राजपूत समाज की एक शादी में दूल्हे और उस के परिवार ने टीके की रस्म में सवा लाख रुपए लेने से साफ इनकार कर दिया. शगुन का सिर्फ एक रुपया ही स्वीकार किया.
जोधा परिवार ढिमडा बेरा भांवता, अजमेर के रहने वाले अजय सिंह राठौड़ की शादी थी. उन की बरात टोंक जिले की निवाई तहसील के गांव माताजी का भूरटिया के रहने वाले चतर सिंह राजावत के घर गई, जहां उन की शादी कविता कंवर के साथ हुई.
इस दौरान जब टीके की रस्म शुरू हुई तो दुलहन के पिता ने थाल में नोटों की गड्डियां रख कर दूल्हे की तरफ बढ़ाया. यह देख अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘मैं यह पैसा नहीं ले सकता. हमारे लिए तो दुलहन ही दहेज है. देना ही है तो एक रुपया शगुन के तौर पर दे दें.’
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दुलहन पक्ष के लोगों ने काफी समझाया, लेकिन दूल्हा अपनी बात पर अडिग रहा. उस ने भारीभरकम रकम के बजाय एक रुपए का सिक्का ही टीके के शगुन के तौर पर लिया.
दूल्हे की ऐसी पहल को देख कर शादी में आए हर किसी ने उस की तारीफ की.
दूल्हे के पिता कमलेश सिंह राठौड़ ने बताया कि हर लड़की को उस के मातापिता पढ़ालिखा कर बड़ा करते हैं. शादी में उन्हें दहेज की चिंता भी सताती है. लेकिन एक पिता जब अपनी बेटी को ही दे देता है तो इस से बढ़ कर और क्या चाहिए?
दूल्हे के पिता की यह बात सुन कर दुलहन के पिता चतर सिंह राजावत की आंखों में आंसू भर आए. उन्होंने कहा कि वे बेटी की शादी में टीके के तौर पर सवा लाख रुपए देने को तैयार थे, मगर समधीजी ने यह रकम न ले कर बड़प्पन दिखाया है. यह समाज के लिए अच्छा संदेश है. ऐसा दामाद और ससुर पा कर उन का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.
देश में जहां एक तरफ लोग अपनी बेटियों की शादी में लाखोंकरोड़ों रुपए खर्च कर के गरीब लड़कियों के परिवार वालों के सामने तमाम मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजपूत समाज के अजय सिंह राठौड़ ने शादी के मंडप का सामाजिक जागरूकता के लिए इस्तेमाल कर के समाज में एक बेहतरीन मिसाल पेश की है.
दरअसल, ‘5 लाख लड़कियां हर साल मां के पेट में मार दी जाती हैं सिर्फ दहेज की वजह से’ और ‘दहेज की कमी की वजह से लड़कियों की शादी न हो पाना’ जैसी सामाजिक हकीकत अजय सिंह राठौड़ और उन के पिता को काफी दिनों से बेचैन कर रही थी, इसलिए दहेज प्रथा के खिलाफ बिना दहेज और फुजूलखर्ची किए सादगी से शादी की और समाज में एक मिसाल कायम की.
अजय सिंह राठौड़ बताते हैं कि अपने आसपास मौजूद तमाम लोगों को देखासुना करते थे जो लैंगिक बराबरी और सुधार की बातें हमेशा करते थे, लेकिन सुधार की पहल खुद से करने में कतराते थे. लेकिन पिताजी की प्रेरणा से उन में बराबरी की समझ पैदा हुई और इस सादा शादी के जरीए दहेज जैसी सामाजिक बुराई के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की गई.
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फेरों में लिया जिम्मा
हर किसी के लिए शादी उस का यादगार पल होता है, इसलिए उसे और ज्यादा यादगार बनाने के लिए कुछ न कुछ अलग किया जाता है. कुछ शादी के नाम पर लाखोंकरोड़ों रुपए खर्च करना अपनी शान समझते हैं तो कुछ दहेज को समाज में शाप समझते हुए इस प्रथा को खत्म करने के लिए शादी में शगुन में बतौर एक रुपया स्वीकार कर रहे हैं.
ऐसा ही एक नजारा मंड्रेला कसबे में संचालित एक निजी स्कूल रुक्मिणी देवी विद्या पीठ के डायरैक्टर व फौजी रह चुके तेजाराम बड़सरा के डाक्टर बेटे विकास बड़सरा की शादी में देखने को मिला, जब उन्होंने दहेज न लेते हुए इलाके की 11 जरूरतमंद लड़कियों की पढ़ाईलिखाई का जिम्मा लिया.
मंड्रेला कसबे के नजदीक गांव सूखा का बांस, जिला चूरू के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डाक्टर विकास बड़सरा की शादी चिड़ावा की डाक्टर रुचिका के साथ हुई.
शादी में दूल्हे के पिता तेजाराम बड़सरा ने वर्तमान समय में दिनोंदिन बढ़ रही दहेज प्रथा के खिलाफ समाज को सही संदेश देने के लिए शगुन का एक रुपया ले कर अच्छा संदेश दिया.
तेजाराम बड़सरा ने बताया कि उन का परिवार शुरू से ही सामाजिक सरोकारों को निभाने में विश्वास रखने वाला रहा है. दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई के रूप में उभर रही है, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हर किसी को अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से निभाते हुए इस गलत प्रथा की खिलाफत करनी चाहिए.
डाक्टर विकास बड़सरा व डाक्टर रुचिका ने बताया कि उन्होंने सात फेरों के साथ ही ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की शपथ ली है. इस के तहत वे क्षेत्र की 11 जरूरतमंद बालिकाओं को गोद ले कर उन की पढ़ाईलिखाई का खर्चा उठाएंगे. उन की इस पहल की क्षेत्र के लोगों ने तारीफ की.
सीकर जिले की फतेहपुर तहसील के भींचरी गांव में महज एक रुपए में हुई शादी का असर भी तुरंत देखा गया. शादी में आए 2 और लोगों ने अपने बच्चों की शादी महज एक रुपए में करने का वादा करते हुए वहीं पर सगाई पक्की कर दी.
मुंशी खां बेसवा ने बताया कि बेसवा के रोशन खां के बेटे शमीर खान का निकाह भींचरी के इसहाक खान की बेटी अफसाना के साथ हुआ. निकाह में सिर्फ एक रुपया नेग दिया गया और दुलहन को मात्र एक जोड़ी कपड़ों में ही विदा किया. दोनों ही परिवारों द्वारा शादी का कार्ड भी नहीं छपवाया गया और न ही खाने का आयोजन किया गया. इस निकाह की बेसवा, भींचरी, आलमास, भगासरा समेत आसपास के कायमखानी समाज के लोगों ने तारीफ की.
कायमखानी समाज में शादी में डीजे बंद करने, सादगी से शादी करने और दूसरी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कायमखानी यूथ बिग्रेड सीकर के कार्यकर्ता इस जिले में एक साल से काम कर हैं और उन की मुहिम अब रंग ला रही है. एक साल की कोशिशों के बाद कायमखानी समाज के लोग डीजे और दहेज के बिना सादगी से शादी के लिए राजी हो रहे हैं.
बेसवा गांव से भींचरी गांव में बरात बेहद सादगी से की गई थी. शादी में शामिल सभी लोग अपने वाहनों से ही भींचरी आए.
दूल्हा पक्ष द्वारा एक भी वाहन का इस्तेमाल नहीं किया गया था. बरात में डीजे या बैंडबाजा नहीं था. फोटोग्राफर को भी नहीं बुलाया गया. बरातियों को सिर्फ चाय पिलाई गई.
दूल्हे के पिता रोशन खान ने तो चाय के लिए भी मना कर दिया था. लेकिन दुलहन के पिता ने कहा कि चाय तो आदरसत्कार के लिए है.
न बराती, न बैंडबाजा
पिलानी के वार्ड 2 में रहने वाले रतनलाल रोहिल्ला ने 28 साल पहले बिना बैंडबाजा और बराती के शादी की थी. बिलकुल इसी तरीके से अपने बेटे रोहित की शादी कर मिसाल पेश की.
रतनलाल का कहना है कि शादी में गैरजरूरी खर्चा व समय की बरबादी को ले कर यह फैसला लिया गया. बेटे के लिए लड़की के नेगचार के लिए घर वालों और रिश्तेदारों के साथ कसबे के वार्ड 24 में आए थे.
नेहरू बाल मंदिर स्कूल में अध्यापक के पद पर काम कर रहे पवन कुमार दर्जी की बेटी सीमा के नेगचार के लिए पहुंचे. वर पक्ष ने इसी दिन सादगी के साथ शादी किए जाने का प्रस्ताव रख दिया. पवन कुमार के अलावा उन के चाचा रामकुमार दर्जी, डाक्टर आनंद, डाक्टर लक्ष्मण, मनीराम, लूनकरण वर्मा, चानण वगैरह ने प्रस्ताव मान लिया और शादी की तैयारी में जुट गए.
अचानक लिए गए इस फैसले और वरवधू पक्ष की रजामंदी से शादी हो गई. शाम को वरमाला के साथसाथ सात फेरे की रस्म भी पूरी की गई. मेहमान भी बहुत कम रहे. दहेज भी नहीं लिया गया. लोगों ने इस पहल की तारीफ भी की.
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महल्ले के प्रमुख पीडी जांगिड़ ने बताया कि दोनों परिवारों ने आज के जमाने को देखते हुए एक मिसाल कायम की है. महल्ले वाले न केवल हैरान हैं, बल्कि खुश भी हैं.
गौरतलब है कि दुलहन सीमा एमएससी कर चुकी है. दूल्हे रोहित ने दिल्ली, हल्द्वानी, मसूरी में स्किल डवलपमैंट का औफिस खोल रखा है. सात फेरों के लिए न मंडप, न ही पंडित, न घोड़ी और न ही कोई बैंडबाजा.
दुर्गादास कालोनी, सीकर में हुई इस अनूठी शादी को देख कर हर कोई हैरत में था. हर कोई यही कहता दिखा कि अगर सभी जगह ऐसा होने लगे तो दहेज के चलते न किसी की बेटी जलेगी और न ही किसी बहू को शर्मिंदा होना पड़ेगा.
शादी के गवाह बने लोगों ने इस के बाद दुलहन आनंद कंवर शेखावत व दूल्हे दीपेंद्र सिंह सहित इन दोनों के पिता उम्मेद सिंह व जीवण सिंह को शाबाशी भी दी कि दोनों परिवारों के इस अनूठे संकल्प से केवल 17 हजार रुपए में शादी हो गई, वरना दोनों परिवारों के लाखों रुपए दिखावे में खर्च हो जाते.
सामाजिक मंचों से भी आ रही जागरूकता अलवर जिले के अकबरपुर गांव में दहेज की फुजूलखर्ची के विरोध में पंचायत की गई. पंचायत में लोगों ने शादियों में बैंडबाजा, आतिशबाजी, महंगी गाड़ी वगैरह पर रोक लगाने का फैसला किया. अगर कोई इस नियम को तोड़ेगा तो उस का हुक्कापानी बंद कर दिया जाएगा.
ओमकार सिंह ने कहा कि दहेज प्रथा खत्म करने और फुजूलखर्ची पर रोक लगाने के लिए गुर्जर समाज में मुहिम चलाई जा रही है. दिखावे के चलते गरीब लोगों को अपनी बेटियों की शादी में दिक्कतें आ रही हैं. कुछ लोग दहेज देने से बचने के लिए बच्चियों की भू्रूण हत्या भी करा रहे हैं.
पंचायत में मौजूद पूर्व जिला पंचायत सदस्य रवींद्र भाटी ने कहा कि गुर्जर समाज में शादियों में दहेज के चलते फुजूलखर्ची बेहिसाब बढ़ गई है. समाज में लोग जमीन कब्जे के बदले मिले मुआवजे को बैंडबाजे, आतिशबाजी, महंगे टैंट, महंगी गाड़ी वगैरह पर लुटा रहे हैं.
पंचायत में फैसला किया गया है कि जो दहेज विरोधी फैसलों को नहीं मानेगा, उस का गुर्जर समाज बहिष्कार करेगा. साथ ही, गांव में दहेज की शादी भी नहीं होने देंगे.
edited by Shubham