कोरोना महामारी: मोदी सरकार के लिए आपदा में अवसर का मौका

लेखक- सोनाली ठाकुर

कोरोना महामारी में लॉकडाउन लगने के बाद प्रवासी मजदूरों को उनको घर भेजने में राज्य और केंद्र सरकार में सियासी उठा-पठक के बीच रेलव ने बताया कि श्रमिक ट्रेनों से रेलवे ने 428 करोड़ रूपए कमाए. दरअसल, ये आंकड़े आरटीआई कार्यकर्ता अजय बोस की याचिका पर रेलवे ने दिए थे. इन आंकड़ों से पता चलता है कि 29 जून तक रेलवे ने 428 करोड़ रुपये कमाए और इस दौरान 4,615 ट्रेनें चलीं. इसके साथ ही जुलाई में 13 ट्रेनें चलाने से रेलवे को एक करोड़ रुपये की आमदनी हुई.

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) के 95 वें सालाना कार्यक्रम को संबोधित किया था. जिसे संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने इस आपदा को अवसर में बदलने वाली बात कही थी. जिस तरह इस महामारी के बीच सरकार ने गरीब मजदूरों से 428 करोड़ रुपए की कमाई की उससे साफ जाहिर होता है कि उन्होंने इस आपदा को अवसर में बदलने वाली बात को सिर्फ कहा ही नहीं अपनाया भी है.

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अब तक दो महीनें से ज्यादा का समय बीत चुका है जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया था. साथ ही प्रवासी मजदूरों और किसानों के लिए 30 हजार करोड़ के अतिरिक्त फंड की सुविधा की बात कही थी. इस फंड में उन्होंने प्रवासी मजदूरों को दो महीनों के लिए बिना राशन कार्ड के मुफ्त अनाज देने की बात कही. जिसमें मजदूरों पर 3500 करोड़ रुपए का खर्च बताया गया. जिसके तहत आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों के लाभान्वित होने की बात कही गई. लेकिन ये सभी बड़े-बड़े वादे जमीनी स्तर पर खोखले नजर आ रहे है. देखा जाए तो, यह आर्थिक पैकेज दर दर की ठोकरें खा रहे मजदूरों और अपना सबकुछ गंवा चुके किसानों के साथ एक क्रूर और भद्दा मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है.

अन्य देशों के मुकाबले भारत का आर्थिक पैकेज बेहद कमजोर कोरोना काल के तहत अगर हम अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से भारत की अर्थव्यवस्थाओं के आकार के अनुपात में आर्थिक पैकेज की बात करें तो जिस तरह वहां की सरकारों ने अपनी जनता को इस महामारी मे आर्थिक तंगी से बचाया है. उसके मुकाबले हमारा आर्थिक पैकेज बेहद कमजोर है.

अमेरिका

वैश्विक स्तर पर अमेरिका ने सबसे बड़ा आर्थिक पैकेज अपनी अर्थव्यवस्था के लिए जारी किया है. अमेरिका ने करीब 30 करोड़ लोगों के लिए 2 ट्रिलियन डॉलर यानी कुल 151 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज जारी किया है. यह भारत के कुल बजट के लगभग 5 गुना ज्यादा है. ये पैकेज के तहत अमेरिका के आम नागरिकों को डायेरेक्ट पेमेंट के तहत मदद दी जाएगी.

जर्मनी

इसके अलावा जर्मनी ने कोरोना वायरस के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए हर परिवारों को प्रति बच्चा 300 यूरो (यूएस $ 340) देने का एलान किया है. जिसे सितंबर और अक्टूबर में दो किस्तों में भुगतान किया जाएगा.

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ब्रिटेन

ब्रिटेन में कोरोना वायरस के चलते कई कंपनियों को वित्तीय दबाव में काम करना पड़ रहा था. ऐसे में ब्रिटेन की सरकार ने उन कर्मचारियों के वेतन का 80 फीसदी हिस्सा कंपनियों को देने की घोषणा की, जिन्हें नौकरी से नहीं निकाला जाएगा. यह फैसला वित्तीय दबाव झेल रही कंपनियों द्वारा कर्मचारियों को नौकरी से न निकालने के चलते लिया गया है.

जापान

जापान प्रत्येक निवासी को एक लाख येन (930 डॉलर) यानी करीब 71,161 रुपये का नकद भुगतान प्रदान करेगा. प्रभावितों लोगों और परिवारों को तीन बार यह राशि प्रदान करने की प्रारंभिक योजना है. आबे ने कहा, हम सभी लोगों को नकदी पहुंचाने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं

इसे देख साफ जाहिर होता है कि सरकार का दिया ये आर्थिक पैकेज नाकाम व्यवस्था व लचर सिस्टम को साफ तौर से दर्शाता है. लॉकडाउन के चलते अपनी रोजीरोटी व जमा-पूंजी गंवा चुके देश के मजदूर पहले ही इस सिस्टम की जानलेवा मार झेल रहे है. जिससे दिखता है कि गरीब लाचार मजदूर की जिंदगी का देश के सिस्टम में कोई मोल नहीं है.

सरकार ने मनरेगा की मज़दूरी में प्रभावी अधिक वृद्धि की अधिसूचना जारी की थी. ऐसा हर साल किया जाता है. लेकिन, ये बढ़ी हुई मज़दूरी उन ग़रीबों के लिए बेकार है, जो लॉकडाउन के शिकार हुए हैं. इस महामारी में जिस तरह प्रवासी मजदूरों ने रोजगार और राशन ना होने पर पलायन किया था इससे सरकार की नाकामी साफ बयां पहले ही हो गई थी.

सरकार ने राहत पैकेज के नाम पर लोगों को केवल वादे दिए है, जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का कोई ब्यौरा नहीं हैं कि सरकार ने कितना खर्च किया है. इतना ही नहीं सरकार ने अपने राहत कोष में जमा होने वाली राशि का जिक्र जरूर किया लेकिन इसका कितना फीसदी मजदूरों और बेरोजगारी दर को कम करने के लिए इस्तेमाल किया गया. इसकी कोई जानकारी नहीं है. सरकार केवल योजनाओं को अमीलीजामा पहनाने का काम कर रही हैं.

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भारत नेपाल : दिलों में दरार क्यों? – सरकार की नीतियां जिम्मेदार या नेपाल की मजबूरी

यो रेडियो नेपाल छ…तपाइहरू कं अनुरोध पर प्रस्तुत छ लता मंगेशकर कं स्वर में यो गाना…

भारत के कई हिस्सों खासकर पूर्वोतर राज्य पश्चिम बंगाल, नेपाल से सटे यूपी और बिहार के कुछ भागों में आज भी रेडियो पर यह चिरपरिचित आवाज सुनने को मिल जाएगी.

आज भी पश्चिम बंगाल स्थित दुनिया का मशहूर पर्यटक स्थल दार्जिलिंग में प्रवेश करते ही बङेबङे अक्षरों में लिखा दिख जाएगा- तपाइहरू कं दार्जिलिंग मं स्वागत छ…

यों भले ही टैलीविजन ने घरघर पहचान बना ली है मगर बिहार के पूर्णिया जिले से सटे जोगबनी में आज भी घरों के दलान (बरामदे का खुला भाग) में चारपाई डाले लोग नेपाली रेडियो को सुनते दिख जाते हैं.

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फारबिसगंज के एक गांव के रहने वाले 63 साल के रविकांत को मालूम नहीं कि वे कब से नेपाली रेडियो सुनतेसुनते अब अच्छी तरह नेपाली भाषा बोलने और समझने लगे हैं.

रविकांत कहते हैं,”घर के लोग टीवी देखते हैं पर मुझे तो रेडियो से लगाव है. जब से होश संभाला है रेडियो ही सुनते आया हूं. पहले बाबूजी सुनते थे तो पास आ कर बैठ जाता था.

“मुझे औल इंडिया रेडियो के साथसाथ काठमांडू से प्रसारित नेपाली कार्यक्रम सुनना बहुत पसंद है.”

यह पूछने पर कि क्या आप नेपाल गए हैं?

रविकांत कहते हैं,”कितनी मरतबा गया याद नहीं. नेपाल जाते यह कभी नहीं लगा कि यह दूसरा देश है.”

इन की बात में काफी हद तक सचाई भी है, क्योंकि आज भी नेपाल भारत से अलग देश जरूर है पर वहां भारतीय नोट चलते हैं. खानपान, पहनावा और यहां तक कि रहनसहन तक भी में भी दोनों देशों में कोई अंतर नहीं है.

आश्चर्य तो यह भी है कि भारतीय सेना में नेपालीभाषी गोरखों की तादाद भी अच्छीखासी है और ये गजब के बहादुर और फुरतीले होते हैं और शायद यही वजह है कि देश की राजधानी दिल्ली हो, मुंबई या फिर कोलकाता आम नेपालीभाषी को लोग आज भी ‘बहादुर’ नाम से बुलाते हैं.

बहादुरी और ईमानदारी की वजह से इन्हें अकसर किसी कंपनी, सोसाइटी आदि में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते देखा जा सकता है. आज भी लोग इन्हें रातभर जाग कर चौकीदारी करते देख सकते हैं.

यों भारत में नेपाली बोलने वाले भारतीयों की संख्या भी लगभग एक करोड़ है. न सिर्फ नेपाली भाषा से भारतीयों का लगाव बराबर बना हुआ है, नियमित तौर पर भारत के अलगअलग हिस्सों में नेपाली साहित्य और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन भी होता रहा है.

भारत की 8वीं अनुसूची में शामिल

पिछले दिनों नेपाल के पहले कवि भानु भक्त आचार्य की जयंती पर दिल्ली में एक कार्यक्रम हुआ.

भानु ने अपने साहित्य से नेपाली भाषा को लोकप्रिय बनाया था और नेपाली भी उन भाषाओं में शामिल है जिन्हें भारतीय संविधान में मान्यता दी गई है और जो संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में से एक है.

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सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग खुद नेपाली भाषा के एक जानेमाने लेखक हैं और वे निर्माण प्रकाशन भी चलाते हैं जो नेपाली साहित्य प्रकाशित करता है.”

वहीं औल इंडिया रेडियो दिन में 3 बार नेपाली में 1-1 घंटे का कार्यक्रम प्रसारित करता है.

लेकिन इतना सब होने के बावजूद हाल ही में नेपालियों के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है या फिर कहें कि जो माहौल पैदा किया जा रहा है, वह दशकों से चली आ रही भारतनेपाल संबंधों के लिए कतई उचित नहीं.

नेपालियों के साथ अभद्रता

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कुछ सिरफिरे लोगों ने एक नेपाली युवक को पकङ कर उस के सिर मुडवा दिए और उस से जबरन ओली मुरदाबाद के नारे लगवाए.

यह सब इसलिए किया गया क्योंकि  नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने  राम को नेपाली और अयोध्या को नेपाल में बताया था.

इस बयान से बौराए विश्व हिंदू सेना ने एक पोस्टर जारी किया. उक्त पोस्टर में हिंदू सेना ने यह चेतावनी दी कि नेपाली प्रधानमंत्री अपने बयान को वापस लेते हुए माफी मांगें नहीं तो भारत में नेपालियों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

इस के बाद विश्व हिंदू सेना के कार्यकर्ताओं ने उक्त युवक को न सिर्फ पकङ कर मुंडन किया, मुड़े हुए सिर पर श्रीराम लिख कर उस वीडियो को फेसबुक पर पोस्ट भी कर दिया.

यह सब तब हुआ है जब से नेपाल ने भारत के कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताया है. इस से नेपाल के खिलाफ लोगों की नाराजगी फूट पङी है और इस नाराजगी में जहर घोल रहे हैं वे सिरफिरे जो देशभक्ति के नाम पर सोशल मीडिया पर रोज भड़ास निकाल रहे हैं.

फेसबुक का एक यूजर लिखता है,”नेपाल हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे.”

एक ने लिखा,”पुरानी भारत सरकार बोलती थी कि राम काल्पनिक थे. आज नेपाल बोल रहा कि राम हमारे हैं, कल पूरा विश्व बोलेगा.”

दिल्ली में पिछले कई सालों से रह रही ज्योति को चिंता है कि उसे अब भारत छोङना पङेगा. यहां रहते हुए वह न सिर्फ अच्छी हिंदी बोल लेती है, मैथिली भाषा पर भी उस की पकङ अच्छी है. नेपाल के कुछ भागों में मैथिली लोकप्रिय भाषा है और पूरे विश्वभर में लगभग 7 करोङ लोग मैथिलभाषी हैं. देश में मिथिलांचल के नाम से जाना जाने वाले जगहों में दरभंगा, मधुबनी, सीतामढी, मुजफ्फरपुर, पुर्णिया, कटिहार, सहरसा व सुपौल आदि कई जिलों में हिंदी के बाद मैथिली भाषा ही बोली जाती है.

पिछले दिनों दिल्ली के कनाट प्लेस में दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित मैथिलभोजपुरी कार्यक्रम हुआ था तो ज्योति भी उस कार्यक्रम को देखने गई थी.

ज्योति कहती है,”नेपाल में नेपाली भाषा के साथसाथ बङी संख्या में लोग मैथिली बोलते हैं. हमारे घर के लोग मैथिली बोलते हैं. मुझे मैथिली गाना पसंद है.”

वह अकसर विश्व कवि विद्यापति द्वारा लिखित गाना, ‘उगना रे मोर कतै गेलें…’ बङे चाव से गाती है. पर अब उसे दिल्ली में डर लगता है, क्योंकि हाल ही में कई लोग उस से पूछने लगे हैं कि तुम नेपाली हो क्या?

कहीं चीनी साजिश तो नहीं

यों जिस नेपाल के साथ भारत के दशकों से अच्छे संबंध थे आजकल वही नेपाल न सिर्फ भारत को आंखें दिखाने लगा है, दोनों देशों के बीच टकराव की नौबत तक आ गई है. चीन से नजदीकियों के बाद यह सही है कि नेपाल भारत को चिढ़ाने लगा है पर यह तनाव की स्थिति यों ही नहीं आई है.

भारत की ओर से नेपाल सीमा के पास सड़क निर्माण का काम शुरू हुआ तो दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया. यहां कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को ले कर दोनों देशों के बीच टकराव है.

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नेपाल का कहना है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भारत की ओर से जारी किए गए नए नक्शे में विवादित जगहों को भारत के हिस्से में दिखाया गया है.

इस के बाद नेपाल ने इन तीनों इलाकों  को अपने हिस्से में दिखाते हुए देश का नया नक्शा जारी किया. इस नक्शे को नेपाली संसद के निचले सदन ने भी मंजूरी दे दी तो भारत ने इस पर कङा ऐतराज किया.

कभी भारत को नेपाल बड़ा भाई मानता था पर आजकल वहां हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं.

संबंधों में खटास की वजह

संबंधों में खटास वहां से आनी शुरू हुई थी जब नेपाल पर भूकंप का कहर बरपा था और उस वक्त भारत की मीडिया द्वारा नेपाल के बारे में बहुत बढ़ाचढ़ा कर खबरें प्रसारित की जाने लगी थीं, जिस के कारण आम नेपाली के दिलों में भारत के प्रति नफरत बढ़ गई थी.

न्यूज चैनलों की खबरों में नेपाल को पूरी तरह से बरबाद और भविष्य के लिए भी पूरी तरह से असुरक्षित बताया जाने लगा था, जिस से नेपाल की रीढ़ माने जाने वाला पर्यटन व्यवसाय बुरी तरह से प्रभावित हुआ था.

उस के बाद नेपाल में राजनीतिक संकट शुरू हुआ और नए संविधान के लिए आंदोलन शुरू हो गए. कट्टर नेपाली व मधेसी समुदायों के बीच टकराव की आग भड़क गई. मधेसियों का वर्चस्व तराई क्षेत्र के साथ सीमा क्षेत्रों में था और उन्होंने भारत से आने वाली हर प्रकार की सप्लाई को बौर्डर पर ही रोक दिया.

इस से ईंधन के अभाव के साथसाथ रोजमर्रा की जरूरत का हर सामान सीमा पर ही फंस कर रह गया. नेपाल के हर क्षेत्र में अशांति का माहौल बन गया और करीब 52 लोगों की जान भी गई. इस सब का दोष थोपा गया भारत पर क्योंकि नए संविधान को भारत सरकार ने नकार दिया था और वह उस में परिवर्तन की मांग कर रही थी.

राजनीति और कूटनीति का खेल

इस अराजकता के माहौल में राजनीति और कूटनीति का खेल भी खेला गया. नेपाल ने अपना नया रहनुमा चीन को बनाने की घोषणा भारत को धमकी देते हुए की और चीन इसी ताक में था. फिर हालात खराब ही होते चले गए.

यह सही है कि जब भारत 1947 में आजाद हुआ था, उस के पङोसी देश पाकिस्तान से कभी बेहतर संबंध नहीं रहे. पाकिस्तान ने परोक्षअपरोक्ष रूप से भारत से लड़ाईयां भी लङी हैं, जिस में हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है पर नेपाल के साथ भारत के संबंध कभी खराब नहीं हुए. मगर इधर कुछ महीनों से नेपाल के साथ संबंध बेहद खराब चल रहे.

उधर, हाल ही में भारतचीन सीमा के गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं में जानलेवा संघर्ष को लोग शायद ही भूल पाएं. इस संघर्ष में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे और 60 के लगभग सैनिक घायल हुए थे. खबर है कि इस संघर्ष में चीन को भी नुकसान हुआ और उस के भी कई सैनिक मारे गए मगर चीन ने अभी तक इस बारे में कोई भी आधिकारिक बयान नहीं दिया.

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देश में चीन को ले कर पहले से ही गुस्सा रहा है, क्योंकि चीन की विस्तारवादी नीतियों की न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व के कई देशों में विरोध है.

चीन दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है और इस के लिए वह अपने आर्थिक संसाधनों और कूटनीति की मदद से नेपाल को भारत से तोड़ने की पूरी कोशिश कर रहा है.

2015 से भारत और नेपाल के बीच काफी मनमुटाव रहा है और इस का पूरापूरा फायदा चीन ने उठाया है. नेपाल में अकसर चीनी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और वहां के कई नेता नेपाल दौरे पर आते रहते हैं.

उधर सीएए और एनआरसी के मसले पर बांग्लादेश से भी भारत के संबंधों में खटास आ गई है. नागरिकता कानून को ले कर हो रहे विरोध के बीच बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन और गृहमंत्री असद उजमान खान ने हाल ही में भारत दौरा भी रद्द कर दिया था.

जाग जाए सरकार

मगर मुख्य चिंता पङोसी मुल्क नेपाल को ले है, इस स्थिति में जब चीन ने पाकिस्तान के साथसाथ श्रीलंका में भी अपना प्रभुत्व जमा लिया है. हाल ही में ईरान ने भी चीन की सह पर भारत से चारबाह परियोजना छीन ली है.

मगर कोरोना वयारस से लड़ाई और गिरती अर्थव्यवस्था के बीच  पड़ोसियों से तनाव भारत के लिए गंभीर चिंता है और इस से निबट पाना भारत के लिए फिलहाल आसान नहीं लगता.

देश में नेपाल और नेपालियों को ले कर सोशल मीडिया पर भड़ास निकाला जा रहा है और जाहिर है इस से माहौल खराब ही होंगे.

हमें यह समझना होगा कि नेपाल चीन नहीं है और उसे एक छोटा और गरीब देश कह कर नजरअंदाज नहीं कर सकते. भारत को वाकई में बङा भाई होने का फर्ज निभाना होगा.

पर पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और फिर कोरोना काल से उपजी समस्या में बुरी तरह असफल रहने वाली सरकार से कुछ उम्मीद करें, ऐसा लगता नहीं.

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