अक्षय तृतीया से जुड़े भ्रामक तथ्य

ढकेल देते हैं. आगे का आदमी इसी पानी को मुंह में भर कर कुल्ला करता है तथा खांसखंखार कर अपना कफ दूसरे के लिए आगे बढ़ाता है. इस तरह देखें तो गंगा संक्रामक रोगों के संवाहक का काम करती है. तिस पर तुर्रा यह है कि गंगा में नहाने से मुक्ति मिलती है. इसीलिए मेरा मानना है कि मुक्ति तो दूर, रोगों की संवाहक गंगा, चैन से जीने भी नहीं देगी.

अक्षय तृतीया के दिन दानपुण्य की बात कही गई है. लोग गंगा स्नान के बाद पंडेपुजारियों को सत्तू, दही, पंखा, शर्करा, जूता, छाता आदि का दान करते हैं. ये सब वस्तुएं हमें लू और गरमी से बचाती हैं. धर्मभीरु जनता भले ही लू से मर जाए पर पंडेपुजारियों को पेट काट कर, दान अवश्य दे. दान लेने वाला पंडा/पुजारी कभी नहीं पूछता, ‘यजमान, क्या तुम्हारे पास ये चीजें हैं?’ भला, वह क्यों पूछेगा? यजमान मरे या जीए. सत्तू वह खाएगा. दही वह पीएगा. जूता वह पहनेगा ताकि गरम जमीन पर पैर न जलें. छाता वह लगाएगा, जिस से धूप से बच सके. पंखा वह डुलाएगा ताकि गरमी न लगे.

पंडेपुजारियों ने दानपुण्य की सामग्री भी मौसम के हिसाब से निर्धारित की हुई है.

उन का कहना है, शास्त्रों में लिखा है कि अक्षय तृतीया को संग्रह किया धन अक्षय होता है. तो क्या शेष दिन का कमाया धन क्षय हो जाता है? तमाम मुसलिम लुटेरे व अंगरेज हमारे देश से सोना, चांदी, हीरा, जवाहरात लूट कर अपने देश ले गए, क्या वे अक्षय तृतीया को नहीं खरीदे या संगृहीत किए गए थे? क्या पंडेपुजारियों ने तब के राजा- महाराजाओं को इस गूढ़ तथ्य से अवगत नहीं कराया था?

ज्योतिषी, जो सुनारों से मिले रहते हैं, तमाम बकवास पत्थरों को अंगूठी में जड़ कर पहनने की सलाह देते हैं. मूर्ख जनता को भले ही इस से कुछ फायदा हो या न हो पर ज्योतिषी व सुनारों की खूब कमाई होती है. एक ज्योतिषी तो बाकायदा दुकान बंद होने के समय आ धमकता है, फिर दिन भर की कमाई बतौर दलाली ले कर जाता है. अब यही ज्योतिषी, पंडेपुजारी व सुनार अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने के लिए खूब प्रचार कर रहे हैं.

कुछ साल पहले तक अक्षय तृतीया कहीं भी अस्तित्व में नहीं थी, विशेषतौर से सोना खरीदने के संदर्भ में. पर आज खूब शोर मचाया जा रहा है कि इस दिन सोना खरीदने से समृद्धि आती है. टेलीविजन चैनलों पर बड़ेबड़े सुनार अक्षय तृतीया का बखान करते हुए लोगों को सोना खरीदने के लिए उकसाते हैं. ज्योतिषी व पंडेपुजारी भी अखबारों व टेलीविजन चैनलों की मदद से इस पर्व की महिमा का खूब बखान करते हुए जनता को बरगलाते हैं. कोई उन से पूछे, सोना खरीदने से समृद्धि आती है तो क्या रिकशा वाला रिकशा बेच कर सोना खरीदे? या ठेले वाला ठेला बेच कर. रिकशा, ठेला बेच कर क्या वह सोना खाएगा? सोना उसे कौन सा रोजगार मुहैया करवाएगा? धीरूभाई अंबानी ने अपने शुरुआती दिनों में क्या सोना खरीदा था?

अक्षय तृतीया को ‘युगादि तृतीया’ की भी संज्ञा दी गई है, क्योंकि सतयुग का आरंभ इसी दिन हुआ था. सतयुग का क्यों क्षय हो गया? जब एक युग ही खत्म हो गया तो सोना क्या, समृद्धि क्या?

धनतेरस तो थी ही, अब अक्षय तृतीया भी आ गई. धनतेरस को बर्तन खरीदने की होड़ रहती है, तो अक्षय तृतीया को सोना. धनतेरस को बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. जब लोग मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करते थे तब भी? अक्षय तृतीया के दिन सोना अन्य के मुकाबले, ज्यादा मांग होने के चलते अधिक महंगा होता है. मूर्ख जनता धार्मिक अंधविश्वास के चलते सुनारों के यहां जमी रहती है. सुनार अंधविश्वास का फायदा उठा कर मालामाल होता है और कमीशन, पंडेपुजारियों को पहुंचाता है. इन सभी पर्वों के पीछे ‘धार्मिक रैकेट’ काम करता है जो नईनई कहानी गढ़ कर जनता के बीच अंधविश्वास फैलाता है.

कुल मिला कर अक्षय तृतीया कमाने, खाने व लूटने के नाम का नया धंधा है. ज्ञातव्य रहे, कभी ‘जय संतोषी मां’ का भी यही हाल था. फिल्म आने से पहले शायद ही कोई संतोषी मां को जानता था. जैसे ही इस नाम की देवी का प्रोडक्ट मार्केट में लांच हुआ, मूर्ख जनता ने उसे हाथोंहाथ लिया. फिर तो संतोषी के अनेक मंदिर, गली व चौराहों पर बन गए. महिलाएं शुक्रवार का व्रत करने लगीं. धार्मिकनगरी बनारस के एक सिनेमा हाल, जहां यह फिल्म हाउसफुल चल रही थी, वहीं मूर्ख व्रती महिलाएं उद्यापन व परिक्रमा करने लगीं. सिनेमा हाल, जय संतोषी मां का मंदिर बन गया.

जिस देश को कभी हूणों, पुर्तगालियों, मुगलों व अंगरेजों ने तबीयत से रौंदा, वहां कैसा अक्षय? मुझे तो लगता है वह दिन दूर नहीं जब सी.ए., डाक्टर, इंजीनियर, खिलाड़ी आदि बनाने के लिए पंडेपुजारियों, ज्योतिषियों व डाक्टरों की मिलीभगत से साल के कुछ दिन निश्चित कर दिए जाएंगे और प्रचारित किया जाएगा कि फलां दिन बच्चा पैदा करने पर वह ‘डाक्टर’ तथा फलां दिन पैदा करने पर वह ‘इंजीनियर’ बनेगा. दंपतियों पर निर्भर होगा कि वे अपने बच्चे को क्या बनाना चाहते हैं. और तब डाक्टरों को मनमानी फीस दे कर उसी दिन, उसी वक्त, भले ही आपरेशन से सही, बच्चा पैदा करने की होड़ मच जाएगी. इस तरह जो बच्चा पैदा होगा, बड़ा हो कर चोर ही क्यों न बने, धर्मभीरु  दंपती हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे, क्योंकि उन के हिसाब से जिस वक्त वह पैदा हुआ था, उस के इंजीनियर बनने का योग था.

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