Long Hindi Story: सौदा – आखिरी भाग

Long Hindi Story, लेखक – हरे राम मिश्र

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : विधवा दुलारी की बेटी रुपाली घर से क्या गई, वापस नहीं लौटी. दुलारी नेता मनोहर लाल के दरवाजे गुहार लगाने पहुंची. उन्होंने भरोसा दिलाया और कहा कि थाने में रिपोर्ट लिखवा दो. वहां मुंशी ने खर्चापानी मांगा और दुलारी की चांदी की अंगूठी रख ली. इस के बाद दुलारी ऐयाश किस्म के सरपंच से मिलने गई. अब पढि़ए आगे…

हालांकि, सरपंच से दुलारी की मुलाकात नहीं हुई और वह फिर से घर लौट आई. काफी शाम हो चुकी थी. उस ने पतीले में थोड़ा चावल डाला और नमकप्याज के साथ पका कर किसी तरह उसे हलक से नीचे उतारा. दालसब्जी कुछ नहीं थी.

दुलारी की रात किसी तरह कटी. पूरी रात वह जागती रही. लेकिन, बिटिया का अभी कोई सुराग नहीं मिला था.

दूसरे दिन अलसुबह ही दुलारी फिर से मनोहर लाल के घर पहुंच गई थी. इस बार वह अपने साथ गांव के एक लड़के को ले कर गई थी. हालांकि, बदनामी के डर से उस ने रास्ते में बिटिया के गायब होने के बारे में कोई चर्चा नहीं की, लेकिन गांव में यह बात रायते की तरह फैल चुकी थी, क्योंकि थाने से सरपंच को फोन पर मामले की जानकारी दी गई थी, ताकि लापता रूपा को खोजने में मदद मिल सके.

मनोहर लाल के यहां दुलारी की जाति के ही एक और आदमी, जो बगल के गांव का छुटभैया नेता था, से उस की मुलाकात हुई. वह मनोहर लाल से अपने गांव के वोट उन के लिए फिक्स करवाने के एवज में सौदा करने आया था और मछली बाजार के ग्राहक की तरह उन से ‘मोलतोल’ कर रहा था.

उस नेता के बारे में दुलारी अच्छे से जानती थी कि उस का धंधापानी क्या है और कैसे वह नकली दारू का सप्लायर है, क्योंकि उसी की दी हुई दारू पीने से उस के गांव में कुछ लोगों की मौत हुई थी.

‘‘क्या हुआ…’’ देखते ही मनोहर लाल ने पूछा, ‘‘मिली आप की बेटी…’’

‘‘नहीं मिली…’’ इतना कह कर दुलारी रोने लगी.

‘‘थाने गई थीं?’’ पूछने पर दुलारी ने हां में सिर हिलाया.

फिर मनोहर लाल ने अपने एक शागिर्द से थानेदार को फोन करवाया और दुलारी को बताया गया कि बेटी को पुलिस खोज रही है. मिलने पर सूचित करेगी. परेशान नहीं हो.

थकहार कर दुलारी फिर घर लौट आई. अब तक दोपहर का सूरज चढ़ आया था.

2 दिन बीत गए. रोतेरोते दुलारी के आंसू खत्म हो गए. उस ने इन दिनों ठीक से खानापीना भी नहीं किया था और भागदौड़ में उसे तेज बुखार अलग से हो गया.

तीसरे दिन, दोपहर का समय था. दुलारी घर के भीतर अपनी खटिया पर चिंतित बैठी थी. तभी गांव के चौकीदार लुल्लन ने आ कर दुलारी को बताया कि उस की बेटी पड़ोस के जिले के एक अस्पताल में भरती है. पुलिस बयान लेने वहां जा रही है. तुम भी अस्पताल पहुंचो. दारोगाजी ने बोला है.

चौकीदार ने आगे कहा कि तुम्हारी बेटी नशे की हालत में तहसील के बसस्टैंड पर लावारिस मिली थी, जिसे कुछ लोगों ने स्थानीय चौकी के सुपुर्द कर दिया था. पुलिस वालों ने उसे अस्पताल में भरती करवा दिया है. जाओ मिल लो.

दुलारी की आंखों में चमक आ गई. उस ने किसी तरह गांव के एक आदमी से कुछ पैसे उधार लिए और अपने साथ चलने की चिरौरी की. वह अस्पताल पहुंची, तो बेटी उसे अकेले एक बिस्तर पर पड़ी मिली, जिसे कुछ पुलिस वाले और डाक्टर घेरे हुए थे और कुछ लिखापढ़ी कर रहे थे. काफी देर बाद दुलारी को अपनी बेटी रूपा से बात करने का मौका मिल पाया.

दुलारी ने देखते ही अपनी बेटी को प्यार से भींच लिया, माथा चूमा, गले लगाया. उस का हीरा उसे मिल गया था. उस ने बेतहाशा उसे चूमा, दुलारा और प्यार किया. बेटी भी मां को देख कर रोने लगी. आखिर वही तो उस का सबकुछ थी.

रूपा ने देर शाम को अपनी मां से अपने साथ रेप और मारपीट की दर्दनाक घटना बताई, जिसे गांव के बगल के यादव टोला के लड़कों ने अंजाम दिया था. दोनों लड़के गांव की ताकतवर और बहुसंख्यक पिछड़ी बिरादरी से थे, लेकिन उन की जातियां अलगअलग थीं.

खैर, पुलिस ने रूपा का बयान दर्ज किया और नियमानुसार मैडिकल भी हुआ. एफआईआर भी दर्ज हुई.
दुलारी अगले 2 दिन रूपा के साथ अस्पताल और थानेअदालत के चक्कर लगाती रही.

चूंकि मनोहर लाल इस मामले में थोड़ा लगे हुए थे, इसलिए पुलिस ने जांच शुरू की. पहले आरोपी सुमेश के नाई समुदाय के लोग सामने आ गए और आरोपी के घर वाले रूपा को ही सैक्स की भूखी लड़की साबित करने लगे.

ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह आरोपी लड़का टोले के पूर्व पंचायत सदस्य का बेटा और वर्तमान विधायक ‘मुंशीजी’ का खास आदमी था.

दूसरा आरोपी युवक क्षत्रिय समुदाय का रितेश था, जिस के यहां यह सब करना ‘मर्दानगी’ की पहचान थी. इस समुदाय में अपराध पर बहस न हो कर कौन उस लड़की की मदद कर रहा है, उस पर चर्चा हो रही थी.

सब जल्द ही पता चल गया. नाम मनोहर लाल का आया. बात मनोहर लाल तक, जो कुछ समय पहले ही दिल्ली से एक बिजनैस डील कर के लौटे थे, इस धमकी के साथ पहुंचाई गई कि क्षत्रियों की इज्जत से एक ‘धंधे वाली’ की आड़ में मत खेलो. निबटना है तो निबट लो. देखते हैं कि अगला चुनाव कैसे जीतते हो.

मनोहर लाल ने इस मामले को ध्यान से सुना. फिर कुछ दिन वे चुप रहे. उन्हें लगा कि मामला खत्म हो जाएगा. लेकिन, इधर नाई समुदाय जहां लड़के के पक्ष में जुलूस निकाल रहा था, वहीं क्षत्रिय समुदाय मनोहर लाल पर मामले को खत्म करवाने वरना सबक सीखने के लिए तैयार रहने का अल्टीमेटम दे कर पंचायत कर रहा था.

इधर दुलारी की जाति और गांव के कई छुटभैया लोग उस के पास सम?ाते के लिए दबाव बनाने के लिए रोज उस के घर पहुंच रहे थे. पुलिस आरोपियों से पैसा खाने के लिए दबाव बना रही थी. हालांकि, थानेदार की भी आरोपियों को पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह दबाव बना कर सिर्फ वसूली कर रहा था.

परेशान थी तो बस दुलारी. उस के गांव और जाति के ताकतवर लोग भी उस के साथ खड़े होने को तैयार नहीं थे. जो भी उस से मिलता, एक ही ‘डील’ करने की फिराक में रहता. जातबिरादरी के किसी नेता, कार्यकर्ता की कोई दिलचस्पी नहीं थी कि पीडि़त परिवार को ‘इंसाफ’ मिले.

इधर, आरोपी लड़कों के परिवार वालों के साथ यह मामला दिन ब दिन जातबिरादरी का सवाल बनता जा रहा था. इस मामले को सत्ताधारी विधायकों ने भी अपने हित में मोड़ना शुरू कर दिया. नया तर्क गढ़ा गया कि मनोहर लाल को वोट नहीं देने के कारण क्षत्रिय और नाई बिरादरी को बदनाम करने का खेल खेला जा रहा है. एक दलित लौंडिया कैसे रेप का आरोप लगा सकती है…? उस की हैसियत क्या है…?

इसी बात पर आरोपियों ने जात की 2 साझा पंचायत भी करवाईं, जिन में कई स्थानीय नेता शामिल हुए.

इस से पुलिस के साथसाथ मनोहर लाल भी बैकफुट पर आ गए. वे मामले में शामिल नहीं होने की कसमें खाने लगे, क्योंकि उन्हें इस से दलित बिरादरी के वोट खिसकने का कोई डर नहीं था. डर तो बाकी जातियों के बिदकने का था. इन सब से रूपा और दुलारी तो इतना ज्यादा घबरा गईं कि उन्हें अपने ही घर में अब बहुत डर लगने लगा.

इधर, खुलेआम माइक लगा कर मनोहर लाल को ललकारा जाने लगा. मनोहर लाल को बड़े चुनावी नुकसान का डर लग गया, क्योंकि विधानसभा की 2 ताकतवर जातियों की गोलबंदी से उन का चुनाव हारना तय था. उन्हें कुछ लोगों ने समझाया कि एक अदद ‘लौंडिया’ के लिए अपनी सियासी पारी को कमजोर मत करो. केस में समझौता करवाइए और मामला निबटा दीजिए.

रूपा की जाति और गांव के कई छुटभैए नेता भी यही चाहते थे, ताकि मनोहर लाल को दोनों जातियों का सपोर्ट मिल सके और वे चुनाव जीत सकें.

अब मनोहर लाल को लगा कि चुप्पी से काम नहीं चलेगा, क्योंकि मामला बिगड़ चुका है. वे अब अपने ‘सियासी’ नुकसान के डर से इस मामले को मैनेज कराने में लग गए. उन्होंने अपने शार्गिंदों से लड़की को सैक्स की भूखी होने का प्रचार भी करवाया. उस की मां का भी दामन दागदार बताने की पूरी कोशिश करवाई गई, ताकि यह लगे कि उन्हें इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं है. इस तरह पूरा एक महीना निकल गया.

लेकिन, इन सब से बहुत दूर विधवा दुलारी को बस इसी बात का संतोष था कि उस की बेटी उस के पास आ गई है. एक गरीब को और क्या चाहिए. पुलिस, थाना, वकील, कचहरी उस के बस का नहीं है. अब उसे और किसी चीज में कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि वह रोज थानेकचहरी और वकील के पास जाने का खर्च ही नहीं उठा सकती थी. उसे तकरीबन रोज थाने बुलाया जाता और दिनभर बयान लेने के नाम पर बैठाए रखा जाता.

इस मामले का विवेचक भी दलित जाति का था, जिस के लिए एकमात्र मकसद पैसा कमाना था, क्योंकि वह एक खेत खरीदने के लिए 30 लाख की रकम किसी भी कीमत पर जल्द से जल्द इकट्ठा करना चाहता था. इस केस में आरोपी, पुलिस, जाति के छोटे नेता, कार्यकर्ता सब अपने हिसाब से फायदा लेने के लिए खेल रहे थे. लेकिन, दुलारी और रूपा इन सब से बेपरवाह और अनजान थीं. वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को फिर से पटरी पर लाना चाहती थीं, जो रूपा के साथ हुई घटना के बाद उतर गई थी.

दुलारी को अपनी बेटी मिल गई थी, बाकी उसे किसी ‘इज्जत’ की कोई फिक्र नहीं थी. भूखे, नंगे और गरीब लोग इंसाफ के बारे में नहीं सोचते.

तकरीबन एक हफ्ता और बीता होगा. एक दिन सुबह अचानक दुलारी को मनोहर लाल के एक शागिर्द ने हवेली पर पहुंचने का संदेश दिया.

दुलारी हवेली पर गई भी. बेटी के भविष्य को ले कर लंबी भूमिका बनाने के बाद, जिस में उसे रूपा के बदनाम होने से ले कर, शादी, सुरक्षा का डर सबकुछ दिखाया गया, धमकी वाली भाषा में भी सम?ाया गया. बोला गया कि समझौता कर लो.

डरीसहमी दुलारी से कुछ कागजों पर अंगूठा लगवाया गया, जो बाद में अदालत में समझौते के प्रपत्र के बतौर पुलिस द्वारा जमा किया गया. हवेली से चलते वक्त उसे एक लिफाफा दिया गया, जिसे उस ने घर में खोल कर देखा. उस मे 500 के 10 नोट थे. उस के इंसाफ का ‘सौदा’ हो चुका था, जिस में, जाति के नेता, पुलिस, सरपंच सब शामिल थे.

लेकिन, इस सौदे में शामिल नहीं थी तो सिर्फ दुलारी की ‘इच्छा’, जिसे पैसे और ताकत के दम पर मनोहर लाल ने अपनी जाति का होने के बावजूद रौंदवा दिया था. हालांकि, इस के बाद भी मनोहर लाल इस बार फिर विधायक नहीं बन पाए, क्योंकि पिछड़ों ने दलितों को इसलिए वोट नहीं दिए, ताकि वे सियासीतौर पर मजबूत न हों. शायद एक विधवा की आह ने उन के सियासी कैरियर को भस्म कर दिया था. Long Hindi Story

Family Story In Hindi: समाज से हारी विधवा

Family Story In Hindi: ‘भारत माता की जय’, ‘शहीद अमर जिंदाबाद’… कुछ ऐसे ही देशभक्ति के नारों से आकाश गूंज रहा था और लोगों की जोश भरी आवाज से दीवारें तक थर्रा रही थीं, पर तिरंगे में लिपटा हुआ अमर का शरीर तो बेजान पड़ा हुआ था. दुश्मन की एक गोली ने उस के शरीर से प्राण खींच लिए थे.

अमर की बटालियन के साथी बताते हैं कि वह अपने मोरचे पर बहुत बहादुरी से लड़ा था और मरने से पहले उस ने पाकिस्तान के कई सैनिक मार गिराए थे.

पर वही वीर अमर अब बेजान था. आसपड़ोस और सगेसंबंधियों के रोनेधोने के बीच पूरे राजकीय सम्मान
के साथ उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सरकार के कई नेता भी अमर के घर आए और मीडिया के कैमरे पर आ कर दुश्मन देश से अमर की मौत का बदला लेने की बात कह कर चले गए.

अगले दिन सरकार ने अमर के कसबे के एक चौराहे का नाम बदल कर ‘शहीद अमर चौक’ रखने का फरमान जारी कर दिया.

इस बीच सरकार की तरफ से शहीद अमर के लिए 10 लाख रुपए का मुआवजा घोषित किया गया, तो अमर के मांबाप को अपने बेटे पर और भी नाज हो उठा.

पर इन सब के बीच अमर की 25 साल की विधवा निधि भी थी, जिसे न तो सरकारी अनुदान से कुछ लेनादेना था और न तो देशभक्ति के नारों से. वह तो भरी जवानी में ही अपना जीवनसाथी खो चुकी थी.

अमर ने न जाने कितने वादे किए थे निधि से. कितनी जगह दोनों को साथ घूमने जाना था, पर अफसोस कि अमर सिंह की मौत के बाद सबकुछ खत्म हो गया था.

रात में निधि जब बिस्तर पर लेटती, तो उसे अपने बगल में अमर के न होने का दुख सालता था. निधि के तनमन को एक साथी की जरूरत तो थी ही और अब उस के सामने पहाड़ सी जिंदगी भी पड़ी थी. भरी जवानी में विधवा हो जाने का इतना भारी दुख सहना भी उस के लिए मुश्किल था.

हालांकि, निधि मानसिक रूप से काफी मजबूत थी, फिर भी साथी के असमय चले जाने का दुख काफी गहरा होता है और इस दर्द से निकलने में निधि को पूरा एक साल लग गया था.

निधि भी जानती थी कि दुख को ओढ़ कर बैठने से दुख चार गुना बढ़ जाता है. दुख को कम करने के लिए उसे भूलना ही बेहतर होता है.

एक दिन निधि ने अपना मोबाइल उठाया, तो देखा कि उस की बैटरी सिर्फ एक फीसदी रह गई थी. उस ने अनमने ढंग से उसे चार्जिंग पर लगा दिया और बुदबुदा उठी, ‘‘इस मोबाइल की बैटरी की तरह मेरी जिंदगी भी क्यों खत्म नहीं हो जाती?’’

निधि की इस बुदबुदाहट में घोर पीड़ा थी, पर वह अब तक समझ चुकी थी कि उसे आगे की जिंदगी इसी पीड़ा के साथ काटनी होगी.

निधि ने गमले में लगे सूखे पौधों को पानी दिया. किचन की सिंक साफ की और घर की बाकी साफसफाई करने की शुरुआत कर दी.

निधि ने ध्यान दिया कि उस के सासससुर अब भी अपने बेटे के गम को पाले हुए हैं. बेटे की मौत का गम तो असहनीय तो होता है, पर जब बेटे की शहादत का फायदा अपने अहंकार और रुतबे को पोषित करने के लिए होने लगे, तब यह बात उचित नहीं लगती.

महल्ले के लोग अब भी निधि के सासससुर से अमर और उस की शहादत की बातें करते रहते और उस के सासससुर मुग्ध भाव से सुनते. शायद वे एक वीर बेटे के मांबाप होने पर गर्व महसूस करते थे, पर ऐसी बातों से निधि को सिर्फ दुख ही पहुंचता था.

निधि ने घर पर ध्यान दिया तो पाया कि बहुत सारा सामान खत्म हो चुका था. अब तो उसे खुद ही बाजार जाना होगा.

आईने के सामने खड़े हो कर निधि ने अपने चेहरे को देखा. उस की आंखें सूजी हुई थीं और चेहरा भी उतरा हुआ लग रहा था.

निधि ने बेपरवाही से बालों का जूड़ा बनाया और अपना मोबाइल चार्जिंग पौइंट से अलग किया. मोबाइल 82 फीसदी चार्ज हो चुका था.

अपने हाथों में मोबाइल की गरमी को महसूस करते हुए निधि ने थैला उठाया और अपनी सास से बाजार जाने की बात कह कर बाहर निकलने लगी.

निधि ने महसूस किया कि उस की सास नहीं चाहती हैं कि वह बाजार खुद जाए और बाहर लोगों से बातचीत करे. और तो और एक बार जब निधि ने गुलाबी रंग का सूट पहन लिया था, तब उस की सास ने कितना डांटा था उसे और अहसास कराया था कि विधवा को सिर्फ सफेद कपड़े ही पहनने चाहिए.

निधि ने अपने मोबाइल पर आए हुए ह्वाट्सएप मैसेज चैक करने शुरू किए.

वीरेश के कई मैसेज पड़े हुए थे और उस की कई काल्स भी आई थीं, जिन का जवाब वह नहीं दे पाई थी.

घर के माहौल में निधि भला वीरेश से बात भी क्या करती? वैसे भी अपने और वीरेश के बीच के प्यार को निधि ने दुनियाभर से छिपा रखा था. लोग क्या कहेंगे? समाज क्या सोचेगा? एक शादीशुदा औरत का एक गैरमर्द के साथ प्रेम संबंध समाज के लोगों को बिलकुल मंजूर नहीं और फिर निधि सवर्ण परिवार थी, जबकि वीरेश दलित जाति से था. पर प्यार तो प्यार है, वह न जाति देखता है और न ही शादी का बंधन.

अभी निधि अजीब सी उलझन में ही थी कि उस का मोबाइल बज उठा. यह वीरेश का ही फोन था. उस ने फोन को रिसीव करने की बजाय हड़बड़ाहट में काट दिया.

थोड़ी देर बाद फिर से वीरेश का फोन आया. इस बार निधि ने फोन रिसीव कर लिया, ‘‘देखो वीरेश, मैं गहरे दुख से उबरने की कोशिश कर रही हूं. तुम से शादी से पहले पहले प्यार था, पर अब मैं एक विधवा हूं और तुम से कोई मेलजोल ठीक नहीं होगा…’’

निधि एक सांस में बहुतकुछ कह देना चाहती थी, पर वीरेश ने उसे रोकते हुए कहा, ‘तो क्या तुम्हारे विधवा हो जाने से मेरे लिए प्यार खत्म हो गया है?’

वीरेश के इस सवाल का निधि को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था. वह खामोश थी. सच तो यह था कि अमर के जाने के बाद वह वीरेश के कंधे पर सिर रख कर रो लेना चाहती थी, उस से लिपट कर अपना दुख हलका कर लेना चाहती थी, पर समाज उसे इस की इजाजत नहीं देता.

कुछ सोचते हुए एक बार फिर से निधि ने फोन काट दिया था.

निधि की शादी उस की मरजी के बिना ही तय कर दी गई थी और जब निधि ने दबे शब्दों में मां से बताया था कि वह एक लड़के वीरेश से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है, तो मां ने लड़के के बारे में, उस के कामधंधे, उस की जाति के बारे में पूछा और यह जान कर वे बुरी तरह बिफर गईं कि लड़का एक दलित जाति का है.

मां ने आंखें तरेर कर निधि को फटकार लगाई थी और उसे चेताया था कि वह चुपचाप अपने प्यार का गला घोंट दे. उस के पिता अपनी ऊंची जाति के अहंकार के आगे किसी दलित लड़के को पसंद नहीं करेंगे.

निधि अपने मां के अनकहे शब्दों को भी अच्छी तरह समझ गई थी और उस ने अपने अरमानों का गला घोंटते हुए शादी के लिए हां कह दिया था.

निधि ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने होने वाले पति अमर सिंह से कोई धोखा नहीं करेगी, इसलिए अपने शादी से पहले के प्रेम संबंध और एक दलित प्रेमी के बारे में सबकुछ बता दिया था.

अमर ने सबकुछ बहुत शांति से सुन लिया था. उस के चेहरे का रंग भी फक्क पड़ चुका था, पर उस ने अपनेआप को संभाला और एक लंबी सांस छोड़ते हुए निधि की तारीफ की, ‘‘अच्छा किया जो तुम ने मुझे यह राज बताया, इसीलिए तो मैं यह बात जान सका. कहीं तुम यह बात मुझे न बताती तो भला मैं कैसे जानता?’’

इस के बाद अमर ने निधि से कहा कि उसे निधि के पुराने समय से कोई लेनादेना नहीं है. अब निधि और अमर पतिपत्नी हैं, वह इसी बात का ध्यान रखे और कोई गलत कदम न उठाए. तभी से निधि ने वीरेश से किनारा कर लिया था.

निधि ने एक मैसेज लिख कर वीरेश से माफी मांग ली और उसे हर जगह से ब्लौक भी कर दिया था. पर पहला प्यार किसी को भूले नहीं भूलता. निधि भी वीरेश को भूल नहीं पाई. उस के मन में वीरेश के लिए कोई कोना तो था ही और इस कोने में उस दिन एक मधुर संगीत बज उठा जब एक नए नंबर से फोन आया, जिसे रिसीव करते ही निधि जान गई कि वीरेश ने फोन किया है.

‘‘तुम्हें तो मैं ने ब्लौक कर दिया था वीरेश…’’

‘निधि, मैं तुम से यह कहना चाहता हूं कि एक प्रेमी की तरह नहीं, पर हम एक अच्छे दोस्त की तरह तो रह ही सकते हैं न.’

वीरेश की इस बात को निधि मना नहीं कर सकी और तब से एक बार फिर वीरेश और निधि के बीच बातचीत शुरू हो गई थी.

अमर की मौत के बाद वीरेश का कोई फोन नहीं आया था. उस दिन सुबह जब निधि ने मोबाइल उठाया तो उस ने देखा कि मोबाइल पर वीरेश का एक लंबा सा मैसेज आया हुआ था :

‘अमर के जाने का मुझे भी दुख है और मैं इसे अपने लिए कोई मौका नहीं समझ रहा, पर यह तो मेरे प्रेम की सूखी डाल पर दोबारा हरियाली आने जैसी बात है. तुम ने अपने घर वालों की बात रख कर ब्याह कर लिया था, पर अब क्या तुम्हारे सासससुर और मांबाप तुम्हारी दोबारा शादी करेंगे?

‘अगर नहीं तो क्यों और अगर हां तो फिर मेरे साथ क्यों नहीं? क्योंकि मैं दलित हूं, पर किसी से कम तो नहीं. अच्छा दिखता हूं, अच्छी नौकरी है मेरे पास. तुम को खुश रख सकता हूं.

‘और अगर तुम अपने सासससुर को नहीं छोड़ना चाहती तो मैं उन का बेटा बन कर उन के साथ रहने और उन्हें अपने साथ रखने तक को तैयार हूं. अब बताओ, हमारे प्रेम संबंध को शादी के बंधन में बदलने के लिए तैयार हो? तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा.’

यह पढ़ कर निधि की आंखें छलछला उठी थीं. उसे इस मैसेज का कुछ भी जवाब समझ नहीं आया. वह उठी और चाय बना कर बालकनी में चली लगी.

आज निधि को कुछ सामान लेने बाजार जाना था. शोरूम में निधि ने शैंपू पर नजर डाली, तो वीरेश की यादें ताजा हो गईं.

निधि जब भी अपने बालों को शैंपू करती थी, तो वीरेश उसे कहता था कि बालों को ऐसे ही खुला छोड़ दो. ऐसा कर के तुम बहुत खूबसूरत दिखती हो.

निधि घर का सामान खरीद कर घर लौट आई. उस के मांबाप आए हुए थे.

मां को देख कर निधि उन से लिपट गई थी. होंठों पर मुसकराहट थी, पर आंखों में नमी आने से नहीं रोक सकी.

पापा से गले लगते ही आंखों से मोती ढुलक ही पड़े.

निधि की दोबारा शादी किए जाने पर विचार हो रहा था.

‘‘मां, वीरेश का फोन आया था. वह मुझ से अब भी शादी करना चाहता है,’’ निधि ने अकेले में अपनी मां से सकुचाते हुए कहा.

मां ने गुस्से से निधि को घूरा और कोसने लगीं कि भले ही विधवा हो गई है, पर अब भी उस दलित लड़के के फेर में पड़ी हुई है. उस की शादी एक दलित से कतई नहीं हो सकती.

‘‘हमारा बेटा चला गया है और अब तो बहू को मिलने वाली पैंशन का सहारा रहेगा. हमारा बुढ़ापा तो बेटे की पैंशन पर ही कटेगा. और देखा जाए तो उस की पैंशन पर हमारा हक भी तो है.

आखिर बेटे को पढ़ानेलिखाने और अफसर बनाने में हम ने भी तो मोटा इंवैस्ट किया था और हम निधि की दोबारा शादी नहीं करेंगे. वह हमारे खानदान की शान है और हमारी शान हमारे पास ही रहेगी,’’ निधि के मांबाप को ससुर का टका सा जवाब मिल गया था.

उस रात निधि ठीक ढंग से सो नहीं पाई थी. यह बात ठीक है कि उस के पति ने सेना में अपना फर्ज निभाते हुए जान दी थी, जिस बात पर उसे गर्व है, पर अपने पिछले प्रेम के बारे में उस ने अमर से कुछ छिपाया भी तो नहीं था.

और आज जब अमर दुनिया में नहीं है, तो उसे वीरेश के साथ जिंदगी बिताने में कोई बुराई नजर नहीं आती, पर उस के मांबाप अपनी जाति के दंभ में अपनी बेटी के अरमानों को ताक पर रख रहे हैं और सासससुर उसे मिलने वाली पैंशन के लालच में उस का दूसरा ब्याह नहीं करना चाहते.

अगले दिन निधि ने वीरेश को फोन मिलाया और कहा कि वह उस से मिलना चाहती है. वे दोनों एक कैफे में सुबह के 11 बजे मिले. वीरेश ने मीठी कौफी ली, जबकि निधि ने हमेशा की तरह बिना चीनी वाली कौफी ही ली.

निधि ने पूरी बात बताई तो वीरेश ने कहा, ‘‘नीची जाति के उलाहने के नाम पर मैं ने बहुतकुछ झेला है. मेरी हर कामयाबी को इसीलिए कमतर आंका गया, क्योंकि मैं छोटी जाति का हूं. पर क्या केवल जाति से हमारी अचीवमैंट छोटी या बड़ी हो जाती है?’’ वीरेश की आवाज में गुस्सा था.

वीरेश ने आगे कहा, ‘‘आज जब मेरी जिंदगी में प्यार दोबारा दस्तक दे रहा है, तो यह समाज जाति के नाम पर फिर से मुझे दुखी कर रहा है.’’

‘‘और समाज मुझे शहीद की विधवा कह कर महिमामंडित तो कर रहा है, पर साथ ही यह भी चाहता है कि मैं इसी दर्द के सहारे झूठी मुसकराहट चिपकाए फिरूं और अपनी पूरी जिंदगी अकेले ही काट दूं,’’ निधि बोल पड़ी.

वे दोनों बारबार एकदूसरे को देख रहे थे. उन की समस्या का समाधान तो यह हो सकता था कि निधि सबकुछ छोड़ कर वीरेश के पास चली आए और अपने प्रेम को शादी में बदल ले, पर वह अपने सासससुर और समाज के डर से ऐसा नहीं कर पा रही थी. कहीं न कहीं जाति के दंभ ने 2 प्रेमियों को एक बार
फिर मिलने से पहले ही अलग कर दिया था.

वीरेश ने अपने कौफी खत्म कर दी थी और निधि ने आधी कप कौफी बिना पिए ही छोड़ दी थी. बिल वीरेश ने नहीं, बल्कि निधि ने चुकता किया था और बाहर निकल कर दोनों ने भारी मन से फीकी मुसकराहट के साथ एकदूसरे को अलविदा कहा और अपनेअपने रास्ते पर चल दिए. Family Story In Hindi

News Story: देखा तेरा वादा – विजय और अनामिका की प्रेम कहानी

News Story: विजय की मम्मी की मुराद पूरी हो गई थी. उन के कहने पर विजय कांवड़ ले कर आया था. कांवड़ लाने से ज्यादा खुशी तो इस बात की थी कि विजय जब लौट रहा था, तब किसी मंत्री ने कांवडि़यों पर फूलों की बारिश की थी. विजय ने कुछ फूल चुन कर उठा लिए थे और अपनी मम्मी को दे दिए थे.

‘‘ये फूल तो मैं संभाल कर रखूंगी,’’ मम्मी ने विजय का माथा चूमते हुए कहा था.

‘‘मम्मी, मैं कांवड़ तो ले आया, पर मेरे पैरों में छाले पड़ गए हैं. बहुत दर्द हो रहा है,’’ विजय ने अपने पैरों की हालत दिखाते हुए बताया.

‘‘अरे बेटा, यह तो भोले बाबा का प्रसाद है. तू ऐसा कर कुछ दिन के लिए वर्क फ्रौम होम कर ले,’’ मम्मी ने सलाह दी.

‘‘वह सब तो ठीक है, पर न जाने क्यों अनामिका ने मुंह फुला रखा है,’’ विजय बोला.

‘‘कोई बात नहीं. जब तुम दोनों मिलोगे तो सारे गिलेशिकवे दूर कर लेना,’’ मम्मी ने कहा और विजय के लिए हलदी वाला दूध बनाने रसोईघर में चली गईं.

आज विजय ने अनामिका को मिलने के लिए बुलाया था. वह पिछले एक घंटे से कैफे में बैठा था, पर अनामिका अभी तक नहीं आई थी.

विजय ने अनामिका को फोन मिलाया, पर फोन भी स्विच औफ बता रहा था. विजय मन ही मन कुढ़ रहा था और उसे गुस्सा भी बहुत आ रहा था.

अगले दिन विजय अनामिका के घर चला गया. वह घर पर ही थी, पर बात करने के मूड में नहीं लग रही थी.

विजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ मेरी जान? किस बात पर मुझे इग्नोर कर रही हो?’’

‘‘कुछ भी नहीं. मैं कौन होती हूं तुम्हें इग्नोर करने वाली. तुम अपनी कांवड़ यात्रा में ही मगन रहो. मुझे भी अपनी लाइफ अपने तरीके से जीने दो,’’ अनामिका बोली.

‘‘क्या बात है? हमारे बीच कांवड़ यात्रा कहां से आ गई?’’ विजय ने कुढ़ते हुए पूछा.

‘‘बीच में आई है तभी तो बोल रही हूं. तुम ने कहा था कि हम कुंभलगढ़ किला देखने जाएंगे. बारिश के मौसम में वहां के नजारे शानदार होते हैं. पर अब सब चौपट हो गया. तुम ने अपना किया वादा नहीं निभाया,’’ अनामिका ने कहा.

यह सुन कर विजय का भी पारा चढ़ गया. वह बोला, ‘‘वाह, क्या ताना मारा है. ऐसा क्या नहीं है, जो मैं ने तुम्हारे लिए नहीं किया है. तुम्हारे घर का किराया भरा, महंगे कपड़े खरीद कर दिए, अच्छे से अच्छे रैस्टोरैंट में खाना खिलाया… और जहां तक वादे की बात है, तो तुम ने भी बहुत बार अपना वादा नहीं निभाया…’’

यह सुनते ही अनामिका का भी पारा बढ़ गया. वह चिल्लाई, ‘‘बहुत खूब. तुम ने मेरे लिए इतना कुछ किया, तो क्या मैं ने तुम्हारी रातें रंगीन नहीं कीं… आज तुम मुझे खर्चे गिना रहे हो. तुम तो नरेंद्र मोदी की तरह हो गए हो. अपने अलावा किसी दूसरे की उपलब्धियां दिखाई ही नहीं देती हैं…’’

‘‘इस में नरेंद्र मोदी कहां से आ गए. उन्होंने जो कहा है, वह कर के भी दिखाया है. तुम अपनी बहस में हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री को मत घसीटो,’’ विजय बोला.

विजय नरेंद्र मोदी का फैन था, तो उसे अनामिका की यह बात चुभ गई. पैर के छालों से ज्यादा तो आज दिल के छाले फूट गए थे.

‘‘किया ही क्या नरेंद्र मोदी और उन की सरकार ने? बस, पिछली सरकारों को कोसना और अपने गुणगान करना. डबल इंजन की सरकार के सारे वादे कोरे साबित हुए हैं,’’ अब तो अनामिका एकदम लड़ाई के मूड में आ गई थी.

‘‘बताओ, कहां फेल हुई यह सरकार? मुझे भी तो पता चले…’’ विजय ने पूछा.

‘‘केंद्र सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया है, पर इस पर ज्यादा कुछ काम नहीं हुआ है. कल ही मैं एक पुराना अखबार देख रही थी. लेबर ब्यूरो रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कुशल कामगारों की तादाद महज 2 फीसदी है, जबकि दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी स्किल्ड कर्मचारी हैं और जापान में इन की तादाद 80 फीसदी तक है. सरकार के ही आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात की उम्मीद काफी कम बताई गई है कि भविष्य में कुशल कामगारों का लक्ष्य पूरा हो सकेगा.

‘‘यहां एक तरफ लोगों को काम नहीं मिल रहा है, दूसरी तरफ संघ परिवार से जुड़ी विश्व हिंदू परिषद और भाजपा के कई सांसद हिंदुओं से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं, ताकि हिंदुओ की आबादी तेजी से बढ़ सके.’’

‘‘तो क्या हिंदुओं की आबादी नहीं बढ़नी चाहिए?’’ विजय ने पूछा.

‘‘पर ऐसा करने का मकसद क्या है? बात सिर्फ आबादी की नहीं है, पर यह हिंदुत्व का कार्ड खेलना बड़ा खतरनाक है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तो कहा भी कि भाजपा और संघ द्वारा समाज में नफरत, धमकी और डर का वातावरण फैलाने की कोशिश लगातार जारी है.

‘‘महंगाई पर लगाम लगाने पर भी यह सरकार एकदम फेल हुई है. पैट्रोलडीजल के बढ़े दाम से देश में हाहाकार है. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद पैट्रोल सब से ज्यादा महंगा हुआ है, जबकि मोदी सरकार सत्ता में आने से पहले यह कहती रही कि उन की सरकार पैट्रोलडीजल के दाम कांग्रेस की सरकार से भी कम कर देगी. भारत में तेल की कीमतें लगातार आसमान छू रही हैं यानी मोदी सरकार का महंगाई कम करने का वादा भी सिर्फ वादा ही साबित हुआ.’’

‘‘लेकिन इस सरकार ने धारा 370 हटा कर ऐतिहासिक काम किया है,’’ विजय बोला.

‘‘सत्ता में आने से पहले भाजपा के 2 सब से बड़े हथियार थे कश्मीर मुद्दा और पाकिस्तान. इन 2 मुद्दों में से एक कश्मीर घाटी में मोदी सरकार की लगातार कोशिशों के बावजूद वहां लंबे समय से आशांति और हिंसक माहौल अब भी जारी है.

‘‘कांग्रेस की सरकार से अगर तुलना करें तो मोदी सरकार के कार्यकाल में घाटी की हालत बद से बदतर हुई है. पहलगाम कांड इस सरकार की सब से बड़ी नाकामी है. क्या कश्मीरी पंडित दोबारा घाटी में लौटे? नहीं न, फिर किस मुंह से यह दावा किया जा रहा है कि धारा 370 के हटने के बाद कश्मीर में शांति बहाल हो गई है?

‘‘ऐसे ही नोटबंदी का फैसला लिया गया था. याद कीजिए 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले के नरेंद्र मोदी के भाषण को. चुनावी रैलियों में उन का एक भी भाषण ऐसा नहीं होता था, जो बिना कालेधन के जिक्र के पूरा हो जाए. मगर आज हकीकत सब के सामने है.

‘‘नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कहा करते थे कि उन की सरकार जब सत्ता में आएगी तो विदेशों में जमा भारतीय लोगों का कालाधन वे ले आएंगे, मगर अब भी लोगों को इस बात का इंतजार है कि विदेशों से कालाधन कब आएगा. इस मामले पर मोदी सरकार की यह सब से बड़ी नाकामी है कि अभी तक न सरकार को पता है कि विदेशों में कितना कालाधन जमा है और वह कब तक देश में वापस आएगा,’’

अनामिका आज बहस के फुल मूड में लग रही थी.

‘‘तुम कांग्रेस की जबान बोल रही हो,’’ विजय ने तुनक कर कहा.

‘‘जब कोई तर्क न बचे तो कांग्रेस के सिर पर ठीकरा फोड़ दो. तुम लोगों की यही आदत है. याद है कि मोदी सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में हर साल 2 करोड़ रोजगार का वादा किया था, मगर नए रोजगार पैदा करने के मामले में मोदी सरकार औंधे मुंह गिरी है. यही वजह है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा और मोदी सरकार बैकफुट पर नजर आती है.

‘‘बेरोजगारी के मुद्दे पर जब मोदी सरकार फंसी तो पकौड़े बेचने को भी रोजगार की श्रेणी में ले आई और अपनी उपलब्धि बताने लगी. सच तो यह है कि नए रोजगार पैदा करने का वादा मोदी सरकार नहीं निभा पाई है.

‘‘कहां गई ‘आदर्श ग्राम योजना’, जिस के तहत हर सांसदों के द्वारा 5 गांवों को गोद लेने की व्यवस्था है, जिस में से एक भी गांव आदर्श ग्राम की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया है?

‘‘छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके भूपेश बघेल ने तो संवादाताओं से बातचीत में आरोप लगाया, ‘नरेंद्र मोदी के 11 साल विफलताओं और जन विरोधी नीतियों का शानदार स्मारक हैं. उन्होंने शुरुआत में लोगों को सपने दिखाए और 11 साल पूरे होतेहोते सिंदूर उजाड़ने तक पहुंच गए.’

‘‘उन्होंने आगे कहा कि भाजपा के नेता इन 11 सालों का खूब ढोल पीट रहे हैं, लेकिन अगर देखें कि 11 साल में आप को क्या मिला है, तो पाएंगे कि भाजपा सरकार की सारी योजनाएं नाकाम हो गई हैं.

‘‘भाजपा सरकार के 11 साल के कार्यकाल में पूरा देश असुरक्षित महसूस कर रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी कभी कहते हैं कि लोगों की कपड़ों से पहचान हो जाती है, कभी पंचर बनाने वाली बातें करते हैं, कभी श्मशान और कब्रिस्तान की बात करते हैं.

‘‘आदिवासीदलितों पर अत्याचार से वे विचलित नहीं होते, लोगों का अपमान करने में उन्हें मजा आता है और उन के लोग जनता को प्रताडि़त करते हैं, फिर भी किसी के ऊपर कोई ऐक्शन नहीं होता.

‘‘भूपेश बघेल ने यह भी कहा कि जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल से ले कर मनमोहन सिंह तक विदेश नीति में कभी कोई बदलाव नहीं आया, जिस के कारण पूरी दुनिया के लोग भारत की आवाज को गंभीरता से सुनते भी थे और जुड़ते भी थे, लेकिन हाल ही में जो आतंकवादी घटना घटी, पूरी दुनिया ने उस की आलोचना तो की, लेकिन कोई देश हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ.

‘‘उन्होंने यह भी दावा किया कि जब भारतपाकिस्तान के बीच संघर्ष चल रहा था, तब अमेरिका के राष्ट्रपति ने आधे घंटे पहले कहा कि ‘मैं ने संघर्ष विराम करवा दिया’. अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बात को कई बार कहा, जिस के कारण पूरा देश अपमानित महसूस कर रहा है, क्योंकि इस के पहले भारत ने कभी
दूसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की थी.

‘‘छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके भूपेश बघेल ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री ने किसानों की आय दोगुनी करने और स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने की बात कही थी, लेकिन आज किसान अपनी फसल को औनेपौने दाम में बेचने को मजबूर हैं. आज हालात ये है कि पूरे देश में डीएपी नहीं मिल रहा, कई राज्यों में बीज उपलब्ध नहीं हैं…

‘‘है कोई जवाब तुम्हारे पास? जब तुम्हारा नेता जनता से किए वादे पूरे नहीं कर पा रहा है, तो तुम से क्या उम्मीद रखी जाए. कांवड़ लाने से तुम्हें क्या मिला? आस्था का मतलब यह नहीं है कि अंधे बन जाओ.

‘‘तुम्हारे लिए और भी जरूरी काम हैं. कल को आईएएस बनोगे तो क्या नई पीढ़ी को देश को बांटने वाली शिक्षा दोगे? नहीं न?’’ अनामिका ने अपने दिल की पूरी भड़ास निकाल दी.

विजय चुप था. एक तो उस ने वादाखिलाफी की थी, दूसरा उस ने अनामिका का यह कह कर दिल दुखाया था कि उस ने अनामिका के लिए कई काम किए हैं. यही बात अनामिका को चुभ गई थी और उस ने सरकार के बहाने विजय को लपेट दिया था. कमरे में अब भी चुप्पी छाई हुई थी. News Story

Story In Hindi: आजादी का जिहाद

Story In Hindi: ‘‘निशा, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए?’’ मुनार ने कहा.

‘‘हां, लेकिन इस से पहले हमें बहुतकुछ सोचना पड़ेगा,’’ निशा बोली.

‘‘क्या सोचना पड़ेगा?’’ मुनीर ने सवाल किया.

‘‘यही कि तुम मुसलिम हो, मैं हिंदू हूं. वैसे तो न तुम मुसलिम हो. न मैं हिंदू. न तुम ने कभी दिन में 5 बार नमाज पढ़ी है, न रमजान में पूरे रोजे रखे हैं, न कभी हज किया है, न कभी जकात (दान) देने के बारे में सोचा है.

‘‘मैं भी न कभी मंदिर जाती हूं, न पूजापाठ करती हूं, न गंगा नहाने किसी तीर्थ पर गई हूं. लेकिन हमारे समाज का कानून कहता है कि जिस धर्म के मानने वाले मांबाप ने तुम्हें जन्म दिया है, वही तुम्हारा धर्म है,’’ निशा ने अपनी बात रखी.

‘‘यह हिंदूमुसलिम की बात कहां से आ गई हमारे बीच? सच तो यह है कि हम दोनों का धर्म अगर कोई है तो वह है इश्क का धर्म और इश्क का धर्म समाज के किसी भी बंधन को नहीं मानता,’’ मुनीर बोला.

‘‘लेकिन हमें लोगों की चिंता तो करनी पड़ेगी. हम शादी करेंगे तो हो सकता है कि हिंदू समाज तुम पर लव जिहाद का इलजाम लगा कर तुम्हारी हत्या कर दे और हो सकता है कि तुम्हारा परिवार मुझे कलमा पढ़ाने पर जोर देने लगे,’’ निशा ने कहा.

‘‘हां, हो तो सकता है. होने को तो कुछ भी हो सकता है,’’ मुनीर ने मामले की गंभीरता को समझने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मुनीर, तुम मुनीर हो. मुनीर का मतलब होता है प्रकाश. मैं निशा हूं. निशा का मतलब होता है रात, अंधकार. न अंधेरे के बिना प्रकाश की कल्पना की जा सकती है, न प्रकाश के बिना अंधेरे की. हमें कोई जुदा नहीं कर सकता, लेकिन रहना तो हमें इसी समाज में है. हम दोनों हिंदुओं की कंपनियों में काम करते हैं. हो सकता है कि हमारी शादी को लव जिहाद कह कर हम दोनों को नौकरी से निकाल दिया जाए. तब
हम पेट भरने के लिए किस के सामने हाथ फैलाएंगे?

धर्म की हिफाजत के नाम पर कोई कट्टरपंथी तुम्हारे खिलाफ एफआईआर लिखा सकता है. तुम जेल चले जाओगे तो मैं क्या करूंगी? किस की मां को मौसी कहूंगी? राज्य सरकार ने लव जिहाद विरोधी कानून भी तो बना रखा है,’’ निशा ने कहा.

‘‘लेकिन यह सब होता क्यों है?’’ मुनीर ने सवाल किया.

‘‘इसलिए कि जो लोग अपने धर्म को खतरे में पड़ा हुआ महसूस करते हैं, उन को धर्म का मतलब पता ही नहीं है. धर्म की परिभाषा है ‘धर्मो धारयते प्रजा:’ यानी जिस तरह से लोग बरताव करते हैं, वही उन का धर्म होता है. इन लोगों ने अपने विश्वास को अपना धर्म मान लिया है.

‘‘धर्म कोई पवित्र शब्द नहीं है. पवित्र शब्द होता तो औरत की माहवारी को मासिक धर्म न कहा जाता. चोरधर्म, वेश्याधर्म, राजधर्म जैसे शब्द न बनते.

‘‘मुनीर, किसी का अपना विश्वास जब कट्टरता बन जाता है तब उसे लगता है कि उसी का धर्म दुनिया का सब से अच्छा धर्म है. वही एक सच्चा धर्म है. सब को उसी का धर्म अपनाना चाहिए. जो इसे अपनाने से इनकार करता है, उसे जिंदा रहने का हक नहीं है. दूसरे किसी विश्वास को वजूद में रहने का हक नहीं है.

यह धर्म नहीं, धर्मांधता है,’’ निशा बोली.

निशा ने भाषण सा ही दे दिया था. मुनीर एकटक उस की ओर देखता रहा.

तनिक दम ले कर निशा फिर बोली, ‘‘इन लोगों ने धर्म को जिस मतलब में लिया है, उस का नतीजा देखो. अमेरिका में ईसाई यहूदियों को मार रहे हैं. भारत में गोहत्या के शक में हिंदू मुसलिम को मार रहे हैं.

लखनऊ में शिया और सुन्नी एकदूसरे को मार रहे हैं. अफगानिस्तान में मुसलिम ही मुसलिम को मार रहे हैं. पाकिस्तान में नमाज पढ़ रहे लोगों पर बम गिराया जाता है.’’

‘‘यह धर्म नहीं, पागलपन है निशा. सरासर पागलपन,’’ मुनीर ने कहा.

‘‘लेकिन इस पागलपन का शिकार हम क्यों बनें?’’ निशा बोली.

‘‘निशा, न हम निकाह करने के लिए किसी मौलवी के पास जाएंगे, न फेरे लेने के लिए किसी पंडित को बुलाएंगे. हम कोर्टमैरिज करेंगे,’’ मुनीर ने राय दी.

‘‘कोर्टमैरिज से पहले नोटिस भी लगेगा मैरिज औफिस में. उसे कोई भी पढ़ सकता है,’’ निशा बोली.

मुनीर का दिमाग भन्ना गया. उस से कुछ कहते नहीं बन रहा था. वह उठ कर खिड़की के पास खड़ा हो गया. बाहर आसमान में घने बादल छाए हुए थे. बीचबीच में बिजली कड़क रही थी.

आसमान की ओर उंगली उठा कर मुनीर ने कहा, ‘‘यहां आओ निशा, देखो घने बादलों ने जो अंधेरा कर रखा है, उस के बीच चमक कर बिजली कैसी रोशनी फैला रही है.’’

निशा जहां बैठी थी, वहीं बैठी रही. वह बोली, ‘‘यह शायरी करने का समय नहीं है मुनीर. हम इस तरह तुम्हारे दोस्त के कमरे में चोरीछिपे कब तक मिलते रहेंगे?’’

‘‘तो हम ऐसा करते हैं, एकसाथ खुदखुशी कर के यह साबित कर देते हैं कि समाज तो क्या, मौत भी हमें अलग नहीं कर सकती.’’

‘‘फिर वही शायराना बात. खुदकुशी किसी समस्या का हल नहीं होती. बुजदिली की हद है खुदखुशी,’’ निशा बोली.

‘‘तुम तो संजीदा हो गईं. मैं तो पलों के बोझ को हलका करने के लिए मजाक कर रहा था,’’ मुनीर ने कहा.

‘‘यह मजाक का समय भी नहीं है,’’ निशा बोली.

मुनीर आ कर कुरसी पर बैठ गया. सोचता रहा, सोचता रहा. अपने प्यार और अपनी हिम्मत को आंकता रहा. बाहर बादलों ने झमाझम बारिश शुरू कर दी थी. खिड़की के शीशे पर धड़ाधड़ बारिश की बौछारें पड़ रही थीं. उन के शोर में उसे अपने और निशा के ऊपर छोड़े जाने वाले तानों की आवाज सुनाई दे रही थी.

निशा भी चुपचाप बैठी सोचती रही. आज पहली बार ऐसा हुआ था कि दोस्त के कमरे के एकांत में उन्होंने न एकदूसरे को छुआ था, न गले लगे थे, न एकदूसरे को चूमा था.

मुनीर ने एक भरपूर नजर निशा पर डाली और कहा, ‘‘हम यह देश छोड़ कर किसी और देश में जा कर रहेंगे. यहां के समाज से, यहां के लोगों से कोई वास्ता ही नहीं रखेंगे.’’

‘‘यह इतना आसान नहीं है मुनीर. कहीं पर भी हमें वर्कपरमिट कैसे मिलेगा? रहेंगे कहां? खाएंगे क्या?’’

फिर बहुत ज्यादा गंभीर हो कर निशा ने कहा, ‘‘तुम में हिम्मत है तो समाज से लोहा लो. यह लड़ाई अपने घर से शुरू करो. अपने मातापिता को समझाओ कि वे मुझे बगैर कलमा पढ़ाए अपना लें. इधर मैं भी यही लड़ाई लड़ती हूं. और अगर उन को तुम स्वीकार नहीं हो, तो मैं उन से नाता तोड़ लूंगी.’’

अब तक मुनीर भी किसी फैसले पर पहुंचने की पूरी तैयारी कर चुका था. वह बोला, ‘‘मुझे मंजूर है. मैं साबित कर दूंगा कि कोई कितना ही कट्टरतावादी क्यों न हो, न मुझ से मेरा प्यार छीन सकता है, न ही मेरी जिंदगी.’’

दोनों के चेहरों पर एक उदास सी मुसकराहट दौड़ी. वे दोनों उठ खड़े हुए. निशा ने लपक कर मुनीर को आगोश में ले लिया.

मुनीर ने उसे भींच कर छाती से लगाते हुए कहा, ‘‘चलो देखें, बाहर धरती अपने बाल खोले बारिश के झरने में नहा रहा होगी. बस, तुम धरती बनी रहना, मैं बारिश का पानी बन कर तुम्हारे अंदर समा जाऊंगा.’’

मुनीर की बांहों में से निकलते हुए निशा ने कहा, ‘‘चलो, हम जिहाद शुरू करते हैं. लव जिहाद नहीं, इनसानी हकों की हिफाजत का जिहाद, इश्क करने की आजादी का जिहाद.’’ Story In Hindi

Social Story In Hindi: होंठ लाल काली आंखें

Social Story In Hindi: सागर अपने दोस्तों के साथ घुमक्कड़ी पर निकला. हाईवे पर कुछ जवान लड़कियां भड़कीले कपड़ों में खड़ी थीं. एक ढाबे वाले ने बताया कि बांछड़ा समाज की ये लड़कियां सड़क किनारे अपने डेरों में देह धंधा करती हैं. सागर एक डेरे में गया. वहां धंधा करने वाली एक लड़की ने उसे एक कड़वे सच से रूबरू कराया.

तकरीबन 3 साल पहले की बात है. अपने दोस्तों नागेंद्र, बृजेंद्र और अरविंद के साथ 10 दिन की घुमक्कड़ी के दौरान मेरा एक ऐसे सच से सामना हुआ, जिसे देखसुन कर मेरी रूह तक कांप गई.

उस दिन शाम का समय था. रतलाम से मंदसौरनीमच की ओर हमारा अभी 7 किलोमीटर तक का सफर ही तय हुआ था कि सड़क किनारे खड़ी जवान लड़़कियों को देख कर हमें हैरानी हुई. कार की रफ्तार धीमी कर मीलों दूर तक हम यह नजारा देख रहे थे.

कुछ देर के बाद हम ने एक ढाबे पर रुकने की सोची. कार से उतर कर ढाबे पर पड़ी खाट पर हम चारों दोस्त बैठ गए. हमारे मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे.

तभी ढाबे का एक वेटर हाजिर हो गया.

अरविंद ने खाने का और्डर करते हुए उस वेटर से पूछा, ‘‘हाईवे पर ये जवान लड़कियां क्यों खड़ी रहती हैं?’’

यह सवाल सुनते ही उस वेटर ने अपने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘साहब, आप को चाहिए क्या? रातभर के लिए लड़की मिल जाएगी. मालिक से बात कर लीजिएगा.’’

उस वेटर का जवाब सुन कर हम लोग सकपका से गए. इस के बाद हम लोगों ने काउंटर पर जा कर ढाबे के मालिक जगदीश मीणा से उन लड़कियों के बारे में पूछा, तो उस ने बताया, ‘‘साहब, ये लड़कियां यहां के बांछड़ा समुदाय की हैं, जो अपने जिस्म का सौदा करने के लिए रोजाना ही सड़़कों पर उतर आती हैं.’’

‘‘इन्हें किसी का डर नहीं लगता, जो इस तरह खुलेआम सड़कों पर ग्राहक ढूंढ़ती हैं?’’ नागेंद्र ने पूछा.

‘‘ऐसा नहीं है कि ये लड़कियां चोरीछिपे किसी मजबूरी में इस तरह का धंधा करती हैं. इन जवान लड़कियों के मांबाप बड़े शौक से इन से यह घिनौना काम करवाते हैं. कई बार तो मांबाप ही इन लड़कियों के लिए ग्राहक ढूंढ़ कर लाते हैं.’’

जगदीश मीणा से सड़कों पर खड़ी लड़कियों के बारे में यह सच जान कर हम हैरान रह गए. खाने के समय भी हम लोगों की चर्चा में यही लड़कियां रहीं.

मध्य प्रदेश में मंदसौर से नीमच की ओर जाने वाले नैशनल हाईवे पर सफर के दौरान सड़कों पर भड़कीले कपड़ों में सजीधजी लड़कियों को देख कर गाडि़यों की रफ्तार अपनेआप ही धीमी हो जाती है.

होंठों पर लाल रंग की चटक लिपस्टिक और काजल भरी आंखों से इशारा करती लड़कियां ट्रक और कार चलाने वालों का ध्यान अपनी ओर अनायास ही खींच लेती हैं.

अपनी अदाओं से लोगों को लुभाती ये जवान लड़कियां अपने जिस्म का सौदा करती हैं. जिस्मफरोशी के इस बाजार में रोजाना न जाने कितनी ही लड़कियां चंद सौ रुपयों के लिए अपनी बोली लगाती हैं.

जिन लोगों ने महूनीमच नैशनल हाईवे का सफर किया है, उन्होंने कभी न कभी बांछड़ा समाज की इन लड़कियों को जरूर देखा होगा. भले ही किसी की गाड़ी न रुकी हो, लेकिन सड़क किनारे खड़ी 16-17 साल की उन लड़कियों को जरूर देखा गया होगा जो होंठों पर लिपस्टिक पोते, आंखों में काजल मले, खुले बालों के साथ, कमर मटकाती खुद के बिकने का इंतजार करती हैं.

रतलाम में मंदसौर, नीमच की ओर जाने वाले महूनीमच नैशनल हाईवे पर जावरा से तकरीबन 7 किलोमीटर दूर गांव बगाखेड़ा से बांछड़ा समुदाय के डेरों की शुरुआत होती है.

यहां से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर हाईवे पर ही परवलिया डेरा है. इस डेरे में बांछड़ा समुदाय के तकरीबन 50 परिवार रहते हैं.

महूनीमच नैशनल हाईवे पर डेरों की यह हालत नीमच जिले के नयागांव तक है. रतलाम जिले के दूरदराज के गांव भी इन के डेरों से आबाद हैं.

यह समुदाय हमेशा ग्रुप में रहता है, जिन्हें डेरा कहते हैं. बांछड़ा समुदाय के ज्यादातर लोग झोंपड़ीनुमा कच्चे मकानों में रहते हैं. इन की बस्ती को आम बोलचाल की भाषा में डेरा कहते हैं.

इन लोगों के बारे में यह भी कहा जाता है कि मेवाड़ की गद्दी से उतारे गए राजा राजस्थान के जंगलों में छिप कर अपने अलगअलग ठिकानों से मुगलों से लोहा लेते रहे थे. यह भी माना जाता है कि उन के कुछ सिपाही नरसिंहगढ़ में छिप गए थे और फिर वहां से मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में चले गए.

जब सेना बिखर गई तो उन लोगों के पास रोजीरोटी चलाने का कोई जरीया नहीं बचा. गुजारे के लिए मर्द डकैती डालने लगे, तो औरतों ने देह धंधे को अपना पेशा बना लिया. ऐसा कई पीढि़यों तक चलता रहा और आखिर में यह मजबूरी एक परंपरा बन गई.

शाम हो चली थी. अभी हम लोग सड़क से उतर कर एक डेरे की तरफ बढ़ रहे थे. टिमटिमाते बल्बों की रोशनी में अपने डेरे के सामने खड़ी उन लड़कियों को देख ही रहे थे. हर उम्र के मर्दों की मौजूदगी वहां दिखाई दे रही थी. किसी के कदम नशे में डगमगाते थे, तो कोई तयशुदा चाल में अंधेरे में खुलते दरवाजों की ओर बढ़ता था. हर दरवाजे पर सजी औरतें इशारों से ग्राहकों को बुला रही थीं और हम लोग थोड़ा सहमे हुए से थे.

तभी किसी नन्ही उंगली की हलकी सी पकड़ ने मेरी सोच की डोरी को झकझोर दिया.

‘‘अंकल, मेरी दीदी आप को बुला रही है,’’ 6-7 साल की मासूम सी एक बच्ची बोली. उस की आंखों में विजयी मुस्कान थी, चेहरा दमक रहा था.

‘‘कहां है तुम्हारी दीदी?’’

‘‘वह घर के अंदर, आप मेरे साथ चलो न.’’

उस लड़की के चेहरे में छिपी मासूमियत ने मुझे झकझोर दिया. क्या वह अपनी बहन के लिए ग्राहक ढूंढ़ रही है? यह खयाल आते ही मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई.

‘‘चलो न अंकल फिर मुझे खाना भी खाना है,’’ कह कर उस लड़की ने मेरा हाथ थाम लिया.

पहले तो मैं अकेले जाने से झिझका, मगर अपने अखबार के लिए एक खास रिपोर्ट बनाने के लिहाज से मेरे कदम अपनेआप उस लड़की के साथ चल पड़े.

मेरे दोस्त मुझे जाते हुए देख रहे थे. अरविंद बोला, ‘‘चले जाओ सागर, हम लोग यहीं हैं.’’

वह बच्ची फुरती में आगेआगे भागती, गलियों से होते हुए एक दरवाजे तक मुझे ले गई. उस ने दरवाजे पर हलकी सी दस्तक दी और मुझे देख कर मुसकराई.

दरवाजा खुला. एक अधेड़ सा आदमी बाहर निकला. बच्ची मुझे भीतर तक ले गई और कमरे के एक ओर इशारा कर के बोली, ‘‘यह मेरी दीदी है.’’

सामने एक पलंग पर बैठी औरत की तरफ मैं ने अपनी नजरें दौड़ाईं. वह औरत 28-30 साल की रही होगी. चेहरा खूबसूरत नहीं, मगर थका हुआ भी नहीं, बल्कि ऐसा, जिस में वक्त ठहर गया हो.

‘‘बैठिए,’’ कहते हुए वह औरत मुसकराई, मगर मुसकराहट से ज्यादा उस की आंखों में कई सवाल थे.

‘‘पानी या चाय कुछ लेंगे आप?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘जी नहीं, शुक्रिया.’’

‘‘ठीक है, पहले पैसे दीजिए.’’

मैं ने 500 रुपए का एक नोट उस के सामने कर दिया. उस ने नोट उठाया, माथे से लगाया और सामने टंगे एक पर्स में डाल दिया.

‘‘कहां तक पढ़ी हैं आप? आप को यह घिनौना काम अच्छा लगता है क्या?’’ मेरे इन सवालों पर वह औरत कुछ सकपकाई, मगर दूसरे ही पल आंखों में शरारत लिए बोली, ‘‘मैं तो खूब पढ़ना चाहती थी साहब, मगर मांबाप ने परंपरा की दुहाई दी. फिर भी नहीं मानी तो कहा गया कि तुम्हारी नानी और मां ने भी यही काम किया है.

‘‘आखिर में दो जून की रोटी का वास्ता दिया गया, तो मेरी आंखों के सामने अपने छोटेछोटे भाईबहनों के चेहरे घूमने लगे और घुटने टेकते हुए मैं ने समझौता कर लिया.

‘‘साहब, बांछड़ा समुदाय की लड़कियों को परंपरा का हवाला दे कर छोटी उम्र में ही देह धंधे के दलदल में धकेल दिया जाता है.’’

‘‘यह नन्ही गुडि़या आप की बहन है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्यों वक्त बरबाद कर रहे हैं साहब. जिस काम के लिए आए हैं, उसी से मतलब रखिए,’’ उस औरत ने अपनी बांहें मेरी गरदन पर डालते हुए कहा.

मैं ने कहा, ‘‘देखिए, मैं उस नीयत से नहीं आया. मैं एक पत्रकार हूं और तुम लोगों के इस घिनौने पेशे के खिलाफ पत्रिका में लिखना चाहता हूं. मैं आप से कुछ कहना और पूछना चाहता हूं.’’

‘‘तो कहिए मगर. वक्त की कीमत है. आप घंटे के पैसे रख लीजिए, मेरी बात सुन लीजिए.’’

मैं ने फिर एक 200 का नोट उस की तरफ बढ़ा दिया. उस ने थोड़ी देर मुझे देखा और नोट रखते हुए बोली, ‘‘हां, बताइए?’’

‘‘तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इस बच्ची का जन्म शाप बन कर रह गया है?’’ मेरे इस सवाल पर उस औरत की हंसी बाहर निकल आई. अपनेआप को संभालते हुए उस ने जो बताया, उस ने मेरी रूह को झकझोर कर रख दिया.

‘‘साहब, देश का पढ़ालिखा तबका भले ही बेटी को मां के पेट में ही मारने पर उतारू है, मगर हमारे यहां तो बेटी पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है. मगर इस जश्न के पीछे छिपा है एक शर्मनाक सच.

एक बेटी यानी कम से कम 2 पुश्तों की आमदनी का जरीया. बांछड़ा समाज में, जो बेटियों की देह पर जिंदा है, देह धंधा बुरा नहीं है, बल्कि वह लघु उद्योग बन गया है.’’

मैं ने एक सांस में कह दिया, ‘‘आप यह काम छोड़ क्यों नहीं देतीं और शादी कर लीजिए. एक नई जिंदगी
शुरू कीजिए.’’

वह औरत इस तरह हंसी जैसे मैं ने कोई बचकाना सवाल कर दिया हो. वह बोली, ‘‘शादी? हम तो हर रोज शादी करते हैं साहब… कभी घंटेभर की, कभी पूरी रात की. शादी हमारे लिए एक सौदा है, सौगात नहीं.’’

‘‘आप के मातापिता को पता है कि आप यह धंधा करती हैं?’’

मेरा सवाल पूरा होने से पहले ही उस ने जवाब दिया, ‘‘अभी जो इस डेरे से दरवाजा खोल कर बाहर जाने वाला आदमी आप ने देखा… वही मेरा बाप है.’’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘और वह छोटी सी गुडि़या?’’

‘‘वह मेरी बेटी है.’’

‘‘बेटी? लेकिन वह आप को दीदी क्यों बुलाती है?’’

‘‘मैं ने उसे मां कहना कभी सिखाया ही नहीं, क्योंकि अगर वह जा कर बोलेगी कि मेरी ‘मां’ बुला रही है, तो कौन मेरे पास आएगा?’’

अब मैं बुत बन गया था. उस का जवाब मेरे जेहन में गूंज गया.

वह औरत बोली, ‘‘यहां लड़कियां सिर्फ अपनी होती हैं. उन के बाप कौन हैं, यह भी हम नहीं जानते. बेटियां हमारी जगह लेती हैं और बेटे दलाल बनते हैं. यही उसूल है इस बांछड़ा डेरे का.’’

तभी बाहर से फिर वही आवाज आई, ‘‘दीदी, टाइम हो गया.’’

मुझे लगा जैसे मेरी धड़कन वहीं अटक गई.

‘‘इस बच्ची का नाम क्या है?’’

‘‘मुसकान.’’

‘‘इस का क्या सोचा है?’’

‘‘बांछड़ा समुदाय में प्रथा के मुताबिक घर में जन्म लेने वाली पहली बेटी को जिस्मफरोशी करनी ही पड़ती है. वह मेरी तरह ही यही करेगी और मेरा सहारा बनेगी. आप यों ही वक्त बरबाद कर रहे हो.’’

अब मैं खड़ा हो गया और बाहर निकल आया. मुसकान बाहर खड़ी थी. वह मुसकराते हुए मुझ से बोली, ‘‘मेरी बख्शीश?’’

आंखों में आई नमी को पोंछते हुए मैं ने पूछा, ‘‘क्या चाहिए?’’

‘‘बस 50 रुपए,’’ उस लड़की ने मासूमियत से हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं ने चुपचाप उस लड़की की हथेली पर 50 रुपए रख दिए. वह फुदकती हुई, चिडि़या की तरह उन्हीं गलियों में गुम हो गई. Social Story In Hindi

Story In Hindi: हत्यारा मांझा

Story In Hindi: हमारे छोटे से कसबे में करीम चाचा जैसा पतंगबाज कोई नहीं था, लेकिन अब वे काफी उम्रदराज हो चुके थे. उन्होंने पतंग उड़ाना बंद कर दिया था. अब वे अपनी किराना की दुकान चलाते थे और पतंगों को उड़ते देख कर बहुत खुश होते थे.

करीम चाचा के बेटे का नाम सलीम था, जो शादीशुदा थे और एक 8 साल के बेटे फजल के बाप भी. फजल को पतंगें उड़ती देखने का बड़ा शौक था. सलीम पेंच लड़ाते, पर सामने वाले की पतंग नहीं काट पाते.

एक दिन सलीम ने अपने अब्बा से पूछा, ‘‘मेरी पतंग क्यों कट जाती है?’’

‘‘पतंग उड़ाना भी एक कला है सलीम,’’ करीम चाचा ने बताया.

‘‘आप तो अपने समय के माने हुए पतंगबाज रहे हैं, फिर मुझे यह हुनर क्यों नहीं आया?’’ सलीम बोले.

‘‘हां, रहा हूं,’’ करीम चाचा ने फख्र से कहा.

‘‘हमें भी बताइए पेंच लड़ाने की कला,’’ सलीम ने कहा.

तभी महल्ले के कुछ और लड़के भी वहां आ गए. उन में से एक लड़के राकेश ने कहा, ‘‘चाचा, हमें भी बताइए. ज्ञान पर सब का हक होता है. द्रोणाचार्य ने अपने बेटे और शिष्यों में कभी फर्क नहीं किया. उन के बेटे अश्वत्थामा से ज्यादा काबिल उन का शिष्य अर्जुन था.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं…’’ करीम चाचा ने फख्र से कहा, ‘‘लेकिन यह सीखने वाले की लगन पर होता है.’’

‘‘चलिए, हमें बताइए. आप हम लोगों के भी गुरु हुए,’’ राकेश ने कहा.

करीम चाचा ने पतंग में कन्नी बांधने के तरीके से ले कर पतंग छोड़ने, उड़ाने और पेंच लड़ाने के एक से एक तरीके बताए, जिन्हें सुन कर सब दंग रह गए और यह मान गए कि वाकई पतंग उड़ाना और दूसरे की पतंग काटना एक कला है. जैसे तलवारबाजी, तीरंदाजी, वैसे ही पतंगबाजी.

आजकल देशभर में चीनी मांझे की चर्चा जोरों पर है. वैसे तो भारत और चीन के बीच कोई भाईचारा नहीं है खासकर लड़ाई के बाद. लेकिन वर्ल्ड ट्रेड और्गैनाइजेशन की संधि के तहत भारतीय सरकार सीधेतौर पर चीनी सामान का बहिष्कार नहीं कर सकती. उस पर कोई अंकुश नहीं लगा सकती.

चीन में तो हर चीज बनने लगी है, जिस का इस्तेमाल भारत कर रहा है. लोग जम कर खरीदते हैं, क्योंकि चीन का बना माल सस्ता होता है, पर टिकाऊ तो बिलकुल नहीं.

इस का नतीजा यह हो रहा है कि होली दीवाली से ले कर तकरीबन हर बड़े त्योहार पर चीन की बनी चीजें बिकने लगी हैं और स्वदेशी चीजों को कोई कौडि़यों के भाव पर भी नहीं खरीद रहा है.

टैक्नोलौजी के मामले में चीन ने कमाल कर रखा है. आज बाजारों में बिकने वाले सस्ते, आकर्षक, शानदार मोबाइल फोन सब चीन की ही देन हैं. कुछ देशभक्त स्वदेशी चीजों को बढ़ावा देने के लिए जब चीनी सामान का विरोध करते हैं, लोगों से चीनी सामान खरीदने के बहिष्कार की बात कहते हैं, तो उधर से चीन के अखबार गरजते हुए बयान देते हैं कि भारत के लोग बुजदिल और कामचोर हैं. उन की देशभक्ति का नशा जल्दी उतर जाता है और फिर वे हम से ही सामान खरीदते हैं.

इसी बीच करीम चाचा ने सलीम से कहा, ‘‘चीनी सामान की कोई गारंटी नहीं होती. ये कारोबारी हैं. इन्हें अपने फायदे से मतलब है. इन की बनाई चीजें खरीदना ठीक नहीं है. हमारे यहां के पटाके और चीन से आए पटाकों में बहुत फर्क है. उन के पटाकों से प्रदूषण और तरहतरह की बीमारियां फैलती हैं.’’

इस पर सलीम ने कहा, ‘‘चीनी हो या देशी, होता तो दोनों के पटाकों में बारूद ही न. अब्बू, आप भी कहां अखबार की खबरों पर ध्यान देते हैं… अगर चीन का सामान खरीदने से कोई हमें देशद्रोही कहता है, तो कहता रहे. सभी खरीदते हैं. ज्यादा ही दर्द है तो सरकार पाबंदी लगा दे, इसे गैरकानूनी बता दे. तब ये सामान अपनेआप बिकना बंद हो जाएंगे. फिर हम ही क्यों सोचें? क्या हिंदू नहीं खरीदते हैं? वे तो सब से ज्यादा खरीदते हैं. दीवाली उन का त्योहार है. वे तो देवीदेवताओं की मूर्तियों से ले कर दीए तक चीन द्वारा बनाए खरीदते हैं.’’

सलीम की बात काटते हुए करीम चाचा ने कहा, ‘‘बेटा, इस में हिंदूमुसलिम वाली बात कहां से आ गई? हम एक देश में रहते हैं. उन की गलती हमारी गलती एक ही बात है और इस का बुरा नतीजा दोनों को ही भुगतना पड़ता है.’’

सलीम ने कहा, ‘‘लेकिन अब्बू, क्याक्या बंद करवाएंगे स्वदेशी के समर्थक? सारे स्वदेशी समर्थकों के पास चीनी मोबाइल हैं. कोई दूसरा रास्ता नहीं है चीनी सामान से बचने का. एक से एक डैकोरेटिव स्टाइलिश लाइट चर्च में भी लगती है, मंदिर में भी और मसजिद में भी. लोग सस्ता और सुंदर सामान ही खरीदते हैं.

देशभक्ति का इन सब से क्या लेनादेना?’’

‘‘बेटा, ये चीनी कारोबारी हैं. इन का करोड़ोंअरबों का कारोबार है. इन से हमारे देश की कंपनियां और फैक्टरियां पिछड़ रही हैं. लोगों का रोजगार छीना जा रहा है,’’ करीम चाचा ने कहा.

‘‘हमारे यहां के लोग टैक्नोलौजी में सस्ता, सुंदर सामान बनाने में पिछड़े हैं, तो यह हमारे कारोबारियों की गलती है. इस में किसी दूसरे को कुसूरवार क्यों ठहराना?’’ सलीम बोले.

‘‘अब तो पतंग और मांझा भी चीनी आने लगा है, तो क्या तुम उसे भी खरीदोगे?’’ करीम चाचा ने कहा.

‘‘क्यों नहीं?’’ सलीम ने लापरवाही से कहा और बाहर निकल गए.

‘‘सस्ते के चक्कर में किसी दिन मुसीबत में मत फंस जाना. याद रखना, सब से ज्यादा नुकसान इस्तेमाल करने वाले का होता है,’’ करीम चाचा ने कहा.

लेकिन यह सुनने के लिए सलीम उस वक्त उन के पास नहीं थे. वे घर से बाहर निकल चुके थे.

अगस्त का महीना था. आसमान में उड़ती पतंगें, लहराती पतंगें. कटती पतंगें, गिरती पतंगें. अब पहले की तरह पतंग लूटने वाले तो नहीं थे, लेकिन पतंग उड़ाने और काटने का जुनून अब भी लोगों में था.

दोपहर से शाम तक सलीम की कई पतंगें कट चुकी थीं. हर कटती पतंग पर उन का बेटा फजल उदास हो जाता. बेटे की उदासी देख कर उन्हें शर्म आने लगी. वे बेटे के सामने खुद को हारा हुआ सा महसूस करने लगे.

सलीम ने अपने बेटे फजल को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘चिंता मत कर. कल तुम्हें खुश कर दूंगा. जितनी कहोगे, उतनी पतंगें काट कर दिखाऊंगा.’’

सलीम यह कह कर बाजार की ओर निकले. वे अपने पिता की दुकानदारी भी संभालते थे, लेकिन पतंग उड़ाने के लिए वे समय निकाल ही लेते थे. पतंग उड़ाने के गुर अपने अब्बू से पूछ लेते थे. अब्बू तो पुराने पतंगबाज थे, सो मना नहीं करते थे.

रात में फजल ने अपने दादा करीम मियां से कहा, ‘‘दादाजी हमारी 10 पतंगें कट गईं.’’

करीम मियां ने कहा, ‘‘पतंगबाजी कला है, जो अभी तुम्हारे अब्बू को नहीं आई है. मैं होता तो 10 क्या 20 पतंगें काट देता.’’

यह सुन कर सलीम ने चिढ़ते हुए कहा, ‘‘पतंगबाजी अब कोई कला नहीं रही अब्बा. सब मांझे का कमाल है. कल देखना, मैं ऐसा मांझा लाऊंगा कि आसमान में उड़ने वाली सारी पतंगें जमीन पर नजर आएंगी.’’

सलीम की बात खत्म होने से पहले अब्बू ने यह जरूर कहा, ‘‘मांझे की ताकत से पतंग काटने में अपना क्या हुनर? हमें बाजार से सावधान रहना चाहिए.’’

लेकिन सलीम तब तक अपने कमरे में जा चुके थे.

अगली सुबह सलीम ने पतंग दुकानदार से कहा, ‘‘मुझे सब से मजबूत मांझा चाहिए.’’

दुकानदार ने धीरे से कहा, ‘‘मजबूती का तो बाप है, लेकिन पुलिस छापा मार कर जब्त कर रही है. बैन लगा दिया है प्रशासन ने.’’

‘‘यहां कौन देख रहा है. तुम चुपके से दे दो.’’

‘‘लेकिन दाम थोड़े ज्यादा लगेंगे,’’ दुकानदार ने कहा.

‘‘चलेगा, लेकिन मांझा मजबूत होना चाहिए.’’

‘‘चीनी मांझा है, जो तलवार का काम करेगा. एक नहीं सौ पतंगें काटने की हैसियत रखता है, लेकिन सावधानी से बरतना,’’ दुकानदार ने धीरे से कहा.

चीनी मांझा सुन कर सलीम को यकीन आ गया कि आज तो वे बेटे को कई पतंगें काट कर दिखाएंगे और खुश करेंगे. कल अपनी हार और बेटे के उतरे चेहरे को देख कर उन्हें बहुत मायूसी हुई थी.

शाम को 4 बजे घर की छत पर फजल ने पतंग छोड़ी. पिता ने मांझा खींचा. हलकीहलकी हवा में पतंग ऊपर की ओर उठी. सलीम ने ढील दी, फिर मांझा खींचा, फिर ढील दी, फिर मांझा खींचा. थोड़ी देर में पतंग आसमान से बातें करने लगी थी.

करीम मियां भी छत पर आ गए. उन्होंने मांझे की ओर देख कर कहा, ‘‘यह बड़ा खतरनाक है. मांझा है या हथियार.’’

‘‘अब्बू, बस आज आप कुछ मत बोलना,’’ सलीम ने कहा.

तभी सलीम की पतंग का पेंच लड़ गया. सलीम ने एक जोरदार झटका दिया और सामने वाले की पतंग कट गई.

‘‘ये काटा…’’ फजल खुशी से चहक उठा.

‘‘अभी और पतंगें कटेंगी बेटा. तुम देखते जाओ अपने बाप का कमाल,’’ सलीम बोले.

‘‘यह तुम्हारा कमाल नहीं, बल्कि इस मांझे का है. मैं कहता हूं बंद करो यह तमाशा. यह पतंगबाजी नहीं, मांझाबाजी है,’’ करीम मियां ने कहा.

‘‘क्या अब्बू, आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे आप ने कभी पतंग नहीं उड़ाई…’’

‘‘हम ने पतंगें उड़ाई हैं. मैं तुम्हें भी नहीं रोकता, लेकिन यह मांझा खतरनाक है. किसी को लग गया तो मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘एक दिन मैं कुछ नहीं बिगड़ता अब्बू,’’ इस के बाद सलीम ने एक और पतंग काटी.

फजल खुशी से चीख पड़ा, ‘‘वाह अब्बू, कमाल कर दिया आप ने.’’

बेटे की तारीफ से सलीम का सीना फख्र से चौड़ा हो गया. आसमान में जितनी पतंगें थीं, 1-1 कर के जमीन की धूल चाटती नजर आ रही थीं.

करीम मियां ने फिर चेतावनी दी, ‘‘ऐसी ही धूल चीन ने हमें युद्ध में चटाई है अपने आधुनिक हथियारों के दम पर. बंद करो यह अनीति से, चीनी मांझे से पतंगबाजी का खेल.’’

‘‘आज नहीं दादाजी, कल हमारी 10 पतंगें कटी थीं. हम बदला ले कर रहेंगे,’’ फजल की बात सुन कर करीम मियां ने कहा, ‘‘बेटे, दूसरे के हथियार से युद्ध जीता तो क्या जीता? इस में अपना हुनर, अपना जौहर कहां है? मैं फिर कह रहा हूं कि यह खतरनाक हो सकता है.’’

‘‘अब्बू, यह युद्ध नहीं पतंगबाजी है. हुनर किसी का हो, जीत तो अपनी है. फिर यह युद्ध नहीं महज खेल है. आप अपने पोते के चेहरे की खुशी देखिए,’’ सलीम बोले.

करीम मियां अपने पोते की खुशी को देख कर चुप हो गए. सलीम धड़ाधड़ पतंगें काट रहे थे और फजल खुशी से किलकारी मार कर हंस रहा था.

सलीम कम से कम 20 पतंगें काट चुके थे और अब थक गए थे.

फजल ने कहा, ‘‘अब्बू, अब मैं पतंग काटूंगा.’’

‘‘क्यों नहीं, लेकिन जरा संभल कर,’’ सलीम बोले.

इस के बाद सलीम ने चरखी पकड़ ली. पतंग आसमान में थी. मांझा अब फजल के हाथ में था.

सलीम ने कहा, ‘‘ढील दो और अपनी पतंग दूसरी पतंग के पास ले जाओ’’

फजल ढील देता गया.

‘‘अब खींचो,’’ सलीम ने कहा.

फजल ने मांझा खींचा. दोनों पतंगें आपस में उलझ चुकी थीं. सलीम चरखी में लिपटा मांझा ले कर पीछे
खड़े थे.

‘‘यह आखिरी पतंग है. इसे हर हाल में काटना है फजल,’’ सलीम ने कहा.

‘‘जी अब्बू, ऐसा ही होगा,’’ फजल बोला.

‘‘फजल, यही मौका है. मांझे आपस में लिपट चुके हैं. एक जोरदार झटका मारो. मांझा अपनी ओर खींचो.’’

सलीम के कहे मुताबिक फजल ने झटका दिया, लेकिन 8 साल के बच्चे के हाथ का झटका काफी नहीं था.

यह देख कर सलीम ने चरखी नीचे रखी और मांझे को अपने हाथ में ले कर पूरी ताकत से खींचा. पतंग कट चुकी थी. सलीम खुशी से चीखे. लेकिन तभी फजल कराह कर जमीन पर गिर पड़ा. सलीम ने जब मांझे को झटका दिया,

तो वह फजल के गले को चीरता निकल गया.

फजल की गरदन से खून की धार बह रही थी. उसे मौत के मुंह में जाता देख कर सलीम बेहोश हो गए और करीम मियां को तो जैसे लकवा मार गया. Story In Hindi

Funny Story In Hindi: बड़े घर का कुत्ता

Funny Story In Hindi: वैसे तो हमारा महल्ला मिडिल और लोअर मिडिल क्लास फैमिलियों का तरतीबबेतरतीब जमघट है, जहां छोटीछोटी जरूरतें एकदूसरे से छीनते हम एकदूसरे से मौकेबेमौके, बहानेशहाने लड़ते रहते हैं, पर हमारे इसी महल्ले में परम पूजनीय, अति सम्माननीय समाजसेवक चिट्टा टाइकून भी रहते हैं. उन की बड़ेबड़े लोगों से दोस्ती है. उन्होंने एक कुत्ता रखा हुआ है. बीच में वे कुछ दिनों के लिए बेकुत्ता भी हो गए थे, पर अपने गेट पर उन्होंने आम आदमियों को डराने के लिए बोर्ड फिर भी लगाए रखा ‘कुत्तों से सावधान’.

लगता है कि अब आदमी से आदमी का डर जा रहा है, इसलिए बिन कुत्तों के भी सज्जनों को कुत्ते से फेक सावधान कराना पड़ता है.

छोटे घरों में तब तक शांति नहीं होती, जब तक उन में दिन में 2-4 बार तूतूमैंमैं न हो ले और बड़े घर तब तक बड़े नहीं लगते, जब तक उन में से दिन में 5-7 बार राजयोगी कुत्ते का भूंकना न सुनाई दे. बड़े घरों के कुत्ते राजयोगी होते हैं, तो छोटे घरों का आदमी खाजयोगी.

कायदे से जिन ऊंचे लोगों की फैमिली में कुत्ता नहीं होता, उन्हें ऊंचे समाज में ऊंची फैमिली होने के बाद भी साधारण फैमिली ही माना जाता है. समाज में आम आदमियों के बीच बड़ा आदमी होने की पहचान कुत्ता दिलाता है. बड़े लोगों की शान कुत्ता होता है. बड़े घरों में घर वालों से महान कुत्ता होता है. बड़े लोगों का आखिरी अरमान कुत्ता होता है. बड़े घरों की मुसकान कुत्ता होता है.

तो साहब, अब हुआ यों कि मुझे भी इंस्टाग्राम हैंडल से ही पता चला कि हमारे महल्ले के सब से बड़े लोगों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है कि उन के परिवार में सभी का लाड़ला नहीं रहा. परिवारजनों का रोरो कर हुआ बुरा हाल.

इंस्टाग्राम हैंडल पर यह दुखद समाचार पढ़ कर मेरे हाथपैर फूल गए, दिल की नसें फटने लगीं. दिमाग तो मेरे पास बरसों से नहीं है, सो उस की नसें नहीं फटीं. बदन पर रोंगटे थे, सो वे भी खड़े हो गए.

बंधुओ, छोटा आदमी तो होता ही दुखों के पहाड़ के नीचे आने को है. वह पैदा ही दुखों के पहाड़ के नीचे जीने को होता है. दुखों के पहाड़ उस की जिंदगी होते हैं, उस की बंदगी होते हैं. बड़ी से बड़ी सरकारी जेसीबी उसे दुखों के पहाड़ के नीचे से नहीं निकाल सकती.

पर बड़े आदमियों पर दुख का पहाड़ तो छोडि़ए, उस की मुट्ठीभर मिट्टी भी गिर जाए, तो उन से ज्यादा मीडिया हायतोबा मचा देता है, इसलिए दुख के पहाड़ों से मेरा विनम्र निवेदन है कि उन्हें बड़े आदमियों पर टूटने से पहले सौ बार नहीं, हजार बार सोच लेना चाहिए, ताकि कल को दुख के पहाड़ को कोई दिक्कत न हो. बड़े आदमी रोने के लिए नहीं, बल्कि रुलाने के लिए पैदा होते हैं.

मैं ने आननफानन में इंस्टाग्राम हैंडल की खबर की हकीकत की जांचपरख के लिए अपने प्रिय पड़ोसी शर्माजी को फोन लगाया.

सोशल मीडिया के जमाने में खुशी की खबर की जांच की जानी चाहिए या नहीं, पर गम की खबर की हकीकत की जांच जरूर की जानी चाहिए. शर्माजी सोएसोए भी महल्ले के पलपल की खबर पर अपनी पैनी नजर रखते हैं.

‘‘और शर्माजी, क्या हाल हैं महल्ले के? महल्ले में सब खैरियत तो है न?’’

‘नहीं यार, सब से बुरी खबर यह है कि अपने महल्ले के सब से बड़े आदमी का डियरैस्ट कुत्ता स्वर्ग सिधार गया है,’ शर्माजी ने हद से ज्यादा इमोशनल हो कर बताया. इतने इमोशनल तो वे अपनी मां के मरने पर भी नहीं हुए थे.

‘‘तो?’’ मैं ने पूछा.

‘तो क्या? मैं तो उन के घर जा रहा हूं, इसी वक्त उन के कुत्ते के स्वर्गवास की प्रार्थना सभा में शरीक होने.’

‘‘पर कुत्ते को हुआ क्या था?’’ उस वक्त मैं पिछली दफा जो हमारे महल्ले में मेरे पड़ोस के कोई मरे थे, उन की मौत की वजह को जानने को ले कर उतना उतावला नहीं हुआ था, जितना इस कुत्ते की मौत को ले कर हुआ. कोई आसपड़ोस का आम आदमी थोड़े था भाई साहब ये.

‘होना क्या यार, खास सूत्रों से पता चला कि वह कई दिनों से बीमार चल रहा था. उन्होंने उस का इलाज कहांकहां नहीं करवाया. इलाज से ले कर झाड़फूंक तक सब करवाया, पर उन के हाथ कुछ न लगा. ऐसा इलाज अगर हमारे महल्ले के कोने वाले गणेशी प्रसाद का होता, तो वह जरूर बच जाता.’

‘‘तो अब आगे का क्या प्रोग्राम है?’’

‘कुत्ते की प्रार्थना सभा में भावभीनी श्रद्धांजलि दी जाएगी.’

‘‘मतलब?’’ मैं ने पूछा.

‘मतलब क्या… उन के पीआरओ ने सूचित किया है कि वे सिर्फ अपने बच्चों के बाप नहीं थे, एक डौग फादर भी थे. होगा वह महल्ले के लिए एक कुत्ता, पर उन के लिए परिवार का एक सदस्य था. वे उस से महल्ले वालों से भी ज्यादा प्यार करते थे. इस बात का अंदाजा

इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने इस कुत्ते को अपना सरनेम तक दे दिया था.’

‘‘मतलब?’’ मैं ने पूछा.

‘उन के लिए वह केवल कुत्ता नहीं था, बल्कि निष्क्रिय परिवार के मैंबरों के बीच सब से सक्रिय मैंबर था.’

‘‘तो?’’ मैं ने फिर पूछा.

‘मैं तो रोटी बीच में खानी छोड़ कर वहां पहुंच रहा हूं, सब से पहले. बड़े लोग हैं यार… नहीं जाऊंगा तो कल को बुरा नहीं, बहुत बुरा मान जाएंगे,’ शर्माजी ने कहा और फोन काट दिया.

बेशर्म कहीं के… पिछली दफा जब शर्माजी के पड़ोस में उन के खास दोस्त की मौत हुई थी, तो मेरे सौ बार कहने के बाद भी वे बुखार का बहाना बना कर श्मशान घाट जाने से कन्नी काट गए थे. Funny Story In Hindi

Love Story In Hindi: खूबसूरत को धोखा

Love Story In Hindi: पप्पू रसिया किस्म का था. वह शादीशुदा था, लेकिन पराई औरत उस की बहुत बड़ी कमजोरी थी. वह जहां भी कोई खूबसूरत औरत देखता, लार टपकाने लगता, उसे फांसने के लिए जाल फेंकने लगता. कई औरतें उस के जाल में फंस चुकी थीं. कलावती भी उन्हीं में से एक थी, जो बहुत खूबसूरत थी.

कलावती अपने पति शंकर के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही थी. उस की शादी को 2 साल हो चुके थे. शंकर उसे बहुत चाहता था. वह एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. इतनी पगार मिल जाती थी कि गुजारा ठीक से हो जाता था. कलावती घर में सिलाईबुनाई का काम करती थी और कुछ कमा भी लेती थी.

सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन एक दिन बड़ा अनर्थ हो गया. बरसात का मौसम था. शंकर काम पर जा रहा था. तभी रास्ते में गरजचमक के साथ बारिश होने लगी. शंकर साइकिल खड़ी कर के एक पेड़ के नीचे खड़ा हो गया. तभी आसमानी बिजली गिरी और वह बुरी तरह झुलस गया. उसे अस्पताल लाया गया.

सूचना मिलने पर कलावती भी रोतीबिलखती अस्पताल पहुंची. इलाज चल रहा था, लेकिन शंकर बुरी तरह जल गया था, इसलिए कुछ घंटों बाद उस की मौत हो गई.

कलावती की सारी खुशियां लुट गईं. शहर में उस का कोई सगासंबंधी नहीं था. गांव से मायके और ससुराल वाले आए. सब के सहयोग से गांव में शंकर का क्रियाकर्म हुआ.

ससुर ने तो कलावती को गांव में रहने के लिए कहा, लेकिन वह बोली, ‘‘कंपनी के मालिक ने नौकरी देने का भरोसा दिया है. जब नौकरी नहीं मिलेगी तो मैं गांव चली आऊंगी. अभी शहर जा कर मालिक से मिलती हूं.’’

‘‘ठीक है बहू. जो तुम्हें ठीक लगे, वह करो. हम सब तुम्हारे साथ हैं,’’

ससुर बोले.

कुछ दिन ससुराल और मायके में रह कर कलावती शहर चली आई.

कंपनी का मालिक अच्छा आदमी था. उस ने कलावती का खूब साथ दिया. शंकर का पूरा भुगतान कर दिया और कलावती को चायपानी पिलाने का काम दे दिया. इस से कलावती का गुजारा चलने लगा. समय निकाल कर वह सिलाईबुनाई भी कर लेती थी.

कलावती का कमरा सड़क के किनारे ही था. पप्पू उधर से ही आयाजाया करता था. वह कलावती की खूबसूरती पर फिदा था और जानपहचान बनाने की कोशिश कर रहा था.

एक दिन कलावती पैदल कंपनी से घर लौट रही थी. रास्ते में उसे पप्पू मिल गया. उस ने स्कूटर रोक कर कहा, ‘‘आइए, बैठिए. आप को घर छोड़ दूंगा. आप ने देखा होगा, मैं आप के घर से हो कर ही आताजाता हूं. आप के पति का देहांत हो गया. मुझे बहुत दुख हुआ. लेकिन चिंता न कीजिए, सब ठीक हो जाएगा. आइए, बैठिए.’’

‘‘नहीं भैया, मैं पैदल ही चली जाऊंगी. आप जाइए. आप ने इतना कह दिया, यही बहुत है,’’ कलावती बोली.

‘‘अरे, आप मुझे गलत आदमी न समझें. आप की कंपनी के पास ही मेरी लोहे की दुकान है. आप के पति मेरी दुकान में आते थे. वे बड़े भले आदमी थे. आइए, बैठिए,’’ पप्पू बोला.

पहले तो कलावती मना करती रही, लेकिन जब पप्पू ने बहुत अपनापन दिखाया, तो वह मान गई. पप्पू ने उसे घर के पास छोड़ दिया. जाते समय वह बोला, ‘‘कभी कोई जरूरत पड़े तो बताइएगा, मैं पूरी मदद करूंगा.’’

उस दिन के बाद पप्पू अकसर कलावती से मिलने लगा. वह खूब हमदर्दी दिखाया करता था. कलावती अब सहज ढंग से उस के स्कूटर पर बैठ जाया करती थी. हंसीमजाक की बातें भी होने लगी थीं.

समय बीतता गया. धीरेधीरे पप्पू और कलावती के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. कलावती उस से घुलमिल गई.

एक दिन कलावती के मकान मालिक परिवार सहित गांव चले गए थे. उन के परिवार में शादी थी. उस दिन कलावती ने पप्पू को घर में आ कर बैठने के लिए कह दिया. वह यही तो चाहता था.

कलावती ने चाय बनाई. दोनों ने चाय पी. प्यार भरी बातें होने लगीं. पप्पू बहकने लगा. कलावती भी खुद को संभाल नहीं पाई. वह भी फिसलती गई. वह उस की बांहों में समा गई.

उस रात पप्पू अपने मकसद में कामयाब हो गया. वह संतुष्ट हो कर देर रात अपने घर गया.

पप्पू ने कलावती को बताया था कि वह कुंआरा है. उस ने कलावती से शादी करने की बात कह दी थी. वह मौका देख कर कलावती के घर आता रहा. कलावती भी उसे खूब चाहने लगी थी. वह दोबारा शादी करने का सपना देख रही थी, लेकिन उसे पता नहीं था कि जिस शख्स पर उस ने भरोसा किया है, वह मक्कार है.

पप्पू का जब कलावती से जी भर गया तो वह धीरेधीरे उस से दूर होने लगा. जब मिलता और कलावती शादी के लिए कहती तो टाल देता. एक दिन तो दोनों के बीच शादी को ले कर झगड़ा हो गया. तब से पप्पू बहुत कम उस से मिलनेजुलने लगा.

बाद में कलावती को कंपनी के किसी आदमी ने बताया कि पप्पू तो शादीशुदा है और काफी बिगड़ा हुआ आदमी है. शराब पीता है, सट्टाजुआ खेलता है और औरतों की जिंदगी बरबाद करता है.

कलावती यह जान कर बहुत पछताई, बहुत रोई. अब वह पप्पू को सबक सिखाना चाहती थी. उस ने थाने में उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी.

पप्पू को जब यह पता चला तो उस ने कलावती को डरायाधमकाया, लेकिन वह डरने वाली न थी. इस से डर कर पप्पू फरारी काटने लगा. लेकिन कब तक बचता? एक दिन मुखबिर ने थानेदार को उस की सूचना दी.

पुलिस ने पप्पू को दबोच लिया. वह अकड़ा तो हवालात में बंद कर के उस की जम कर कुटाई की गई. डंडे पड़े तो उस का सारा भूत उतर गया. अगले दिन उसे कोर्ट में पेश कर जेल भिजवा दिया गया.

कलावती को बड़ा सबक मिला. वह बहुत बड़ा धोखा खा चुकी थी. दोबारा उस ने ऐसी गलती कभी नहीं की. वह चुपचाप अपना काम कर रही थी.

मालिक ने उस का पूरा साथ दिया, क्योंकि वे शंकर को बेटे जैसा मानते थे. मालकिन भी भली थीं. उन्होंने अपने घर में ही उसे एक कमरा दे दिया. वह मालकिन का घरेलू काम भी कर दिया करती थी. Love Story In Hindi

Story In Hindi: चंगाई सभा

Story In Hindi, लेखक – आर. सेलट

पूरन पाल चुपचाप अपने सरकारी क्वार्टर के पीछे वाले दरवाजे की चौखट पर बैठा गहरी चिंता में डूबा हुआ था. उस के 3 बच्चे थे, 2 लड़कियां, जो नर्स बनने वाली थीं और एक लड़का.

पूरन पाल का एकलौता लड़का 14 साल का था, जो गूंगा ही पैदा हुआ था. पूरन पाल सोचता था, लड़कियों की शादी हो जाए और लड़के का बंदोबस्त हो जाए, तो उस की नैया भी पार लग जाए.

तकरीबन 2 महीने पहले पूरन पाल को पता चला कि शहर में विदेश से एक पादरी साहब आ कर ‘चंगाई सभा’ करने वाले हैं. चर्च के पादरी ने भी सब को इस बारे में बता दिया था. शहर में भी पोस्टर लगे थे.

फैक्टरी की दीवार पर भी एक पोस्टर चिपका था. हैरी ने बताया था, ‘‘बहुत बड़े पादरी आ रहे हैं.’’

पूरन पाल सोच रहा था कि उस के पिताजी भी तो अंगरेजों के समय में चर्च में बैरा थे. पर पहले पादरी छोटेबड़े नहीं होते थे. हां, अब समय भी तो बदल गया है. अब ऐरू को देखो, वह लालू चाचा का लड़का था और लालू चाचा तो उस के पिताजी के साथ चर्च में बैरा थे. पूरन पाल के पिताजी और लालू चाचा आपस में अच्छे दोस्त थे. दोनों मिशन के अनाथ आश्रम में पले थे.

ऐरू ने पूरन पाल के सामने ही गिरजे की किताबें बेचीं. फिर पादरी बनने की ट्रेनिंग ले ली और विदेश हो आया. वह बिशप भी बन गया है.

‘चंट था ससुरा, पर हम रहे भोंदू के भोंदू,’ सोचते हुए पूरन ने सिर झटक दिया, ‘अब तो ऐरू की बात ही और है. बंगला है, 2 कारें हैं, पत्नी शहर के बड़े अंगरेजी स्कूल में प्रिंसिपल है. लोग उसे रेवरंड ऐरन कहते हैं. कभी साथ हौकी खेलता था. अब अकेले में मिलता है, तो दुआसलाम कर लेता है, नहीं तो वह भी नहीं. कलक्टर, पुलिस कप्तान के साथ उठताबैठता है, उस के बच्चे भी तो मिशन स्कूल में ही पढ़ते हैं.’

बहरहाल, ‘चंगाई सभा’ की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. सुनने में आया था कि 4-5 लाख रुपए भेजे हैं, विदेशी पादरी ने इंतजाम के लिए. गिरजे का सचिव डगलस बता रहा था कि विदेशी पादरी बहुत पहुंचे हुए हैं. वह सब को चंगा कर देते हैं. लंगड़े दौड़ने लगते हैं, गूंगे बोलने लगते हैं और बहरे सुनने लगते हैं.

डगलस ने कहा था, ‘‘तेरे लड़के की जीभ से ‘शैतानी बंधन’ भी खुल जाएगा. बस, यकीन पक्का होना चाहिए.’’

पूरन पाल बहुत खुश था. उसे ऐसा लग रहा था, मानो सारा तामझाम उसी के लिए हो रहा है. गिरजे के मैदान में हजारों लोगों के बैठने का इंतजाम किया गया था. दर्जनों लाउडस्पीकर और सैकड़ों बल्ब लगे थे. पूरन पाल को एक रात सपना भी आया कि उस का लड़का गोलू बोल रहा है.

आखिर वह दिन भी आ गया, जब ‘चंगाई सभा’ होनी थी. पूरन पाल सुबह से ही शाम होने का इंतजार करने लगा. उस दिन इतवार था, सो फैक्टरी तो जाना नहीं था. शाम होते ही वह गोलू को तैयार कर साइकिल पर बैठा कर ले गया.

पूरा मैदान रंगबिरंगी रोशनियों से नहा रहा था. माइक पर भाषण चालू था. विदेशी पादरी के आने से पहले, जिस को जितना मौका मिला, मंच पर आ कर बोल लिया. हजारों लोग बैठे थे. कुछ बाहर से भी आए थे.

हैरिसन भी आया था, चमकीली कमीज और टाई लगा कर. पूरन पाल को हंसी आ गई. हैरिसन फैक्टरी में कुली था. घर में भले खाने को न हो, पर बड़े दिन पर रम की 3-4 बोतलें जरूर लाता था. तभी लोगों में हलचल होने लगी.

3-4 कारों का काफिला मंच के सामने रुका. गोरे विदेशी पादरी स्टेज पर चढ़ गए. बिशप ऐरू भी साथ में था.

रमेश चंद्र नामक एक नेता, जो पहले ब्याज पर पैसा देता था, वह भी वहां आया हुआ था. पूरन ने सोचा कि यह यहां क्या कर रहा है? अब भोले पूरन पाल को क्या समझ कि ऐसे ‘वोट बैंक’ बारबार तो नहीं मिलते.

एकदम सन्नाटा छा गया था. आधा घंटा ‘दुआ’ हुई. फिर चंदा इकट्ठा किया गया. कुछ लोग स्टेज पर जा कर लिफाफे दे रहे थे, कुछ नीचे घुमाए जा रहे दान के डब्बे में पैसे डाल रहे थे.

जब चंदे का डब्बा पूरन पाल के सामने आया तो उस ने 10 रुपए का सिक्का पेटी में डाल दिया. नीचे
नोट थे, इसलिए सिक्के की आवाज भी नहीं आई.

पीतल की नक्काशी वाला बड़ा सुंदर डब्बा था, जिस पर बाइबिल की आयत लिखी थी, ‘जब तुम दाएं हाथ से दान करो तो तुम्हारे बाएं हाथ को भी पता न चले’.

फिर ऐलान हुआ, ‘जो लोग चंगाई चाहते हैं, सामने आ जाएं.’

पूरन पाल भी गोलू का हाथ पकड़ कर स्टेज के सामने जा पहुंचा. चंगाई शुरू हुई तो चाय वाले एलबर्ट के लंगड़े बच्चे का हाथ पकड़ कर धकियाते हुए दौड़ाया गया. अगला नंबर गोलू का था. पूरन उसे ले कर स्टेज पर पहुंचा.

विदेशी पादरी अंगरेजी में बोलता था और देशी पादरी हिंदी में उस की बात बताता था. बिशप ऐरू और नेता रमेश चंद्र अपनी बातचीत में मशगूल थे. शायद ईसाई कब्रिस्तान के पीछे पड़ी लंबीचौड़ी जमीन की बात कर रहे थे.

विदेशी पादरी ने गोलू के सिर पर हाथ रख कर ‘दुष्ट आत्माओं’ को भगाने की दुआ की. लोग हैरानी से देख रहे थे.

पादरी ने पूछा, ‘‘लड़का बचपन से गूंगा है?’’

पूरन पाल ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. फिर पादरी धीरे से कुछ बुदबुदाने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘बेटा, अब बोलो, ‘जीसस लवस यू’…’’

गोलू के गले से वही पुरानी घुटी सी आवाज निकली, ‘‘इसस अम ऊ.’’

विदेशी पादरी जोर से चिल्लाया, ‘‘आलेलुइया… थैंक्स द लार्ड.’’

मंच पर बैठे लोग भी चिल्लाने लगे. उन की देखादेखी नीचे बैठे और खड़े लोग भी चिल्लाने लगे.

चर्च के पादरी ने कहा, ‘‘अब शैतानी बंधन जीभ से टूट चुका है. अब यह लड़का जल्दी ही बोलने लगेगा. बस, एक हफ्ते के अभ्यास की जरूरत है.’’

कुछ लोग अब भी चिल्ला रहे थे. पादरी साहब ने पूरन पाल को धीरे से धकियाते हुए स्टेज के दूसरी तरफ से उतरने का इशारा किया.

एक घंटे बाद ‘चंगाई सभा’ खत्म हुई. इतवार को गिरजे में पादरी ने ‘चंगाई सभा’ की बातें बढ़ाचढ़ा कर बताई.

पूरन पाल के लड़के और दूसरे लोगों के ‘चंगे’ होने की बातें बताईं.

जो लोग ‘चंगाई सभा’ में नहीं आ पाए थे, उन्हें इस बात का दुख था. गिरजे के सचिव डगलस ने नया स्कूटर खरीद लिया था.

2 महीने बाद भी पूरन पाल को थोड़ी उम्मीद थी कि शायद गोलू ठीक हो जाए. किंतु उस की आवाज में सुधार नहीं हुआ था. शाम को फैक्टरी से लौटते वक्त एलबर्ट चाय वाले के लड़के को देखा, जो ‘चंगाई सभा’ में ‘चंगा’ हो गया था, वह सड़क के किनारेकिनारे पहले की तरह बैसाखी के सहारे लंगड़ाते हुए चला आ रहा था. पूरन का दिल बैठ सा गया था.

अब वह घर के पिछवाड़े बैठा बेटे के बारे में सोच रहा था. सोचता था, गोलू ठीकठाक कहीं लग जाए,
तो बुढ़ापे में सहारा हो जाए या गोलू को ही सहारा…?

गरमियों के दिनों में शाम को पीछे बैठना पूरन को बहुत सुहाता था, ठंडीठंडी हवा उसे अच्छी लगती थी.
पर सच ही है. दिल अच्छा न हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तभी पीछे के कमरे में लगा कलैंडर हवा में फड़फड़ाया.

पूरन पाल ने अलसाई नजरों से देखा, कलैंडर पर हल चला रहे किसान की तसवीर थी और नीचे बाइबिल की आयत याकुब 2.26 लिखी थी, ‘निदान, जैसे देह ‘आत्मा’ के बिना मरी हुई है, वैसे ही विश्वास भी कर्म के बिना मरा हुआ है’.

पूरन पाल को मानो निदान मिल गया. सुबह गोलू को तैयार कर साइकिल पर बैठा कर ले जाने लगा तो पत्नी सारा ने पूछा, ‘‘कहां…?’’

‘‘गूंगेबहरे बच्चों के सरकारी स्कूल…’’ पूरन पाल ने जवाब दिया. Story In Hindi

Long Hindi Story: सौदा – पहला भाग

Long Hindi Story, लेखक – हरे राम मिश्र

उस दिन बड़े विधवा दुलारी मनोहर लाल, जिन्हें उन की जाति के लोग ‘भैया’ और गांवमहल्ले के लोग ‘नेताजी कहते थे, की हवेली के गेट पर आंखों में आंसू भरे खड़ी थी. उस के गोरे बेदाग चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी. वह बहुत बेचैन थी. उस के चेहरे से यह साफ दिखता था कि कुछ ऐसा जरूर हुआ है, जिस के लिए वह कतई तैयार नहीं थी.

और सचमुच, यह बड़ी चिंता की ही बात थी कि दुलारी की 17 साल की एकलौती बेटी रुपाली, जिसे वह प्यार से ‘रूपा’ बुलाती थी, जो घर की बकरियों के लिए हर रोज बिना नागा घास काटने गांव के बाहर खेतों की तरफ जाती थी, कल दोपहर घर से जाने के बाद वापस नहीं लौटी थी.

दुलारी की चिंता का एक ही केंद्र था कि आखिर उस की बेटी रुपाली कहां चली गई? वह घर क्यों नहीं लौटी? क्या गलत हो गया उस के साथ? आखिर वह कहां होगी अभी? किस हालत में होगी? ऐसे सवाल उस के जेहन में लगातार उभर रहे थे, उसे बहुत ज्यादा परेशान किए हुए थे.

एकलौती बेटी रूपा के साथ किसी अनहोनी से उपजी इस घबराहट में दुलारी को बीती शाम से ही कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. ज्योंज्यों समय बढ़ता जा रहा था, उस की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. आखिर एक विधवा, जिस के पति ने उसे सिर्फ इसलिए छोड़ दिया हो कि उसे पहली औलाद बेटी हो गई, अपनी एकमात्र धरोहर के पास नहीं रहने पर परेशान क्यों नहीं हो?

हालांकि, छोड़ने के कुछ ही महीने बाद पति रामलाल जहरीली शराब पीने से मर गया. इस के बाद दुलारी अपनी बेटी को ले कर मायके आ गई, क्योंकि इस विधवा को ससुराल में कोई भी रहने देने के लिए तैयार नहीं था.

आम दलित की तरह रामलाल के पास भी एक ?ाग्गी से ज्यादा कोई जायदाद नहीं थी, जो जंगल महकमे की जमीन पर कब्जा कर के बनाई गई थी. इस के बाद दुलारी फिर कभी ससुराल वापस नहीं गई. इस घटना को 17 साल हो गए थे.

दुलारी धीरे बोलने वाली 35 साल की औरत थी. वह एक ऐसी विधवा थी जो भले ही मायके में रहती थी, लेकिन गांव में भी किसी से कोई खास मतलब नहीं था. अपने मांबाप की एकलौती औलाद उन के मरने के बाद उन्ही के घर में रहने लगी. उसी झोपड़ीनुमा घर में, जहां घर में कुछ बकरियां पाली गई थीं और जिन की वह देखभाल करती थी. यही उस की धरोहर थी.

हालांकि, अब दुलारी के पास सिर्फ एक कमरे का सरकार का दिया हुआ पक्का मकान था. यह भी पाने के लिए उसे अपनी जाति के सरपंच कल्लू, कई मालाएं पहनने वाले पंचायत सैक्रेटरी त्रिभुवन, पंचायत मित्र नोखे और उस के 2 मुंहबोले समर्थकों का 4 महीने तक बिस्तर गरम करना पड़ा, क्योंकि वह मकान पाने के लिए तयशुदा 20,000 रुपए की घूस देने में नाकाम थी.

लेकिन इस सब की भनक दुलारी ने अपनी बेटी को कभी नहीं लगने दी.

बेटी के आलावा घर में पाली गईं यही 4 बकरियां उस की पूंजी थीं. मांबेटी दोनों इन्हीं 4 बकरियों से अपना गुजारा करती थीं. इन से ही सुबहशाम इन का चूल्हा जलता था.

दुलारी भले ही 35 साल की थी, लेकिन उस की सादगी भरी खूबसूरती किसी को भी उस का दीवाना बना सकती थी. गांव के दलितों में यह सोच थी कि दुलारी जरूर किसी ऊंची जाति का बीज है, क्योंकि उन की जाति में औरतें इतनी खूबसूरत हो ही नहीं सकतीं.

दुलारी के कपड़े भले ही बहुत साफ नहीं होते थे, लेकिन उन में लिपटी हुई छरहरे बदन वाली दुलारी किसी का भी मन मोह लेने के काबिल थी. गोरा बदन और गोल चेहरे पर कंटीली उभरी आंखें उसे अप्सरा जैसी बना देती थीं.

दुलारी की बेटी रुपाली, जो अभी जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी, बस एकदम दुलारी ही लगती थी.

हवेली के मालिक मनोहर लाल दुलारी की जाति के बड़े नेता थे. वे भले ही 50 साल पार हो गए थे, लेकिन खिजाब से बाल रंगते थे और चेहरे की मालिश भी किसी विदेशी लिक्विड से बिना नागा करवाते थे. हर वक्त खद्दर का काफी भड़कीला कुरता पहनते थे. चप्पल भी ब्रिटेन की बनी पहनते थे और कौम की गरीबी पर रोज आंसू बहाते थे.

इस के साथ मनोहर लाल सफेद गमछा अपने गले में लपेटे रहते थे. मूंछें भी तावदार थीं, लेकिन दाढ़ी क्लीन शेव थी. किसी राजनीतिक सवाल पर कभी कुछ खुल कर नहीं बोलते थे. हर बात में गहरा राज छिपा रहता था, जिसे सिर्फ उन के कुछ खास शागिर्द ही समझ पाते थे.

मनोहर लाल की हवेली थोड़ी बड़ी थी, जिस के एक हिस्से को उन की जाति के ही लोगों ने कभी चंदा इकट्ठा कर के इसलिए बनवाया था, ताकि इलाके में उन के विपक्ष में सियासत कर रहा ऊंची जात का ‘ठाकुर’ ऐंठ कर नहीं चल सके और उस के सामने चुनाव में मनोहर लाल को किसी हीनभावना का शिकार नहीं होना पड़े.

जवानी के दिनों में मनोहर लाल जमींदार ठाकुरों को सबक सिखाने से ले कर, ऊंची जाति की लड़कियों को केंद्रित कर के ब्राह्मणों को गालियां देते थे, गंदे और उकसावे भरे नारे लगाते थे, जिस से इलाके के पीडि़त दलित नौजवान उन की तरफ आकर्षित हों.

इसी के बलबूते वे 2 बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ गए और इतने वोट हासिल कर लिए कि विपक्षी राजनीति में उन्हें ‘सीरियसली’ लिया जाने लगा था. कुलमिला कर वे विधानसभा में अपनी जाति का एक बड़ा चेहरा हो चुके थे.

यही नहीं, मनोहर लाल पिछली बार ही सदन पहुंचतेपहुंचते रह गए थे. क्षेत्र में उन का दबदबा था. इस चुनाव में उन के हारने के पीछे यह दलील थी कि विधानसभा के पिछड़ों ने दलित उम्मीदवार की जगह क्षत्रिय जाति के नेता को इसलिए वोट दे दिए, ताकि ये दलित लोग मजबूत न होने पाएं, वरना खेतों में काम को मजदूर ही नहीं मिलेंगे. दलित ऐक्ट में जेल अंदर जाओगे, वह अलग समस्या आएगी, इसलिए मनोहर लाल चुनाव हार गए.

हालांकि, इस हार ने मनोहर लाल को यह सीख दी कि किसी जाति से खुला विरोध वोट का नुकसान करता है, इसलिए अब वे क्षेत्र के क्षत्रियों, ब्राह्मणों, दबंग पिछड़ों के खिलाफ ज्यादा आक्रामक नहीं रहते थे और हर कदम संभल कर उठाते थे, ताकि सामाजिक दूरी को वह पाट सकें और बाकी जातियों के वोट भी पा सकें.

जब मनोहर लाल का काम कौम से मिलने वाले चंदे से नहीं चला तो वे बालू खनन में ठेकेदारी भी करने लगे. अब यह कारोबार बड़ा हो गया था. वे खुद को एक ‘इलीट क्लास दलित’ मानते थे. उन्होंने अपनी हवेली के एक हाल में सभी दलित नेताओं की मढ़ी हुई तसवीरें लगवा रखी थीं. लेकिन उस में सिर्फ इलाके के छोटे फिगर वाले दलित नेताओं के साथ मीटिंग की जाती थी. बाकी के लिए एक बैठका रिजर्व्ड था जिस में बुद्ध, कृष्ण और राम, महावीर और नानक देव के बड़े फोटो लगे हुए थे.

यहीं नहीं, मनोहर लाल खुद को पुराने समय के किसी जमींदार के वंश से जोड़ते थे. हालांकि इतिहास उन के किसी दावे की कभी तसदीक नहीं करता था. लेकिन इस बात से वे क्षेत्र के दलितों में काफी मजबूती से खुद की पैठ बना चुके थे. इस पैठ के पीछे एक ही लौजिक था कि उन के पास दलितों के सियासी नेतृत्व की ‘दैवीय’ प्रेरणा है और दलितों को भी उन्हें ही अपना नेता मानना चाहिए.

खैर, दुलारी हवेली के गेट पर 10 मिनट से खड़ी हुई आंसू बहा रहा थी. हवेली के मुख्य गेट पर बंदूकधारी सिक्योरिटी गार्ड, जो कुरसी पर बैठा हुआ ऊंघ रहा था, सहसा दुलारी को गेट पर देख कर संभला और जोर से टोका.

‘‘क्या है? कहां से आई हो? क्या काम है?’’ सिक्योरिटी गार्ड ने एकसाथ कई सवाल दागे.

घबराहट और आंसू भरी आंखों से दुलारी ने गार्ड को देखा, लेकिन कुछ खास बोल नहीं पाई.

सिक्योरिटी गार्ड ने फिर से पूछा कि कौन है और किस से मिलना है?

दुलारी ने रोते हुए कुछ बोलना शुरू किया कि उस ?ाबरीली मूंछ वाले सिक्योरिटी गार्ड ने कहा, ‘‘10 बजे आओ, अभी नेताजी सो रहे हैं.’’

दुलारी के पास तब तक के लिए समय नहीं था. वह बहुत परेशान थी. लेकिन, वह कुछ नहीं बोली, क्योंकि सिक्योरिटी गार्ड की बड़ी मूंछें देख कर ही वह सहम गई. हवेली के गेट के बाहर ही पास में रखे गए एक सीमेंट के बैंच पर बैठ गई और 10 बजने का इंतजार करने लगी.

तकरीबन 2 घंटे बाद जब सूरज कुछ चढ़ आया तो कुछ लोग हवेली के भीतर मनोहर लाल से मिलने आए. उन की चारपहिया गाड़ी सीधे गेट के अंदर खड़ी हुई. आधे घंटे बाद गाड़ी वापस निकली, फिर कुछ दूसरे मुलाकाती भी आनेजाने लगे.

हवेली पर मिलने वालों की कुछ भीड़ हुई और दुलारी ने फिर हिम्मत बटोर कर सिक्योरिटी गार्ड से कहा कि नेताजी से मिलवा दो.

सिक्योरिटी गार्ड ने भी काफी अनमने भाव से इंटरकौम पर किसी से बात की और थोड़ी देर में दुलारी के लिए अंदर जाने का बुलावा आ गया.

दुलारी हवेली के अहाते से होते हुए बरामदे में पहुंची और रोते हुए जमीन पर बैठ गई.

पास खड़े एक लड़के ने दुलारी से कुछ पूछना शुरू किया और पौकेट डायरी में सब नोट किया.

थोड़ी देर में दुलारी को मनोहर लाल के कमरे में भेजा गया, जहां वे एक महंगे सोफे पर पाजामा और बनियान पहने बैठे हुए थे.

‘‘हां, बोलो… क्या हुआ?’’ मनोहर लाल ने पूछा.

दुलारी ने रोते हुए अपनी बेटी के वापस नहीं लौटने का दर्द मनोहर लाल से बयां किया.

‘‘थाने गई? दारोगा से मिली? बताया उस को?’’ मनोहर लाल ने पूछा.

‘‘हम किसी को नहीं जानते. हम तो आप को ही जानते हैं…’’ और दुलारी फिर जोरजोर से रोने लगी.

‘‘रुको… चुप हो जाओ… देखता हूं…’’ मनोहर लाल ने समझाते हुए कहा.

मनोहर लाल ने तुरंत अपने एक शागिर्द को इशारा किया कि दारोगा को फोन करो और इन की मदद के
लिए कहो.

इस के बाद मनोहर लाल ने दुलारी से कहा कि थाने में जा कर रिपोर्ट लिखवा दो. एक फोटो लेती जाना.

रिपोर्ट लिख जाएगी. इस के बाद मनोहर लाल के उस शागिर्द ने थाने में फोन पर थानेदार से बात की.

दुलारी को यह पता ही नहीं था कि उस का थाना कौन सा है, क्योंकि उस का थाने से कोई वास्ता कभी पड़ा ही नहीं था. मनोहर लाल के शागिर्द ने दुलारी को उस के थाने के बारे में बताया और तुरंत जा कर थानेदार से मिलने को कहा.

थकीहारी दुलारी कांपते पैरों के साथ तेजी से घर लौट आई और बेटी की एक फोटो खोज कर एक पौलीथिन में लपेट कर ब्लाउज के भीतर रख लिया. घर में उस के पास चांदी की एक अंगूठी थी, जिसे उस ने पास रख लिया, ताकि इसे गिरवी रख कर कुछ पैसा उधार ले पाए. घर में कुछ पैसे थे, जल्दी से उन्हें भी उठाया और बाजार के रास्ते थाने जाने वाले टैंपो पर सवार हो गई.

दुलारी सबकुछ बहुत जल्दीजल्दी करना चाहती थी, लेकिन जैसे उस की देह में कोई ताकत ही नहीं बची थी. यह सब करते हुए दोपहर का समय हो गया.

दुलारी को पहली बार पुलिस थाने में घुसते हुए बड़ी घबराहट हो रही थी, क्योंकि उस का वास्ता इस सब से कभी पड़ा नहीं था. वह सीधीसादी औरत थी जो किसी तरह अपनी जिंदगी बसर कर रही थी. लेकिन, फिर दुलारी किसी तरह थाने के भीतर हिम्मत कर के दाखिल हुई.

अंदर घुसते ही गेट पर मिले एक सिपाही से बेटी की गुमशुदगी के बारे में जैसे ही रोते हुए बोलना शुरू किया, तो सिपाही ने थानेदार के कमरे की तरफ इशारा कर के वहां जाने को कहा.

दुलारी ने हिम्मत कर के थानेदार के कमरे के दरवाजे पर लगा परदा उठाया. कुरसी पर बैठा थानेदार फोन पर किसी ठेकेदार को तय रकम से कम भेजने के लिए गंदीगंदी गालियां दे रहा था.

खैर, थोड़ी देर के इंतजार के बाद किसी तरह से दुलारी ने हिम्मत बटोरी और रोते हुए दरवाजे से ही कहा, ‘‘साहब, बिटिया कल से घर नहीं आई है. बिटिया तो गायब हो गई साहब…’’

‘‘क्यों? कौन हो तुम? क्या नाम है?’’ थानेदार ने कड़क कर पूछा.

दुलारी सहम गई.

‘‘कहां गई बिटिया तुम्हारी? क्या नाम है? कहां से आई हो?’’ थानेदार ने कई सवाल एकसाथ कर डाले.

‘‘रूपा…’’ दुलारी ने रोते हुए बताया, साथ ही नेताजी के बारे में भी बोला कि मनोहर नेताजी.

‘‘उफ… ठीक है… फोटो लाओ,’’ थानेदार ने अंदर बुलाया.

थानेदार ने फोटो के पीछे ही नाम, पता और उम्र सब पूछ कर लिखा. फिर थाने के मुंशी को बुलाया और फोटो दे कर गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखने के लिए कहा.

इस के बाद थानेदार ने दुलारी से कहा, ‘‘बाहर बैठो… अभी ये एक कागज देंगे’’

एक घंटे के बाद थाने के मुंशी किशोरी लाल ने, जो जाति से पिछड़े थे, खुद को कृष्ण भक्त बताते थे, ने दुलारी को अपने कमरे में बुलाया और लड़की की गुमशुदगी बाबत पूछताछ कर के एक रजिस्टर में नोट किया, फिर एक कागज में ब्योरा लिख कर एक सिपाही को, जो शायद उसी के गांव का था, दे दिया.

मुंशी किशोरी लाल बारबार रूपा के किसी लड़के के साथ जाने, प्रेम प्रसंग में भाग जाने के बाबत जानकारी चाहते थे. उन का कहना था कि आजकल की लड़कियां टीवी देख कर उड़ने लगती हैं और मांबाप थाने में आ कर ‘ड्रामा’ करते हैं.

मुंशी ने आगे कहा कि लड़की को खोजने में जो खर्च आएगा, उस का खर्चापानी दो. फिर उस ने दुलारी के पास जो चांदी की एक अंगूठी थी, ले कर अपनी जेब में रख लिया. इस समय दुलारी को सिर्फ बेटी चाहिए, इस के अलावा वह कुछ नहीं सोच रही थी.

थाने से बाहर निकल कर दुलारी तेज कदमों से चल कर घर पहुंची. शाम के 5 बज चुके थे. अनहोनी के डर में उस के हाथपैर अब भी बुरी तरह से कांप रहे थे, जैसे देह में खून ही नहीं हो.

घर में बंधी बकरियां कल से काफी भूखी थीं, जिन्हें दानापानी देना था. चिंता और हताशा में उस की भूखप्यास सब खत्म हो चुकी थी, लेकिन बकरियों को तो दानापानी देना ही होगा, क्योंकि उन्हें जिंदा रखना है.

किसी तरह घर पहुंच कर दुलारी ने एक लोटा पानी अपनी हलक में उतारा. इस के बाद उस ने बकरियों को दानापानी दिया और फिर गांव के नए बने सरपंच से मिलने उस के घर गई, जिसे वह एकदम पसंद नहीं करती थी, क्योंकि उस की निगाह में वह सिर्फ औरतों का भूखा ऐसा ऐयाश था, जिस ने दुलारी को ‘धंधे वाली’ के हालात में पहुंचाने की पूरी कोशिश की थी, क्योंकि उस ने कभी उस से 3,000 रुपए का उधार लिया था और नहीं दे पाने की हालत में वह उस के 2 जवान बकरे घर से ही जबरदस्ती खोल कर ले गया था.

हालांकि, सरपंच से दुलारी की मुलाकात नहीं हुई और वह फिर से घर लौट आई. काफी शाम हो चुकी थी. उस ने पतीले में थोड़ा चावल डाला और नमकप्याज के साथ पका कर किसी तरह उसे हलक से नीचे डाला. दालसब्जी कुछ नहीं था.

दुलारी की रात किसी तरह कटी. पूरी रात वह जागती रही. लेकिन, बिटिया का अभी कोई सुराग नहीं मिला था.

दूसरे दिन अलसुबह ही दुलारी फिर से मनोहर लाल के घर पहुंच गई थी. इस बार वह अपने साथ गांव के एक लड़के को ले कर गई थी. हालांकि, बदनामी के डर से उस ने रास्ते में बिटिया के गायब होने के बारे में कोई चर्चा नहीं की, लेकिन गांव में यह बात रायते की तरह फैनल चुकी थी, क्योंकि थाने से सरपंच को फोन पर मामले की जानकारी दी गई थी, ताकि लापता रूपा को खोजने में मदद मिल सके.

मनोहर लाल के यहां दुलारी की जाति के ही एक और आदमी, जो बगल के गांव का छुटभैया नेता था, से उस की मुलाकात हुई. वह मनोहर लाल से अपने गांव के वोट उन के लिए फिक्स करवाने के एवज में सौदा करने आया था और मछली बाजार के ग्राहक की तरह उन से ‘मोलतोल’ कर रहा था. उस नेता के बारे में दुलारी अच्छे से जानती थी कि उस का धंधापानी क्या है और कैसे वह नकली दारू का सप्लायर है, क्योंकि उसी की दी हुई दारू पीने से उस के गांव में कुछ लोगों की मौत हुई थी.

‘‘क्या हुआ…’’ देखते ही मनोहर लाल ने पूछा, ‘‘मिली बेटी आप की…’’

‘‘नहीं मिली…’’ और दुलारी रोने लगी.

‘‘थाने गई थी…’’ पूछने पर दुलारी ने हां में सिर हिलाया.

फिर मनोहर लाल ने थानेदार को अपने एक शागिर्द से फोन करवाया और दुलारी को बताया गया कि बेटी को पुलिस खोज रही है. मिलने पर सूचित करेगी. परेशान नहीं हो.

थकहार कर दुलारी फिर घर लौट आई. अब तक दोपहर का सूरज चढ़ आया था.

2 दिन बीत गए. रोतेरोते दुलारी के आंसू खत्म हो गए. दुलारी ने इन दिनों ठीक से खानापीना भी नहीं किया था और भागदौड़ में उसे तेज बुखार अलग से हो गया.

तीसरे दिन, दोपहर का समय था. दुलारी घर के भीतर अपनी खटिया पर चिंतित बैठी थी. गांव के चौकीदार लुल्लन ने आ कर दुलारी को बताया कि उस की बेटी पड़ोस के जिले के एक अस्पताल में भरती है. पुलिस जा रही है बयान लेने. तुम भी अस्पताल पहुंचो. दारोगाजी ने बोला है.

चौकीदार ने आगे कहा कि तुम्हारी बेटी नशे की हालत में तहसील के बसस्टैंड पर लावारिस मिली है, जिसे कुछ लोगों ने स्थानीय चौकी के सुपुर्द कर दिया था. पुलिस वालों ने उसे अस्पताल में भरती करवा दिया है. जाओ मिल लो.

दुलारी की आंखों में चमक आ गई. उस ने किसी तरह गांव के एक आदमी से कुछ पैसे उधार लिए और अस्पताल साथ चलने की चिरौरी की. वह अस्पताल पहुंची, तो बेटी उसे अकेले एक बिस्तर पर पड़ी मिली, जिसे कुछ पुलिस वाले और डाक्टर घेरे हुए थे और कुछ लिखापढ़ी कर रहे थे. काफी देर बाद दुलारी को अपनी बेटी रूपा से बात करने का मौका मिल पाया.

दुलारी ने देखते ही अपनी बेटी को प्यार से भींच लिया, माथा चूमा, गले लगाया. उस का हीरा उसे मिल गया था. उस ने बेतहाशा उसे चूमा, दुलारा और प्यार किया. बेटी भी मां को देख कर रोने लगी. आखिर वही तो उस का सबकुछ थी.

रूपा ने देर शाम को अपनी मां से अपने साथ रेप और मारपीट की दर्दनाक घटना बताई, जिसे गांव के बगल के यादव टोला के लड़कों ने अंजाम दिया था. दोनों लड़के गांव की ताकतवर और बहुसंख्यक पिछड़ी बिरादरी से थे, लेकिन उन की जातियां अलगअलग थीं. खैर, पुलिस ने रूपा का बयान दर्ज किया और नियमानुसार मैडिकल भी हुआ. एफआईआर भी दर्ज हुई.

दुलारी अगले 2 दिन रूपा के साथ अस्पताल और थानेअदालत के चक्कर लगाती रही.

चूंकि मनोहर लाल इस मामले में थोड़ा लगे हुए थे, इसलिए पुलिस ने जांच शुरू की. पहले आरोपी सुमेश के नाई समुदाय के लोग सामने आ गए और आरोपी के घर वाले रूपा को ही सैक्स की भूखी लड़की साबित करने लगे. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह आरोपी लड़का टोले के पूर्व पंचायत सदस्य का बेटा और वर्तमान विधायक ‘मुंशीजी’ का खास आदमी था. दूसरा आरोपी युवक क्षत्रिय समुदाय का रितेश था, जिस के यहां यह सब करना ‘मर्दानगी’ की पहचान थी. इस समुदाय में अपराध पर बहस न हो कर कौन उस लड़की की मदद कर रहा है, उस पर चर्चा हो रही थी. सब जल्द ही पता चल गया. नाम मनोहर लाल का आया. बात मनोहर लाल तक, जो कुछ समय पहले ही में दिल्ली से एक बिजनेस डील कर के लौटे थे, इस धमकी के साथ पहुंचाई गई कि क्षत्रियों की इज्जत से एक ‘धंधे वाली’ की आड़ में मत खेलो. निबटना है तो निबट लो. देखते हैं चुनाव कैसे जीतते हो.

मनोहर लाल ने इस मामले को ध्यान से सुना. फिर कुछ दिन चुप रहे. उन्हें लगा कि मामला खत्म हो जाएगा. लेकिन, इधर नाई समुदाय जहां लड़के के पक्ष में जुलूस निकाल रहा था, वहीं क्षत्रिय समुदाय मनोहर लाल पर मामले को खत्म करवाने वरना सबक सीखने के लिए तैयार रहने का अल्टीमेटम दे कर पंचायत कर रहा था.

इधर दुलारी की जाति और गांव के कई छुटभैया लोग उस के पास सम?ाते के लिए दबाव बनाने के लिए रोज उस के घर पहुंच रहे थे. पुलिस आरोपियों से पैसा खाने के लिए दबाव बना कर रख रही थी. हालांकि, थानेदार की भी आरोपियों को पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह दबाव बना कर सिर्फ वसूली कर रहा था.

परेशान थी तो बस दुलारी. उस के गांव और जाति के ताकतवर लोग भी उस के साथ खड़े होने को तैयार नहीं थे. जो भी उस से मिलता, एक ही ‘डील’ करने की फिराक में रहता. जातबिरादरी के किसी नेता, कार्यकर्ता की कोई दिलचस्पी नहीं थी कि पीडि़त परिवार को ‘इंसाफ’ मिले.

इधर, आरोपी लड़कों के परिवार वालों के साथ यह मामला जातबिरादरी का सवाल दिन ब दिन बनता जा रहा था. इस मामले को सत्ताधारी विधायकों ने भी अपने हित में मोड़ना शुरू कर दिया. नया तर्क गढ़ा गया कि मनोहर लाल को वोट नहीं देने के कारण क्षत्रिय और नाई बिरादरी को बदनाम करने का खेल खेला जा रहा है. एक दलित लौंडिया कैसे रेप का आरोप लगा सकती है…? उस की हैसियत क्या है…? इसी बात पर आरोपियों ने जात की 2 सम्मिलित पंचायत भी करवाईं, जिन में कई स्थानीय नेता शामिल हुए. इस से पुलिस के साथ मनोहर लाल भी बैकफुट आ गए. वे मामले में शामिल नहीं होने की कसमें खाने लगे, क्योंकि उन्हें इस से दलित बिरादरी के वोट खिसकने का कोई डर नहीं था. डर तो बाकी जातियों के बिदकने का था. इन सब से रूपा और दुलारी तो इतने ज्यादा घबरा गईं कि उन्हें अपने ही घर में अब बहुत डर लगने लगा.

इधर, खुलेआम माइक लगा कर मनोहर लाल को ललकारा जाने लगा. मनोहर लाल को बड़े चुनावी नुकसान का डर लग गया, क्योंकि विधानसभा की 2 ताकतवर जातियों की गोलबंदी से उन का चुनाव हारना तय था. उन्हें कुछ लोगों ने सम?ाया कि एक अदद ‘लौंडिया’ के लिए अपनी सियासी पारी को कमजोर मत करो. केस में सम?ाता करवाइए और मामला निबटा दीजिए. रूपा की जाति और गांव के कई छुटभैए नेता भी यही चाहते थे, ताकि मनोहर लाल को दोनों जातियों का सपोर्ट मिल सके और वे चुनाव जीत सकें.

अब मनोहर लाल को लगा कि चुप्पी से काम नहीं चलेगा, क्योंकि मामला बिगड़ चुका है. मनोहर लाल अब अपने ‘सियासी’ नुकसान के डर से इस मामले को मैनेज कराने में लग गए. उन्होंने अपने शार्गिंदो से लड़की को सैक्स की भूखी होने का प्रचार भी करवाया. उस की मां का भी दामन दागदार बताने की पूरी कोशिश करवाई गई, ताकि यह लगे कि उन्हें इस मामले से कोई दिलचस्पी नहीं है. इस तरह पूरा एक महीना निकल गया.

लेकिन, इन सब से बहुत दूर विधवा दुलारी को बस इसी बात का संतोष था कि उस की बेटी उस के पास आ गई है. एक गरीब को और क्या चाहिए. पुलिस, थाना, वकील, कचहरी उस के बस का नहीं है. अब उसे और किसी चीज में कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि वह रोज थानेकचहरी और वकील के पास जाने का खर्च ही नहीं उठा सकती थी. उसे तकरीबन रोज थाने बुलाया जाता और दिनभर बयान लेने के नाम पर बैठाए रखा जाता.

इस मामले का विवेचक भी दलित जाति का था, जिस के लिए एकमात्र मकसद पैसा कमाना था, क्योंकि वह एक खेत खरीदने के लिए 30 लाख की रकम किसी भी कीमत पर जल्द इकट्ठा करना चाहता था. इस केस में आरोपी, पुलिस, जाति के छोटे नेता, कार्यकर्ता सब अपने हिसाब से फायदा लेने के लिए खेल रहे थे.

लेकिन, दुलारी और रूपा इन सब से बेपरवाह और अनजान थीं. वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को फिर से पटरी पर लाना चाहती थीं, जो रूपा के साथ हुई घटना के बाद उतर गई थी.

दुलारी को अपनी बेटी मिल गई थी, बाकी उसे किसी ‘इज्जत’ की कोई फिक्र नहीं थी. भूखे, नंगे और गरीब लोग इंसाफ के बारे में नहीं सोचते.

तकरीबन एक हफ्ता और बीता होगा. एक दिन सुबह अचानक दुलारी को मनोहर लाल के एक शागिर्द ने हवेली पर पहुंचने का संदेश दिया. दुलारी हवेली पर गई भी. बेटी के भविष्य को ले कर लंबी भूमिका बनाने के बाद, जिस में उसे रूपा के बदनाम होने से ले कर, शादी, सुरक्षा का डर सबकुछ दिखाया गया, धमकी वाली भाषा में भी समझाया गया. बोला गया कि समझौता कर लो.

डरीसहमी दुलारी से कुछ कागजों पर अंगूठा लगवाया गया, जो बाद में अदालत में समझौते के प्रपत्र के बतौर पुलिस द्वारा जमा किया गया. हवेली से चलते वक्त उसे एक लिफाफा दिया गया, जिसे उस ने घर में खोल कर देखा. उस मे 500 के 10 नोट थे. उस के इंसाफ का ‘सौदा’ हो चुका था, जिस में, जाति के नेता, पुलिस, सरपंच सब शामिल थे. लेकिन, इस सौदे में शामिल नहीं थी तो सिर्फ दुलारी की ‘इच्छा’, जिसे पैसे और ताकत के दम पर मनोहर लाल ने हम जाति होने के बावजूद रौंदवा दिया था.

हालांकि, इस के बाद भी मनोहर लाल इस बार फिर विधायक नहीं बन पाए, क्योंकि पिछड़ों ने दलितों को इसलिए वोट नहीं दिए, ताकि वे सियासीतौर पर मजबूत न हों. शायद एक विधवा की आह ने उन के सियासी कैरियर को भस्म कर दिया था. Long Hindi Story

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