पंजाब:  नवजोत सिंह सिद्धू  राजनीति के “गुरु”

सुरेशचंद्र रोहरा

पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और संपूर्ण देश में यह एक ऐसा प्रदेश है जहां प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नवजोत सिंह सिद्धू अपने ही सरकार को चैलेंज करते, पटखनी देते दिखाई देते हैं, और  बघिया उघरते हुए चरणजीत सिंह चन्नी को ऐसा घेरते हैं, मानो, सिद्धू उन्हें फूटी आंख नहीं देखना चाहते मानो, सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष नहीं कोई विपक्ष हों. दरअसल, जो राजनीति की नई मिसाल उन्होंने दिखानी शुरू की है उसका सार संक्षिप्त यही है कि आने वाले समय में पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सफलता संदिग्ध नहीं रही.

यक्ष प्रश्न यह है कि क्या यह सब कांग्रेस आलाकमान की सहमति से हो रहा है. जानबूझकर हो रहा है. पहली नजर में तो यह सब कांग्रेस के विपरीत मालूम पड़ता है मगर क्या इसमें कांग्रेस का हित है?

दरअसल,यह सब राजनीति के मैदान में देश कई दशक बाद देख रहा है. मजे की बात यह है कि यह सब कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका की नजरों के सामने हो रहा है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का यह आपसी मल युद्ध पंजाब में कांग्रेस को रसातल की ओर ले जाएगा, तो इसका जिम्मेदार कौन है?

आज कांग्रेस के लिए देशभर में संक्रमण का समय नजर आ रहा है. कांग्रेस, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का ढोल पीट रही भाजपा के सामने निरंतर कमजोर होती चली जा रही है अथवा रणनीति के साथ कांग्रेस को खत्म करने का प्रयास चल रहा है. ऐसे में पंजाब जहां कांग्रेस की अपनी सरकार है और भाजपा तीसरे नंबर पर ऐसे में सवाल है कि आखिर कांग्रेस क्या अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार रही है या यह एक रणनीति के तहत हो रहा है.

वस्तुत: पंजाब में जैसी परिस्थितियां स्वरूप ग्रहण कर रही हैं उसे राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि धीरे-धीरे कांग्रेस हाशिए की ओर जा रही है. इसका एकमात्र कारण प्रदेश की कमान संभाल रहे नवजोत सिंह सिद्धू हैं. एक सवाल और भी है कि क्या नवजोत सिंह सिद्धू जैसा राजनीति का खिलाड़ी जानबूझकर ऐसा कर रहा है. क्या कांग्रेस आलाकमान ने उसे जानते समझते हुए खुली छूट दे रखी है कि कांग्रेस को कुछ इस तरह खत्म करना है या फिर आज जो परिदृश्य है उसमें नवजोत सिंह सिद्धू कुछ ऐसा खेल खेलने वाले हैं जो 2022  विधानसभा चुनाव में नया गुल खिलाएगा और कांग्रेस पुनः सत्ता में आ जाएगी? प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से जिस तरीके से नवजोत सिंह सिद्धू घोषणाएं कर रहे हैं महिलाओं को गैस सिलेंडर देंगे और 2000 रूपए प्रति माह देंगे यह सब इसी राजनीति का हिस्सा है. इसका परिणाम यह निकल सकता है कि सिद्धू पंजाब में राजनीति के नए “गुरु” के रूप में स्थापित हो जाएंगे.

धज्जियां उड़ाते सिद्धू

कांग्रेस पार्टी के निर्णय की धज्जियां उड़ाते प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू हर रोज चर्चा में हैं. दो दिन पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने चुटकी लेते हुए कहा, “दूल्हे के बिना कैसी बारात?” उन्होंने पिछले उथल-पुथल के दिनों का जिक्र करते हुए कहा कि संकट से बचने के लिए एक सही “मुख्यमंत्री” जरूरी था.

दरअसल, जब कांग्रेस आलाकमान ने यह स्पष्ट कर दिया  कि पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव सामूहिक रूप से मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जो कांग्रेस का “दलित चेहरा” हैं के अलावा प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिद्धू (जाट चेहरा) और पूर्व पीपीसीसी प्रमुख सुनील जाखड़ (हिंदू चेहरा) के सामुहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा. तो अपने स्वभाव या कहें रणनीति के तहत नवजोत सिंह सिद्धू चुप नहीं बैठे और जो कहना था कह डाला.

नवजोत सिंह सिद्धू ने बेअदबी मामले की जांच किए जाने में हुई देरी पर भी  मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी पर निशाना साध दिया. सिद्धू ने कहा – हर कोई घोषणा करता है, लेकिन यह संभव नहीं है. राजकोषीय घाटा देखिए. आर्थिक स्थिति के अनुसार घोषणा की जानी चाहिए.

कुल जमा नवजोत सिंह सिद्धू के तेवर अपने आप में चर्चा का विषय बन गए हैं क्योंकि कांग्रेस में वर्तमान समय में यह परिपाटी नहीं रही है कि मुख्यमंत्री के विरुद्ध जाकर  सार्वजनिक बयान किया जाए. मगर सिद्धू हर रोज कुछ न कुछ ऐसा कहते हैं जो विपक्ष नहीं कह पाता. इस तरह पंजाब में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ही विपक्ष की भूमिका भी निभा रहे हैं और सारा देश चटकारे ले करके यह सब देख सुन रहा है. आगामी विधानसभा चुनाव में क्या कांग्रेस के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी नंबर 1 और नवजोत सिंह सिद्धू नंबर दो पर रहेंगे. अर्थात क्या कांग्रेस की सरकार की वापसी होगी इस रणनीति के पीछे काम हो रहा है या फिर अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी में जिस तरह नगर निगम चुनाव में बढ़त हासिल की है चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का खेल बिगाड़ कर बाजी मार ले जाएगी यह सब समय के गर्भ में है.

एक टीवी चैनल के घोषणा पत्र में नवजोत सिंह सिद्धू ताल ठोक कर कह रहे हैं कि पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी को क्या उन्होंने  बनाया है, नहीं, राहुल गांधी ने बनाया है.

कुल मिलाकर सार यह है कि सिद्धू चाहे जितना पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को राजनीति के तहत हाथों हाथ लेते हैंपर उसके पीछे सत्ता का संधान ही लक्ष्य है. देखना यह है कि अब पंजाब की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है.

सिद्धू सरकार से बाहर : क्या बड़बोलापन जिम्मेदार?

इस अहम की लड़ाई में सिद्धू मोहरा बन गए. यह जंग दिल्ली दरबार तक भी पहुंची और 15 जुलाई को इस्तीफे की शक्ल में बाहर आई. नवजोत सिंह सिद्धू ने 15 जुलाई, 2019 को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को अपना इस्तीफा भेज दिया था और उन्होंने पंजाब के राज्यपाल वीपी सिंह बदनोर को यह इस्तीफा भेज दिया.

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच विवाद 14 जुलाई को उस समय गहरा गया था, जब सिद्धू ने नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा स्रोत मंत्रालय लेने से मना कर दिया था. सिद्धू ने इस्तीफे में लिखा है, ‘मैं पंजाब मंत्रिमंडल के मंत्री पद से इस्तीफा देता हूं.’

ट्विटर पर अपना इस्तीफा पोस्ट करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू ने ट्वीट किया कि मेरा इस्तीफा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पास 10 जून, 2019 को पहुंच गया था. पर मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा यह बताने के बाद कि सिद्धू का इस्तीफा नहीं मिला है तो सिद्धू ने ट्वीट किया कि पंजाब के मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेजूंगा.

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6 जून को मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में नवजोत सिंह सिद्धू से स्थानीय सरकार, पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों का विभाग ले कर उन्हें नए और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत मंत्रालय दे दिया था, पर उन्होंने कामकाज संभालने से मना कर दिया था.

हालांकि नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच विवाद में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने दखल दिया तो उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा मंजूर नहीं किया था.

नवजोत सिंह सिद्धू फिर से कैबिनेट में स्थानीय निकाय विभाग मांग रहे थे, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह किसी भी कीमत पर उन्हें यह विभाग देने को तैयार नहीं हुए. 40 दिनों के बाद भी सिद्धू ने ऊर्जा विभाग का कामकाज नहीं संभाला. 14 जुलाई को उन्होंने खुलासा किया कि वह मंत्री पद से अपना इस्तीफा 10 जून को राहुल गांधी को सौंप चुके हैं. सवाल उठने पर नवजोत सिंह सिद्धू ने 15 जुलाई को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपना इस्तीफा सौंप दिया.

वजह, कैप्टन ने सिद्धू पर आरोप लगाया था कि उन की घटिया कारगुजारी के कारण लोकसभा चुनाव में पार्टी को शहरों में नुकसान हुआ. इसे सिद्धू अपने माथे पर कलंक मान रहे हैं.

जिन 13 मंत्रियों के विभाग बदले गए हैं, उन में सिद्धू ही एकमात्र ऐसे मंत्री थे जिन पर नकारा होने का ठप्पा लगा. हालांकि कांग्रेस नवजोत सिंह सिद्धू को खोना नहीं चाहती. उसे लग रहा है कि अगर सिद्धू किसी दूसरी पार्टी में जाते हैं तो वह कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं.

कांग्रेस की भी यही सोच है कि सिद्धू हमेशा से ही अपने बड़बोलेपन के कारण परेशानी खड़ी कर देते हैं तभी तो अमरिंदर सिंह ने उन से इस्तीफा मांग लिया. कांग्रेस अब सिद्धू को नया काम दे कर चुप कराने की कोशिश में है.

वैसे, सिद्धू का क्रिकेट से राजनीति की ओर आना और उस के बाद छोटा परदा यानी टैलीविजन पर अपनी एक्टिंग के चलते छा जाना और वहां पर अपनी शेरोशायरी का लोहा मनवाना उन्हें अच्छी तरह आता है.

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सिद्धू का इस्तीफा कहीं दूसरी ओर का संकेत न हो, यह देखने वाली बात होगी. कहीं वे फिर से भाजपा की ओर न चले जाएं, इसलिए कांग्रेस भी उन्हें नाराज नहीं करना चाहती. यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि नवजोत सिंह सिद्धू किस करवट बैठते हैं.

Edited By- Neelesh Singh Sisodia 

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