लेखक- रोहित
जिस बिंदु की तरफ ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा वह अनप्रोडक्टिव वर्क कल्चर को बढ़ावा दे रहा है. समस्या यह है कि समाज ने उसे नैतिकअनैतिक की बहस में उलझा कर रखा हुआ है, जबकि वह किसी भी तरह से प्रोडक्टिव नहीं है. ‘‘चौराहे पर लगे ट्रैफिक सिगनल यातायात को सुचारु रूप से चलाए रखने के लिए निर्णायक हैं.
अब अगर कुछ बाइकसवार यातायात के बने इन नियमों की अवहेलना करते हुए रैडलाइट जंप कर दें, तो क्या इस अपराध को रोकने के लिए ट्रैफिक सिगनल से रैडलाइट ही हटा देना उचित कदम होगा?’’ यह सवाल करते हुए अशोक ने एक अनबुझ पहेली मेरे सामने रख दी. दरअसल, कुछ दिनों पहले आईपीएल मैच देखते हुए भारत में औनलाइन गैंबलिंग के बढ़ते चलन को ले कर मेरी अपने मित्र अशोक से चर्चा चल रही थी. और यह सवाल उस ने मेरे उस बात के प्रतिउत्तर में दागा था जिस में मैं ने उस से कहा कि गैंबलिंग को वैधानिकता मिलने से इस से जुड़े छिपे गैरकानूनी धंधों में कमी आएगी, सबकुछ सामने होगा और सरकार को टैक्स के तौर पर रैवेन्यू में भारीभरकम रकम प्राप्त होगी.
अशोक का इस मसले पर सीधा सोचना था कि ‘‘अगर गैंबलिंग की वैधानिकता से सरकार को टैक्स का फायदा होता है तो ड्रग्स, कालेधन, स्मगलिंग, ट्रैफिकिंग जैसे दो नंबरी धंधों को कानूनी बना कर उन से भी भारीभरकम टैक्स कमाने में क्या बुराई है, ये धंधे भी वैधानिक कर दिए जाने चाहिए?’’ उस के सवाल तीखे थे, लेकिन जिज्ञासा जगा रहे थे. मैं ने गाजियाबाद में रह रहे अपने एक अन्य मित्र 28 वर्षीय प्रदीप (बदला नाम) को फोन मिलाया. दरअसल, मुझे जानकारी थी कि प्रदीप ने पिछले साल से ही औनलाइन गैंबलिंग में हिस्सा लेना शुरू किया था. वैसे तो इसे सीधेसीधे गैंबलिंग कोई स्वीकार नहीं करता लेकिन प्रदीप ने सीधेतौर पर बताया कि यह एक तरह का सट्टा या जुआ ही है. जो जुआ आप मटका या औफलाइन छिपेतौर पर खेल रहे थे, बस, अब वह पूरी मान्यता के साथ खेला जा रहा है. प्रदीप लौकडाउन से पहले गुरुग्राम स्थित एक एमएनसी में काम कर रहा था. उस की नौकरी 2 साल पहले लगी थी. उस ने शुरू से ही कंप्यूटर लाइन चुनी थी.
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उस ने पहले बीसीए किया, फिर जौब करते हुए अपनी एमसीए की पढ़ाई भी पूरी की. जिस कंपनी में वह कार्यरत था वहां उसे 25 हजार रुपए प्रतिमाह सैलरी मिलती थी. इसलिए उस ने घर से दूर लेकिन औफिस के नजदीक ही गुरुग्राम में कहीं अपने कुछ सहकर्मियों के साथ किराए के फ्लैट में रहने का फैसला किया था. परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए वह नियमिततौर पर सैलरी का एक हिस्सा घर भिजवाता रहा. वहां रह कर उस ने परिवार की आर्थिक स्थिति को संतुलित किया, और साथ ही अपने लिए कुछ सेविंग्स भी की. लेकिन इस बीच धीरेधीरे वह अपने दोस्तों के साथ औनलाइन गेमिंग की जकड़ में भी फंसता गया. शुरूआत मजे से हुई लेकिन धीरेधीरे यह उस की आदत का हिस्सा बनता चला गया. देश में तालाबंदी हुई तो शुरुआती डेढ़ महीना वह अपने सहकर्मियों के साथ फ्लैट में ही फंसा रहा. वहां वह अधिकतर खाली समय औनलाइन गेम खेलता रहा. तालाबंदी के तुरंत बाद ही कंपनी ने छंटनी कर उसे काम से निकाल दिया. प्रदीप वापस अपने घर गाजियाबाद में आ तो गया, लेकिन धीरेधीरे वह अपने ही फ्रैंड सर्कल में शौर्टकट तरीके से पैसे कमाने के लिए छोटीछोटी औनलाइन बैट यानी शर्त लगाने लगा. इस बीच, आईपीएल क्रिकेट टूर्नामैंट शुरू होने के बाद उस ने ‘ड्रीम 11’ पर खेलना (बैट लगाना) शुरू किया. हालांकि इस से पिछले साल वह इसे खेल चुका था लेकिन इस साल, उस के कथनानुसार, उस ने अपनी की हुई सेविंग से लगभग 36 हजार रुपए गंवा दिए हैं. लेकिन, उस का मानना है कि औनलाइन गेमिंग से वह इसे जल्द ही रिकवर कर लेगा, अपने नुकसान की भरपाई कर लेगा. वहीं, यूपीएससी की प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे प्रखर लौकडाउन के बाद से ही अपने होमस्टेट बिहार चले गए थे.
वे कम से कम इस साल तो कोरोना के चलते दिल्ली का रुख नहीं करना चाहते. वे कहते हैं, ‘मैं ने पिछले साल से ही आईपीएल पर की जाने वाली औनलाइन सट्टेबाजी में हिस्सा लेना शुरू किया. पिछले साल ‘ड्रीम 11’ पर खेल कर लगभग 2,200 रुपए जीते थे. लेकिन इस साल मैं हारा हूं.’ हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि वे किसी दूसरे औनलाइन गेम से इस नुकसान की भरपाई कर लेंगे. इस साल के जून माह में ही आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित पंजाब नैशनल बैंक के भीतर एक फोरजरी का मामला सुर्खियों में था. बैंक के कैशियर रवि तेजा ने औनलाइन गेम (रम्मी) में होने वाली गैंबलिंग में फंस कर पहले अपना पैसा बरबाद किया, फिर कर्ज ले कर गेम खेलने लगा. जब कर्ज का बो?ा बढ़ा और कर्ज लेने वाले घर के इर्दगिर्द तकाजा करने लगे, तो उस ने बैंक में जमा लोगों के पैसों को अपने अकाउंट में ट्रांसफर करना शुरू कर दिया. अंत में जब बैंक औडिट हुआ तो पता चला लगभग 1 करोड़ 57 लाख रुपए की कमी पाई गई है. इस की जांच की गई.
जांच में पता चला, यह सारा पैसा कैशियर के अकाउंट में ट्रांसफर हुआ था. फिर वहां से कैशियर द्वारा औनलाइन गेमिंग साइट्स पर ट्रांसफर किया गया. ये ही कुछ मामले नहीं हैं, बल्कि पिछले कुछ वर्षों में औनलाइन गेमिंग के जरिए गैंबलिंग करने के ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं. कई मामले ऐसे हैं जिन में सट्टे की रकम न चुकाने की स्थिति में व्यक्ति द्वारा सुसाइड करने की नौबत आ चुकी है. भारत में गैंबलिंग के अवैध होने के बावजूद सरकार और न्यायालयों के सामने या यों कहें कि उन की परामर्श या मंजूरी के बाद ही इस धंधे का क्षेत्रफल विशालकाय होता जा रहा है. स्किल और चांस के बीच वैधअवैध का खेल? इस साल आईपीएल में औनलाइन जुआ से संबंधित गेम्स को खूब प्रमोट किया गया. कल तक जिस पेटीएम पर गूगल ने सट्टेबाजी को ले कर प्रतिबंध लगाया था, उसे मात्र 4 घंटे के भीतर ही समझौता कर गूगल ने वापस ले लिया.
इसी प्रकार गैंबलिंग से जुड़े गेम्स इस साल काफी बड़े स्तर पर देखने को मिले हैं. इस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल आईपीएल क्रिकेट लीग को ‘ड्रीम 11’ ने स्पौंसर किया. वहीं, माय सर्किल 11, एमपीएल जैसे औनलाइन गैंबलिंग से संबंधित एकसाथ कई ऐसे गेम्स की बाढ़ सी आ गई है. ये खुलेतौर पर लोगों से पैसा लगाने का आह्वान कर रहे हैं. यह आह्वान, खासकर, उन युवाओं को सीधे लुभा रहा है जिन के पास एंड्रौयड फोन है और जो बेरोजगारी के मौजूदा दौर में शौर्टकट तरीके से पैसे कमाने की जुगत में लगे हैं. किंतु इन सारी चीजों के बावजूद बड़ा सवाल यह है कि भारत में जब जुआ या सट्टे से जुड़े कारोबार पर पाबंदी है तो यह खुलेआम इतने बड़े लैवल पर कैसे सुचारु रूप से चल रहा है? भारत में इस समय पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867 लागू है.
इस के अनुसार, कोई भी घर, जो दीवारों से घिरा या बंद हो और वहां कार्ड्स, डाइस, टेबल और गेम के अन्य यंत्र रखे हों जिन का इस्तेमाल किसी व्यक्ति, फिर चाहे वह मकानमालिक ही क्यों न हो, द्वारा लाभ कमाने की मंशा से किया जा रहा हो, इस कानून की श्रेणी में आता है.’’ इस परिभाषा के अनुसार, किसी गैंबलिंग को गैंबलिंग मानने के लिए 3 चीजों की जरूरत है- संभावना, आपसी सहमति, दांव पर लगने वाली कीमत (गिफ्ट). लेकिन, यह जितना आसान दिखता है उतना है नहीं. इस के भीतर कई उठापटक हैं. इस एक्ट के सैक्शन 12 में यह कहा गया कि जिन गेम्स में संभावना कम और स्किल, हुनर या कौशल की मात्रा अधिक होती है, वे पनिशेबल नहीं हैं.
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यानी, वे गैंबलिंग की श्रेणी में नहीं आते हैं. यह कानून ब्रिटिश समय से ही भारत में लागू है, इसे ले कर भारतीय न्यायिक मामले में अलगअलग समय 3 डिसीजन लिए गए. पहला 1957 में, जब आरएमडी चमरबउगवाला वर्सेस यूनियन औफ इंडिया के मामले के तहत अपैक्स कोर्ट ने कहा, जिन गेम्स में स्किल्स की जरूरत होती है उन्हें गैंबलिंग से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. दूसरा 1967 में, आंध्र प्रदेश वर्सेस के सत्यनारायण मामले में जब सुप्रीम कोर्ट ने 13 पत्तों वाले ‘रम्मी गेम’ को यह कहते हुए उन क्लब्स या संस्थाओं में खेलने की आज्ञा दी, जहां यह लाभ कमाने के उद्देश्य से न हो. कथनानुसार, ‘‘रम्मी खेल, तीन पत्ती गेम की तरह ‘गेम औफ चांस’ नहीं है. रम्मी में एक प्रकार का स्किल चाहिए होता है क्योंकि इस में अपने पत्तों को बनाने के लिए कार्ड्स को गिराने, उठाने और सजाने के लिए विशेष ध्यान देना पड़ता है.’’ जिस के बाद इसे ‘गेम औफ स्किल’ कहा गया.
इसी तौर पर तीसरा 1996 में, जहां अपैक्स कोर्ट ने के आर लक्ष्मण वर्सेस स्टेट औफ तमिलनाडु मामले में हौर्स रेसिंग गेम को गैंबलिंग के दायरे से दूर रखते हुए इस में खुली सट्टेबाजी की वैधानिकता प्रदान की. हालांकि, भारत के संविधान, 1950, लिस्ट 2 के 7वें शैड्यूल के एंट्री 34 और 62 में सभी राज्यों को यह ताकत दी गई है कि राज्य विधानसभाएं अपने अधीन गैंबलिंग और बैटिंग के मैटर पर विधेयक बना सकती हैं. इसी के तहत, देश में 3 राज्यों (गोवा, सिक्किम, दमन) को छोड़ कर सभी ने गैंबलिंग या बैटिंग से जुड़े किसी भी प्रारूप पर पाबंदी लगाई हुई है. गोवा ने भी 1996 में अनुमति दी. इस के बाद दमन एंड दीव ने ‘पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1976’ में संशोधन के बाद पांचसितारा होटलों में इस की अनुमति दी. फिर सिक्किम ने भी तय किया कि सिक्किम रेगुलेशन औफ गैंबलिंग (अमैंडमैंट) एक्ट 2005 के तहत इसे लीगल किया. वर्ष 2013 में सरकारी आंकड़ों के हवाले से रिपोर्ट आई थी कि अकेले गोवा राज्य में चलने वाले कैसीनों से 2012-13 में 135 करोड़ रुपए का रैवेन्यू सरकार को प्राप्त हुआ. यानी, देखा जाए तो खेलों में होने वाली सट्टेबाजी को 2 कैटेगरी में बांटा गया है, एक- ‘गेम औफ स्किल्स’ दूसरा- ‘गेम औफ चांस’. इसी अनुसार कोई सट्टा वैध है अथवा अवैध, इस की वैधानिकता इस बात पर निर्धारित होती है कि वह कितना स्किल्स पर निर्भर है या कितना संभावना पर.
औनलाइन सट्टेबाजी का बढ़ता चलन देश में चूंकि डिजिटलीकरण के चलते चीजें बहुत तेजी से बदलीं, तो एंड्रौयड फोन और इंटरनैट ने 5-7 सालों के भीतर काफी तेजी से इस इंडस्ट्री पर भी अपना प्रभाव छोड़ा. पहले जो चीजें छिपछिपा कर गैरकानूनी तरीके से डार्क साइड में चला करती थीं, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय तौर पर अब पहले की अपेक्षा सुसंगठित करने व नई पहचान देने में डिजिटलीकरण ने भारी योगदान दिया. ‘औनलाइन गेमिंग इन इंडिया 2021’ रिपोर्ट में बताया गया कि भारत का औनलाइन गेमिंग उद्योग जो 2016 में 29 करोड़ डौलर का था वह 2021 तक 1 अरब डौलर तक पहुंच जाएगा. और इस में 19 करोड़ गेम्स शामिल हो जाएंगे. इन यूजर्स में उन लोगों को शामिल किया गया है जो गेम के नाम पर जुआ खेल रहे हैं या फैंटेसी स्पोर्ट के नाम पर उन्हें खिलाया जा रहा है.
वर्ष 2013 में फिक्की ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह कहा था कि भारत में गेमिंग इंडस्ट्री से सरकार को लगभग 7,200 करोड़ रुपए का टैक्स प्राप्त होता है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितने बड़े स्केल पर आज चल रहा है. औनलाइन रम्मी का प्रचलन पिछले कुछ समय से बढ़ता ही जा रहा है. देश में औनलाइन रम्मी उद्योग के मौजूदा समय में करीब 5 करोड़ खिलाड़ी हैं. और लौकडाउन के दौरान घर में बैठे लोगों के बीच इस का प्रचलन और भी बढ़ा है. फरवरीमार्च में गेमिंग साइट्स और ऐप इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में 24 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. इस के प्रचलन बढ़ने के साथसाथ बात इस की सेफ्टी पर भी आ गई है. इस साल के अगस्त माह में हैदराबाद कमिश्नर औफ पुलिस और उन की टीम ने ऐसे ही एक बड़े औनलाइन गैंबलिंग घोटाले का भंडाफोड़ किया. पुलिस के अनुसार, पूरे प्रकरण में 1,100 करोड़ रुपए के लेनदेन की बात सामने आई. जिस में पुलिस का कहना था कि कई युवा इस गैंबल घोटाले में अपने लाखों रुपए गंवा चुके हैं. हैरानी वाली बात यह सामने आई कि पुलिस ने कई युवाओं के इस के चलते आत्महत्या करने की बात भी बताई.
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इन मसलों के बाद भारत में सट्टेबाजी और गैंबलिंग को ले कर एक नई बहस छिड़ गई है. यह बहस इसे पूरी तरह से वैधानिकता दिए जाने या इस पर सख्ती से पाबंदी लगाए जाने को ले कर है. इस पूरी बहस में 2 सवाल केंद्रबिंदु बन गए हैं. पहला, क्या इतने पुराने समय से चले आ रहे कानून को बदल कर गैंबलिंग को वैधानिक करने का समय आ गया है? दूसरा, सरकार अगर इस अपराध को रोक नहीं पा रही तो क्या इस के सामने घुटने टेक देना इस का समाधान है? हालांकि, भारत सरकार किसी प्रकार से औनलाइन सट्टेबाजी को ले कर किसी प्रकार का रोडमैप बनाने में फिलहाल असफल रही है, जिस के चलते औनलाइन चलने वाली गैंबलिंग काफी कंफ्यूजन से भरी हुई है. इसे टैक्निकल भाषा में ‘ग्रे एरिया’ कहा जा रहा है. यानी, जिस जगह पर ‘हां और ना’ या ‘काला और सफेद’ दोनों की स्थिति बनी हुई है. जैसा कि देखा सकता है कि एक तरफ कर्नाटक हाईकोर्ट पोकर गेम को ‘गेम और स्किल’ मान रही है, जबकि दूसरी तरफ गुजरात हाईकोर्ट ने इसे ‘गेम औफ चांस’ माना. स्किल-चांस की नैतिकता-अनैतिकता जुआ किसी भी समाज में कभी भी नैतिक तौर पर स्वीकृत नहीं रहा है.
सभ्यताओं के बनने से ही जुआ लोगों को लुभाते जरूर रहे हैं, चाहे इस के उदाहरण महाभारत में पाए गए हों या अन्य धार्मिक ग्रंथों में लेकिन जुए में ‘जर, जोरू और जमीन’ गंवाने की मिसाल सदियों से आज तक कायम है. महाभारत में जुए की लत को बहुत ही सरलता से दर्शाया गया. जब युधिष्ठिर, धर्मराज और सचाई के राजा, ने अपने भाइयों की संपत्ति और पत्नी द्रौपदी सहित सबकुछ जुए में खो दिया. कहने वाले कहते हैं, यही संपत्ति का विवाद आगे चल कर धर्मयुद्ध में कन्वर्ट हुआ, जिसे महाभारत कहा गया. जुआ किसी भी समाज में खेलने वालों के प्रति न्यायिक नहीं रहा. एक की हार से ही दूसरे की जीत संभव है.
हालांकि, इस की नकारात्मकता पर बाद में आया जाएगा लेकिन यह तय है कि यह नैतिक तौर पर समाज द्वारा कभी स्वीकृत नहीं हो पाया. फिर क्या यह प्रश्न बन सकता है कि इसे अब तक अवैध किए जाने के पीछे इस की अवांछनीयता रही है? जी हां, एक पल के लिए कानूनों के वैधअवैध ठहराए जाने में कुछ अपवादों को छोड़ कर 2 बातें देखी जा सकती हैं. पहली, हर अनैतिक कार्य अवैध नहीं. दूसरी, हर अवैध कार्य हो सकता है अनैतिक हो. मसलन, झूठ बोलना अनैतिक है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर मामले में अपराध हो.
जब तक किसी कृति का परिणाम अधिसंख्य लोगों को विपरीत प्रभावित न करे तब तक वह अपराध की श्रेणी में नहीं आता. फिर सवाल यह है कि औनलाइन चाहे औफलाइन गैंबलिंग तो यह बड़े हिस्से को प्रभावित करती है, खासकर इस की जकड़ में युवा अधिक संख्या में हैं, तो फिर वह बिंदु कहां छूट रहा है कि जहां राज्य कहे कि ‘अब बस, आप यह कार्य नहीं कर सकते.’ 2017 में सपोर्ट फैंटेसी ‘ड्रीम 11’ के एक प्लयेर वरुण गुम्बर, जो लगभग 50 हजार रुपए इस खेल (बैटिंग) में गंवा चुका था, ने फैसला किया कि इस मामले को ले कर वह पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में शिकायत दर्ज कराएगा. वरुण ने अपनी पिटीशन में चैलेंज किया कि यह फैंटेसी लीग ‘गेम औफ स्किल’ नहीं है. जिस के बाद जस्टिस अमित रावल की सिंगल जज बैंच ने इस मामले को औब्जर्व करते हुए पाया कि इस में यूजर सपोर्ट की जानकारी के साथ ‘‘पिछले परफौर्मैंस, डाटा, प्लेयर की चल रही फौर्म के आधार पर इस में पैसे लगाता है. जिस के बाद निर्णय लिया गया कि यह ‘गेम औफ स्किल’ के भीतर आने वाली गतिविधि है, और वरुण की कंप्लेंट खारिज कर दी गई.
भारत में औनलाइन फैंटेसी के तौर पर चल रहे गेम्स के लिए यह बहुत बड़ी जीत और टर्निंग पौइंट था. यह पहला मामला था जब किसी कोर्ट ने इस तरह के फैंटेसी लीग वाले खेलों को गेम औफ स्किल में डाला. जिस के बाद ‘ड्रीम 11’ के कोफाउंडर और सीईओ हर्ष जैन ने सैल्फ रेगुलेटेड ‘इंडियन फैडरेशन औफ स्पोर्ट्स गेमिंग’ की इसी साल स्थापना की. इस समय ‘ड्रीम 11’ के लगभग साढ़े 4 करोड़ यूजर्स हैं, जिन में से 15 प्रतिशत यूजर्स पैसों के लिए खेलते हैं. यही यूजर्स हैं जो ड्रीम 11 के लिए रैवेन्यू जनरेट करते हैं.
ज यह कंपनी आईसीसी, द बिग बेश, कैरिबियन सुपर लीग, प्रो कबड्डी, एफआईएच इत्यादि की औफिशियल पार्टनर है. यहां तक कि यह देखा जा सकता है कि कंपनी को अपने प्रचार में एम एस धौनी को एंबैसडर बनाया गया जिस का स्लोगन ‘खेलो दिमाग से’ था. हालांकि, इस के बाद भी वरुण गुम्बर ने अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के लिए एप्रोच किया, जिस के बाद सितंबर माह में सुप्रीम कोर्ट के डिविजनल बैंच के जस्टिस रोहितो और जस्टिस संजय किशन कौल द्वारा इस पिटीशन को खारिज कर दिया गया. वैधअवैध के अपनेअपने तर्क में ‘ग्रे एरिया’ सट्टा बाजार, गैंबलिंग या जुआ को वैधअवैध किए जाने को ले कर काफी समय से बहस चली आ रही है. इस के पक्षविपक्ष में लगातार दलीलें दी जाती रही हैं. दोनों तरफ के लोगों की अपनीअपनी दलीलें हैं. इसे वैधानिक किए जाने वाले जानकारों का कहना है कि यूरोप के कई देशों में सट्टेबाजी के लिए कानून बदले जा चुके हैं. कई देशों ने तो इसे पूरी तरह वैधानिक कर दिया है, जैसे इंग्लैंड, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, कनाडा, इत्यादि. वहीं, कुछ देशों ने कुछ शर्तों के साथ अपने कुछ राज्यों को विशेष छूट दी.
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उदाहरण के तौर पर यूएसए है जहां के ‘लास वेगास’ को जाना ही इसी के लिए जाता है. इस के पक्ष में जो सब से बड़ा तर्क दिया जा रहा है वह अवैध तरीके से होने वाले इस धंधे की दो नंबरी कमाई है, जिस का कोई हिसाब सरकार के सामने नहीं आ पाता. वहीं, इस के अवैध होने के चलते, टैक्स के दायरे में नहीं आने से सरकार की आय का एक बड़ा स्रोत खत्म हो जाता है.
भारत समेत पूरी दुनिया में गैंबलिंग कारोबार (औनलाइन व औफलाइन) पहले ही काफी ज्यादा ग्रोथ पर था, लेकिन लौकडाउन के बाद इस में तेजी से उछाल आया है. आंकड़ों की मानें, तो भारत के 80 प्रतिशत युवा किसी भी रूप के गैंबलिंग में हर साल में कम से कम एक बार जुड़ जाते हैं. इस का पूरा बाजार लगभग 60 बिलियन डौलर का बताया जा रहा है. फिर ऐसे में सवाल इस की कमाई को ले कर होने लगे हैं, यह पैसा कहां लग रहा है, किसे फेसिलिटेट कर रहा है इत्यादि? इस में एक तर्क इस के 150 साल पुराने हो चुके कानून को ले कर है. यह कहा जा रहा है कि जिन अंगरेजों ने यह कानून बनाया, उन्होंने इसे अपने देश में रैगुलेट कर लिया है.
साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि इस के रैगुलेट होने और वैधानिक किए जाने से इस पूरे प्रोसैस में पारदर्शिता आएगी. इस पर ईसिस्टम के जरिए नजर रखी जा सकती है और ट्रैक किया जा सकता है. इस में खेलने और खिलाने के लिए नियमावली रखी जाए. किंतु इस के विपक्ष में दी जाने वाली दलीलें भी कई हैं. सरकार अगर इस अपराध को रोकने में असफल है, तो इस कारण इसे लीगल किए जाने वाली दलीलें देश के संविधान पर नकारात्मक असर डालेंगी. संवैधानिक तौर पर इस से मिलतेजुलते अपराधों को भी लीगल करने की बात आएगी, जिन्हें सरकार रोक नहीं पा रही.
यही बात ड्रग्स को लीगल करने को ले कर कही जा रही है. वहीं इस के माध्यम से कालेधन को सफेद करने की वैधानिकता प्राप्त हो जाएगी, जिसे रोजगार कहा जा रहा है. तो फिर इस से कई युवा जुए की खराब लत के शिकार होंगे. ऐसे में क्राइम और सुसाइड की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी होगी. इस से खेल की शुद्धता और सुचिता पर भारी खतरा होने की आशंका होगी. ऐसे ही स्पौट फिक्ंसिंग का उदाहरण हम आईपीएल में पीछे देख चुके हैं. 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस के लीगल-इललीगल पर बहस चली, जिस के बाद विधि आयोग को इस पर एग्जामिन कर अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा गया. यह तब जब लोडा कमेटी ने रिकमैंड किया कि बैटिंग को रैगुलेट किया जाना चाहिए. विधि आयोग ने इस पर अपना स्टैंड लेने के बजाय इसे ‘ग्रे एरिया’ में ही रख दिया, यानी इसे ‘इफ एंड बट’ वाली स्थिति पर छोड़ दिया. इस से होने वाले फायदे और नुकसान गिना कर रिपोर्ट सैंट्रल गवर्नमैंट को सौंप दी गई. फिक्की के स्टेक होल्डर ने भी इस पर अपनी राय रखी.
ऐसे में इस क्षेत्र में कमर्शियल पहलू हावी होने लगे हैं. देशीविदेशी कंपनियों का भी इस में बड़ा रोल देखने को मिल रहा है. चूंकि यह एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है तो बड़े पूंजीपतियों और सरकार दोनों ही इस में अपने फायदे तलाश रहे हैं. जाहिर है, इस में बड़ा आरोप इस बात का लग रहा है कि बदलते स्वरूप में इस के वैधानिक होने की बहस का कारण बड़े पूंजीपतियों और कौर्पोरेटरों का संगठित तौर पर इस में मुनाफे के लिए कूद पड़ना है. कई लोगों का तर्क है कि यह गेमिंग के नाम पर चलाए जाने वाला मात्र जुआ है, जो कानून के लूप होल्स के साथ खेला जा रहा है. फिर इस के विपक्ष में एक तर्क यह भी है कि राज्य सरकार की भूमिका ऐसे मामलों में ‘गार्जियन स्टेट’ की होती है. स्टेट को देखना है कि उस की जनता के लिए यह कितना वांछनीय है अथवा कितना नहीं.
किसी भी कानून को लाने के लिए सरकार का उद्देश्य यह होता है कि वह कानून राज्यवासियों के लिए कितना उपयोगी है. खेलों में भारी सट्टेबाजी से यह जरूर है कि इस का खेलों पर प्रतिकूल ही असर पड़ेगा. 2013 आईपीएल मैचों के दौरान राजस्थान रौयल्स और सीएसके को 2 साल का बैन उठाना पड़ा है. वहीं उन के मालिकों राजकुंद्रा, मय्यापन, एन श्रीनिवासन पर खेल से दूर रहने की आजीवन पाबंदी लगा दी गई. एन श्रीनिवासन को तो अपनी बीसीसीआई की कुरसी तक गंवानी पड़ी, जिस ने खेल की सुचिता पर बड़े प्रश्न खड़े किए हैं. अनप्रोडक्टिव वर्क कल्चर को बढ़ावा जिस बिंदु की तरफ ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा वह इस के अनप्रोडक्टिव वर्क कल्चर के बढ़ावा होने का है. समस्या यह है कि फिलहाल इसे नैतिकअनैतिक की बहस में उलझ कर रखा हुआ है. जबकि, इस तरह के काम किसी भी तरीके से प्रोडक्टिव नहीं हैं. ‘इस की टोपी, उस के सिर’ के बीच अपना कट लेती कंपनी के मुनाफे का यह सारा खेल सदियों से चल रहा है. ऐसे कामों में ज्यादातर मामले बरबाद होने के ही देखे गए हैं. समस्या इस के गैरउत्पादन काम को ले कर है. समाज में हर तबका किसी न किसी तरीके से खुद के स्वार्थ को पूरा कर, समाज के हितों की पूर्ति करता है.
उदाहरण के तौर पर, फैक्ट्री में काम करने वाला मजदूर अगर कोई कमीज सिलता है तो उस से वह तनख्वाह पाता है, साथ ही, समाज के किसी व्यक्ति के लिए उत्पादन भी करता है. रोड बनाता है तो दिहाड़ी पाता है और समाज के चलने लायक रास्ता तैयार करता है. वहीं, कोई किसान खेती करता है तो खुद के हित के साथ समाज के हित भी पूरे करता है. इसी तौर पर सर्विस से जुड़े कामों में भी यही बात लागू होती है. लेकिन जुए से जुड़ा धंधा किसी प्रकार से सामाजिक हितों की पूर्ति नहीं करता. यह प्रोडक्टिव वर्क भी नहीं है. रही बात टैक्स कमाने की, सरकार को ऐसे कामों के पीछे छिप कर टैक्स कमाने की मंशा खुद ही सवालिए निशाने पर ले जाती है.
कल को हवाला के पैसों से भी सरकार भारीभरकम टैक्स कमा सकती है. इस से समाज का नवयुवक तबका न सिर्फ जुए की फंतासी में फंस रहा है, बल्कि साथ ही संभवतया भविष्य में उस के वर्क कल्चर के हैबिट में नकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं. बिना मेहनत शौर्टकट पैसे कमाने की होड़ और उस से हुए नुकसान से क्रिमिनल ऐक्टिविटी में भी बढ़ावा होने का अंदेशा है. ऐसे कई उदाहरण हमारे आसपास देखने को मिल सकते हैं जब लोगों ने सट्टे, जुए के चक्कर में घर, संपत्ति तक गिरवी रखवा दिए. कानून में यह स्किल और चांस का मायाजाल जरूर बुना गया है लेकिन इसे खेलने वाले लोग भी और खिलाने वाले उद्योगपति भी बखूबी जानते होंगे कि वे क्या कर रहे हैं.