अनोखा रिश्ता: कैसी थी सास और बहू की जोड़ी

‘‘बायमां, मैं निकल रही हूं... और हां भूलना मत,

दोपहर के खाने से पहले दवा जरूर खा लेना,’’ कह पल्लवी औफिस जाने लगी.

तभी ललिता ने उसे रोक कहा, ‘‘यह पकड़ो टिफिन. रोज भूल जाती हो और हां, पहुंचते ही फोन जरूर कर देना.’’

‘‘मैं भूल भी जाऊं तो क्या आप भूलने देती हो मां? पकड़ा ही देती हो खाने का टिफिन,’’ लाड़ दिखाते हुए पल्लवी ने कहा, तो ललिता भी प्यार के साथ नसीहतें देने लगीं कि वह कैंटीन में कुछ न खाए.

‘‘हांहां, नहीं खाऊंगी मेरी मां... वैसे याद है न शाम को 5 बजे... आप तैयार रहना मैं जल्दी आने की कोशिश करूंगी,’’ यह बात पल्लवी ने इशारों में कही, तो ललिता ने भी इशारों में ही जवाब दिया कि वे तैयार रहेंगी.

‘‘क्या इशारे हो रहे हैं दोनों के बीच?’’ ललिता और पल्लवी को इशारों में बात करते देख विपुल ने कहा, ‘‘देख लो पापा, जरूर यहां सासबहू और साजिश चल रही है.’’

विपुल की बातें सुन शंभुजी भी हंसे बिना नहीं रह पाए. मगर विपुल तो अपनी मां के पीछे ही पड़ गया, यह जानने के लिए कि इशारों में पल्लवी ने उन से क्या कहा.

‘‘यह हम सासबहू के बीच की बात है,’’ प्यार से बेटे का कान खींचते हुए ललिता बोलीं.

बेचारा विपुल बिना बात को जाने ही औफिस चला गया. दोनों को

औफिस भेज कर ललिता 2 कप चाय बना लाईं और फिर इतमीनान से शंभूजी की बगल में बैठ गईं.

चाय पीते हुए शंभूजी एकटक ललिता को देखदेख कर मुसकराए जा रहे थे.

‘‘इतना क्यों मुसकरा रहे हो? क्या गम है जिसे छिपा रहे हो...?’’ ललिता ने शायराना अंदाज में पूछा, तो उन की हंसी छूट गई.

कहने लगे, ‘‘मुसकरा इसलिए रहा हूं कि तुम भी न अजीब हो. अरे, बता देती बेचारे को कि तुम सासबहू का क्या प्रोग्राम है. लेकिन जो भी हो तुम सासबहू की बौडिंग देख कर मन को बड़ा सुकून मिलता है वरना तो मेरा सासबहू के झगड़े सुनसुन कर दिमाग घूम जाता है. हाल ही में मैं ने अखबार में एक खबर पढ़ी, जिस में लिखा था सास से तंग आ कर एक बहू 12वीं मंजिल से कूद गई और जानती हो पहले उस ने अपने ढाई साल के बेटे को फेंका और फिर खुद कूद गई, जिस से दोनों की मौत हो गई. सच कह रहा हूं ललिता यह पढ़ कर मेरा तो दिल बैठ गया था.’’

शंभूजी की बातें सुन कर ललिता का भी दिल दहल गया.

‘‘सोचा जरा उस इंसान पर क्या बीतती होगी जिसे न तो मां समझ पाती हैं और न पत्नी. पिसता रहता है बेचारा मां और पत्नी के बीच.’’

‘‘हूं, सही कह रहे हैं आप. हमारे समाज में जब एक लड़की शादी के बाद अपना मायका छोड़ कर जहां उस ने लगभग अपनी आधी जिंदगी पूरे हक के साथ गुजारी होती है, ससुराल में कदम रखते ही उस के दिल में घबराहट सी होने लगती है कि यहां सब उसे दिल से तो अपनाएंगे न? अपने परिवार का हिस्सा समझेंगे न? ज्यादातर घरों में यही होता है कि बहू को आए अभी कुछ दिन हुए नहीं कि जिम्मेदारी की टोकरी उसे पकड़ा दी जाती है. उसे यह तो समझा दिया जाता है कि सासससुर के साथसाथ ननददेवर और नातेरिश्तेदारों को भी सम्मान देना होगा, लेकिन यह नहीं समझाया जाता कि आज से यह घर उस का भी है और ससुराल में उस की राय भी उतनी ही मान्य होगी जितनी घर के बाकी सदस्यों की.

‘‘क्या एक बहू का यह अधिकार नहीं कि घर के हित के लिए जो भी फैसले लिए जाएं उन में उस की भी राय शामिल हो? क्यों सास को लगने लगता है कि बहू आते ही उस से उस के बेटे को छीन लेगी? अगर ऐसा ही है, तो फिर न करें वे अपने बेटे की शादी. रखें अपने आंचल में ही छिपा कर. अगर शादी के बाद बेटा अपने परिवार को कुछ बोल जाए, तो सब को यही लगने लगता है कि बीवी ने ही सिखाया होगा

उसे ऐसा बोलने के लिए और यही झगड़े की जड़ है. हर बात के लिए बहू को ही दोषी ठहराया जाने लगता है. और तो और उस के मायके को भी नहीं छोड़ते लोग,’’ कहते हुए ललिता की आंखें गीली हो गईं, जो शंभूजी से भी छिपी न रह पाईं.

वे समझ रहे थे कि आज ललिता के मन का गुब्बार निकल रहा है और वह वही सब बोल रही है जो उस के साथ हुआ है. उन्हें भी तो याद है... कभी उन की मां ने ललिता को चैन से जीने नहीं दिया. बातबात पर तानेउलाहने, गालीगलौच यहां तक कि थप्पड़ भी चला देती थीं वे ललिता पर और बेचारी रो कर रह जाती. लेकिन क्या कोई भी लड़की अपने मायके की बेइज्जती सहन कर सकती है भला? जब ललिता की सास उस के मायके के खिलाफ कुछ बोल देतीं, तो उस से सहन नहीं होता और वह पलट कर जवाब दे देती. यह बात उन की मां की बरदाश्त के बाहर चली जाती. गरजते हुए कहतीं कि अगर फिर कभी ललिता ने कैंची की तरह जबान चलाई तो वे उसे हमेशा के लिए उस के मायके भेज देगी, क्योंकि उन के बेटे के लिए लड़कियों की कमी नहीं है.

बेचारे शंभूजी भी क्या करते? खून का घूंट पी कर रह जाते पर अपनी मां से कुछ कह न पाते. अगर कुछ बोलते तो जोरू का गुलाम कहलाते और पहले के जमाने में कहां बेटे को इतना हक होता था कि वह पत्नी की तरफदारी में कुछ बोल सके.

‘‘मैं ने तो पहले ही सोच लिया था शंभूजी कि जब मेरी बहू का गृहप्रवेश होगा, तो उसे सिर्फ कर्तव्यों, दायित्वों, जिम्मेदारियों और फर्ज की टोकरी ही नहीं थमाऊंगी वरन उसे उस के हक और अधिकारों का गुलदस्ता भी दूंगी, क्योंकि आखिर वह भी तो अपनी ससुराल में कुछ उम्मीदें ले कर आएगी.’’

‘‘और अगर तुम्हारी बहू ही अच्छे विचारों वाली नहीं आती तब? तब कैसे निभाती उस से?’’ शंभूजी ने पूछा.

अपने पति की बातों पर वे हंसीं और फिर कहने लगीं, ‘‘मैं ने यह भी सोचा था

कि शायद मेरी बहू मेरे मनमुताबिक न आएलेकिन फिर भी मैं उस से निभाऊंगी. उसे इतना प्यार दूंगी कि वह भी मेरे रंग में रंग जाएगी. जानते हैं शंभूजीअगर एक औरत चाहे तो फिर चाहे वह सास हो या बहूअपने रिश्ते को बिगाड़ भी सकती है और चाहे तो अपनी सूझबूझ से रिश्ते को कभी न टूटने वाले पक्के धागे में पिरो कर भी रख सकती है. हर लड़की चाहती है कि वह एक अच्छी बहू बनेपर इस के लिए सास को भी तो अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी न. अगर घर के किसी फैसले में बहू की सहमति न लेंउसे पराई समझेंतो वह हमें कितना अपना पाएगीबोलिएउफबातोंबातों में समय का पता  ही नहीं चला,’’ घड़ी की तरफ देखते हुए ललिता ने कहा, ‘‘आज आप को दुकान पर नहीं जाना क्या?’’

‘‘सोच रहा हूं आज न जाऊं. वैसे भी लेट हो गया और मंदी के कारण वैसे भी ग्राहक कम ही आते हैं,’’ शंभूजी ने कहा. उन का अपना कपड़े का व्यापार था.

 ‘‘पर यह तो बताओ कि तुम सासबहू ने क्या प्रोग्राम बनाया हैमुझे तो बता दो,’’ वे बोले.

शंभूजी के पूछने पर पहले तो ललिता झूठेसच्चे बहाने बनाने लगींपर जब उन्होंने जोर दियातो बोलीं, ‘‘आज हम सासबहू फिल्म देखने जा रही हैं.’’

‘‘अच्छाकौन सी?’’ पूछते हुए शंभूजी की आंखें चमक उठीं.

‘‘अरेवह करीना कपूर और सोनम कपूर की कोई नई फिल्म आई है न... क्या नाम है उस का... हांयाद आया, ‘वीरे दी वैडिंग.’ वही देखने जा रही हैं. आज आप घर पर ही हैंतो ध्यान रखना घर का.’’

‘‘अच्छातो अब तुम सासबहू फिल्म देखो और हम बापबेटा खाना पकाएंयही कहना चाहती हो न?’’

‘‘हांसही तो है,’’ हंसते हुए ललिता बोलीं और फिर किचन की तरफ बढ़ गईं.

‘‘अच्छा ठीक हैखाना हम बना लेंगेपर

कप चाय और पिला दो,’’ शंभूजी ने कहा तो ललिता भुनभुनाईं यह कह कर कि घर में रहते हैंतो बारबार चाय बनवा कर परेशान कर देते हैं.

जो भी हो पतिपत्नी अपने जीवन में बहुत खुश थे और हों भी क्यों नजब पल्लवी जैसी बहू हो. शादी के साल हो गएपर कभी उस ने ललिता को यह एहसास नहीं दिलवाया कि वह उन की बहू है. पासपड़ोसनातेरिश्तेदार इन दोनों के रिश्ते को देख कर आश्चर्य करते और कहते कि क्या सासबहू भी कभी ऐसे एकसाथ इतनी खुश रह सकती हैंलगता ही नहीं है कि दोनों सासबहू हैं.

पल्लवी एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी कर रही थी और वहीं उस की मुलाकात विपुल से हुईजो जानपहचान के बाद दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई. साल तक बेरोकटोक उन का प्यार चलता रहा और फिर दोनों परिवारों की सहमति से विवाह के बंधन में बंध गए. वैसे तो बचपन से ही पल्लवी को सास नाम के प्राणी से डर लगता थाक्योंकि उस के जेहन में एक हौआ सा बैठ गया था कि सास और बहू में कभी नहीं पटतीक्योंकि अपने घर में भी तो उस ने आएदिन अपनी मां और दादी को लड़तेझगड़ते ही देखा था.

ज्योंज्यों वह बड़ी होती गई दादी और मां में लड़ाइयां भी बढ़ती चली गईं. उसे याद है जब उस की मांदादी में झगड़ा होता और उस के पापा किसी एक की तरफदारी करतेतो दूसरी का मुंह फूल जाता. हालत यह हो गई कि फिर उन्होंने बोलना ही छोड़ दिया. जब भी दोनों में झगड़ा होतापल्लवी के पापा घर से बाहर निकल जाते. नातेरिश्तेदारों और पासपड़ोस में भी तो आएदिन सासबहू के झगड़े सुनतेदेखते वह घबरा सी जाती.

उसे याद है जब पड़ोस की शकुंतला चाची की बहू ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा ली थी. तब यह सुन कर पल्लवी की रूह कांप उठी थी. वैसे हल्ला तो यही हुआ था कि उस की सास ने ही उसे जला कर मार डालामगर कोई सुबूत न मिलने के कारण वह कुछ सजा पा कर ही बच गई थी. मगर मारा तो उसे उस की सास ने ही थाक्योंकि उस की बहू तो गाय समान सीधी थी. ऐसा पल्लवी की दादी कहा करती थीं. पल्लवी की दादी भी किसी सांपनाथ से कम नहीं थीं और मां तो नागनाथ थीं हीक्योंकि दादी एक सुनातींतो मां हजार सुना डालतीं.

खैरएक दिन पल्लवी की दादी इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं. लेकिन आश्चर्य तो उसे तब हुआ जब दादी की 13वीं पर महल्ले की औरतों के सामने घडि़याली आंसू बहाते हुए पल्लवी की मां शांति कहने लगीं कि उन की साससास नहीं मां थीं उन की. जाने अब वे उन के बगैर कैसे जी पाएंगी.

मन तो हुआ पल्लवी का कि कह दे कि क्यों झूठे आंसू बहा रही हो मांकब तुम ने दादी को मां मानामगर वह चुप रही. मन ही मन सोचने लगी कि बस नाम ही शांति है उस की मां काकाम तो सारे अशांति वाले ही करती हैं.

सासबहू के झगड़े सुनदेख कर पल्लवी का तो शादी पर से विश्वास ही उठ गया था. जब भी उस की शादी की बात चलती, वह सिहर जाती. सोचती, जाने कैसी ससुराल मिलेगी. कहीं उस की सास भी शकुंतला चाची जैसी निकली तो या कहीं उस में भी उस की मां का गुण आ गया तो? ऐसे कई सवाल उस के मन को डराते रहते.

अपने मन का डर उस ने विपुल को भी बताया, जिसे सुन उस की हंसी रुक नहीं रही थी. किसी तरह अपनी हंसी रोक वह कहने लगा, ‘‘हां, मेरी मां सच में ललिता पवार हैं. सोच लो अब भी समय है. कहीं ऐसा न हो तुम्हें बाद में पछताना पड़े? पागल, मेरी मां पुराने जमाने की सास नहीं हैं. तुम्हें उन से मिलने के बाद खुद ही पता चल जाएगा.’’

विपुल की बातों ने उस का डर जरा कम तो कर दिया, पर पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया. अब भी सास को ले कर दिल के किसी कोने में डर तो था ही.

बिदाई के वक्त बड़े प्यार से शांति ने भी अपनी बेटी के कान फूंकते हुए समझाया था, ‘‘देख बिटिया, सास को कभी मां समझने की भूल न करना, क्योंकि सास चुड़ैल का दूसरा रूप होती है. देखा नहीं अपनी दादी को? मांजीमांजी कह कर उसे सिर पर मत बैठा लेना. पैरों में तेल मालिशवालिश की आदत तो डालना ही मत नहीं तो मरते दम तक तुम से सेवा करवाती रहेगी... सब से बड़ी बात पति को अपनी मुट्ठी में रखना और उस के कमाए पैसों को भी. अपनी कमाई तो उसे छूने भी मत देना. एक बार मुंह को खून लग जाए, तो आदत पड़ जाती है. समझ रही हो न मेरे कहने का मतलब?’’

अपनी मां की कुछ बातों को उस ने आत्मसात कर लिया तो कुछ को नहीं.

ससुराल में जब पल्लवी ने पहला कदम रखा, तो सब से पहले उस का

सामना ललिता यानी अपनी सास से ही हुआ. उन का भरा हुआ रोबीला चेहरा, लंबा चरबी से लदा शरीर देख कर ही वह डर गई. लगा जैसा नाम वैसा ही रूप. और जिस तरह से वे आत्मविश्वास से भरी आवाज में बातें करतीं, पल्लवी कांप जाती. वह समझ गई कि उस का हाल वही होने वाला है जो और बेचारी बहुओं का होता आया है.

मगर हफ्ता 10 दिन में ही जान लिया पल्लवी ने कि यथा नाम तथा गुण वाली कहावत ललिता पर कहीं से भी लागू नहीं होती है. तेजतर्रार, कैंची की तरह जबान और सासों वाला रोब जरा भी नहीं था उन के पास.

एक रोज जब वह अपनी मां को याद कर रोने लगी, तो उस की सास ने उसे सीने से लगा लिया और कहा कि वह उसे सास नहीं मां समझे और जब मन हो जा कर अपनी मां से मिल आए. किसी बात की रोकटोक नहीं है यहां उस पर, क्योंकि यह उस का भी घर है. जैसे उन के लिए उन की बेटी है वैसे ही बहू भी... और सिर्फ कहा ही नहीं ललिता ने कर के भी दिखाया, क्योंकि पल्लवी को नए माहौल में ढलने और वहां के लोगों की पसंदनापसंद को समझने के लिए उसे पर्याप्त समय दिया.

अगर पल्लवी से कोई गलती हो जाती, तो एक मां की  तरह बड़े प्यार से उसे

सिखाने का प्रयास करतीं. पाककला में तो उस की सास ने ही उसे माहिर किया था वरना एक मैगी और अंडा उबालने के सिवा और कुछ कहां बनाना आता था उसे. लेकिन कभी ललिता ने उसे इस बात के लिए तानाउलाहना नहीं मारा, बल्कि बोलने वालों का भी यह कह कर मुंह चुप करा देतीं कि आज की लड़कियां चांद पर पहुंच चुकी हैं, पर अफसोस कि हमारी सोच आज भी वहीं की वहीं है. क्यों हमें बहू सर्वगुण संपन्न चाहिए? क्या हम सासें भी हैं सर्वगुण संपन्न और यही उम्मीद हम अपनी बेटियों से क्यों नहीं लगाते? फिर क्या मजाल जो कोई पल्लवी के बारे में कुछ बोल भी दे.

उस दिन ललिता की बातें सुन कर दिल से पल्लवी ने अपनी सास को मां समझा और सोच लिया कि वह कैसा रिश्ता निभाएगी अपनी सास से.

कभी ललिता ने यह नहीं जताया कि विपुल उन का बेटा है तो विपुल पर पहला अधिकार भी उन का ही है और न ही कभी पल्लवी ने ऐसा जताया कि अब उस के पति पर सिर्फ उस का अधिकार है. जब कभी बेटेबहू में किसी बात को ले कर बहस छिड़ जाती, तो ललिता बहू का ही साथ देतीं. इस से पल्लवी के मन में ललिता के प्रति और सम्मान बढ़ता गया. धीरेधीरे वह अपनी सास के और करीब आने लगी. पूरी तरह से खुलने लगी उन के साथ. कोई भी काम होता वह ललिता से पूछ कर ही करती. उस का जो भय था सास को ले कर वह दूर हो चुका था.

लोग कहते हैं अच्छी बहू बनना और सूर्य पर जाना एक ही बात है. लेकिन अगर मैं एक अच्छी बेटी हूं, तो अच्छी बहू क्यों नहीं बन सकती? मांदादी को मैं ने हमेशा लड़तेझगड़ते देखा है, लेकिन गलती सिर्फ दादी की ही नहीं होती थी. मां चाहतीं तो सासबहू के रिश्ते को संवार सकती थीं, पर उन्होंने और बिगाड़ा रिश्ते को. मुझे भी उन्होंने वही सब सिखाया सास के प्रति, पर मैं उन की एक भी बात में नहीं आई, क्योंकि मैं जानती थी कि सामने वाले मुझे वही देंगे, जो मैं उन्हें दूंगी और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. शादी के बाद एक लड़की का रिश्ता सिर्फ अपने पति से ही नहीं जुड़ता, बल्कि ससुराल के बाकी सदस्यों से भी खास रिश्ता बन जाता है, यह बात क्यों नहीं समझती लड़कियां? अगर अपने घर का माहौल हमेशा अच्छा और खुशी भरा रखना है, तो मुझे अपनी मां की बातें भूलनी होंगी और फिर सिर्फ पतिपत्नी में ही 7 वचन क्यों? सासबहू भी क्यों न कुछ वचनों में बंध जाएं ताकि जीवन सुखमय बीत सके, अपनेआप से ही कहती पल्लवी.

उसी दिन ठान लिया पल्लवी ने कि वे सासबहू भी कुछ वचनों में बंधेंगी और अपने रिश्ते को एक नया नाम देंगी-अनोखा रिश्ता. अब पल्लवी अपनी सास की हर पसंदनापसंद को जाननेसमझने लगी थी. चाहे शौपिंग पर जाना हो, फिल्म देखने जाना हो या घर में बैठ कर सासबहू सीरियल देखना हो, दोनों साथ देखतीं.

अब तो पल्लवी ने ललिता को व्हाट्सऐप, फेसबुक, लैपटौप यहां तक कि कार चलाना भी सिखा दिया था. सब के औफिस चले जाने के बाद ललिता घर में बोर न हों, इसलिए उस ने जबरदस्ती उन्हें किट्टी भी जौइन करवा दी.

शुरूशुरू में ललिता को अजीब लगा था, पर फिर मजा आने लगा. अब वे भी अपनी बहू के साथ जा कर और औरतों की तरह स्टाइलिश कपड़े खरीद लातीं. वजन भी बहुत कम कर लिया था. आखिर दोनों सासबहू रोज वाक पर जो जाती थीं. अपने हलके शरीर को देख बहुत खुश होतीं ललिता और उस का सारा श्रेय देतीं अपनी बहू को, जिस के कारण उन में इतना बदलाव आया था वरना तो 5 गज की साड़ी में ही लिपटी उन की जिंदगी गुजर रही थी.

एक दिन चुटकी लेते हुए शंभूजी ने कहा भी, ‘‘कहीं तुम ललिता पवार से 0 फिगर साइज वाली करीना न बन जाओ. फिर मेरा क्या होगा मेरी जान?’’

‘‘हां, बनूंगी ही, आप को क्यों जलन हो रही है?’’ ललिता बोलीं.

‘‘अरे, मैं क्यों जलने लगा भई. अच्छा है बन जाओ करीना की तरह. मेरे लिए तो और अच्छा ही है न वरना तो ट्रक के साथ आधी से ज्यादा उम्र बीत ही गई मेरी,’’ कह कर शंभूजी हंस पड़े पर ललिता बड़बड़ा उठीं.

दोनों की इस तरह की नोकझोंक देख पल्लवी और विपुल हंस पड़ते.

एक दिन जब पल्लवी ने अपने लिए जींस और टीशर्ट खरीदी, तो ललिता के लिए भी खरीद लाई. वैसे विपुल ने मना किया था कि मत खरीदो, मां नहीं पहनेगी, पर वह ले ही आई.

‘‘अरे, यह क्या ले आई बहू? नहींनहीं मैं ये सब नहीं पहनूंगी. लोग क्या कहेंगे और मेरी उम्र तो देखो,’’ जींस व टीशर्ट एक तरफ रखते हुए ललिता ने कहा.

‘‘उम्र क्यों नहीं है? अभी आप की उम्र ही क्या हुई है मां? लगता है आप 50 की हैं? लोगों की परवाह छोडि़ए, बस वही पहनिए जो आप को अच्छा लगता है और मुझे पता है आप का जींस पहनने का मन है. आप यह जरूर पहनेंगी,’’ हुक्म सुना कर पल्लवी फ्रैश होने चली गई. ललिता उसे जाते देखते हुए सोचने लगीं कि यह कैसा अनोखा रिश्ता है उन का.

लवोलौजी : प्यार और Romance की क्लास

Sex News in Hindi: एक ओर जहां दुनिया को कामसूत्र (Kamasutra) जैसा कामशास्त्र ग्रंथ देने वाले भारत में वर्तमान में प्यार करने वालों पर पाबंदी लगाने के प्रयास शुरू हो गए हैं, वहीं न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी (Newyork University) में प्यार की क्लास लगाई जा रही है और यह क्लास एक अंडरग्रैजुएट कोर्स (Undergraduate Course) के अंतर्गत होती है. डाक्टर मेगन पाई प्यार की इस क्लास का संचालन करती हैं. डाक्टर मेगन ने ही प्यार के इस कोर्स को तैयार किया है. आप को जान कर हैरानी होगी कि कोर्स शुरू होने के साथसाथ बेहद लोकप्रिय भी हो रहा है और सिर्फ पिछले 2 साल में ही इस कोर्स में छात्रों की संख्या तीनगुना हो गई है.

प्यार की इस क्लास का नाम लव ऐक्चुअली रखा गया है जिस में पहला सैमेस्टर मुख्य रूप से लोगों के प्यार के साथ कैसे अनुभव रहे हैं, इस के आधार पर होता है. कोर्स 2 डायरैक्शन में आगे बढ़ता है, हौरिजैंटल और वर्टिकल. हौरिजैंटल ट्रैजेक्ट्री में जहां कोर्स आप की पूरी लाइफ के दौरान होने वाले अलगअलग तरह के प्यार के रिश्तों पर बात करता है वहीं वर्टिकल ट्रैजेक्ट्री स्टूडैंट से शुरू हो कर फैमिली लव के बारे में बात करता है. कोर्स न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी के चाइल्ड ऐंड ऐडोलोसैंट मैंटल हैल्थ स्टडी डिपार्टमैंट के तहत चलाया जाता है. इस डिपार्टमैंट के तहत इस तरह के और भी कई कोर्स चलाए जाते हैं, जिन में हैप्पीनैस और स्लीप से जुड़े कोर्स भी शामिल हैं.

प्यार के अलगअलग प्रकारों के बारे में  मेगन का कहना है कि इस कोर्स के अंतर्गत हम मातापिता और नवजात के प्यार, दोस्ती, खुद से प्यार, अपने पैशन के प्रति प्यार, मैटर और स्टूडैंट के बीच प्यार के बारे में बात करते हैं.

प्यार की इस क्लास का एक बड़ा हिस्सा स्टूडैंट्स को विस्तार से बताता  है कि आखिर लव यानी प्यार का आइडिया क्या है और इस कौंसैप्ट के अंदर क्या छिपा है. यहां रोमांटिक लव को भी समय दिया जाता है.

प्यार और रोमांस की एक ऐसी ही अन्य क्लास चीन की तियानजिन यूनिवर्सिटी में भी लगती है जहां बाकायदा थ्योरी के साथ रोमांस की प्रैक्टिकल तकनीक भी बताई जाती है. थ्योरी इन लव ऐंड डेटिंग नाम से चलने वाले इस कोर्स का मकसद स्टूडैंट्स को रिलेशनशिप में स्ट्रौंग करना है. इस यूनिवर्सिटी में विषय कोई और नहीं सिर्फ और सिर्फ प्यार और रोमांस का होता है. यहां युवकों को पर्सनैलिटी अपग्रेड, युवतियों से बात करने का तरीका, रोमांस करने और क्लास में स्टूडैंट्स को अपोजिट रोमांस को अपनी तरफ आकर्षित करने और अपोजिट सैक्स के साथ कम्युनिकेशन बिल्ड करने के तरीके भी बताए जाते हैं.

प्यार और रोमांस की इस क्लास में यह भी सिखाया जाता है कि प्रपोजल ठुकराए जाने पर किस तरह का व्यवहार किया जाए. साथ ही रोमांटिक रिलेशनशिप से जुड़ी कुछ लीगल प्रौब्लम्स के बारे में जानकारी दी जाती है.

प्यार और रोमांस के इस कोर्स में इंसान को दूसरों से प्यार करने से पहले खुद से प्यार करना भी सिखाया जाता है. हिंसा और नफरत के इस दौर में प्यार पर आधारित इस क्लास की दरअसल पूरे विश्व को जरूरत है.

अनोखा रिश्ता: कैसी थी सास और बहू की जोड़ी – भाग 3

सासबहू के झगड़े सुनदेख कर पल्लवी का तो शादी पर से विश्वास ही उठ गया था. जब भी उस की शादी की बात चलती, वह सिहर जाती. सोचती, जाने कैसी ससुराल मिलेगी. कहीं उस की सास भी शकुंतला चाची जैसी निकली तो या कहीं उस में भी उस की मां का गुण आ गया तो? ऐसे कई सवाल उस के मन को डराते रहते.

अपने मन का डर उस ने विपुल को भी बताया, जिसे सुन उस की हंसी रुक नहीं रही थी. किसी तरह अपनी हंसी रोक वह कहने लगा, ‘‘हां, मेरी मां सच में ललिता पवार हैं. सोच लो अब भी समय है. कहीं ऐसा न हो तुम्हें बाद में पछताना पड़े? पागल, मेरी मां पुराने जमाने की सास नहीं हैं. तुम्हें उन से मिलने के बाद खुद ही पता चल जाएगा.’’

विपुल की बातों ने उस का डर जरा कम तो कर दिया, पर पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया. अब भी सास को ले कर दिल के किसी कोने में डर तो था ही.

बिदाई के वक्त बड़े प्यार से शांति ने भी अपनी बेटी के कान फूंकते हुए समझाया था, ‘‘देख बिटिया, सास को कभी मां समझने की भूल न करना, क्योंकि सास चुड़ैल का दूसरा रूप होती है. देखा नहीं अपनी दादी को? मांजीमांजी कह कर उसे सिर पर मत बैठा लेना. पैरों में तेल मालिशवालिश की आदत तो डालना ही मत नहीं तो मरते दम तक तुम से सेवा करवाती रहेगी… सब से बड़ी बात पति को अपनी मुट्ठी में रखना और उस के कमाए पैसों को भी. अपनी कमाई तो उसे छूने भी मत देना. एक बार मुंह को खून लग जाए, तो आदत पड़ जाती है. समझ रही हो न मेरे कहने का मतलब?’’

अपनी मां की कुछ बातों को उस ने आत्मसात कर लिया तो कुछ को नहीं.

ससुराल में जब पल्लवी ने पहला कदम रखा, तो सब से पहले उस का

सामना ललिता यानी अपनी सास से ही हुआ. उन का भरा हुआ रोबीला चेहरा, लंबा चरबी से लदा शरीर देख कर ही वह डर गई. लगा जैसा नाम वैसा ही रूप. और जिस तरह से वे आत्मविश्वास से भरी आवाज में बातें करतीं, पल्लवी कांप जाती. वह समझ गई कि उस का हाल वही होने वाला है जो और बेचारी बहुओं का होता आया है.

मगर हफ्ता 10 दिन में ही जान लिया पल्लवी ने कि यथा नाम तथा गुण वाली कहावत ललिता पर कहीं से भी लागू नहीं होती है. तेजतर्रार, कैंची की तरह जबान और सासों वाला रोब जरा भी नहीं था उन के पास.

एक रोज जब वह अपनी मां को याद कर रोने लगी, तो उस की सास ने उसे सीने से लगा लिया और कहा कि वह उसे सास नहीं मां समझे और जब मन हो जा कर अपनी मां से मिल आए. किसी बात की रोकटोक नहीं है यहां उस पर, क्योंकि यह उस का भी घर है. जैसे उन के लिए उन की बेटी है वैसे ही बहू भी… और सिर्फ कहा ही नहीं ललिता ने कर के भी दिखाया, क्योंकि पल्लवी को नए माहौल में ढलने और वहां के लोगों की पसंदनापसंद को समझने के लिए उसे पर्याप्त समय दिया.

अगर पल्लवी से कोई गलती हो जाती, तो एक मां की  तरह बड़े प्यार से उसे

सिखाने का प्रयास करतीं. पाककला में तो उस की सास ने ही उसे माहिर किया था वरना एक मैगी और अंडा उबालने के सिवा और कुछ कहां बनाना आता था उसे. लेकिन कभी ललिता ने उसे इस बात के लिए तानाउलाहना नहीं मारा, बल्कि बोलने वालों का भी यह कह कर मुंह चुप करा देतीं कि आज की लड़कियां चांद पर पहुंच चुकी हैं, पर अफसोस कि हमारी सोच आज भी वहीं की वहीं है. क्यों हमें बहू सर्वगुण संपन्न चाहिए? क्या हम सासें भी हैं सर्वगुण संपन्न और यही उम्मीद हम अपनी बेटियों से क्यों नहीं लगाते? फिर क्या मजाल जो कोई पल्लवी के बारे में कुछ बोल भी दे.

उस दिन ललिता की बातें सुन कर दिल से पल्लवी ने अपनी सास को मां समझा और सोच लिया कि वह कैसा रिश्ता निभाएगी अपनी सास से.

कभी ललिता ने यह नहीं जताया कि विपुल उन का बेटा है तो विपुल पर पहला अधिकार भी उन का ही है और न ही कभी पल्लवी ने ऐसा जताया कि अब उस के पति पर सिर्फ उस का अधिकार है. जब कभी बेटेबहू में किसी बात को ले कर बहस छिड़ जाती, तो ललिता बहू का ही साथ देतीं. इस से पल्लवी के मन में ललिता के प्रति और सम्मान बढ़ता गया. धीरेधीरे वह अपनी सास के और करीब आने लगी. पूरी तरह से खुलने लगी उन के साथ. कोई भी काम होता वह ललिता से पूछ कर ही करती. उस का जो भय था सास को ले कर वह दूर हो चुका था.

लोग कहते हैं अच्छी बहू बनना और सूर्य पर जाना एक ही बात है. लेकिन अगर मैं एक अच्छी बेटी हूं, तो अच्छी बहू क्यों नहीं बन सकती? मांदादी को मैं ने हमेशा लड़तेझगड़ते देखा है, लेकिन गलती सिर्फ दादी की ही नहीं होती थी. मां चाहतीं तो सासबहू के रिश्ते को संवार सकती थीं, पर उन्होंने और बिगाड़ा रिश्ते को. मुझे भी उन्होंने वही सब सिखाया सास के प्रति, पर मैं उन की एक भी बात में नहीं आई, क्योंकि मैं जानती थी कि सामने वाले मुझे वही देंगे, जो मैं उन्हें दूंगी और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. शादी के बाद एक लड़की का रिश्ता सिर्फ अपने पति से ही नहीं जुड़ता, बल्कि ससुराल के बाकी सदस्यों से भी खास रिश्ता बन जाता है, यह बात क्यों नहीं समझती लड़कियां? अगर अपने घर का माहौल हमेशा अच्छा और खुशी भरा रखना है, तो मुझे अपनी मां की बातें भूलनी होंगी और फिर सिर्फ पतिपत्नी में ही 7 वचन क्यों? सासबहू भी क्यों न कुछ वचनों में बंध जाएं ताकि जीवन सुखमय बीत सके, अपनेआप से ही कहती पल्लवी.

उसी दिन ठान लिया पल्लवी ने कि वे सासबहू भी कुछ वचनों में बंधेंगी और अपने रिश्ते को एक नया नाम देंगी-अनोखा रिश्ता. अब पल्लवी अपनी सास की हर पसंदनापसंद को जाननेसमझने लगी थी. चाहे शौपिंग पर जाना हो, फिल्म देखने जाना हो या घर में बैठ कर सासबहू सीरियल देखना हो, दोनों साथ देखतीं.

अब तो पल्लवी ने ललिता को व्हाट्सऐप, फेसबुक, लैपटौप यहां तक कि कार चलाना भी सिखा दिया था. सब के औफिस चले जाने के बाद ललिता घर में बोर न हों, इसलिए उस ने जबरदस्ती उन्हें किट्टी भी जौइन करवा दी.

शुरूशुरू में ललिता को अजीब लगा था, पर फिर मजा आने लगा. अब वे भी अपनी बहू के साथ जा कर और औरतों की तरह स्टाइलिश कपड़े खरीद लातीं. वजन भी बहुत कम कर लिया था. आखिर दोनों सासबहू रोज वाक पर जो जाती थीं. अपने हलके शरीर को देख बहुत खुश होतीं ललिता और उस का सारा श्रेय देतीं अपनी बहू को, जिस के कारण उन में इतना बदलाव आया था वरना तो 5 गज की साड़ी में ही लिपटी उन की जिंदगी गुजर रही थी.

एक दिन चुटकी लेते हुए शंभूजी ने कहा भी, ‘‘कहीं तुम ललिता पवार से 0 फिगर साइज वाली करीना न बन जाओ. फिर मेरा क्या होगा मेरी जान?’’

‘‘हां, बनूंगी ही, आप को क्यों जलन हो रही है?’’ ललिता बोलीं.

‘‘अरे, मैं क्यों जलने लगा भई. अच्छा है बन जाओ करीना की तरह. मेरे लिए तो और अच्छा ही है न वरना तो ट्रक के साथ आधी से ज्यादा उम्र बीत ही गई मेरी,’’ कह कर शंभूजी हंस पड़े पर ललिता बड़बड़ा उठीं.

दोनों की इस तरह की नोकझोंक देख पल्लवी और विपुल हंस पड़ते.

एक दिन जब पल्लवी ने अपने लिए जींस और टीशर्ट खरीदी, तो ललिता के लिए भी खरीद लाई. वैसे विपुल ने मना किया था कि मत खरीदो, मां नहीं पहनेगी, पर वह ले ही आई.

‘‘अरे, यह क्या ले आई बहू? नहींनहीं मैं ये सब नहीं पहनूंगी. लोग क्या कहेंगे और मेरी उम्र तो देखो,’’ जींस व टीशर्ट एक तरफ रखते हुए ललिता ने कहा.

‘‘उम्र क्यों नहीं है? अभी आप की उम्र ही क्या हुई है मां? लगता है आप 50 की हैं? लोगों की परवाह छोडि़ए, बस वही पहनिए जो आप को अच्छा लगता है और मुझे पता है आप का जींस पहनने का मन है. आप यह जरूर पहनेंगी,’’ हुक्म सुना कर पल्लवी फ्रैश होने चली गई. ललिता उसे जाते देखते हुए सोचने लगीं कि यह कैसा अनोखा रिश्ता है उन का.

अनोखा रिश्ता: कैसी थी सास और बहू की जोड़ी – भाग-2

अपने पति की बातों पर वे हंसीं और फिर कहने लगीं, ‘‘मैं ने यह भी सोचा था

कि शायद मेरी बहू मेरे मनमुताबिक न आएलेकिन फिर भी मैं उस से निभाऊंगी. उसे इतना प्यार दूंगी कि वह भी मेरे रंग में रंग जाएगी. जानते हैं शंभूजीअगर एक औरत चाहे तो फिर चाहे वह सास हो या बहूअपने रिश्ते को बिगाड़ भी सकती है और चाहे तो अपनी सूझबूझ से रिश्ते को कभी न टूटने वाले पक्के धागे में पिरो कर भी रख सकती है. हर लड़की चाहती है कि वह एक अच्छी बहू बनेपर इस के लिए सास को भी तो अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी न. अगर घर के किसी फैसले में बहू की सहमति न लेंउसे पराई समझेंतो वह हमें कितना अपना पाएगीबोलिएउफबातोंबातों में समय का पता  ही नहीं चला,’’ घड़ी की तरफ देखते हुए ललिता ने कहा, ‘‘आज आप को दुकान पर नहीं जाना क्या?’’

‘‘सोच रहा हूं आज न जाऊं. वैसे भी लेट हो गया और मंदी के कारण वैसे भी ग्राहक कम ही आते हैं,’’ शंभूजी ने कहा. उन का अपना कपड़े का व्यापार था.

 ‘‘पर यह तो बताओ कि तुम सासबहू ने क्या प्रोग्राम बनाया हैमुझे तो बता दो,’’ वे बोले.

शंभूजी के पूछने पर पहले तो ललिता झूठेसच्चे बहाने बनाने लगींपर जब उन्होंने जोर दियातो बोलीं, ‘‘आज हम सासबहू फिल्म देखने जा रही हैं.’’

‘‘अच्छाकौन सी?’’ पूछते हुए शंभूजी की आंखें चमक उठीं.

‘‘अरेवह करीना कपूर और सोनम कपूर की कोई नई फिल्म आई है न… क्या नाम है उस का… हांयाद आया, ‘वीरे दी वैडिंग.’ वही देखने जा रही हैं. आज आप घर पर ही हैंतो ध्यान रखना घर का.’’

‘‘अच्छातो अब तुम सासबहू फिल्म देखो और हम बापबेटा खाना पकाएंयही कहना चाहती हो न?’’

‘‘हांसही तो है,’’ हंसते हुए ललिता बोलीं और फिर किचन की तरफ बढ़ गईं.

‘‘अच्छा ठीक हैखाना हम बना लेंगेपर

कप चाय और पिला दो,’’ शंभूजी ने कहा तो ललिता भुनभुनाईं यह कह कर कि घर में रहते हैंतो बारबार चाय बनवा कर परेशान कर देते हैं.

जो भी हो पतिपत्नी अपने जीवन में बहुत खुश थे और हों भी क्यों नजब पल्लवी जैसी बहू हो. शादी के साल हो गएपर कभी उस ने ललिता को यह एहसास नहीं दिलवाया कि वह उन की बहू है. पासपड़ोसनातेरिश्तेदार इन दोनों के रिश्ते को देख कर आश्चर्य करते और कहते कि क्या सासबहू भी कभी ऐसे एकसाथ इतनी खुश रह सकती हैंलगता ही नहीं है कि दोनों सासबहू हैं.

पल्लवी एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी कर रही थी और वहीं उस की मुलाकात विपुल से हुईजो जानपहचान के बाद दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई. साल तक बेरोकटोक उन का प्यार चलता रहा और फिर दोनों परिवारों की सहमति से विवाह के बंधन में बंध गए. वैसे तो बचपन से ही पल्लवी को सास नाम के प्राणी से डर लगता थाक्योंकि उस के जेहन में एक हौआ सा बैठ गया था कि सास और बहू में कभी नहीं पटतीक्योंकि अपने घर में भी तो उस ने आएदिन अपनी मां और दादी को लड़तेझगड़ते ही देखा था.

ज्योंज्यों वह बड़ी होती गई दादी और मां में लड़ाइयां भी बढ़ती चली गईं. उसे याद है जब उस की मांदादी में झगड़ा होता और उस के पापा किसी एक की तरफदारी करतेतो दूसरी का मुंह फूल जाता. हालत यह हो गई कि फिर उन्होंने बोलना ही छोड़ दिया. जब भी दोनों में झगड़ा होतापल्लवी के पापा घर से बाहर निकल जाते. नातेरिश्तेदारों और पासपड़ोस में भी तो आएदिन सासबहू के झगड़े सुनतेदेखते वह घबरा सी जाती.

उसे याद है जब पड़ोस की शकुंतला चाची की बहू ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा ली थी. तब यह सुन कर पल्लवी की रूह कांप उठी थी. वैसे हल्ला तो यही हुआ था कि उस की सास ने ही उसे जला कर मार डालामगर कोई सुबूत न मिलने के कारण वह कुछ सजा पा कर ही बच गई थी. मगर मारा तो उसे उस की सास ने ही थाक्योंकि उस की बहू तो गाय समान सीधी थी. ऐसा पल्लवी की दादी कहा करती थीं. पल्लवी की दादी भी किसी सांपनाथ से कम नहीं थीं और मां तो नागनाथ थीं हीक्योंकि दादी एक सुनातींतो मां हजार सुना डालतीं.

खैरएक दिन पल्लवी की दादी इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं. लेकिन आश्चर्य तो उसे तब हुआ जब दादी की 13वीं पर महल्ले की औरतों के सामने घडि़याली आंसू बहाते हुए पल्लवी की मां शांति कहने लगीं कि उन की साससास नहीं मां थीं उन की. जाने अब वे उन के बगैर कैसे जी पाएंगी.

मन तो हुआ पल्लवी का कि कह दे कि क्यों झूठे आंसू बहा रही हो मांकब तुम ने दादी को मां मानामगर वह चुप रही. मन ही मन सोचने लगी कि बस नाम ही शांति है उस की मां काकाम तो सारे अशांति वाले ही करती हैं.

अनोखा रिश्ता: कैसी थी सास और बहू की जोड़ी – भाग -1

‘‘बायमां, मैं निकल रही हूं… और हां भूलना मत,

दोपहर के खाने से पहले दवा जरूर खा लेना,’’ कह पल्लवी औफिस जाने लगी.

तभी ललिता ने उसे रोक कहा, ‘‘यह पकड़ो टिफिन. रोज भूल जाती हो और हां, पहुंचते ही फोन जरूर कर देना.’’

‘‘मैं भूल भी जाऊं तो क्या आप भूलने देती हो मां? पकड़ा ही देती हो खाने का टिफिन,’’ लाड़ दिखाते हुए पल्लवी ने कहा, तो ललिता भी प्यार के साथ नसीहतें देने लगीं कि वह कैंटीन में कुछ न खाए.

‘‘हांहां, नहीं खाऊंगी मेरी मां… वैसे याद है न शाम को 5 बजे… आप तैयार रहना मैं जल्दी आने की कोशिश करूंगी,’’ यह बात पल्लवी ने इशारों में कही, तो ललिता ने भी इशारों में ही जवाब दिया कि वे तैयार रहेंगी.

‘‘क्या इशारे हो रहे हैं दोनों के बीच?’’ ललिता और पल्लवी को इशारों में बात करते देख विपुल ने कहा, ‘‘देख लो पापा, जरूर यहां सासबहू और साजिश चल रही है.’’

विपुल की बातें सुन शंभुजी भी हंसे बिना नहीं रह पाए. मगर विपुल तो अपनी मां के पीछे ही पड़ गया, यह जानने के लिए कि इशारों में पल्लवी ने उन से क्या कहा.

‘‘यह हम सासबहू के बीच की बात है,’’ प्यार से बेटे का कान खींचते हुए ललिता बोलीं.

बेचारा विपुल बिना बात को जाने ही औफिस चला गया. दोनों को

औफिस भेज कर ललिता 2 कप चाय बना लाईं और फिर इतमीनान से शंभूजी की बगल में बैठ गईं.

चाय पीते हुए शंभूजी एकटक ललिता को देखदेख कर मुसकराए जा रहे थे.

‘‘इतना क्यों मुसकरा रहे हो? क्या गम है जिसे छिपा रहे हो…?’’ ललिता ने शायराना अंदाज में पूछा, तो उन की हंसी छूट गई.

कहने लगे, ‘‘मुसकरा इसलिए रहा हूं कि तुम भी न अजीब हो. अरे, बता देती बेचारे को कि तुम सासबहू का क्या प्रोग्राम है. लेकिन जो भी हो तुम सासबहू की बौडिंग देख कर मन को बड़ा सुकून मिलता है वरना तो मेरा सासबहू के झगड़े सुनसुन कर दिमाग घूम जाता है. हाल ही में मैं ने अखबार में एक खबर पढ़ी, जिस में लिखा था सास से तंग आ कर एक बहू 12वीं मंजिल से कूद गई और जानती हो पहले उस ने अपने ढाई साल के बेटे को फेंका और फिर खुद कूद गई, जिस से दोनों की मौत हो गई. सच कह रहा हूं ललिता यह पढ़ कर मेरा तो दिल बैठ गया था.’’

शंभूजी की बातें सुन कर ललिता का भी दिल दहल गया.

‘‘सोचा जरा उस इंसान पर क्या बीतती होगी जिसे न तो मां समझ पाती हैं और न पत्नी. पिसता रहता है बेचारा मां और पत्नी के बीच.’’

‘‘हूं, सही कह रहे हैं आप. हमारे समाज में जब एक लड़की शादी के बाद अपना मायका छोड़ कर जहां उस ने लगभग अपनी आधी जिंदगी पूरे हक के साथ गुजारी होती है, ससुराल में कदम रखते ही उस के दिल में घबराहट सी होने लगती है कि यहां सब उसे दिल से तो अपनाएंगे न? अपने परिवार का हिस्सा समझेंगे न? ज्यादातर घरों में यही होता है कि बहू को आए अभी कुछ दिन हुए नहीं कि जिम्मेदारी की टोकरी उसे पकड़ा दी जाती है. उसे यह तो समझा दिया जाता है कि सासससुर के साथसाथ ननददेवर और नातेरिश्तेदारों को भी सम्मान देना होगा, लेकिन यह नहीं समझाया जाता कि आज से यह घर उस का भी है और ससुराल में उस की राय भी उतनी ही मान्य होगी जितनी घर के बाकी सदस्यों की.

‘‘क्या एक बहू का यह अधिकार नहीं कि घर के हित के लिए जो भी फैसले लिए जाएं उन में उस की भी राय शामिल हो? क्यों सास को लगने लगता है कि बहू आते ही उस से उस के बेटे को छीन लेगी? अगर ऐसा ही है, तो फिर न करें वे अपने बेटे की शादी. रखें अपने आंचल में ही छिपा कर. अगर शादी के बाद बेटा अपने परिवार को कुछ बोल जाए, तो सब को यही लगने लगता है कि बीवी ने ही सिखाया होगा

उसे ऐसा बोलने के लिए और यही झगड़े की जड़ है. हर बात के लिए बहू को ही दोषी ठहराया जाने लगता है. और तो और उस के मायके को भी नहीं छोड़ते लोग,’’ कहते हुए ललिता की आंखें गीली हो गईं, जो शंभूजी से भी छिपी न रह पाईं.

वे समझ रहे थे कि आज ललिता के मन का गुब्बार निकल रहा है और वह वही सब बोल रही है जो उस के साथ हुआ है. उन्हें भी तो याद है… कभी उन की मां ने ललिता को चैन से जीने नहीं दिया. बातबात पर तानेउलाहने, गालीगलौच यहां तक कि थप्पड़ भी चला देती थीं वे ललिता पर और बेचारी रो कर रह जाती. लेकिन क्या कोई भी लड़की अपने मायके की बेइज्जती सहन कर सकती है भला? जब ललिता की सास उस के मायके के खिलाफ कुछ बोल देतीं, तो उस से सहन नहीं होता और वह पलट कर जवाब दे देती. यह बात उन की मां की बरदाश्त के बाहर चली जाती. गरजते हुए कहतीं कि अगर फिर कभी ललिता ने कैंची की तरह जबान चलाई तो वे उसे हमेशा के लिए उस के मायके भेज देगी, क्योंकि उन के बेटे के लिए लड़कियों की कमी नहीं है.

बेचारे शंभूजी भी क्या करते? खून का घूंट पी कर रह जाते पर अपनी मां से कुछ कह न पाते. अगर कुछ बोलते तो जोरू का गुलाम कहलाते और पहले के जमाने में कहां बेटे को इतना हक होता था कि वह पत्नी की तरफदारी में कुछ बोल सके.

‘‘मैं ने तो पहले ही सोच लिया था शंभूजी कि जब मेरी बहू का गृहप्रवेश होगा, तो उसे सिर्फ कर्तव्यों, दायित्वों, जिम्मेदारियों और फर्ज की टोकरी ही नहीं थमाऊंगी वरन उसे उस के हक और अधिकारों का गुलदस्ता भी दूंगी, क्योंकि आखिर वह भी तो अपनी ससुराल में कुछ उम्मीदें ले कर आएगी.’’

‘‘और अगर तुम्हारी बहू ही अच्छे विचारों वाली नहीं आती तब? तब कैसे निभाती उस से?’’ शंभूजी ने पूछा.

मोटी बहू : भव्या को देख गीता की ख्वाहिश कैसे अधूरी रह गई

पूनम अहमद

गीता और विपिन बहुत उत्साहित थे. आज उन का बेटा पराग अपनी गर्लफ्रैंड भव्या को उन से मिलवाने लाने वाला था. पराग से 5 साल छोटी वन्या अभी पढ़ रही थी. पराग इंजीनियर था. भव्या उस की कुलीग थी. आधुनिक सोच वाले गीता और विपिन को पराग की पसंद की लड़की को अपनी बहू बनाने में कोई आपत्ति न थी.

भव्या पंजाबी परिवार से थी जबकि गीता और विपिन ब्राह्मण थे. किसी के लिए जातिधर्म का महत्त्व नहीं था. भव्या के मातापिता की कुछ वर्ष पहले एक ऐक्सिडैंट में मृत्यु हो गई थी. जालंधर में रह रहे उस के मामामामी ही उस के गार्जियन थे.

भव्या मुंबई के अंधेरी इलाके में 4 लड़कियों के साथ एक फ्लैट शेयर कर के रहती थी. गीता ने बड़े मन से भव्या के लिए लंच तैयार किया था. गीता, विपिन और वन्या फिगर के प्रति एकदम सचेत रहते थे. गीता और विपिन तो फिगर और स्वास्थ्य के प्रति इतने सजग थे कि उन्हें देख कर पता ही नहीं चलता था कि उन के इतने बड़े बच्चे हैं, तीनों एकदम स्लिमट्रिम लेकिन जंकफूड के शौकीन पराग ने बाहर का खाना खाखा कर काफी वजन बढ़ा लिया था, जिस के लिए तीनों उसे टोकते रहते थे. गीता ने तो मजाकमजाक में कई बार कहा था, ‘पराग, आजकल लड़कियां भी मोटे लड़कों को पसंद नहीं करतीं, मैं तुम्हारे लिए लड़की कहां से ढूंढंगी. तुम एक काम करना, खुद ही ढूंढ़ लेना.’

विपिन का भी यही कहना था, ‘कुछ ऐक्सरसाइज करो, शरीर फैलता जा रहा है, शादीब्याह सब होना बाकी है.’ लेकिन पराग के कान पर कभी जूं नहीं रेंगी और अब जब शरमाते हुए पराग ने पिछले हफ्ते भव्या के बारे में बताया तो सब एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. बच्चों से फ्रैंक गीता ने कहा, ‘‘तुम्हें कैसे मिल गई गर्लफ्रैंड?’’

पराग ने हंस कर कहा, ‘‘बस, मिल गई, आप बेकार में मुझे इतने दिनों से ताने मार रही थीं.’’

और आज संडे को पराग भव्या को ले कर आ रहा था. पराग ने गीता से पूछा था, ‘‘मौम, आप अपनी बहू में कौन सा गुण देखना चाहेंगी?’’

गीता बेटे के सिर पर हाथ फेर कर बोली थीं, ‘‘बस, तुम्हारे जैसी.’’

‘‘तो मौम, बी हैप्पी, वह बिलकुल मेरे जैसी है.’’

तीनों पराग और भव्या का इंतजार कर रहे थे. मौडर्न गीता टौप और जींस में थी. डोरबैल बजी. अधीरता से गीता ने ही दरवाजा खोला. पराग जिस पर्सनैलिटी के साथ अंदर आया, गीता को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस ने बाहर फिर झांका, क्या भव्या इन के पीछे है. लेकिन बस, वही दोनों खड़े थे.

होने वाली बहू को देख कर गीता के चेहरे का रंग उड़ गया. लगा, पराग ने ठीक कहा था, वह बिलकुल उस के जैसी ही तो थी, एकदम गोरी, गोलमटोल. साफसाफ कहा जाए तो एक मोटी लड़की. वह मुसकराते हुए सब को हायहैलो कर रही थी. विपिन और वन्या भी बुत बने खड़े थे. पराग ने गला खंखारा और कहा, ‘‘डैड, मौम, वन्या, यह है भव्या.’’

विपिन ने सब से पहले अपने को सामान्य किया और मुसकराते हुए उसे अंदर आ कर बैठने के लिए कहा. वन्या भी भव्या के साथ ही बैठ गई. गीता को अपने को संभालने में काफी समय लगा. गीता ने औपचारिक हालचाल के बाद पूछा, ‘‘क्या लोगी, भव्या? चाय, कौफी या कोल्डडिं्रक?’’

‘‘मौम, कुछ ठंडा.’’

गीता किचन में गईं और टे्र में सब के लिए नीबूपानी, मिठाई, फू्रट्स और कुछ नाश्ता ले आईं. भव्या से बातें होती रहीं. गीता ने टे्र उस की तरफ खिसकाई, कहा, ‘‘लो बेटा, कुछ खाओ.’’

‘‘हां मौम, भूख तो लगी है, आज संडे था, सब फ्रैंड्स सो रही थीं, कुछ नाश्ता नहीं किया अभी तक. बस, एक सैंडविच और दूध पी कर चली थी, अंधेरी से ठाणे आने में वह तो हजम हो गया,’’ हंस कर उस ने मिठाई खानी शुरू की.

पराग ने भी उस का साथ दिया. विपिन और गीता की नजरें मिलीं, विपिन आंखोंआंखों में ही हंस दिए. नाश्ता खत्म होने तक भव्या सब से फ्री हो चुकी थी. खुल कर हंसबोल रही थी. घर में एक रौनक सी थी. वन्या भव्या को पूरा फ्लैट दिखा कर अपने रूम में बैठा कर बातें करने लगी. मूवी, म्यूजिक, कालेज, औफिस की खूब बातें होती रहीं. गीता लंच की तैयारी के लिए किचन में गईं तो भव्या भी आ गई.

‘‘मौम, कुछ हैल्प करूं?’’

‘‘नहींनहीं, तुम बैठो.’’

‘‘मौम, मिल कर करते हैं न,’’ फिर अपनेआप ही साइड में रखी प्लेट उठा कर सलाद काटने लगी. विपिन भी किचन में आ गए थे. भव्या हंसते हुए बोली, ‘‘मौम, आप को पता है, मुझे सलाद बिलकुल नहीं पसंद.’’

गीता ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘मुझे तो सौलिड चीजें खानी पसंद हैं, ये सलादवलाद तो डाइटिंग वालों की चीज लगती है मुझे. मौम, आप तीनों कितने स्लिम हैं. मैं और पराग तो अलग ही दिख रहे हैं घर में,’’ कह कर हंसी भव्या.

गीता हैरान थीं, क्या है यह लड़की, अपने मोटापे पर कोई शर्म नहीं. कोई चिंता नहीं.

भव्या ने फिर कहा, ‘‘मुझे खानेपीने का बहुत शौक है, मौम. मम्मीपापा को भी खानेपीने का बहुत शौक था,’’ कहते हुए भव्या थोड़ा उदास हुई, इतने में अंदर आते हुए पराग ने पूछा, ‘‘मौम, क्या बनाया है?’’

‘‘छोले, पनीर, आलूगोभी की सब्जी, रायता. बस, अब रोटी बना रही हूं.’’

भव्या ने चहक कर कहा, ‘‘मौम, पूरी बनाइए न. इस खाने के साथ गरमगरम पूरी कितनी अच्छी लगेंगी.’’

गीता चौंकीं. उन्हें झटका सा लगा, सोचा, ‘खुद पूरी जैसी क्यों हो गई यह लड़की, अब समझ में आ रहा है.’

पराग भी कहने लगा, ‘‘हां मौम, पूरी बनाओ न.’’

वन्या भी आ गई किचन में, बोली, ‘‘मौम, मैं तो रोटी ही खाऊंगी.’’

गीता ने कहा, ‘‘ठीक है, इन दोनों के लिए पूरी बना देती हूं.’’

गीता ने वन्या की हैल्प से खाना टेबल पर लगाया. गीता, विपिन और वन्या ने दोदो फुलके खाए. पराग और भव्या पूरी पर पूरी साफ करते रहे. गीता ने दोनों को देखा, ‘कैसे लग रहे हैं दोनों, शौक से खाते हुए मोटे गोलमटोल बच्चे, इन की शादी होगी तो कैसे लगेंगे दोनों. इस लड़की को फिगर से तो कोई मतलब ही नहीं है, क्या होगा इस का आगे,’ गीता मन ही मन पता नहीं क्याक्या सोचती रही.

सब खाना खा कर उठ गए. बातें होती रहीं, फिर भव्या ने कहा, ‘‘अच्छा मौम, अब मैं चलूंगी. आप सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा,’’ और अपना बैग उठा लिया फिर वन्या को गले लगा कर ‘बाय’ बोला और गीता व विपिन को ‘बाय मौम’, ‘बाय डैड’ बोल कर मुसकराती हुई आत्मविश्वास से भरे कदमों से चली गई. पराग से बस मुसकराहट का ही आदानप्रदान हुआ.

उस के जाने के बाद जब सब बैठे तो पराग ने झिझकते हुए पूछा, ‘‘मौम, डैड, वन्या, कैसी लगी भव्या?’’

गीता तो कुछ बोल नहीं पाईं, विपिन ने कहा, ‘‘स्वभाव अच्छा लगा.’’

वन्या पराग को छेड़ते हुए हंस कर बोली, ‘‘भैया, जैसा नाम है वैसी ही भव्य पर्सनैलिटी है. मुझे तो अच्छी लगी.’’

गीता चुप थीं.

पराग ने कहा, ‘‘आप तो कुछ बोलो, मौम.’’

गीता ने एक ठंडी सांस भर कर कहा, ‘‘तुम्हें पसंद है न? बस, मेरे लिए यही महत्त्वपूर्ण है कि तुम खुश हो. अब शादी कब करनी है, बताओ. इस के मामामामी से फोन पर बात कर लेती हूं.’’

पराग ने जींस की जेब से झट से एक पेपर निकाल कर दिया, कहा, ‘‘यह है उस के मामा का फोन नंबर.’’

विपिन को हंसी आ गई, ‘‘वाह बेटा, बहुत जल्दी है शादी की.’’

फिर सब अपनेअपने रूम में थोड़ा आराम करने चले गए.

विपिन ने बराबर में लेटी गीता से पूछा, ‘‘क्या हुआ, पसंद नहीं आई भव्या? जानता हूं, क्यों? तुम्हें बेडौल फिगर पसंद नहीं है न. पराग भी तो स्लिमट्रिम नहीं है, कुछ तो बोलो गीता. चुप क्यों हो इतनी?’’

रोंआसी हो गईं गीता, ‘‘क्या सोचा था क्या हो गया. हमेशा एक फिगर कांशस स्मार्ट सी बहू का सपना देखती आई हूं. मेरी सहेलियां फिटनैस के प्रति मेरा शौक देख कर कहती हैं, ‘गीता, तुम तो जरूर एक मौडल जैसी बहू लाओगी ढूंढ़ कर,’ मैं ने भी गर्व से हां में गरदन हिलाई है हमेशा. इस उम्र में भी मैं फिगर का इतना ध्यान रखती हूं और यह लड़की तो जैसे फिटनैस और फिगर जैसे शब्द ही नहीं जानती और उस पर कितने गर्व से बता रही थी कि उसे खानेपीने का शौक है. मैं तो पराग के मोटापे पर गुस्सा होती थी और अब बहू भी मोटी, मेरी सहेलियां मेरा कितना मजाक उड़ाएंगी,’’ कहतेकहते उन का मुंह लटक गया.

विपिन ने शांत और प्यारभरे स्वर में कहा, ‘‘अरे, प्यार से समझाएंगे तो ध्यान रखना सीख जाएगी सेहत का, न मांबाप हैं न भाईबहन, अकेली जी रही है. हमारे साथ रहेगी तो प्यार से धीरेधीरे सब सिखा देंगे. तुम दिल छोटा मत करो. स्वभाव अच्छा है उस का, बस.’’

दिन बीत रहे थे, दिन में एक बार तो भव्या गीता को जरूर फोन करती, हालचाल पूछती. गीता को अच्छा लगता. वन्या से तो वह अकसर मैसेज में चैटिंग करती रहती. विपिन ने भव्या के मामा अनिल से दोनों के विवाह के बारे में बात कर ली थी. किसी पंडित से दोनों की कुंडली मिलाने के अंधविश्वास में विपिन और गीता बिलकुल नहीं पड़े. उन की सिंपल सी सोच थी, उन के बेटे को भव्या पसंद है, बस. भव्या का स्वभाव तो सब को अच्छा लगा ही था, बस गीता को जैसी स्लिम बहू चाहिए थी, भव्या उस कसौटी पर खरी नहीं उतरी थी. यही बात गीता को कचोटती थी कि उस की सहेलियां भव्या को देख कर जरूर मजाक बनाएंगी. अच्छी तरह जानती थी गीता अपनी सभी सहेलियों को.

एक महीने बाद सगाई का समय रखा गया. विपिन ने गीता से कहा, ‘‘अपनी फ्रैंड्स की लिस्ट बना लो.’’

‘‘नहीं, मैं अपनी फ्रैंड्स को नहीं बुला पाऊंगी, सीधा शादी में ही बुलाऊंगी.

नहीं तो सगाई से शादी तक ताने मारमार कर मेरा दिमाग खराब करती रहेंगी.

बस, सगाई की मिठाई भिजवा दूंगी सब के घर.’’

सब थोड़ीबहुत तैयारियों में व्यस्त हो गए, अनिल अपनी पत्नी रेखा के साथ आ कर एक होटल में रुके. विपिन और गीता ने उन्हें अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया लेकिन संकोचवश वे होटल में ही रुके. सब को एकदूसरे से मिल कर अच्छा लगा.

गीता ने किसी सहेली को नहीं बुलाया. बस, बच्चे और विपिन के दोस्त थे. तैयार हो कर भव्या अच्छी लग रही थी. चेहरा काफी आकर्षक था उस का. उस ने कई बार गीता से पूछा, ‘‘मौम, आप ने अपनी किसी फ्रैंड को नहीं बुलाया?’’

गीता ने यह कह कर टाला, ‘‘बस, सब को शादी पर ही बुलाऊंगी.’’

दोनों ने एकदूसरे को अंगूठी पहना दी, सगाई हो गई. अनिल और रेखा भव्या के भावी ससुराल वालों का व्यवहार देख कर बहुत खुश थे. शादी की तारीख 2 महीने बाद की पक्की हो गई. अनिल और रेखा चले गए, तय यही हुआ कि अनिल और रेखा ही कुछ खास रिश्तेदारों के साथ मुंबई आ जाएंगे.

विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं. भव्या और पराग वीकेंड में ही फ्री हो कर शौपिंग कर पाते थे. भव्या शनिवार को सुबह आती, पूरा दिन शौपिंग होती. गीता उसी की पसंद के कपड़े, ज्वैलरी दिलवा रही थीं. जब मीडियम, लार्ज साइज न आ कर भव्या को डबलएक्सएल आता, गीता मन ही मन झुंझला जातीं.

एक संडे पूरा परिवार शौपिंग पर निकला, गीता हैरान रह गईं जब भव्या ने कहा, ‘‘मौम, पिज्जा खाएंगे.’’

‘‘लेकिन बेटा, लंच कर के ही तो निकले हैं अभी.’’

‘‘तो क्या हुआ, मौम, शौपिंग करतेकरते कुछ खाने में बहुत मजा आता है.’’

पराग भी शुरू हो गया, ‘‘चलो न मौम, कुछ खाएंगे.’’

‘‘नहीं पराग, तुम्हें पता है मैं अभी कुछ नहीं खा सकती.’’

‘‘तो ठीक है, आप साथ तो बैठिए.’’

‘‘ऐसा करो, तुम दोनों खा लो, हम यहीं जूस कौर्नर पर तुम्हारा वेट करेंगे.’’

भव्या तुरंत बोली, ‘‘मौम, बस जूस? जूस से होता क्या है?’’

विपिन ने दोनों को ही भेज दिया. विपिन, गीता और वन्या जूस पीने लगे. गीता ने कहा, ‘‘क्या लड़की है, अभी लंच किए 1 घंटा भी नहीं हुआ है.’’

विपिन बोले, ‘‘तुम्हारी बहू लाइफ ऐंजौय कर रही है, बेचारी अपनी मरजी से खाएगीपिएगी नहीं क्या?’’

‘‘तो मैं कौन सा मना कर रही हूं,’’ गीता ने चिढ़ते हुए कहा.

दोनों पिज्जा खा कर खुश होते हुए आए. विपिन ने कहा, ‘‘पराग, चलो, हम दोनों चल कर कार्ड देख आते हैं, तब तक ये तीनों ज्वैलरी का काम देख लेंगी.’’

विपिन और पराग चले गए.

ज्वैलरी की शौप से जब तीनों निकलीं तो एक आवारा सा लड़का वन्या की कमर को बदतमीजी से छू कर बढ़ा तो वन्या चिल्लाई, ‘‘बेशर्म, तमीज नहीं है क्या?’’

भव्या फौरन बोली, ‘‘क्या हुआ, वन्या?’’

‘‘उस लड़के ने बदतमीजी की है.’’

भव्या ने आव देखा न ताव, फौरन भागी और लड़के की कमर पर पीछे से एक हाथ मारा. लड़का संतुलन खो बैठा और नीचे गिर गया. भव्या जोर से चिल्लाई, ‘‘बदतमीजी करता है.’’ लड़का उठने की कोशिश कर रहा था, भव्या ने पुन: धक्का दिया और उसे नीचे गिरा कर उस के सीने पर चढ़ बैठी और कुहनी जमा दी.

लड़के की चीख निकल गई. वह हिल भी नहीं सका. दृश्य गंभीर था लेकिन लड़के के सीने पर गोलमटोल भव्या की यह बहादुरी देख कर गीता को मन ही मन हंसी आ गई. भव्या जोर से चिल्लाई, ‘‘हैल्प, हैल्प.’’

तुरंत लोग इकट्ठे हो गए. भव्या की बात सुन कर लड़के को पीटने लगे. एक पुलिस वाला भी आ गया और लड़के को 2 डंडे लगा कर जीप में बिठा लिया. पूरे प्रकरण में गीता और वन्या हक्कीबक्की खड़ी थीं. देखते ही देखते भव्या ने जो किया था, दोनों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था. भव्या को शाबाशी देते हुए लोग आजकल लड़कों की बढ़ती बदतमीजी पर बात करते हुए इधरउधर हो गए.

गीता ने देखा, किसी की नजरों में भव्या के लिए उपहास नहीं था. सब की नजरों में उस के लिए तारीफ थी. भव्या ने गीता को जैसे सपने से जगाया, ‘‘मौम, ठीक किया न?’’

गीता उस के कंधे पर हाथ रख कर इतना ही बोल पाईं, ‘‘वैल डन, भव्या, शाबाश.’’

वन्या तो भव्या से सड़क पर ही चिपट गई, ‘‘आप कितनी स्ट्रौंग हो.’’

‘‘वह तो मुझे देख कर ही पता चलता है,’’ कह कर भव्या हंस दी.

इतने में विपिन और पराग भी आ गए, गाड़ी में बैठ कर वन्या ने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया तो वे हैरान रह गए.

विपिन ने भी कहा, ‘‘वैल डन, भव्या.’’

पराग ने हंस कर उसे छेड़ा,

‘‘बेचारा लड़का.’’

सब हंस पड़े. गीता को तो आज इतना प्यार आ रहा था भव्या पर कि उस का मन हो रहा था यहीं उसे गले से लगा ले. लग रहा था, बेकार में अपने मन को इतने दिनों से छोटा कर रखा है. वह जैसी है बहुत अच्छी है. मोटापे का क्या है, धीरेधीरे उसे प्यार से समझा कर सेहत के प्रति सजग बना देंगी, और वैसे पराग को भी कहां रोक पाती हैं लापरवाही से. अब जैसा बेटा, वैसी बहू है तो दुख किस बात का.

अब वे शान से भव्या को अपनी सहेलियों से मिलवाने के लिए उंगलियों पर शादी में बचे दिन गिन रही थीं. आज पहली बार अपनी मोटी बहू पर उन्हें बहुत प्यार आ रहा था.

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