राजनीति में ऐसे टिकें

रा जनीति में जाने वालों के लिए सब से बड़ी दिक्कत की बात यह है कि राजनीति में कैरियर कैसे बनाएं, यह बताने वाला कोई नहीं है. इस की पढ़ाई कहीं नहीं होती. ऐसे में राजनीति में कैरियर बनाने वालों के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं. उन को लगता है कि केवल नेताओं के पीछे घूमने से ही काम हो सकता है. ऐसा नहीं है.

राजनीति में कैरियर बनाने के लिए जरूरी है कि आप सफल नेताओं के बारे में पढ़ें, उन को सम?ों, उन गुणों को अपने अंदर पैदा करें. आप को खुद से सीखना है, यह बड़ी चुनौती है.

सब के नाम याद रखें

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का नाम हर किसी को पता है. गरीब परिवार में पैदा हुए, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर राजनीति में सब से बड़ा परिवार बना लिया. एक दौर वह था कि भारत में जनता द्वारा चुने गए पदों पर सब से अधिक लोग मुलायम परिवार के थे. 40-50 साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने यह चमत्कार कैसे किया?

राजनीति में कैरियर बनाने वाले हर युवा को मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक यात्रा को सम?ाना और स्टडी करना चाहिए. सब से बड़ी बात कि उन के प्रबल विरोधी भी उन के कायल थे. मुलायम सिंह का सब से बड़ा गुण था कि वे बेहद सरल स्वभाव के थे. उन को अपने हर कार्यकर्ता का नाम याद रहता था. वे सभा के बीच भी किसी आम कार्यकर्ता का नाम ले कर बुलाते थे.

किसी के घर कोई अवसर होता था, सुख या दुख का, तो वे पहुंचते जरूर थे. उन के दौर में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए पैदल, साइकिल, किराए की कार जैसे साधन थे तब भी और जब सरकारी सुविधा मिली तब भी, वे एकजैसा बरताव करते थे.

कानपुर देहात के एक गांव में एक देशराज नाम का साधारण कार्यकर्ता मुलायम सिंह यादव को अपने घर कई बार बुला चुका था. वे नहीं पहुंच पाए थे. साल 2002 के आसपास की बात है.

देशराज का अपना तिलक समारोह था. उस ने मुलायम सिंह को निमंत्रणपत्र दे कर बुलाया. उसे लगा कि नेताजी आएंगे तो हैं नहीं, तो वह अपने घर कामकाज में लग गया.

सरलता सब से बड़ा गुण

जिस दिन देशराज का तिलक था, सुबह 8 बजे उस के क्षेत्र के थाने का दारोगा उस के घर पहुंचा. तब मोबाइल इतना प्रयोग में नहीं होता था. दारोगा ने कहा कि 10 बजे मुलायम सिंह का कार्यक्रम आप के घर पर है. अभी एसपी साहब का मैसेज आया है. देशराज हैरान कि कैसे इतनी जल्दी इंतजाम होगा. समारोह तो शाम का था. वह जैसेतैसे मैनेज करने लगा.

सुबह 10 बजे मुलायम सिंह यादव अपने काफिले के साथ उस के घर आ गए. वे बिना किसी उम्मीद के साथ सहज भाव से मौजूद रहे. गांव और वहां मौजूद लोगों से मिलते रहे. आज भी पूरे इलाके में इस बात की चर्चा होती है. अपने कार्यकर्ता की इज्जत तब ज्यादा होती है, जब नेता पर्सनल बरताव रखता है.

बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव का भी ऐसा ही स्वभाव था. होली में फाग वे सब के बीच में आ कर खेलते थे. अपने कार्यकर्ता से ही मांग कर खैनी खा लेते थे. कार्यकर्ता से खैनी मांगने में कोई संकोच नहीं होता था उन्हें.

आज के दौर में तमाम नेता हैं, जो पद हासिल होते ही अपने कार्यकर्ता को सब से पहले भूल जाते हैं. ऐसे में वे कभी भी लंबी रेस की राजनीति नहीं कर पाते. नए नेताओं में तेजस्वी यादव का स्वभाव भी इसी तरह का है.

बिहार में वे अपने एक कार्यकर्ता के घर पर शादी में गए, तो वहां गाली गाने का रिवाज था. महिलाएं थोड़ा संकोच कर रही थीं. तेजस्वी को जैसे ही गानों का मजा लेते सुना, वे गाली गाने लगीं. तेजस्वी यादव ने संकोचसंकोच में ही डांस में भी साथ दिया.

कार्यकर्ता से जुड़ने के लिए यह जरूरी नहीं कि केवल पैसा खर्च हो, उस के ज्यादातर मामलों में उन के बीच जा कर उन की हंसीखुशी में हिस्सा ले कर भी जुड़ा जा सकता है.

ऐसी आदत डालें

भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री हैं नागेंद्र. अभी वे बिहार में संगठन मंत्री हैं. पहले उत्तर प्रदेश में सगठन मंत्री रहे. उन को कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच काम करना होता है. वे अपने पास एक छोटी सी नोटबुक रखते हैं, जिस में हर नेता और कार्यकर्ता का नाम व उस का ब्योरा एक पेज पर लिखा होता है. जब वे जिस क्षेत्र रहते हैं, वहां के नेता और कार्यकर्ता से बात कर उस से मिलने की कोशिश करते हैं.

जो लोग राजनीति में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं, उन को इन टिप्स को ध्यान रखना चाहिए. मोबाइल के इस जमाने में डायरी रखना लोग बंद कर चुके हैं. डायरी में लिखना पड़ता है.

मनोविज्ञानी मानते हैं कि जो बातें लिखी जाती हैं, वे लंबे समय तक याद रहती हैं. ऐसे में डायरी लिखना जरूरी होता है. डायरी में अपनी रोज की गतिविधियों को लिखना चाहिए.

डायरी लिखने के साथ ही साथ राजनीति में कदम रखने वालों को पढ़ना भी चाहिए. पढ़ने से विचार बनते हैं, जिन को बोलने से सामने वाले पर असर  पड़ता है. नेता के लिए जरूरी होता है कि लोग उस के बोलने को सुनें. जैसे  प्रधानमंत्री रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में कहा जाता है कि वे कठोर से कठोर बात भी बड़े सहज लहजे में कह जाते थे. उन के बोलने की ताकत ऐसी थी कि गंभीर बहस के बीच भी हंसी छूट जाए. इस की वजह यह थी कि वे लिखते और पढ़ते दोनों ही बहुत थे.

एक बार संसद में बहस चल रही थी. विपक्ष के नेताओं ने आवाजें करनी शुरू कर दीं. माहौल को हलका करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी बोले, ‘मेरा नाम केवल अटल नहीं है, मैं बिहारी भी हूं.’ यह सुनते ही पूरे सदन की हंसी छूट गई. माहौल बदल गया.

बड़े काम की छोटीछोटी बातें राजनीति में अगर कैरियर बनाने जा रहे हैं, तो छोटीछोटी बातें बहुत काम की हैं. जिन कार्यक्रमों में आप को बुलाया गया है, वहां तो जाएं ही, साथ ही जहां आप को कैरियर के हिसाब से बेहतर लग रहा हो, वहां जरूर जाएं. जिन नए लोगों से मिलें, उन के नाम और परिचय ले लें, जिस से आगे मेलजोल बना रहे.

कभी भी ?ागड़ा न करें. ?ागड़ा करने से फालतू का तनाव ?ोलना पड़ता है, अपने काम की जगह पर थानाकचहरी करनी पड़ती है. कई बार छोटी सी गलती कैरियर को खत्म कर सकती है.

समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान इस का उदाहरण हैं. वे बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि शायद छुरी से वार हो रहा हो. चुनाव के दौरान अधिकारियों को ले कर कहे गए ऐसे ही शब्द उन के गले में फांस बन गए.

दमदार नेताओं से अपने संबंध रखें, लेकिन एक सावधानी रखें कि उन के साथ सैल्फी या फोटो सोशल मीडिया पर न डालें. सोशल मीडिया पर डालने से विरोधी को पता चल जाता है कि आप के किस से संबंध हैं. आप का विरोध करने वाले इस का लाभ उठाने में नहीं चूकते.

अपने से छोटे कार्यकर्ता के साथ संबंध अच्छे रखें. उन का हौसला बढ़ाते रहें और समयसमय पर बिना काम के भी बैठक करते रहें. कार्यकताओं पर खर्च भी करते रहें. अगर कहीं से पैसा मिल रहा है, तो उसे बचा कर रखें. उस का इस्तेमाल राजनीति में आगे बढ़ने के लिए करें. गलत तरह से पैसा न कमाएं.

उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में डाक्टर राजेश्वर सिंह और असीम अरुण पुलिस अफसर की नौकरी छोड़ कर विधायक बनने के लिए चुनाव लड़े. दोनों ही चुनाव जीत गए. असीम अरुण तो योगी सरकार में मंत्री भी बन गए. दिल्ली में आम आदमी पार्टी में वे ही विधायक बने, जो कुछ दिनों पहले तक एनजीओ चला रहे थे. इस तरह से दूसरे कैरियर में कामयाब होने के बाद भी राजनीति में कामयाब हो सकते हैं.

जिंदा इंसान पर भारी मरा जानवर

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़, जो अन्य पिछड़ा वर्ग के तेली तबके से है, इस बात से खफा हो गया था कि राजकुमार वाल्मीकि मरी गाय को घसीट क्यों रहा था? वह अपने सिर पर उठा कर क्यों नहीं ले जा रहा था? सड़क पर घसीटे जाने से गौमाता की बेइज्जती हो गई और जिस की सजा राजकुमार वाल्मिकी को भीड़ के सामने दे दी गई.

कोटा की सांगोद नगरपालिका में मरे जानवरों को उठाने का जिम्मा राजकुमार वाल्मीकि के पास है. वह एक मरी हुई गाय को घसीट कर ले जा रहा था, तभी कुछ नवहिंदुत्ववादी लोगों की नजर उस पर पड़ती है. ये लोग खुद सदियों तक ब्राह्मणों के अत्याचार सहते रहे, पर आज उन से ज्यादा धार्मिक हैं और हिंदुत्व की माता के प्रति एकदम सम्मान उमड़ पड़ता है.

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वे राजकुमार वाल्मीकि को रोक देते हैं और नगरपालिका के चेयरमैन देवकीनंदन राठौड़ को बुलाया जाता है. उस ने जैसे ही मामला देखा तो तो वह राजकुमार को मांबहन की गालियां देते हुए उस पर टूट पड़ा.

थप्पड़ों व रस्सियों से पीटते हुए राजकुमार को सम झाया जाता है कि हम ने हमारी मृत मां को ठिकाने लगाने के लिए तु झे जिम्मा दिया था. उस को कंधों पर उठा कर ले जाना चाहिए.

नगरपालिका चेरयमैन ने ठेका देते हुए शायद अर्थियों, फूलमालाओं की व्यवस्था भी टैंडर में की होगी. अपनी माता के अंतिम संस्कार के लिए महल्ले वालों को भी कंधा देने की बात लिखी होगी, क्योंकि अकेला इनसान तो अर्थी उठा कर नहीं ले जा सकता.

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है. जब वह दलित वाल्मीकि नौजवान की मृत गाय के लिए गालियां देते हुए पिटाई कर रहा था, तब उस के सैकड़ों समर्थक वीडियो बना कर उसे वायरल कर रहे थे और भाजपा नेता को उकसाने का काम कर रहे थे.

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इस घटना की एफआईआर दर्ज हो चुकी है. हर जगह इस काम की निंदा हो रही है. प्रदेश के सफाई वाले, वाल्मीकि समाज और दलित बहुजन संगठन भयंकर गुस्से में हैं. इस घटना के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं. चेतावनी दी गई है कि आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही नहीं की गई तो राज्यभर की सफाई व्यवस्था ठप कर दी जाएगी.

आखिर एक मरे हुए जानवर की इज्जत के लिए जिंदा दलित की इज्जत को क्यों बारबार तारतार किया जा रहा है? पुराने समय से ही गांवों में मरे पशु घसीट कर ही फेंक जाते रहे हैं. शहरों में ट्रैक्टरट्रौली में ले जाए जाते हैं, पर सांगोद के इस ठेकेदार को ट्रौली के पैसे नहीं मिलते थे. इस के चलते वह मरी गाय को घसीटते हुए ले जा रहा था.

झज्जर में भी मरे पशु की चमड़ी निकालते समय 5 दलित जिंदा जला दिए गए थे. उन की हत्या पर अफसोस जताने के बजाय विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन नेता गिरिराज किशोर ने कहा था, ‘हमारे लिए मरी हुई गाय जिंदा दलितों से ज्यादा पवित्र है.’

पिछले 20-25 सालों में वाल्मीकि समाज का बहुत हिंदुत्वकरण किया गया है. इन की बस्तियों में खूब शाखाएं लगाई जाती हैं. सेवा भारती के प्रकल्प चलते हैं. वंचित बस्ती भाजपाई गौभक्तों की सब से बड़ी प्रयोगशाला बन जाती है.

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सांगोद जैसी घटनाओं से दलित वाल्मीकियों को अपनी औकात सम झ आ जानी चाहिए कि उन की जगह एक मरे जानवर से भी कमतर है.

जिस तरह का लिंचिंग वाला समाज बनाया गया और दलित चुप रहे कि गाय के नाम पर मुसलिम मारा जा रहा है, हमारा क्या? आज हालात ये हैं कि मुसलिम जिंदा गायों के नाम पर लिंच किए जा रहे हैं और दलित मरी गायों के लिए, पर हर जगह चुप्पी है. मोहन भागवत तो कहते हैं कि इस तरह के कामों को लिंचिंग का नाम दे कर बदनाम किया जा रहा है.

इस घटना पर दलित चिंतक भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘‘सांगोद की घटना का सभी जगह विरोध होना चाहिए, एट्रोसिटी ऐक्ट में जो मुकदमा दर्ज हुआ है, उस पर तुरंत कार्यवाही हो. भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ की तुरंत गिरफ्तारी हो. भाजपा उसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करे और पीडि़त नौजवान को इंसाफ मिले.

‘‘जब तक यह न हो, हमें संवैधानिक तरीके से आंदोलन चलाना होगा. गंदगी करने वाले समाज को सफाई करने वाले समाज का मजबूत जवाब जानना चाहिए. जिन की माता गाय है, उन को ही उसे संभालना चाहिए, हम क्यों उठाएं किसी की मरी हुई मांओं को?’’

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