हरियाली तीज पर पत्नी को दें ऐसे गिफ्ट्स, जिसे देखकर हो जाएंगी खुश

हरियाली तीज का पर्व इस बार 19 अगस्त को मनाया जा रहा है. ये दिन महिलाओं के लिए बहुत ही खास होता है तो अगर आप उनके इस दिन को और भी खास बनाना चाहते हैं तो उन्हें इस मौके पर कुछ यूजफुल गिफ्ट दे सकते हैं, तो हम आपके लिए कुछ ऐसे गिफ्ट ऑप्शन्स लेकर आए हैं.

1. मंगलसूत्र

आज के फैशनेबल दौर में महिलाएं यूनिक दिखने वाली जूलरी से खुद को सजाना पसंद करती हैं. ऐसे में मंगलसूत्र की भी कई तरह की वैरायटी मार्केट में देखने को मिल जाती है. आप अपनी पत्नी के लिए काले मोतियों से सजा पतली चेन वाला मंगलसूत्र बनवा सकते हैं, जिसका पेंडेंट कुंदन या रंगीन स्टोन्स से सजा हो. इन दिनों इस तरह के मंगलसूत्र काफी चलन में हैं, जो हर तरह के आउटफिट्स के साथ मैच कर जाते हैं.

2. ईयररिंग्स

हर उम्र की महिलाएं ईयररिंग्स की ढेरों वैराइटी अपने वॉर्डरोब में रखना चाहती हैं. ऐसे में इस बार आप अपनी पत्नी को सुंदर डिजाइन वाले आर्टिफिशियल ईयररिंग्स गिफ्ट कर सकते हैं. रोज़ गोल्ड प्लेटेड ईयररिंग्स में एंटीक स्टड्स या टियरड्रॉप स्टाइल में आपको ढेरों ऑप्शन मिल जाएंगे. वहीं क्लासिक पर्ल हूप ईयररिंग्स भी ले सकते हैं.

3. बैंगल्स

सिंगल जूलरी में आप खूबसूरत गोल्ड प्लेटेड बैंगल्स देकर भी पत्नी को खुश कर सकते हैं. इसमें अमेरिकन डायमंड से लेकर स्टोन वर्क वाले बैंगल्स हाथों में बेहद सुंदर लगते हैं. ये साड़ी या सूट के साथ पहनने में रॉयल लुक क्रिएट करते हैं. मार्केट में ये आपको अफोर्डेबल प्राइज पर मिल जाएंगे. हालांकि अगर आपकी पत्नी को गोल्ड जूलरी पहनना पसंद है, तो आर्टिफिशियल गोल्ड डिजाइन के कड़े भी खूब ट्रेंड में हैं, जो पत्नी की कलाइयों की खूबसूरती बढ़ा देंगे.

4. मीनाकारी रिंग

बाजार में अट्रैक्टिव रिंग्स की कमी नहीं है. सोने और हीरे की अंगूठी से हटकर आर्टिफिशियल रिंग्स का क्रेज भी महिलाओं में खूब बढ़ गया है. जिसमें मीनाकारी डिजाइन वाली रिंग बेस्ट रहेगी. पत्नी के लिए आप किसी भी कलर और हैवी डिजाइन में रिंग खरीद सकते है, जो साड़ी और सूट के साथ बेहद जंचते हैं.

5. फैंसी पायल

पायल या पाजेब सोलह श्रृंगार में से एक मानी जाती हैं. हालांकि चांदी की पायल की ढेरों वैराइटी महिलाओं के पास आमतौर पर मौजूद ही रहती हैं. ऐसे में आप रंगीन स्टोन, कुंदन या मीनाकारी से सजी पायल गिफ्ट कर सकते हैं, जो पहनने में काफी हल्की होती हैं और खूबसूरत भी लगती हैं.

जब मोबाइल फोन का अधिक प्रयोग, इनफर्टिलिटी के लिए हो घातक

31 साल की कामकाजी महिला नीलम को शादी के 3 साल बाद भी बच्चा न होने से वह घबरायी और डौक्टर के पास गयी, शुरुआती जांच के बाद डॉक्टर ने पाया कि उसका सब कुछ ठीक है,लेकिन ओव्यूलेशन सही समय पर नहीं हो रहा है. उसकी काउंसिलिंग की गई, तो पता चला कि उसकी मासिक धर्म का समय भी ठीक नहीं, इसकी वजह जानने के बाद पता चला कि उसका कैरियर ही उसकी इस समस्या का जड़ है. उसकी चिंता और मूड स्विंग इतना अधिक था कि उसे नार्मल होने में समय लगा और करीब एक साल के इलाज के बाद वह आईवीएफ के द्वारा ही मां बन पायी.

दरअसल आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पूरे दिन का एक बहुत बड़ा भाग व्यक्ति अपने मोबाइल फोन से चिपके हुए बिताता है. खासकर आज के युवा पूरे दिन डिजिटल वर्ल्ड में व्यस्त रहते हैं, ऐसे में उनकी शारीरिक अवस्था धीरे-धीरे बिगड़ती जाती है, जिसमें फर्टिलिटी की समस्या सबसे अधिक दिखाई पड़ रही है. इस बारें में वर्ल्ड औफ वुमन की फर्टिलिटी एक्सपर्ट डा. बंदिता सिन्हा का कहना है कि डिजिटल वर्ल्ड के आने से इसकी लत सबसे अधिक युवाओं को लगी है. वे दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहती हैं. 19 से 25 तक की युवा कुछ सुनना भी नहीं चाहतीं, उन्हें कुछ मना करने पर विद्रोही हो जाती हैं. ऐसे में उनके साथ अधिक समस्या है. 5 में से एक लड़की को कुछ न कुछ स्त्री रोग जनित समस्या इसकी वजह से आज है.

ऐसी ही एक 25 साल की लड़की मेरे पास आई जो बहुत परेशान थी, क्योंकि उसका मासिक धर्म रुक चुका था. उसे नीद नहीं आती थी. वह पोलीसिस्टिक ओवेरियन डिसीज की शिकार थी. जिसमें उसका वजन बढ़ने के साथ-साथ, डिप्रेशन, मूड स्विंग और हार्मोनल समस्या थी. इसे ठीक करने में 2 साल का समय लगा. आज वह एक अच्छी जिंदगी जी रही है, लेकिन यही बीमारी अगर अधिक दिनों तक चलती, तो उसे फर्टिलिटी की समस्या हो सकती थी.

ये समस्या केवल महिलाओं में ही नहीं, पुरुषों में भी अधिक है. इस बारें में मनिपाल फर्टिलिटी के चेयरमैन और यूरो एनड्रोलोजिस्ट डा. वासन एस एस बताते हैं कि वैज्ञानिको ने सालों से इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन (ईएमआर) का मानव शरीर पर प्रभाव के बारें में शोध किया है. यह हमारे आसपास के वातावरण और घरेलू उपकरणों जिसमें ओवन, टीवी, लैपटौप, मेडिकल एक्सरे आदि सभी से कुछ न कुछ मात्रा में आता रहता है, लेकिन इसमें सबसे खतरनाक है हमारा मोबाइल फोन. जिसे आजकल व्यक्ति ने अपने जीवन का खास अंग बना लिया है. अध्ययन कहता है कि इलेक्ट्रोमेग्नेटिक के अधिक समय तक शरीर में प्रवेश करने से कैंसर, सिरदर्द और फर्टिलिटी की समस्या सबसे अधिक होती है.

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ऐसा देखा गया है कि जिन पुरुषों ने अपने से आधे मीटर की दूरी पर सेल फोन रखा, उनके भी ‘स्पर्म काउंट’ पहले से कम हुए. इतना ही नहीं 47 प्रतिशत लोग जिन्होंने मोबाइल फोन को अपनी पेंट के जेब में पूरे दिन रखा, उनका ‘स्पर्म काउंट’ अस्वाभाविक रूप से 11 प्रतिशत आम पुरुषों से कम था और यही कमी उन्हें धीरे-धीरे इनफर्टिलिटी की ओर ले जाती है. इतना ही नहीं जो लोग एक दिन में एक घंटे से अधिक मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं, उनमें भी 60 प्रतिशत असामान्य रूप से ‘सीमेन कंसंट्रेशन’ आम 35 प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा कम पाया गया.

रिसर्च यह भी बताती है कि पूरे विश्व में 14 प्रतिशत मध्यम और उच्च आयवर्ग के कपल जिन्होंने मोबाइल फोन का लगातार प्रयोग किया है, उन्हें गर्भधारण करने में मुश्किल आई. ये सेल फोन पुरुष और महिला दोनों के लिए समान रूप से घातक हैं.

इसके आगे डा.वासन कहते हैं कि मोबाइल के इस्तेमाल से फर्टिलिटी के कम होने की वजह को लेकर भी कई मत हैं. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मोबाइल से निकले इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन स्पर्म के चक्र को पूरा करने में बाधित करती है या यह डीएनए को कम कर देती है, जबकि दूसरे मानते हैं कि मोबाइल से निकले रेडिएशन के द्वारा उपजी हीट से स्पर्म काउंट कम होता जाता है. 30 से 40 प्रतिशत फर्टिलिटी के केसेज में अधिकतर पुरुषों में ही पुअर क्वालिटी की स्पर्म देखी गयी, जो चिंता का विषय है.

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मोबाइल फोन के अधिक प्रयोग से उसके रेडिएशन का लॉन्ग टर्म प्रभाव है, ये विश्व में साबित हो चुका है, क्योंकि मोबाइल के अधिक प्रयोग से दिमाग में उत्तेजना पैदा होती है, जिससे हार्मोनल इम्बैलेंस होता है, फलस्वरूप नींद पूरी न होना, तनावग्रस्त रहना, मूड स्विंग होना आदि समस्या होती है, ऐसे में कुछ सावधानियां रखनी जरुरी है.

– मोबाइल फोन का प्रयोग कम से कम करें, पुराने आप्शन लैंड लाइन का अधिक से अधिक प्रयोग करने की कोशिश करें.

– मोबाइल फोन में स्पीकर औन कर बात करें.

– अपने जेब में औन मोबाइल फोन को न रखें.

– रात में सोते समय मोबाइल फोन को अपने से दूर टेबल पर रखें, अलार्म के लिए बैटरी वाले घड़ी का इस्तमाल करें.

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– पुरुष मोबाइल फोन को ‘कैरी बैग’ में हमेशा रखने की कोशिश करें.

– रेडिएशन को कम करने वाले कवर का प्रयोग मोबाइल के लिए करें.

– पुरुष या महिला लैपटौप को हमेशा टेबल के ऊपर रखकर काम करें.

– ऐसा करने पर आप केवल अपने आप को ही स्वस्थ नहीं रखते, बल्कि एक स्वस्थ भविष्य के निर्माण के लिए भी खुद तैयार रहते है.

गरीबी और तंगहाली पर भारी पीरियड्स

इंगलिश की एक मशहूर कहावत है, ‘हैल्थ इज वैल्थ’. मतलब, सेहत ही कामयाबी की कुंजी है. पर अगर हम गरीब, तंगहाल लोगों की जांचपड़ताल कर के देखेंगे तो पाएंगे कि शायद वे अपनी जरूरी चीजों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.

सब से पहले गरीब समुदाय के लोग अपने पेट की पूजा करते हैं, फिर रहने का जुगाड़ देखते हैं और इस सब में सेहत का तो दूरदूर तक कोई नाम ही नहीं होता है.

गरीबों को जितने पैसे मिलते हैं, वे खाने और रहने में ही खर्च हो जाते हैं. सब से ज्यादा औरतें इन हालात की शिकार बनती हैं, जबकि औरतों को मर्दों से ज्यादा डाक्टरी मदद की जरूरत पड़ती है, चाहे वह जंचगी हो या बच्चे को दूध पिलाना या फिर माहवारी का मुश्किल समय.

माहवारी के दौरान कम आमदनी वाले या गरीब परिवार की औरतें ज्यादा संघर्ष करती हैं. औरतें ऐसे समय में होने वाले दर्द के लिए दवाएं, यहां तक कि अंदरूनी छोटे कपड़ों की कमी के चलते एक जोखिमभरी जिंदगी जीती हैं.

गरीबी इनसान को अंदर तक तोड़ देती है. न जाने कितनी ही औरतें घातक बीमारियों की शिकार बनती हैं और उन की जिंदगी तक खत्म हो जाती है, जो बहुत तकलीफदेह है. कई बार ज्यादा खून बहने से औरतों को कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं. पैसों की कमी के चलते उन्हें पूरी तरह से डाक्टरी इलाज तक नहीं मिल पाता है.

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गरीबी में माहवारी एक बड़ी समस्या है. इस बारे में मैं ने 20 औरतों से सवाल पूछने की तैयारी की, लेकिन महज  2 औरतों ने सवाल पूछने की इजाजत दी. मैं ने उन से कहा कि मैं अपनी महिला साथी को भी लाया हूं, आप अगर उन के साथ बात करने में सहमत हैं तो वे आप से बात कर सकती हैं, मगर उन्होंने साफ मना कर दिया.

जयपुर की घाटगेट कच्ची बस्ती में रहने वाली बबीता बताती हैं, ‘‘मैं महीने के दिनों में काफी ज्यादा दर्द महसूस करती हूं और साथ ही साथ पति और सासससुर की  झाड़ भी  झेलती हूं. इस से अच्छा तो मैं पेट से होने में महसूस करती हूं, जब मेरा महीना नहीं आता है.

‘‘मैं महीने के आने से इतना डर गई हूं कि मु झे अगर पूरे साल महीना न  आए और मैं पेट से रहूं तो मु झे कोई परेशानी नहीं.’’

जब रबीना नाम की एक औरत से पूछा गया कि वे माहवारी के दौरान किस तरह अपनी देखभाल करती हैं? तो उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पास अंदर पहनने के लिए बस एक ही लंगोटी है. मेरे घर में पैसों की कमी की वजह से खाना तो पेटभर मिल नहीं पाता है, ऐसे में हम अंदर पहनने वाले कपड़े कहां से लेंगे.

‘‘पैड तो दूर की बात है, उसे बिलकुल छोडि़ए सर. खाने को 2 रोटी मिल जाएं, वही बहुत हैं. मैं डरती हूं कि मेरी लड़की की उम्र अभी 9 साल है. जब उस की माहवारी शुरू होगी, तो मैं उसे कैसे संभालूंगी?

‘‘मेरे पेशाब की जगह पर बड़ेबड़े फोड़े हो जाते हैं, जिन में से गंदी बदबू आती है. मेरा शौहर तो मेरे पास आना दूर मेरे हाथ का बना खाना नहीं खाता. मैं एक ही कपड़ों में 5-7 दिन गुजारती हूं. माहवारी के दिनों में मैं ढंग से खाना भी नहीं खा सकती. मु झे चक्कर आते हैं.’’

‘‘हमें तो ओढ़नेबिछाने को कपड़े मिल जाएं वही बहुत है. ‘उन दिनों’ के लिए कपड़ा कहां से जुटाएं…’’ यह कहते हुए जयपुर के गलता गेट के पास सड़क पर बैठी सीमा की आंखों में लाचारी साफ देखी जा सकती है.

सीमा आगे कहती हैं, ‘‘हम माहवारी को बंद नहीं करा सकते, कुदरत पर हमारा कोई बस नहीं है. जैसेतैसे कर के इसे संभालना ही होता है. इस समय हम फटेपुराने कपड़ों, अखबार या कागज से काम चलाते हैं.’’

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सीमा के साथ 3 और औरतें बैठी थीं, जो मिट्टी के छोटे से चूल्हे पर आग जला कर चाय बनाने की कोशिश कर रही थीं. जब उन के बच्चे आसपास से सूखी टहनियां और पौलीथिन ला कर चूल्हे में डालते थे, तो आग की लौ थोड़ी तेज हो जाती थी.

वैसे, थोड़ी बातचीत के बाद ये औरतें सहज हो कर बात करने लगी थीं. वहीं बैठी रीना ने मुड़ कर अगलबगल देखा कि कहीं कोई हमारी बात सुन तो नहीं रहा, फिर धीमी आवाज में बोलीं, ‘‘मेरी बेटी तो जिद करती है कि वो पैड ही इस्तेमाल करेगी, कपड़ा नहीं. पर जहां दो टाइम का खाना मुश्किल से मिलता है और सड़क किनारे रात बितानी हो, वहां हर महीने सैनेटरी नैपकिन खरीदना हमारे बस का नहीं.’’

थोड़ी दूर दरी बिछा कर लेटी पिंकी से बात करने पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो हमेशा कपड़ा ही इस्तेमाल करती हूं. दिक्कत तो बहुत होती है, लेकिन क्या करें… ऐसे ही चल रहा है. चमड़ी छिल जाती है और दाने हो जाते हैं. तकलीफें बहुत हैं और पैसों का अतापता नहीं.’’

ऐसी बेघर, गरीब और दिहाड़ी पर काम करने वाली औरतों के लिए माहवारी का समय कितना मुश्किल होता होगा? इस सवाल पर बात करते हुए जयपुर के महिला चिकित्सालय में तैनात गायनी कृष्णा कुंडरवाल बताती हैं, ‘‘मैं जानती हूं कि गरीब औरतों के पास माहवारी के दौरान राख, अखबार की कतरनें और रेत का इस्तेमाल करने के सिवा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. पर यह सेहत के लिए कितना खतरनाक है, बताने की जरूरत नहीं है.’’

वहीं दूसरी ओर नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (2019-20) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांवदेहात के इलाकों में  48.5 फीसदी औरतें और लड़कियां सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, जबकि शहरों में 77.5 फीसदी औरतें और लड़कियां ऐसा करती हैं. कुलमिला कर देखा जाए, तो 57.6 फीसदी औरतें और लड़कियां ही इन का इस्तेमाल करती हैं.

औरतों से बात करने के बाद हमें  2 ऐसी समस्याओं का पता लगा, जिन से शायद हर कोई अनजान ही होगा. इस सर्वे को करते समय कई बातें सीखने को मिलीं. यहां पर सब से ज्यादा जरूरी है लोगों को जागरूक करना. इस की साफसफाई पर ध्यान देना और उपाय बताने के लिए लोगों को तालीम देना.

अगर लोगों को माहवारी के बारे में जागरूक करना शुरू नहीं किया गया, तो इस के अंजाम बहुत ही दयनीय हो सकते हैं.

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माहवारी के समय सही से साफसफाई का पालन न करना कई तरह की बीमारियों को न्योता देता है.

दरअसल, जिस ने गरीबी के साथ जिंदगी गुजारी है, उस को मालूम होता है कि मूलभूत सुविधाओं के बिना जिंदगी कितनी मुश्किल है.

संविधान के मुताबिक सभी को ये सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन यहां ठीक से खाना तक तो मिलता नहीं है, सैनेटरी पैड कहां से मुहैया होंगे.

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