Hindi Family Story: जिन तावीज और बाबा – किशन की उलझन

Hindi Family Story: किशन अपने पड़ोसी अली के साथ कोचिंग सैंटर में पढ़ने जाता था. उस दिन अली को देर हो गई, तो वह अकेला ही घर से निकल पड़ा.

सुनसान सड़क के फुटपाथ पर बैठे एक बाबा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ बालक, तुझे पढ़ालिखा कहलाने का बहुत शौक है. पास आ और फकीर की दुआएं लेता जा. कामयाबी तेरे कदम चूमेगी.’’

किशन डरतेडरते बाबा के करीब आ कर चुपचाप खड़ा हो गया.

‘‘किस जमात में पढ़ता है?’’ बाबा ने पूछा.

‘‘जी, कालेज में…’’ किशन ने बताया.

‘‘बहुत खूब. जरा अपना दायां हाथ दे. देखता हूं, क्या बताती हैं तेरी किस्मत की रेखाएं,’’ कहते हुए बाबा ने किशन का दायां हाथ पकड़ लिया और उस की हथेली की आड़ीतिरछी लकीरें पढ़ने लगा, ‘‘अरे, तुझे तो पढ़नेलिखने का बहुत शौक है. इसी के साथ तू निहायत ही शरीफ और दयालु भी है.’’

तारीफ सुन कर किशन मन ही मन खुश हो उठा. इधर बाबा कह रहा था, ‘‘लेकिन तेरी किस्मत की रेखाएं यह भी बताती हैं कि तुझेअपनेपराए की समझ नहीं है. घर के कुछ लोग तुझे बातबात पर झिड़क दिया करते हैं और तेरी सचाई पर उन्हें यकीन नहीं होता.’’

किशन सोचने लगा, ‘बाबा ठीक कह रहे हैं. परिवार के कुछ लोग मुझे कमजोर छात्र होने के ताने देते रहते हैं, जबकि ऐसी बात नहीं है. मैं मन लगा कर पढ़ाई करता हूं.’

बाबा आगे बताने लगा, ‘‘तू जोकुछ भी सोचता है, वह पूरा नहीं होता, बल्कि उस का उलटा ही होता है.’’

यह बात भी किशन को दुरुस्त लगी. एक बार उस ने यह सोचा था कि वह गुल्लक में खूब पैसे जमा करेगा, ताकि बुरे समय में वह पैसा मम्मीपापा के काम आ सके, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

अभी किशन कुछ ही पैसे जमा कर पाया था कि एक दिन मोटे चूहे ने टेबल पर रखे उस की गुल्लक को जमीन पर गिरा कर उस के नेक इरादे पर पानी फेर दिया था.

इसी तरह पिछले साल उसे पूरा यकीन था कि सालाना इम्तिहान में वह अच्छे नंबर लाएगा, लेकिन जब नतीजा सामने आया, तो उसे बेहद मायूसी हुई.

बाबा ने किशन के मन की फिर एक बात बताई, ‘भविष्य में तू बहुत बड़ा आदमी बनेगा. तुझे क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है न?’’

‘‘जी बहुत…’’ किशन चहक कर बोला.

‘‘तभी तो तेरी किस्मत की रेखाएं दावा कर रही हैं कि आगे जा कर तू भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनेगा. दुनिया की सैर करेगा, खूब दौलत बटोरेगा और तेरा नाम शोहरत की बुलंदी पर होगा,’’ इस तरह बाबा ने अपनी भविष्यवाणी से किशन को अच्छी तरह से संतुष्ट और खुश कर दिया, फिर थैले से एक तावीज निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तावीज अपने गले में अभी डाल ले बालक. यह तुझे फायदा ही फायदा पहुंचाएगा.’’

‘‘तू जोकुछ भी सोचेगा, इस तावीज में छिपा जिन उसे पूरा कर देगा. यकीन नहीं हो रहा, तो यह देख…’’ इन शब्दों के साथ बाबा उस तावीज को मुट्ठी में भींच कर बुदबुदाने लगा, ‘‘ऐ तावीज के गुलाम जिन, मुझे 2 हजार रुपए का एक नोट अभी चाहिए,’’ फिर बाबा ने मुट्ठी खोल दी, तो हथेली पर उस तावीज के अलावा 2 हजार रुपए का एक नोट भी नजर आया, जिसे देख कर किशन के अचरज का ठिकाना नहीं रहा. वह बोला, ‘‘बड़ा असरदार है यह तावीज…’’

‘‘हां, बिलकुल. मेरे तावीज की तुलना फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के बटुक महाराज से बिलकुल मत करना बालक. फिल्मी फार्मूलों का इनसानी जिंदगी की सचाई से दूरदूर का रिश्ता नहीं होता है.’’

‘‘बाबा, इस तावीज की कीमत क्या है?’’ किशन ने पूछा.

‘‘महज 5 सौ रुपए बेटा,’’ बाबा ने कहा.

तावीज की इतनी महंगी कीमत सुन कर किशन गहरी सोच में डूब गया, फिर बोला, ‘‘बाबा, 5 सौ रुपए तो मेरे पास जरूर हैं, लेकिन यह रकम पापा ने कोचिंग सैंटर की फीस जमा करने के लिए दी है. पर कोई बात नहीं, आप से तावीज खरीद लेने के बाद मैं इस के चमत्कार से ऐसे कितने ही 5 सौ रुपए के नोट हासिल

कर लूंगा,’’ यह कह कर किशन ने 5 सौ रुपए का नोट निकालने के लिए जेब में हाथ डाला ही था कि तभी अली पीछे से आ धमका और बोला, ‘‘किशन, यह तुम क्या कर रहे हो?’’

‘‘तावीज खरीद रहा हूं अली. बाबा कह रहे हैं कि इस में एक जिन कैद है, जो तावीज खरीदने वाले की सभी मुरादें पूरी करता है,’’ किशन बोला.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो. ऐसी दकियानूसी बात पर बिलकुल भरोसा मत करो. क्या हम लोग ?ाठे अंधविश्वास की जकड़न में फंसे रहने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं या इस से छुटकारा पा कर ज्ञान, विज्ञान और तरक्की को बढ़ावा देने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं?’’ अली ने किशन से सवाल किया.

तभी बाबा गुर्रा उठा, ‘‘ऐ बालक, खबरदार जो ज्ञानविज्ञान की दुहाई दे कर जिन, तावीज और बाबा के चमत्कार को झठा कहा. जबान संभाल कर बात कर.’’

‘‘चलो, मैं कुछ देर के लिए मान लेता हूं कि तुम्हारा तावीज चमत्कारी है, लेकिन इस का कोई ठोस सुबूत तो होना चाहिए,’’ अली बोला.

बाबा के बजाय किशन बोला, ‘‘अली, मेरा यकीन करो. यह तावीज वाकई चमत्कारी है. बाबा ने अभी थोड़ी देर पहले इस में समाए जिन को आदेश दे कर उस से 2 हजार रुपए का एक नोट मंगवाया था.’’

अली बोला, ‘‘अरे नादान, तेरी समझ में नहीं आएगा. यह सब इस पाखंडी बाबा के हाथ की सफाई है. तुम रोजाना घर से निकलते हो ट्यूशन पढ़ कर

ज्ञानी बनने के लिए, लेकिन यह क्या… आज तो तुम एक सड़कछाप बाबा से अंधविश्वास और नासम?ा का पाठ पढ़ने लगे हो.’’

अली के तेवर देख कर बाबा को यकीन हो गया था कि वह उस की चालबाजी का परदाफाश कर के ही दम लेगा, इसलिए उस ने अली को अपने चमत्कार से भस्म कर देने की धमकी दे कर शांत करना चाहा, लेकिन अली डरने के बजाय बाबा से उलझ पड़ा, ‘‘अगर तुम वाकई चमत्कारी बाबा हो, तो

मुझे अभी भस्म कर के दिखाओ, वरना तुम्हारी खैर नहीं.’’

अली की ललकार से बौखला कर बाबा उलटासीधा बड़बड़ाने लगा.

‘‘क्या बाबा, तुम कब से बड़बड़ा रहे हो, फिर भी मुझे अब तक भस्म न कर सके? अरे, सीधी सी बात है कि तुम्हारी तरह तुम्हारा जंतरमंतर भी झठा है.’’

अली की बातों से खिसिया कर बाबा अपना त्रिशूल हवा में लहराने लगा.

इस पर अली डरे हुए किशन को खींच कर दूर हट गया और जोरजोर से चिल्लाने लगा, ताकि सड़क पर चल रहे मुसाफिर उस की आवाज सुन सकें, ‘‘यह बाबा त्रिशूल का इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहा है…’’

अली की आवाज इतनी तेज थी कि सादा वरदी में सड़क से गुजर रहे 2 कांस्टेबल वहां आ गए और मामले को समझाते ही उन्होंने बाबा को धर दबोचा, फिर उसे थाने ले गए.

‘‘आखिर तुम इतने नासमझ क्यों हो किशन?’’ भीड़ छंटने के बाद अली ने किशन पर नाराजगी जताई, तो वह बोला, ‘‘मैं हैरान हूं कि बाबा अगर गलत इनसान थे, तो फिर उन्होंने मेरे हाथ की लकीरें पढ़ कर मेरे मन की सच्ची बातें कैसे बता दीं?’’

अली बोला, ‘‘बाबा ने यह भविष्यवाणी की होगी कि तुम पढ़नेलिखने में तेज हो, तुम बहुत अच्छे बालक हो, लेकिन लोग तुम्हें समझाने की कोशिश नहीं करते, तुम जोकुछ सोचते हो, उस का बिलकुल उलटा होता है.’’

‘‘कमाल है, मेरे और बाबा के बीच की बातें तुम्हें कैसे मालूम हुईं अली?’’ पूछते हुए किशन अली को हैरान नजरों से देखने लगा.

अली बोला, ‘‘यह कमाल नहीं, बल्कि आम बात है. बाबा जैसे पाखंडी लोग अपने शिकारी का शिकार करने के लिए इसी तरह की बातों का सहारा लिया करते हैं.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ अली, बाबा ने मुझ से कहा था कि मुझे क्रिकेट का खेल बेहद पसंद है. एक दिन मैं भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनूंगा और ऐसा मेरा दिल भी कहता है. लेकिन मेरे दिल की यह बात भी बाबा को कैसे मालूम हो गई?’’

‘‘दरअसल, भारत में क्रिकेट एक मशहूर खेल है. इसे बच्चे, बूढ़े, जवान सभी पसंद करते हैं. तभी तो उस पाखंडी ने तुम्हें यह सपना दिखाया कि एक दिन तुम भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी बनोगे.’’

किशन अली की बातें गौर से सुनतेसुनते बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ दोस्त, क्या मैं वाकई कभी बड़ा आदमी नहीं बन सकूंगा?’’

‘‘क्यों नहीं बन सकते हो. बड़ा आदमी कोई भी बन सकता है, लेकिन सपने देख कर नहीं, बल्कि सच्ची मेहनत, लगन और ज्ञानविज्ञान के सहारे. आइंदा से तुम ऐसे धोखेबाज लोगों से बिलकुल खबरदार रहना.

‘‘किशन, तुम खुद सोचो कि अगर बाबा का तावीज चमत्कारी होता, तो फिर वह फुटपाथ पर बैठा क्यों नजर आता? तावीज के चमत्कार से पहले तो वह खुद ही बड़ा आदमी बन जाता.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो अली,’’ किशन ने अपनी नादानी पर शर्मिंदा होने के अलावा यह मन ही मन तय किया कि अब वह कभी किसी के झांसे में नहीं आएगा. Hindi Family Story

Hindi Family Story: बहुत हुआ अब और नहीं

Hindi Family Story: जब पुलिस की जीप एक ढाबे के आगे आ कर रुकी, तो अब्दुल रहीम चौंक गया. पिछले 20-22 सालों से वह इस ढाबे को चला रहा था, पर पुलिस कभी नहीं आई थी. सो, डर से वह सहम गया. उसे और हैरानी हुई, जब जीप से एक बड़ी पुलिस अफसर उतरीं.

‘शायद कहीं का रास्ता पूछ रही होंगी,’ यह सोचते हुए अब्दुल रहीम अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया कि साथ आए थानेदार ने पूछा, ‘‘अब्दुल रहीम आप का ही नाम है? हमारी साहब को आप से कुछ पूछताछ करनी है. वे किसी एकांत जगह बैठना चाहती हैं.’’

अब्दुल रहीम उन्हें ले कर ढाबे के कमरे की तरफ बढ़ गया. पुलिस अफसर की मंदमंद मुसकान ने उस की झिझक और डर दूर कर दिया था.

‘‘आइए मैडम, आप यहां बैठें. क्या मैं आप के लिए चाय मंगवाऊं?

‘‘मैडम, क्या आप नई सिटी एसपी कल्पना तो नहीं हैं? मैं ने अखबार में आप की तसवीर देखी थी…’’ अब्दुल रहीम ने उन्हें बिठाते हुए पूछा.

‘‘हां,’’ छोटा सा जवाब दे कर वे आसपास का मुआयना कर रही थीं.

एक लंबी चुप्पी के बाद कल्पना ने अब्दुल रहीम से पूछा, ‘‘क्या आप को ठीक 10 साल पहले की वह होली याद है, जब एक 15 साला लड़की का बलात्कार आप के इस ढाबे के ठीक पीछे वाली दीवार के पास किया गया था? उसे चादर आप ने ही ओढ़ाई थी और गोद में उठा उस के घर पहुंचाया था?’’

अब चौंकने की बारी अब्दुल रहीम की थी. पसीने की एक लड़ी कनपटी से बहते हुए पीठ तक जा पहुंची. थोड़ी देर तक सिर झकाए मानो विचारों में गुम रहने के बाद उस ने सिर ऊपर उठाया. उस की पलकें भीगी हुई थीं.

अब्दुल रहीम देर तक आसमान में घूरता रहा. मन सालों पहले पहुंच गया. होली की वह मनहूस दोपहर थी, सड़क पर रंग खेलने वाले कम हो चले थे. इक्कादुक्का मोटरसाइकिल पर लड़के शोर मचाते हुए आतेजाते दिख रहे थे.

अब्दुल रहीम ने उस दिन भी ढाबा खोल रखा था. वैसे, ग्राहक न के बराबर आए थे. होली का दिन जो था. दोपहर होती देख अब्दुल रहीम ने भी ढाबा बंद कर घर जाने की सोची कि पिछवाड़े से आती आवाजों ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया. 4
लड़के नशे में चूर थे, पर… पर, यह क्या… वे एक लड़की को दबोचे हुए थे. छोटी बच्ची थी, शायद 14-15 साल की.

अब्दुल रहीम उन चारों लड़कों को पहचानता था. सब निठल्ले और आवारा थे. एक पिछड़े वर्ग के नेता के साथ लगे थे और इसलिए उन्हें कोई कुछ नहीं कहता था. वे यहीं आसपास के थे. चारों छोटेमोटे जुर्म कर अंदरबाहर होते रहते थे.

रहीम जोरशोर से चिल्लाया, पर लड़कों ने उस की कोई परवाह नहीं की, बल्कि एक लड़के ने ईंट का एक टुकड़ा ऐसा चलाया कि सीधे उस के सिर पर आ कर लगा और वह बेहोश हो गया.

आंखें खुलीं तो अंधेरा हो चुका था. अचानक उसे बच्ची का ध्यान आया. उन लड़कों ने तो उस का ऐसा हाल किया था कि शायद गिद्ध भी शर्मिंदा हो जाएं. बच्ची शायद मर चुकी थी.

अब्दुल रहीम दौड़ कर मेज पर ढका एक कपड़ा खींच लाया और उसे उस में लपेटा. पानी के छींटें मारमार कर कोशिश करने लगा कि शायद कहीं जिंदा हो.

चेहरा साफ होते ही वह पहचान गया कि यह लड़की गली के आखिरी छोर पर रहती थी. उसे नाम तो मालूम नहीं था, पर घर का अंदाजा था. रोज ही तो वह अपनी सहेलियों के संग उस के ढाबे के सामने से स्कूल जाती थी.

बच्ची की लाश को कपड़े में लपेटे अब्दुल रहीम उस के घर की तरफ बढ़ चला. रात गहरा गई थी. लोग होली खेल कर अपनेअपने घरों में घुस गए थे, पर वहां बच्ची के घर के आगे भीड़ जैसी दिख रही थी. शायद लोग खोज रहे होंगे कि उन की बेटी किधर गई.

अब्दुल रहीम के लिए एकएक कदम चलना भारी हो गया. वह दरवाजे तक पहुंचा कि उस से पहले लोग दौड़ते हुए उस की तरफ आ गए. कांपते हाथों से उस ने लाश को एक जोड़ी हाथों में थमाया और वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा. वहां चीखपुकार मच गई.

‘मैं ने देखा है, किस ने किया है. मैं गवाही दूंगा कि कौन थे वे लोग…’ रहीम कहता रहा, पर किसी ने भी उसे नहीं सुना.

मेज पर हुई थपकी की आवाज से अब्दुल रहीम यादों से बाहर आया.

‘‘देखिए, उस केस को दाखिल करने का आर्डर आया है,’’ कल्पना ने बताया.

‘‘पर, इस बात को तो सालों बीत गए हैं मैडम. रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई थी. उस बच्ची के मातापिता शायद उस के गम को बरदाश्त नहीं कर पाए थे और उन्होंने शहर छोड़ दिया था,’’ अब्दुल रहीम ने हैरानी से कहा.

‘‘मुझे बताया गया है कि आप उस वारदात के चश्मदीद गवाह थे. उस वक्त आप उन बलात्कारियों की पहचान करने के लिए तैयार भी थे,’’ कल्पना की इस बात को सुन कर अब्दुल रहीम उलझन में पड़ गया.

‘‘अगर आप उन्हें सजा दिलाना नहीं चाहते हैं, तो कोई कुछ नहीं कर सकता है. बस, उस बच्ची के साथ जो दरिंदगी हुई, उस से सिर्फ वह ही नहीं तबाह हुई, बल्कि उस के मातापिता की भी जिंदगी बदतर हो गई,’’ सिटी एसपी कल्पना ने समझाते हुए कहा.

‘‘2 चाय ले कर आना,’’ अब्दुल रहीम ने आवाज लगाई, ‘‘जीप में बैठे लोगों को भी चाय पिलाना.’’

चाय आ गई. अब्दुल रहीम पूरे वक्त सिर झकाए चिंता में चाय सुड़कता रहा.

‘‘आप तो ऐसे परेशान हो रहे हैं, जैसे आप ने ही गुनाह किया हो. मेरा इरादा आप को तंग करने का बिलकुल नहीं था. बस, उस परिवार के लिए इंसाफ की उम्मीद है.’’

अब्दुल रहीम ने कहा, ‘‘हां मैडम, मैं ने अपनी आंखों से देखा था उस दिन. पर मैं उस बच्ची को बचा नहीं सका. इस का मलाल मुझे आज तक है. इस के लिए मैं खुद को भी गुनाहगार समझाता हूं.

‘‘कई दिनों तक तो मैं अपने आपे में भी नहीं था. एक महीने बाद मैं फिर गया था उस के घर, पर ताला लटका हुआ था और पड़ोसियों को भी कुछ नहीं पता था.

‘‘जानती हैं मैडम, उस वक्त के अखबारों में इस खबर ने कोई जगह नहीं पाई थी. दलितों की बेटियों का तो अकसर उस तरह बलात्कार होता था, पर यह घर थोड़ा ठीकठाक था, क्योंकि लड़की के पिता सरकारी नौकरी में थे. और गुनाहगार हमेशा आजाद घूमते रहे.

‘‘मैं ने भी इस डर से किसी को यह बात बताई भी नहीं. इसी शहर में होंगे सब. उस वक्त सब 20 से 25 साल के थे. मुझे सब के बाप के नामपते मालूम हैं. मैं आप को उन सब के बारे में बताने के लिए तैयार हूं,’’अब्दुल रहीम को लगा कि चश्मे के पीछे कल्पना मैडम की आंखें भी नम हो गई थीं.

‘‘उस वक्त भले ही गुनाहगार बच गए होंगे. लड़की के मातापिता ने बदनामी से बचने के लिए मामला दर्ज ही नहीं किया, पर आने वाले दिनों में उन चारों पापियों की करतूत फोटो समेत हर अखबार की सुर्खी बनने वाली है.

‘‘आप तैयार रहें, एक लंबी कानूनी जंग में आप एक अहम किरदार रहेंगे,’’ कहते हुए कल्पना मैडम उठ खड़ी हुईं और काउंटर पर चाय के पैसे रखते हुए जीप में बैठ कर चली गईं.

‘‘आज पहली बार किसी पुलिस वाले को चाय के पैसे देते देखा है,’’ छोटू टेबल साफ करते हुए कह रहा था और अब्दुल रहीम को लग रहा था कि सालों से सीने पर रखा बोझ कुछ हलका हो गया था.

इस मुलाकात के बाद वक्त बहुत तेजी से बीता. वे चारों लड़के, जो अब अधेड़ हो चले थे, उन के खिलाफ शिकायत दर्ज हो गई. अब्दुल रहीम ने भी अपना बयान रेकौर्ड करा दिया. मीडिया वाले इस खबर के पीछे पड़ गए थे. पर उन के हाथ कुछ खास खबर लग नहीं पाई थी.

अब्दुल रहीम को भी कई धमकी भरे फोन आने लगे थे. सो, उन्हें पूरी तरह पुलिस सिक्योरिटी में रखा जा रहा था. सब से बढ़ कर कल्पना मैडम खुद इस केस में दिलचस्पी ले रही थीं और हर पेशी के वक्त मौजूद रहती थीं.

कुछ उत्साही पत्रकारों ने उस परिवार के पड़ोसियों को खोज निकाला था, जिन्होंने बताया था कि होली के कुछ दिन बाद ही वे लोग चुपचाप बिना किसी से मिले कहीं चले गए थे, पर बात किसी से नहीं हो पाई थी.

कोर्ट की तारीखें जल्दीजल्दी पड़ रही थीं, जैसे कोर्ट भी इस मामले को जल्दी अंजाम तक पहुंचाना चाहता था. ऐसी ही एक पेशी में अब्दुल रहीम ने सालभर बाद बच्ची के पिता को देखा था. मिलते ही दोनों की आंखें नम हो गईं.

उस दिन कोर्ट खचाखच भरा हुआ था. बलात्कारियों का वकील खूब तैयारी के साथ आया हुआ मालूम दे रहा था. उस की दलीलों के आगे केस अपना रुख मोड़ने लगा था. सभी कानून की खामियों के सामने बेबस से दिखने लगे थे.

उस दिन कोर्ट खचाखच भरा हुआ था. बलात्कारियों का वकील खूब तैयारी के साथ आया हुआ मालूम दे रहा था. उस की दलीलों के आगे केस अपना रुख मोड़ने लगा था. सभी कानून की खामियों के सामने बेबस से दिखने लगे थे.

‘‘जनाब, सिर्फ एक अब्दुल रहीम की गवाही को ही कैसे सच माना जाए? मानता हूं कि बलात्कार हुआ होगा, पर क्या यह जरूरी है कि चारों ये ही थे? हो सकता है कि अब्दुल रहीम अपनी कोई पुरानी दुश्मनी का बदला ले रहे हों? क्या पता इन्होंने ही बलात्कार किया हो और फिर लाश पहुंचा दी हो?’’ धूर्त वकील ने ऐसा पासा फेंका कि मामला ही बदल गया.

लंच की छुट्टी हो गई थी. उस के बाद फैसला आने की उम्मीद थी. चारों आरोपी मूंछों पर ताव देते हुए अपने वकील को गले लगा कर जश्न सा मना रहे थे.

लंच की छुट्टी के बाद जज साहब कुछ पहले ही आ कर सीट पर बैठ गए थे. उन के सख्त होते जा रहे हावभाव से माहौल भारी बनता जा रहा था.

‘‘क्या आप के पास कोई और गवाह है, जो इन चारों की पहचान कर सके,’’ जज साहब ने वकील से पूछा, तो वह बेचारा बगलें झांकने लगा.

पीछे से कुछ लोग ‘हायहाय’ का नारा लगाने लगे. चारों आरोपियों के चेहरे दमकने लगे थे. तभी एक आवाज आई, ‘‘हां, मैं हूं. चश्मदीद ही नहीं भुक्तभोगी भी. मुझे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए.’’

सब की नजरें आवाज की दिशा की ओर हो गईं. जज साहब के ‘इजाजत है’ बोलने के साथ ही लोगों ने देखा कि उन की शहर की एसपी कल्पना कठघरे की ओर जा रही हैं. पूरे माहौल में सनसनी मच गई.

‘‘हां, मैं ही हूं वह लड़की, जिसे 10 साल पहले होली की दोपहर में इन चारों ने बड़ी ही बेरहमी से कुचला था, इस ने…

‘‘जी हां, इसी ने मुझे मेरे घर के आगे से उठा लिया था, जब मैं गेट के आगे कुत्ते को रोटी देने निकली थी. मेरे मुंह को इस ने अपनी हथेलियों से दबा दिया था और कार में डाल दिया था.

‘‘भीतर पहले से ये तीनों बैठे हुए थे. इन्होंने पास के एक ढाबे के पीछे वाली दीवार की तरफ कार रोक कर मुझे घसीटते हुए उतारा था.

‘‘इस ने मेरे दोनों हाथ पकड़े थे और इस ने मेरी जांघें. कपड़े इस ने फाड़े थे. सब से पहले इस ने मेरा बलात्कार किया था… फिर इस ने… मुझे सब के चेहरे याद हैं.’’

सिटी एसपी कल्पना बोले जा रही थीं. अपनी उंगलियों से इशारा करते हुए उन की करतूतों को उजागर करती जा रही थीं.

कल्पना के पिता ने उठ कर 10 साल पुराने हुए मैडिकल जांच के कागजात कोर्ट को सौंपे, जिस में बलात्कार की पुष्टि थी. रिपोर्ट में साफ लिखा था कि कल्पना को जान से मारने की कोशिश की गई थी.

कल्पना अभी कठघरे में ही थीं कि एक आरोपी की पत्नी अपनी बेटी को ले कर आई और सीधे अपने पति के मुंह पर तमाचा जड़ दिया.

दूसरे आरोपी की पत्नी उठ कर बाहर चली गई. वहीं एक आरोपी की बहन अपनी जगह खड़ी हो कर चिल्लाने लगी, ‘‘शर्म है… लानत है, एक भाई होते हुए तुम ने ऐसा कैसे किया था?’’

‘‘जज साहब, मैं बिलकुल मरने की हालत में ही थी. होली की उसी रात मेरे पापा मुझे तुरंत अस्पताल ले कर गए थे, जहां मैं जिंदगी और मौत के बीच कई दिनों तक झलती रही थी. मुझे दौरे आते थे. इन पापियों का चेहरा मुझे हर वक्त डराता रहता था.’’

अब केस आईने की तरह साफ था. अब्दुल रहीम की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. कल्पना उन के पास जा कर उन के कदमों में गिर पड़ी.

‘‘अगर आप न होते, तो शायद मैं जिंदा न रहती.’’

मीडिया वाले कल्पना से मिलने को उतावले थे. वे मुसकराते हुए उन की तरफ बढ़ गई.

‘‘अब्दुल रहीम ने जब आप को कपड़े में लपेटा था, तब मरा हुआ ही समझा था. मेज के उस कपड़े से पुलिस की वरदी तक के अपने सफर के बारे में कुछ बताएं?’’ एक पत्रकार ने पूछा, जो शायद सभी का सवाल था.

‘‘उस वारदात के बाद मेरे मातापिता बेहद दुखी थे और शर्मिंदा भी थे. शहर में वे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे थे. मेरे पिताजी ने अपना तबादला इलाहाबाद करवा लिया था.

‘‘सालों तक मैं घर से बाहर जाने से डरती रही थी. आगे की पढ़ाई मैं ने प्राइवेट की. मैं अपने मातापिता को हर दिन थोड़ाथोड़ा मरते देख रही थी.

‘‘उस दिन मैं ने सोचा था कि बहुत हुआ अब और नहीं. मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए परीक्षा की तैयारी करने लगी. आरक्षण के कारण मुझे फायदा हुआ और मनचाही नौकरी मिल गई. मैं ने अपनी इच्छा से इस राज्य को चुना. फिर मौका मिला इस शहर में आने का.

‘‘बहुतकुछ हमारा यहीं रह गया था. शहर को हमारा कर्ज चुकाना था. हमारी इज्जत लौटानी थी.’’

‘‘आप दूसरी लड़कियों और उन के मातापिता को क्या संदेश देना चाहेंगी?’’ किसी ने सवाल किया.

‘‘इस सोच को बदलने की सख्त जरूरत है कि बलात्कार की शिकार लड़की और उस के परिवार वाले शर्मिंदा हों. गुनाहगार चोर होता है, न कि जिस का सामान चोरी जाता है वह.

‘‘हां, जब तक बलात्कारियों को सजा नहीं होगी, तब तक उन के हौसले बुलंद रहेंगे. मेरे मातापिता ने गलती की थी, जो कुसूरवार को सजा दिलाने की जगह खुद सजा भुगतते रहे.’’

कल्पना बोल रही थीं, तभी उन की मां ने एक पुड़िया अबीर निकाला और उसे आसमान में उड़ा दिया. सालों पहले एक होली ने उन की जिंदगी को बेरंग कर दिया था, उसे फिर से जीने की इच्छा मानो जाग गई थी. Hindi Family Story

Story In Hindi: छुट्टी – फौजियों का अनकहा दर्द

Story In Hindi: दूरदूर तक जहां तक नजर जा सकती थी, पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई थी. प्रेमी जोड़ों के लिए यह एक शानदार जगह हो सकती थी, पर सरहद पर इन पहाडि़यों की शांति के पीछे जानलेवा अशांति छिपी हुई थी.

पिछले कई महीनों से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब तोपों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने यहां की शांति भंग न की हो.

‘‘साहबजी, आप कौफी पीजिए. ठंड दूर हो जाएगी,’’ हवलदार बलवंत सिंह ने गरम कौफी का बड़ा सा मग मेजर जतिन खन्ना की ओर बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओए बलवंत, लड़ तो हम दिनरात रहे हैं, मगर क्यों? यह तो शायद ऊपर वाला ही जाने. अब तू कहता है, तो ठंड से भी लड़ लेते हैं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने हंसते हुए मग थाम लिया.

कौफी का एक लंबा घूंट भरते हुए वे बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. अगर ऐसी कौफी हर घंटे मिल जाया करे, तो वक्त बिताना मुश्किल न होगा.’’

‘‘साहबजी, आप की मुश्किल तो हल हो जाएगी, लेकिन मेरी मुश्किल कब हल होगी?’’ बलवंत सिंह ने भी कौफी का लंबा घूंट भरते हुए कहा.

‘‘कैसी मुश्किल?’’ मेजर जतिन खन्ना ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘साहबजी, अगले हफ्ते मेरी बीवी का आपरेशन है. मेरी छुट्टियों का क्या हुआ?’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘सरहद पर इतना तनाव चल रहा है. हम लोगों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. ऐसे में छुट्टी मिलना थोड़ा मुश्किल है, पर मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने समझाया.

‘‘लेकिन सर, क्या देशभक्ति का सारा ठेका हम फौजियों ने ही ले रखा है?’’ कहते हुए बलवंत सिंह ने मेजर जतिन खन्ना के चेहरे की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब…?’’ मेजर जतिन खन्ना ने पूछा.

‘‘यहां जान हथेली पर ले कर डटे रहें हम, वहां देश में हमारी कोई कद्र नहीं. सालभर गांव न जाओ, तो दबंग फसल काट ले जाते हैं. रिश्तेदार जमीन हथिया लेते हैं. ट्रेन में टीटी भी पैसे लिए बिना हमें सीट नहीं देता. पुलिस वाले भी मौका पड़ने पर फौजियों से वसूली करने से नहीं चूकते,’’ बलवंत सिंह के सीने का दर्द बाहर उभर आया.

‘‘सारे जुल्म सह कर भी हम देश पर अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हैं, मगर कम से कम हमें इनसान तो समझ जाए.

‘‘घर में कोई त्योहार हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. कोई रिश्तेदार मरने वाला हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. जमीनजायदाद का मुकदमा हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. अब बीवी का आपरेशन है, तो भी छुट्टी नहीं मिलेगी. लानत है ऐसी नौकरी पर, जहां कोई इज्जत न हो.’’

‘‘ओए बलवंत, आज क्या हो गया है तुझे कैसी बहकीबहकी बातें कर रहा है? अरे, हम फौजियों की पूरी देश इज्जत करता है. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘हां, इज्जत मिलती है, लेकिन मर जाने के बाद. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है, मगर शहीद हो जाने के बाद. जिंदा रहते हमें बस और ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी, हमारे बच्चे एकएक पैसे को तरसेंगे, मगर मरते ही हमारी लाश को हवाईजहाज पर लाद कर ले जाया जाएगा. परिवार के दुख को लाखों रुपए की सौगात से खरीद लिया जाएगा. जिस के घर में कभी कोई झांकने भी न आया हो, उसे सलामी देने हुक्मरानों की लाइन लग जाएगी.

‘‘हमारी जिंदगी से तो हमारी मौत लाख गुना अच्छी है. जी करता है कि उसे आज ही गले लगा लूं, कम से कम परिवार वालों को तो सुख मिल सकेगा,’’ कहते हुए बलवंत सिंह का चेहरा तमतमा उठा.

‘‘ओए बलवंत…’’

‘‘ओए मेजर…’’ इतना कह कर बलवंत सिंह चीते की फुरती से मेजर जतिन खन्ना के ऊपर झपट पड़ा और उन्हें दबोचे हुए चट्टान के नीचे आ गिरा. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, बलवंत सिंह के कंधे पर टंगी स्टेनगन आग उगलने लगी.

गोलियों की ‘तड़…तड़…तड़…’ की आवाज के साथ तेज चीखें गूंजीं और चंद पलों बाद सबकुछ शांत हो गया.

‘‘ओए बलवंत मेरे यार, तू ठीक तो है न?’’ मेजर जतिन खन्ना ने अपने को संभालते हुए पूछा.

‘‘हां, साहबजी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ बलवंत सिंह हलका सा हंसा, फिर बोला, ‘‘मगर, ये पाकिस्तानी कभी ठीक नहीं होंगे. इन की समझ में क्यों नहीं आता कि जब तक एक भी हिंदुस्तानी फौजी जिंदा है, तब तक वे हमारी चौकी को हाथ भी नहीं लगा सकते,’’ इतना कह कर बलवंत सिंह ने चट्टान के पीछे से झांका. थोड़ी दूरी पर ही 3 पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें पड़ी थीं. छिपतेछिपाते वे कब यहां आ गए थे, पता ही नहीं चला था. उन में से एक ने अपनी एके 47 से मेजर जतिन खन्ना के सीने को निशाना लगाया ही था कि उस पर बलवंत सिंह की नजर पड़ गई और वह बिजली की रफ्तार से मेजर साहब को ले कर जमीन पर आ गिरा.

‘‘बलवंत, तेरी बांह से खून बह रहा है,’’ गोलियों की आवाज सुन कर खंदक से निकल आए फौजी निहाल सिंह ने कहा. उस के पीछेपीछे उस चौकी की सिक्योरिटी के लिए तैनात कई और जवान दौडे़ चले आए थे.

‘‘कुछ नहीं, मामूली सी खरोंच है. पाकिस्तानियों की गोली जरा सा छूते हुए निकल गई थी,’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘बलवंत, तू ने मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी. बता, तू ने ऐसा क्यों किया?’’ कह कर मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘क्योंकि देशभक्ति का ठेका हम फौजियों ने ले रखा है,’’ कह कर बलवंत सिंह फिर मुसकराया.

‘‘तू कैसा इनसान है. अभी तो तू सौ बुराइयां गिना रहा था और अब देशभक्ति का राग अलाप रहा है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने दर्दभरी आवाज में कहा.

‘‘साहबजी, हम फौजी हैं. लड़ना हमारा काम है. हम लड़ेंगे. अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे, मगर जब देश की बात आएगी, तो सबकुछ भूल कर देश के लिए लड़तेलड़ते जान न्योछावर कर देंगे. कुरबानी देने का पहला हक हमारा है. उसे हम से कोई नहीं छीन सकता,’’ कहतेकहते बलवंत सिंह तड़प कर जोर से उछला.

उस के बाद एक तेज धमाका हुआ और फिर सबकुछ शांत हो गया. बलवंत सिंह की जब आंखें खुलीं, तो वह अस्पताल में था. मेजर जतिन खन्ना उस के सामने ही थे.

‘‘सरजी, मैं यहां कैसे आ गया?’’ बलवंत सिंह के होंठ हिले.

‘‘अपने ठेके के चलते…’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘तू ने कमाल कर दिया. दुश्मन के 3 सैनिक एक तरफ से आए थे, जिन्हें तू ने मार गिराया था. बाकी के सैनिक दूसरी तरफ से आए थे. उन्होंने हमारे ऊपर हथगोला फेंका था, जिसे तू ने उछल कर हवा में ही थाम कर उन की ओर वापस उछाल दिया था. वे सारे के सारे मारे गए और हमारी चौकी बिना किसी नुकसान के बच गई.’’

‘‘तेरे जैसे बहादुरों पर देश को नाज है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बलवंत सिंह का कंधा थपथपाया, फिर बोले, ‘‘तू भी बिलकुल ठीक है. डाक्टर बता रहे थे कि मामूली जख्म है. एकदो दिन में यहां से छुट्टी मिल जाएगी.

‘‘छुट्टी…’’ बलवंत सिंह के होंठ धीरे से हिले.

‘‘हां, वह भी मंजूर हो गई?है. यहां से तू सीधे घर जा सकता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बताया, फिर चौंकते हुए बोले, ‘‘एक बात बताना तो मैं भूल ही गया था.’’

‘‘क्या…?’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘तुझे हैलीकौफ्टर से यहां तक लाया गया था.’’

‘‘पर अब हवाईजहाज से घर नहीं भेजेंगे?’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘कभी नहीं…’’ मेजर जतिन खन्ना भी मुसकराए, फिर बोले, ‘‘ब्रिगेडियर साहब ने सरकार से तुझे इनाम देने की सिफारिश की है.’’

‘‘साहबजी, एक बात बोलूं?’’

‘‘बोलो…’’

‘‘इनाम दिलवाइए या न दिलवाइए, मगर सरकार से इतनी सिफारिश जरूर करा दीजिए कि हम फौजियों की जमीनजायदाद के मुकदमों का फैसला करने के लिए अलग से अदालतें बना दी जाएं, जहां फटाफट इंसाफ हो, वरना हजारों किलोमीटर दूर से हम पैरवी नहीं कर पाते.

‘‘सरहद पर हम भले ही न हारें, मगर अपनों से लड़ाई में जरूर हार जाते हैं,’’ बलवंत सिंह ने उम्मीद भरी आवाज में कहा.

मेजर जतिन खन्ना की निगाहें कहीं आसमान में खो गईं. बलवंत सिंह ने जोकुछ भी कहा था, वह सच था, मगर जो वह कह रहा है, क्या वह कभी मुमकिन हो सकेगा? Story In Hindi

Hindi Kahani: चीरहरण – क्या नीतू बचा पाई अपनी इज्जत?

Hindi Kahani: रात का दूसरा पहर. दरवाजे पर आहट सुनाई पड़ी. कोई दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था. आहट सुन कर नीतू की नींद उचट गई. वह सोचने लगी कि कहीं कोई जानवर तो नहीं, जो रात को अपने शिकार की तलाश में भटकता हुआ यहां तक आ पहुंचा हो?

तभी उसे दरवाजे के बाहर आदमी की छाया सी मालूम हुई. उस के हाथ दरवाजे पर चढ़ी सांकल को खोलने की कोशिश कर रहे थे.

यह देख नीतू डर कर सहम गई. उस के पास लेटी उस की छोटी बहन लच्छो अभी भी गहरी नींद में सो रही थी. उस ने उसे जगाया नहीं और खुद ही हिम्मत बटोर कर दरवाजे तक जा पहुंची.

सांकल खोलने के साथ ही वह चीख पड़ी, ‘‘मलखान तुम… इतनी रात को तुम मेरे दरवाजे पर क्या कर रहे हो?’’

नीतू को समझते देर नहीं लगी कि इतनी रात को मलखान के आने की क्या वजह हो सकती है. वह कुछ और कहती, इस से पहले मलखान ने अपने हाथों से उस का मुंह दबोच लिया.

‘‘आवाज मत निकालना, वरना यहीं ढेर कर दूंगा,’’ कह कर मलखान पूरी ताकत लगा कर नीतू को बाहर तक घसीट लाया.

आंगन के बाहर अनाज की एक छोटी सी कोठरी थी, जिस में भूसा भरा हुआ था. मलखान ने जबरदस्ती नीतू को भूसे के ढेर में पटक दिया. उस की चौड़ी छाती के बीच दुबलीपतली नीतू दब कर रह गई. मलखान उस पर सवार था.

‘‘पहले ही मान जाती, तो इतनी जबरदस्ती नहीं करनी पड़ती,’’ मलखान ने अपना कच्छा और लुंगी पहनते हुए कहा.

लच्छो, जो नीतू से 2 साल छोटी थी, उस ने करवट ली, तो नीतू को अपनी जगह न पा कर उठ बैठी. दरवाजा भी खुला पड़ा था. उसे कुछ अनजाना डर सा लगा.

मलखान पहले लच्छो के बदन से खेलने के चक्कर में था. 2 दिन पहले लच्छो ने उस के मुंह पर थूक दिया था, जब उस ने जामुन के पेड़ के नीचे उसे दबोचने की कोशिश की थी.

वह नीतू से ज्यादा ताकतवर और निडर थी. पर उस ने घुमा कर एक ऐसी लात मलखान की टांगों के बीच मारी कि वह ‘मर गया’ कह कर चीख पड़ा था.

अचानक हुए इस हमले से मलखान बौखला गया था. वह सोच भी नहीं पाया था कि लच्छो इस तरह का हमला अचानक कर देगी. उस की मर्दानगी तब धरी की धरी रह गई थी. एक तरह से लच्छो ने उसे चुनौती दे डाली थी.

लच्छो उठी और दालान में पड़े एक डंडे को उठा लिया. वह धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. उस का शक सही निकला कि दीदी किसी मुसीबत में फंस गई हैं.

मलखान उस समय अंधेरे में भागने की कोशिश कर रहा था कि अचानक लच्छो ने घुमा कर डंडा उस के सिर पर जड़ दिया.

डंडा पड़ते ही वह भागने लगा और भागतेभागते बोला, ‘‘सुबह देख लूंगा.’’

‘‘क्या हुआ दीदी, तुम ने मुझे उठाया क्यों नहीं? कम से कम तुम मुझे आवाज ही लगा देतीं,’’ लच्छो रोते हुए बोली.

‘‘2 रोज पहले ही मैं ने इस की हजामत बना डाली थी, जब इस ने मुझ से छेड़छाड़ की थी.’’

‘‘क्या…?’’ यह सुन कर नीतू तो चौंक गई.

‘‘हां दीदी, कई दिनों से वह मेरे पीछे पड़ा हुआ था. उस दिन भी वह मुझ से छेड़छाड़ करने लगा. उस दिन तो मैं ने उसे छोड़ दिया था, वरना उसी दिन उसे सबक सिखा देती,’’ लच्छो ने नीतू को सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गई.

दोनों बहनें एकसाथ रह कर प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाया करती थीं. कुछ साल पहले उन के पिता की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी. वह बैंक में मुलाजिम थे.

पिता की मौत के बाद उन की मां श्यामरथी देवी को वह नौकरी मिल गई थी. चूंकि बैंक गांव से काफी दूर शहर में था, इसलिए दोनों बेटियों को गांव में अकेले ही रहना पड़ रहा था. मां कभीकभार छुट्टी के दिनों में गांव आ जाया करती थीं.

मलखान की नाक कट गई थी. एक को तो वह अपनी हवस का शिकार बना ही चुका था, पर दूसरी से बदला लेने के लिए तड़प रहा था.

एक दिन शाम के 7 बज रहे थे. दोनों बहनें खाना बनाने की तैयारी में थीं. मलखान ने अपने कुछ दोस्तों को जमा किया और लच्छो के घर पर धावा बोल दिया.

‘‘बाहर निकल, अब देख मेरा रुतबा. गांव में तेरी कैसी बेइज्जती करता हूं,’’ मलखान अपने साथियों के साथ लच्छो के घर में घुसता हुआ बोला.

घर के अंदर मौजूद दोनों बहनें कुछ समझ पातीं, इस से पहले ही मलखान के साथियों ने लच्छो को पकड़ लिया और घसीटते हुए बाहर तक ले आए.

गांव की इज्जत गांव वालों के सामने नंगी होने लगी. मलखान गांव वालों के बीच चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘ये दोनों बहनें जिस्मफरोशी करती हैं. इन की वजह से ही गांव की इज्जत मिट्टी में मिल गई है. हम लच्छो का मुंह काला कर के, इस का सिर मुंड़ा कर इसे गांव में घुमाएंगे.’’

दोनों बहनों का बचपन गांव वालों के बीच बीता था. गांव वालों के बीच पलबढ़ कर वे बड़ी हुई थीं. उन्हीं लोगों ने उन का तमाशा बना दिया था.

योजना के मुताबिक, गांव का हज्जाम भी समय पर हाजिर हो गया.

नीतू को अपनी छोटी बहन के बचाव का तरीका समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे इन जालिमों के चंगुल से उसे बचाया जाए? वह सोच रही थी कि किसी तरह लच्छो की इज्जत बचानी है, यह सोच कर नीतू घर से निकल पड़ी.

नीतू भीड़ को चीरते हुए अपनी बहन के पास जा कर खड़ी हो गई.

भीड़ में से आवाज उठी, ‘‘इस का भी सिर मुंड़वा दो.’’

नीतू पहले तो गांव वालों के बीच खूब रोईगिड़गिड़ाई. उस ने अपनेआप को बेकुसूर साबित करने के दावे पेश किए, पर किसी ने उस की एक न सुनी. बड़ेबूढ़े भी चुप्पी साध गए.

नीतू अपने घर से एक तेज खंजर उठा लाई थी. बात बिगड़ती देख उस ने वह खंजर तेजी से अपने पेट में घुसेड़ लिया.

देखते ही देखते खून का फव्वारा फूट पड़ा. वह चीख कर कहे जा रही थी, ‘‘हम दोनों बहनें बेकुसूर हैं. मलखान ने ही एक दिन मेरी इज्जत लूट ली थी.’’

इसी बीच पुलिस की जीप वहां से गुजरी और वहां हो रहे तमाशे को देख कर रुक गई.

नीतू ने मरने से पहले सारी बातें इंस्पैक्टर को बता दीं. कुसूरवार लोग पकड़े गए. पर नामर्द गांव वालों ने गांव की इज्जत को अपने ही सामने लुटते देखा. यह कलियुग का चीरहरण था. Hindi Kahani

Story In Hindi: शैतान मंदिर का – क्या हुआ था वीरमती के साथ?

Story In Hindi: ‘‘मेरा मन तो मंदिर जाने को बिलकुल भी नहीं कर रहा है,’’ मंदिर की पहली सीढ़ी के पास भोलू का हाथ पकड़ते हुए वीरमती ने कहा.

‘‘चाहता तो मैं भी यही हूं वीरमती, पर तुम सब्र रखो और एक बार मंदिर जा कर लौट आओ. मैं यहां खड़ा रह कर तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ वीरमती के गले में अपनी बांहें डाल कर भोलू ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘पुरानी कहानियों और किताबों में कहीं भी नहीं पढ़ा कि कोई देवता पति से पहले नई ब्याहता से सुहागरात मनाता है,’’ अपने भोलू की आंखों में   झांकते हुए वीरमती ने उदासी से कहा.

‘‘हां, पर मंदिर में ऐसा सच में थोड़े ही होगा. यह तो रस्म मात्र है. तुम जानती हो कि मैं डांभरी देवता में यकीन नहीं करता, लेकिन रिवाज है. अब तुम जाओ,’’ भोलू ने हौसला देते हुए कहा.

2 गांवों डांभरी और टिक्करी के बीच एकांत में और पेड़ों से घिरी एक समतल जगह पर डांभरी देवता का मंदिर बना था. मंदिर से थोड़ी दूर गढ़ की तरह भंडारगृह था. यहां सन्नाटे और डर का माहौल ही रहता था.

दोनों गांव के लोग देवता की खुशी में खुश रहते थे और उसे तरहतरह के उपहार देते थे. मांसभात का चढ़ावा तो वहां चढ़ता ही रहता था.

गुर दितू के जरीए देवता गांव वालों की सुखसमृद्धि की सूचना देता था. जो शख्स देवता पर शक करता था, उसे देवता गुर में प्रवेश कर कठोर सजा देता था.

गुर दितू का दोनों गांवों में खूब आदरसत्कार था. उस का कहा तो पत्थर की लकीर होता था.

डांभरी देवता पर भरोसा नहीं था तो केवल भोलू को, जबकि वीरमती को उस पर यकीन था, पर गुर दितू में देवता का प्रवेश करना उसे कतई सच नहीं लगता था.

दोनों गांवों में जब भी किसी लड़के की शादी होती थी, तो नई ब्याही दुलहन को सुहागरात से पहले देवता के मंदिर में पूजाअर्चना करने के साथ देवता से सुहागरात मनाने का निवेदन करना होता था और मंदिर में रखे तख्तपोश पर सो कर ही लौटना होता था.

यों तो छोटी जाति के लोगों का मंदिर में घुसना मना था, लेकिन उन की नई दुलहन मंदिर में आ सकती थी.

गांव के राघव ने अपनी दुलहन को मंदिर में नहीं भेजा था. नतीजतन, उस की दुलहन 7वें दिन मरी पाई गई थी और वह पागल हो गया था.

भोलू और वीरमती को उन के मांबाप और गांव वालों ने बहुत सम  झाबु  झाकर ही भेजा था. मंदिर को जाती पहली सीढ़ी से आगे नई दुलहन के पति समेत किसी को भी जाने की इजाजत नहीं थी.

भोलू पहली सीढ़ी के पास जलाभुना सा खड़ा हो गया था. वीरमती मुड़मुड़ कर बहुत प्यार से उसे देखती एकएक सीढ़ी चढ़ती जाती थी. भोलू का दिल धड़क जाता था. उसे वीरमती का जाना भीतर ही भीतर कचोट रहा था.

वीरमती नंगे पैर बरामदे तक पहुंच गई थी. उस ने उस डरावनी जगह पर चारों ओर नजर दौड़ाई, फिर नीचे खड़े भोलू को देखने लगी.

भोलू ने उसे नीचे से हाथ हिला कर इशारा किया, तो वह मुसकरा उठी.

वीरमती हिम्मत के साथ मंदिर की ओर बढ़ गई. दरवाजे के पास रुक कर उस ने भीतर   झांका. पहले तो उसे काफी अंधेरा जान पड़ा, पर कुछ देर बाद उतना अंधेरा नहीं लगा और डांभरी देवता की सफेद पिंडी उसे साफसाफ दिखाई देने लगी.

वीरमती ने देवता की पिंडी पर हार पहनाया और धूप जला कर धूपदान में रखी. फिर पिंडी के सामने हाथ जोड़ कर और आंखें बंद करते हुए धीमी आवाज में बोली, ‘‘हे देवता, आप अच्छे गुणों के स्वामी हैं. आप मेरे मातापिता भी हैं, पर आप के साथ होने वाली सुहागरात के बारे में सोचना भी मेरे लिए पाप है…

‘‘हे देवता, इस तरह की प्रथा को हटाओ. ऐसा नहीं होना चाहिए.’’

इसके बाद वीरमती तख्तपोश की ओर मुड़ी, तो उसे एक सरसराहट सी सुनाई दी.

वीरमती ने चौकन्ना हो कर इधरउधर देखा, पर कुछ दिखाई न दिया. फिर भी उस की धड़कनें कुछ बढ़ सी गई थीं, जिसे वह सन्नाटे और डरावने माहौल में महसूस करने लगी थी.

कुछ देर खड़े रहने पर वीरमती ने उस सरसराहट को मन का वहम सम  झा और तख्तपोश पर सोने के लिए जाने लगी कि अचानक एक बड़े डीलडौल वाला नंगा आदमी उस पर   झपट पड़ा. उस आदमी के चेहरे पर डरावना मुखौटा लगा था. उस के लंबे बाल उसे और भी भयानक बना रहे थे.

इस के पहले कि वीरमती की चीख निकलती, उस डरावने आदमी का एक हाथ वीरमती के मुंह पर चिपक गया, ताकि वह चीख न सके.

उस डरावने आदमी का दूसरा हाथ उस के कमरबंद खोलने को रेंगने लगा. उस आदमी की सांसें मुखौटे के पीछे से पूरे सन्नाटे में गूंजने लगीं.

वीरमती उस शख्स की मंसा समझ चुकी थी कि यह देवता नहीं, बल्कि कोई शैतान है. उसे भोलू का ध्यान आया और पूरी हिम्मत बटोर कर उस ने अपने दाएं हाथ से वह मुखौटा हटाया और बाएं हाथ से अपने बालों के जूड़े में छिपाया चाकू निकाल लिया.

नंगे आदमी का चेहरा देख कर वीरमती का शक यकीन में बदल गया कि वह गुर दितू था.

वीरमती जोर से चिल्लाई, ‘‘पापी, ले दरिंदगी की सजा,’’ और उस ने   झट से गुर दितू की नाक काट दी.

भयंकर दर्द से बेहाल गुर दितू जोर से चिंघाड़ा. उस की चिंघाड़ दूर तक गूंज गई. दर्द से तड़पता हुआ अब तो वह हिंसक बाघ बन गया.

एक आदमी की चिंघाड़ सुन कर किसी अनहोनी के डर से भोलू पूरी ताकत लगा कर सीढि़यों पर चढ़ चला. पहली ही सीढ़ी से ऊपर न चढ़ने का नियम भंग होने की उसे कतई चिंता न थी.

इधर खून से लथपथ गुर दितू ने वीरमती को उठने न दिया. वह एक हाथ से उस का गला दबाने लगा, पर वीरमती का चाकू ‘खचाक’ से उस की कलाई पर चला और बंधन छूट गया.

भोलू हांफता हुआ मंदिर में पहुंच गया. कुछ देर तो उसे चूडि़यों की खनक के सिवा कुछ दिखाई नहीं दिया, पर फिर सबकुछ साफ नजर आने लगा.

भीतर का सीन देख कर वह सम  झ गया और उस का खून खौल उठा. सकपका कर डरते हुए गुर दितू उठने लगा, पर वीरमती ने बालों से पकड़ कर उसे   झक  झोरना शुरू कर दिया.

भोलू ने आव देखा न ताव देवता की पिंडी के पास पड़ी तलवार उठा ली. वह गुर्राते हुए बोला, ‘‘ठहर जा शैतान, मैं आज तु  झे जिंदा नहीं छोड़ूंगा. तेरा यह खेल अब हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.’’

वीरमती द्वारा बालों से पकड़े नंगे गुर दितू को भोलू की जोर की लात पड़ी और वह दरवाजे पर गिर पड़ा.

भोलू ने तलवार सीधे उस की गरदन पर दे मारी, लेकिन वीरमती के रोकने से तलवार उस का कान काटती हुई दरवाजे में धंस गई.

‘‘इस शैतान को मार कर अपने सिर हत्या का जुर्म न लें. इस की करतूतों की सजा इसे गांव वाले और पुलिस देगी,’’ वीरमती ने प्यार से समझाते हुए कहा.

गुस्से से तड़पता भोलू न चाहते हुए भी मान गया. वे दोनों गुर दितू को बालों से घसीटते हुए मंदिर से बाहर ले चले, तो उन्होंने देखा कि गांव वालों का जमघट चढ़ाई चढ़ते हुए बड़ी तेजी से मंदिर की ओर ही आ रहा है.

अब गुर दितू गिड़गिड़ाते हुए उन से माफी मांगने लगा. वह अपने नंगे बदन को हाथों से ढकता और दर्द से कराहता भी जाता था. उस के कटे नाककान से खून निकलना बंद नहीं हो रहा था.

गुर दितू को नंगा देख कर कई औरतें चेहरा घुमा कर हंसने लगी थीं, जबकि वह सिर   झुकाए उकड़ू बैठ गया था.

एक औरत ने गुर दितू की ओर अपना दुपट्टा फेंका, जिसे उस ने   झट से लपक कर कमर पर लपेट लिया था.

इसी दौरान एक औरत ने अपनी चप्पल निकाल कर गुर दितू के सिर पर मारनी शुरू कर दी थी. जब वह थक गई, तो रोतेरोते उस ने गुर दितू द्वारा उस से किए कुकर्म की बात सभी को बता दी.

उस औरत ने यह भी बताया कि वीरमती को चाकू रखने की सलाह उसी ने दी थी. अनहोनी के डर से गांव वालों को भी वही साथ लाई थी.

डांभरी और टिक्करी गांव के लोग बहुत दुखी हुए. तभी सब से पीछे खड़ी 11 दिन पहले ब्याही रघु पंडित की बहू भी जोरजोर से रो पड़ी.

वह रोतेरोते बोली, ‘‘मंदिर में बेहोश होने पर भी इस दुराचारी ने मेरे साथ कुकर्म किया था.’’

उस के पति ने दिलासा दे कर उसे चुप कराया और नफरत से गुर दितू की ओर थूक दिया.

अब सब गांव वाले देवता के नाम पर हो रहे पाखंड को पूरी तरह जान गए थे. वे अपनी नासम  झी और अनपढ़ता पर बहुत दुखी थे.

इस दौरान 5-6 नौजवानों ने औरतों के दुपट्टों से गुर दितू को बांध लिया था.

सभी गांव वालों ने एकमत हो कर गुर दितू और डांभरी देवता के चारों कारदारों को पुलिस के हवाले करने और उन का सामाजिक बहिष्कार करने का फैसला ले लिया.

दोनों गांवों के सरपंचों ने भंडारगृह का सारा अनाज गरीबों में बांटने और मंदिर के साथ भंडारगृह को भी हमेशा के लिए ताला लगाने का फैसला सुना दिया. अब वे सब गुर दितू को पकड़ कर गांव की ओर ले जाने लगे थे.

सालों से गांव का यह धूर्त पुजारी ऊंचनीच की बात कर के गांव वालों की औरतों को लूट रहा था. कुछ के तो उस से बच्चे भी हुए थे, गोरेचिट्टे.

मांएं यही सोच कर खुश रहती थीं कि पंडित की संतान हैं, तो उस के अगले जन्म तो सुधरेंगे. कई औरतें तो बाद में भी पुजारी की सेवा करने आती रहतीं और यही कहतीं कि देवता उन पर खुश हैं. Story In Hindi

Story In Hindi: अंदर बाहर – जब पीछे पड़ गया सांड

Story In Hindi: ‘‘मिल गया. 15 रुपए की एक बता रहा था. 20 रुपए में 2 दे दी. यानी 10 रुपए की एक फूलगोभी,’’ कहते हुए बेनी बाबू जंग जीतने वाले सेनापति के अंदाज में खुश हो गए.

आलू, बैगन, अदरक, बंदगोभी वगैरह सब्जियों से भरे झोले को संभालते हुए वे जल्दीजल्दी घर लौट रहे थे. सड़क पर दोनों तरफ सब्जी वाले बैठे थे. कोई हांक लगा रहा था, ‘‘20 में डेढ़, टमाटर ढेर.’’

फल वाला नारा बुलंद कर रहा था, ‘‘बहुत हो गया सस्ता, अमरूद ले भर बस्ता.’’ बिजली के तार पर बैठे बंदर सोच रहे थे, ‘मौका मिले, तो झपट कर अमरूद उठा लें. सौ फीसदी मुफ्त में.’

वैसे, भाषा विज्ञान का एक सवाल है कि पेड़ की शाखा पर चलने के कारण अगर बंदरों का नाम ‘शाखामृग’ पड़ा, तो आजकल के टैलीफोन और बिजली के तारों पर चलने के कारण उन का नाम ‘तारमृग’ भी क्यों न हो? उधर बेनी बाबू ने यह खयाल नहीं किया था कि भीड़ में कोई उन के पीछेपीछे चल रहा है. वह था एक भारीभरकम काला सांड़, जो शायद सोच रहा था, ‘बच्चू, तू अकेलेअकेले सब खाएगा? हजम नहीं होगा बे. एक फूलगोभी तो मुझे देता जा.’

पीछे से आती आवाज से चौंक कर बेनी बाबू ने पीछे मुड़ कर देखा और उन के मुंह से निकला, ‘‘अरे, सत्यानाश हो.’’ वे सिर पर पैर रख कर भागे. कुछकुछ उड़ते हुए.

‘अबे भाग कहां रहा है? सरकार का टैक्स है. पुलिसगुंडे सब का टैक्स है. हमारा टैक्स नहीं देगा क्या? चल, फूलगोभी निकाल,’ मानो सांड़ यह सोच कर उन के पीछे दौड़ने लगा. बेनी बाबू मानो यह सोचते हुए आगे भागे, ‘न मानूं, न मानूं, न मानूं रे. दगाबाज, तेरी बतिया न मानूं रे.’

‘अबे तुझे हजम नहीं होगा. तेरे पेट से निकलेगी गंगा. तेरा खानदान न रहेगा चंगा,’ सांड़ को जैसे गुस्सा आ गया.

एक राही ने जोरदार आवाज में कहा, ‘‘भाई साहब, जल्दीजल्दी भागिए.’’ दूसरे आदमी ने यूएनओ स्टाइल में समझौता कराना चाहा, ‘‘एक फूलगोभी उस के आगे फेंक कर घर जाइए.’’

‘जाऊं तो जाऊं कहां ऐ दिल, कहां है तेरी मंजिल?’ यह सोचते हुए तड़पने लगे बेनी बाबू. तभी ध्यान आया कि दाहिने हाथ की गली के ठीक सामने पुलिस चौकी है. और कोई न बचाए, खाकी, अपनी रख लो लाज. बचा लो मुसीबत से आज. दौड़तेहांफते हुए हाथ में थैला लटकाए बेनी बाबू थाने में दाखिल हुए.

बेनी बाबू को भीतर आता देख दारोगा बलीराम चिल्लाए, ‘‘अरे, यह क्या हो रहा है? तुम… आप कौन हैं? ऐ गिरधारी, यह कौन अंदर दाखिल हो गया? देख तो…’’ ‘‘एक सांड़ मेरे पीछे पड़ा है,’’ बेनी बाबू ने अपनी समस्या बताई.

‘‘सांड़? पीछा कर रहा है? कोई गुंडाबदमाश होता तो कोई बात होती,’’ दारोगा बलीराम ने कहा. ‘‘अरे साहब, यह सांड़ तो गुंडेबदमाश से भी दो कदम आगे है.’’

बाहर से गिरधारी ने मुनादी कर दी, ‘‘लीजिए, वे भी पधार चुके हैं.’’ इसी बीच थाने के अंदर काले पहाड़ जैसे सांड़ की ऐंट्री.

दारोगा बलीराम चौंक गए और बोले, ‘‘सुबहसुबह यह क्या बला आ गई?’’ इतने में सांड़ झपटा बेनी बाबू की ओर. वे छिप गए दारोगा बलीराम के पीछे. शुरू हो गई म्यूजिकल चेयर

रेस. टेबिल के चारों ओर चक्कर लगा रहे थे तीनों. सब से पहले बेनी, उन के पीछे दारोगा बलीराम और उन

दोनों को खदेड़ता हुआ काला पहाड़ जैसा वह सांड़… ‘‘अरे गिरधारी, इस को भगाओ, नहीं तो तुम सब को लाइन हाजिर कराऊंगा,’’ फौजी स्टाइल में दारोगा बलीराम चिल्लाए.

‘‘साहब, हम क्या करें? मामूली चोरउचक्के तो हाथ से छूट जाते हैं, ये तो बौखलाए सांड़ हैं. कैसे संभालें?’’ गिरधारी ने सच कहा. उधर झूमझूम कर, घूमघूम कर चल रहा था तीनों का चक्कर. बीच में टेबिल को घेर कर.

दारोगा बलीराम ने आदेश दिया, ‘‘हवालात का दरवाजा खोल कर इसे अंदर करो.’’ ‘‘हम लोग दरवाजा खोल रहे हैं हुजूर. आप अंदर से उसे बाहर हांकिए,’’ गिरधारी ने जोरदार आवाज में कहा.

‘‘यह तो मुझे दौड़ा रहा है. मैं कैसे हांकूंगा? इस आदमी को यहां से निकाल बाहर करो.’’ ‘‘आप ही लोग जनता की हिफाजत नहीं करेंगे, तो कौन हमें बचाएगा?’’ बेनी बाबू बोले.

‘‘निकलते हो कि नहीं…’’ दारोगा बलीराम बेनी बाबू पर यों झपटे कि झोला समेत उसे निकाल बाहर करें. सांड़ उन पर लपका. बेनी बाबू ने तुरंत टेबिल के नीचे हाथ में झोला संभालते हुए आसन जमा लिया.

सांड़ हैरान रह गया. गोभी वाला बाबू गया कहां? उसे दारोगा पर गुस्सा आ गया कि कहीं इसी ने तो गोभी नहीं खा ली? वह सांड़ दारोगा बलीराम के पीछे दौड़ता हुआ मानो बोला, ‘छुप गए तारे नजारे सारे, ओए क्या बात हो गई. तू ने गोभी चुराई तो दिन में रात हो गई.’ हवालात का दरवाजा खुला था. बलीराम पहुंचे अंदर और चिल्लाए, ‘‘अरे गिरधारी, हवालात का दरवाजा बंद कर… जल्दी से.’’

गिरधारी ने तभी आदेश का पालन किया. सांड़ बंद हवालात के सामने फुफकारने लगा और मानो बोला, ‘हुजूर, अब खोलो दरवाजा. मैं प्रजा हूं, तुम हो राजा. भूखे की गोभी मत छीनो. सुना नहीं क्या अरे कमीनो?’

इस के बाद क्या हुआ, मत पूछिए. दूसरे दिन अखबार में इस सीन की फोटो समेत खबर छपी थी. हां, इतना बता सकता हूं कि मिसेज बेनी को दोनों फूलगोभी मिल गई थीं. सहीसलामत. Story In Hindi

Hindi Story: गऊदान – ऐसा क्या था जो भरतरी को परेशान कर रही थी

Hindi Story: भरतरी को मन ही मन किसी भारी मुसीबत की चिंता खाए जा रही थी. जिस लहजे में पंडितजी का संदेश मिला था, वही उस की चिंता की अहम वजह थी.

पंडितजी बरामदे में खड़े थे. उन्हें देखते ही भरतरी का दिल जोरजोर से धड़कने लगा, पर वह हिम्मत जुटा कर बोली, ‘‘नमस्ते पंडितजी.’’

सोम शास्त्री ने नजरें उठा कर भरतरी की तरफ घूमते हुए उस से पूछा, ‘‘भरतरी, सुना है कि तुम्हारे घर लड़का पैदा हुआ?है?’’

‘‘हां पंडितजी, आप ने सच सुना है,’’ भरतरी बोली.

‘‘कल तुम आई नहीं, फिर भी मैं ने बच्चे के पैदा होने का समय पूछ कर मुहूर्त देखा है. लड़का मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है और उस पर शनि का प्रकोप भी है.

‘‘इस से बचने का सिर्फ एक ही तरीका है कि 5 पंडितों को खाना खिलाओ और गऊदान करो.

‘‘साथ ही, मूल नक्षत्र का पूजन होगा, जिस में बिरादरी के लोगों को भोजन कराना पड़ेगा…’’ सोम शास्त्री ने भरतरी को बताते हुए पूछा, ‘‘बता, लड़के का नाम क्या रखा है?’’

‘‘अभी तो कुछ सोचा नहीं पंडितजी. हां, समशेरू ने बच्चे का नाम महावीर रखने के लिए सोचा है.’’

‘‘महावीर…’’ हैरान सोम शास्त्री के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘छोटे लोगों का छोटा नाम ही ठीक रहता है. वैसे, बच्चे का नाम ‘प’ अक्षर से पड़ता?है, अब तुम जो चाहे नाम रख लो.’’

पंडितजी महावीर नाम इसलिए मना कर रहे थे, क्योंकि यह नाम तो उन के कुनबे में किसी का था. अब भला पिछड़ी जाति के लोग पंडितों के नाम भी रखने लगेंगे.

30-35 घरों का छोटा सा गांव, जहां गिनती में पासी ज्यादा थे, पर सब अनपढ़ थे, इसीलिए वे मुट्ठीभर पंडितों की गुलामी करते थे. पर समशेरू ऐसा नहीं था, क्योंकि वह थोड़ा पढ़ालिखा था और एक डाक्टर के साथ कुछ दिनों तक उस की दुकान पर कंपाउंडर रहा था.

अब वह खुद ही एक छोटी सी दुकान खोल कर डाक्टरी का काम कर रहा था, फिर भी उस की मां गाहेबगाहे खर्च को देखते हुए पंडितों के खेत में मजदूरी कर लिया करती थी.

इस के बाद भी पूरा परिवार गरीबी में जी रहा था, इसीलिए सोम शास्त्री की बात भरतरी को सोच में डाले हुए थी. कहां से हो सकेगा इतना जुगाड़? घर के दरवाजे पर बंधी गाय की तरफ नजर गई, तो वह मन ही मन सिहर उठी.

समशेरू ने सुना, तो वह बिफर पड़ा, ‘‘मैं कुछ नहीं करूंगा. मैं न तो गऊदान करूंगा और न ही पंडितों को भोजन कराऊंगा.’’

बेटे के मुंह से ऐसी बात सुन कर भरतरी बोली, ‘‘पहला लड़का है, कुछ तो कराना ही पड़ेगा.’’

‘‘तब जा कर घर गिरवी रख के पंडित और बिरादरी को भातभोज दो, यहां तो दालरोटी के लाले पड़ रहे हैं. मां, तुम जो बता रही हो, उस पर तकरीबन

5 हजार रुपए का खर्च बैठेगा. इतना रुपया कहां से आएगा.’’

‘‘लेकिन समाज और जातिबिरादरी के लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘लोग क्या कहते हैं, हम यह देखें या अपनी गांठ देखें. मैं भी तो मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था. तुम ने मूल नक्षत्र की पूजा कर के कौन सा सुख उठा लिया.

‘‘मेरी बात छोड़, सुखई को देख. उस की बीवी बच्चा पैदा होते ही मर गई.

‘‘उस ने तो मूल नक्षत्र नहीं पूजा, पर हम से ज्यादा सुखी है.’’

समशेरू बहुत देर तक सोम शास्त्री पर बड़बड़ाता रहा, ‘‘ये सब पंडित के चोंचले हैं. मैं तो अपने बेटे का नाम महावीर ही रखूंगा.’’

समशेरू का फैसला सोम शास्त्री के लिए ही नहीं, बल्कि ब्राह्मणों की बनाई व्यवस्था के लिए एक चुनौती था, इसीलिए सोम शास्त्री समशेरू का रास्ता रोक कर खड़े हो गए और बोले, ‘‘समशेरू, सुना है कि तुम ने गऊदान न करने और बच्चे का मूल नक्षत्र भी न पूजने का फैसला लिया है?’’

‘‘पंडितजी, हम तो धर्मकर्म में विश्वास नहीं रखते.’’

‘‘नास्तिक… धर्म के नाम पर कलंक,’’ गुस्से में चीखते हुए सोम शास्त्री ने समशेरू के गाल पर एक थप्पड़ मारा.

सोम शास्त्री द्वारा समशेरू को थप्पड़ मारने की बात पूरे गांव में फैल गई.

पासियों के टोले में ब्राह्मणों के विरोध में बुलबुले उठने लगे. गांव में तनाव की हालत बन गई. पासियों ने पंडितों के खेत में काम करना बंद कर दिया.

एक दिन तो तनाव इतना बढ़ गया कि दोनों ओर से लाठियां और कट्टे निकल आए और मारामारी की नौबत आ गई. दोनों टोले के लोग गोलबंद हो कर घूमने लगे.

हालांकि पासी टोला एकमत था, पर गरीबों का संगठन कब तक बगैर मजदूरी किए संगठित रह सकता है

और मजदूरी पंडितों के खेतों में ही हो सकती थी, इसलिए सोम शास्त्री का पक्ष ज्यादा मजबूत था. किसी को भी अपनी ओर करना उन के लिए ज्यादा मुश्किल न था.

एक रात पंडितों की तरफ से पासी टोले पर पत्थर फेंके गए और रात में गाय के हौद में गोबर व कंकड़पत्थर भर दिए गए, तो दूसरी रात सोम शास्त्री की फसल खेत में से रातोंरात काट ली गई.

उसी दिन ब्राह्मण टोले की बैठक हुई और सभी ने एकमत से फैसला सोम शास्त्री के ऊपर छोड़ दिया.

सोम शास्त्री ने सब से पहले कूटनीति का सहारा लेते हुए पासी टोले के रमई को फोड़ने का इंतजाम किया.

पहले तो रमई नानुकर करता रहा, पर जब सौसौ के नोट देखे, तो झोंपते हुए वह बोला, ‘‘पंडितजी, आप लोग तो महान हो. आप जो भी कहेंगे, हम सब वही करेंगे.’’

सोम शास्त्री मन ही मन बहुत खुश थे, क्योंकि उन की चाल कामयाब रही थी और तीर निशाने पर लगा था. वे समय का इंतजार कर रहे थे.

शाम ढल चुकी थी. समशेरू अपनी दुकान में बैठा हुआ मरीजों को देख रहा था. कुछ देर बाद रमई की बेटी कबूतरी का नंबर आया. समशेरू उसे दवा देने लगा.

अचानक कबूतरी चिल्लाने लगी, ‘‘अरे देखो, यह डाक्टर हमारी इज्जत पर हाथ डाल रहा है.’’ वह जोरजोर से समशेरू को गालियां देने लगी. थोड़ी ही देर में दुकान के बाहर भीड़ जमा हो गई.

दुकान के आगे जमा भीड़ में से एक ने कहा, ‘‘मारो इस को. यह तो समाज के ऊपर कलंक है.’’ उस के इतना कहते ही ‘मारोमारो’ की आवाजें आने लगीं.

देखते ही देखते राहगीरों ने बेकुसूर समशेरू को दुकान से बाहर खींच लिया और लातघूंसों से पीटने लगे. अचानक तेजाब से भरी एक बोतल समशेरू के सिर से टकराई और फूट गई, जिस से समशेरू का चेहरा बुरी तरह जल गया.

दूसरे दिन अखबार में छपा था कि अपनी एक महिला मरीज को छेड़ने पर भीड़ ने डाक्टर को पीटपीट कर मार डाला.

बाजी सोम शास्त्री के हाथ लग चुकी थी. जब राहगीर समशेरू को पीट रहे थे, तब सोम शास्त्री और रमई तेजी से गांव की तरफ जा रहे थे, क्योंकि भरतरी की गाय जो लेनी थी. लेकिन गाय पंडित को अपनी तरफ आता देख कर बिदक गई और खूंटा उखाड़ कर जंगल की ओर भाग गई. Hindi Story

Story In Hindi: मनचाही मंजिल – ठाकुर रंजीर सिंह का आवारापन

Story In Hindi: ‘‘अरे, थोड़ा ‘आहऊह’ तो करो, तब तो मजा आए. क्या एकदम ठंडी लाश की तरह पड़ी रहती हो,’’ ठाकुर रंजीर सिंह अपनी बीवी सुमन के बदन से अलग होता हुआ बोला और इस के बाद अपना मोबाइल फोन उठा कर एक पोर्न साइट खोल दी.

सुमन ने शरमा कर आंखें बंद कर लीं तो रंजीर सिंह उसे जबरदस्ती फिल्म दिखाने लगा और फिल्म की हीरोइन के बड़े उभारों की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘इसे देखो, कितना भरा हुआ शरीर है. जमीन पर लिटा दो तो गद्दे का कोई काम ही नहीं है… और एक तुम हो कि शरीर में बिलकुल मांस ही नहीं है.’’

सुमन की सपाट छाती की ओर हिकारत भरी नजरों से देखते हुए रंजीर सिंह ने कहा और बेमन से उस के ऊपर चढ़ गया और अपनी मंजिल को पाने के लिए ताबड़तोड़ जोर लगाने लगा.

रंजीर सिंह के पिता ठाकुर राजेंद्र सिंह चाहते थे कि उन का बेटा खूब पढ़ाई करे और इस के लिए उन्होंने रंजीर सिंह को अपने गांव से 400 किलोमीटर दूर लखनऊ यूनिवर्सिटी में भेजा भी, पर रंजीर का मन वहां पढ़ाई में नहीं लगा. वह या तो लड़कियों के आगेपीछे घूमता, उन्हें छेड़ता और बाकी समय में कैंपस की राजनीति के चक्कर में पड़ गया.

देरसवेर ठाकुर राजेंद्र सिंह यह बात समझ गए थे कि रंजीर पढ़ाई की जगह आवारागर्दी और मौजमस्ती कर रहा है. उन का यह एकलौता लड़का था, इसलिए उन्होंने उसे वापस गांव बुला लिया.

गांव आ कर भी रंजीर सिंह की हरकतें नहीं छूटी थीं. वह यहां भी आ कर राजनीति करता और अपने पीछे लड़कों की भीड़ ले कर चलता और जिन भी औरतों और लड़कियों को छेड़ने का मन करता, उन्हें छेड़ देता.

रंजीर सिंह की ऐसी हरकतों से तंग आ कर ठाकुर राजेंद्र सिंह ने उस की शादी करा दी.

शादी के बाद रंजीर भोगविलास में डूब गया था. वह कई दिन तक अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकला था, पर जल्दी ही पत्नी से उस का मोह भंग हो गया, क्योंकि सुमन काफी दुबलीपतली थी.

पोर्न फिल्मों के शौकीन रंजीर सिंह के अंदर बैठे हवसी को मजा नहीं मिल पा रहा था और वैसे भी जिस की हर जगह मुंह मारने की आदत पड़ चुकी हो, उसे भला घर में कहां संतुष्टि मिलने वाली थी.

रंजीर सिंह अपने 4-5 दोस्तों के साथ गांव के चौराहे पर बैठता और आनेजाने वाली औरतों के भरे उभारों और उन के कूल्हों को देखता रहता.

पिछले कुछ दिनों से रंजीर सिंह की नजर गांव की एक औरत पर थी. तकरीबन 40 साल की उस औरत का नाम बिजली था.

जैसा नाम था वैसी ही बिजली की काया थी. साड़ी नीचे बांधने के चलते बिजली की गहरी नाभि हमेशा दिखती रहती थी. बिजली भी अपनी नाभि का प्रदर्शन जानबूझ कर करती थी. मर्दों की लालची निगाहों को परखने का हुनर खूब जानती थी बिजली.

बिजली के पति किशोर ने पाईपाई जोड़ कर उसे एक कैमरे वाला मोबाइल फोन दिला दिया था, ताकि बिजली उस पर दक्षिण भारत की फिल्में देख सके. बिजली को वहां की भरीपूरी हीरोइनें देखने का चसका लगा था.

आज जब बिजली कमर मटकाते हुए घर से बाहर जा रही थी, तब उस ने रंजीर सिंह को अपनी ओर घूरते हुए देखा. बिजली ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया और ब्लाउज के अंदर से उस के उभार की गोलाइयां बाहर आने को मचल उठीं.

‘‘वाह, माल हो तो ऐसा,’’ रंजीर सिंह बुदबुदा उठा था.

‘‘मालिक, कहो तो अभी उठा ले आएं आप की खातिर?’’ मनकू ने रंजीर सिंह की चापलूसी करते हुए कहा.

बदले में पकिया ने मनकू की तरफ आंखें तरेरते हुए कहा, ‘‘अरे, जानते नहीं कि बिजली दलित है और हमारे साहब तो खानदानी ठाकुर हैं. वे भला इस दो कौड़ी की अछूत औरत के साथ संबंध क्यों बनाएंगे…’’

पकिया की यह बात सुन कर रंजीर सिंह जोर से हंसने लगा और कहा, ‘‘औरतों के मामले में हम जातिवाद का विरोध करते हैं. भले ही वह औरत दलित है, पर,’’ अचानक से रंजीर सिंह शायराना हो गया था. वह बोला, ‘‘जिस तरह से ठाकुरों की ताकत कभी कम नहीं मानी जाती, चिलम, दारू और औरत कभी जूठी नहीं मानी जाती, इसलिए हम बिजली नाम की इस औरत का करंट जरूर चैक करना चाहेंगे.’’

बिजली का पति शहर जा कर एक दुकान पर नलसाजी का काम करता था. वह सुबह निकल जाता और देर रात तक वापस आ पाता. बिजली बड़ेबड़े सपने देखने वाली औरत थी. उस के मन में आगे बढ़ने की ललक भी थी.

बिजली के बच्चे नहीं थे, इसलिए उस ने अपनेआप को बिजी रखने के लिए आंगनबाड़ी में काम करना शुरू कर दिया था, जिस से चार पैसे भी आते थे और गांव की औरतों से भी मिलना हो जाता था.

सरकारी आंकड़े भले ही कुछ कहते हों, पर सचाई तो यह थी कि इस गांव में तरक्की के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ था. सड़कें टूटी हुई थीं. अब भी जगहजगह पानी भर जाता था और गांव में बिजली न रहने के चलते अंधेरा ही रहता था.

गांव की औरतों और मर्दों ने कई बार अपनी सारी मांगें सरपंच के सामने रखी थीं, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

‘‘यह खड़ूस सरपंच जब बदलेगा, तभी इस गांव का कुछ भला हो पाएगा,’’ आंगनबाड़ी की औरतें आपस में बातें कर रही थीं. उन में से एक की आवाज बिजली के कान में भी पड़ रही थी.

दूसरी औरत ने बताया कि किस तरह से एक बार सड़क के किनारे से आते समय अंधेरे का फायदा उठा कर किसी आदमी ने उसे छेड़ने और उस के उभारों को मसलने की कोशिश की थी.

आज बिजली दूसरे गांव से वापसी कर रही थी. वह बस से उतर कर अभी गांव में घुसी ही थी कि उस के पति का फोन आ गया. बिजली ने ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मोबाइल निकाला और बात करना शुरू किया.

उस के पति ने बताया कि आज रात उसे वापस आने में देर हो जाएगी, इसलिए वह खाना समय से खा ले.

अपने पति से बातें करने के बाद बिजली ने मोबाइल को वापस अपने उभारों में छिपा लिया. दूर खड़े रंजीर सिंह ने बिजली को ऐसा करते देखा तो वह हवस से भर गया.

रंजीर सिंह बिजली के पीछेपीछे चलने लगा और मौका देख कर उस ने बिजली को पीछे से अपने हाथों से दबा दिया.

बिजली एक पल को जरूर चौंकी थी, पर रंजीर सिंह को देख कर वह मुसकरा पड़ी.

बिजली की इस मुसकराहट से रंजीर सिंह को समझते देर नहीं लगी कि उस का रास्ता साफ है, इसलिए बातचीत करने के बाद उस ने बिजली से उस का मोबाइल नंबर ले लिया.

रंजीर सिंह अब बिजली के मोबाइल फोन पर गंदे चुटकुले भेजने लगा. कभीकभी वह कोई पोर्न क्लिप भी भेज देता था.

एक दिन बिजली ने रंजीर सिंह से पूछ ही लिया कि वह ऐसी फिल्में क्यों भेजता है, तो रंजीर ने उसे बताया कि वह बिजली के मांसल अंगों को ऐसे ही नोचना और चूसना चाहता है जैसे कि इन फिल्मों में दिखाया गया है और घर में उसे अपनी पत्नी से यह सब सपोर्ट नहीं मिलता है.

‘‘पर हर चीज की कीमत होती है ठाकुर साहब,’’ बिजली एक ठाकुर को अपने पीछे लट्टू देख कर खुश हो रही थी. उस ने कीमत मांगी तो पैसे के घमंड में चूर रंजीर सिंह ने हर कीमत चुकाने का वादा कर दिया.

इस के बाद उन दोनों की बातें और मुलाकातें बढ़ती गईं और एक दिन रंजीर सिंह बिजली को ले कर गांव से 10 किलोमीटर दूर अपने फार्महाउस पर आया. वह अपने साथ शराब की 2 बोतलें भी लाना नहीं भूला था.

बिजली के हाथों से जी भर कर शराब पी गया था रंजीर सिंह. उस के बाद वह बिस्तर पर लेट गया और बिजली को अपने ऊपर आने को कहा.

शरीर से थोड़ी मोटी बिजली ठाकुर के ऊपर बैठी तो रंजीर सिंह को जन्नत का वह सुख मिला जो उसे आज तक अपनी पत्नी से नहीं मिला था. दोनों ने फार्महाउस पर जी भर कर सैक्स का मजा लिया और उस दिन के बाद से बिजली और रंजीर सिंह अकसर यहां आते, खातेपीते और जिस्मानी सुख का मजा लेते.

कुछ महीने के बाद बिजली ने जब अपना मेहनताना मांगा, तो ठाकुर रंजीर सिंह ने उसे 5,000 रुपए दे दिए, जिसे बिजली ने लेने से मना कर दिया

और अपने शरीर के बदले में बिजली ने उसे गांव का सरपंच बना देने की मांग कर डाली.

‘‘पगला गई हो क्या… तुम्हारे कहने से हम तुम्हें सरपंच बनवा देंगे… नीच जात को थोड़ा सा मुंह क्या लगा लिए, तुम तो सिर पर चढ़ कर नाचने लगी,’’ चीख रहा था रंजीर सिंह. पर बिजली खामोश थी, जैसे उसे इन सब बातों का अंदाजा पहले से ही था.

उस ने मुसकराते हुए अपना मोबाइल फोन रंजीर सिंह की ओर बढ़ा दिया, जिस में उन दोनों की बिस्तरबाजी की वीडियो क्लिप थीं, जो खुद बिजली ने बना ली थीं.

बिजली ने कहा कि अगर ये वीडियो क्लिप गांव में लोगों को दिखाई गईं, तो एक नीच जाति की औरत के साथ सोने से ठाकुर की कितनी बेइज्जती हो जाएगी, यह सोच लेना. और फिर बिजली ने एक क्लिप को इंटरनैट पर डाल देने की धमकी भी दे दी.

रंजीर सिंह की समझ में आ गया था कि वह गलती कर बैठा है, पर अब पछताने से क्या फायदा था. बिजली को खामोश रखने के लिए उसे वह देना ही होगा, जो उसे चाहिए था यानी गांव के सरपंच का पद.

ठीक समय आने पर रंजीर सिंह इस कोशिश में जुट गया और इस के लिए उस ने बिजली की जाति को ही हथियार बनाया और जोरशोर से गरीब और नीची जाति की बिजली को ही सरपंच बनाए जाने की बात कही.

बिजली थोड़ीबहुत पढ़ीलिखी थी, आंगनबाड़ी में काम भी करती थी और वह मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना भी जानती थी, इसलिए उस से बेहतर सरपंच गांव के लिए नहीं हो सकता

था. रंजीर सिंह की इन्हीं दलीलों के चलते  बिजली को गांव का सरपंच चुन लिया गया.

सरपंच बनने के बाद भी रंजीर और बिजली ने फार्महाउस पर जाना नहीं छोड़ा. दोनों साथ मिल कर ही ग्राम पंचायत भी जाते और गांव में भी साथसाथ घूमते.

एक गांव का ठाकुर था, तो दूसरी गांव की सरपंच. अब ये दोनों गांव की तरक्की करने के नाम पर साथ रहते थे और गांव वाले कुछ नहीं कह पाते थे, जिस की बड़ी वजह यह भी थी कि सरपंच बनने के बाद बिजली ने गांव और औरतों की भलाई के बहुत सारे काम करा दिए थे.

जहां पर अंधेरा रहता था, वहां अब स्ट्रीट लाइट लग रही थी. जहां पर

टूटी सड़कों के चलते जलभराव रहता था, वहां पर अब सड़क बन गई थी. गरीब और दलित बेटियों का सामूहिक विवाह का आयोजन कराती थी सरपंच बिजली.

तेज और चतुर बिजली के सरपंच बनने के बाद अब गांव में घरेलू हिंसा के मामलों में भी कमी आ रही थी. बिजली ने गांव में इस तरह के नारे भी लिखवा दिए : ‘बेटी होती घर की शान बेटी से बढ़ता है मान. बेटी कहती बातें सच्ची बेटी होती घर में अच्छी.’ दीवारों पर गांव की साफसफाई की बातें लिखी थीं : ‘साफसुथरा हो गांव हमारा यह तो है परिवार हमारा. धीरेधीरे करें तैयारी सफाई से भागे सब बीमारी.’

इस में शक नहीं था कि सरपंच के रूप में बिजली की छवि निखर कर आ रही थी, पर जैसा कि हर किसी के विरोधी होते ही हैं, इसी तरह बिजली से जलने वाली औरतों का एक गुट भी था, जिस में से एक ने बिजली पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘ठाकुर के साथ सो कर तो कोई भी सरपंच बन सकता है.’’

यह बात सुन कर बिजली को बहुत गुस्सा आया. उसे लगा कि वह उन सब का मुंह नोच ले, पर उस ने शांति से जवाब देना ही उचित समझा, ‘‘हो सकता है, लोगों को मेरा यह तरीका गलत लगे, पर कभीकभी अपनी मांगों को ले कर सिर्फ आंदोलन करना ही काफी नहीं होता…

‘‘और फिर जिस जाति व्यवस्था के भंवरजाल में हम फंसे हैं, उस से निकलने के लिए हमें कई रास्ते खोजने पड़ते हैं… क्या पता, कौन सा रास्ता हमें हमारी मनचाही मंजिल तक पहुंचा दे,’’ बिजली बोले जा रही थी.

‘‘और फिर पैसे वाले ठाकुर तो जबरदस्ती हमारे शरीर को भोगते आए हैं… हम भले ही अछूत हों और वे हमारे हाथ का पानी न पिएं, पर वे हमारे अंगों पर मुंह मारने से गुरेज नहीं करते और अगर हम अपने शरीर का इस्तेमाल कर के अपना कुछ फायदा करते हैं, तो हर्ज ही क्या है…’’

बिजली की बुराई करने वाली औरतों को लगा था कि बिजली उन के आरोप लगाने से सहम जाएगी, पर बिजली के ऐसा कह देने से उन सब का मुंह बंद हो गया.

बिजली ने आंदोलन तो नहीं किया, पर अपने खूबसूरत शरीर का इस्तेमाल कर के अपनी मनचाही मंजिल को पा ही लिया था. Story In Hindi

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