर बाद जब नीलम सिंह बाहर आईं, तो उस लड़के ने उन के पैर छू कर माफी मांगी और बोला, ‘‘सौरी, मैं आप को पहचान नहीं पाया.’’
नीलम सिंह उस लड़के को देख कर मुसकराईं और वहां से चली गईं.
बाद में बातचीत में उन्होंने बताया, ‘‘शरीर बनाना इतना आसान नहीं है. एक तरह की तपस्या है और अपना सौ फीसदी देना पड़ता है.’’
आप सोच रहे होंगे कि ये नीलम सिंह हैं कौन? दरअसल, नीलम सिंह महिला पावर लिफ्टिंग में ऐसा नाम हैं, जिन का घर मैडलों से अटा पड़ा है, पर यह सफर उन के लिए आसान नहीं रहा है.
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अपनी जिंदगी की जद्दोजेहद के बारे में नीलम सिंह ने बताया, ‘‘मैं हरियाणा के शहर रोहतक से बिलकुल सटे एक गांव डोभ के बहुत ही साधारण और गरीब परिवार की लड़की हूं. मुझे बचपन से ही कुछ अलग करने का शौक था. लेकिन आज से 10-15 साल पहले वहां लड़कियों को खेलने की छूट नहीं थी, उन्हें अपनी मनमानी करने की आजादी नहीं थी. चूंकि मैं एक गरीब परिवार से थी, तो परिवार में ऐसा कोई नहीं था, जिस ने खेलों को कभी अपनाया हो.
‘‘पर, मैं गांवदेहात की आम लड़की की तरह जिंदगी नहीं बिताना चाहती थी कि 10वीं जमात तक पढ़ा दिया, फिर शादी कर दी और बच्चे पैदा करा दिए.
‘‘सच कहूं तो बचपन में मैं पायलेट बनना चाहती थी, पर जब मैं 5वीं जमात में थी, तब मेरे मातापिता बीमार रहने लगे थे. मेरी बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी, इसलिए घर में मैं अकेली ही थी. भाई भी बाहर रहता था, तो मैं ही घर संभालती थी, खेतों का काम करना पड़ता था. पढ़ाई करने का समय ही नहीं मिलता था.
‘‘ऐसा करतेकरते जब मैं 10वीं जमात में आ गई, तब सोचती थी कि अपने सपनों को कब पूरा करूंगी? मेरा जोश हर रोज मुझे कचोटता था कि मैं कब अपने सपने पूरे करूंगी?
‘‘फिर, मैं खेलों की तरफ झुकती चली गई. रोहतक में मुझे कोई अच्छा कोच नहीं मिला. वहां लड़कियां कुश्ती नहीं खेलती थीं. वहां मैं ने सुना था कि दिल्ली के चंदगीराम अखाड़े में लड़कियों को कुश्ती सिखाई जाती है, तो मैं भी उस अखाड़े में रहने लगी.
‘‘पर एक बार जब मैं ने लखनऊ के एक दंगल में गुरुजी की बड़ी बेटी को कुश्ती में हरा दिया, तो उन्होंने नाराज हो कर मुझे अखाड़े से निकाल दिया.
‘‘इसी बीच दिल्ली में स्पोर्ट्स अथौरिटी औफ इंडिया के लिए महिला पहलवानों की ट्रायल थी, जिस में मेरा सिलैक्शन हो गया. अब सरकार मेरा खर्चा उठाती थी. उस के बाद मैं दिल्ली से खेली, हरियाणा से खेली थी, नैशनल भी खेली. तब मैं 59 किलोग्राम भारवर्ग में कुश्ती खेलती थी. मेरे नैशनल में कुश्ती के 9-10 गोल्ड मैडल हैं, 12-13 सिल्वर मैडल हैं और 7-8 ब्रौंज मैडल हैं.
‘‘मैं ने वैश्य कालेज, रोहतक से ग्रेजुएशन की. इसी बीच अलका तोमर के साथ मेरी कुश्ती की ट्रायल थी, जिस में मेरे घुटने पर चोट लग गई और साल 2009 में मुझे कुश्ती छोड़नी पड़ी. लेकिन मेरा जिम जाने का जुनून बना रहा.
‘‘मैं दिल्ली से फरीदाबाद आ गई. यहां मैं जिम में लोगों को ट्रेनिंग देने लगी. एक साल के लिए मैं ने मुंबई में भी महेंद्र सिंह धौनी के जिम में काम किया था. काम करने के साथसाथ मैं पावर लिफ्टिंग में आ गई और साल 2015 से मैं पावर लिफ्टिंग कर रही हूं.
‘‘आज मैं फरीदाबाद, गुरुग्राम, नोएडा, दिल्ली में 80 से 90 लोगों की टीम को ट्रेनिंग देती हूं. खेलों में कुछ कर गुजरने वाली गरीब घर की लड़कियों को मैं बहुत सपोर्ट करती हूं. मैं बच्चों को मुफ्त में ट्रेनिंग देती हूं. कुछ की तो किसी प्रतियोगिता में मैं खुद ही फीस भरती हूं.
‘‘पावर लिफ्टिंग में मैं ने 100 से ज्यादा गोल्ड मैडल जीते हुए हैं. साल 2016, साल 2017 और साल 2018 की बहुत सी प्रतियोगिताओं के 65 किलोग्राम भारवर्ग में मैं ने ज्यादातर गोल्ड मैडल ही जीते हैं. मैं ‘आल ओवर स्ट्रौंग वुमन’ भी रह चुकी हूं.
‘‘लेकिन, मेरा यह सफर हमेशा से संघर्ष भरा रहा है. मुझे तो यह भी पता नहीं होता था कि शरीर को मजबूत करने के लिए प्रोटीन की कितनी अहमियत होती है. पैसे भी नहीं होते थे. वैसे भी सप्लीमैंट्स के भरोसे ज्यादा नहीं रहना चाहिए.
‘‘मैं नई महिला खिलाडि़यों से इतना ही कहना चाहूंगी कि वे खुद को तन और मन से मजबूत बनाएं. जिस तरह से देश में अपराध बढ़ रहे हैं, उन्हें खुद अपना बचाव करना सीखना होगा. उन्हें बोल्ड बनना पड़ेगा, ताकि कोई बदतमीजी करे तो उस का वहीं मुंहतोड़ जवाब दे दिया जाए.’’