एक दिन: तीन नेताओं के तीन बयान

आज हम देश के तीन बड़े नेताओं के बयान का विश्लेषण ले कर आए हैं. इन्हें पढ़समझ कर आप खुद अंदाजा लगाइए कि देश किस दिशा में जा रहा है. एक समय था जब देश के बड़े नेता सोच समझ कर जनता के बीच अपनी भावना व्यक्त करते थे. कहां गया वह समय और कहां जा रहा है हमारा भारत देश. पहला बयान है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का और दूसरा है गृह मंत्री अमित शाह का और तीसरा बयान है अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहिन…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार, 11 नवंबर, 2024 को आरोप लगाया कि कांग्रेस अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सामूहिक ताकत को तोड़ने की कोशिश कर रही है, ताकि उन के बीच विभाजन पैदा किया जा सके और उन की आवाज कमजोर की जा सके और अंततः उन के लिए आरक्षण समाप्त किया जा सके.

नरेंद्र मोदी ने ‘नमो एप’ के माध्यम से ‘मेरा बूथ, सब से मजबूत’ कार्यक्रम के तहत झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए कहा कि इसलिए मैं चार बार कहता रहता हूं कि एक रहेंगे, तो सेफ (सुरक्षित) रहेंगे. नरेंद्र मोदी ने झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन के पांच साल के शासन की विफलताओं को रेखांकित किया और कहा कि राज्य को प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए ‘भ्रष्टाचार, माफिया और कुशासन’ से मुक्त कराना होगा.

नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि झारखंड की जनता इस बार विधानसभा चुनाव में बदलाव को संकल्पित है और इस का सब से बड़ा कारण यह है कि सत्तारूढ़ गठबंधन ने राज्य की रोटी, बेटी और माटी पर वार किया है. उन्होंने कहा कि झारखंड इस बार बदलाव करने को संकल्पित हो गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कुछ ‘राष्ट्र विरोधी’ अपने निहित स्वार्थ के लिए समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने लोगों से उन्हें हराने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया. नरेंद्र मोदी ने गुजरात के खेड़ा जिले के चडताल में श्री स्वामीनारायण मंदिर की 200वीं वर्षगाठ पर आयोजित समारोह को डिजिटल तरीके से संबोधित किया.

पिछले पांच साल इन्होंने बड़ीबड़ी बातें कीं, लेकिन आज झारखंड के लोग देख रहे हैं कि इन के ज्यादातर वादे झूठे हैं. भाजपा झारखंड में ‘रोटी, बेटी और माटी’ के मुद्दे को जोरशोर से उठा रही है. इस के माध्यम से वह आदिवासी अस्मिता का सवाल
उठा कर बंगलादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासी महिलाओं का तथाकथित उत्पीड़न, धर्मांतरण, जमीन पर कब्जा और धोखा दे कर विवाह करने तथा इस के परिणामस्वरूप आदिवासियों की संख्या में लगातार कमी आने का मुद्दा उठा रही है .राज्य में झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की गठबंधन सरकार है.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने महसूस किया कि लोगों में भ्रष्टाचार और परिवारवाद को ले कर भी भारी गुस्सा है. उन्होंने कहा कि परिवारवादी पार्टियां, भ्रष्टाचारी तो होती ही हैं. साथ ही समाज के प्रतिभाशाली नौजवानों के रास्ते में सब से बड़ी दीवार होती हैं. झामुमो के परिवारवादियों ने कांग्रेस के ‘शाही परिवार’ से ऐसी गंदी चीजें सीखी हैं, जिस में उन्हें कुरसी और खजाना… इन दो चीजों की ही चिंता रहती है. नागरिकों की उन्हें परवाह हो नहीं होती है. उन्होंने कहा कि इसलिए इस बार के विधानसभा चुनाव में झामुमो गठबंधन की सत्ता से विदाई तय है.

समीक्षा करते हुए हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा है, वह दोतरफा है. यह कैसे भूल जाते हैं कि अगर आप किसी की तरफ एक उंगली उठाते हैं तो चार उंगलियां आप की तरफ भी होती हैं.

गृह मंत्री अमित शाह कहिन…

कांग्रेस को ‘डूबता जहाज’ करार देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार, 11 नवंबर, 2024 को कहा कि वे (कांग्रेस) चुनाव में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नहीं बचा सकती.

अमित शाह ने रांची जिले के तमार में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि ‘इंडिया’ गठबंधन ने झारखंड को बरबाद कर दिया. उन्होंने वादा किया कि चुनाव के बाद भाजपा यदि सत्ता में आई तो वह अगले पांच साल में इसे सब से अधिक समृद्ध राज्य बना देगी. उन्होंने आरोप लगाया कि झामुमो, कांग्रेस आदिवासियों को महज वोट बैंक समझती हैं, वे उन का सम्मान नहीं करती हैं. उन्होंने दावा किया कि घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की संख्या लगातार घटती जा रही है और ये घुसपैठिए झामुमोनीत (सत्तारूढ़) गठबंधन के वोट बैंक हैं.

कांग्रेस पर प्रहार करते हुए अमित शाह ने कहा कि राहुल गांधी की चार पीढ़ियां भी जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस नहीं ला सकती हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को कहा कि झारखंड में अगर भाजपा की सरकार बनती है, तो घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें राज्य से बाहर निकालने के अलावा उन के द्वारा हड़पी गई जमीन को वापस लेने के लिए एक समिति गठित की जाएगी.

गृह मंत्री के रूप में कांग्रेस पर अप्रत्यक्ष रूप से भी प्रहार किया जा सकता है, मगर जिस स्तर पर आ कर चार पीढ़ियां की बात जम्मूकश्मीर विधेयक 370 के संदर्भ में अमित शाह ने कही है, आप ही बताइए कि क्या वह शोभनीय है?

मल्लिकार्जुन खड़गे कहिन…

11 नवंबर, 2024, दिन सोमवार को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी बात कहते हुए बड़े बेचारे से लग रहे थे मगर उन्होंने जो कहा बड़ी बेबाकी से और बड़ा सच कहा है.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा विपक्ष को दबाने एवं निर्वाचित सरकारों को गिराने में विश्वास करती है. विधायकों की बकरियों की तरह खरीदफरोख्त की जाती है. उन्होंने नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर अडाणी और अंबानी के साथ मिल कर केंद्र सरकार चलाने का भी आरोप लगाया. उन्होंने योगी आदित्यनाथ को घेरते हुए कहा कि वे मुंह में राम, बगल में छुरी में विश्वास करते हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि मोदीजी सरकारें गिराने में विश्वास रखते हैं. वे विधायक खरीदते हैं. उन का काम विधायकों को बकरी के जैसे अपने पास रख लेना, पालना और फिर बाद में काट कर खाना है.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि मोदी और शाह ने विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई और अन्य केंद्रीय एजेंसियों को तैनात कर दिया है, लेकिन हम डरते नहीं हैं. हम ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, अपने प्राणों की आहुति दी.

उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी, शाह, अडाणी और अंबानी देश चला रहे हैं, जबकि राहुल गांधी और मैं संविधान और लोकतंत्र को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कटाक्ष किया कि मोदी आदतन झूठे हैं, जो कभी अपने वादे पूरे नहीं करते.

समीक्षा करें तो साफ है कि तीनों ही बयानों को पढ़ने के बाद आप देखेंगे की नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बयान अतिरेकपूर्ण हैं, वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान आत्मरक्षात्मक है. इन तीनों ही बयानों से ऐसा लगता है कि देश एक राजनीतिक संक्रमणकाल से गुजर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति चारों खाने चित

भा रतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सत्ता आने के बाद जिस तरह से जम्मूकश्मीर और वहां की अवाम को दर्द ही दर्द मिला है, क्या उसे कोई भूल सकता है? यहां तक कि नागरिकों के अधिकार नहीं रहे और बंदूक के साए में अब देश की सब से बड़ी अदालत के आदेश के बाद चुनाव होने जा रहे हैं. यह एक ऐसा रास्ता है, जो लोकतांत्रिक की मृग मरीचिका का आभास देता है.

मगर सितंबर, 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव की जो रणनीति कांग्रेस बना रही है, उस में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का पूरा खेल बिगड़ता दिखाई दे रहा है. भाजपा किसी भी हालत में यहां सत्ता में आती नहीं दिखाई दे रही है, जिस का आगाज लोकसभा चुनाव में भी नतीजे के रूप में हमारे सामने है.

इधर, फारूक अब्दुल्ला ने जिस तरह सामने आ कर मोरचा संभाला है और  विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी की रणनीति चारों खाने चित हो चुकी है.

कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी श्रीनगर पहुंचे थे. मल्लिकार्जुन खड़गे ने जम्मूकश्मीर के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए दूसरे विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करने की इच्छा जताई और केंद्रशासित प्रदेश के लोगों से भारतीय जनता पार्टी के वादों को ‘जुमला’ करार दिया.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ श्रीनगर में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से विधानसभा चुनावों की जमीनी स्तर की तैयारियों के बारे में जानकारी ली. उन्होंने कहा कि ‘इंडी’ गठबंधन ने एक तानाशाह को पूरे बहुमत के साथ (केंद्र में) सत्ता में आने से रोका है. यह गठबंधन की सब से बड़ी कामयाबी है. कांग्रेस ने राज्य का दर्जा बहाल करने की पहल की है. हम इस दिशा में काम करने का वादा करते हैं. राहुल गांधी की जम्मूकश्मीर में चुनाव से पहले गठबंधन बनाने में दिलचस्पी है. वे दूसरी पार्टियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आगे कहा कि दरअसल, भाजपा लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद चिंतित है, क्योंकि वे लोग जिन विधेयकों को पास कराना चाहते थे, उन में करारी मात मिली है.

पूर्ण राज्य का दर्जा

कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के श्रीनगर दौरे से राजनीति में एक गरमाहट आ गई है. राहुल गांधी ने कहा कि जम्मूकश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन ‘इंडी’ की प्राथमिकता है. यह उन की पार्टी का लक्ष्य है कि जम्मूकश्मीर और लद्दाख के लोगों को उन के लोकतांत्रिक अधिकार वापस मिलें.

कांग्रेस और ‘इंडी’ गठबंधन की प्राथमिकता है कि जम्मूकश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए. हमें उम्मीद थी कि चुनाव से पहले ऐसा कर दिया जाएगा, लेकिन चुनाव घोषित हो गए हैं. हम उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द से जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा और जम्मूकश्मीर के लोगों के अधिकार बहाल किए जाएंगे.

आजादी के बाद यह पहली बार है कि कोई राज्य केंद्रशासित प्रदेश बन गया है. यहां कोई विधानपरिषद, कोई पंचायत या नगरपालिका नहीं है. लोगों को लोकतंत्र से दूर रखा गया है.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 30 सितंबर तक चुनाव कराने के निर्देश के चलते ही जम्मूकश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई है.

चुनाव से पहले जम्मूकश्मीर के लोगों से किया गया एक भी वादा पूरा नहीं किया गया है. कुलमिला कर कांग्रेस नेताओं ने जिस तरह जम्मूकश्मीर में मोरचाबंदी की है, उस से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मनसूबे ध्वस्त होंगे, ऐसा लगता है.

फारूक अब्दुल्ला और कांग्रेस

जम्मूकश्मीर में जो नए राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं, उन से साफ दिखाई दे रहा है कि फारूक अब्दुल्ला, जो जम्मूकश्मीर के सब से बड़े नेता और चेहरे हैं, ने कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है और यह गठबंधन अगर बन जाता है, तो इस की सरकार बनने की पूरी संभावना है, क्योंकि इन के सामने सारे नेता बौने हैं. वहीं राहुल गांधी और ‘इंडी’ गठबंधन का अब समय आ गया है, यह दिखाई देता है.

यहां चुनाव 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्तूबर को होंगे. नतीजे 4 अक्तूबर को घोषित किए जाएंगे.

फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस के साथ मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) के (एमवाई) तारिगामी भी हमारे साथ हैं. मुझे उम्मीद है कि हमें लोगों का साथ मिलेगा और हम लोगों

के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भारी बहुमत से जीतेंगे. इस के पहले राहुल गांधी ने भरोसा दिया था कि जम्मूकश्मीर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना कांग्रेस और ‘इंडी’ गठबंधन की प्राथमिकता है.

फारूक अब्दुल्ला ने उम्मीद जताई कि सभी ताकतों के साथ पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. राज्य का दर्जा हम सभी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है. इस का हम से वादा किया गया है. इस राज्य ने बुरे दिन देखे हैं और हमें उम्मीद है कि इसे पूरी शक्तियों के साथ बहाल किया जाएगा. इस के लिए हम ‘इंडी’ गठबंधन के साथ एकजुट हैं.

महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आया है कि चुनाव से पहले या चुनाव के बाद गठबंधन में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी की मौजूदगी से भी नैशनल कौंफ्रैंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने इनकार नहीं किया है.

महिला रेसलर के आंसू और बेदर्द सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को होगा यह नुकसान

Political News in Hindi: देश में नरेंद्र मोदी की सरकार आज यह दावा करने से तनिक भी पीछा नहीं हटती है कि उस के जैसी संवेदनशील सरकार न कभी हुई है और न ही होगी, इसीलिए तो नारा दिया था कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’. यह सब सुनने और देखने में अच्छा लगता है, मगर हकीकत से दोचार होने के बाद केंद्र सरकार की गतिविधियों से किसी भी भावुक इनसान का सीना चाक हो जाएगा.

बहुत ज्यादा विरोध के बाद आखिरकार भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने नवनिर्वाचित भारतीय कुश्ती महासंघ पर निलंबन की गाज गिरा दी है. यह जन भावना के मुताबिक कदम है, मगर पूरे मामले को देखें, तो कहा जा सकता है कि देश की आम, गरीब और राजधानी से दूर बैठी बेटियां क्या पढ़ पा रही हैं और उन्हें क्या अधिकार मिल रहे हैं, यह तो दूर की बात है, देश की राजधानी में उन बेटियों के दुख और आंसुओं को सारे देश ने देखा है, जिन्होंने पहलवानी के क्षेत्र में ‘पद्मश्री’ हासिल किया और देश का नाम रोशन किया. वे लंबे समय तक जंतरमंतर पर बैठ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इंसाफ की गुहार लगाती रहीं, मगर सत्ता के करीबी भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रह चुके बृजभूषण शरण सिंह का बाल भी बांका नहीं हो पाया. उलटे सारे देश ने देखा कि किस तरह महिला पहलवानों को बेइज्जत किया गया और उन्हें जंतरमंतर पर धरने से उठा कर फेंक दिया गया.

पहलवान बेटियों को देश के गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिलाया था कि इंसाफ मिलेगा और इस पर यकीन कर के उन्हें सिर्फ धोखा ही मिला. पुलिस और कोर्ट की दौड़ तो जारी है ही, अब बृजभूषण शरण सिंह का दायां हाथ समझे जाने वाले संजय सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ के मुखिया बन गए, तो साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया सहित अनेक पहलवान मुंह बाए देखते रहे कि यह क्या हो गया है और अब वे क्या करें. यही वजह है कि साक्षी मलिक ने बिना देर किए आंसुओं के साथ अपना दर्द इस तरह जाहिर किया कि उन्होंने पहलवानी से संन्यास ले लिया है.

इस सब के बाद भी सत्ता के कानों तक आवाज नहीं पहुंची. दूसरी तरफ बजरंग पुनिया ने ‘पद्मश्री’ लौटाने का ऐलान कर दिया, मगर इस के बावजूद सत्ता में बैठे हुए किसी बड़े चेहरे को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. इस का सीधा सा मतलब यह है कि आज देश की सत्ता पर बैठे हुए लोग अपने और अपने साथियों के खिलाफ एक भी आवाज सुनने को तैयार नहीं हैं, चाहे वे कितने ही गलत क्यों न हों. ये हालात बताते हैं कि देश आज किस चौराहे पर खड़ा है.

महिला पहलवानों के दुख को सब से ज्यादा महसूस करने वाले ‘पद्मश्री’ बजरंग पुनिया ने कहा, “अगर आप मेरे पत्र को प्रधानमंत्री को सौंप सकते हैं तो ऐसा कर दीजिए, क्योंकि मैं अंदर नहीं जा सकता. मैं न तो विरोध कर रहा हूं और न ही आक्रामक हूं.”

नतीजा ढाक के तीन पात

हकीकत यह है कि खेल मंत्रालय द्वारा नए चुने गए अध्यक्ष संजय सिंह को निलंबित कर दिए जाने के बाद भी हालात ढाक के तीन पात वाले हैं. इंसाफ का तकाजा है कि बृजभूषण शरण सिंह या उन के चहेते किसी भी हालत में भारतीय कुश्ती महासंघ के आसपास फटक न पाएं, ऐसा इंतजाम होना चाहिए.

महिला पहलवानों द्वारा गंभीर आरोप लग जाने के बाद भी बृजभूषण शरण सिंह अध्यक्ष पद से हटने को आसानी से तैयार नहीं थे. दूसरी तरफ केंद्र सरकार भी मानो आंखेंमुंहकान बंद किए हुए थी. नतीजतन, शर्मनाक हालात में संजय सिंह गुरुवार, 21 दिसंबर, 2023 को हुए चुनाव में भारतीय कुश्ती महासंघ अध्यक्ष बने और उन के पैनल ने 15 में से 13 पदों पर जीत हासिल कर ली.

यह माना जा रहा था कि बृजभूषण शरण सिंह और उन के साथियों को केंद्र सरकार चुनाव से दूर रहने का निर्देश देगी, मगर ऐसा नहीं हुआ. अब आए इस नतीजे से पहलवान साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को काफी निराशा हुई, जिन्होंने मांग की थी कि बृजभूषण शरण सिंह के किसी भी करीबी को भारतीय कुश्ती महासंघ में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए.

इन तीनों पहलवानों ने साल 2023 के शुरू में बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया था. उन पर महिला पहलवानों के साथ यौन शोषण करने का आरोप लगाया था और यह मामला अदालत में लंबित है. चुनाव का फैसले आने के तुरंत बाद साक्षी मालिक, बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट ने पत्रकारों से बात की और साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया. बजरंग पुनिया ने एक दिन बाद सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर बयान जारी कर कहा, “मैं अपना ‘पद्मश्री’ सम्मान प्रधानमंत्री को वापस लौटा रहा हूं. कहने के लिए बस मेरा यह पत्र है. यही मेरा बयान है.”

इस पत्र में बजरंग पुनिया ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से ले कर उन के करीबी के चुनाव जीतने तक और सरकार के एक मंत्री से हुई बातचीत और उन के दिए गए भरोसे के बारे में बताया.

महिला पहलवानों के साथ देश में सम्मान के साथ फैसला होना चाहिए था, मगर नरेंद्र मोदी की सरकार, जो एक गांव से ले कर दुनिया के दूसरे कोने तक अपने लंबे हाथों का जिक्र करने से परहेज नहीं करती, राजधानी दिल्ली में जैसा बरताव महिला पहलवानों के साथ हो रहा है, उन के आंसू आज देश के हर इनसान को द्रवित कर रहे हैं.

सरकार ने भारतीय कुश्ती महासंघ को अगले आदेश तक निलंबित कर दिया है, मगर इस में भी साफसाफ पेंच दिखाई दे रहा है और लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने बड़ी चालाकी के साथ बड़ा कमजोर कदम उठाया है.

भाजपा की कमंडल और मंडल की दोहरी चाल, विपक्ष क्यों बेहाल

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गुमनाम चेहरों को सत्ता सौंप कर भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान ने जो संदेश देने की कोशिश की है, वह नेताओं को तो मिल चुका है, पर राजनीति के तमाम जानकार इस के अपने अलगअलग मतलब निकाल रहे हैं, लेकिन यह एकदम सौ फीसदी तय है कि केंद्र में ऐसा नहीं होने वाला है, बल्कि केंद्र की सत्ता को और मजबूत करने के लिए ही इन राज्यों में इतनी कवायद की गई है.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह राजनीति के व्याकरण को ही बदल रहे हैं. वह व्याकरण यह है कि फैसला एक है, लेकिन उस के संदेश कई निकल रहे हैं. एक पौजिटिव संदेश यह निकला है कि पिछली कतार में बैठा संगठन के लिए काम करने वाला कार्यकर्ता भी किसी दिन बड़ा नेता बन कर मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ सकता है, लेकिन इसे भाजपा में साल 2014 के बाद समयसमय पर लाई जा रही वीआरएस स्कीम भी माना जाना चाहिए.

अगर थोड़ा पीछे मुड़ कर देखा जाए, तो इसी स्कीम के शिकार भाजपा के बड़े मुसलिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी और शहनवाज हुसैन के साथ बिहार में सुशील मोदी भी हुए थे. यह संदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के लिए भी है, क्योंकि साल 2023 की राजस्थान और मध्य प्रदेश की जीत के बाद वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान मान कर चल रहे थे कि उन्हें तो कोई हटाने की हिम्मत ही नहीं करेगा, मगर वैसा हुआ नहीं.

राज्यों में भाजपा का शिवराज सिंह चौहान के कद का कोई नेता नहीं है, इसलिए भाजपा आलाकमान ने साल 2022 में उत्तर प्रदेश के घटनाक्रम को देखते हुए कोई जोखिम नहीं लेना चाहा. जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद नौकरशाह रहे अरविंद शर्मा से जिस तरह से पेश आए थे, किसी ने ऐसी कल्पना तक नहीं की थी, जबकि वसुंधरा राजे के तीखे तेवर और भाजपा नेतृत्व से टकराव के किस्से कोई नए नहीं हैं. साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने से पहले भी वसुंधरा राजे अकसर भाजपा आलाकमान की परवाह न करते देखी गई हैं.

वसुंधरा राजे को हटा कर भाजपा नेतृत्व ने एक संदेश यह भी देने की कोशिश की है कि यह सब अब नहीं चलने वाला है. यहां तक कि नतीजे आने के बाद भी वसुंधरा राजे विधायकों की बाड़ेबंदी में सक्रिय दिखी थीं. आखिर में राजनाथ सिंह ने उन्हें कोई घुट्टी पिलाई और विधायक दल की बैठक में केंद्रीय नेतृत्व की ओर से भेजा गया एक लाइन का प्रस्ताव उन्हीं से पेश करवाया.

इन बदलावों के पीछे भाजपा का एक बड़ा मकसद यह भी है कि वह साल 2024 के आम चुनाव में विपक्ष को मंडल की राजनीति के दौर में नहीं लौटना देना चाहती है. वह 25 साल से सफलता का सूत्र बने कमंडल के साथ मंडल का तालमेल भी बैठना चाहती थी.

राजस्थान में भजन लाल शर्मा कमंडल के आइकन हैं तो मध्य प्रदेश में मोहन लाल यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय मंडल का झंडा बुलंद करेंगे. सत्ता संभालते ही तीनों मुख्यमंत्री मंडल और कमंडल को साधने में जुट गए हैं.

भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे के साथसाथ क्या विपक्ष को जातिगत राजनीति में भी पीछे छोड़ दिया है? सनद रहे कि मंडल आयोग ने क्षेत्रीय पार्टियों और जातिगत पहचान से जुड़ी राजनीति को भी पंख दिए थे.

उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) जैसी पार्टियों का कद बढ़ा. राहुल गांधी समेत समूचा विपक्ष हर सभा में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाते रहे हैं.

वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस के जवाब में हर बार यही कहा कि देश में सिर्फ चार जातियां हैं- गरीब, किसान, महिला और युवा. आरोप भी लगाया कि विपक्ष जाति सर्वे के जरीए देश को बांटने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इसी का नाम है कि जो कहा और दिखाया जाता है वह असल में होता नहीं है.

भाजपा ने तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का चुनाव अलग तरीके से कर के यादव ओबीसी के बीच एक मजबूत आधार बना कर समाजवादी पार्टी और राजद के मुसलिमयादव गठजोड़ को साल 2024 के लिए सीधे चुनौती दी है.

आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में 50 फीसदी ओबीसी वोटर हैं. कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत में ओबीसी समुदाय के वोटरों की बड़ी भूमिका रही है, इसीलिए भाजपा ने यहां ओबीसी समुदाय के मोहन यादव को ही सीएम बनाया, लेकिन साथ में ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला और अनुसूचित जाति से आने वाले जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम बना दिया.

राजेंद्र शुक्ला जो कभी कांग्रेसी हुआ करते थे, इस समय मध्य प्रदेश के सब से बड़े और जनाधार वाले ब्राह्मण नेता हैं. विंध्य क्षेत्र में उन की छवि विकास पुरुष की है. यही वजह है कि कभी कांग्रेस का गढ़ रहा विंध्य क्षेत्र चुनाव दर चुनाव भाजपा की कामयाबी की नई इबारत लिख रहा है. अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता के बेटे अजय सिंह को अपनी विरासत बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है.

सतना से भाजपा के कई बार के सांसद गणेश सिंह की हार को अपवाद माना जाना चाहिए. यह राजेंद्र शुक्ला का ही कमाल है कि ऐन चुनाव के समय कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवासन तिवारी के नाती सिद्धार्थ तिवारी को सिटिंग एमएलए का टिकट काट कर त्योंथर से जीता कर लाए.

वहीं छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाकों में मिली बढ़त को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इसी समुदाय के विष्णु देव साय को सीएम पद दिया है. राजस्थान में भी पार्टी ने ब्राह्मण सीएम के साथ राजपूत और दलित समुदाय से आने वाले 2 डिप्टी सीएम भी नियुक्त कर दिए हैं. जाहिर है कि मोदीशाह की जोड़ी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं, जिस का असर 2024 के चुनाव में दिखना चाहिए, वह भी बिना किसी चुनौती के साथ.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा में आदिवासी नेता उमंग सिंगार को नेतृत्व सौंप कर मुकाबले की कोशिश की है, लेकिन यह देखना होगा कि वह विपक्षी साथियों के साथ कितना तालमेल बैठाती है.

नरेंद्र मोदी के राज में महंगी ट्रेनें और खाली बटुआ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम के 18 मील के हिस्से का उद्घाटन करने का समय दिया गया, यह देश के लिए बड़े गौरव की बात है. 18 घंटे काम करने वाले नरेंद्र मोदी को रेलों के उद्घाटनों में बहुत मजा आता है चाहे उन की ही झंडियां दिखाई हुईं रेलें महंगी और बेमतलब होने के कारण खाली क्यों न चल रही हों. अधिकतर वंदेभारत ट्रेनें खाली चल रही हैं.

यह रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम कब चालू होगा पता नहीं. उसे दिल्ली से मेरठ तक जाना है पर दिल्ली में जंगपुरा के पास बारापुला के पास तो इस के खंबे अभी तो लोहे के रावण जैसे लग रहे हैं जिन पर कागज मड़ा जाना है.

अभी जो 18 मील का सफर है उस का किराया साधारण श्रेणी का 50 रुपया है. इस रेल तक पहुंचने और फिर आखिरी स्टेशन से घर, औफिस या दुकान तक पहुंचने में जो खर्चा होगा, वह अलग. साधारण वाहन भी हो तो 18 किलोमीटर के साथ जो अलग से खर्च होगा उसे मिला कर यह रेल की झंडी बटुए को खाली करने का इशारा आया है.

हमारे देश में पिछले सालों में बहुतकुछ बन रहा है. संसद भवन बना, भारत मंडपम बना, सरदार पटेल का स्टैचू बना, बड़े लंबे हाईवे बने, विशाल एयरपोर्ट बने. पर क्या इस में वे लोग चलेंगे या वे वहां छुट्टी मनाने जाएंगे जिन्होंने इसे बनाया? नहीं, क्योंकि किसी भी जगह आम आदमी की पहुंच नहीं है. न उस के पास पैसा है, न रुतबा है, न उसे जरूरत है.

जनता का पैसा मंदिरों के रास्तों या जी-20 की आवभगत में खर्च किया जा रहा है. जनता के पैसे से बने स्टेडियमों में क्रिकेट मैच हो रहे हैं, जहां 5-6 घंटे के हजारों के टिकट लगते हैं और काम सिर्फ ‘हाहाहूहू’ करना होता है.

दुनिया में हंगर इंडैक्स में 125 देशों में से 111वीं जगह पर होने वाला देश इसे ऐयाशी का नाम न दे तो क्या करे. प्रधानमंत्री ने अपने लिए 2-2 विशाल विमान खरीदे, न जाने कितने हैलीकौप्टर इस्तेमाल होते हैं, कहीं जाएं तो लंबाचौड़ा बंदोबस्त होता है. जनता के प्रधानमंत्री के फैसले जनता से दूर रह कर किए जा रहे हैं और 100 महीनों से यही हो रहा है.

रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम में जाने में मजा आ सकता है पर यह अभी उस स्टेज पर नहीं है कि राज्य या किसी शहर को कोई फायदा हो. वैसे भी जरूरत भी ऐसी बसों की जो चाहे एयरकंडीशंड न हों पर इतनी दुरुस्त हों जो बिना रास्ते में खराब हुए उतनी ही दूरी उतनी ही देर में पूरी करा दें.

जरूरत सड़कों के मैनेजमैंट की है. सड़कों की भीड़ आम लोगों का समय बरबाद न करे, यह पहला काम है. अगर रैपिड ट्रेन बनानी हैं तो वे सस्ती हों चाहे एयरकंडीशंड न हों. ऐसे प्लेटफार्म से चलें जहां पानी मुफ्त मिलता हो, 20 रुपए में पूरीआलू मिल जाए न कि ऐसे से जहां पानी की बोतल 50 रुपए की हो और कम से कम खाना 300 रुपए का हो.

जरूरत नई तकनीक पैर से चलने वाले या बैटरी रिकशों की है जिन से पुलिस वाले रिश्वत न लें और जिन पर करोड़ोंअरबों की सड़कों पर चलने से मनाही न हो.

एक प्रधानमंत्री को एयरकंडीशंड रेलों, गाडि़यों, हवाईजहाजों में नहीं, सड़कों पर चलने की आदत होनी चाहिए.

रैलियों में भीड़ बढ़ाने में दलितपिछड़ों का इस्तेमाल

मध्य प्रदेश में उज्जैन जिले की बड़नगर विधानसभा क्षेत्र में इन दिनों कांग्रेस उम्मीदवार मुरली मोरवाल की नामांकन रैली का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिस में कुछ नाबालिग बच्चे हाथों में कांग्रेस का झंडा ले कर ‘मुरली मोरवाल जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि हमें झाबुआ, पेटलावद से इस रैली में लाया गया है और रैली में आने के लिए हमें 500-500 रुपए भी दिए गए हैं.

इस पूरे मामले पर मुरली मोरवाल का कहना था कि उन पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे सरासर गलत हैं. विधानसभा क्षेत्र में उन के कई व्यापार हैं. ईंटभट्ठे और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में सैकड़ो लोग उन से जुड़े हुए हैं. इन लोगों को जब पता चला कि उन के सेठ को कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिया है तो वे सभी लोग परिवार समेत नामांकन रैली में शामिल हुए थे. झाबुआ, पेटलावद से लोगों को पैसे दे कर बुलाने की बात झूठी है. जो भी ऐसी बात कर रहे हैं, वे गलत कह रहे हैं.

इसी साल जुलाई महीने में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक बस का भीषण ऐक्सीडैंट हो गया है. तेज रफ्तार बस ने हाईवे में खड़े हाइवा ट्रक को पीछे से जोरदार टक्कर मार दी थी, जिस में बस सवार 3 लोगों की मौके पर मौत हो गई थी. वहीं, 6 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे.

जानकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में शामिल होने के लिए बस सवार यात्री अंबिकापुर से रायपुर जा रहे थे. यह सड़क हादसा तड़के हुआ, जब बस अंबिकापुर से रवाना बेलतरा पहुंची थी. इसी दौरान बेलतरा के पास हाईवे पर खड़े हाइवा को तेज रफ्तार बस ने पीछे से जोरदार टक्कर मार दी थी.

अब एक बहुत बड़ी खबर का रुख करते हैं. नवंबर महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों में एससीएसटी जातियों को अपने पक्ष में लुभाने के लिए 24 फरवरी, 2023 को मध्य प्रदेश के सतना में कोल जाति का महाकुंभ आयोजित किया गया, जिस में शामिल होने के लिए सीधी और सिंगरौली जिले से बसों में सवार हो कर कोल समाज के लोग शामिल हुए थे.

इस महाकुंभ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आए हुए थे. उस दिन शाम को तकरीबन 5 बजे इस रैली के खत्म होने के बाद सभी लोग बसों में सवार हो कर सीधीसिंगरौली अपने घर जा रहे थे.

रास्ते में 2 बसें रात के तकरीबन 9 बजे मोहनिया टनल से 300 मीटर दूर बडखरा गांव के पास रुकीं. वहां सवारियों के लिए चायनाश्ते का इंतजाम किया गया था.

कोल समाज के लोगों को बसों में जब नाश्ते के पैकेट दिए जा रहे थे, तभी रीवा की ओर से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रक ने एक बस को पीछे से टक्कर मार दी. टक्कर इतनी तेज थी कि आगे वाली बस बीच सड़क पर पलट गई, जबकि जिस बस में टक्कर लगी थी, वह डिवाइडर से टकरा कर बीच सड़क पर आ गई.

उसी दौरान सीधी की ओर से आ रही एक और बस भी टकरा कर पलट गई. जबकि, ट्रक टक्कर मारते हुए नीचे गिर कर पलट गया. इस हादसे में 15 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए.

अमित शाह के सामने अपनी ताकत दिखाने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस कोल महाकुंभ का आयोजन सतना में किया था, उस में शामिल हुए ये एससीएसटी तबके के लोग चायनाश्ता, भोजनपानी और एक दिन की मजदूरी के बदले बड़ीबड़ी बसों में भर कर लाए गए थे. रैली में भीड़ जुटाने के लिए सरकारी अफसरों और मुलाजिमों की भी ड्यूटी लगाई गई थी.

बताया जाता है कि इस रैली में 10 स्कूल मास्टर और 7 पटवारी भी घायल हुए थे. इन‌ मास्टरों और पटवारियों की ड्यूटी अमित शाह की रैली में भीड़ जुटाने के लिए लगाई गई थी.

रैली में भीड़ जुटाने की यह घटना न‌ई नहीं है. जब भी कहीं किसी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की रैली होती है, सरकारी मुलाजिमों की ड्यूटी इस तरह के कार्यक्रम में लगाई जाती है. वे अपना कामकाज छोड़ कर नेताओं की रैली में भीड़ जुटाने का काम करते हैं. कायदेकानून की अनदेखी कर के एक जिले से दूसरे जिले में बसों को बिना परमिट भेजा जाता है.

इन रैलियों में सब से ज्यादा एससीओबीसी तबके के लोगों का इस्तेमाल किया जाता है. इन जातियों का बड़ा तबका अभी भी रोजीरोटी के‌ लिए जद्दोजेहद करता है. अपने परिवार का पेट पालने के लिए रोज कड़ी मेहनत करता है, तभी उन के घरों का चूल्हा जलता है.

यही वजह है कि जब राजनीतिक दलों के लोग उन्हें दिनभर की मजदूरी और खानेपीने का लालच देते हैं, तो वे यह सोच कर आसानी से तैयार हो जाते हैं कि एक दिन की मजदूरी भी मिल जाएगी.

रैलियों की भीड़ जीत का पैमाना नहीं

राजनीतिक दलों की रैलियों में जुट रही भीड़ से इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वोटर का रुख किस के पक्ष में है. क‌ई बार वोटर सभी दलों की रैलियों में बतौर मेहनताना शामिल होता है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय भी जब प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली थी, तब उन की रैलियों में काफी भीड़ जुटती थी. इसी तरह से साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव और राहुल गांधी की रैलियों में भी भीड़ बहुत रहती थी, मगर चुनाव में जीत भारतीय जनता पार्टी की हुई थी. भाजपा ने 300 से ज्यादा सीटें हासिल की थीं.

दलितों की हिमायती मायावती की रैलियों में भी भारी भीड़ उमड़ती थी. बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि वे एकलौती ऐसी नेता हैं, जिन के लिए मैदान छोटा पड़़ जाता था, इसलिए किसी की रैली में उमड़ी भीड़़ के आधार पर किसी पार्टी या नेता की जीत का दावा नहीं किया जा सकता.

बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में सभी दल वोटरों को लुभाने में लगे थे, रैलियों में भीड़ भी दिखाई दे रही थी, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैरानपरेशान थे, क्योंकि उन की रैलियों से भीड़ न जाने कहां गायब हो गई थी.

रैलियों से नदारद भीड़ को देख कर नीतीश कुमार यह मान चुके थे कि सत्ता उन के हाथ से फिसल कर राष्ट्रीय जनता दल की की झोली में जा रही है, लेकिन जब वोटिंग मशीनों से नतीजे निकले तो राजनीतिक पंडित ही नहीं, बल्कि नीतीश कुमार भी हैरान रह गए थे.

उस समय नीतीश कुमार की जीत में महिला वोटरों ने अहम रोल निभाया था, जो नीतीश सरकार द्वारा प्रदेश में शराबबंदी किए जाने से नीतीश सरकार की मुरीद हो गई थीं. इस के अलावा कानून व्यवस्था में सुधार भी एक अहम मुद्दा था. बिहार में महिला वोटरों को लगता था कि अगर बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की सरकार बन जाएगी, तो बिहार में फिर से जंगलराज कायम हो जाएगा.

नरेंद्र मोदी की भीड़ भी नहीं दिला पाई जीत

आज भी देश के ज्यादातर इलाकों में आदिवासी और दलितपिछड़े तबके के लोग कम पढ़ेलिखे हैं, उस की वजह सरकारी योजनाओं का फायदा उन तक नहीं पहुंच पाना है. इसी वजह से आदिवासी और दलितपिछड़ों के वोट बैंक का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियां अपने लिए आसानी से करती रहती है.

साल 2018 के विधानसभा चुनाव के वक्त 24 अप्रैल को मध्य प्रदेश के मंडला जिले में भी एक बड़ी रैली का आयोजन सरकार द्वारा किया गया था, जिस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे.

रमपुरा गांव में रहने वाले आदिवासी वंशीलाल गौड़ बताते हैं कि उन्हें बस द्वारा मंडला ले जाया गया था. रास्ते में खानेपीने के इंतजाम के साथ रैली से लौटने पर 500 रुपए बतौर मेहनताना दिए गए थे. इस रैली में लाखों की तादाद में आदिवासियों को मध्य प्रदेश के ‌क‌ई जिलों से बसों में भर कर लाया गया था.

इस भीड़ को देख कर भाजपा ने यही अंदाजा लगाया जा कि उस की सरकार फिर से बनेगी, लेकिन उस समय कांग्रेस की सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे. यह अलग बात है कि 15 महीने बाद भाजपा ने सिंधिया समर्थक विधायकों की खरीदफरोख्त कर फिर से सरकार बना ली थी.

पश्चिम बंगाल में साल 2021 में विधानसभा चुनाव के समय भी यही नजारा देखने को मिला था, जहां भाजपा की रैलियों में जनसैलाब उमड़ रहा था. ऐसा लग रहा था कि ममता बनर्जी की सत्ता से विदाई तय है. भाजपा की रैलियों में जनता की मोदी के प्रति दीवानगी देखने लायक थी.

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में ब्रिगेड मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में उमड़े जनसैलाब की तसवीरों को कौन भूल सकता है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों में यहां किसी भी नेता को सुनने के लिए इतने लोगों की भीड़ एकसाथ जमा नहीं हुई थी.

इस मैदान के बारे में यह कहा जाता रहा है कि केवल कम्यूनिस्टों की रैली में ही यह पूरा भर पाता था. तृणमूल की रैली में भी इस मैदान में काफी भीड़ जमा होती थी, पर भाजपा की यहां हुई रैली में जुटी भीड़ माने रखती थी. इस रैली के जरिए भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत को दिखाया था.

भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के लिए 10 लाख लोगों की भीड़़ जुटाने का टारगेट रखा था. इस के लिए भाजपा ने राज्य के हर शहर, हर गांव से कार्यकर्ताओं को कोलकाता पहुंचने का आदेश दिया था.

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के लिए यह रैली पश्चिम बंगाल में इज्जत का सवाल बन गई थी. इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं ने पश्चिम बंगाल के नेताओं को साफ निर्देश दिया था कि किसी भी कीमत पर इस रैली को कामयाब बनाना है.

मध्य प्रदेश के भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय इस रैली की देखरेख खुद कर रहे थे. उन्हीं के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल के लोकल भाजपा नेताओं ने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में इतनी बड़ी तादाद में जनसैलाब जुटाया था. लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा चारों खाने चित नजर आई और ममता बनर्जी फिर से मुख्यमंत्री बनीं.

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भी साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में रैली की थी, जो भीड़ के हिसाब से ऐतिहासिक थी, पर नतीजों के लिहाज से फेल ही रहीं.

एक दौर था जब लोग नेताओं के भाषण सुनने जाते थे और नेता नुक्कड़ सभाओं के जरीए अपनी बात जनता के बीच रखते थे. किसी दल या नेता की रैलियों में जुटने वाली भीड़ से अंदाजा लगा लिया जाता था कि किस दल का पलड़ा हलका या भारी है.

इस के पीछे की मुख्य वजह यही थी कि तब वोटर अपनी मरजी से अपने चहेते नेताओं के भाषण सुनने और उसे देखने आया करते थे, लेकिन अब समय बदल चुका है. धीरेधीरे भीड़ जुटाने के लिए रणनीति बनने लगीं. लोगों को खानेपीने और पैसे का लालच दे कर रैली की जगह पर बुलाया जाने लगा, इसीलिए कई बार भीड़ में जो चेहरे एक पार्टी के रैली में दिखाई देते थे, वही चेहरे दूसरी पार्टी की रैली में भी दिख जाते हैं. अब भीड़ के बिना नेता भाषण भी देना नहीं चाहता.

पंजाब का वाकिआ लोगों को याद ही होगा जब सभा में भीड़ न जुटने के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुरक्षा में खामी बता कर वापस लौट आए थे.

हैलीकौप्टर और फिल्मी ऐक्टर देखने उमड़ती है भीड़

चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए राजनीतिक दलों के लोग तमाम तरह के हथकंडे अपनाते हैं. गांवकसबों में भी चुनाव के वक्त बड़े नेताओं, फिल्मी ऐक्टरों की रैली और सभाएं होती हैं, जिन में लोग केवल फिल्म ऐक्टर और हैलीकौप्टर को देखने जाते हैं.

साल 2018 के विधानसभा चुनाव में गाडरवारा विधानसभा में भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने फिल्म हीरोइन हेमा मालिनी आई थीं, जिन्हें देखने के लिए भारी तादाद में भीड़ जुटी थी, लेकिन यह भीड़ भाजपा उम्मीदवार को जीत नहीं दिला सकी.

चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार की कोशिश रहती है कि उस के प्रचार में कोई स्टार प्रचारक हैलीकौप्टर से आए और उस बहाने बड़ी तादाद में भीड़ जमा हो जाए. पार्टी आलाकमान के कहने पर स्टार प्रचारक हैलीकौप्टर में सवार हो कर दिनभर में 4-5 सभाएं करते हैं, जिन्हें देखने के लिए भीड़ लगती है और पार्टी उम्मीदवार समझता है कि उस की जीत पक्की हो गई है. कई बार तो इस तरह की रैली में भाषण देने आए इन स्टार प्रचारकों को उम्मीदवार का नाम ही पता नहीं रहता है.

रणनीतिकार बाकायदा दावा करते हैं कि अमुक नेता की रैली में इतने लाख की भीड़ जुटेगी और भीड़ जुटती भी है, लेकिन इस में कौन किस पार्टी को वोट देगा, कोई नहीं जानता. अब रैलियों की भीड़ से किसी दल या नेता की लोकप्रियता का अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है.

चुनाव का वक्त आते ही सभी राजनीतिक दलों के नेता दलितपिछड़े लोगों के हिमायती बन जाते हैं और चुनाव जीतने के बाद कोई उन की सुध तक नहीं लेता. इसी तरह चुनाव में शराब और पैसे का लालच दे कर इन भोलेभाले लोगों के वोट हासिल किए जाते हैं और फिर पूरे 5 साल तक उन की अनदेखी की जाती है.

विकास की मुख्यधारा से हमेशा दूर रहने वाले इस तबके के लोगों का चुनावी रैलियों में इस तरह से इस्तेमाल करना लोकतंत्र का मजाक नहीं तो और क्या है. दलितपिछड़े तबके के लोगों को जागरूक होने की जरूरत है.

राहुल गांधी ने अडानी समूह के बहाने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा

दुनिया का सब से बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति में ईमान को ताक पर रख दिया है. चाहे आर्थिक हो, राजनीतिक हो, सामाजिक हो या फिर वैश्विक क्षेत्र हो, हर जगह वह सब काम किया है, जो देशहित में नहीं है और कतई नहीं करना चाहिए.

इस का वर्तमान में कमज्यादा असर होता दिखाई दे रहा है. आगे दूरगामी रूप में यह देश के लिए घातक साबित होगा. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की दशा और दिशा पर आज रिसर्च करने की जरूरत है, ताकि आने वाले समय में भाजपा की नीतियों के चलते देश को जो चौतरफा नुकसान हो रहा है, उस का आकलन किया जा सके.

भारतीय जनता पार्टी में देश के प्रति समर्पण, निष्ठा और ईमानदारी की कमी है. एक राजनीतिक दल होने के नाते सत्ता में होने के चलते देश की आम जनता को किस तरह आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाए, यह भावना भी उस में नहीं दिखाई देती.

इस की जगह पर ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’, ‘मंदिर बनाएंगे’ जैसे मसलों को ले कर जनता को बरगलाने का काम किया गया. इसी के तहत भाजपा के बड़े नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा मुकेश अंबानी और गौतम अडानी दोनों को जो संरक्षण दिया गया, इस के चलतेवे दोनों मालामाल हो गए.

जिस तरह भाजपा दुनिया की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का ढोल बजा रही है, उसी तरह गौतम अडानी को भी दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बनने के लिए केंद्र सरकार खुल कर समर्थन कर रही है.

यह बात आज देश का बच्चाबच्चा जानता है. यही वजह है कि जब गौतम अडानी समूह की पोल खुली तो वह लुढ़क कर नीचे आ गया. नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरह गौतम अडानी को समर्थन दिया है, वह सीमाओं का अतिक्रमण करता है और देश के लिए चिंता का सबब होना चाहिए.

देश में कांग्रेस और दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने भी सरकार चलाई है, मगर कभी भी किसी उद्योगपति का आंख बंद कर के समर्थन नहीं किया गया. यही वजह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने अडानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखा कर 12,000 करोड़ रुपए की अनियमितता का आरोप लगाया है और कहा है कि अगर साल 2024 में उन की पार्टी को केंद्र सरकार बनाने का मौका मिला, तो इस कारोबारी समूह से जुड़े मामले की जांच कराई जाएगी.

दुनिया की निगाहों में अडानी

राहुल गांधी ने ब्रिटिश अखबार ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की एक खबर का हवाला देते हुए कहा, “वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस संदर्भ में मदद करना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री अडानी समूह के मामले की जांच कराएं और अपनी विश्वसनीयता बचाएं.”

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले के अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने खुल कर अपना और पार्टी का पक्ष देश के सामने रख दिया है और नरेंद्र मोदी पर तल्ख टिप्पणी की है. नरेंद्र मोदी और देश उस चौराहे पर खड़ा है, जहां से गौतम अडानी पर सरकार को जांच कर के दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए.

मगर आजकल भारत सरकार जिस तरीके से काम कर रही है, वह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जहां सरकार और उन के चेहरों के पक्ष की बात होती है, वहां फैसले बदल जाते हैं. यह बात देश के लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती और दुनिया के जीनियस इसे ले कर चिंतित हैं.

राहुल गांधी ने उद्योगपति गौतम अडानी से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की मुलाकातों को ले कर सफाई दी और कहा, “शरद पवार देश के प्रधानमंत्री नहीं हैं और अडानी का बचाव भी नहीं कर रहे हैं, इसलिए वे राकांपा नेता से सवाल नहीं करते.”

दरअसल, राहुल गांधी ने ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की जिस खबर का हवाला दिया है, उस में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री काल में साल 2019 और साल 2021 के बीच अडानी की 31 लाख टन मात्रा वाली 30 कोयला शिपमैंट की स्टडी की गई, जिस में कोयला व्यापार जैसे कम मुनाफे वाले कारोबार में भी 52 फीसदी लाभ समूह को मिला है.

कुलमिला कर सच यह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने अडानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखा कर 12,000 करोड़ रुपए की अनियमितता का आरोप लगाया है.

उन्होंने कहा, “यह चोरी का मामला है और यह चोरी जनता की जेब से की गई है. यह राशि करीब 12,000 करोड़ रुपए हो सकती है. पहले हम ने 20,000 करोड़ रुपए की बात की थी और सवाल पूछा था कि यह पैसा किस का है और कहां से आया? अब पता चला है कि 20,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा गलत था, उस में 12,000 करोड़ रुपए और जुड़ गए हैं.अब कुल आंकड़ा 32,000 करोड़ रुपए का हो गया है.”

राजनीति के समर में शरद पवार की गुगली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सब से बड़े नेता शरद पवार का राजनीति के मैदान में घातप्रतिघात का दौर चल रहा है. नरेंद्र मोदी लगातार प्रयास में लगे हुए हैं कि शरद पवार को अपने पक्ष में ले कर देश की राजनीति का मानचित्र ही बदल दें. वहीं दूसरी ओर शरद पवार हैं कि लगातार लाख कोशिशों के बावजूद नरेंद्र मोदी के संजाल में फंसने के बजाय नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़ी लकीर खींचते चले जा रहे हैं, ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में शरद पवार की एक बड़ी भूमिका सामने आने की संभावना दिखाई देने लगी है.

शरद पवार के गृह प्रदेश महाराष्ट्र के साथसाथ देश की सियासत में उठापटक जारी है. इसी उठापटक के बीच खबर आई है कि नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार को कैबिनेट मंत्री का पद औफर किया गया है. लेकिन खुद शरद पवार ने इन अटकलों पर प्रतिक्रिया दी है और जो कहा है, उस से नरेंद्र मोदी के हाथों के तोते उड़ने लगे होंगे.

शरद पवार ने कहा, “मैं नरेंद्र मोदी केबिनेट में आ रहा हूं, इस से वाकिफ नहीं हूं. सीक्रेट मीटिंग की बातें हो रही हैं, लेकिन वास्तविकता ये है कि इस बैठक में कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई. केंद्र सरकार ने मुझे कैबिनेट मंत्री बनने का औफर किया है. इस तरह की बातों में कोई सचाई नहीं है.

“भारत में राजनीतिक माहौल मोदी के पक्ष में नहीं है. केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में भाजपा सत्ता में नहीं है. यहां तक कि चंद्रबाबू नायडू भी इंडिया गठबंधन से जुड़ गए हैं. महाराष्ट्र और मध्य

प्रदेश में नरेंद्र मोदी की भाजपा ने सरकारों को अस्थिर किया. दिल्ली, झारखंड, बंगाल और अन्य राज्यों में भाजपा सत्ता में नहीं है. देश के लोगों ने यह तय कर लिया है कि उन्हें क्या करना है. इसलिए अब नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि मैं वापस आऊंगा. पवार ने कहा कि भाजपा ने कई राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने का काम किया है.”

सचाई देश को बता दी

देश के महत्वपूर्ण नेताओं में  एक शरद पवार ने बेबाक तरीके से अपनी बात रखी है. शरद पवार ऐसे नेताओं में हैं, जिन की बात देश बड़ी गंभीरता से सुनता है और जो बहुत ही सालदोरिक तथ्य के साथ अपनी बात रखते हैं. सरसावा में जो कुछ कहा है, उसे अगर हम सच मानें, तो नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में उलटी गिनती शुरू हो गई है.

शरद पवार ने कहा, “मोदी की अगुआई में चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने का काम किया जा रहा है. मणिपुर चीन की सीमा पर है. इस वजह से यह संवेदनशील राज्य है. हमें सचेत रहने की जरूरत है. लेकिन उत्तर भारत में जो हो रहा है, वह चिंताजनक है. पुलिस बलों पर हमला किया गया. दो समुदायों के बीच जहर घोला जा रहा है. नरेंद्र मोदी मणिपुर को ले कर लोकसभा में सिर्फ तीन से चार मिनट ही बोलते हैं.”

इस तरह शरद पवार ने सबकुछ देश को बता दिया है. जो आप सोचतेसमझते हैं और इन बातों में  सचाई भी है. इस तरह उन्होंने एक अलग लाइन खींच दी है. इस सब के बाद विपक्ष के नएनए गठबंधन इंडिया में एक नई ताकत का संचार होना स्वाभाविक है और नरेंद्र मोदी के लिए चिंता का सबब.

गरीब मजदूरों की पेंशन योजना

2019 में नरेंद्र मोदी ने बड़ी शानशौकत से प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन पेंशन योजना गरीब मजदूरों के लिए शुरू की थी कि गरीबों को भी पेंशन मिलेगी और उन का बुढ़ापा आराम से कटेगा. कहने को तो यह सरकारी योजना थी पर असल में सिर्फ ढोल सरकारी था, बाकी हर माह श्रमिकों को किस्तें भरने थीं.

इस का प्रीरियम के माह भरना होता है और जितना मजदूर देगा उतना सरकार भी जोड़ेगी. 60 साल की उम्र के बाद मरने तक 3000 रुपए मिलने का वादा किया है.

जैसा इस देश में ङ्क्षहदू धर्म के गुलावे पर होता है, प्रधानमंत्री के बुलावे पर 4 करोड़ लोगों ने इस पेंशन स्क्रीम में भाग भी ले लिया पर 6 महीने में एक चौथाई ने जो जमा किया था वह निकाल लिया और आगे भरना बंद कर दिया. सरकार की गरीब औरतों के लिए उज्जवला गैस योजना की तरह यह भी टायटाय फिस्स योजना है क्योंकि सरकार की नीयत ही साफ नहीं थी.

धर्म के घोड़े पर चढ़ कर आई और धर्म की गाड़ी में चल रही यह सरकार सोचती है कि जैसे मागेश्वर धाम या निर्मल बाबा के झूठे वादों पर लोगों का कल्याण हो जाएगा वैसे ही यह मंदिर, घाट, स्टेचू, कौरीडोर और इस तरह की डटपटांग वादों वाली योजनाओं से कल्याण करा देगी.

रामचरित मानस पढ़ लीजिए. उसे मानने पर भला सिर्फ ब्राह्मïणों का होता है. आम मजदूर, तेली, केवट, शूद्र, सवर्णों की औरतें सब तो मार ही खाती है. यही सरकार की नीतियों से होता है. फायदा सिर्फ सरकार में बैठे हर ब्राह्मïणनुमा अफसर और बाबूका होता है, आम आदमी तो टोकरे भर चढ़ावा चढ़ाने के बाद चुटकी भर प्रसाद पाता है.

यह पेंशन योजना भी ऐसी है और ऐसी सैंकड़ों योजनाएं भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारों ने पिछले सालों में जगहजगह चालू की हैं जिन में लोगों ने उम्मीदों से पैसा लगाया पर मिला कुछ नहीं. शौचालय योजना की बात तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूल कर भी कभी दोहराते नहीं हैं पर गांधी परिवार को हर भाषण में कोसने से बाज नहीं आते. पिछले 70 सालों में देश में कुछ नहीं हुआ. जो हुआ इस तरह की पेंशन, उज्जवला, शौचालय योजनाओं से हुआ जिन में गरीबों के पहले लाइन में लग कर भाग लिया फिर उसी तरह भाग खड़े हुए जैसे संतोषी माता के दरबारों से निकल आए.

नतीजा यह है कि  देश में गरीबी बढ़ रही है. सरकार के पैसों पर चल रही इकोनोमिक एडवाइजरी काउंसिल ने ही कहा कि देश में गरीबी उस से कहीं ज्यादा है जितना की दावा किया जाता है. शमिका रौय और मुदित कपूर की एक रिपोर्ट को जो सरकार की पोल खोलती है सरकार ने 272 के बीचे छिपाने का फैसला लिया है.

देश में मंदिर बढ़ रहे हैं, अवारा गाएं बढ़ रही है पर आम मजदूर गरीब हो रहा है.

नरेंद्र मोदी का जादू

नरेंद्र मोदी का जादू जो सिर पर चढ़ कर इतने साल बोला अब लगता है कि धीमा पडऩे लगा है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी खुद अपने से नाराज होकर गई पाॢटयों को दोबारा बुला रही है. 18 जुलाई को हुई एक मीङ्क्षटग में कई पुराने साथी आए जो पहले कतार में लगे थे पर बाद में उन्होंने भाजपा से नाता  तोड़ लिया.

भाजपा की धर्म फौज रातदिन नरेंद्र मोदी को देवताओं को अवतार बनाने में लगी रही है और अगर फ्रांस के म्यूजियम में खाना भी वह खा आएं तो सुॢखयां बनवाता है जबकि इस म्यूजियम को कोई भी खाना खिलाने के लिए किराए पर ले सकता है. भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ रही साबित करने में कि नरेंद्र मोदी में देश को एक चमत्कारी नेता मिला है.

नरेंद्र मोदी चमत्कारी है, इस में शक नहीं है, उन्होंने 2016 चमत्कार से 500 रुपए और 1000 रुपए के नोट गायब कर दिए और पूरे देश को बैंकों के आगे लाइनों में लगवा दिया. रातोंरात चमत्कार से मजदूरों के अधड़ में रखे गाड़ी कमाई के रुपए कोरे कागज में बदल गए.

जब कोरोना आया तो रातोंरात उन्होंने चमत्कार से लौकडाउन थोप दिया चाहे इस की जरूरत थी या नहीं और लाखों मजदूर जो चलना भूल चुके थे सैंकड़ों मील पैदल तपती धूप में चलने लगे. उन्होंने चमत्कार से थालीताली बजवा कर बता दिया कि इस से कोरोना पर 17 दिनों में जीत हासिल हो जाएगी का फायदा कर डाला और यह चमत्कार ही है कि पूरा देश हल्ला मचाने लगा. शायद चीन अमेरिका तक गूंज पहुंची होगी.

उन के राज में चमत्कार हुए कि खालिस कांग्रेसी नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल और सुभाष चंद्र बोस मरने के 50 साल बाद भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बन गए और एक की मूॢत गुजरात में लगा दी गई दूसरे की इंडिया गेट पर. दोनों ने जीवन भर ङ्क्षहदू महासभा और आरएसएस को गलत माना पर नमस्कार के कारण वह इतिहास अब भुला दिया गया.

चमस्कार के कारण देश भर खुले में शौच खत्म हो गया और घरघर में शौचालय बन गया. जिस में किया गया शौच वहीं पड़ापड़ा घर में बदबू फैलाता है और बिना पानी के न जाने कहां गायब हो जाता है. चमत्कारों में सीवर अपनेआप डालना शायद मोदी भूल गए. उज्जवला गैस का चमत्कार हुआ कि करोड़ों कारों गैस के सिलेंडर पहुंच गए और अब उन पर गोबर के उपले रख कर खाना बनाया जाता है.

ऐसे चमत्कारी नेता को 2024 में तो जीतना ही है भारतीय जनता पार्टी अब रातदिन इस मेहनत में लगी है जो इन चमत्कारों को नहीं मानते उन्हें किसी तरह ङ्क्षहदू धर्म से निकाल दिया जाए और वे अगर कोई धर्म अपनाएं तो जेल में बंद कर दिया जाएं. भाजपा को छोड़ कर गए नेताओं को ट्र्वाला टाइप का ईडी, सीबीआई थाप का डर दिखा कर कहा जा रहा है कि सीधेसीधे चमत्कारी पार्टी में आ जाओ. जहां आने पर सब ऐसे ही शुरू हो जाते हैं जैसे गांव में नहाने से इस में भाजपा को सफलता मिलेगी इस की पूरी गारंटी है.

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