Hindi Family Story: सिरमौर – एक दलित की पुकार

Hindi Family Story: ‘‘अरे भगेलुआ, कहां हो? जरा झोंपड़ी से बाहर तो निकलो. देखो, तुम्हारे दरवाजे पर बाबू सूबेदार सिंह खड़े हैं. तुम्हारी मेहरी इस पंचायत की मुखिया क्या बन गई है, तुम लोगों के मिलने और बात करने का सलीका ही बदल गया है,’’ लहलादपुर ग्राम पंचायत के मुखिया रह चुके बाबू सूबेदार सिंह के साथ खड़े उन के मुंशी सुरेंद्र लाल ने दलित मुखिया रमरतिया देवी के पति भगेलुआ को हड़काया.

मुंशी सुरेंद्र लाल की आवाज सुन कर भगेलुआ अपनी झोंपड़ी से बाहर निकला. सामने बाबू सूबेदार सिंह को खड़ा देख कर वह अचानक हकबका गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि उन का किस तरह से स्वागत करे, लेकिन दूसरे ही पल उस का मन नफरत से भर उठा.

जब पेट में लगी भूख की आग को शांत करने के लिए भगेलुआ बाबू सूबेदार सिंह के यहां काम मांगने जाता था, तो घंटों खड़े रहने के बाद उन से मुलाकात होती थी.

काम मिल जाता था, तो कई दिनों तक बेगारी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उसे मजदूरी मिलती थी.

कभीकभी माली तंगी की वजह से वह बाबू सूबेदार सिंह से कर्ज भी लेता था. कर्ज के लिए बाबू साहब से कहीं ज्यादा उसे मुंशी सुरेंद्र लाल की तेल मालिश करनी पड़ती थी.

10 रुपए सैकड़ा के हिसाब से सूद व सलामी काट कर मुंशी महज 80 रुपए उस के हाथ में देता था.

अपनी ओर भगेलुआ को टुकुरटुकुर ताकते देख कर बाबू सूबेदार सिंह ने उसे टोका, ‘‘इतनी जल्दी अपने बाबू साहब को भुला दिया क्या? अब तो पहचानने में भी देर कर रहा है.’’

‘‘मालिक, हम आप को कैसे भुला सकते हैं? आप ही तो हमारे पुरखों के अन्नदाता हैं. इस दलित के दरवाजे पर आने की तकलीफ क्यों की. भगेलुआ की जरूरत थी, तो किसी से खबर भिजवा दी होती, हम आप की हवेली पर पहुंच जाते.

‘‘हमारे लिए तो आप ही मुखिया हैं. लेकिन पता नहीं ससुरी इस सरकार को क्या सू?ा कि इस पंचायत को हरिजन महिला कोटे में डाल दिया.

‘‘और गजब तो तब हुआ, जब यहां की जनता की चाहत ने रमरतिया को मुखिया बना दिया,’’ भगेलुआ के मन में जो आया, वह एक ही सांस में बक गया.

‘‘जमाना बदल गया है भगेलुआ,’’ बाबू सूबेदार सिंह ने लंबी सांस खींचते हुए कहा.

‘‘जमाना बदल गया तो क्या हुआ मालिक, हम तो नहीं बदले हैं. हम तो आज भी आप के हरवाहे हैं. लेकिन ट्रैक्टर आ जाने से हमारे जैसे लोगों की रोजीरोटी छिन गई है.

‘‘खैर, जाने दीजिए. यह बताइए कि इतने दिनों बाद भगेलुआ की याद कैसे आ गई?’’

‘‘इधर से गुजर रहा था तो सोचा कि तुम से थोड़ा मिलता चलूं,’’ बाबू सूबेदार सिंह ने मन को मारते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं मालिक, यह तो आप ही का घर है. हम तो आज भी खुद को आप की प्रजा सम?ाते हैं. अगर कोई भूलचूक हो गई हो, तो माफ करना,’’ दोनों हाथ जोड़ कर भगेलुआ ने बाबू सूबेदार सिंह से कहा और दूसरे ही पल अपनी पत्नी रमरतिया को आवाज लगाई, ‘‘कहां हो रमरतिया, जल्दी ?ोंपड़ी से बाहर निकलो. आज हमारे दरवाजे पर बाबू सूबेदार साहब आए हैं.’’

‘‘आ रही हूं,’’ झोंपड़ी से निकलती रमरतिया की नजर जैसे ही सामने खड़े मुंशी सुरेंद्र लाल व बाबू सूबेदार सिंह पर पड़ी, उस ने अपना पल्ला माथे से थोड़ा सा नीचे सरका लिया और बोल पड़ी, ‘‘पांव लागूं महाराज. आइए, कुरसी पर बैठ जाइए.’’

झोंपड़ी के सामने रखी कुरसी झड़पोंछ कर रमरतिया भीतर चली गई.

जब रमरतिया को मुखिया का पद मिला था, तभी वह बाबू साहब से मुखिया का चार्ज लेने के लिए गई थी. ठीक 2 साल के बाद उस की यह उन से दूसरी मुलाकात थी.

वैसे तो रमरतिया और पूरे दलित तबके का बाबू साहब की हवेली से पुराना संबंध था. कहीं काम मिले न मिले, वहां तो कुछ न कुछ काम मिल ही जाता था. लेकिन रमरतिया के मुखिया बनने के बाद अब कहीं दूसरे के यहां काम करने की नौबत ही नहीं आई.

पंचायत की योजनाओं से ही उसे फुरसत नहीं मिलती थी. कोई न कोई समस्या ले कर उस को घेरे रहता था. लाल कार्ड, पीला कार्ड, जाति, आय, आवासीय प्रमाणपत्र, बुढ़ापा पैंशन, विधवा पेंशन, पारिवारिक कामों के अलावा मनरेगा के काम भी रमरतिया को ही देखने पड़ते थे.

वहीं जब बाबू सूबेदार सिंह मुखिया थे, तब दलितों, पिछड़ों को सीधे उन से मिल लेने की हिम्मत नहीं होती थी. वे उन के दरवाजे पर घंटों खड़े रहते थे. जब कोई बिचौलिया आता, तो उन का काम करवाता, नहीं तो वे कईकई दिनों तक सिर्फ चक्कर लगाया करते थे.

लेकिन रमरतिया के मुखिया बनते ही पंचायत की सभी जातियों का मानसम्मान बराबर हो गया था. सब का काम बिना मुश्किल के होता था.

रमरतिया जिला परिषद की बैठक में भी जाती, तो वहां सीधे कलक्टर साहब, ब्लौक प्रमुख, बीडीओ से अपनी पंचायत की समस्याओं पर बात करती. इंदिरा आवास, आंगनबाड़ी, पोषाहार, स्कूलों के मिड डे मील वगैरह के मामलों में वह अफसरों का ध्यान खींचती थी. जबकि बाबू साहब के समय में पता ही नहीं चलता था कि गांव वालों के लिए कौनकौन सी योजनाएं आई हैं.

मुखिया, पंचायत सेवक, प्रखंड विकास पदाधिकारी की मिलीभगत से सभी योजनाएं कागजों में सिमट कर रह जाती थीं.

योजनाओं की रकम अफसर डकार जाते थे. पूरे जिले के सभी महकमों में काफी भ्रष्टाचार था. दबंगों के डर से लोग डरेसहमे रहते थे. अगर कोई शिकायत करता भी था, तो दबंगों की शह पर बिचौलिए ही उस की जम कर पिटाई कर देते थे.

ऐसी बात नहीं थी कि रमरतिया के मुखिया बन जाने के बाद से भ्रष्टाचार खत्म हो गया था. फर्क यही था कि योजनाएं अब अमल में लाई जा रही थीं. घूस लेने के बाद बाबू व अफसर लोगों का काम करते थे. यही वजह थी कि हर गांव में नया प्राइमरी स्कूल, उपस्वास्थ्य केंद्र, राशन की दुकान, आंगनबाड़ी केंद्र वगैरह खुल गए थे.

औरतों और किसानों को माली तौर पर मजबूत बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह भी बनाए गए थे. मछली पालन, बकरी पालन, सूअर पालन, भेड़ पालन, मुरगी पालन, डेरी फार्म वगैरह खुल गए थे.

इन सब कामों को करने का सेहरा मुखिया रमरतिया के सिर पर बंधता था. जब रमरतिया को सूचना मिलती थी कि फलां गांव के किसी किसान की हालत अच्छी नहीं है. वह माली तंगी और बीमारी से जू?ा रहा है, तो वह तुरंत सारे काम छोड़ कर वहां पहुंच कर उस की समस्या दूर करती थी.

बाबू सूबेदार सिंह और मुंशी सुरेंद्र लाल को कुरसी पर बैठे हुए कुछ ही समय बीता होगा कि रमरतिया से मिलने के लिए गांव वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी.

?ोंपड़ी के आगे एक मेजकुरसी लगी हुई थी, जहां रमरतिया की 14 साला बेटी भगजोगनी कुरसी पर बैठी हुई थी. वह गांव वालों की अर्जी को ले कर सहेजती हुई मेज के ऊपर रखती जाती. वह मैट्रिक के इम्तिहान देने के बाद खाली समय में अपनी मां के कामों में हाथ बंटाती थी. भगजोगनी से एक साल छोटा भाई दीपू 9वीं जमात में पढ़ता था.

इसी बीच रमरतिया एक थाली में बिसकुट और चाय से भरे 2 गिलास ले कर बाबू साहब के सामने आई. साथ ही, उस ने थाली को बाबू साहब के सामने रखी मेज पर रख दिया.

थाली देखते ही वे दोनों एकसाथ यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि बिना नहाए वे एक दाना भी मुंह में डालना हराम सम?ाते हैं. उन के पीछेपीछे भगेलुआ भी कुछ दूर तक छोड़ने के लिए गया.

रमरतिया की बढ़ती लोकप्रियता से बाबू सूबेदार सिंह की छाती पर सांप लोट रहा था. उस की ?ोंपड़ी के सामने उमड़ी गांव वालों की भीड़ ने उन का चैन छीन लिया था.

गांवों में बोरिंग करने पर सरकार ने रोक लगा दी थी, ताकि धरती के नीचे पानी का लैवल और नीचे न जा सके. तब रमरतिया ने गांव के पास से गुजरने वाली गंडक नहर में सरकारी मोटर पंप का इंतजाम करवाया. पंप से ले कर खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए नालियां बनवाईं. साथ ही, ऊंचे उठे हुए खेतों में सिंचाई का पानी पहुंचाने के लिए हजारों मीटर लंबे प्लास्टिक, कपड़े वगैरह के पाइप का जुगाड़ करवाया.

इतना ही नहीं, गंडक नहर से खेतों की नालियों को जोड़ा गया. सिंचाई की अच्छी व्यवस्था होने से लहलादपुर ग्राम पंचायत की फसलें लहलहा उठीं.

प्रखंड स्तरीय बैठक में बीडीओ और मुखिया प्रमुख ने रमरतिया की इस कोशिश की जोरदार ढंग से तारीफ की. दूसरी पंचायतों में भी यह सुविधा बहाल की गई, ताकि सभी किसान खुशहाल हो सकें.

रमरतिया धीरेधीरे इतनी लोकप्रिय हो गई कि गांवों में होने वाले शादीब्याह में उसे लोग बुलाना नहीं भूलते थे. बाबू सूबेदार सिंह जिस समारोह में पहुंचते, वहां पहले से बैठी हुई रमरतिया मिल जाती. उस की मौजूदगी से उन्हें ऐसा लगता कि जैसे उन के सामने दुम हिलाने वाले लोग आज खुद सिरमौर बन गए हैं.

राज्य सरकार ने मुखिया के जरीए सभी पंचायतों में टीचरों की बहाली का ऐलान किया था. इस ऐलान के बाद से गांवों के बेरोजगारों में नौकरी के लिए होड़ मच गई थी.

सभी के परिवार वाले पंचायत के मुखिया से अपनेअपने बेटेबेटी की नौकरी लगाने की सिफारिश में जुट गए थे. बाबू सूबेदार सिंह भी इसी सिलसिले में भगेलुआ के यहां पहुंचे थे, लेकिन भीड़ को देख कर वे कुछ बोल नहीं सके थे.

अब पीछेपीछे चल रहे भगेलुआ से उन्होंने कहा, ‘‘सुना है कि मेरी हवेली के पीछे वाले स्कूल में टीचर की बहाली है. मैं अपने बेटे प्रीतम सिंह को वहां रखवाना चाहता हूं.’’

भगेलुआ के चेहरे का रंग उड़ गया. वह कुछ बोल नहीं सका, क्योंकि उस स्कूल के लिए 25 बेरोजगारों की अर्जी पहले ही पड़ चुकी थी. ऊपर से बाबू साहब अपने लड़के को अलग से थोप रहे थे.

भगेलुआ को गुमसुम देख कर बाबू साहब ने उसे टोका, ‘‘रंग क्यों उड़ गया भगेलुआ? कुछ तो बोलो?’’

‘‘नहीं मालिक, रंग क्यों उड़ेगा. इस के बारे में रमरतिया से पूछना होगा.’’

‘‘अरे, रमरतिया तेरी पत्नी है. तेरी बात नहीं मानेगी, तो फिर किस की

बात मानेगी. एक लाख रुपए ले लो और चुपचाप प्रीतम सिंह की बहाली करा दो. कोई कानोंकान इस बात को नहीं जान सकेगा,’’ सूबेदार सिंह ने रुपए की गरमी का एहसास भगेलुआ को कराना चाहा.

‘‘नहीं… नहीं… आप से हम रुपयापैसा नहीं लेंगे.’’

‘‘तो ठीक है, तुम ही बताओ कि क्या लोगे? उसे हम पूरा करेंगे. बेटे की जिंदगी का सवाल है. आजकल ढूंढ़ने से भगवान तो मिल जाएंगे, पर सरकारी नौकरी नहीं.’’

‘‘मालिक, अगर कुछ देना ही है, तो तार गाछ वाली जमीन दे दीजिए. वह हमारे पुरखों की जमीन है. आप की मेहरबानी हो, तो उस जमीन पर हम घर बनाएंगे,’’ भगेलुआ ने हिम्मत जुटा कर अपने मन की बात रख दी.

‘‘क्या बात करते हो भगेलुआ, वह बैनामा जमीन है, वह भी बिलकुल मेन रोड के किनारे. उस की कीमत आज के भाव से 10 लाख रुपए से ज्यादा है. मैं उसे कैसे दे सकता हूं.

‘‘उस जमीन को मैं ने तेरे बाप से 3 हजार रुपए में खरीदा था. तुम इस तरह की सौदेबाजी पर उतर आओगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

‘‘मैं तो रमरतिया की ईमानदारी का किस्सा सुन कर आ गया था. लेकिन यहां आने पर हकीकत कुछ और ही दिखाई पड़ रही है. भोलीभाली जनता का हक मार कर तुम लोग जल्दी अमीर बनने की जुगत में हो. इस की शिकायत मैं डीसी साहब से करूंगा. तुम लोगों का कच्चा चिट्ठा खोल के रख दूंगा,’’ बाबू सूबेदार सिंह गुस्से में फट पड़े.

‘‘नाराज हो गए मालिक. सच तो आखिर सच ही होता है. थोड़ी देर पहले आप ही ने तो कहा था कि जमाना बदल गया है. इस का मतलब हुआ कि पहले से शोषित, पीडि़त जनता अब जागरूक हो गई है. उसे अपने हक की जानकारी हो गई है.

‘‘आज की जनता किसी तरह का ठोस कदम उठाने से पहले सोचती है. मेरे बाप ने अपना परिवार पालने के लिए खानदानी जमीन को बेच दिया था. आप ने बैनामा सिर्फ मेरे बाप से कराया है, जबकि वे 4 भाई हैं. 3 छोटे भाइयों से बैनामा कराना अभी बाकी है.

‘‘उस खेत पर उन का भी हक है. आप किसी वकील से पूछ सकते हैं कि दादा के मरने के बाद उन के 4 बेटों का हिस्सा उस जमीन में होगा या नहीं…’’

‘‘चुप रहो भगेलुआ, बहुत हो गया…’’ बाबू सूबेदार सिंह के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई, तो गुस्से

में वे बोल पड़े, ‘‘मेरी जमीन पर तेरे चाचा लोग दावा ठोंकेंगे. एकएक को देख लूंगा.

‘‘चाहे दीवानी लड़ो या फौजदारी, जीत सिर्फ मेरी होगी, मेरी. तुम्हारा यह छल और बल बाबू सूबेदार सिंह के सामने चलने वाला नहीं है.’’

‘‘छल और बल. हमारे पास कहां से आ गया मालिक. यह हथियार तो आप की हवेली का है. दलितों, पीडि़तों को तो इंसाफ पर भरोसा है. हम अपने हक के लिए लड़ना जानते हैं. नाइंसाफी और जोरजुल्म जब छप्पर पर चढ़ कर बोलने लगता है, तो हम गरीबों का एकमात्र लाठी इंकलाब बनता है.

‘‘इस भरम में नहीं रहना कि जीत केवल हवेली की होगी. जो ?ाक कर चलना जानते हैं, वे सिर उठा कर दूसरों का सिर कलम करना भी जानते हैं…

यह हम ने आप जैसों से ही सीखा है,’’ भगेलुआ बोला.

‘‘चलिए मुंशीजी, चलिए. भगेलुआ पगला गया है…’’ हाथी के पैर के नीचे कुचले हुए सांप की तरह रेंगते हुए बाबू सूबेदार सिंह वहां से भागे.

भगेलुआ के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई थी. जिंदगी के जंगेमैदान में हमेशा मुंह की खाने वाला भगेलुआ आज जीत जो गया था. Hindi Family Story

Hindi Story: सही राह – कालू की दादागीरी

Hindi Story: मोहल्ले के लोग कालू उस्ताद के नाम से कांपते थे. कालू का जब मन होता था, वह किसी की दुकान से कुछ भी उठा लेता था. दुकानदारों के मन में डर था. कौन जाए कालू उस्ताद से भिड़ने, कहीं कुछ चला दे तो जान चुकानी पड़ेगी. इसलिए कोई उस का विरोध नहीं करता था.

लेकिन ऐसा कितने दिनों तक चलता. एक दिन कालू एक सब्जी वाले से जबरदस्ती पैसे हड़प रहा था. सब्जी वाला आनाकानी कर रहा था. इस से कालू चिढ़ गया और उस की पिटाई करने लगा.

‘‘मुझ से उलझता है. ठहर, तुझे अभी ठीक करता हूं,’’ कह कर वह उस पर पिल पड़ा.

मगर, तभी किसी के मजबूत हाथों ने उसे रोक लिया.

कालू ने मुड़ कर देखा, सामने मेजर अंकल थे. उन्होंने पूछा, ‘‘क्यों पीट रहे हो बेचारे को?’’

मेजर अंकल हालांकि उम्र में 50 से ज्यादा ही थे, लेकिन अब भी वे काफी ताकतवर थे. उन की आवाज में रोब था.

कालू के हाथ थम गए. वह वहां से जाने को हुआ. मेजर अंकल बोलने लगे, ‘‘कमजोरों को मारने में कोई महानता नहीं है. हिम्मत है, तो देश के दुश्मनों से लड़ो…’’

आसपास के लोगों का जमाव बढ़ने लगा. सभी को हैरानी हो रही थी कि आखिर मेजर अंकल क्यों कालू जैसे खतरनाक आदमी से उलझ गए. कालू उस समय तो आंखें तरेरते हुए वहां से चला गया. लोगों ने मेजर अंकल को समझाया कि वे सावधान रहें, कहीं कालू उन से बदला लेने न आ जाए.

उस रात कालू ठीक से सो न पाया. रहरह कर उस के कानों में मेजर अंकल के शब्द गूंज रहे थे. वह सुबह ही उठा और उन के घर की ओर चल पड़ा.

मेजर अंकल उस समय बगीचे की सफाई कर रहे थे. उन को इस शहर में आए अभी महीनाभर ही हुआ था. वे अकेले ही रहते थे.

पहले तो वे कालू को देख कर चौंके, फिर सामान्य हो कर पूछा, ‘‘क्या मुझे मारने आए हो?’’

कालू बुत बना खड़ा रहा. नजरें नीचे करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं, कुछ बातें करनी हैं.’’

कालू को खुद हैरानी हो रही थी कि वह मेजर अंकल के सामने बदल कैसे गया. दोनों में बातचीत होने लगी.

‘‘घर के लोग कहां रहते हैं?’’

कालू के इस सवाल को सुनते ही मेजर अंकल फफक पड़े. वे बोले कि उन का बेटा सीमा पर हुई गोलाबारी में शहीद हो गया और सालभर पहले एक कार हादसे में घर के बाकी सदस्य मारे गए. पर उन्हें अपने बेटे की मौत पर कभी अफसोस नहीं हुआ, बल्कि उस पर गर्व है.

मेजर अंकल ने जब उसे फौजियों के बारे में बताया, तो कालू की जिज्ञासा बढ़ गई. उस ने मेजर अंकल से पूछा, ‘‘क्या मैं भी फौज में भरती हो सकता हूं?

‘‘हांहां, तुम बहादुर तो हो ही. दुश्मनों से लड़ने के लिए तुम जैसों की ही जरूरत है,’’ मेजर अंकल बोले.

कालू का सपना जल्द ही पूरा हो गया. सेना में उस का चयन हो गया.

उस की ट्रेनिंग कई जगहों पर हुई और सभी में उस का प्रदर्शन अच्छा रहा. पहले तो वह मेजर अंकल को हर हफ्ते चिट्ठी लिखता था, लेकिन बाद में यह सिलसिला भी खत्म हो गया. सालभर से वह अपने महल्ले में नहीं आया था.

सीमा पर घुसपैठियों के अचानक हमले से देश पर मुसीबत आ पड़ी. ऐसे में कई जांबाज फौजियों का चयन हुआ, जो कि घुसपैठियों को मार गिराएं. उन में कालू को भी शामिल किया गया.

सीमा पर खराब मौसम के चलते भारतीय जवानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था, पर उन के हौसले बुलंद थे. कालू के दल ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर एक चौकी पर अपना कब्जा जमा लिया. पर रात के अंधेरे में दुश्मनों ने उन पर फिर हमला किया.

उस के बाद से इस दल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. टीवी, रेडियो, समाचारपत्रों वगैरह में अकसर कालू और उस के साथियों की तसवीरें छपतीं कि ये लोग लापता हो गए हैं और शायद दुश्मनों की गिरफ्त में हैं.

महल्ले वालों ने जब कालू की तसवीरें देखीं, तो वे उसे पहचान गए.

‘‘अरे, ये तो अपना कालू है,’’ उस का पुराना दोस्त असलम बोला.

‘‘हां, पता नहीं बेचारा किस हाल में होगा?’’ बूढ़ी दादी सिर पर हाथ रखते हुए बोलीं. मेजर अंकल भी कालू के लिए परेशान थे.

जब हफ्तेभर तक उन लोगों की कोई खबर नहीं मिली, तो उन्हें मरा मान लिया गया. महल्ले वालों को बहुत दुख हुआ.

10वें दिन एक पहाड़ी चौकी पर एक फौजी बेहोशी की हालत में पाया गया. भारतीय जवान उसे पहचान गए, वह कालू ही था. उसे तुरंत अस्पताल भेजा गया.

कालू जैसे ही होश में आया, उस ने अफसरों को बताया कि वह इतने दिनों तक दुश्मनों की गिरफ्त में रहा. उस के अन्य साथी तो बच नहीं पाए, पर वह कैसे भी कर, उन के कब्जे से बच निकला और यहां तक आ गया.

कालू ने दुश्मनों के हमले की कई जानकारियां भी दीं. इस से भारतीय सेना सतर्क हो गई और उन्होंने घुसपैठियों की साजिश को नाकाम कर दिया.

कालू के जिंदा होने की सूचना अगले दिन अखबारों, टीवी में छा गई. कालू के चलते ही सेना ने कई खास ठिकानों पर फिर से अपना कब्जा कर लिया.

कालू जब पूरी तरह से ठीक हुआ, तो वह अपने महल्ले में सब से मिलने आया. पूरा महल्ला फूलमाला लिए उस के स्वागत को तैयार था.

पर कालू की नजरें मेजर अंकल को खोज रही थीं. जब वे उस से मिलने आए, तो वह उन के पैरों पर गिर पड़ा. वह बोला, ‘‘अगर उस दिन आप ने मुझे सही राह न दिखाई होती, तो अब तक मैं भटकता ही रहता. अब मैं अपने साथियों को भी देशसेवा के लिए प्रेरित करूंगा.’’ मेजर अंकल की आंखें नम हो गईं. उन्होंने उसे गले से लगा लिया. Hindi Story

Story In Hindi: यादगार इनाम – विकास ने कैसे की अनजान औरत की मदद

Story In Hindi: रेलवे स्टेशन पर काफी गहमागहमी थी. दीपक अपनी मोटरसाइकिल की बुकिंग के लिए लोकल रेलवे स्टेशन गया था. वह लाल रंग की टीशर्ट पहने हुए था. स्टेशन के लाउडस्पीकर पर एक गाड़ी के आने का ऐलान हो रहा था. बुकिंग क्लर्क उसे रुकने के लिए कह कर माल उतरवाने के लिए प्लेटफार्म पर चला गया.

दीपक के पास कुछ काम तो था नहीं, इसलिए वह प्लेटफार्म पर आ कर ताकझांक करने लगा. तभी वहां से एक खूबसूरत औरत गुजरी. शायद वह किसी को ढूंढ़ रही थी. उस ने एक बार दीपक की तरफ देखा और आगे निकल गई.

रेलवे स्टेशन पर भीड़ कम होने लगी थी. थोड़ी ही देर में वही औरत दीपक की तरफ देखती हुई वापस जा रही थी. अचानक ही वह पलटी और उस ने उदास लहजे में दीपक से पूछा, ‘‘क्या यहां कुली नहीं मिलेगा?’’

दीपक को बड़ा धक्का लगा. कहीं वह उसे लाल टीशर्ट के चलते कुली तो नहीं समझ रही थी.

दीपक ने अनमने मन से कहा, ‘‘होगा जरूर. क्यों, मिला नहीं?’’

‘‘नहीं,’’ उस औरत ने उसे बड़ी उम्मीद भरी निगाहों से देख कर कहा.

‘‘ऐसा कीजिए, रेलवे स्टेशन के बाहर कई रिकशे वाले हैं. रिकशा तो आप करेंगी ही. रिकशे वाले से कहिएगा, वह कुली का भी काम कर देगा,’’ दीपक ने सुझाव दिया.

वह औरत बोली, ‘‘रिकशे वाला तो तैयार है, लेकिन वह कहता है कि रेलवे स्टेशन पर नहीं जा सकता. कुली आफत मचा देंगे. हां, गेट के बाहर आ कर वह सब करने को तैयार है.’’

‘‘यह तो सच है,’’ दीपक ने कहा.

वह औरत अपने गांव से तकरीबन 35-35 किलो गेहूं व चावल के 2 बोरे  लाई थी.

दीपक ने पूछा, ‘‘आप के साथ कोई नहीं है?’’

‘‘11 साल का एक बच्चा है,’’ उस ने कहा.

तभी वहां एक नौजवान कुली आ गया. दीपक ने उस से पूछा, ‘‘ये 2 बोरे गेट के बाहर तक पहुंचा दोगे?’’

‘‘सौ रुपए लगेंगे,’’ उस कुली ने अकड़ कर कहा. वह औरत मन मसोस कर रह गई.

‘‘कुछ रेट तो होता है कि ऐसे ही जो दिल में आए वही बोल देते हो?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘रेट तो यही है,’’ कह कर वह कुली चलता बना.

‘चलो, आज इन की मदद कर के कुछ अच्छा काम किया जाए,’ दीपक ने मन ही मन सोचा.

दीपक ने उस औरत से पूछा, ‘‘आप का सामान गेट के बाहर चला जाए, तो फिर आप का काम बन जाएगा न?’’

उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

दीपक ने फिर पूछा, ‘‘सामान कहां है?’’

‘‘वहां,’’ उस ने इशारा किया.

वहां एक छोटा बच्चा बोरों की रखवाली कर रहा था. दीपक ने उस औरत से पूछा, ‘‘आप एक काम कर सकती हैं?’’

‘‘क्या?’’ उस ने पूछा.

दीपक ने कहा, ‘‘आप को एक तरफ से बोरा पकड़ना होगा.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं…’’ इतना कह कर उस की आंखों में चमक आ गई.

दीपक ने औरत की मदद से 2 बारी में वे दोनों बोरे बाहर रखवा दिए. उस की लाल झकाझक टीशर्ट ऊपर सरक गई थी. हाथ गंदे हो गए थे. गरमी के दिन थे, तो थोड़ी पसीना भी आ गया था. बाल उलटेपुलटे हो गए थे.

दीपक जल्दी से वहां से निबटना चाहता था कि कोई परिचित न मिल जाए और सवालों की ?ाड़ी न लगा दे.

तभी वह औरत दीपक के पास आई, लेकिन दीपक ने उस की तरफ नहीं देखा.

वह बोली, ‘‘शुक्रिया. आप बहुत अच्छे आदमी हैं. आप जैसे लोग कम होते हैं,’’ इतना कह कर वह चली गई.

उस औरत के ये शब्द दीपक के कानों से होते हुए सारी बाधाओं को पार कर सीधे उस के मन में जा कर घुल गए. उस ने मुड़ कर उस औरत को देखने की कोशिश की, लेकिन वह चली गई थी.

दीपक को एक छोटे से काम का उसे कितना बड़ा और यादगार इनाम मिला था. Story In Hindi

Best Hindi Kahani: भटकती जवानी – कविता का अकेलापन

Best Hindi Kahani: कविता को लगा कि जैसे उस के दाएं हाथ पर कुछ रेंगने लगा है. इस के पहले भी उस के बगल में बैठे दर्शक का पैर 2 बार उस के बाएं घुटने से छू गया था. उस समय तो वह इस ओर कोई ध्यान दिए बिना बड़े ध्यान से परदे पर फिल्म देखती रही, लेकिन अब उसे समझाते देर नहीं लगी कि यह बारबार का छू जाना अचानक नहीं है.

सीट पर बैठा दर्शक शायद कविता की शह पाते ही जोश से भर उठा. उस ने अंधेरे में कविता की ओर देखा, फिर उस की ओर झाकते हुए अपना बायां हाथ उठा कर उस के कंधे पर टिका दिया.

कविता एक अजीब सी सिहरन से भर उठी, जैसे उस पर नशा चढ़ने लगा हो.

कविता शादीशुदा थी. अमीर बाप की बेटी होने के बावजूद उस की शादी के पहले की जिंदगी कीचड़ में खिले कमल की तरह साफसुथरी थी. मांबाप, भाईबहन, यहां तक कि उस की भाभियां भी बड़े मौडर्न खयालों की थीं और क्लब वगैरह में जाती थीं, लेकिन कविता को यह सब कभी अच्छा नहीं लगा.

कविता घर से बहुत कम निकलती थी. पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी होने की वजह से उस का स्कूलकालेज जाना एक मजबूरी थी.

यूनिवर्सिटी का माहौल उसे कभी रास नहीं आया, इसलिए और आगे पढ़ने की इच्छा होते हुए भी उस ने बीए करने के बाद कालेज छोड़ दिया और सारा दिन घर पर ही रहने लगी. कुछ दिन बाद मांबाप ने उस की शादी कर दी थी.

सालभर तक कविता की शादीशुदा जिंदगी बहुत ही अच्छी बीती, लेकिन उस के बाद उस में बदलाव आना शुरू होने लगा.

कविता खुद भी अपने अंदर होने वाले इस बदलाव से परेशान थी. कहां तो वह स्कूलकालेज के दोस्तोंसहेलियों से भी बहुत कम बोलती थी, कहां अब शादी के बाद अचानक उस की कामना इतनी प्रबल हो उठी कि हर समय उस का सारा बदन टीसता रहता था.

कुछ दिन तक तो कविता काफी कोशिशों के बाद अपने पर काबू किए रही, लेकिन आखिरकार वह बेबस हो गई. तब उस ने खुद ही आगे बढ़ कर पड़ोस के एक नौजवान से जानपहचान बढ़ा ली.

कविता ने सोचा था कि उस का पड़ोसी उस की इच्छा समझ जाएगा, लेकिन वह इस मामले में एकदम अनाड़ी था. जब कविता की बरदाश्त के बाहर होने लगा, तो टूट कर उस ने ही एक दिन पति की गैरमौजूदगी में पड़ोसी को घर बुला कर अपनी देह परोस दी.

उस दिन कविता को एक अजीब सा सुख मिला था. इतना सुख, जितना उसे सुहागरात में अपने पति से भी नहीं मिल पाया था.

इस सुख को बारबार भोगने की ललक में कविता अकसर उस नौजवान से मिलने लगी. लेकिन उस के मन की प्यास खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही थी. जल्दी ही वह किसी दूसरे मर्द की बांहों में बंधने के लिए बेचैन हो उठी.

इस के बाद तो जैसे यही सिलसिला बन गया. कविता अकसर किसी नौजवान से संबंध बनाती. कुछ दिन उस का संगसाथ उसे बड़ा अच्छा लगता, लेकिन जल्दी ही उकता कर वह कोई नया साथी बनाने के लिए छटपटाने लगती.

एक दिन कविता के पति विवेक को इस सब की जानकारी मिली, तो उसे यकीन ही नहीं हुआ. लेकिन महल्ले के आतेजाते नौजवानों की मजाक भरी नजरें जब बारबार छेदने लगीं, तो उसे बरदाश्त के बाहर हो गया.

एक दिन तिलमिला कर उस ने कविता से इस बारे में पूछा, तो वह रोने लगी. लेकिन उस ने कुछ भी नहीं छिपाया और अपने मन की सारी बात पति को बता दी.

यह सुन कर पति विवेक को गहरा धक्का तो लगा, लेकिन साथ ही उसे यह भी भरोसा था कि कविता धंधे वाली नहीं है.

विवेक ने सब्र से काम लिया. कविता को प्यार से समझबुझ कर वह सही रास्ते पर लाने की कोशिश करने लगा.

कविता ने भी विवेक से वादा किया कि अब वह कभी किसी से नहीं मिलेगी, लेकिन वह तो जैसे आदत से मजबूर थी और अपने तन की भूख मिटाने के लिए वह फिर दूसरे मर्दों की बांहों में खेलने लगती थी.

एक दिन विवेक ने उस से साफसाफ कह दिया, ‘‘अब या तो तुम अपने लफंगे साथियों से संबंध तोड़ लो या मुझे छोड़ दो…’’

कविता को फैसला करने में ज्यादा देर नहीं लगी. उस ने विवेक को ही छोड़ देना बेहतर समझा. वह उसी दिन अपना सामान ले कर उस घर से चली गई और अलग रहने लगी.

कविता ने ढेर सारे दोस्त बना लिए थे. अब जब जिस के साथ मन होता, वह अपनी जिस्मानी प्यास बुझ लेती थी.

उस दिन सिनेमाघर में फिल्म देखते समय बगल वाली सीट पर बैठे दर्शक की हरकतों ने कविता को बुरी तरह से जोश में ला दिया था. आखिरकार उस से रहा नहीं गया, तो वह कसमसाने लगी.

अचानक बिजली चली गई. कविता ने फुसफुसा कर कहा, ‘‘कहीं और चलें क्या?’’

‘‘बताओ कहां चलेंगे?’’ बगल की सीट पर बैठे दर्शक ने घुप अंधेरे का फायदा उठाया और झक कर अचानक कविता के जलते होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

कविता के जिस्म पर हाथ फेरते हुए उस दर्शक ने पूछा, ‘‘कहां चलोगी? अपने घर या मेरे?’’

‘‘जहां चाहो?’’ वह फुसफुसाते हुए बोली.

इस बीच दोनों की सांसों की धड़कनें तेज हो गई थीं, इसलिए फिल्म देखना उन्हें गवारा नहीं लगा. दोनों उस अंधेरे में ही एकदूसरे का हाथ थामे सिनेमाघर से बाहर निकल आए.

उस समय सारे शहर की बिजली चली गई थी. कविता एक रिकशा कर के अपने घर की ओर चल पड़ी और बगल में बैठा उस का अनजान साथी रास्तेभर अंधेरे में उस के जिस्म से छेड़छाड़ कर रहा था.

घर पहुंच कर कविता ने ताला खोल कर जैसे ही अंदर कदम रखा, वैसे ही बिजली आ गई, तो वह एकदम चौंक पड़ी, क्योंकि सिनेमाघर से आया शख्स कोई और नहीं, बल्कि उस का अपना पति विवेक था.

विवेक के साथ रहते समय हरदम किसी पराए मर्द की बांहों में बंधने के लिए तड़पती रहने वाली कविता को उस समय वह भी गैरमर्द जैसा ही लगा.

वह उस से लिपट कर फुसफुसा उठी, ‘‘तुम एकाएक शांत कैसे हो गए जी? तुम्हारे लिए तो मैं ने फिल्म छोड़ दी… आओ, अब जो बाकी काम करना है, उसे भी कर लो…’’

कविता की बात सुन कर विवेक को ऐसा लगा, जैसे वह अपनी ही नजरों में गिर गया हो और अब उसे वहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था. Best Hindi Kahani

Hindi Family Story: पोस्टमार्टम – जल्लाद डाक्टर

Hindi Family Story: डाक्टर निकुंज अपनी कुरसी पर बैठे थे. वे एक विदेशी पत्रिका देखने में मग्न थे. तभी ‘चीरघर’ का जमादार काशीराम ‘नमस्ते साहब’ कह कर उन के पास आ खड़ा हुआ.

डाक्टर साहब ने सिर हिला कर उसके नमस्ते का जवाब दिया और बगैर नजर उठाए ही पूछा, ‘‘कोई तगड़ा पैसे वाला मरा है काशी?’’

काशीराम पान मसाले की पीक को गटकते हुए बोला, ‘‘कहां साहब, लगता है कि आज का दिन तो कल से भी ज्यादा खराब जाएगा.’’

‘‘तो फिर?’’ डाक्टर ने तीखी नजरों से काशीराम को देखा.

‘‘वही साहब, कल वाली लाशें… बुड्ढा मगज खाए जा रहा है मेरा.’’

‘‘कुछ ढीली की मुट्ठी उस ने?’’

‘‘साहब, वह वाकई बहुत गरीब है. आदमी बहुत लाचारी में खुदकुशी करता है. उस ने फूल सी बेटियों को जहर देने से पहले अपने दिल को कितना मजबूत किया होगा.’’

‘‘बड़ी सिफारिश कर रहा है उस की. कहीं अकेलेअकेले तो जेब नहीं गरम कर ली?’’

‘‘अपनी कसम साहब, जो मैं ने उस की एक बीड़ी भी पी हो. उलटे जब से अखबार से उस का सारा हाल जाना है, हर पल ‘हाय’ लगने का डर लगता है.’’

होंठों पर मतलबी मुसकान ला कर डाक्टर साहब बोले, ‘‘कैसा सिर चढ़ कर बोल रहा है जाति प्रेम.’’

‘‘जाति? नहीं साहब, वे तो ऊंची जाति के लोग हैं.’’

‘‘दुनिया में सिर्फ 2 ही जातियां होती हैं बेवकूफ, अमीर और गरीब. इसीलिए तुम्हारा दिल पिघल रहा है… लेकिन, मैं तुम्हारी भी सिफारिश नहीं मानूंगा.

‘‘मैं ने आज तक ‘सुविधा शुल्क’ वसूल किए बिना कोई भी पोस्टमार्टम नहीं किया और न ही आज करूंगा, चाहे मुरदा हफ्तेभर वैसे ही पड़ा रहे.’’

‘‘देखता हूं साहब, फिर बात कर के… बुड्ढा बाहर ही खड़ा है.’’

काशीराम बाहर निकल आया. बरामदे के गमले से सट कर खड़े धरम सिंह ने उस की ओर आशाभरी नजरों से देखा, तो वह न में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘डाक्टर नहीं मानता ठाकुर. कहता है, बिना पैसा लिए उस ने कभी पोस्टमार्टम नहीं किया, न आगे करेगा.’’

‘‘अगर ‘पैसे’ की कसम ही खाए हैं, तो भैया बात कर के देखो, सौ 2 सौ…’’

‘‘सौ 2 सौ… क्या बात करते हो ठाकुर? 5 सौ रुपए का रोज धुआं उड़ाता है. हजार तो कम से कम लेता है… तुम्हारी तो 3 लाशें हैं.’’

धरम सिंह आह भर कर बोला, ‘‘ठीक है, तुम एक बार पूछ कर आओ कि कितना लेगा. खड़ी फसल बेच दूंगा आढ़ती को. मर नहीं जाऊंगा.

‘‘अरे, सरकार ने जमींदारी छीन ली तब नहीं मरा, फिर सीलिंग लगा दी तब नहीं मरा, जमुना मैया घरखेत लील गईं तब नहीं मरा, बुढ़ापे में दिल के टुकड़े चले गए तब भी मौत नहीं आई, तो अब फसल जाने से क्या मौत आ जाएगी?’’

‘‘मेरी चलती तो तुम पर एक रुपया न लगने देता. पर मजबूर हूं… क्योंकि आज के साहबों में दिल नहीं…’’

‘‘नहीं भाई, मैं तुम्हें कहां दोष दे रहा हूं, तुम जा कर पूछ तो आओ.’’

काशीराम चुपचाप डाक्टर के कमरे में घुस गया.

डाक्टर ने उसे देख कर पूछा, ‘‘बुड्ढा कितने पर राजी हुआ?’’

‘‘हजार से ज्यादा नहीं निकाला जा सकेगा साहब… वह भी खड़ी फसल औनेपौने में बेचेगा, तब जा कर पैसे का जुगाड़ होगा.’’

‘‘ठीक है, भागते भूत की लंगोटी भली… तुम्हारा कमीशन अलग होगा.’’

‘‘आप ही रखना साहब. उस का पैसा मु?ो तो हजम नहीं होगा.’’

‘‘बेवकूफ कहीं का, नहीं होगा… यह तो दुनिया का नियम है कि एक मरता है, तो दूसरा अपनी जेब भरता है… जाओ, जा कर देखो, शायद कोई पैसे वाला पोस्टमार्टम के लिए आया हो.’’

काशीराम से एक हजार की बात सुन कर धरम सिंह थके कदमों से अपने आढ़ती के यहां चल पड़ा.

कुछ देर बाद डाक्टर निकुंज के कमरे के बाहर एक बड़ीबड़ी मूंछों वाला आदमी आया और उस ने अंदर आने की इजाजत मांगी.

डाक्टर साहब से अंदर आने का संकेत पाते ही वह अंदर घुस गया.

‘‘बैठिए,’’ डाक्टर साहब ने उस के हावभाव को देखते हुए सामने की कुरसी की ओर इशारा किया.

वह आदमी कुरसी पर बैठ गया, पर कुछ बोल न सका. डाक्टर साहब ने उसे पहले तो नजरभर टटोला, फिर कहा, ‘‘कहिए…’’

‘‘साहब, पोस्टमार्टम के लिए अभी एक लाश आएगी.’’

‘‘आप… किस पक्ष से हैं?’’

‘‘बचाव पक्ष से.’’

‘‘क्या चाहते हैं?’’

‘‘राइफल की गोली बंदूक के छर्रों में बदल जाए.’’

‘‘जानते हैं आप कि यह कितना खतरनाक काम है?’’

‘‘खतरनाक काम की ही तो कीमत है,’’ उस आदमी ने जेब से 10 हजार की 2 गड्डियां निकालीं.

‘‘नहीं, 50 से कम नहीं.’’

‘‘तब लाश पर एक ही फायर दिखना चाहिए, जबकि घुटने, हाथ और छाती पर कुल 3 घाव हैं.’’

‘‘ठीक है. काम हो जाएगा.’’

उस आदमी ने 40 हजार रुपए गिन कर डाक्टर को दे दिए और मूंछों पर ताव देता हुआ बाहर निकल गया.

पोस्टमार्टम करते समय डाक्टर निकुंज और काशीराम की जेबों में जो गरमी थी, उस की वजह से उन दोनों के हाथ बड़ी तेजी से चले, इसलिए चारों पोस्टमार्टम एक घंटे में ही निबट गए.

डाक्टर साहब बाकी बचे कामों को अपने जूनियर को सौंप कर अपनी गाड़ी की ओर चल दिए, क्योंकि आज उन के हाथ में बीवीबच्चों की फरमाइशें पूरी करने के लिए मुफ्त में मिला पैसा था.

बीवी के लिए स्लिपर, बेटी के लिए मोतियों का हार, बेटे के लिए कैमरा खरीद कर जब डाक्टर निकुंज अपने घर पहुंचे, तो वहां माली के अलावा कोई और न था.

माली ने बताया कि मेमसाहब आज देर से लौटेंगी और जिम्मी बाबा व बिन्नी बेटी अभी कालेज से नहीं आए.

डाक्टर निकुंज ने घड़ी देखी. दोनों के कालेज छूटे डेढ़ घंटा हो चुका था. कुछ देर सोचने के बाद डाक्टर ने माली से गाड़ी में रखे उपहारों को निकाल लाने के लिए कहा.

अचानक उन्हें एक विचार सूझ कि क्यों न जिन के उपहार हैं, उन के कमरे में रख दिए जाएं. उन की आंखों में शरारती बच्चों जैसी चमक उभरी और वे बड़ा वाला पैकेट उठा कर पत्नी की कपड़ों वाली अलमारी खोल बैठे.

पैकेट भीतर रख कर वे अभी अलमारी बंद कर ही रहे थे कि किसी कपड़े से फिसल कर एक परचा उन के पैरों के पास आ कर गिरा. उन्होंने वह  परचा उठा लिया. परचे पर लिखा था:

‘नंदिताजी,

‘कई घंटों से आप का फोन नंबर मिला रहा हूं, मिल ही नहीं रहा. हार कर एक पालतू आप के पास भेज रहा हूं. खबर यह है कि जिस के बारे में मैं ने आप को पहले भी बताया था, वे आज इसी शहर में रात में रुकने वाले हैं. एमएलए का टिकट उन्हीं के हाथों में है. बाकी आप खुद सम?ादार हैं.

‘श्यामलाल.’

‘‘तो अब नेतागीरी चमकाने के लिए इस दलाल की उंगलियों पर नाचा जा रहा है,’’ डाक्टर निकुंज निचला होंठ चबाते हुए बड़बड़ाए, फिर कदम घसीटते हुए बेटी के कमरे में घुस गए.

थोड़ी सी उलटपुलट के बाद ही उन के हाथ में छिपा कर रखा गया एक फोटो अलबम आ गया.

अलबम का पहला पन्ना देखते ही डाक्टर निकुंज के हाथ, जो सड़ीगली लाशों की चीरफाड़ करने में भी नहीं कांपते थे, अचानक ऐसे थक गए कि अलबम छूट कर जमीन पर जा गिरा.

अभी बेटे के कारनामों की जानकारी बाकी थी, इसलिए वे जिम्मी के कमरे में जा घुसे.

बेटे की रंगीनमिजाजी के बारे में तो वे कुछकुछ जानते थे. उन का लाड़ला नशीली चीजों का आदी हो चुका था.

अगले कई दिनों तक उस बंगले में घरेलू ?ागड़े होते रहे. आखिर में डाक्टर निकुंज की हार हुई. बीवीबच्चों ने साफ शब्दों में कह दिया कि उन लोगों को अपना भलाबुरा सोचने का हक है और इस में उन्हें किसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं है.

अकेले पड़ चुके डाक्टर निकुंज एक दिन जिंदगी से इतने निराश हो गए कि खुदकुशी करने पर उतर आए. पर ठीक समय पर उन्हें याद आ गई वह शपथ, जो उन्होंने डाक्टरी की उपाधि लेने के समय ली थी.

उन्होंने दोनों हाथों से मुंह छिपा लिया और फूटफूट कर रो पड़े. जब मन आंसुओं से धुल कर साफ हो गया, तब उन्होंने कागजकलम उठाई और लिखने लगे:

‘अभी तक मैं इस दुनिया की बेवकूफ भरी दौड़ में अंधों की तरह दौड़ता रहा, पर अब जिंदगी की सभी सचाइयां मेरे आगे खुल चुकी हैं.

‘नंदिता, तुम सुंदर शरीर की सीढ़ी के सहारे यकीनन सत्ता की सीढि़यां चढ़ जाओगी. बिन्नी, तुम भी आखिर अपनी मां की बेटी हो न. तुम भी इसी राह पर चल कर नाम कमा सकती हो.

‘जिम्मी बेटे, जिस की मांबहनें इतनी कमाऊ हों, वह चाहे हशीश के नशे में डूब कर मर जाए, चाहे ब्राउन शुगर के नशे में. ‘तुम तीनों अब मेरी ओर से आजाद हो. तुम जो चाहो करना, केवल मेरे सामने मत पड़ना, क्योंकि मैं खुदकुशी भले न कर सका, पर तुम लोगों का खून जरूर कर दूंगा.’

कागज मेज पर छोड़ कर डाक्टर निकुंज पैदल ही बाहर निकल गए. Hindi Family Story

Story In Hindi: सीवर का ढक्कन – जब बन गया नरक रास्ता

Story In Hindi: आज तीसरे दिन कर्फ्यू में 4 घंटे की छूट दी गई थी. इंस्पैक्टर राकेश अपनी पुलिस टीम के साथ हालात पर काबू पाने के लिए गश्त पर निकले हुए थे. रास्ते में आम लोगों से ज्यादा रैपिड ऐक्शन फोर्स के जवान नजर आ रहे थे. सड़कों के किनारे लगे अधजले, अधफटे बैनरपोस्टर दंगों की निशानदेही कर रहे थे.

अपनी गाड़ी से आगे बढ़ते हुए इंस्पैक्टर राकेश ने देखा कि एक सीवर का ढक्कन ऊपरनीचे हो रहा था. उन्होंने फौरन गाड़ी रुकवाई.

सीवर के करीब पहुंचने पर मालूम हुआ कि अंदर से कोई सीवर के ढक्कन को खोलने की कोशिश कर रहा था. इंस्पैक्टर राकेश ने जवानों से ढक्कन हटाने को कहा.

सीवर का ढक्कन खुलने के बाद जब पुलिस का एक सिपाही अंदर झांका तो दंग रह गया. वहां 2 नौजवान गंदे पानी में उकड़ू बैठे हुए थे. उन के कपड़े कीचड़ में सने हुए थे. उन के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आ रहा था.

ढक्कन खुलते ही वे दोनों नौजवान हाथ जोड़ कर रोने लगे. उन के गले से ठीक ढंग से आवाज भी नही निकल पा रही थी. उन में से एक ने किसी तरह हिम्मत कर के कहा, “सर… हमें बाहर निकालें…”

बहरहाल, कीचड़ से लथपथ और बदबू में सने हुए उन दोनों लड़कों को बाहर निकाला गया. इस बीच एंबुलैंस भी वहां आ चुकी थी.

बाहर निकलने के बाद वे दोनों लड़के गहरीगहरी सांसें लेने लगे. दोनों के पैरों को कीड़ेमकोड़ों ने काट खाया था, जिन से अभी भी खून बह रहा था. उन के शरीर के कई हिस्सों पर जोंक चिपकी हुई खून पी रही थीं और तिलचट्टे व कीड़े रेंग रहे थे. उन्हें झाड़ने या हटाने की भी ताकत उन में नहीं बची थी.

उन दोनों को जल्दीजल्दी एंबुलैंस में लिटाया गया. एंबुलैंस चलने के पहले ही एक नौजवान बोल पड़ा, “अंदर 2 जने और हैं सर…”

पुलिस टीम को यह समझते देर नहीं लगी कि सीवर में 2 और लोग फंसे हुए हैं. पुलिस का एक जवान सीवर में झांकते हुए बोला, “सर, अंदर 2 डैड बौडी नजर आ रही हैं.”

इंस्पैक्टर राकेश के मुंह से अचानक निकला, “उफ…”

बड़ी मशक्कत से उन दोनों लाशों को बाहर निकाला गया, जो पानी में फूल कर सड़ने लगी थीं. बदबू के मारे नाक में दम हो गया था.

अगले दिन जिंदा बचे उन दोनों लड़कों के बयान से मालूम हुआ कि उन में से एक का नाम महेश और दूसरे का नाम मकबूल है. मरने वाले माजिद और मनोहर थे.

उन में से एक ने बताया, “हम लोग नेताजी का भाषण सुनने आए थे. अभी भाषण शुरू भी नहीं हुआ था कि सभा स्थल के बाहर कहीं से धमाके की आवाज सुनाई पड़ी. पलक झपकते ही अफवाहों का बाजार गरम हो गया और लोगों में भगदड़ मच गई. ‘आतंकवादी हमला’ का शोर सुन कर हम लोग भी भागने लगे.

“लोग अपनी जान बचाने के लिए जिधर सुझाई दे रहा था, उधर भागे जा रहे थे. उसी भगदड़ में कुछ लोग मौके का फायदा उठा कर लूटपाट करने में मसरूफ हो गए.

“हालात की गंभीरता को देखते हुए घंटेभर में कर्फ्यू का ऐलान होने लगा.
पुलिस की गाड़ियों के सायरन चीखने लगे. साथ छूटने के डर से हम चारों ने एकदूसरे का हाथ पकड़ रखा था.

“घरों और दुकानों के दरवाजे बंद हो चुके थे. कहां जाएं, किस के घर में घुसें… कौन इस आफत में हमें पनाह देगा, यह समझ में नही आ रहा था.

“यह सोचते हुए हम चारों दोस्त भागे जा रहे थे कि तभी पीछे गली से गुजर रही पुलिस की गाड़ी से फायरिंग की आवाज आई. ऐसा लगा जैसे वह फायरिंग हम लोगों पर की गई थी.

“हम लोग हांफ भी रहे थे और कांप भी रहे थे. दौड़ने के चक्कर में हम में से किसी एक का पैर सीवर के अधखुले ढक्कन से टकराया. वह लड़खड़ा कर गिरने लगा. हाथ पकड़े होने के चलते हम चारों ही एकसाथ गिर पड़े.

“हम लोगों को तत्काल छिपने के लिए सीवर ही महफूज जगह लगा. इस तरह एक के बाद एक हम चारों लोग सीवर में उतरते चले गए और उस का ढक्कन किसी तरह से बंद कर लिया… और फिर…” इतना कह कर वह लड़का रोने लगा.

देखते ही देखते वही सीवर 2 नौजवानों की कब्रगाह जो बन गया था. Story In Hindi

Funny Story In Hindi: झूठे इश्तिहार वाली नौटंकी

Funny Story In Hindi: आज सुबहसुबह जब पूरब दिशा से सूरज उगा और लोग अपने डब्बों जैसे छोटे घरों से निकल कर बाहर आने लगे, तो सब की नजर पूरे शहर में लगे एक नए इश्तिहार पर पड़ी.

उस इश्तिहार में 3 तरह के लोगों की तसवीरें थीं. पहले वे कुछ लोग, जिन को सब पहचानते थे. उस से छोटी तसवीरों वाले दूसरी तरह के वे लोग थे, जिन की शक्लें केवल इधरउधर की जानकारी रखने वाले लोग पहचानते थे. सब से छोटी तीसरी तरह की तसवीरें उन लोगों की थीं, जिन को उन के परिवार के बाहर

2-4 लोग ही पहचानते थे. इन्हीं तीसरी तरह के लोगों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर के इश्तिहार लगवाने के लिए पैसे जुटाए थे. ‘बाप बड़ा न भईया, सब से बड़ा रुपईया’ वाली कहावत में ऊपर वाले से भी ज्यादा गहरा विश्वास रखने वाले लोग इस ‘महंगे इश्तिहार और सस्ते विज्ञापन’ पर बिना वजह पैसा खर्च नहीं करते हैं.

इन में से जिन सब से छोटी तसवीरों वालों को मैं पहचानता हूं, इन के बारे में एक बात कमाल की है. इन के धंधे गोरे हैं या काले, यह तो किसी को ठीक से नहीं पता, लेकिन इन के धंधे करामाती जरूर हैं. इन सब की दिखने वाली आमदनी अठन्नी और दिखने वाला खर्चा रुपईया है.

छोटी तसवीरों वाले लोग अपने से बड़े साइज की तसवीरों वाले लोगों के भरोसे बैठे हैं और मझोले साइज की तसवीरों वाले लोग बड़ी तसवीरों वालों की मेहरबानी पर जिंदा हैं.

छोटी तसवीरों वाले लोगों के लिए बड़ी तसवीरों वाले लोग ऊपर वालों से कम नहीं हैं. इन ऊपर वालों के चलते ही इन का लोक सुरक्षित है, परलोक की चिंता करता ही कौन है?

ये सब से छोटी तसवीरों वाले लोग गारंटी से मूर्ख होते हैं. इन को चापलूसी के अलावा जिंदगी जीने का और कोई रास्ता आता भी नहीं है.

ये लोग दो टके के फायदे के चक्कर में रोज घपला करते हैं. छोटी तसवीरों वालों का रिस्क ज्यादा होता है. फायदा होने पर फायदा कम और नुकसान होने पर इन की बलि ही सब से पहले चढ़ती है. कोई भी गलती हो जाए, छोटी तसवीरों वाले बेचारे लोग अपनेअपने ऊपर वालों द्वारा बुरी तरह से रगड़े जाते हैं.

इश्तिहारों में तसवीर जितनी छोटी होगी, तसवीर को पोस्टरों से गायब करना उतना ही आसान होगा. हवा बदलते ही तसवीर जितनी छोटी होगी, वे लोग पोस्टर से उतनी जल्दी उड़ भी जाते हैं.

ये छोटी तसवीरों वाले लोग बेचारे तो हैं, लेकिन शरीफ कतई नहीं हैं. तिकड़मी हैं, तभी तो इश्तिहार लगवाते फिरते हैं. इन थर्ड कैटेगरी लोगों का आमतौर पर कोई एक फिक्स ऊपर वाला होता नहीं है. बदलते मौसम के हिसाब से इन के ऊपर वाले भी बदलते रहते हैं.

उस इश्तिहार में सचाई का रंग छोड़ कर बाकी सारे रंगों का बड़े करीने से इस्तेमाल किया गया था. इस इश्तिहार में ऐसेऐसे दावे किए गए हैं, जो बातें केवल दूसरों को मूर्ख समझने वाले मूर्ख ही कह सकते हैं. इश्तिहार में वादे ऐसेऐसे, जिन को ऊपर वाला भी चाहे तो इतने कम समय में पूरा नहीं कर पाएगा.

शब्द, शब्द हैं साहब, इन से कुछ भी कह दो. शब्दों में कहां इतनी ताकत कि झूठों को झूठ कहने से रोक लें. शब्द कब झूठों की कलम या जबान से बाहर आने से इनकार कर पाते हैं. शब्द अगर चाहें भी तो समझने वालों को अपनी सुविधा से मतलब निकालने से रोक नहीं पाएंगे.

इन इश्तिहारों का फायदा सिर्फ और सिर्फ उन लोगों को होगा, जिन की तसवीरें इन में छपी हैं. झूठे इश्तिहार को सच मानने वालों का फायदा इश्तिहार लगवाने वाले उठाएंगे. झूठ को सच मानने वाले पहले से मूर्ख हों या न हों, अब मूर्ख कहलाएंगे. Funny Story In Hindi

Best Hindi Story: सपनों का सफर – परिणीता के सपनों में जीता रवि

Best Hindi Story: उस ने आज फिर शाम होते ही खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया. मुझे उलझन होने लगी. मैं खुद को रोक नहीं पाया और अब मैं उस के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था.

थोड़ी देर में उस ने दरवाजा खोला, ‘‘क्या है अजय, मैं कुछ देर अकेले रहना चाहता हूं. प्लीज, मुझे छोड़ दो…’’ वह अजीब सी दर्दभरी सूरत बना कर एक तरह से मुझ से गुजारिश करने लगा.

मुझे यह देख कर घबराहट होने लगी. मैं ने उस के कमरे में तकरीबन दाखिल होते हुए पूछा, ‘‘क्यों इतनी परेशानी हो रही है? मैं दोस्त हूं तुम्हारा. मुझे अपना दर्द बताओ. कहने से दर्द कम हो जाता है.

‘‘अकेले घुटघुट कर सहने से अच्छा है कि दर्द को कह दिया जाए,’’ मैं देख रहा था कि उस की आंखें भर आई थीं और लग रहा था कि अभी वह रो देगा.

मैं ने उस की बांह पकड़ कर सोफे पर बैठा दिया और खुद उस के पास ही बैठ गया, ‘‘रवि, मुझे बताओ कि ऐसा क्या है, जिस ने तुम्हें इतना अकेला बना दिया है? ऐसी कौन सी बात है, जो तुम अपने बचपन के दोस्त से भी नहीं बताना चाहते? इस तरह से घुटते रहोगे, तो बीमार पड़ जाओगे. मुझे अपना सारा दर्द बताओ,’’ मैं ने उसे समझाया.

रवि इतना सुनते ही बच्चों की तरह फूटफूट कर रोते हुए लिपट गया, ‘‘अजय, मैं जीना नहीं चाहता हूं. मेरी जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा है. मेरे जीने का मकसद ही खत्म हो गया है.’’

‘‘मुझे बताओ कि आखिर बात क्या है?’’ मैं ने उसे सहलाते हुए कहा.

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद रवि कुछ संभलते हुए बोला, ‘‘अजय, मेरी जिंदगी में तूफान है और मैं एक ऐसी जगह खड़ा हूं, जहां से न तो पीछे जा सकता हूं और न आगे…’’

थोड़ी देर की खामोशी के बाद रवि ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘अजय,  पहली बार मुझे जिंदगी में परिणीता से मिलने के बाद ऐसा लगा था कि कोई अनजानी सी ताकत है, जो हमें करीब लाने की कोशिश कर रही है. यह सही था कि मुझे उस से प्यार हो गया था, लेकिन धीरेधीरे हम कब एकदूसरे के होते चले गए, हमें खुद ही पता न चला.

‘‘परिणीता मेरी जिंदगी में एक खूबसूरत सपने की तरह थी और हम दोनों इस सपने को जीना चाहते थे, लेकिन जैसा कि हमेशा होता रहा है, परिणीता के घर वालों को हमारे बारे में पता चला और परिणीता पर पहरा लगा दिया गया. शादी के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी गई. फिर एक दिन मैं शाम को घर लौट रहा था कि गली के मोड़ पर परिणीता की आवाज सुनाई दी.

‘‘मैं ठिठक गया. वह बोली, ‘रवि, मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है. मेरे साथ चलो.’

‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘ऐसी क्या बात है, जो तुम यहां नहीं कह सकतीं?’

‘‘वह बोली, ‘मेरे साथ चलो, मैं यहां नहीं कह सकती.’

‘‘यह बात उस ने मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए कही. मैं चल पड़ा.

‘‘नवीन पार्क पहुंच कर उस ने कहना शुरू किया, ‘रवि, मैं यहां से कहीं दूर जाना चाहती हूं…’

‘‘मैं ने घबरा कर कहा, ‘क्यों परी, किसी ने कुछ कहा क्या?’

‘‘वह बोली, ‘रवि, मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगी, लेकिन मेरे घर वाले न तुम्हें पसंद करते हैं और न ही मेरा आगे पढ़ना पसंद करते हैं. आज ही पता चला है कि किसी गांव में बहुत रूढि़वादी परिवार में मेरी शादी तय हो रही है. मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी…’

‘‘मैं ने उसे समझाया, ‘परी, तुम परेशान मत हो. कोई न कोई उपाय निकल जाएगा.’

‘‘वह बोली, ‘नहीं रवि, कोई मदद नहीं करेगा. तुम तैयारी कर लो. हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे और यहां से बहुत दूर चले जाएंगे.’

‘‘परिणीता एक बहुत ही होनहार लड़की है. उस का सपना एक कामयाब मैनेजर बनने का है. पर मुझे डर लग रहा है कि उस के घर वाले जबरदस्ती उस की शादी कहीं भी करा देंगे और उस के सपने पूरे नहीं हो पाएंगे. मेरे लिए इस से बड़ी हार और कुछ नहीं हो सकती…

‘‘अजय, तुम उस के पिता से मिलो और उन्हें समझाओ. वे परी के सपनों के साथ इस तरह की नाइंसाफी न

करें. मैं खुद को रोक लूंगा. वे कहेंगे तो मैं कहीं दूर चला जाऊंगा, लेकिन परिणीता को उसे अपना सपना पूरा करने दें…’’ इतना कह कर रवि चुप

हो गया. उस की आंखें भर आई थीं.

मैं ने उसे तसल्ली दी और कहा कि मैं कोशिश करूंगा परिणीता के पिता से मिलने की, लेकिन दिक्कत यह थी कि मैं इस के पहले कभी परिणीता के पिता से मिला नहीं था और मेरा उन से पहले से कोई ज्यादा परिचय भी नहीं था.

बहरहाल, मैं ने रवि से वादा तो कर ही लिया था और उस की घबराहट देखने के बाद इस के अलावा और कोई चारा भी नहीं था. उसे उस के घर छोड़ कर मैं लौट आया और सोचने लगा कि कैसे परिणीता के पिता से मिला जाए और इस मसले पर किस तरह बात की जाए कि परिणीता की पढ़ाई न रुके और वह अपने सपने को पूरा कर सके.

अगले दिन मैं अपने औफिस जाने के लिए निकला और सोचा कि आज शाम को लौटते हुए परिणीता के पिता से मिलने जाऊंगा.

औफिस पहुंच कर मैं अपने काम में बिजी हो गया था और लौटने के समय एक डिपार्टमैंटल स्टोर में कुछ जरूरी सामान खरीदने लगा.

इसी बीच मुझे लगा कि कोई बहुत गौर से मुझे देख रहा है. मैं ने ध्यान दिया तो मुझे लगा कि कुछ दूरी पर शायद परिणीता ही खड़ी थी और उस के साथ उस की मां भी थीं.

मैं ने बिना समय गंवाए उस की मां के पास पहुंच कर कहा, ‘‘नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं आंटी.’’

‘‘परी, तुम कैसी हो?’’ मैं ने धीरे से परिणीता से पूछा.

‘‘ठीक हूं,’’ उस ने उदास लहजे में जवाब दिया.

मैं ने जानबूझ कर पूछा, ‘‘तुम्हारी पढ़ाई ठीक से चल रही है या नहीं? देखो, अगले महीने यूनिवर्सिटी के मैनेजमैंट कोर्स का इम्तिहान है, फार्म भर देना और तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.’’

‘‘जी, ठीक है,’’ वह औपचारिक रूप से बोली.

‘‘आंटी, आप की तबीयत ठीक है न?’’ मैं ने बात को बढ़ाने के लिए उस की मां

से पूछा.

‘‘अब क्या तबीयत ठीक रहेगी बेटा, उम्र भी हो गई है बस. परी की चिंता लगी है, इस

के हाथ पीले हो जाएं तो मन को

आराम मिले.’’

‘‘अरे आंटी, ऐसी भी क्या जल्दी है. परी एक बहुत ही होनहार लड़की है. उसे आगे पढ़ाइए. शादी तो हो ही जाएगी,’’ मैं ने उस की मां को अपने मतलब की तरफ ले जाने की कोशिश की.

‘‘मैं तो चाहती ही हूं, क्योंकि शादी में भी आजकल लड़के वाले नौकरी वाली लड़की की मांग करते हैं, पर इस के पापा जिद किए हुए हैं और जल्दी शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘आंटी, ऐसी क्या बात है कि अंकल जैसे समझदार आदमी भी इस तरह जिद कर बैठे हैं?’’

‘‘असल में इस के पापा रवि को पसंद नहीं करते और परी को यहां से दूर भेजना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन आंटी, रवि की वजह से परी की जिंदगी, उस का भविष्य बरबाद करना क्या सही है? रवि से ज्यादा अहम परी की पढ़ाई, उस का भविष्य है, उस के सपने हैं और हर मांबाप की सब से बड़ी जिम्मेदारी अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने में मदद करना है, न कि किसी छोटी समस्या को ले कर बच्चों के भविष्य को निराशा में धकेल देना,’’ मैं ने समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं समझ सकती हूं और लड़के वाले भी हर जगह नौकरी वाली लड़की की मांग करते हैं, इसलिए भी मैं नहीं चाहती कि परी की पढ़ाई रुके.’’

‘‘आंटी, आप कहें तो मैं अंकल से बात करूं?’’

‘‘कोशिश कर लो, मगर मुझे नहीं लगता कि वे मानेंगे,’’ परी की मां की आवाज में निराशा झलक रही थी.

‘‘ठीक है आंटी, मैं बात करूंगा. लेकिन जब मैं बात करूं तो आप भी मौजूद रहेंगी. मैं कल सुबह ही आऊंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा,’’ इतना कह कर मां आगे बढ़ गईं और परिणीता थोड़ा पीछे रही. मैं ने उसे देख कर कहा, ‘‘बिलकुल परेशान मत होना. सब ठीक हो जाएगा.’’

मेरी बातें सुन कर परिणीता को थोड़ी तसल्ली हुई.

अगले दिन मैं परिणीता के पिता से मिलने उस के घर पहुंचा तो देखा कि वे कहीं बाहर जा रहे थे.

‘‘नमस्ते अंकल,’’ मैं उन के सामने पहुंच कर बोला.

‘‘नमस्ते बेटा, क्या हाल है? अब तो कम ही दिखाई देते हो,’’ वे बोले.

‘‘अंकल, काम बहुत बढ़ गया है. औफिस में जल्दी जाना होता है और लौटने में भी देर हो जाती है, इसलिए कहीं भी चाह कर नहीं जा पाता,’’ मैं ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘देखो बेटा, अकेले रहोगे तो ऐसे ही परेशान रहोगे. या तो घर से किसी को बुला लो और नहीं तो बेहतर होगा कि शादी कर लो, सब सही हो जाएगा.’’

‘‘अंकल, मेरी सगाई हो चुकी है और शादी अगले साल होगी. तब तक मेरी होने वाली वाइफ की भी बीएड पूरी हो जाएगी. हालांकि मेरे मातापिता चाहते थे कि इसी साल शादी हो जाए, लेकिन ऋचा यानी मेरी होने वाली पत्नी से पता चला कि वह बीएड करना चाहती है, तो मेरे मातापिता और मैं ने इसे मान लिया,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों बेटा, शादी के बाद भी वह बीएड कर सकती है?’’ अंकल ने अपना नजरिया बताया.

‘‘अंकल, शादी हो जाने के बाद हर लड़की के हालात बदल जाते हैं और मानसिकता में बदलाव आ जाता है. लड़की ससुराल में रह कर पढ़ाई कर सकती है, लेकिन उसे बहुतकुछ खोने का डर भी रहता है और अपने मातापिता के यहां रह कर वह अपनी पढ़ाई अच्छी

तरह से बिना किसी दबाव के आसानी

से पूरी कर सकती है,’’ मैं ने अंकल

को प्रैक्टिकल तरीके से समझाने की कोशिश की.

‘‘हां, तुम्हारी बात कुछ सही है. चलो, ठीक है, बीएड कर लेने के बाद वह तुम्हारे लिए भी मददगार साबित होगी,’’ हम लोग बात करते हुए थोड़ी दूर बाजार तक आ गए थे.

‘‘अंकल, बुरा मत मानना, पर आप परी को आगे पढ़ने से क्यों मना कर रहे हैं? जब वह एमबीए करना चाहती है, तो उसे करने दीजिए. शादी तो बाद में भी हो जाएगी,’’ अपने मुद्दे पर आते हुए मैं ने कहा.

‘‘देखो अजय, परी का मामला कुछ अलग है. मेरी भी इच्छा थी कि परी एमबीए करने के बाद ही अपने घर से विदा हो, लेकिन कुछ हालात बदल गए हैं.’’

‘‘शायद रवि के बारे में आप कुछ कहना चाहते हैं. मेरे विचार से इस मसले पर भी समझदारी से काम लेना ही मुनासिब होगा. जहां तक परी की पढ़ाई की बात है, तो मुझे पूरा यकीन है कि रवि का मसला कोई बाधा नहीं बनेगा,’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, रवि एक समझदार लड़का है, लेकिन उस ने परी के साथ रिश्ता बनाया, यह सोच कर मुझे बहुत झटका लगा.’’

‘‘अंकल, आप की चिंता जायज है. लेकिन परी मेरे लिए बहन की तरह है और इस आधार पर मैं कह सकता हूं कि सिर्फ रवि ही नहीं, बल्कि परी भी बहुत समझदार है और ये दोनों ही बहुत भावुक हैं, इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, जिस से दोनों के परिवारों को कोई चिंता हो,’’ हम बात करते हुए एक पार्क में बैंच पर बैठ गए थे.

‘‘अजय, यह कैसे मुमकिन है कि परी इन हालात में पढ़ाई को एकाग्रता से पूरी कर पाएगी?’’ अंकल ने काफी सावधानी के साथ कहा.

‘‘इसलिए कि रवि खुद चाहता है कि परी को आगे एमबीए करने में कोई बाधा नहीं आए. वह तो जब तक परी की पढ़ाई पूरी न हो जाए, अपना ट्रांसफर कहीं दूर करा लेना चाहता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों… रवि इतनी परेशानी किसलिए उठाएगा? उसे ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘अंकल, इसलिए कि ऐसा करना जरूरी है. सच तो यह है कि जब 2 लोग आपस में सच्चा प्यार करते हैं, तो वे सिर्फ और सिर्फ एकदूसरे को खुश देखना चाहते हैं, चाहे इस के लिए उन्हें अपनी खुशी, अपनी भावनाओं को आहत ही क्यों न करना पड़े और इस में कोई शक नहीं है कि उन दोनों का प्यार एक हकीकत है…’’

‘‘अजय, यह प्यार नहीं है. यह इस उम्र की भावनाओं का उभार है. यह अकसर होता है.’’

‘‘मैं आप को अपनी समझ से कह रहा हूं. आप को मानने के लिए कोई दबाव नहीं दे रहा हूं. अगर आप को बुरा लगा तो मुझे माफ कर दें.’’

‘‘नहीं बेटा, मुझे बुरा नहीं लगा. तुम इसे गलत मत समझना,’’ अंकल की आवाज में भर्राहट सुनाई दे रही थी.

‘‘अंकल, आप भी मेरे पिता समान हैं. मैं आप की किसी बात का बुरा नहीं मान सकता और मैं परी को भी अपनी बहन समझता हूं, इसलिए इस हक से ही कुछ कहने की हिम्मत कर सका,’’ मैं ने अंकल को संभालने की कोशिश की.

अचानक ही अंकल ने मुझे अपने गले से लगा लिया और बुरी तरह से फूटफूट कर रोने लगे, ‘‘बेटा, मैं क्या करूं. परी मेरी एकलौती बेटी है और कभी भी मैं ने उसे किसी बात के लिए मना नहीं किया, उस की हर इच्छा पूरी की, पर आजकल मुझे क्या हुआ… मैं कैसे इतना कठोर हो गया…’’

मैं अंकल को समझाने और संभालने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर में मैं अंकल को घर छोड़ कर चला गया. हालांकि देर हो गई थी. औफिस में बौस को भी देरी की वजह समझानी पड़ी, पर मन में एक संतोष हो रहा था कि सबकुछ अच्छे तरीके से मैं ने उन लोगों को समझा दिया.

शाम को घर आने के बाद फोन बजने लगा, ‘‘हैलो…’’

‘अजय, मैं परी का पापा बोल रहा हूं. तुम घर आ गए?’

‘‘जी अंकल, मैं घर आ गया हूं.’’

‘बेटा, कुछ बात करनी थी. मैं तुम से मिलना चाहता हूं. क्या मैं इस समय तुम से मिलने आ सकता हूं?’

‘‘जी, बिलकुल आ सकते हैं, लेकिन आप परेशान न हों, मैं खुद आ रहा हूं.’’

‘नहीं बेटा, मैं आ रहा हूं,’ अंकल ने फोन रख दिया. थोड़ी देर में वे मेरे घर आए और अंदर आ कर बैठ गए.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या बात है अंकल? कुछ परेशानी है?’’

‘‘नहीं अजय, मैं ने काफी सोचा और परी की मम्मी से भी बात की. परी की पढ़ाई पूरी कराने के बाद ही हम उस की शादी करेंगे, यह हम लोगों ने तय कर लिया है.’’

‘‘अंकल, यह तो बहुत ही अच्छी बात है. आजकल लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाने में मांबाप को पूरा सहयोग देना चाहिए. बहुत ही होनहार लड़की है परी. मुझे बहुत खुशी हुई कि अब परी अपने सपनों को पूरा कर पाएगी,’’ मैं बहुत खुश हुआ. मुझे लगा कि मेरी कोशिश और रवि का पवित्र प्यार सफल हो गया.

‘‘बेटा, तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं ने परी को काफी टैंशन दी है. मैं

उस से माफी मांगूंगा. पर बेटा, तुम्हें

परी को एडमिशन दिलाने में मदद करनी होगी.’’

‘‘जरूर अंकल, मैं पूरी तरह से मदद करूंगा. आखिर वह मेरी भी बहन ही तो है. आप चिंता न करें.’’

‘‘अगर बहन मानते हो, तो एक जिम्मेदारी और निभानी पड़ेगी. कर सकोगे?’’

‘‘आप बोलिए तो सही, मैं हर जगह परी के भाई होने की जिम्मेदारी निभाऊंगा और मुझे बहुत खुशी होगी.’’

‘‘तो तुम्हें रवि को बताना होगा कि भले हम परी की शादी उस के एमबीए पूरा करने पर करेंगे, लेकिन सगाई हम इस महीने में ही कर देना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है अंकल, लेकिन क्या किसी लड़के को देखा है और बातचीत पक्की हुई है?’’

‘‘हां देखा और समझा भी है. परी को पसंद भी है, इसलिए रवि से कहना कि अपने मातापिता को मुझ से मिलवा दे, ताकि सगाई की तारीख जल्द ही तय कर ली जाए,’’ अंकल मुसकरा रहे थे और उन के चेहरे पर सुकून नजर आ रहा था. Best Hindi Story

Hindi Kahani: इमामुद्दीन – जिंदगी का मुश्किल सफर

Hindi Kahani: इमामुद्दीन काफी देर तक पार्क में टहलता रहा और फिर कोने की एक बैंच पर बैठ गया. वह बीचबीच में गहरी सांस लेता और ‘उफ’ कहता हुआ छोड़ देता. उस के भीतर चिंताओं के काले बादल उमड़घुमड़ रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे यही बादल इमामुद्दीन की आंखों से आंसू बन कर बरस पड़ेंगे.

इधर इमामुद्दीन की बीवी आयशा बानो घर पर अपने शौहर का इंतजार कर रही थी, उधर इमामुद्दीन कुछ सोच रहा था. पार्क में जब थोड़ी चहलपहल बढ़ने लगी, तो वह और ज्यादा बेचैन हो उठा. अब भूख से उस का पेट भी कुलबुलाने लगा था और जब प्यास लगने लगी तो वह अपने घर की तरफ लौटने लगा.

आयशा बानो दरवाजे पर ही खड़ी थी, बोली, ‘‘कहां चले गए थे तुम?’’

‘‘कहीं नहीं… बस, ऐसे ही पार्क तक. कुछ खाने को हो तो दे दो, प्यास भी लगी है.’’

आयशा बानो पानी ले आई और फिर रोटी बनाने लगी. इमामुद्दीन का सोचना अभी जारी था. वह खाना खातेखाते कई बार रुक जाता. आयशा उसे देख रही थी, लेकिन कुछ बोली नहीं थी. उसे मालूम था कि इमामुद्दीन के मन में क्या चल रहा है.

इमामुद्दीन ने आयशा से पूछा, ‘‘गंगाजी को होश आया कि नहीं?’’

‘‘नहीं,’’ आयशा ने छोटा सा जवाब दिया और रोटी इमामुद्दीन के आगे रख दी.

इमामुद्दीन और आयशा चंद्रभान तिवारी के घर में पिछले 24 साल से किराए पर रह रहे थे. चंद्रभान की कोई औलाद नहीं थी. वे अपनी पत्नी गंगा के साथ अकेले ही रहते थे. उन के घर से लगा हुआ 2 कमरे का एक और मिट्टी का कच्चा घर था, जिस में इमामुद्दीन किराए पर रहता था.

एक दिन चंद्रभान तिवारी की अचानक मौत हो गई और उन की पत्नी गंगा देवी बेसहारा हो गईं. इतना ही नहीं, एक दिन गंगा देवी को लकवा मार गया. अब तो उन की जिंदगी एक चारपाई पर सिमट गई थी.

कुछ दिनों तक नातेरिश्तेदार, पासपड़ोस के लोग गंगा देवी को देखने आते रहे, कुछ समय बाद उन्होंने भी आना बंद कर दिया.

इमामुद्दीन जब चंद्रभान तिवारी के घर में किराए पर रहने आया था, उस के पहले वह ईदगाह महल्ले में रहता था. उस के सिर से बचपन में ही उस की अम्मी नसरीन का साया उठ गया था. उस की खाला भी तब ईदगाह के पास ही रहती थीं.

इमामुद्दीन के अब्बू फैजान अली के इंतकाल के बाद इमामुद्दीन शहर आ गया और मजदूरी करने लगा. उस समय उस की उम्र रही होगी 20-22 साल. जब से ही वह चंद्रभान तिवारी के मकान में रह रहा था.

इमामुद्दीन को गंगा देवी में अपनी मां दिखाई देती थीं. इमामुद्दीन और आयशा दोनों मजदूर थे, पर उन के दिल में दूसरों के प्रति करुणा और इज्जत का अटूट भाव था. वे दोनों अनपढ़ थे. खास बात तो यह थी कि वे अनुभवी और समझदार थे. दोनों के दिल में दूसरों के लिए खूब जगह थी.

गंगा देवी जब लकवे के चलते खाट पर पड़ी थीं, तब इमामुद्दीन और आयशा ने ही उन की खूब सेवा की थी. गंगा देवी के इलाज में इमामुद्दीन ने अपनी थोड़ीबहुत जमापूंजी भी खर्च कर दी थी. आयशा गंगा देवी को नहलाती, उन के कपड़े बदलती और इमामुद्दीन दवा खत्म होने पर दवा लाता और उन्हें समय पर खिलाता.

धीरेधीरे यह रिश्ता और गाढ़ा होता चला गया. आयशा बहू की तरह बाकायदा गंगा देवी का खयाल रखती, उन के पैर दबाती, इमामुद्दीन उन्हें ह्वीलचेयर में बिठा कर थोड़ाबहुत बाहर घुमा कर ले आता.

समय बीतता गया. इमामुद्दीन पास में ही अपना छोटा सा घर बनवा रहा था. चंद्रभान तिवारी का घर धीरेधीरे खंडहर होता जा रहा था. आखिर घर की मरम्मत कराए तो कौन कराए? धीरेधीरे इमामुद्दीन का नया घर तैयार हो गया.

इमामुद्दीन और आयशा गंगा देवी को अपने नए घर में ले आए. भले ही इमामुद्दीन ने नया घर बनवा लिया था, लेकिन चंद्रभान तिवारी के खंडहर घर से उस का भावनात्मक रिश्ता हो गया था.

चंद्रभान तिवारी के घर को देख कर वह सोचा करता था, ‘भले ही यह घर अब खंडहर होता जा रहा है, लेकिन इसी घर ने ही मुझे छत्रछाया दी, पनाह दी.’

पड़ोस के कुछ लोगों ने तो इमामुद्दीन से कहा भी कि तेरी अक्ल मारी गई है, जो एक बीमार अपाहिज औरत को भी अपने नए घर में ले आया है. जितने मुंह उतनी बातें. जो आता इमामुद्दीन को अपनीअपनी समझ के हिसाब से पट्टी पढ़ाने लगता.

इमामुद्दीन सब लोगों की बातें सुनता और कहता कि बात मकान मालिक और किराएदार की नहीं है भाई, इन 23 सालों में जितना अपनापन चंद्रभान तिवारी और गंगा देवी ने मुझे दिया है, वह मैं कभी भूल नहीं सकता. मैं अब गंगा देवी की सूरत में अपनी मां नसरीन को देखता हूं.

इमामुद्दीन पुरानी यादों से लौट आया. उसी रात गंगा देवी की मौत हो गई. इमामुद्दीन ने हिंदू धर्म के हिसाब से गंगा देवी का क्रियाकर्म किया.

गंगा देवी अब शून्य में विलीन हो चुकी थीं, पर इमामुद्दीन और आयशा भी उन के बिना अजीब सा खालीपन महसूस कर रहे थे. Hindi Kahani

Hindi Family Story: दरार – जब हुई शायना और शौहर के बीच तकरार

Hindi Family Story: शायना के अम्मीअब्बू ने उस की शादी में कई लाख रुपए खर्च किए थे. खूब दहेज, जेवर और कैश दे कर उन्होंने सोचा था कि शायना की जिंदगी बेहतर हो जाएगी, ससुराल में इज्जत मिलेगी, इतना दहेज और कैश देने से उस का सुसराल में राज रहेगा, वह अपनी मनमानी करेगी और सब को उस की बात माननी पड़ेगी, क्योंकि वह एक बड़े घर के बेटी है, जो दहेज के साथ लाखों रुपए नकद लाई है…

शायना के अम्मीअब्बू की इस सोच ने शायना और उस के शौहर के बीच ऐसी दरार डाल दी, जो कभी नहीं भरी जा सकी और दोनों एक महीने के अंदर ही अलगअलग रह कर जीने के लिए मजबूर हो गए. शायना के जाने के बाद उस के शौहर शाहिद ने कई बार उसे फोन भी किया, पर उस के अम्मीअब्बू ने न तो शायना से शाहिद की बात होने दी और न ही शाहिद को शायना को अपने साथ ले जाने दिया.

वे इसी घमंड में रहे कि शाहिद उन की सारी बातें मानेगा और शायना वहां पर राज करेगी, पर उन का यह भरम उस वक्त टूट गया, जब शाहिद ने दूसरी शादी कर ली. शायना की शादी की बात शाहिद से तय हो गई थी. शाहिद के अब्बा का कपड़ों का कारोबार था.

शाहिद अपने अब्बा के साथ ही काम करता था. शाहिद के अलावा उस का एक और भाई था, जो कैंसर से पीडि़त होने की वजह से हर वक्त बीमार रहता था. सारे कारोबार की बागडोर शाहिद के हाथों में ही थी.  शाहिद ऊंची कदकाठी का एक खूबसूरत नौजवान था.

यही वजह थी कि शाहिद को पहली ही नजर में देख कर शायना के अम्मीअब्बू ने शाहिद के रिश्ते के लिए हां कर दी थी. शायना भी खूबसूरती की मलिका थी. ऊंचा कद, गदराए बदन के साथसाथ वह खूबसूरती की बेमिसाल मूर्ति थी.

गुलाबी होंठ और सुर्ख गाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे. जो भी शाहिद और शायना की जोड़ी को देखता था, बस देखता ही रह जाता था. उन दोनों की तारीफ करने के लिए लोगों के पास अल्फाज कम पड़ जाते थे.

शायना की शादी के अभी 4 महीने बाकी थे. उस के अम्मीअब्बू ने उस के दहेज का सामान खरीदना शुरू कर दिया था. हर सामान ब्रांडेड खरीदा जा रहा था. अगर कोई सामान उन के शहर में न मिलता तो वह दूसरे शहर से मंगाया जाता था.

शायना के लिए लाखों रुपए का सोना खरीदा गया था. सोना सिर्फ सायना के लिए ही नहीं, बल्कि सायना की सास के लिए भी खरीदा गया था. इस तरह महीनों तक शायना की शादी की तैयारी चलती रही, फिर वह दिन भी आ गया जब शायना का निकाह शाहिद से होना था.

शाहिद बरात ले कर शायना के घर आ गया. बरातियों का स्वागत बड़ी धूमधाम से किया गया. कई तरह के खानों का इंतजाम किया गया. निकाह के बाद विदाई के समय भी लाखों रुपया नकद दिया गया और इस तरह लाखों रुपया खर्च होने के बाद शायना और शाहिद की शादी हो गई. शायना बड़ी धूमधाम के साथ अपनी ससुराल पहुंच गई. शायना और शाहिद एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे.

अभी शादी को कुछ दिन ही गुजरे थे कि शायना ने शाहिद से महंगे मोबाइल फोन की मांग की.  शाहिद बोला, ‘‘अभी रुक जाओ. तुम्हें जिस से भी बात करनी है, मेरे मोबाइल फोन से बात कर लिया करो. कुछ दिनों में मैं अब्बा से बात कर के तुम्हें नया मोबाइल फोन दिला दूंगा.’’

शायना को शाहिद की यह बात पसंद नहीं आई. अभी शायना की मोबाइल फोन की बात तो कबूल हुई नहीं थी कि शायना ने शाहिद से बोला, ‘‘अगले हफ्ते मैं अपने मायके जाऊंगी. लेकिन मुझे इस पुरानी कार से नहीं जाना.

तुम मेरी पसंद की नई कार ले लो, उसी से मैं अपने मायके जाऊंगी.’’ शाहिद ने शायना को समझाते हुए कहा, ‘‘यह कार भी तो सही है. इस में क्या खराबी है? क्यों फालतू की जिद कर रही हो…’’ शायना को शाहिद की यह बात बहुत नागवार गुजरी.

उस ने अगले ही दिन फोन पर अपनी अम्मी से शाहिद की शिकायत कर दी और बोला, ‘‘मुझे तुम से बात करने को दिल करता है, तो मैं तुम से बात भी नहीं कर सकती, क्योंकि इन्होंने अभी तक मुझे मोबाइल फोन  नहीं दिलाया.

‘‘मैं तुम से मिलने भी नहीं आ सकती, क्योंकि इन्होंने अभी तक नई कार भी नहीं खरीदी. कैसे फटीचर लोगों से तुम ने मेरी शादी करा दी.’’ अगले दिन शायना की अम्मी का फोन शाहिद के पास आ गया. वे छूटते ही बोलीं, ‘‘हमारे लेनदेन में कौन सी कमी रह गई थी, जो तुम मेरी बेटी शायना की ख्वाहिश पूरी नहीं कर सकते? तुम्हारी जगह किसी और को इतना सबकुछ देते तो मेरी बेटी के पैर धो कर पीता.’’

शाहिद को शायना की एक तो यह बात बुरी लगी कि शायना ने घर की बात अपनी अम्मी को बताई और उन से अपनी सुसराल की बुराई की, दूसरे शायना की अम्मी ने अपनी दौलत का रुआब दिखाते हुए उसे जलील किया. शाहिद ने शायना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें अपनी अम्मी से घर की बात नहीं करनी चाहिए थी.’’

शायना फौरन तड़क कर बोली, ‘‘मैं अपनी परेशानी अपने अम्मीअब्बा को नहीं बताऊंगी, तो किसे कहूंगी…’’ और वह ऐंठ कर अपने बिस्तर पर  पड़ गई. शाहिद ने शायना को काफी समझाने की कोशिश की, पर वह न खाना खाने को तैयार हुई और न अपने कमरे से बाहर निकली.

शाम को फिर शाहिद के मोबाइल फोन पर शायना की अम्मी का फोन आया, तो शाहिद ने शायना को मोबाइल फोन देते हुए कहा, ‘‘लो, आप की अम्मी का फोन आया है.’’ शायना ने फोन लेते ही रोना शुरू कर दिया और शाहिद के सामने  ही अपनी अम्मी से शाहिद की बुराई करने लगी.

उस की अम्मी ने शायना को कहा, ‘‘तुम चुप हो जाओ. मैं आज ही तुम्हारे भाई को भेजती हूं. तुम उस के साथ घर आ जाओ. जब तक ये तेरी बात नहीं मानेंगे, तुम हमारे पास ही रहना.’’ कुछ ही देर में शायना का भाई उस की ससुराल पहुंच गया और शाहिद के मना करने पर भी शायना को अपने साथ ले आया. शाहिद को शायना की यह बात बहुत बुरी लगी.

जब इस झगड़े का पता  शाहिद के अम्मीअब्बू को पता चला तो अब्बू ने शाहिद को डांटा, ‘‘हमें क्यों नहीं बताया. हम उसे समझाते. तुम कल ही अपनी सुसराल जाओ और शायना को  ले कर आओ. घर की बात घर में ही रहनी चाहिए.’’ उधर जब शायना घर पहुंची, तो उस ने अपनी सुसराल की तमाम बुराइयां की और कहा, ‘‘शाहिद तो अपने अब्बा के ही कहने पर चलता है.

छोटीछोटी चीज के लिए अपने अब्बा के सामने हाथ फैलाता है. मैं ने जब उस से मोबाइल फोन खरीदने को कहा तो बोला कि अब्बा से बोलता हूं. जब  वे पैसे देंगे, तब मोबाइल फोन दिला दूंगा. कार के लिए कहा, तो बहाने बनाने लगा.’’ शायना की अम्मी बोलीं, ‘‘तू फिक्र मत कर. जब तक शाहिद और उस के अब्बू तेरी बात नहीं मानेंगे, मैं तुझे वहां नहीं भेजूंगी.’’ अगले दिन शाहिद ने शायना की अम्मी को फोन किया, ‘‘मैं शायना को लेने आ रहा हूं…’’ इस पर शायना की अम्मी बोलीं, ‘‘अपने अब्बा को साथ ले कर आना. जब तक वह सायना की बात नहीं मानेंगे, हम उसे नहीं भेजेंगे.

जब उन्हें फुरसत मिल जाए, तब दोनों साथ आना. हमारी बेटी की जिंदगी का मामला है. हमें  क्या पता था कि हमें तुम जैसे घटिया रिश्तेदार मिलेंगे.’’ शाहिद ने अपने अब्बा को बताया,  तो उन्हें बहुत बुरा लगा. उन्होंने भी फैसला कर लिया था कि वे उसे लेने वहां नहीं जाएंगे.

शाहिद ने अगले दिन फिर फोन किया और शायना से बात करने की कोशिश की, मगर शायना की अम्मी ने ऐसा नहीं होने दिया.  शायना की अम्मी को यह घमंड था कि ससुराल वालों को शायना जैसी खूबसूरत और पैसे वाली लड़की मिली है, वे जरूर हाथ जोड़ कर आएंगे और शायना की सारी बातें मानेंगे. इधर शाहिद के छोटे भाई की अचानक तबीयत खराब हो गई.

घर के सब लोग उस की फिक्र करने लगे, क्योंकि उस का कैंसर लास्ट स्टेज पर पहुंच गया था. वह कुछ हफ्ते का ही मेहमान था. शाहिद ने शायना से बात करने की कोशिश की, पर उस ने उस से बात नहीं की. शाहिद ने उस की अम्मी को बताया, ‘‘भाई की तबीयत बहुत खराब है.

मैं शायना को लेने आ रहा हूं. अब्बा के पास अभी टाइम नहीं है. वे बहुत ज्यादा परेशान हैं.’’ शायना की अम्मी ने साफ मना कर दिया, ‘‘हम तब तक शायना को नहीं भेजेंगे, जब तक तुम्हारे अब्बू नहीं आएंगे.’’ शाहिद यह सुन कर दंग रह गया, फिर भी वह हिम्मत कर के शायना को लेने अपनी सुसराल पहुंच ही गया.

उस ने शायना से बात करनी चाही, मगर उस की सास ने उसे बात करने से मना कर दिया और उसे शाहिद के साथ भी भेजने से इनकार कर दिया. शाहिद निराश हो कर खाली हाथ वहां से वापस आ गया. जब शाहिद के अम्मीअब्बू को इस बात का पता चला, तो उन्हें बहुत बुरा लगा.

इधर वह दिन भी आ गया, जब शाहिद का छोटा भाई यह दुनिया छोड़ कर चला गया, जिस से पूरे घर वालों  को काफी दुख हुआ. घर में मातम  पसर गया. इतना सबकुछ होने के बाद भी शायना के घर वालों को जब इस बात की खबर मिली, तो उन में से कोई भी इस गमगीन माहौल में शाहिद के घर वालों को दिलासा देने नहीं गया. वक्त गुजरता गया.

कुछ रिश्तेदारों ने शायना के अम्मीअब्बू को यह दिलासा दी थी कि शाहिद जरूर अपने अब्बा के साथ शायना को लेने आएगा. शायना की अम्मी ने भी उसे यह कह रखा था कि तुम अपनी जिद पर डटी रहना. अभी वह वक्त है, जब शौहर को अपने इशारों पर नचाया जा सकता है.

अगर तुम हिम्मत हार गई, तो जिंदगीभर उस के और उस के घर वालों के इशारों पर तुम्हें नाचना पड़ेगा. इस तरह उन दोनों के रिश्ते में दरार बढ़ती गई. वक्त तेजी से गुजर रहा था.

शायना को अकेलापन अब खाने को दौड़ रहा था, लेकिन अपनी मां की जिद की वजह से वह सही फैसला नहीं ले पा रही थी. उसे लग रहा था कि पता नहीं कब  तक यों अकेले जिंदगी बितानी पड़ेगी? क्या शाहिद उसे लेने वापस आएगा भी या नहीं? उधर शाहिद ने मुसलिम पर्सनल ला के तहत दूसरी शादी कर ली और अपनी जिंदगी खुशीखुशी गुजारने लगा.

जब शायना और उस के अम्मीअब्बू को शाहिद की दूसरी शादी का पता चला, तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि शाहिद ऐसा भी कर सकता है. गुस्से में आ कर उन्होंने शाहिद से फैसला करने के बजाय उस पर दहेज लेने के अलावा और भी कई केस कर दिए, पर इस से कोई हल नहीं निकला. केस चल रहा है.

शायना घर पर बैठी है. जब तक उस का तलाक या कोई और फैसला नहीं होता, उसे यों ही बिना निकाह के घर पर ही रहना पड़ रहा है. इस केस को एक साल हो गया है, पर अभी तक शायना के अम्मीअब्बू कोई रास्ता नहीं निकाल पाए हैं. उन्होंने अपनी जिद के चक्कर में शायना की जिंदगी बरबाद कर दी और उन दोनों के रिश्ते में एक ऐसी दरार डाल दी जो कभी नहीं भरी जा सकती.

शायना आज अपने घर पर एक जीतीजागती मूर्ति बन कर रह गई थी और सोच रही थी कि काश, मैं अपने घर को खुद ही संभाल कर चलती तो आज यह दिन न देखना पड़ता. उस की उम्र ढलने लगी, पर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है.  शायना कर भी क्या सकती है, वह खुद एक जिंदा लाश बन कर रह गई है. उन के रिश्तों की इस दरार की वजह उस की मां और खुद शायना है. अगर वक्त रहते वह सही फैसला ले लेती, तो उसे आज यह दिन न देखना पड़ता. Hindi Family Story

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