दागी कंगन : कालगर्ल मुन्नी की दास्तान

‘‘मुन्नी, तुम यहां पर कैसे?’’ ये शब्द कान में पड़ते ही मुन्नी ने अपनी गहरी काजल भरी निगाहों से उस शख्स को गौर से देखा और अचानक ही उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘निहाल भैया…’’

वह शख्स हामी भरते हुए बोला, ‘‘हां, मैं निहाल.’’

‘‘लेकिन भैया, आप यहां कैसे?’’

‘‘यही सवाल तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि मुन्नी तुम यहां कैसे?’’

अपनी आंखों में आए आंसुओं के सैलाब को रोकते हुए मुन्नी, जिस का असली नाम मेनका था, बोली, ‘‘जाने दीजिए भैया, क्या करेंगे आप जान कर. चलिए, मैं आप को किसी और लड़की से मिलवा देती हूं. मुझ से तो आप के लिए यह काम नहीं होगा.’’

‘‘नहीं मुन्नी, मैं हकीकत जाने बगैर यहां से नहीं जाऊंगा. आखिर तुम यहां आई कैसे? तुम्हें मालूम है कि तुम्हारा भाई राकेश और तुम्हारे मम्मीपापा कितने दुखी हैं?

‘‘वे सब तुम्हें ढूंढ़ढूंढ़ कर हार गए हैं. पुलिस में रिपोर्ट की, जगहजगह के अखबारों में तुम्हारी गुमशुदगी के बारे में खबर दी, लेकिन तुम्हारा कुछ पता ही नहीं चला.

‘‘और आज… जब इतने बरसों बाद तुम मिली, तो इन हालात में… एक कालगर्ल के रूप में.

‘‘मुन्नी, सचसच बताओ, तुम यहां कैसे पहुंची. हमें तो लगा कि तुम प्रकाश, वह तुम्हारा प्रेमी, के साथ भाग गई?थी.

‘‘कितनी पूछताछ की राकेश ने उस से तुम्हारे लिए, लेकिन वह तो कुछ दिनों के लिए खुद ही नदारद था.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं निहाल भैया, लेकिन अब सच जान कर भी क्या फायदा सब मेरी ही तो गलती है, सो सजा भुगत रही हूं.’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसा मत कहो. तुम मुझे सच बताओ.’’

मुन्नी कहने लगी, ‘‘भैया, आप ने जो सुना था, सच ही था. मैं और प्रकाश एकदूसरे को प्यार करते थे. वह मेरे कालेज का दोस्त था. आप को याद होगा कि हम दोनों कालेज से एक फील्ड ट्रिप के लिए शहर से बाहर गए थे. वहीं पर हमारे मन में प्यार के अंकुर फूटे और धीरेधीरे हमारा प्यार परवान चढ़ गया था.

‘‘कालेज की पढ़ाई पूरी होतेहोते हमा घर में मेरी सगाई की बातें चलने लगी थीं. मैं ने पापामम्मी को जैसे ही प्रकाश के बारे में बताया, वे आगबबूला हो उठे. मुझे लगा कि कहीं वे लोग मेरी शादी जबरदस्ती किसी और से न करा दें. सो, मैं ने सारी बात प्रकाश को बताई.

‘‘प्रकाश ने मुझे भरोसा दिलाया और कहा, ‘मेनका, ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें अपने से अलग नहीं होने दूंगा. बस, तुम मुझ पर?भरोसा रखो.’

‘‘मुझे उस पर पूरा भरोसा था. अब मैं घर में होने वाली हर बात उसे बताने लगी थी. और जैसे ही मुझे लगा कि पापामम्मी मेरी मरजी के खिलाफ शादी तय करने जा रहे हैं, मैं ने प्रकाश को सब बता दिया.

‘‘उसी शाम वह मुझ से मिला. मैं खूब रोई और बोली, ‘मुझे कहीं भगाकर ले चलो प्रकाश, वरना मैं किसी और की हो जाऊंगी और हम हमेशा के लए बिछड़ जाएंगे.’

‘‘प्रकाश ने कहा, ‘मैं अपने घर में बात करता हूं मेनका, तुम बिलकुल चिंता मत करो.’

‘‘अगले ही दिन प्रकाश मेरे लिए अपनी मम्मी के दिए कंगन ले कर आया और बड़े ही अपनेपन से बोला, ‘मेनका, यह मां का आशीर्वाद है हमारे लिए. वे तो तुम्हें बहू बनाने के लिए राजी हैं, पर पिताजी नहीं मान रहे?हैं. सो, हम दोनों घर से भाग जाते?हैं.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘लेकिन, हम भाग कर जाएंगे कहां?’

‘‘वह बोला, ‘वैसे तो हमारे पास कोई ठिकाना नहीं है, लेकिन वाराणसी में मेरा एक दोस्त रहता है. मैं ने उस से बात की है. वह वहां नौकरी करता है. हम उसी के पास चलेंगे. वह अपनी ही कंपनी में मेरे लिए नौकरी का इंतजाम भी कर देगा.’

‘‘प्रकाश ने यह भी समझाया, ‘हम वहां रजिस्टर्ड शादी कर लेंगे और फिर अपने घर का इंतजाम भी वहीं कर लेंगे. शायद कुछ समय में हमारे मम्मीपापा भी इस शादी को रजामंदी दे दें.’

‘‘मुझे उस की बातों में सचाई नजर आई और मैं ने उस के साथ भाग जाने का फैसला कर लिया.

‘‘अगले ही दिन मैं घर से कुछ कपड़े व रुपए ले कर रेलवे स्टेशन पहुंच गई.

‘‘हम दोनों प्रकाश के दोस्त के घर पहुंचे और वहां 2 दिन में ही प्रकाश ने नौकरी शुरू कर दी.

‘‘5 दिन बाद उस का दोस्त मुझ से बोला, ‘भाभी, प्रकाश ने आप को बाहर कहीं बुलाया है. आप तैयार हो जाइए. मैं आप को वहां ले चलता हूं.’

‘‘एक बार तो मुझे लगा कि प्रकाश ने मुझे क्यों नहीं बताया, पर अगले ही पल मैं उस के दोस्त के साथ चली गई. मैं जहां पहुंची, वहां प्रकाश पहले से ही मौजूद था.

‘‘उस ने मुझे एक आंटी से मिलवाया और बोला, ‘जिस कंपनी में मैं काम करता हूं, ये उस की मालकिन हैं.’

‘‘वे आंटी भी मुझ से बड़े प्यार से मिलीं. कुछ देर बाद प्रकाश बोला, ‘मेनका, मैं कुछ देर के लिए बाहर हो कर आता हूं, तब तक तुम यहीं रहो.’

‘‘एक बार को मुझे घबराहट हुई, पर आंटी की प्यार भरी छुअन में मुझे मां का रूप नजर आया, सो मैं वहां रुक गई. उस के बाद मेरी जिंदगी में जैसे तूफान आ गया. मुझे एक ही रात में समझ आ गया कि प्रकाश मुझे थोड़े से रुपयों के लालच में उन आंटी के हाथों बेच गया था.

‘‘अब हर रात अलगअलग तरह के ग्राहक आने लगे. मैं ने आंटी के खूब हाथपैर जोड़े और रोरो कर कहा, ‘आंटी प्लीज मुझे जाने दीजिए, मैं भले घर की लड़की हूं. मेरे मम्मीपापा, भाई क्या सोचेंगे मेरे बारे में.’

‘‘लेकिन, आंटी ने मेरी एक न सुनी. पहले 2 लड़कों ने मेरा बलात्कार किया और मुझे कई दिन तक भूखा रखा गया. जब मैं मानी, तब खाना दिया गया और इलाज भी कराया गया. सब लड़कियों ने कहा कि इन की बात मान जाओ, क्योंकि बाहर तो अब कोई अपनाएगा ही नहीं. मैं रोज सजधज कर तैयार होने लगी.

‘‘लेकिन, मुझे बारबार अपने किए पर पछतावा होता. एक बार वहां से भागने की कोशिश भी की, पर पकड़ी गई. उस रात आंटी ने मेरी खूब पिटाई की और उन के दलाल भूखे भेडि़यों की तरह मेरे ऊपर टूट पड़े.

‘‘वहां की एक लड़की प्रिया ने मुझे समझाया, ‘मेनका, अब तुम्हारे पास इस नरक से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं?है. तुम्हारे साथ कितनी बार तो आंटी के आदमियों ने गैंगरेप किया, तुम्हें क्या हासिल हुआ? इस से तो ग्राहकों की भूख मिटाओगी, कम से कम पैसे तो मिलेंगे. समझौता करने में ही समझदारी है.’

‘‘उस समय मुझे प्रिया की बात ठीक ही लगी और मैं ने अपनेआप को आंटी को सौंप दिया. आंटी बहुत खुश हुईं और मुझे प्यार से रखने लगीं. बस, तब से मेरी ग्राहक को पटाने की ट्रेनिंग शुरू हुई.

‘मुझे दूसरी औरतों के साथ रात के समय सजधज कर भेज दिया जाता. सड़क के किनारे खड़ी हो कर दूसरी लड़कियां अपनी अदाओं से आतेजाते मर्दों को रिझातीं. मैं उन्हें देख कर दंग रह जाती. हर कोई मोटा मुरगा फंसाने की फिराक में रहती.’’

मेनका की बात सुन कर निहाल ने थोड़ा गुस्से में पूछा, ‘‘तुम जब बाहर निकली, तो रात के समय वहां से भाग क्यों नहीं गई?’’

‘‘कैसी बातें करते हैं भैया आप. इतना आसान होता, तो क्या मैं इस धंधे में टिकी रहती? आंटी के दलाल पूरी चौकसी रखते हैं हम पर.’’ मेनका की कहानी सुन कर निहाल की आंखों से आंसू बह निकले.

मेनका आगे बताने लगी, ‘‘दूसरी लड़कियों के साथ मैं भी धीरेधीरे ग्राहक पटाने की ट्रेनिंग ले चुकी थी. शुरू में तो ग्राहक पटाना भी बहुत बुरा लगता था. रात के समय सड़क पर घटिया हरकतें कर अपने अंग दिखा कर उन्हें पटाना पड़ता था.

‘‘उस पर भी लड़कियों में आपस में होड़ मची रहती थी. मैं किसी ग्राहक को जैसेतैसे पटाती, तो रास्ते से ही दूसरी लड़कियां कम पैसों में उसे खींच ले जातीं.

‘‘भैया, मैं नई थी. मुझ से ग्राहक पटते ही नहींथे, तो आंटी बहुत नाराज होतीं. सड़क पर ग्राहक ढूंढ़ने के लिए खड़ी होती, तो लोगों की लालची मुसकान देख कर मेरा दिल दहल जाता. जब कोई पास आ कर बात करता, तो डर के मारे दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. कोईकोई तो मेरे पूरे बदन को छू कर भी देखता.

‘‘बस, इतना ही  और उस के लिए तुम्हारी देह का सौदा हर रात होता है,’’ निहाल ने कहा. उस की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे, जिन्हें रोकने की वह नाकाम कोशिश कर रहा था.

‘‘बहुत बुरा हाल था भैया. एक बार एक आदमी बहुत नशे में था. मुझे उस के मुंह से आती शराब की बदबू बरदाश्त नहीं हुई और मैं ने उस से अपना मुंह फेर लिया. वह मुझे गाली देते हुए बोला, ‘तू खुद क्या दूध की धुली है?’

‘‘और उस ने मुझे पूरे बदन पर सारी रात दांतों से काट डाला. मैं बहुत रोई, चीखीचिल्लाई, पर कोई मेरी मदद को न आया.

‘‘अगले दिन आंटी ने चमड़ी उधेड़ दी और बोली, ‘हर ग्राहक को नाराज कर देती है. तेरे प्रेमी को ऐसा क्या दिखा था तुझ में क्या सुख देती तू उस को इसीलिए शायद यहां सड़ने को पटक गया तुझे.’

‘‘यह सब सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा. मैं ने सोच लिया कि अब काम करूंगी, तो ठीक से.’’

‘‘फिर तुम वाराणसी से मुंबई कैसे पहुंच गई मुन्नी?’’ निहाल ने पूछा.

‘‘वाराणसी छोटा सा शहर है. लोग पैसा कम देते हैं. ऊपर से कई तरह की छूत की बीमारियां हमें दे जाते हैं. जो पैसे मिलते, वे बीमारियों पर ही खर्च हो जाते.

‘‘एक बार मुंबई की कुछ लड़कियां हमें ट्रेनिंग देने आईं, तो मैं ने उन से कहा कि मुझे भी मुंबई ले चलिए. कम से कम बड़े शहर के लोग रकम तो अच्छी देंगे. मैं थोड़ी पढ़ीलिखी हूं और अंगरेजी भी बोलती हूं, इसलिए उन्हें मैं मुंबई के लायक लगी. सो, मुझे यहां भेज दिया. बस, तब से मैं ने इसे अपने कारोबार की तरह अपना लिया.

‘‘कई बार रेड पड़ी. थाने भी गई. शुरू में डरती थी, लेकिन अब मन को मजबूत कर लिया. अब कोई डर नहीं. जब तक जिंदगी है, इसी नरक में जीती रहूंगी. अब तो ग्राहक भी सोशल मीडिया और ह्वाट्सऐप पर मिल जाते हैं. कोडवर्ड होता है, जिस से हमारे दलाल बात करते हैं,’’ और वह ठहाका लगा कर हंस पड़ी. निहाल मेनका के चेहरे पर ढिठाई की हंसी पढ़ चुका था, फिर भी उस ने पूछा, ‘‘निकलना चाहती हो इस नरक से?’’

वह बोली, ‘‘कौन निकालेगा भैया… आप और उस के बाद कहां जाऊंगी? अपने मम्मीपापा के घर या आप के घर? कौन अपनाएगा मुझे?

‘‘निहाल भैया, अब तो मेरी अर्थी इन गंदी गलियों से ही उठेगी,’’ वह बोली और फिर जोर से ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘भैया, मेरी तो सारी बातें पूछ लीं, पर आप ने अपनी नहीं बताई कि आज आप यहां कैसे? आप की शादी हुई या नहीं? आप तो बहुत नेक इनसान हुआ करते थे, फिर यहां कैसे?’’ मेनका ने पूछा.

‘‘पूछो मत मुन्नी, मेरी पत्नी किसी और के साथ संबंध रखती है. मुझे तो जैसे नकार ही दिया है. 2 बच्चे भी हैं. मन तो उन के साथ लगा लेता हूं, पर तुम से कैसे कहूं? तन की भूख मिटाने यहां चला आता हूं कभीकभी.

‘‘मुझे नहीं मालूम था कि आज इस जगह तुम से मिलना होगा. सच पूछो तो समझ नहीं आ रहा है कि आज मैं तुम्हें गलत समझूं या सही.

‘‘तुम जैसी न जाने कितनी लड़कियां हम मर्दों को सुख देती हैं और हमारे घर टूटने से बचाती हैं. हम मर्द तो एक रात का सुख ले कर खुश हो जाते हैं. पर हमारे चलते मजबूरी की मारी लड़कियां अपनी जिंदगी को इस नरक में जीने के लिए मजबूर होती हैं और इन बंद गलियों में कीड़ेमकौड़े की जिंदगी जीती?हैं.

‘‘मुझे माफ करो मुन्नी, यह लो तुम्हारी एक रात की कीमत,’’ इतना कह कर निहाल ने मुन्नी की तरफ पैसे बढ़ा दिए.

मेनका ने कहा, ‘‘भैया, मेरा दर्द बांटने के लिए शुक्रिया, पर किसी को घर में न बताना कि मैं यहां हूं. मेरे मम्मीपापा और भाई मुझे गुमशुदा ही समझ कर जीते रहें तो अच्छा, वरना वे तो जीतेजी मर जाएंगे. और इस रात की कोई कीमत नहीं लूंगी आप से.

‘‘आज आप ने मेरा दर्द बांटा है, किसी दिन शायद मैं आप का दर्द बांट सकूं. अपनी बहन समझ कर आना चाहें तो फिर आ जाइए कभी.’’ सुबह होने को थी. निहाल चुपचाप वहां से उठ कर अपने घर आ गया.

Rakhsha Bandhan 2022: ज्योति- भाग 3

दूसरी नौकरी की तलाश में सुबह का निकला रोहन देरशाम ही घर लौट पाता था. उस का दिनभर दफ्तरों के चक्कर लगाने में गुजर जाता. मगर नई नौकरी मिलना आसान नहीं था. कहीं मनमुताबिक तनख्वाह नहीं मिल रही थी तो कहीं काम उस की योग्यता के मुताबिक नहीं था. जिंदगी की कड़वी हकीकत जेब में पड़ी डिगरियों को मुंह चिढ़ा रही थी.

सुमित और मनीष ने रोहन की मदद करने के लिए अपने स्तर पर कोशिश की, मगर बात कहीं बन नहीं पा रही थी.

एक के बाद एक इंटरव्यू देदे कर रोहन का सब्र जवाब देने लगा था. अपने भविष्य की चिंता में उस का शरीर सूख कर कांटा हो चला था. पास में जो कुछ जमा पूंजी थी वह भी कब तक टिकती, 2 महीने से तो वह अपने हिस्से का किराया भी नहीं दे पा रहा था.

सुमित और मनीष उस की स्थिति समझ कर उसे कुछ कहते नहीं थे. मगर यों भी कब तक चलता.

सुबह का भूखाप्यासा रोहन एक दिन शाम को जब घर आया तो सारा बदन तप रहा था. उस के होंठ सूख रहे थे. उसे महसूस हुआ मानो शरीर में जान ही नहीं बची. ज्योति उसे कई दिनों से इस हालत में देख रही थी. इस वक्त वह शाम के खाने की तैयारी में जुटी थी. रोहन सुधबुध भुला कर मय जूते के बिस्तर पर निढाल पड़ गया.

ज्योति ने पास जा कर उस का माथा छुआ. रोहन को बहुत तेज बुखार था. वह पानी ले कर आई. उस ने रोहन को जरा सहारा दे कर उठाया और पानी का गिलास उस के मुंह से लगाया. ‘‘क्या हाल बना लिया है भैया आप ने अपना?’’

‘‘ज्योति, फ्रिज में दवाइयां रखी हैं, जरा मुझे ला कर दे दो,’’ अस्फुट स्वर में रोहन ने कहा.

दवाई खा कर रोहन फिर से लेट गया. सुबह से पेट में कुछ गया नहीं था, उसे उबकाई सी महसूस हुई. ‘‘रोहन भैया, पहले कुछ खा लो, फिर सो जाना,’’ हाथ में एक तश्तरी लिए ज्योति उस के पास आई.

रोहन को तकिए के सहारे बिठा कर ज्योति ने उसे चम्मच से खिचड़ी खिलाई बिलकुल किसी मां की तरह जैसे अपने बच्चों को खिलाती है.

रोहन को अपनी मां की याद आ गई. आज कई दिनों बाद उसी प्यार से किसी ने उसे खिलाया था. दूसरे दिन जब वह सो कर उठा तो उस की तबीयत में सुधार था. बुखार अब उतर चुका था, लेकिन कमजोरी की वजह से उसे चलनेफिरने में दिक्कत हो रही थी. सुमित और मनीष ने उसे कुछ दिन आराम करने की सलाह दी. साथ ही, हौसला भी बंधाया कि वह अकेला नहीं है.

ज्योति उस के लिए कभी दलिया तो कभी खिचड़ी पकाती और बड़े मनुहार से खिलाती. रोहन उसे अब दीदी बुलाने लगा था.

‘‘दीदी, आप को देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं फिलहाल, मगर वादा करता हूं नौकरी लगते ही आप का सारा पैसा चुका दूंगा,’’ रोहन ने ज्योति से कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो रोहन भैया. आप बस, जल्दी से ठीक हो जाओ. मैं आप से पैसे नहीं लूंगी.’’

‘‘लेकिन, मुझे इस तरह मुफ्त का खाने में शर्म आती है,’’ रोहन उदास था.

‘‘भैया, मेरी एक बेटी है 10 साल की, स्कूल जाती है. मेरा सपना है कि मेरी बेटी पढ़लिख कर कुछ बने. पर मेरे पास इतना वक्त नहीं कि उसे घर पर पढ़ा सकूं और उसे ट्यूशन भेजने की मेरी हैसियत नहीं है. घर का किराया, मुन्नी के स्कूल की फीस और राशनपानी के बाद बचता ही क्या है. अगर आप मेरी बेटी को ट्यूशन पढ़ा देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी. आप से मैं खाना बनाने के पैसे नहीं लूंगी, समझ लूंगी वही मेरी पगार है.’’

बात तो ठीक थी. रोहन को भला क्या परेशानी होती. रोज शाम मुन्नी अब अपनी मां के साथ आने लगी. रोहन उसे दिल लगा कर पढ़ाता.

ज्योति कई घरों में काम करती थी. उस ने अपनी जानपहचान के एक बड़े साहब को रोहन का बायोडाटा दिया. रोहन को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. मेहनती और योग्य तो वह था ही, इस बार समय ने भी उस का साथ दिया और उस की नौकरी पक्की हो गई.

सुमित और मनीष भी खुश थे. रोहन सब से ज्यादा एहसानमंद ज्योति का था. जिस निस्वार्थ भाव से ज्योति ने उस की मदद की थी, रोहन के दिल में ज्योति का स्थान अब किसी सगी बहन से कम नहीं था. ज्योति भी रोहन की कामयाबी से खुश थी, साथ ही, उस की बेटी की पढ़ाई को ले कर चिंता भी हट चुकी थी. घर में जिस तरह बड़ी बहन का सम्मान होता है, कुछ ऐसा ही अब ज्योति का सुमित और उस के दोस्तों के घर में था.

ज्योति की उपस्थिति में ही बहुत बार नेहा मनीष से मिलने घर आती थी. शुरूशुरू में मनीष को कुछ झिझक हुई, मगर ज्योति अपने काम से मतलब रखती. वह दूसरी कामवाली बाइयों की तरह इन बातों को चुगली का साधन नहीं बनाती थी.

मनीष और नेहा की एक दिन किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई. ज्योति उस वक्त रसोई में अपना काम कर रही थी. दोनों की बातें उसे साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

मनीष के व्यवहार से आहत, रोती हुई नेहा वहां से चली गई. उस के जाने के बाद मनीष भी गुमसुम बैठ गया.

ज्योति आमतौर पर ऐसे मामले में नहीं पड़ती थी. वह अपने काम से काम रखती थी, मगर नेहा और मनीष को इस तरह लड़ते देख कर उस से रहा नहीं गया. उस ने मनीष से पूछा तो मनीष ने बताया कि कुछ महीनों से शादी की बात को ले कर नेहा के साथ उस की खटपट चल रही है.

‘‘लेकिन भैया, इस में गलत क्या है? कभी न कभी तो आप नेहा दीदी से शादी करेंगे ही.’’

‘‘यह शादी होनी बहुत मुश्किल है ज्योति. तुम नहीं समझोगी, मेरे घर वाले जातपांत पर बहुत यकीन करते हैं और नेहा हमारी जाति की नहीं है.’’

‘‘वैसे तो मुझे आप के मामले में बोलने का कोई हक नहीं है मनीष भैया, मगर एक बात कहना चाहती हूं.’’

मनीष ने प्रश्नात्मक ढंग से उस की तरफ देखा.

‘‘मेरी बात का बुरा मत मानिए मनीष भैया. नेहा दीदी को तो आप बहुत पहले से जानते हैं, मगर जातपांत का खयाल आप को अब आ रहा है. मैं भी एक औरत हूं. मैं समझ सकती हूं कि नेहा दीदी को कैसा लग रहा होगा जब आप ने उन्हें शादी के लिए मना किया होगा. इतना आसान नहीं होता किसी भी लड़की के लिए इतने लंबे अरसे बाद अचानक संबंध तोड़ लेना. यह समाज सिर्फ लड़की पर ही उंगली उठाता है. आप दोनों के रिश्ते की बात जान कर क्या भविष्य में उन की शादी में अड़चन नहीं आएगी? क्या नेहा दीदी और आप एकदूसरे को भूल पाएंगे? जरा इन बातों को सोच कर देखिए.

Rakhsha Bandhan 2022: ज्योति- भाग 1

‘‘हां मां, खाना खा लिया था औफिस की कैंटीन में. तुम बेकार ही इतनी चिंता करती हो मेरी. मैं अपना खयाल रखता हूं,’’ एक हाथ से औफिस की मोटीमोटी फाइलें संभालते हुए और दूसरे हाथ में मोबाइल कान से लगाए सुमित मां को समझाने की कोशिश में जुटा हुआ था.

‘‘देख, झूठ मत बोल मुझ से. कितना दुबला गया है तू. तेरी फोटो दिखाती रहती है छुटकी फेसबुक पर. अरे, इतना भी क्या काम होता है कि खानेपीने की सुध नहीं रहती तुझे.’’ घर से दूर रह रहे बेटे के लिए मां का चिंतित होना स्वाभाविक ही था, ‘‘देख, मेरी बात मान, छुटकी को बुला ले अपने पास, बहन के आने से तेरे खानेपीने की सब चिंता मिट जाएगी. वैसे भी 12वीं पास कर लेगी इस साल, तो वहीं किसी कालेज में दाखिला मिल जाएगा,’’ मां उत्साहित होते हुए बोलीं.

जिस बात से सुमित को सब से ज्यादा कोफ्त होती थी वह यही बात थी. पता नहीं मां क्यों नहीं समझतीं कि छुटकी के आने से उस की चिंताएं मिटेंगी नहीं, उलटे, बहन के आने से सुमित के ऊपर जिम्मेदारी का एक और बोझ आ पड़ेगा.

अभी तो वह परिवार से दूर अपने दोस्तों के साथ आजाद पंछी की तरह बेफिक्र जिंदगी का आनंद ले रहा था. उस के औफिस में ही काम करने वाले रोहन और मनीष के साथ मिल कर उस ने एक किराए पर फ्लैट ले लिया था. महीने का सारा खर्च तीनों तयशुदा हिसाब से बांट लेते थे. अविवाहित लड़कों को घरगृहस्थी का कोई ज्ञान तो था नहीं, मनमौजी में दिन गुजर रहे थे. जो जी में आता करते, किसी तरह की बंदिश, कोई रोकटोक नहीं थी उन की जिंदगी में. कपड़े धुले तो धुले, वरना यों ही पहन लिए. हफ्ते में एक बार मन हुआ तो घर की सफाई हो जाती थी, वरना वह भी नहीं.

सुमित से जब भी उस की मां छोटी बहन को साथ रखने की बात कहती, वह घोड़े सा बिदक जाता. छुटकी रहने आएगी तो सुमित को दोस्तों से अलग कमरा ले कर रहना पड़ेगा और ऊपर से उस की आजादी में खलल भी पड़ेगा. यही वजह थी कि वह कोई न कोई बहाना बना कर मां की बात टाल जाता.

‘‘मां, अभी बहुत काम है औफिस में, मैं बाद में फोन करता हूं,’’ कह कर सुमित ने फोन रख दिया.

वह सोच रहा था, कहीं मां सचमुच छुटकी को न भेज दें.

तीनों दोस्तों को यों तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन खाना पकाने के मामले में तीनों ही अनाड़ी थे, ब्रैड, अंडा, दूध पर गुजारा करने वाले. रोजरोज एक ही तरह का खाना खा कर सुमित उकता गया था. बाहर का खाना अकसर उस का हाजमा खराब कर देता था. परिवार से दूर रहने का असर सचमुच उस की सेहत पर पड़ रहा था. मां का इस तरह चिंता करना वाजिब भी था. इस समस्या का कोई स्थायी हल निकालना पड़ेगा, वह मन ही मन सोचने लगा. फिलहाल तो 4 बजे उस की एक मीटिंग थी. खाने की चिंता से ध्यान हटा, वह एक बार फिर से फाइलों के ढेर में गुम हो गया.

सुमित के अलावा रोहन और मनीष की भी यही समस्या थी. उन के घर वाले भी अपने लाड़लों की सेहत की फिक्र में घुले जाते थे.

शाम को थकहार कर सुमित जब घर आया तो बड़ी देर तक घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला. एक तो दिनभर औफिस में माथापच्ची करने के बाद वह बुरी तरह थक गया था, उस पर घर की चाबी ले जाना आज वह भूल गया था. फ्लैट की एकएक चाबी तीनों दोस्तों के पास रहती थी, जिस से किसी को असुविधा न हो.

थकान से बुरी तरह झल्लाए सुमित ने एक बार फिर बड़ी जोर से घंटी पर हाथ दे मारा.

थोड़ी ही देर में इंचभर दरवाजे की आड़ से मनीष का चेहरा नजर आया. सुमित को देख कर उस ने हड़बड़ा कर दरवाजा पूरा खोल दिया.

‘‘क्यों? इतना टाइम लगता है क्या? बहरा हो गया था क्या जो घंटी सुनाई नहीं दी?’’ अंदर घुसते ही सुमित ने उसे आड़ेहाथों लिया.

गले में बंधी नैकटाई को ढीला कर सुमित बाथरूम की तरफ जा ही रहा था कि मनीष ने उसे टोक दिया, ‘‘यार, अभी रुक जा कुछ देर.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ सुमित ने पूछा, फिर मनीष को बगले झांकते देख कर वह सबकुछ समझ गया, ‘‘कोई है क्या, वहां?’’

‘‘हां यार, वह नेहा आई है. वही है बाथरूम में.’’

‘अरे, तो ऐसा बोल न,’’ सुमित ने फ्रिज खोल कर पानी की ठंडी बोतल निकाल ली.

मनीष की प्रेमिका नेहा नौकरी करती थी और एक वुमेन होस्टल में रह रही थी. जब भी सुमित और रोहन घर पर नहीं होते, मनीष नेहा को मिलने के लिए बुला लेता.

सुमित को इस बात से कोई एतराज नहीं था, मगर रोहन को यह बात पसंद नहीं आती थी. उस का मानना था कि मालिकमकान कभी भी इस बात को ले कर उन्हें घर खाली करने को कह सकता है.

जब कभी नेहा को ले कर मनीष और रोहन के बीच में तकरार होती, सुमित बीचबचाव से मामला शांत करवा लेता.

‘‘यार, बड़ी भूख लगी है, खाने को कुछ है क्या?’’ सुमित ने फ्रिज में झांका.

‘‘देख लो, सुबह की ब्रैड पड़ी होगी,’’ नेहा के जाने के बाद मनीष आराम से सोफे पर पसरा टीवी देख रहा था.

सुमित को जोरों की भूख लगी थी.इस वक्त उसे मां के हाथ का बना गरमागरम खाना याद आने लगा. वह जब भी कालेज से भूखाप्यासा घर आता था, मां उस की पसंद का खाना बना कर बड़े लाड़ से उसे खिलाती थीं. ‘काश, मां यहां होतीं,’ मन ही मन वह सोचने लगा.

‘‘बहुत हुआ, अब कुछ सोचना पड़ेगा. ऐसे काम नहीं चलने वाला,’’ सुमित ने कहा तो मनीष बोला, ‘‘मतलब?’’

‘‘यार, खानेपीने की दिक्कत हो रही है, मैं ने सोच लिया है किसी खाना बनाने वाले को रखते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘और उस को पगार भी तो देनी पड़ेगी?’’ मनीष ने कहा.

‘‘हां, तो दे देंगे न, आखिर कमा किसलिए रहे हैं.’’

‘‘लेकिन, हमें मिलेगा कहां कोई खाना बनाने वाला,’’ मनीष ने कहा.

‘‘मैं पता लगाता हूं,’’ सुमित ने जवाब दिया.

दूसरे दिन सुबह जब सुमित काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा, किसी ने दरवाजा खटखटाया. करीब 30-32 साल की मझोले कद की एक औरत दरवाजे पर खड़ी थी.

सुमित के कुछ पूछने से पहले ही वह औरत बोल पड़ी, ‘‘मुझे चौकीदार ने भेजा है, खाना बनाने का काम करती हूं.’’

‘‘ओ हां, मैं ने ही चौकीदार से बोला था.’’

‘‘अंदर आ जाइए,’’ सुमित उसे रास्ता देते हुए बोला और कमरे में रखी कुरसी की तरफ बैठने का इशारा किया.

कुछ झिझकते हुए वह औरत अंदर आई. गेहुंए रंग की गठीले बदन वाली वह औरत नजरें चारों तरफ घुमा कर उस अस्तव्यस्त कमरे का बारीकी से मुआयना करने लगी. बेतरतीब पड़ी बिस्तर की चादर, कुरसी की पीठ पर लटका गीला तौलिया, फर्श पर उलटीसीधी पड़ी चप्पलें.

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