Editorial: चार दिन का युद्ध, बड़ी बात – सम्मान और शांति के बीच फंसा राष्ट्रवाद

Editorial: पहलगाम में हुए आतंकवादी कांड पर बदले में भारत का पाकिस्तान को दोष देना और उस पर हवाई हमले करना देश के सम्मान और जनता में एक सुरक्षा भावना पैदा करने के लिए जरूरी था. यह अच्छा हुआ कि हवाई युद्ध जमीनी युद्ध में नहीं बदला और 4 दिनों में युद्ध खत्म हो गया पर देश में ऐसे अंधभक्तों की कमी नहीं जिन्हें वास्तविकता का कोई एहसास नहीं है और वे 4 दिनों में बंद युद्ध पर बेहद बिफर रहे हैं.

जब 2 देशों में युद्ध होता है तो देश का आकार माने नहीं रखता, देश के पास किस तरह के हथियार हैं और किस तरह की सेना है, यह महत्त्व का है. भारत और पाकिस्तान के सैनिक एकदूसरे से कम नहीं हैं, क्योंकि मूलत: हम दोनों की सेनाएं उन्हीं जमातों से आती हैं जो सदियों साथसाथ रहीं, साथसाथ एक सा खाना खाया, एक सी नदियों का पानी पिया, एक सा शासक झेला.

धर्म ने आज हम लोगों को अलग कर दिया है पर दोनों देशों की सेनाएं धर्म रक्षा के लिए नहीं बनीं, देश रक्षा के लिए बनी हैं. चूंकि और मामलों में हम एक से हैं, फर्क उन हवाईजहाजों, टैंकों, तोपों, ड्रोनों, मिसाइलों का है जो हम दोनों देशों ने विदेशियों से खरीदीं, इसीलिए इस छोटे 4 दिन के युद्ध में दूसरे देशों के लड़ाकू सामान बनाने वाले ज्यादा रुचि ले रहे थे, बजाय किसी और के.

हम दोनों देशों के बीच जो खाई 75 साल में पैदा हो गई है वह तो अब भरती नहीं है पर इस झड़प ने यह साबित कर दिया है कि एकदूसरे को सूइयां चुभाने से भी लाभ नहीं है.

यह पक्का संदेश दे दिया गया है कि भारत में आतंकवादियों के हमलों की जिम्मेदारी तो पाकिस्तान को लेनी ही होगी क्योंकि यह दुनिया नहीं भूल सकती कि जिस ओसामा बिन लादेन ने 2001 में न्यूयौर्क और वाशिंगटन पर हमला कराया था वह पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ही सालों तक छिपा रहा था और अमेरिकी गुप्तचरों ने बड़ी मुश्किल से उसे ढूंढ़ा और फिर बिना पाकिस्तान सेना को बताए हैलीकौप्टरों से हमला कर के उस को घर में ही मार डाला.

ऐसा पाकिस्तान किस तरह? से भारत के आतंकवादियों के हमलों की जिम्मेदारी से बच सकता है? पाकिस्तानी सरकार या सेना न चाहे तो भी वहां ऐसे लोग इकट्ठे होते रहेंगे जो पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल कर के भारत ही नहीं, आसपास या सुदूर देशों में भी करतूतें करते रहेंगे. यह पाकिस्तान पर निर्भर है कि वह अपने यहां आतंकवादियों को पनपने देना चाहता है या नहीं. धर्म के नाम पर वह इतनी छूट नहीं ले सकता कि इसलाम का ?ांडा फहराने के लिए दुनिया के किसी भी कोने में हमले करवाए.

इसलाम का मूल स्थान सऊदी अरब कहीं भी, कभी भी आतंकवादी हमले नहीं करता है, न अपनी जमीन से किसी को करने देता है. वह कट्टरपंथियों को कहीं पैसा देता हो तो पता नहीं, क्योंकि उस का सुबूत नहीं. पाकिस्तान अपने लोगों को नाहक बहका कर उकसाता रहता है और उसे समयसमय पर हड़काना जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तान की हरकतों के कारण दुनिया के मुसलिमों को अपने गैरमुसलिम पड़ोसियों की शक की नजरों से गुजरना होता है.

पाकिस्तान का गुनाह आम मुसलिम को गुनाहगार बना डालता है चाहे वह कितना ही सभ्य या न्यायप्रिय क्यों न हो. यह बंद होना चाहिए.

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यह डोनाल्ड ट्रंप का कमाल है कि उन्होंने अमेरिका के सब से पड़ोसी देश कनाडा में जस्टिन ट्रूडो वाली लिबरल पार्टी को अप्रैल के आखिर में एक बार फिर जितवा दिया, जबकि कुछ महीने पहले उस का हार जाना पक्का था. जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफा देने के बाद मार्क कानी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला था पर लग रहा था कट्टरपंथी कंजर्वेटिव पार्टी बाजी मार ले जाएगी.

डोनाल्ड ट्रंप का कमाल यह था कि राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद उन्होंने कनाडा को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की बात शुरू कर दी और टैरिफ बढ़ा कर उस से बेबात का झगड़ा मोल ले लिया.

डोनाल्ड ट्रंप को शिकायत है कि कनाडा अमेरिका को ज्यादा सामान बेचता है, कम खरीदता है. इस का उपाय उन्होंने पूरे कनाडा को अमेरिका में मिला डालने की जिद में ढूंढ़ा. स्वाभाविक है कि कनाडियों को यह पसंद नहीं आया और ट्रंप से हमदर्दी रखने वाली कंजर्वेटिव पार्टी को हरा डाला.

यही नहीं, वोटरों ने भारतीय मूल के सिख खालिस्तानी विचारों के समर्थक समझे जाने वाले जगमीत सिंह और उन की न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी का भी सफाया कर दिया. जब जनता को एक कट्टरपंथी पसंद नहीं आया तो दूसरे को भी उस की लहर में डूबना पड़ा.

कनाडाअमेरिका विवाद बेमतलब का है. एक तरह से पहले उन की दोस्ती देख कर हम सोचते थे कि भारतपाकिस्तान और भारतबंगलादेश में अमेरिकाकनाडा जैसे संबंध क्यों न हों जिस में बौर्डर लगभग खुला हो. दूसरे देश को अपने देश के प्रभाव क्षेत्र में लाने की गलती डोनाल्ड ट्रंप उसी तरह कर रहे हैं जैसे 1947 के बाद से भारतीय नेता पाकिस्तान के साथ करते रहे हैं, इस ने दोनों देशों को एकदूसरे का बेमतलब का दुश्मन बना डाला, जबकि खानपान, बोलचाल, रहनसहन में दोनों समाज एकजैसे हैं.

राजनीतिक बाउंड्री सिर्फ प्रबंध करने और टैक्स वसूलने के लिए होनी चाहिए, पर कई नेता पड़ोसी देश को अपना गुलाम बनाने की कोशिश करने लगते हैं और अपनी खुद की समस्याओं के लिए पड़ोसी देश को जिम्मेदार मानने लगते हैं. पड़ोसी देश के लोगों को मजबूरी में बड़े, मजबूत देश का विरोध करने की आदत डालनी पड़ती है और यही डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा में करा डाला. Editorial

Pahalgam Attack: ट्रोल आर्मी नहीं यह जौंबी सेना है

Pahalgam Attack: लेखक – शकील प्रेम

पहलगाम में 22 अप्रैल, 2025 को आतंकियों ने हमला कर दिया था, जिस में लैफ्टिनैंट विनय नरवाल की भी मौत हो गई थी. आतंकियों द्वारा किए गए इस जघन्य कांड के बाद मेनस्ट्रीम मीडिया ने हिंदूमुसलिम के नाम पर जम कर नफरत फैलाई.

इस बीच लैफ्टिनैंट विनय नरवाल की विधवा पत्नी हिमांशी नरवाल ने 1 मई, 2025 को एएनआई को दिए एक बयान में हिंदूमुसलिम के नैरेटिव की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि जिन लोगों ने गलत किया है, उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए, लेकिन हम नहीं चाहते कि लोग कश्मीरियों और मुसलिमों से नफरत करें.

हिमांशी नरवाल के इस बयान के बाद ट्रोल आर्मी हरकत में आ गई. हिमांशी को भद्दीभद्दी गालियां दी जाने लगीं. सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी ने बेशर्मी और हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं.

आखिरकार राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले को संज्ञान में लिया और कहा कि किसी महिला को अपने विचार रखने पर उसे ट्रोल करना किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा.

लैफ्टिनैंट विनय नरवाल की मौत के बाद जिस तरह से उन की पत्नी हिमांशी नरवाल को उन के एक बयान को ले कर सोशल मीडिया पर निशाना बनाया गया है, वह बेहद गलत है. किसी की भी सहमति या असहमति को शालीनता और संविधान के दायरे में रह कर जाहिर किया जाना चाहिए.

धर्म और जाति नहीं मानने की सजा

कोलकाता की एक 17 साल की लड़की सृजनी ने आईएससीई बोर्ड में 400 में से 400 नंबर हासिल कर पूरे पश्चिम बंगाल का नाम रोशन किया है. सृजनी को इस कामयाबी के लिए देशभर से तारीफ मिल रही है, वहीं ट्रोल आर्मी इस लड़की के पीछे पड़ गई है.

इस की वजह यह है कि सृजनी ने बोर्ड फार्म में जहां धर्म लिखना था, वहां लिखा ‘मानवता’. बस सृजनी की यही गलती थी.

गूगल पर भी सृजनी का इतिहास खंगाला जाने लगा. उस की मां प्रोफैसर निकलीं और पिता साइंटिस्ट, वह भी भटनागर अवार्ड विजेता.

एक रिपोर्टर के पूछे जाने पर सृजनी ने जो कहा, वह ट्रोल आर्मी के लिए काफी था कि मैं धर्म, जाति या जैंडर से नहीं, बल्कि इनसान होने से पहचानी जाऊं, यही मेरी पहचान है.

ऐसा कह कर सृजनी ने धर्म और जाति के नाम पर फैलाए गए नैरेटिव को चुनौती दे डाली.

जो लोग भारत को धर्म और जाति में बांटना चाहते हैं, सृजनी ने उन्हें एक खाली कौलम से हरा दिया.

यह देख जौंबी आर्मी को मिर्ची लग गई. इस 17 साल की होनहार छात्रा को गालियां दी जाने लगी. उस के मांबाप को भी नहीं बख्शा गया. संस्कारों की ठेकेदारी करने वाली ट्रोल आर्मी बेशर्मी का नंगा नाच करने लगी.

सवाल यह है कि ट्रोल करना किसे कहते हैं? दरअसल, ट्रोलर एक ऐसा शख्स होता है, जो जानबूझ कर मजाकिया, भड़काऊ या जोशीले संदेश औनलाइन पोस्ट करता है.

आजकल तो सोशल मीडिया पर दबदबा बनाने के लिए बहुत से संगठन अपना आईटी सैल बना कर खुद का प्रचार करने के लिए खूब पैसा भी खर्च करते हैं.

ये लोग ऐसा माहौल तैयार करते हैं जैसे कि ये ही सच्चे हैं, बाकी सब झूठे या गलत. ऐसे में दूसरे लोग भी इन के समर्थन में उतर आते हैं और सोशल मीडिया पर एक तरह की जंग शुरू हो जाती है.

राजनीति और ट्रोल आर्मी

सत्ता को हथियाने और सत्ता में बने रहने के लिए राजनीतिक दलों को अपनीअपनी विचारधारा के पक्ष में कई झूठे नैरेटिव गढ़ने पड़ते हैं और जनता ऐसे झूठे नैरेटिव को सच समझ कर उन्हें सिरआंखों पर बिठाए रखे, इस के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं.

मेनस्ट्रीम मीडिया पर कंट्रोल हो जाए, तो सत्ता के झूठे नैरेटिव का खूब प्रचार होता है और जनता के दिमागों तक वही खबरें पहुंचाई जाती हैं, जो सत्ता के झूठे नैरेटिव को सच साबित करती हैं.

कांग्रेस के दौर में भी ऐसा होता था, जब मेनस्ट्रीम मीडिया सत्ता के नैरेटिव को जनता के सामने आखिरी सच की तरह पेश करती थी.

साल 2014 के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता आई, जिस के पास अपनी विचारधारा थी. धर्म और राष्ट्रवाद के घालमेल से नएनए नैरेटिव गढ़े गए. मेनस्ट्रीम मीडिया का इस्तेमाल कर के जनता के दिमाग में जहर घोला गया और जनता को बरगलाने के लिए पिछले 11 सालों से लगातार यह कोशिश
चल रही है, लेकिन इस बीच सोशल मीडिया भी मजबूत हुआ है, जिस से सत्ता के झूठे नैरेटिव की पोल खुलते देर नहीं लगती.

सत्ता के पक्ष में मेनस्ट्रीम मीडिया के द्वारा फैलाए गए झूठ पर तुरंत प्रतिक्रिया होती है और सच बाहर आ जाता है. विपक्षी दलों या सत्ता के नैरेटिव के खिलाफ सोशल मीडिया पर बोलने वाले लोगों पर कंट्रोल करना सरकार के लिए बिलकुल भी मुमकिन नहीं है, इसलिए एक ऐसी ट्रोल आर्मी बनाई गई है, जो ऐसे लोगों के खिलाफ मोरचा खोले रहती है.

यह ट्रोल आर्मी किसी को नहीं छोड़ती. इस के पास न कोई नैतिकता होती है और न ही कोई शर्म. लेकिन इस पर लगाम लगना जरूरी है.

Editorial: पुलवामा से पहलगाम तक – कब थमेगा खून का यह सिलसिला?

Editorial: साल 1965 और 1971 की फुल फ्लैज्ड वार्स और कारगिल, उरी, पुलवामा और अब पहलगाम पर बदले की झड़पों से यह तो तय हो गया है कि चाहे कुछ कर लो पाकिस्तान से अगर दहशतगर्द आ रहे हैं तो उन्हें रोकना नामुमकिन है. भारत पाकिस्तान के ठिकानों पर हमले कर के कुछ का अगर खात्मा भी कर दे तो और नए पनप आते हैं. लड़ाई, सेना, बम, टैंक, हवाईजहाज, मिसाइलें और यहां तक कि एटम बम अचानक घुस आए बंदूकधारियों के हमलों से देश को नहीं बचा सकते.

हम चाहे कितना कहते रहें कि ये आतंकवादी पाकिस्तान की सेना के साए तले पलते हैं, यह पक्का है कि न सेना और न इन आतंकवादियों के सरगने 7 मई जैसे हमलों से बदलने वाले हैं. अगर 9 जगह हमारी मिसाइलों ने कुछ तोड़फोड़ कर दी, कुछ को मार दिया, कुछ गोलाबारूद खत्म कर दिया तो कुछ ही दिनों में फिर ये दहशत फैलाने वाले भारत के आम इलाकों में घुसने की प्लानिंग करने लगेंगे.

देश में वोट जमा करने के लिए इन का फायदा उठाया जाता है, यह अब पक्का है. लालबहादुर शास्त्री ने, इंदिरा गांधी ने, अटल बिहारी वाजपेयी ने और नरेंद्र मोदी सब ने इस का फायदा उठाया. पर वोट के अलावा देश को क्या मिला? वोट भी एक पार्टी को मिले, इस से आम जनता को लाभ नहीं हुआ.

अच्छा यह रहेगा कि अब बेमतलब की धर्म की दुकानों पर नफरत की चीजें बेचना बंद कर दी जाएं चाहे वे नारे हों, चाहे निशान हों या गोलाबारूद. पाकिस्तान की सेना और वहां के नेता तो ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें तो उसी से जनता से पैसा छीनने का मौका मिलता है पर भारत में धर्म की दुकानों में नफरत की चीजें बेचने से सब से बड़ा फायदा मंदिरोंमसजिदों को होता है. यहां कमाई के लिए तो कारखाने हैं, व्यापार है, सरकारी ठेके हैं, बहुत बड़ी काम पर लगी जनता है. नेताओं की उन से वसूली हो जाती है.

यहां सेना की राजनीति या सरकार में कोई दखल देने की इच्छा नहीं है. वे अपने में व्यस्त हैं, पैसा मिल रहा है, अफसरों की शानशौकत है, सिपाहियों की नौकरियां हैं. उन्हें न नफरत से मतलब है, न पार्टियों से.

अब ‘आपरेशन सिंदूर’ का सबक होना चाहिए कि नफरत का सामान बेचना बंद हो क्योंकि यह साफ हो गया है कि इस नफरत से कुछ मिल नहीं रहा. आम जनता सिर्फ लूटी जा रही है. उसे कुछ पड़ोसियों के साथ न रहने की हिदायतें दी जा रही हैं, उस से चंदे वसूले जा रहे हैं, उसे नफरत को बढ़ावा देने वाले अपने ही धर्म के स्टंटों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने को उकसाया जा रहा है.

आम हिंदू इस कदर धर्म के चंगुल में इन नफरत की दुकानों की वजह से फंस गया?है कि वह साल के 365 दिनों में 100 दिन इन्हीं में लगाने लगा है. उसे तो 100 दिन भी लौटा दिए जाएं और नफरती सामान खरीदने से भी रोक दिया जाए ताकि वह पैसा अपने बच्चों की पढ़ाई, बीवी की सेहत, मकान की मरम्मत, साफसुथरे कपड़ों पर खर्च कर सके, न हथियारों पर हो, न देवीदेवताओं के चढ़ावे में. हिंदूमुसलिम करने में कुछ नहीं रखा. जो सीजफायर नरेंद्र मोदी और शहबाज शरीफ ने किया है वह देशभर की हर गली, हर महल्ले, हर गांव, हर कसबे, हर शहर, हर मंदिर के सामने, हर मसजिद के सामने हो.

यह सीजफायर 2 देशों के बीच नहीं, 2 लोगों के बीच हो. दोनों सदियों से इस विशाल जमीन जिसे 1947 अनडिवाइडिड इंडिया कहा जाता था, में रहते रहे हैं, आगे भी सीजफायर के साथ, दोस्ती का हाथ बढ़ा कर, हमदर्द बन कर एकसाथ अपनेअपने देश, अपनीअपनी कौम, अपनेअपने घरों को बढ़ाते हुए रहें.

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सरकारें कई तरह से गरीबों को गरीब और बेबस रखने की कोशिश करती रहती हैं. गरीबों के वोटों पर जीतने के बावजूद सब जगह की चुनी हुई सरकारें भी ऐसे हुक्म निकालती रहती हैं जिन से गरीबों को नुकसान हो. अमेरिका के सनकी और खब्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नया हुक्म जारी किया है कि सभी ट्रक ड्राइवरों को अंगरेजी अच्छी तरह आनी चाहिए.

कहने को यह हुक्म सेफ्टी के लिए है कि ड्राइवर तरहतरह के फाइन पढ़ सकें और पुलिस वालों को जवाब दे सकें पर असल में इस का मकसद है कि गरीब अनपढ़ या दूसरे देशों से आए ट्रक ड्राइवरों से रोजीरोटी छीन ली जाए और मोटे गुस्सैल, लड़ाकू मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) भक्तों को नौकरियां मनमाने दामों पर दी जा सकें.

ट्रक कंपनियों ने दूसरे देशों से आए लीगल और इल्लीगल ड्राइवर रखने शुरू कर दिए हैं ताकि माल चोरी न हो, वे सड़कों पर एक्सीडेंट न करें. दूसरों से बेबात का झगड़ा न करें, पुलिस से ढंग से पेश आएं और सस्ते में मिल जाएं. ट्रंप ने अपने अनपढ़ गोरों को नौकरियां दिलवाने के लिए हुक्म जारी कर दिया चाहे ये सड़कों पर टेढ़ीसीधी गाड़ी चलाएं, रास्ते के डाइनर्स (ढाबों) पर हल्ला करें, लड़कियों को ले कर चलें, ट्रक का माल चोरी करें.

अब ट्रंप ने हुक्म दिया है तो तामील होगा ही क्योंकि मिलिटरी, पुलिस और मागा गैंग मिल कर खुले अमेरिका में दहशत का माहौल खड़ा करने में कामयाब हो गए हैं जैसे भारत में मुसलमान या दलित के लिए ट्रक चलाना आज भी आसान नहीं है (वे खलासी बन सकते हैं, ड्राइवर नहीं), वैसे ही अमेरिका में होगा.

ऐसा नहीं कि अंगरेजी नहीं जानने वाले दूसरे देशों से छिपछिपा कर आए हों, बहुत से काले अमेरिकी भी अनपढ़ हैं क्योंकि स्कूलों से उन्हें जरा सा झगड़ा करने पर निकाल दिया गया था और मां या बाप उन्हें सड़कों पर छोड़ कर अपनी जान बचाने में लग गए थे. अमेरिका में अमीरी है पर फिर भी बहुत से लोग सड़कों पर ही तिरपाल के नीचे रहते हैं. उन में बहुतों की पैदाइश भी तिरपाल के नीचे हुई और बड़े भी वे सड़कों पर हुए, बिना स्कूल गए.

ट्रंप इन को ड्राइवरी भी नहीं करने देना चाहते क्योंकि ट्रक ड्राइवरों की कमाई अच्छी है. कालों, लैटिनों, सिखों, अरबों, पाकियों, अफगानों, वियतनामियों से तो नौकरियां छीनने के लिए ट्रंप ने यह हुक्म जारी
किया है.

भारत में ऐसा सा कुछ होने लगा है और ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी का मंत्रालय ड्राइवरों की पढ़ाई का स्टैंडर्ड फिक्स करने में लगा है. मंत्रालय ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी खुलवाना चाहता है ताकि बेहद गरीब लोगों को ड्राइवरी के काम से बाहर रखा जा सके. ट्रंप की जैसी सरकारें कई देशों में हैं. ट्रंप और मागा अकेले नहीं हैं. ये गैंगस्टर हैं जो समाज को कंट्रोल में रखना चाहते हैं.

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