शैलेंद्र सिंह
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का जिस तरह से विरोध हो रहा है, उस से शिमला सी ठंड में भी भाजपा के पसीने छूट रहे हैं. चुनाव की गरमी जैसेजैसे बढ़ रही है, भाजपा की बेचैनियां भी वैसेवैसे बढ़ रही हैं. महंगाई, बेरोजगारी और खेतीकिसानी के मुद्दों के आगे धर्म की बातें सुनना लोगों को पसंद नहीं आ रहा है.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक दलों में वैसे ही भगदड़ मच गई, जैसे प्लेटफार्म पर रेलगाड़ी के आने के समय होती है. जिस का रिजर्वेशन होता है, वह भी और जिस का साधारण टिकट होता है, वह भी भगदड़ का हिस्सा होता है. जिस के पास ट्रेन का टिकट नहीं होता, वह सब से ज्यादा उछलकूद करता है. सब का मकसद एक ही होता है, रेलगाड़ी पर चढ़ कर अपनी मंजिल तक पहुंचना.
चुनाव आते ही सब नेताओं का एक ही मकसद होता है कि चुनाव जीत कर विधायक बनना. राजनीतिक दल कमजोर नेता को हटा कर मजबूत नेता को टिकट देना चाहते हैं, जिस से उन की सरकार बन सके. नेता टिकट कटने पर पार्टी के प्रति सारी निष्ठा को छोड़ कर अपने जुगाड़ में लग जाता है. उत्तर प्रदेश में चुनावी रेलगाड़ी अब प्लेटफार्म से चल चुकी है. जिस नेता को जहां बैठना था, बैठ चुका है.
ये भी पढ़ें: चुनाव और लालच : रोग बना महारोग
चुनावी गरमी अब बढ़ चुकी है. हालांकि प्रदेश के मौसम में पहले जैसी गरमी नहीं है, खासकर प्रदेश में सरकार चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी के खेमे में माहौल बेहद ठंडा महसूस हो रहा है. उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी पूरी ताकत झोंक दी है.
भाजपा के कार्यकर्ता धर्म के सहारे राजनीति करने में माहिर हैं. वे धर्म का प्रचार बेहतर तरीके से कर सकते हैं. बेरोजगारी, महंगाई और किसानों के मुद्दे पर हो रहे विरोध का वे सही जवाब नहीं दे पा रहे हैं. यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने 40 संगठनों के 4 लाख कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार में उतार दिया है. ये कार्यकर्ता घरघर जा कर यह सम?ाने का काम कर रहे हैं कि वोट बेरोजगारी, महंगाई और किसान के मुद्दे पर नहीं, बल्कि धर्म के मुद्दे पर दें.
सवालों में घिरी ‘बुलडोजर सरकार’
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करते केंद्र सरकार में गृह मंत्री अमित शाह ने यह कहा कि ‘वोट यह देख कर मत दें कि विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री कौन है? वोट प्रधानमंत्री के हाथों को मजबूत करने के लिए दें’.
इस का सीधा सा मतलब यह था कि भाजपा बेरोजगारी, महंगाई और किसान के मुद्दे पर चुनाव लड़ने से डर रही है. इसी वजह से वह राष्ट्रवाद, धर्म और केंद्र सरकार के नाम पर वोट मांग रही है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने चुनाव प्रचार में कहते हैं, ‘कुछ नेताओं की गरमी अभी शांत नहीं हुई है. 10 मार्च को चुनाव नतीजा आने के बाद यह गरमी शांत कर दी जाएगी. मईजून के महीने में भी हम उत्तर प्रदेश को शिमला बना देते हैं’. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह बयान उन की ‘ठोंक दो’ शैली को बढ़ावा देने वाला है.
ये भी पढ़ें: विधानसभा चुनाव 2022: दलित, पिछड़े और मुसलिम
योगी आदित्यनाथ और भाजपा के बड़े नेता डर और आतंक का माहौल बना कर वोट हासिल करना चाहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में 5 साल पहले दबंग, दंगाई ही कानून थे. उन का कहा ही सरकार का आदेश हुआ करता था. हम उत्तर प्रदेश के बदलाव के लिए खुद को खपा रहे हैं. विपक्ष के लोग बदला लेने के लिए ठान कर बैठे हैं. इन बदला लेने वालों के बयानों को देख कर लगता है कि वे पहले से ज्यादा खतरनाक हैं.
‘कोई भूल नहीं सकता कि 5 साल पहले व्यापारी लुटता था, बेटी घर से बाहर निकलने में घबराती थी, माफिया सरकारी संरक्षण में घूमते थे. प्रदेश दंगों की आग में जल रहा होता था और सरकार उत्सव मना रही होती थी.’
योगी आदित्यनाथ ने अपनी छवि ‘बुलडोजर सरकार’ की बनाई है, जहां ‘ठोंक दो’, ‘गाड़ी पलटा दो’ जैसे अलंकार उन की सरकार की शोभा बढ़ाते हैं. यही जुमले अब भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए वोट मांगने में मुश्किल खड़ी कर रहे हैं. तमाम दांवपेंच और सत्ता के दबाव के बाद भी भाजपा अकेली पड़ गई है. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने लोकदल सहित छोटेछोटे दलों के साथ सीधा गठबंधन कर लिया है.
कांग्रेस भी समाजवादी पार्टी के साथ है. कांग्रेस ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उन के चाचा शिवपाल यादव के सामने कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच यह नया नहीं है. समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ कभी अपना उम्मीदवार नहीं उतारती थी.
उत्तर प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी अलगअलग चुनाव लड़ रही हैं. इस के बाद भी टिकट बंटवारे में उन का टारगेट यह है कि किस तरह से भाजपा के उम्मीदवार को हराया जा सके. इस के लिए दोनों दलों में आपसी सहमति बनी हुई है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचार करते हुए जब सड़क पर प्रियंका गांधी वाड्रा के काफिले के सामने सपा नेता अखिलेश यादव और लोकदल के नेता जयंत चौधरी मिल गए थे, तो दोनों काफिले रुक गए थे और आपसी अभिवादन के बाद ही आगे बढ़े थे.
ये भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश: लोकतंत्र में विरोध के स्वर को दबाने के लिए मारी
यह इन नेताओं की आपसी सम?ाबू?ा को दिखाता है. असल में कांग्रेस सपा गठबंधन से इस वजह से अलग है, जिस से वह अलग चुनाव लड़ कर भाजपा की अगड़ी जातियों खासकर ब्राह्मणों के वोट अपनी तरफ कर के भाजपा को नुकसान कर सके.
बेरोजगारी, महंगाई, किसान पर लाचारी
वोट मांगने के लिए घरघर जाने वाले कार्यकर्ताओं से लोग सवाल करते हैं कि पैट्रोल 100 रुपए लिटर, खाने का तेल 200 रुपए लिटर और रसोई गैस का सिलैंडर 1,000 रुपए का है, ऐसे में गृहस्थी कैसे चलेगी? इन सवालों के जवाब भाजपा का प्रचार करने वालों के पास नहीं है. शहरों से हट कर जब गांव के लोगों से वोट मांगे जाते हैं, तो वहां के लोग छुट्टा जानवरों से खेत में होने वाले नुकसान, खाद के महंगे दाम की बात करने लगते हैं.
इन सवालों के जवाबों से लाचार हो कर भाजपा ने नई रणनीति बनाई है. अब वह वोट मांगने के लिए उन घरों में जा रही है, जिन को सरकार की किसी न किसी योजना का लाभ मिला है. भाजपा की भाषा में इन को ‘लाभार्थी’ कहा जाता है.
प्रचार पर जाने वाले कार्यकर्ताओं को उन के क्षेत्र के लाभार्थियों के नाम की लिस्ट पहले से दे दी जाती है. कार्यकर्ता इन घरों पर ही जा रहे हैं. वहां उन से महंगाई, बेरोजगारी और किसानों के सवाल कम होते हैं. भले ही ‘लाभार्थी’ कहा जाने वाला यह वर्ग सीधे सवाल नहीं करता, पर उस के मन में भी यह सवाल उठता है कि महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की क्या हालत है?
भाजपा के लिए चुनौती देने वाली बात यही है कि उस का समर्थन करने वाले से ज्यादा लोग उस का विरोध करने वालों का कर रहे हैं.
एक लोकगायिका हैं नेहा सिंह राठौर. वे बिहार की रहने वाली हैं. उत्तर प्रदेश में उन का ननिहाल है. बिहार विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने एक गाना ‘बिहार मा का बा’ गाया था, जिस के जरीए नेहा सिंह को सोशल मीडिया पर बहुत तारीफ मिली थी. अब उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी नेहा सिंह राठौर ने ‘यूपी में का बा’ गाने के सहारे यहां की अव्यवस्था पर सवाल किया. इन सवालों के घेरे में नेहा सिंह ने ‘मोदीयोगी’ को निशाने पर लिया.
नेहा सिंह राठौर को जनता ने हाथोंहाथ लिया, जिस से बौखला कर भाजपा की आईटी सैल और अंधभक्तों ने नेहा को जबरदस्त ट्रोल करना शुरू कर दिया. पर नेहा ने हौसला नहीं हारा और हिम्मत से ‘यूपी में का बा’ के अलगअलग गाने गाती रहीं.
भाजपा का विरोध जनता के बीच इतना है कि उस का प्रचार करने वालों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. कार्यकर्ताओं को ही नहीं, बल्कि भाजपा के विधायकों और कई नेताओं को उन के क्षेत्र में घुसने से रोका गया. पहले भी इस तरह का इक्कादुक्का विरोध होता था, जिस में जनता को सामने कर के विपक्ष के लोग बैनरपोस्टर टांग देते थे कि ‘प्रचार के लिए यहां संपर्क न करें’. लेकिन नेता के सामने आ कर कोई विरोध नहीं करता था.
इस बार जनता विरोध कर रही है और भाजपा नेताओं को क्षेत्र में घुसने नहीं दे रही है. इस तरह की घटनाएं पूरे प्रदेश में घट रही हैं. उत्तर प्रदेश में 20 जनवरी से 30 जनवरी के बीच 9 नेताओं को जनता का विरोध ?ोलना पड़ा. लोगों ने इन को गांव में घुसने नहीं दिया.
मंत्री से ले कर विधायक का विरोध
इस में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से ले कर तमाम नेता शामिल हैं. वे कौशांबी जिले की सिराथू सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. 22 जनवरी, 2022 को जब वे गुलामीपुर चुनाव प्रचार करने गए, तो महिलाओं ने उन को घेर कर नारेबाजी शुरू कर दी.
प्रयागराज से एमएलसी सुरेंद्र चौधरी को अफजलपुर में लोगों ने चुनाव प्रचार नहीं करने दिया. सुरेंद्र चौधरी सम?ाते रहे कि ‘सरकार ने राम मंदिर बनवाया’, पर लोगों ने एक नहीं सुनी. सुरेंद्र चौधरी को वहां से प्रचार छोड़ कर जाना पड़ा.
जालौन की उरई सीट से विधायक गौरी शंकर वर्मा चुनाव प्रचार करने गए, तो विरोध में नारेबाजी शुरू कर दी गई. लोगों ने जब सड़क, नल, पानी का हिसाब मांगा, तो गौरी शंकर वर्मा वहां से चलते बने.
इस तरह की घटनाएं पूरे प्रदेश में घट रही हैं. बुलंदशहर में देवेंद्र सिंह लोधी स्याना सीट से विधायक हैं. जब वे प्रचार करने गए, तो लोगों ने विरोध किया. उन का आरोप था कि ‘5 साल न कोई नल दिया, न सड़क. अब वोट मांगने क्यों आए हो?’ पहले तो देवेंद्र सिंह ने लोगों को सम?ाने की कोशिश की, पर जब बात नहीं बनी तो चुपचाप वापस चले आए.
ये भी पढ़ें: पंजाब: नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति के “गुरु”
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा विधायकों से लोग नाराज हैं कि अपने ही वोटरों को किसान आंदोलन में मुकदमे में फंसा दिया. इसी बात को ले कर खतौली से भाजपा विधायक विक्रम सैनी का विरोध हुआ. यही नहीं, कई जगहों पर वोट मांगने पर जनता ने भाजपा विधायकों के खिलाफ नारेबाजी की.
यहां के किसानों ने कहा कि उन पर जिस तरह से मुकदमे किए गए, कील और आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया, वह दर्द वे भूले नहीं हैं. यह सब देख कर ही भाजपा के बड़े नेताओं को प्रचार के लिए उतारना पड़ा, जिन के साथ पूरा लावलश्कर चलता है. इस से जनता विरोध नहीं कर पाती है.
किसान आंदोलन के साथसाथ महंगाई और बेरोजगारी भी विरोध की एक बड़ी वजह है. भाजपा इस कारण से इन मुद्दों को पीछे छोड़ कर धर्म, राष्ट्र, पलायन और बदमाशी पर बात कर रही है. भाजपा इन मुद्दों के नाम पर वोटर को डरा कर वोट लेना चाहती है.
‘अंडर करंट’ साबित होंगे
महंगाई और बेरोजगारी को भले ही विपक्ष चुनावी मुद्दा न बना पा रहा हो, पर महंगाई और बेरोजगारी को ले कर जनता के बीच गुस्सा बना हुआ है. पहले यह उबलते दूध की तरह होता था, जो कुछ समय में शांत हो जाता था.
इस चुनाव में केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भी यह मुद्दा बना हुआ है. जनता इसी कारण विपक्षी दलों के साथ खड़ी है. भले ही विपक्षी दल खुद इन मुद्दों को ले कर बात करने से बच रहा हो, पर एक तरह से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में इस बार जनता चुनाव लड़ रही है. उस का यह गुस्सा ‘अंडर करंट’ की तरह ही है, जो अब वोट देते समय निकल कर सामने आएगा.
ये भी पढ़ें: सियासत : इत्र, काला धन और चुनावी शतरंज
सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर, 2021 में बेरोजगारी दर 7.84 फीसदी हो गई है. उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की दर 4.9 फीसदी हो गई है. भले ही विपक्षी दल प्रमुखता से यह बात नहीं कर पा रहे हैं, पर उत्तर प्रदेश के बेरोजगारों ने ‘यूपी मांगे रोजगार’ नाम से अलग मुहिम चला रखी है.
भाजपा के वोटरों में सब से बड़ी तादाद नौजवानों की है, जो 18 से 35 साल की उम्र के हैं. इन के पास रोजगार का सब से बड़ा संकट है. प्रयागराज में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले नौजवानों पर जिस तरह से लाठियां बरसाई गईं, वह भाजपा के लिए बड़ा संकट बन रहा है.
युवा कार्यकर्ता जब वोट मांगने जा रहे हैं, तो उन के साथी ही उन का विरोध कर रहे हैं. इन के विरोध की गंभीरता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी क्षेत्र वाराणसी के नौजवानों ने उन के जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस’ के रूप में मनाया था.
बेरोजगारों के गुस्से की वजह यह है कि कोरोना काल के दौरान तालाबंदी से निजी क्षेत्र को जब नुकसान हुआ, तो वहां से तमाम लोगों को नौकरियों से बाहर कर दिया गया. ये युवा अब अपने सुरक्षित भविष्य के लिए सरकारी नौकरियों की तरफ जाना चाहते हैं. वहां परीक्षा पेपर आउट हो जा रहा है. परीक्षा का रिजल्ट सालोंसाल नहीं आता. जिन का रिजल्ट आ जाता है, उन को अपौइंटमैंट लैटर नहीं दिया जाता.
सरकार अब अपने विभागों में भी संविदा पर नौकरियां देने लगी है. वहां भी भाईभतीजावाद और सिफारिश चल रही है. इस वजह से छात्रों का गुस्सा उन के अंदर भरा हुआ है.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी तादाद में नौजवानों ने भाजपा को वोट दिया था. उस को यह लगा था कि ‘डबल इंजन’ सरकार उत्तर प्रदेश में रोजगार के अवसर खोलेगी.
नौजवानों को झांसा देने के लिए योगी सरकार ने ‘इंवैस्टर मीट’ और ‘डिफैंस ऐक्सपो’ जैसे कई आयोजन किए. नौजवानों को यह बताने की कोशिश भी की थी कि चीन से भाग कर विदेशी कंपनियां उत्तर प्रदेश में कारखाने लगाने जा रही हैं, जिस से नौजवानों को रोजगार मिल सकेगा.
उत्तर प्रदेश को फिल्म सिटी बनाने का झांसा भी दिया गया. इन में से कोई भी घोषणा जमीन पर नहीं उतरी. इस वजह से बेरोजगारों का गुस्सा अंडर करंट के रूप में काम कर रहा है, जिस का पता 10 मार्च को चल पाएगा.
भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का जिस तरह से विरोध हो रहा है, उस से शिमला की ठंड में भी भाजपा के पसीने छूट रहे हैं.