आज मेरा बीएससी के पहले साल के इम्तिहान का नतीजा आया था. सभी छात्र पिछले 2 महीने से इस पल का इंतजार कर रहे थे. जैसा सब को यकीन था कि सुषमा क्लास में अव्वल रहेगी, नतीजा वैसा ही था. सुषमा का नाम पहले नंबर पर था. लेकिन दूसरे नंबर का नाम उतना ही ज्यादा चौंकाने वाला और उम्मीद के उलट था.
यह नाम था जय का. जय ने अपने 3 साथियों के साथ, जो पिछले 2 सालों से पहले साल में ही फेल हो रहे थे, अपनी इमेज इस तरह की बना ली थी कि कालेज की कोई भी लड़की, चाहे वह सीनियर हो या क्लासमेट, उन का नाम सुन कर ही घबरा जाती थीं. कालेज में आने के बावजूद जय और उस के वे साथी कभी भी क्लास अटैंड नहीं करते थे. हां, इतना जरूर था, प्रैक्टिकल की क्लास वे कभी मिस नहीं करते थे.
वैसे, इस बार जय के तीनों साथी भी पास हो गए थे, पर वे सभी ज्यादा नंबर नहीं लाए थे.
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जय का इस तरह दूसरा नंबर पाना किसी के भी गले नहीं उतर पा रहा था, जबकि हकीकत यह थी कि जय ने इस के लिए खूब मेहनत की थी.
जय के पिता पास के किसी गांव में रेवैन्यू अफसर थे और वे चाहते थे कि जय को पढ़ाई के लिए बढि़या माहौल मिले जो उस के भविष्य के लिए अच्छा हो. इसी वजह से जय घरपरिवार से अलग रह कर इस छोटे से शहर में पढ़ाई कर रहा था.
जय के घर से आते समय पिता ने उसे कड़े शब्दों में चेतावनी दे रखी थी कि अगर इम्तिहान में अच्छे नंबर नहीं आए तो उसे गांव में रह कर पढ़ाई करनी होगी.
जय ने अपना दैनिक कार्यक्रम इस तरह बनाया हुआ था कि वह रात में 12 बजे से 3 बजे तक एकांत में ईमानदारी से पढ़ाई करता था. यही वजह थी कि वह दिनभर आवारागर्दी करने के बाद इतने अच्छे नंबरों से पास हो गया था.
चूंकि यह बात सभी छात्रों को मालूम नहीं थी, इसी वजह से न सिर्फ क्लासमेट बल्कि टीचिंग स्टाफ भी यही मान रहा था कि या तो जय का कोई रिश्तेदार यूनिवर्सिटी में रसूख वाले पद पर है जिस ने उसे फायदा पहुंचाया है या उस ने जम कर नकल की है. जय भी इन बातों से अनजान नहीं था, पर उस ने कभी इन बातों पर बवाल नहीं किया था.
रिजल्ट अच्छा आया तो जय के ग्रुप की शरारतें भी बढ़ गईं. अब तो किसी भी लड़की पर फब्तियां कसना, घर तक पीछा करना, साइकिल की हवा निकाल देना, गाडि़यों के सीट कवर फाड़ देना जैसे काम उन के खास शगल बन गए थे. किसी साधारण छात्र का मामला होता तो प्रिंसिपल तुरंत अपना फैसला सुना देते, पर यहां जय जैसे एक पोजीशन होल्डर का भी नाम जुड़ा हुआ था, इसलिए वे मामले की तह तक जाना चाहते थे.
प्रिंसिपल साहब ने जय समेत चारों छात्रों को मिलने का फरमान जारी कर दिया. जैसी उम्मीद थी चारों में से कोई भी मिलने नहीं पहुंचा. कड़े शब्दों के साथ दोबारा फरमान जारी हुआ. इस बार न आने की दशा में घर पर सूचना भेजने की बात लिखी गई थी.
जय के बाकी तीनों साथी तो तय समय पर प्रिंसिपल के औफिस पहुंच गए, पर जय फिर भी नहीं पहुंचा. तीनों को भविष्य में शरारत न करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया.
जय के न आने पर प्रिंसिपल साहब ने खुद तफतीश करने का फैसला लिया.
टाइम टेबल के मुताबिक उस समय जय की जंतु विज्ञान की कक्षा चल रही थी. प्रिंसिपल साहब ने देखा कि वह पूरी तल्लीनता से अपने मैटीरियल की पहचान कर के अच्छी ड्राइंग के साथ अपनी कौपी पर उतार रहा था, जबकि ज्यादातर छात्र या तो अपने किसी साथी से या अपने टीचर से पूछ रहे थे.
प्रिंसिपल साहब ने उसे डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा. वे वहीं लैबोरेटरी में बैठ कर कक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगे. जब सभी छात्र बाहर जाने लगे तो प्रिंसिपल साहब ने जय को वहीं रोक लिया.
बाहर निकले सभी लोगों में एक ही चर्चा थी कि अब जय को कालेज से बाहर कर दिया जाएगा. लड़कियां खासतौर पर खुश थीं.
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‘‘जय, मुझे अपनी प्रैक्टिकल कौपी दिखाओ,’’ प्रिंसिपल साहब कुछ कड़े व गंभीर लहजे में बोले.
‘‘लीजिए सर,’’ जय कौपी बढ़ाते हुए बोला.
चूंकि प्रिंसिपल साहब खुद भी इसी विषय को पढ़ चुके थे, इसलिए उन्हें समझने में जरा भी परेशानी नहीं हुई. उलटे जय की साफसुथरी ड्राइंग और खुद के बनाए नोट्स ने उन को काफी प्रभावित किया. कौपी समय पर चैक भी कराई हुई थी.
यह देख कर प्रिंसिपल साहब खुश भी हो गए, क्योंकि इस तरह के ज्यादातर छात्र साल के आखिर में अपना काम खानापूरी के लिए ही चैक कराते हैं.
‘‘2-2 नोटिस देने के बाद भी तुम मिलने नहीं आए. इस का मतलब समझते हो? तुम अपनेआप को बड़ा तीसमारखां समझते हो? जानते हो, तुम्हारे इस काम के लिए तुम्हें कालेज से निकाला भी जा सकता है,’’ प्रिंसिपल साहब सपाट लहजे में बोले.
‘‘जी, मैं जानता हूं कि मैं ने आप के और्डर को नहीं माना. लेकिन उस के पीछे वजह सिर्फ इतनी थी कि मैं आप को अपनी असलियत का परिचय देना चाहता था,’’ जय नरम लहजे में बोला.
‘‘असलियत? कैसी असलियत?’’ प्रिंसिपल साहब ने हैरानी से जय की तरफ देखते हुए पूछा.
‘‘सर, हर साल जन्मदिन पर पिताजी मुझे कुछ न कुछ उपहार देते आए हैं. पिछले साल मेरा 18वां जन्मदिन था. मैं कालेज में एडमिशन लेने की तैयारी कर रहा था. तब पिताजी ने मुझे समझाया और बताया था कि अब मेरा बचपना खत्म हो चुका है और मुझे गंभीरता से अपने और समाज के बारे में सोचना चाहिए.
‘‘मैं तो हमेशा से ही अच्छा छात्र रहा हूं. इसी वजह से उन्हें मेरे भविष्य की चिंता ज्यादा नहीं थी. पर वे चाहते थे कि मैं समाज के लिए कुछ ठोस काम करूं. ज्यादा नहीं तो कम से कम किसी एक इनसान को तो खुशहाल जिंदगी दे सकूं.
‘‘पिताजी की इस इच्छा को मैं ने व्रत के रूप में लिया और इन 3 साथियों को, जो पिछले 2 सालों से फर्स्ट ईयर में फेल हो रहे थे, को एक मिशन के रूप में लिया. जाहिर है कि परिवार के साथ रह कर मैं अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सकता था, इसीलिए घर से दूर कमरा ले कर यहां रहता हूं. एक दिन में मैं इन की आदतें नहीं बदल सकता था, इसीलिए इन्हीं के रंग में रंग कर इन्हें सुधारने की कोशिशें शुरू कर दीं.
‘‘मैं ने कुछ कहावतों को अपने मिशन का आधार बनाया, जैसे अगर नाले की सफाई करनी हो तो गंदगी में उतरना ही पड़ता है या लोहे को लोहा काटता है. नतीजा आप के सामने है.
‘‘सर, जो 3 लोग पिछले 2 सालों से फेल हो रहे थे, इस बार संतोषजनक ढंग से पास हो गए हैं. उन लोगों जैसा बनने के लिए मुझे थ्योरी की क्लासें छोड़नी पड़ती हैं. उन तीनों को यह बात मालूम नहीं है कि मैं इस तरह के किसी मिशन पर हूं.
‘‘जहां तक लड़कियों को छेड़ने या परेशान करने की बात है तो 2 साल पहले तक ये तीनों किसी भी लड़की का दुपट्टा खींच कर भाग जाने, पैन से स्याही छिड़क कर उन के कपड़े खराब करने या धक्कामुक्की करने जैसे काम कर के खुश होते थे, पर अब धीरेधीरे उन लोगों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है. अब उन की आदतें कमैंट्स पास करने तक ही सिमट गई हैं और मुझे यकीन है कि कालेज से पास आउट होने पर वे भी दूसरे छात्रों की तरह इज्जत के साथ ही जाएंगे. तीनों की अच्छी नौकरी लग जाने तक मेरा काम पूरा नहीं होगा इसलिए इन तीनों का साथ मैं कतई नहीं छोड़ सकता.’’
प्रिंसिपल साहब और उन के साथ बैठे टीचरों में से किसी को भी इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी.
‘‘बहुत अच्छा जय…’’ प्रिंसिपल साहब खड़े हो कर उस का कंधा थपथपाते हुए बोले, ‘‘मुझे अपने रिटायर होने के बाद भी इस बात का गर्व रहेगा कि मैं एक ऐसे कालेज का प्रिंसिपल था जहां तालीम न सिर्फ अच्छा आदमी बनने को कहती थी, बल्कि अच्छे आदमी के जरीए अच्छा इनसान भी बनाती थी.
‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारे पूरे ग्रुप को शुभकामनाएं देता हूं. मुझे भविष्य के नतीजे जानने की उत्सुकता रहेगी.’’
साथ बैठे दोनों टीचरों ने भी सहमति और सम्मान में सिर हिलाया.
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आज तकरीबन 6 साल बाद जय प्रिंसिपल साहब के घर जा रहा था. वैसे, प्रिंसिपल साहब बीचबीच में बुला कर जय से रिपोर्ट लेते रहते थे. पर पिछले 4 सालों से मतलब रिटायरमैंट के बाद से उन का कोई संपर्क नहीं था.
डोरबैल बजाने पर प्रिंसिपल साहब ने ही दरवाजा खोला.
‘‘सर, मैं जय,’’ कहते हुए उस ने झुक कर प्रिंसिपल साहब के पैर छू लिए.
‘‘अरे, तुम्हें परिचय देने की क्या जरूरत है. क्या मैं तुम्हें पहचानता नहीं. और सुनाओ, कैसे आना हुआ? और तुम्हारा मिशन कितना कामयाब हुआ?’’ प्रिंसिपल साहब ने अपनेपन से आशीर्वाद देते हुए पूछा.
‘‘सर, आप के आशीर्वाद से मैं अपने मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहा हूं. उन तीनों में से जो शारीरिक गठन में सब से अच्छा था, उसे वन विभाग में सहायक वन विस्तार अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई है. दूसरा शिक्षा विभाग में मिडिल स्कूल में टीचर बन गया है और तीसरे ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना में कर्ज ले कर एक छोटी सी फैक्टरी खोल ली है और अब कुछ लोगों को रोजगार भी दे रहा है.
‘‘मैं ने खुद एमएससी अव्वल नंबर से पास की है. राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा व साक्षात्कार पास करने के बाद आज मेरा चयन डिप्टी कलक्टर के रूप में हो गया है, इसीलिए मैं आप का आशीर्वाद लेने आया हूं.’’
जिंदगीभर लैक्चर देने वाले प्रिंसिपल साहब के पास आज शब्दों का अकाल पड़ गया था. वे सिर्फ गर्व के साथ जय के सिर पर हाथ फेर रहे थे.
edited by Shubham