यंग सक्सेस एंटरप्रेन्योर, ऐसे हो रहे मालामाल

पिछले कुछ सालों में यंग एंटरप्रेन्योर की एक लहर सी दौड़ पड़ी है, जिसे देखो वह इस दौड़ में गोते लगा रहा है. यंग जनरेशन अपनी जौब छोड़ कर एंटरप्रेन्योर बन रही है. वहीं कुछ स्कूलकालेज में पढ़ने वाले स्टूडैंट ऐसेऐसे ऐप्स और बिजनैस क्रिएट कर रहे हैं जो न सिर्फ फ्यूचर में उन्हें एक अच्छी मार्केट देंगे बल्कि लोगों के लिए भी काफी यूजफुल होंगे. ऐसे ही कुछ यंग एंटरप्रेन्योर के बारे में यहां चर्चा करते हैं.

श्रेयान डागा

श्रेयान डागा एक स्किल डैवलपमैंट कंपनी के फाउंडर हैं. वे स्टूडैंट्स को टीचर्स की हैल्प से कुछ वैरिफाइड कोर्स करवाते हैं. इन कोर्सेज को एक्सट्रा करिकुलम एक्टिविटीज की तरह बच्चों को पढ़ाया जाता है. ये क्लासेस औनलाइन प्रोवाइड की जाती हैं. श्रेयान का दावा है कि एक्स्ट्रा करिकुलम होने के साथसाथ ये कोर्सेज फ्यूचर में एक जरूरी स्किल के रूप में बच्चों के काम आएंगे.

श्रेयान की एक्स्ट्रा करिकुलम क्लासेस के हर बैच में 5 से 15 स्टूडैंट्स के साथ लाइव क्लासेस होती हैं. इस में एक घंटे की क्लास की फीस सिर्फ 133 रुपए ली जाती है. इस के अलावा, हर स्टूडैंट को यूनेस्को और एसटीईएम का सर्टिफिकेट भी दिया जाता है. आज डागा का औनलाइन लाइव लर्निंग (ओएलएल) वाराणसी, वाकड, ओडिशा, पुणे, लखनऊ, ठाणे और मुंबई के साथसाथ इंडिया के 20+ शहरों में है.

शैली बुलचंदानी

शैली बुलचंदानी राजस्थान के अजमेर की रहने वाली हैं. उन्होंने अगस्त 2020 में हेयर स्टार्टअप ‘द शैल हेयर’ कंपनी की शुरुआत महज 20 साल की उम्र में की. ‘द शैल हेयर’ की खास बात यह है कि इस के प्रोडक्ट में भारतीय रेमी हेयर (सिंगल डोनर के बाल) से बने होते हैं.

वहीं बाकी कंपनियों की तुलना में इन के प्रोडक्ट्स की कीमत भी 30-40 परसैंट कम है. इस कंपनी की एक और खास बात है कि यह कंपनी महिलाओं द्वारा ही चलाई जाती है. इस से कई महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है.

साल 2021-22 में शैली बुलचंदानी की कंपनी ने लगभग 36 लाख रुपए की बिक्री दर्ज की थी. शैली खुद को हेयर इंडस्ट्री में एक विश्वसनीय ब्रैंड के रूप में स्थापित करने की दौड़ में आ चुकी हैं.

हिमांशु अग्रवाल

24 साल के हिमांशु अग्रवाल की आज 3 कंपनियां हैं. इन में इंटरनैट कोचिंग एम्पायर, बैकएंड क्लोजर्स और मेलजर शामिल हैं.

हिमांशु की कंपनी इंटरनैट कोचिंग एम्पायर अलगअलग तरह की सेवाएं देती है. इन में वर्कशौप, कंसल्टिंग सर्विस, एजुटैक नौलेज शामिल हैं. यह कस्टमर बेस कंपनी है. हिमांशु की इन 3 कंपनियों में कई यंग काम करते हैं. बैकएंड क्लोजर्स एक सेल्स एजेंसी है और मेलजर एक सौफ्टवेयर कंपनी है. हिमांशु यंग एंटरप्रेन्योर के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.

तिलक मेहता

कहते हैं सफलता किसी उम्र की मुहताज नहीं होती है. तिलक मेहता जब 13 साल के थे तब उन्होंने पेपर-एन-पार्सल नाम की अपनी कंपनी की जो शिपिंग और लौजिस्किल से जुड़ी सेवाएं देती है. शुरुआत की. तिलक ने जब अपना बिजनैस आइडिया अपने पिता के साथ शेयर किया तो उन्होंने तिलक को शुरुआती फंड दिया. फिर तिलक को बैंक अधिकारी घनश्याम पारेख से मिलवाया, जिन्होंने तिलक के बिजनैस में इन्वैस्ट किया.

पारेख को तिलक का आइडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ दी और तिलक का बिजनैस जौइन  कर लिया. तिलक ने घनश्याम पारेख को कंपनी का सीईओ बना दिया. मेहता ने अपनी पढ़ाई के साथसाथ बिजनैस को जारी रखा और

2 सालों में एक सक्सैस स्टोरी लिख डाली. 13 साल की उम्र में मेहता 100 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक बन गए थे. आज इतनी कम उम्र में तिलक 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रहे हैं. वर्तमान समय में तिलक की उम्र महज 17 साल है.

रितेश अग्रवाल

शार्क टैंक-3 में जज की कुरसी संभाल रहे रितेश अग्रवाल को आज कौन नहीं जानता. हर महीने 22 करोड़ रुपए का टर्नओवर करने वाले रितेश आज एक यंग सक्सैसफुल एंटरप्रेन्योर हैं. रितेश होटल्स की चेन ओयो के मालिक हैं. इन का नैटवर्क देश के 100 शहरों से भी ज्यादा में फैला हुआ है. इन की कंपनी 2,200 होटल्स के साथ काम करती है. रितेश फोर्ब्स की 30 ‘अंडर 30’ अचीवर्स की लिस्ट में शामिल एक इंडियन सीईओ हैं.

रितेश ने यह मुकाम महज 29 साल में पाया है. रितेश की ओयो रूम्स देश की कामयाब इंटरनैट कंपनियों की लिस्ट में तीसरी कंपनी बन गई है. साथ ही, यह देश की सब से बड़ी होटल चेन भी है.

अद्वैत ठाकुर

अद्वैत एक टैक्नोलौजी एंटरप्रेन्योर हैं. उन्होंने 12 साल की उम्र में अपनी टैक कंपनी एपेक्स इंफोसिस की शुरुआत की थी. यह एक ग्लोबल टैक्नोलौजी और इनोवेशन कंपनी है जो इंटरनैट औफ थिंग्स संबंधित सेवाओं और उत्पादों, एआई और हैल्थटैक सैक्टर में अपनी सेवाएं देती है.

अद्वैत सब से यंग गूगल, हब स्पौट और बिंग सर्टिफाइड प्रोफैशनल भी हैं. 2017 में जब अद्वैत 14 साल के थे तो उन्होंने ‘टैक्नोलौजी क्विज’ का निर्माण किया. यह ऐप बच्चों को साइंस और टैक्नोलौजी के बारे में जानने में हैल्प करता है. अद्वैत द स्टार्टअप इंडिया के ‘टौप 10 यंग एंटरप्रेन्योर इन इंडिया 2018’ की लिस्ट में शामिल थे.

अंगद दरयानी

मुंबई के अंगद दरयानी ने 8 साल की उम्र में अपना पहला रोबोट बनाया. इस के बाद ब्लाइंड लोगों के लिए एक ईरीडर (वर्चुअल बे्रलर) बनाया. फिर सोलर एनर्जी से चलने वाली नाव, इस के बाद गार्डुइनो नाम का एक औटोमैटिक बागबानी सिस्टम बनाया.

इस के अलावा अंगद ने शार्कबोट नाम का इंडिया का सब से सस्ता 3डी प्रिंटर बनाने के लिए ओपन सोर्स सौफ्टवेयर तैयार किया. अंगद बच्चों के लिए सस्ती डीआईवाई किट की कंपनी चला रहे हैं. जिस उम्र में बच्चे पढ़ाई करते है उस उम्र में अंगद ने दुनिया को अपना हुनर दिखाया. आज अंगद को लोग भारत के एलन मस्क के नाम से जानते हैं.

श्रीलक्ष्मी सुरेश

3 साल की उम्र में बच्चे मां का आंचल नहीं छोड़ते पर इस उम्र में श्रीलक्ष्मी ने कंप्यूटर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था.

4 साल की उम्र में उन्होंने डिजाइन करना शुरू कर दिया और 6 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली वैबसाइट डिजाइन कर दी. इस के बाद 11 साल की उम्र में अपना एक स्टार्टअप शुरू कर दिया.

आज श्रीलक्ष्मी सुरेश को सब से युवा सीईओ और सब से कम उम्र के वैब डिजाइनरों में से एक माना जाता है. अपने स्टार्टअप ईडिजाइन के अलावा श्रीलक्ष्मी एक अन्य कंपनी ‘टिनीलोगो’ जोकि एक लोगो आधारित सर्च इंजन है, की ओनर हैं. श्रीलक्ष्मी सुरेश ने अब तक 100 से ज्यादा वैबसाइटें बनाई हैं. श्रीलक्ष्मी को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. श्रीलक्ष्मी सुरेश को एसोसिएशन औफ अमेरिकन वैबमास्टर्स की सदस्यता से भी सम्मानित किया गया. वे इन्फो ग्रुप की ब्रैंड एंबेसेडर भी हैं. श्रीलक्ष्मी अब 26 साल की हो गई हैं.

फेसबुक बनी अधकचरी सैक्स बुक

सैक्स बुक

  •  सवाल : क्या खिलाने से लड़कियां सैक्स करने को तैयार हो जाती हैं?
  • जवाब : आंवला खिलाने से.
  • सवाल : अंग पर क्या लगा कर सैक्स में ज्यादा देर तक टिका रहा जा सकता है?
  • जवाब : नीबू व शहद लगाने से.
  • सवाल : योनि पर थप्पड़ मारने से क्या होता है?
  • जवाब : लड़की जल्दी डिस्चार्ज नहीं होती है.

येऔर ऐसे सैकड़ों बेमतलब के और बेहूदा सवाल फेसबुक पर पूछे जाते हैं, जिन का हकीकत और विज्ञान से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं होता है. सैक्स के नाम पर कचरा परोसती बातें फेसबुक पर इफरात से मौजूद हैं. इन्हें पढ़ और देख कर सिर पीट लेने का मन करने लगता है.

एक अंदाजे के मुताबिक, देशभर में तकरीबन 35 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं और अब ज्यादातर लोग सैक्स के छोटेछोटे वीडियो देखने के लिए लौगइन करते हैं. इस के अलावा फेसबुक पर पोर्न फिल्मों की भी भरमार है, जो ज्यादा हर्ज की बात नहीं है, लेकिन बीते कुछ समय से सैक्स के सवालजवाब वाले वीडियो लोग ज्यादा देख रहे हैं.

ये वीडियो मशहूर टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तर्ज पर होते हैं, जिन में एक सवाल पूछ कर 5 सैकंड यूजर को दिए जाते हैं. यूजर बड़ी दिलचस्पी से अपने अंदाजे के बाद जवाब सुनता है तो हैरान रह जाता है कि ऐसा कैसे हो सकता है. यह तो सरासर बेवकूफी वाली बात है.

मिसाल के तौर पर, योनि पर थप्पड़ मारने वाले जैसे सवाल ही अपनेआप में हिंसक होते हैं. जवाब बनाने वालों ने यह भी नहीं सोचा कि लड़की का प्राइवेट पार्ट बहुत नाजुक होता है, जिस पर थप्पड़ मारने से उसे कितनी तकलीफ होगी. यह तो वह लड़की ही बता सकती है, जिस के प्राइवेट पार्ट पर थप्पड़ मारा जाए.

हैरानी नहीं होनी चाहिए कि दर्द से तिलमिलाती और बिलबिलाती लड़की गुस्से में लड़के के प्राइवेट पार्ट पर लात मार दे. फिर न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी वाली कहावत की तर्ज पर न हमबिस्तरी होगी, न दोनों में से कोई डिस्चार्ज होगा.

हां, मुमकिन यह है कि दोनों में से कोई एक या दोनों ही पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाते या डाक्टर के यहां इलाज कराते दिखें.

अब अगर कोई लड़का अपने अंग पर नीबूशहद लगाएगा, तो दर्द और जलन से आधा हो जाएगा, क्योंकि लड़कों का प्राइवेट पार्ट भी लड़कियों के प्राइवेट पार्ट से कम नाजुक नहीं होता.

एक और सवाल के जवाब में बताया जा रहा है कि शराब पीने से वीर्य जल्दी नहीं गिरता है, जबकि हकीकत में शराब पिया हुआ आदमी जल्दी डिस्चार्ज हो जाता है और उस ने अगर ज्यादा चढ़ा रखी हो तो बिस्तर पर ही डिस्चार्ज हो जाता है, क्योंकि नशे में धुत्त रहने के चलते उसे कुछ सूझता ही नहीं.

होश वाले जरूर एक सवाल के जवाब के मुताबिक अंग पर तिल का तेल लगा कर सैक्स करें, तो वीर्य उन की मरजी से गिरने की गारंटी रहती है. अब कौन किस के सामने जा कर दुखड़ा रोए कि तिल और सांडे के तेल से भी चौथी ड्राइव में फुस हो गए थे. वीर्य ने मरजी की परवाह ही नहीं की, जिस से भद्द पिट गई पार्टनर के सामने.

तो फिर क्यों देखते हैं लोग

यह ठीक वैसी ही बात है, जैसी यह कि लोग सैक्स क्यों करते हैं? दरअसल, हमारे देश और समाज में सैक्स की चर्चा को यों बुरा समझा जाता है मानो यह कोई पाप हो, जबकि हर कोई जानता है कि सैक्स भोजन के बाद जिंदगी की दूसरी बड़ी जरूरत है.

एक उम्र के बाद लड़केलड़कियां कुदरती तौर पर इस के बारे में जानने को मजबूर और बेचैन हो जाते हैं और जहां से उन्हें जानकारी मिलती है, वे उस पर टूट पड़ते हैं.

इंटरनैट के इस दौर में लोग खासतौर से कम उम्र के लड़के व लड़कियां अगर इसी के लिए फेसबुक भी खोलने लगे हैं, तो इस में हैरत की कोई बात नहीं है. जब वीडियो नहीं होते थे, तो नौजवान चोरीछिपे सैक्स से जुड़ी पत्रिकाएं और किताबें खरीद कर पढ़ते थे.

कहीं पकड़े न जाएं, इस का जरा सा भी खटका होता था, तो किताब या मैगजीन तोड़मरोड़ कर पाजामे या बिस्तर में छिपाना पड़ता था, लेकिन अब स्मार्टफोन पर ऐसा कोई खतरा नहीं है. जरा सी भी आहट हो तो बैक हुआ जा सकता है.

उस दौर में लड़के अपने दोस्तों से और लड़कियां अपनी भाभी, मामी, मौसी या शादीशुदा सहेलियों से सैक्स से जुड़ी जानकारियां शेयर करती थीं, पर अब ये सिलसिले और रिश्ते गांवदेहात तक में इंटरनैट ने छीन लिए हैं.

पर अफसोस की बात आज भी यह है कि इन ख्वाहिशमंदों को आज भी सटीक और सही जानकारी कहीं से नहीं मिल रही है. सोशल मीडिया, जो जानकारी पाने का सब का एकलौता सहारा हो चला है, के तमाम प्लेटफार्म उन्हें पोर्न वीडियो तो दिखा रहे हैं, लेकिन यह नहीं बता रहे हैं कि सैक्स कोई हौआ नहीं है और न ही हमबिस्तरी में ज्यादा पहलवानी दिखाना कोई मर्दानगी की बात है.

अगर आप सैक्स के बारे में अच्छी और सही जानकारी देने वाली किताबें और पत्रिकाएं पढ़ेंगे, तो कभी परेशान या चिंतित नहीं होंगे, फिर तनाव होना तो दूर की बात है, क्योंकि ये किताबें और पत्रिकाएं समाज के जिम्मेदार लोग छापते और बेचते हैं, जो किसी भी कीमत पर लोगों को गुमराह नहीं कर सकते.

इन की पहचान बहुत आसान है कि ये नामी बुक स्टोर्स पर मिलती हैं और रैगुलर मिलती हैं. मुनाफा कमाना इन का एकलौता मकसद नहीं होता है.

भोपाल के न्यू मार्केट इलाके में छोटी सी गुमटी लगाने वाले दुर्ग से आए नौजवान विकास का कहना है कि वह फेसबुक वगैरह पर जब भी सैक्स संबंधित जानकारियां ढूंढ़ने की कोशिश करता है, तो ऐसे पेज या वीडियो तुरंत सामने आ जाते हैं और वह इन्हीं में भटक कर रह जाता है. बहुत कम पेज या वीडियो ऐसे मिलते हैं, जो उस के सवालों के ठीकठीक जवाब दे पाएं.

परेशानी में डालती गलत जानकारियां

विकास को नहीं पता कि मर्द के अंग की औसत लंबाई कितनी होती है या कितनी होनी चाहिए. इस बाबत जब उस ने फेसबुक खंगाला, तो ऐसे विज्ञापनों की भरमार थी, जो अंग के मजबूत, बड़े और कड़े होने का दावा कर रहे थे.

विकास ने रात को बाथरूम में अपना अंग नाप कर देखा तो वह 5 इंच से कुछ कम निकला, जिसे ले कर वह टैंशन में आ गया और उसे अपना अंग औरों से छोटा लगने लगा, जबकि उस ने किसी और का अंग कभी नाप कर नहीं देखा था. 2 दिन बाद ही उस ने एक मालिश वाला तेल और्डर कर दिया.

महीनेभर बाद विकास ने फिर अंग नापा, तो वह पिछली बार जितना ही निकला, जिस से

उसे समझ आया कि वह उल्लू बन गया है और चायसमोसे बेच कर वह जो लगभग 1,000-500 रुपए के बीच कमाता था, उन में से एक दिन की कमाई इस तेल की बलि चढ़ गई है.

फिर भी विकास कहता है कि रोजाना की मालिश से यह फायदा तो हुआ कि अंग जल्दी जोश में आ जाता है और थोड़ा साफ व गोरा भी दिखने लगा है.

बात केवल ऐसी एक सवाल की नहीं, बल्कि जिज्ञासाओं से भरे सैकड़ों सवालों की है, जिन के जवाब करोड़ों विकासों को चाहिए.

सैक्स और हमबिस्तरी से ताल्लुक सही जानकारियां न मिलना उतनी परेशानी की बात नहीं है जितनी यह है, कि गलत जानकारियों को लोग सही समझ कर अमल में लाने लगते हैं.

इश्तिहारों के लिए है कचरा

सैक्स के प्रोडक्ट बेचने वाले अब औनलाइन सक्रिय हो कर धंधा कर रहे हैं. इस चक्कर में कई बार सही इश्तिहार गलत और गलत इश्तिहार सही समझ लिए जाते हैं.

मिसाल फेसबुक की ही लें, तो जान कर हैरानी होती है कि इश्तिहारों से उस की आमदनी प्रति घंटा 100 करोड़ रुपए है और उस की इश्तिहार पौलिसी में सबकुछ जायज है.

पोर्न फिल्मों और सवालजवाब वाले सैक्सी वीडियो के बीच सब से ज्यादा इश्तिहार दिखाए जाते हैं और अकसर उसी समय दिखाए जाते हैं, जब वीडियो या तो क्लाइमैक्स पर होता है या उस में यह इशारा कर दिया जाता है कि इश्तिहार के बाद वाले सीन में वह सब दिखाया जाने वाला है, जिस के लिए आप ने वीडियो देखना शुरू किया है. तो यूजर इश्तिहार भी देख लेता है, जिस से आमदनी फेसबुक जैसे प्लेटफार्मों की बढ़ती है.

ये इश्तिहार ज्यादा बड़े भी नहीं होते, इसलिए भी यूजर इन्हें नहीं हटाता. ज्यादातर इश्तिहारों में लड़की का सवाल पूछना भी लोगों को भाता है, जो नाजुक अंगों और हमबिस्तरी के लिए बेहिचक चालू शब्दों का इस्तेमाल करती है.

नतीजतन, धीरेधीरे लोग इन इश्तिहारों पर भरोसा करने लगते हैं और प्रोडक्ट कभी न कभी और्डर कर ही देते हैं. अब इन में से कितने इश्तिहार असरदार हैं और कितने बेकार हैं, इस का कोई पैमाना किसी के पास नहीं है, क्योंकि सारे प्रोडक्ट औनलाइन ही मंगाए जाने का इंतजाम रहता है, इसलिए ठगे गए या लुटेपिटे लोग किसी से शिकायत भी नहीं कर पाते हैं, जिस से बेचने वाला और फेसबुक अपनी तिजोरी भरते खुश होते रहते हैं और सैक्स के नाम पर नएनए प्रयोग करते रहते हैं, जिस से उन का फेस खिला रहे.

भोपाल के एक नामी वकील का कहना है कि लोग कोई दूसरा घटिया प्रोडक्ट मिलने पर तो उपभोक्ता फोरम में दावा ठोंक देते हैं, जिन में सैक्स प्रोडक्ट का एक भी दावा नहीं होता, क्योंकि इस से उन की पहचान और बात उजागर होगी और उन की ही जगहंसाई होगी.

एक 50 पैसे के आंवले में अगर लड़की पट कर हमबिस्तारी करने के लिए तैयार नहीं होती है, तो लोग कहां जा कर शिकायत करेंगे. ऐसे टोनेटोटकों से लोगों को खुद ही आगाह रहना पड़ेगा.

इस से तो बेहतर है कि लोग सैक्स संबंधी जानकारियां वहीं से लें, जहां से दूसरी जानकारियां भी सच्ची वाली मिलती हों और जो सिर्फ तगड़े मुनाफे के लिए सैक्स और उस से जुड़े प्रोडक्ट का ही कारोबार न करते हों.

मासिक धर्म : उन खास दिनों में सफाई

मासिक धर्म या माहवारी कुदरत का दिया हुआ एक ऐसा तोहफा है, जो किसी लड़की या औरत के मां बनने का रास्ता पक्का करता है. इस की शुरुआत 10 साल से 12 साल की उम्र में हो जाती है, जो  45 साल से 50 साल तक बनी रहती है. इस के बाद औरतों में रजोनिवृत्ति हो जाती है. इस दौरान उन्हें हर महीने माहवारी के दौर से गुजरना होता है. अगर वे अपने नाजुक अंग की समुचित साफसफाई न करें, तो तमाम तरह की बीमारियों की चपेट में आ सकती हैं.

हमारे समाज में आज भी माहवारी के 4-5 दिनों तक लड़कियों व औरतों के साथ अछूत जैसा बरताव किया जाता है. यही नहीं, ज्यादातर लड़कियां और औरतें इस दौरान परंपरागत रूप से कपड़े का इस्तेमाल करती हैं और उसे धो कर ऐसी जगह सुखाती हैं, जहां किसी की नजर न पड़े.

सेहत के नजरिए से ये कपड़े दोबारा इस्तेमाल करने के लिए ठीक नहीं हैं. इस का विकल्प सैनिटरी नैपकिन हैं, लेकिन  महंगे होने की वजह से इन का इस्तेमाल केवल अमीर या पढ़ीलिखी औरतों तक ही सिमटा है.

आज भी देश के छोटेछोटे गांवों और कसबों की लड़कियां और औरतें सैनिटरी नैपकिन के बजाय घासफूस, रेत, राख, कागज या कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं.

एक सर्वे के मुताबिक, 80 फीसदी औरतें और स्कूली छात्राएं ऐसा ही करती हैं. इन में न सिर्फ अनपढ़, बल्कि कुछ कामकाजी पढ़ीलिखी औरतें भी शामिल हैं.

फिक्की लेडीज आर्गनाइजेशन की सदस्यों द्वारा किए गए सर्वे में ऐसी बातें सामने आई हैं. संस्था की महिला उद्यमियों ने गांवों और छोटे शहरों में स्कूली छात्राओं और महिला मजदूरों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सब्जी बेचने वाली औरतों से बात की. उन से पूछा गया कि वे सैनिटरी हाईजीन के बारे में क्या जानती हैं?

कसबों में स्कूली बच्चियों से पूछने पर यह बात सामने आई कि कई लड़कियां हर महीने इन खास दिनों में स्कूल ही नहीं जातीं. कई मामलों में तो लड़कियों ने 5वीं जमात के बाद इस वजह से पढ़ाई ही छोड़ दी.

गांवदेहात की 38 फीसदी लड़कियां माहवारी होने की वजह से 5वीं जमात के बाद स्कूल छोड़ देती हैं. 63 फीसदी लड़कियां इस दौरान स्कूल ही नहीं जातीं. 16 फीसदी स्कूली बच्चियों को सैनिटरी नैपकिन की जानकारी नहीं है. 93 फीसदी पढ़ीलिखी व कामकाजी औरतें भी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करतीं.

चूंकि यह निहायत निजी मामला है और स्कूली छात्राओं में झिझक ज्यादा होती है, इसलिए महिला और बाल विकास के कार्यकर्ताओं द्वारा इस संबंध में स्कूलों में जा कर इन खास दिनों में बरती जाने वाली साफसफाई के बारे में समझाना चाहिए.

फिक्की लेडीज आर्गनाइजेशन द्वारा अनेक स्कूलों में नैपकिन डिस्पैंसर मशीनें लगाई गई हैं. इन मशीनों से महज 2 रुपए में नैपकिन लिया जा सकता है.

मध्य प्रदेश के कई स्कूलों में भी एटीएम की तरह सैनिटरी नैपकिन की मशीनें लगाई गई हैं, जहां 5 रुपए का सिक्का डालने पर एक नैपकिन निकलता है. ये सभी वे स्कूल हैं, जहां केवल लड़कियां ही पढ़ती हैं.

अगर माहवारी के दिनों में पूरी साफसफाई पर ध्यान न दिया जाए, तो पेशाब संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. राख, भूसे जैसी चीजें इस्तेमाल करने के चलते औरतों को कटाव व घाव हो सकते हैं. लंबे समय तक ऐसा करने से बांझपन की समस्या भी हो सकती है.

सर्वे के दौरान कुछ ऐसे परिवार भी मिले, जहां एक से ज्यादा औरतें माहवारी से होती दिखाई दीं. सासबहू, मांबेटी, बहनबहन, ननदभाभी जब एकसाथ माहवारी से होती हैं और अपने अंगों पर लगाए गए कपड़ों को धो कर सुखाती हैं, तो बाद में यह पता लगाना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि कौन सा कपड़ा किस का इस्तेमाल किया हुआ था? ऐसे में अगर ठीक से कपड़ा नहीं धुला, तो दूसरी को इंफैक्शन हो सकता है.

माहवारी के दौरान गर्भाशय का मुंह खुला होता है. इन दिनों अगर साफसफाई का ध्यान नहीं रखा जाए, तो इंफैक्शन होने का खतरा रहता है.

माहवारी के दिनों में घरेलू कपड़े के पैड के बजाय बाजारी पैड का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि कपड़े के पैड की तुलना में बाजारी पैड नमी को ज्यादा देर तक सोखता है, घाव नहीं करता व दाग लगने के डर से बचाता है.

माहवारी के दिनों में नहाना बहुत जरूरी है, खासकर प्रजनन अंगों की साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए. पैंटी को भी रोजाना बदलना चाहिए.

माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले बाजारी पैड को कागज में लपेट कर कूड़ेदान में डालें. इन्हें पानी के साथ न बहाएं और न ही खुले में डालें.

इस में कोई शक नहीं है कि अच्छी या नामीगिरामी कंपनियों के सैनिटरी नैपकिन काफी महंगे आते हैं. एक दिन में 4-5 पैड लग जाते हैं. यह खर्च उन के बजट से बाहर है. इस के अलावा उन्हें दुकान पर जा कर इसे खरीदने में भी शर्म आती है.

लड़कियों और औरतों की सेहत की खातिर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे सैनिटरी नैपकिन बनाने वाली कंपनियों को अनुदान दे कर इस की लागत इतनी कम कर दें कि एक या 2 रुपए में वह मिलने लगे. यह औरतों और लड़कियों की भलाई की दिशा में एक अच्छा कदम होगा.

मजदूर ही नहीं खेतिहर भी हैं महिला किसान

महिला किसानों को ले कर आमतौर पर यह सोचा जाता है कि वे केवल खेती में मजदूरी का ही काम करती हैं. असल में यह बात सच नहीं है. आज महिलाएं किसान भी हैं. वे खेत में काम कर के घर की आमदनी बढ़ा रही हैं. बैंक से लोन लेने के साथ ही साथ ट्रैक्टर चलाने, बीज रखने, जैविक खेती करने, खेत में खाद और पानी देने जैसे बहुत सारे काम करती हैं. ऐसी महिला किसानों की अपनी सफल कहानी है, जिस से दूसरी महिला किसान भी प्रेरणा ले रही हैं. जरूरत इस बात की है कि हर गांव में ऐसी महिला किसानों की संख्या बढे़ और खेती की जमीन में उन को भी मर्दों के बराबर हक मिले.

महिलाओं की सब से बड़ी परेशानी यह है कि खेती की जमीन में उन का नाम नहीं होता. इस वजह से बहुत सी सरकारी योजनाओं का लाभ महिला किसानों को नहीं मिल पाता है. खेती की जमीन में महिलाओं का नाम दर्ज कराने के लिए चले ‘आरोह’ अभियान से महिलाओं में एक जागरूकता आई है. आज वे बेहतर तरह सेअपना काम कर रही हैं. तमाम प्रगतिशील महिला किसानों से बात करने पर पता चलता है कि वे किस तरह से अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ीं.

मुन्नी देवी शाहजहांपुर की रहने वाली हैं. उन के परिवार में 2 बेटे व एक बेटी है. लेकिन घर के हालात कुछ ऐसे बदले कि मुन्नी देवी का परिवार तंगहाली में आ गया. घर में बंटवारा हुआ. पति के हिस्से में जो जमीन आई, उस से गुजारा करना मुश्किल था.

मुन्नी देवी को आश्रम से जुड़ने का मौका मिला. हिम्मत जुटा कर उन्होंने पति से बात कर आश्रम में वर्मी कंपोस्ट बनाने का प्रशिक्षण ले कर बाद में खुद ही खाद बनाने का काम शुरू कर दिया.

आर्थिक उन्नयन के लिए मुन्नी देवी फसलचक्र व फसल प्रबंधन को बेहद जरूरी मानती हैं. 3 बीघे खेत में सब्जी व 5 बीघे खेत में गेहूं 4 बीघे खेत में गन्ने की फसल उगा रही हैं. गन्ने के साथ मूंग, उड़द, मसूर, लहसुन, प्याज, आलू, सरसों वगैरह की सहफसली खेती करती हैं, जिस से परिवार की रसोई के लिए नमक के अलावा बाकी चीजों की जरूरत पूरी कर लेती हैं.

इसलावती देवी अंबेडकरनगर से हैं. उन्होंने कहा कि हम ने मायके में देखा था कि मिर्च की खेती किस तरह होती है और यह लाभप्रद भी है, उसी अनुभव से हम ने मिर्च की खेती शुरू की और आज हम अपने 7 बीघे खेत में सिर्फ सब्जी और मेंथा आयल की फसल उगाते हैं. मिर्च की खेती एक नकदी फसल है. दूसरी सब्जियां भी महंगे दामों में बिक जाती हैं. खेत में हमारा पूरा परिवार कड़ी मेहनत करता है. खेती कोई घाटे का काम नहीं है, अगर खुद किया जाए तो. मैं पिछले साल से अब तक 1 लाख रुपए का मेंथा आयल और 40000 रुपए की मिर्च बेच कर शुद्ध लाभ कमा चुकी हूं. जहां रोज 1000 रुपए की मिर्च, 200 रुपए का दूध बेच लेते हैं, वहीं मेंथा हमारा इमर्जेंसी कैश है. आरोह मंच से जुड़ने के बाद तो जैसे उन के स्वाभिमान में भी बढ़ोतरी हुई है.

कुंता देवी सहारनपुर की एक साहसी, जुझारू व संघर्षशील महिला किसान हैं. 1 दिन जब वे पशुओं के लिए मशीन में चारा काट रही थीं, तो उन का हाथ घास की गठरी के साथ मशीन में चला गया और पूरी बाजू ही कट गई. कुंता ने उसे ही अपना नसीब समझा और सबकुछ चुपचाप सह लिया. लेकिन यहीं कुंता के दुख का अंत नहीं था. उस के देवर व जेठ की बुरी नजर उस पर थी. कुंता का पति मानसिक रोगी था, जिस के कारण कुंता का देवर धर्म सिंह उस का फायदा उठाना चाहता था. वह कुंता पर लगातार दबाव डालने लगा कि पति के साथसाथ वह देवर के साथ भी रहे.

एक दिन जब कुंता पति के साथ अपने खेत में काम कर रही थी, तभी उस का जेठ जय सिंह वहां आया और उस के पति को जबरदस्ती पेड़ से बांध दिया और कुंता के साथ जबरदस्ती करने लगा. लेकिन कुंता बहुत हिम्मतवाली महिला है. उस ने खेत में ही डंडा निकाल कर अपने जेठ को पीटना शुरू कर दिया. उस का जेठ वहां से जान बचा कर भाग गया.

मीरा देवी गोरखपुर की एक लघु सीमांत महिला किसान हैं. आरोह अभियान से पिछले 10 वर्षों से जुड़ी हैं. ग्राम जनकपुर की आरोह महिला मंच की अध्यक्ष भी हैं. आरोह अभियान से जुड़ने के बाद मीरा में जो साहस व हिम्मत आई है, वह एक मिसाल है.

8 साल ही विवाह के हुए थे कि पति की अचानक मौत हो गई. अब मीरा की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे खेती, परिवार व बच्चे कैसे संभाले  इसी  बीच आरोह मंच द्वारा गांव में काम शुरू किया गया, जिस से मीरा जुड़ी.

स्वयं सहायता समूह बना, जिस में मीरा अध्यक्ष के रूप में चुनी गई. समूह की बैठक में भाग लेने से और अन्य गतिविधि जैसे किसान विद्यालय की बैठक, संघ की बैठक वगैरह में जाने के कारण मीरा को अपनी बात कहने का साहस आया.

जगरानी देवी ललितपुर की एक महिला किसान हैं. उन की शहरी आदिवासी पट्टे की जमीन पर वर्षों से दंबगों का कब्जा था, जिस पर इन को कब्जा नहीं मिल रहा था. जब यह आरोह अभियान से जुड़ीं, उस के बाद आरोह अभियान द्वारा जनसुनवाई की गई, जिस में एसडीएम आए तब इन्होंने उन के सामने अपनी समस्या रखी. उस के बाद एसडीएम ने उन्हें कब्जा दिलाया. अब जगरानी देवी अपने खेत में सब्जी की खेती करती हैं और अपनी सब्जी को खुद ही बाजार में बेचती हैं.

बढ़ रहे तलाक के मामले, माहौल गरमाया

देश में तीन तलाक के मुद्दे पर सियासी और सामाजिक माहौल गरमाया हुआ है. मजहबी कट्टरपंथी मुसलिम पर्सनल ला में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध कर रहे हैं जबकि हिंदूवादी संगठन और केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने को आमादा दिख रही है. यह ठीक है कि मुसलमानों में तलाक को ले कर मुसलिम महिलाएं बहुत त्रस्त हैं. केवल 3 बार तलाक कह कर औरत को छोड़ दिया जाता है. इस मामले में हिंदू संगठनों को खुश होने की जरूरत नहीं है. देश में हिंदुओं में भी तलाक के मामले बढ़ते जा रहे हैं. वह भी ऐसे में जब सगाई से ले कर फेरे तक धर्म के रीतिरिवाजों द्वारा आस्थापूर्ण तरीके से विवाह संपन्न कराए जाते हैं.

हम सुनते आए हैं कि जोडि़यां आसमान से बन कर आती हैं. सच तो यह है कि जोडि़यां टूटती धरती पर हैं. तलाक का रोग अब धीरेधीरे भारत में भी फैलता जा रहा है. हालांकि पश्चिमी देशों की तुलना में तलाक के मामले अभी भी यहां बहुत कम हैं. भारत में तलाक के ज्यादातर मामले बड़े शहरों कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, लखनऊ आदि में नजर आए हैं. पिछले एक दशक में कोलकाता में तलाक के मामले लगभग 350 प्रतिशत बढ़े हैं. मुंबई और लखनऊ में तो पिछले 5 वर्षों में यह 200 प्रतिशत बढ़ा है. तलाक के बढ़ते मामलों को देखते हुए बेंगलुरु में 2013 में 3 नए फैमिली कोर्ट खोलने पड़े थे. शादी के 5 साल के अंदर ही तलाक चाहने वाले ज्यादातर युवाओं के तलाक के हजारों मामले कचहरी में लंबित पड़े हैं.

आखिर हमारे देश में भी तलाक के मामले क्यों बढ़ रहे हैं? हम शादी के फेरे लेते समय तो सात जन्म तक साथ रहने की कसमें खाते हैं. पर फिर ऐसा क्या हो जाता है जो तलाक की नौबत आ जाती है. तलाक के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक समस्याएं आदि. सब से पहले तो हमें यह समझना होगा कि औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण की दौड़ में अब संयुक्त परिवार टूट कर बिखर चुके हैं. तरक्की के मामले में अब गांव कसबा बन गया है, कसबा शहर और शहर मैट्रो. जहां सरसों के खेत थे, भैंसें बंधी होती थीं, उस जमीन पर अब मौल्स, शौपिंग कौंप्लैक्स, अपार्टमैंट्स और आईटी कंपनियों के दफ्तर बन गए हैं खासतौर से गुड़गांव में. यही हाल बाकी शहरों का भी है. साथ ही तलाक के मामले भी बढ़ रहे हैं.

तलाक के बढ़ते मामलों की सब से बड़ी वजह धर्म है. प्रेम, शादी और तलाक के बीच धर्म की गहरी घुसपैठ है. भला ब्याहशादी में धर्म का क्या काम? पंडे, पादरी, मुल्लामौलवी बीच में क्यों? किसी भी जोड़े के बीच सब से पहले धर्म, जाति, गोत्र का सवाल सामने आता है. अगर कोई जोड़ा धर्म की इन बाधाओं को पार कर के शादी कर भी लेता है तो परिवार, समाज का सामना करना उन के लिए मुश्किल होता है और आखिर नौबत रिश्ता टूटने तक आ जाती है.
हर धर्म के अपनेअपने पर्सनल ला बने हुए हैं. विवाह, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार जैसे मामलों में धर्म की दखलंदाजी है. वहीं, महिला पहले की अपेक्षा अब पढ़लिख रही है, तरक्की कर रही है.

  1. रूढि़वादी बंधन : पहले की अपेक्षा स्त्रियों की शिक्षा दर में काफी वृद्धि हुई है. अब लगभग 46 प्रतिशत महिलाएं स्नातक या 12वीं पास हैं, पीएचडी में 40 प्रतिशत, 28 प्रतिशत इंजीनियरिंग में, 40 प्रतिशत आईटी में, 32 प्रतिशत वकालत में और 35 प्रतिशत मैनेजमैंट में लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं. इन कोर्सेज की पढ़ाई पर काफी पैसा खर्च होता है. जाहिर है इतना खर्च कर के पढ़लिख कर वे घर में तो नहीं बैठेंगी. वे भी नौकरी करने लगती हैं तो उन में कुछ आत्मसम्मान, स्वतंत्रता व आत्मनिर्भरता की भावना आना भी स्वाभाविक है. वे कठोर या रूढि़वादी बंधन अब बरदाश्त नहीं कर सकती हैं. ऐसे में आपसी टकराव और रंजिशें बढ़ने लगती हैं. अब औरत भी रिश्ते में बराबरी चाहती है पर धर्म उसे बेडि़यों में जकड़े रखना चाहता है.
    2. सासससुर का दखल : एक तरफ जहां बेटे की शादी के बाद भी अकसर मां बेटे पर पहले जैसा ही अधिकार समझती है तो दूसरी तरफ पत्नी का भी पूर्ण अधिकार अपने पति पर होना स्वाभाविक है. कभी बेटी के मातापिता पतिपत्नी के बीच के छोटेमोटे विवाद में अपनी बेटी का जरूरत से ज्यादा पक्ष लेते हैं. इस से विवाद बढ़तेबढ़ते बड़ा रूप ले लेता है. परिवार अपनी बहू से लड़का ही चाहता है. लड़की होने पर बहू का तिरस्कार किया जाता है. कदाचित तलाक के एक ऐसे केस में अदालत को और्डर देना पड़ा था कि 6 महीने तक पतिपत्नी को साथ रहने दिया जाए, इस बीच दोनों में किसी के मातापिता उन से कोई संपर्क नहीं रखें. 6 महीने साथ रहने के बाद भी अगर वे तलाक चाहते हैं तो कोर्ट उस पर विचार करेगा.

3. इच्छा के विरुद्ध शादी : मातापिता अपनी संतान की शादी उन की इच्छा के विरुद्ध अपनी मरजी से कर देते हैं, कभी तिलक की रकम तो कभी जातपात या धर्म के चलते. इस के चलते पतिपत्नी में प्रेम का अभाव होता है.

4. सासबहू का झगड़ा : सास अपनी बहू पर ज्यादा रोब जमाने लगती हैं. धार्मिक परंपराओं को निभाने का दबाव डालती है. एक या दो पीढ़ी पहले उन की सास उन के साथ रहा करती होंगी लेकिन आजकल की पढ़ीलिखी कमाऊ बहू को यह बरदाश्त नहीं है और वह विद्रोह करती है. इस से घर में तनाव पैदा होता है और पति के साथ भी रिश्ता बिगड़ जाता है.

5. धारा 498 ए और घरेलू हिंसा के नियम का दुरुपयोग : कुछ वर्ष पहले औरतों को दहेज विरोधी उपरोक्त नियम से कुछ विशेष अधिकार मिले थे ताकि उन को पति या ससुराल का कोई सदस्य दहेज न मिलने या कम मिलने के चलते प्रताडि़त न करे. इस की आड़ में छोटीमोटी बातों को तोड़मरोड़ कर पत्नी, पति के विरुद्ध मुकदमा इस धारा के तहत दायर कर देती है. आगे चल कर मुकदमे का अंजाम ज्यादातर तलाक ही होता है.

6. साजिश के तहत शादी : कभी कोई गरीब या साधारण घर की लड़की बहुत अमीर घर के लड़के से शादी कर लेती है. आगे चल कर ब्लैकमेल कर मोटी रकम ले कर तलाक कर समझौता कर लेती है. स्थिति इस के विपरीत भी हो सकती है यानी कोई गरीब लड़का और अमीर लड़की.

7. प्यार में कमी आना : लड़कालड़की प्रेमविवाह तो कर लेते हैं पर कभीकभी उसे निभा नहीं पाते हैं. शादी के कुछ अरसे बाद उन का प्यार कम होने लगता है और वे अलग होना ही बेहतर समझते हैं. क्योंकि वे धर्म और जाति की रूढि़वादी परंपराओं में अलगअलग रह नहीं पाते.

8. व्यभिचार का होना : कभीकभी तो पति या पत्नी का व्यभिचारी होना भी तलाक का कारण बन जाता है. हमारा कोर्ट भी इसे तलाक के लिए जायज मुद्दा मानता है और साबित हो जाने पर इस आधार पर तलाक मंजूर हो जाता है.

9. किसी प्रकार की मृगमरीचिका : कभीकभी पति या पत्नी को यह वहम होता है कि उस का वर्तमान साथी उसे वह खुशी नहीं दे पा रहा है जो कोई दूसरा पुरुष या महिला उस को दे सकती है. ऐसी कल्पना मात्र से दोनों के एकदूसरे के प्रति प्रेम और रुचि में कमी आ जाती है.

10. मायके से ज्यादा नजदीकी : शादी के बाद भी औरत अगर ससुराल को नजरअंदाज कर मायके को प्राथमिकता देती है तो यह पति या ससुराल वालों को अच्छा नहीं लगता है. औरत अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा मायके पर खर्च करे, तो ससुराल वालों को आपत्ति होती है. इस से कमाऊ पत्नी नाराज हो जाती है. इस के अतिरिक्त हजारों ऐसे मामले भी हैं जहां पति या पत्नी एकदूसरे से बिना तलाक के अलग रह रहे हैं. वे चाहे कितनी भी लंबी अवधि तक अलग रहें, यह तलाक का आधार नहीं हो सकता है. हां, जहां पति या पत्नी ने पहले से ही तलाक की अर्जी दे रखी है, कोर्ट उन को एक खास समय के लिए कानूनी अलगाव की मंजूरी देता है ताकि वे एकदूसरे से अपने रिश्ते के बारे में पुनर्विचार करें. इस अवधि में वे कानून की नजर में शादीशुदा रहेंगे. फिर अगर वे साथ रहने का फैसला लेते हैं तो कोर्ट उन की तलाक की अर्जी खारिज कर सकता है. अगर वे साथ न रहना चाहें तो कानून के अंतर्गत उन की तलाक याचिका सुनी जाएगी.

जो भी हो, तलाक पति या पत्नी किसी के लिए अच्छा नहीं है. मानसिक तनाव तो दोनों को होता है. अगर उन के बच्चे हुए तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है. हमारा कोर्ट भी तलाक के मामले में अंत तक पतिपत्नी को मिलाने का प्रयास करता है. एकदूसरे की छोटीमोटी गलतियों या कमियों को उजागर न कर के, उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है ताकि रिश्ते में माधुर्य बना रहे और बात घर से बाहर निकल कर कोर्टकचहरी तक पहुंचने की नौबत न आए. पतिपत्नी में परस्पर विश्वास बना रहे, वे एकदूसरे की भावना और पारिवारिक जिम्मेदारी को महत्त्व दें.

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