Honey Trap : सोशल मीडिया पर डाक्टर को ठगा

Honey Trap : आरोपियों ने अपने अपराध को अंजाम देने के लिए एक शातिर योजना बनाई थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर डाक्टर को अपना निशाना बनाया और उन्हें अपने जाल में फंसाया.

आरोपियों ने डाक्टर को यह यकीन दिलाया कि वे दिल्ली पुलिस में हैं और उन्हें अपनी सेवाओं के लिए पैसे देने होंगे. डाक्टर ने आरोपियों की बातों पर यकीन कर लिया और उन्हें तकरीबन 9 लाख रुपए दे दिए. पर जब डाक्टर को यह एहसास हुआ कि वे ठगी के शिकार हो गए हैं, तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने आरोपियों की तलाश शुरू की और आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

आरोपियों की पहचान तिलक नगर के बाशिंदे 42 साल के नीरज त्यागी उर्फ धीरज उर्फ धीरू, कराला के रहने वाले 32 साल के आशीष माथुर और खरखौदा, हरियाणा के रहने वाले 30 साल के दीपक उर्फ साजन के रूप में हुई थी.

पुलिस ने आरोपियों के पास से हैड कांस्टेबल की पूरी वरदी और दिल्ली पुलिस के 3 पहचानपत्र, एक कार और 3 मोबाइल फोन बरामद किए.

आरोपी नीरज त्यागी और दीपक उर्फ साजन के खिलाफ पहले से ही बिंदापुर थाने में प्रेमजाल में फंसा कर वसूली करने का मामला दर्ज है.

हनी ट्रैप की शुरुआत का सटीक समय नहीं बताया जा सकता है, क्योंकि यह एक तरह की धोखाधड़ी है, जो अलगअलग रूप में और अलगअलग समयों में हुई है.

हालांकि, यह कहा जा सकता है कि हनी ट्रैप की शुरुआत प्राचीनकाल में हुई थी, जब लोगों को औरतों के बहाने से लुभाने और उन से फायदा उठाने के लिए अलगअलग तरीकों का इस्तेमाल किया जाता था.

दरअसल, आधुनिक समय में हनी ट्रैप की शुरुआत 60 के दशक में हुई थी, जब अमेरिकी और सोवियत जासूसों ने अपने फायदे की जानकारी हासिल करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करना शुरू किया था.

इंटरनैट और सोशल मीडिया के आने के साथ हनी ट्रैप की शुरुआत और भी आसान हो गई है और अब यह एक आम तरह की धोखाधड़ी बन गई है, जो दुनियाभर के देशों में होती है.

कुछ दिलचस्प बातें

* 60 के दशक में अमेरिकी और सोवियत जासूसों ने हनी ट्रैप का इस्तेमाल करना शुरू किया था.

* 80 के दशक में हनी ट्रैप का इस्तेमाल व्यावसायिक जासूसी में किया जाने लगा था.

* 90 के दशक में इंटरनैट के आने के साथ हनी ट्रैप औनलाइन हो गई और यह और भी आसान हो गई.

हनी ट्रैप की कुछ घटनाएं

मध्य प्रदेश के इंदौर में हनी

ट्रैप का एक मामला सामने आया, जिस में एक औरत ने कई मर्दों को अपने जाल में फंसा कर उन से पैसे ऐंठे. इस मामले में पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था.

इसी तरह दिल्ली में भी हनी ट्रैप का एक मामला सामने आया था, जिस में एक औरत ने एक मर्द को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उसे पैसे देने के लिए मजबूर किया था. इस मामले में पुलिस ने आरोपी औरत को गिरफ्तार किया था.

मुंबई में हनी ट्रैप का एक मामला सामने आया, जिस में एक औरत ने कई मर्दों को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उन से पैसे ऐंठे. इस मामले में पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया.

हनी ट्रैप के प्रकार

औनलाइन हनी ट्रैप : औनलाइन हनी ट्रैप में आरोपी सोशल मीडिया या औनलाइन डेटिंग प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर के पीडि़त को अपने प्रेमजाल में फंसाता है.

औफलाइन हनी ट्रैप : औफलाइन हनी ट्रैप में आरोपी किसी पीडि़त से निजीतौर पर मिलता है और उसे अपने जाल में फंसाता है.

कौरपोरेट हनी ट्रैप : कौरपोरेट हनी ट्रैप में आरोपी किसी कंपनी के शख्स को अपने जाल में फंसाता है और उस से कारोबारी जानकारी हासिल करता है.

हनी ट्रैप के लक्षण

* अगर कोई किसी अनजान शख्स से अचानक मिलता है और उस के साथ बहुत जल्दी गहरे संबंध बनाने की कोशिश करता है, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

* अगर कोई किसी के प्रति बहुत ज्यादा प्यार और आकर्षण दिखाता है, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

* यदि कोई किसी की निजी जानकारी मांगता है, जैसे कि पता, फोन नंबर या बैंक खाते से जुड़ी जानकारी, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

बचाव के कानूनी उपाय

* अगर आप हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं, तो तुरंत ही पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करें.

* हनी ट्रैप से संबंधित कानूनी सलाह लेने के लिए किसी माहिर वकील से बात करें.

* आप औनलाइन हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं, तो साइबर सैल में शिकायत दर्ज करें.

हनी ट्रैप में लड़कियां और लड़के दोनों ही शामिल हो सकते हैं. हालांकि, ज्यादातर मामलों में लड़कियां ही हनी ट्रैप के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर बार ऐसा ही हो. कुछ मामलों में लड़के भी हनी ट्रैप में शामिल हो सकते हैं.

हनी ट्रैप में शामिल होने वाले के लिए उस के लिंग या उम्र की कोई अहमियत नहीं है. यह एक ऐसी धोखाधड़ी है, जिस में कोई भी शामिल हो सकता है और किसी को भी अपना शिकार बना सकता है. ऐसे शातिर लोग अमीरों को फांसते हैं. वे लड़की को आगे रख कर अपने शिकार को गुमराह करते हैं और उन से फायदा उठाते हैं.

शादी का झांसा देकर ठगी

31 मई, 2017 की दोपहर को जब सर्किल इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह एसपी अंशुमान भोमिया से मिलने पहुंचे तो उन के मन में उथलपुथल मची हुई थी. इस की वजह भी वाजिब थी, क्योंकि एसपी साहब आमतौर पर लंच ब्रेक के समय अपने मातहतों को तलब नहीं करते थे. जबकि उन्होंने श्रीचंद सिंह को तत्काल बुलाया था. बहरहाल, इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह सैल्यूट कर के एसपी साहब के सामने जा खड़े हुए.

‘‘तुम्हारे लिए एक खबर है, जो मध्य प्रदेश पुलिस से मिली है.’’ अंशुमान भोमिया ने इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह की ओर देखते हुए कहा, ‘‘उज्जैन और इंदौर में एक गिरोह सक्रिय है, जो शादी कराने के नाम पर लूटखसोट करता है. इस गिरेह ने कोटा में भी पांव पसार लिए हैं.’’

‘‘कोई लीड मिली है सर?’’ श्रीचंद सिंह ने पूछा तो श्री भोमिया ने कहा, ‘‘लीड नहीं, पूरी खबर है. रिद्धिसिद्धिनगर में रहने वाले कारोबारी बसंतीलाल जैन इस गिरोह के हाथों ठगे गए हैं. उन के साथ जबरदस्त धोखा हुआ है, जिस से पूरा परिवार सदमे में है. उन का पैसा भी गया और समाज में खासी बदनामी भी हुई. वे लोग कल तुम से मिलेंगे. इस मामले की जांच मैं तुम्हें सौंपता हूं. अपनी एक विश्वस्त टीम तैयार करो और लग जाओ काम पर.’’

‘‘ठीक है सर, मैं संभाल लूंगा.’’ कह कर श्रीचंद सिंह ने सैल्यूट किया और एसपी साहब के औफिस से बाहर आ गए.

अगले दिन यानी 1 जून को बसंतीलाल जैन अपने बेटों सुशील जैन और मनोज जैन के साथ थाना कुन्हाड़ी आ कर थानाप्रभारी इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह से मिले. इस से पहले कि बसंतीलाल अपना परिचय देते, पहचान लेने के अंदाज में उन्होंने उन्हें बैठने को कहा तो बसंतीलाल ने उन्हें कृतज्ञता की दृष्टि से देखा. बैठते ही उन्होंने श्रीचंद सिंह को अपने बेटों का परिचय दिया. उस के बाद मनोज के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सर, यह मेरा छोटा बेटा मनोज है. इसी की शादी में हम धोखे का शिकार हुए हैं.’’

श्रीचंद सिंह ने हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘आप की पीड़ा मैं समझ रहा हूं. आप सिलसिलेवार सब कुछ बताइए कि आप के साथ कैसे और क्या हुआ? आप इत्मीनान रखिए, हम बदमाशों को पकड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.’’

बसंतीलाल के चेहरे पर राहत के भाव आए और मुरझाए चेहरे पर क्षीण सी मुसकान तैर गई. बसंतीलाल ने एक पल के लिए बड़े बेटे सुशील की तरफ देखा. उस के चेहरे पर सहमति के भाव नजर आए तो उन्होंने आश्वस्त हो कर अपनी नादानी और शादी के बहाने धोखाधड़ी करने वालों के कमीनेपन की कहानी सुनानी शुरू कर दी.

‘‘बड़े खुराफाती लोगों से वास्ता पड़ा आप का तो…’’ करीब एक घंटे तक बसंतीलाल जैन की आपबीती सुनने के बाद इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘वारदात का पता आप को अप्रैल में चला और आप पुलिस के पास अब पहुंच रहे हैं 2 महीने बाद?’’

‘‘अब क्या कहूं सर? अपनी जिल्लत और अंधविश्वास की गाथा किसी को सुनाने का हौसला नहीं कर पा रहा था.’’ बसंतीलाल ने कहा, ‘‘बदमाशों का असली चेहरा तो अप्रैल में फेसबुक देखने से ही उजागर हुआ. उसी से उन की करतूतों का पता चला. शादी में 5 लाख रुपए नकद और 15 लाख के जेवर हड़पने के बाद अब 30 लाख और वसूलने की फिराक में हैं. हमें धमका रहे हैं कि रुपए नहीं मिले तो घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न के मामले में फंसा देंगे. इस के बाद तो पुलिस का ही सहारा बचा.’’

‘‘ठीक है.’’ श्रीचंद सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘आप सबइंसपेक्टर के पास जा कर एफआईआर दर्ज करवा दीजिए, उस के बाद देखते हैं.’’

कोटा के कुन्हाड़ी स्थित रिद्धिसिद्धि नगर की चंचल विहार कालोनी के रहने वाले पत्थर कारोबारी बसंतीलाल जैन के परिवार में उन की पत्नी के अलावा 2 बेटे सुशील और मनोज थे. दोनों ही बेटे पिता के पारिवारिक कारोबार  में हाथ बंटा रहे थे. बडे़ बेटे सुशील का विवाह हो चुका था. अब उन्हें छोटे बेटे मनोज की शादी की चिंता थी.

वैवाहिक रिश्तों को ले कर बसंतीलाल की भी एक ही सोच थी कि परिवार मानसम्मान वाला हो और लड़की संस्कारी. मनोज की उम्र 32 साल हो चुकी थी. अभी तक ठीकठाक रिश्ता न मिलने से बसंतीलाल काफी चिंतित थे. अच्छे रिश्ते के लिए उन्होंने अपने सभी परिचितों को कह भी रखा था. इसी साल जनवरी की शुरुआत में उन के जयपुर के एक परिचित अशोक जैन ने बसंतीलाल और उन के बेटों के बारे में उज्जैन निवासी पूनमचंद जैन को जानकारी देते हुए कहा कि काफी अच्छे लोग हैं. ऐसे परिवारों का साथ संयोग से ही मिलता है. उन्होंने उन्हें उन के बारे में बता दिया है, जल्दी ही वे लोग उन से संपर्क करेंगे.

पूनमचंद जैन और बसंतीलाल की मुलाकात इंदौर में रहने वाले संजय जैन के माध्यम से हुई थी. संजय जैन का पता अशोक जैन ने यह कहते हुए दिया था कि रिश्ते की बात वह संजय जैन के माध्यम चलाएं तो ज्यादा बेहतर रहेगा. संजय जैन पूनमचंद जैन को ले कर कोटा पहुंचे. बातचीत में अपने परिवार का ब्यौरा देते हुए पूनमचंद ने बताया कि 4 भाईबहनों में नेहा सब से बड़ी है. 2 भाई हैं पारस और महावीर तथा एक छोटी बहन है नीहारिका.’’

मनोज से नेहा के रिश्ते की बात चलाते हुए जहां पूनमचंद ने उस के रूपगुणों का भरपूर बखान किया, वहीं बसंतीलाल ने भी अपने बेटे मनोज को समझदार और सुशील स्वभाव का बताया.

पूनमचंद ने बातचीत में नेहा को देखने का भी प्रस्ताव रखा, पर बसंतीलाल फोटो देख कर ही आश्वस्त हो गए. पूनमचंद ने बातचीत में जिस तरह से जैन समाज के नियम, कर्म और समाज के विशिष्ट शख्सियतों की चर्चा की, उस से बसंतीलाल काफी प्रभावित हुए. दोनों परिवार एकमत थे, इसलिए शुभ काम में देरी का कोई मतलब नहीं था.

फलस्वरूप नेहा और मनोज की सगाई 15 जनवरी, 2017 को कर दी गई. सगाई समारोह का आयोजन कुन्हाड़ी स्थित होटल कान्हा पैलेस में किया गया. बसंतीलाल मूलरूप से खानपुर के चांदखेड़ी कस्बे के रहने वाले थे. इसलिए शादी पूरी धूमधाम के साथ बसंतीलाल के पैतृक गांव चांदखेड़ी से हुई.

शादी में कन्या पक्ष के काफी रिश्तेदर आए थे. शादी का पूरा खर्च बसंतीलाल के परिवार ने ही वहन किया, यहां तक कि उन के रहने और आवाजाही के लिए गाडि़यां भी वर पक्ष ने ही उपलब्ध कराई थीं. मनोज और नेहा के परिणय सूत्र में बंध जाने के बाद नेहा दुलहन बन कर चंचल विहार, कोटा स्थित अपनी ससुराल आ गई.

मनोज थोड़ा संकोची स्वभाव का था, जबकि नेहा दबंग किस्म की मौडर्न लड़की थी. अभी बसंतीलाल के घर वाले हंसीठिठोली के साथ मनोज को शादी की बधाइयां ही दे रहे थे कि सजीसंवरी दुलहन ने यह कह कर मनोज के होश उड़ा दिए कि उस ने व्रत ले रखा है, इसलिए जब तक वह पूरा नहीं हो जाता, तब तक वह न तो सुहाग कक्ष में आ सकता है और न उसे छू सकता है.

उस ने यह भी कहा कि यह व्रत एक विशिष्ट पूजा के साथ उज्जैन लौटने पर ही टूटेगा. शुरू में लोगों ने दुलहन के इस हठ को यह सोच कर हल्के में लिया कि वह समझानेबुझाने से मान जाएगी. लेकिन नेहा को न मानना था और न मानी. मनोज नहीं चाहता था कि शादी की शुरुआत में ही मतभेद बढ़ें और बात घर के बाहर जाए.

नतीजतन मनोज को उस की मनमानी के आगे झुकना पड़ा. बाद में नेहा उज्जैन गई तो एक महीने तक न तो उस ने अपनी कोई खैरखबर दी और न ही लौटने की मंशा जताई. मनोज की काफी मानमनुहार के आगे झुक कर वह कोटा आई भी तो केवल 2 दिनों के लिए. वह यह कह कर वापस चली गई कि उस के भाई की शादी है. इन 2 दिनों में भी नेहा ने मनोज को अपने पास नहीं फटकने दिया था.

मनोज तो नेहा की मनमानी से दुखी था ही, बसंतीलाल को भी उस का व्यवहार अटपटा लग रहा था. उन्होंने मनोज से पूछा भी कि यह कैसा समधियाना है कि बहू के भाई की शादी है और हमें खबर तक नहीं. उत्सुकतावश उन्होंने नेहा के पिता पूनमचंद से बात करने के लिए फोन किया तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला.

नेहा के व्यवहार से असमंजस में डूबा जैन परिवार अब क्या किया जाए, इसी उधेड़बुन में था कि तभी अचानक नेहा लौट आई तो सब ने राहत की सांस ली. लेकिन यह खुशी भी 2 दिनों से ज्यादा नहीं टिकी. उस ने यह कहते हुए सीकर जाने की रट लगा दी कि उसे वहां बहन की शादी में जाना है.

इस अजबगजब की स्थिति में उलझे बसंतीलाल के सब्र का पैमाना छलक गया. आखिर उन्होने नेहा से पूछा, ‘‘बहू, यह कैसी रिश्तेदारी है कि तुम्हारे भाई की शादी हुई, हमें बुलाना तो दूर औपचारिक खबर तक नहीं दी गई? अब तुम कह रही हो कि तुम्हारी बहन की शादी है? लेकिन तुम्हारे पिता की तरफ से हमें कोई खबर नहीं दी गई हैं. उन का फोन भी औफ आ रहा है.’’

इस सवाल का जवाब नेहा ने 2 टूक लहजे में दिया, ‘‘इतने बड़े व्यापारी हैं पापा, नहीं होगा उन के पास बात करने का समय. क्या शादी के वक्त ऐसा कोई वादा किया गया था कि पापा हर खबर आप को देंगे? मुझे सीकर जाना है तो बस जाना है.’’

बहू के इस जवाब से बुरी तरह आहत और अपमानित बसंतीलाल सिर थाम कर बैठ गए. बड़ा बेटा सुशील भी हतप्रभ रह गया. लेकिन मनोज बुरी तरह सुलग उठा. पर नेहा की गुस्से से भरी आंखों को देख वह भी विवश हो कर रह गया. नेहा सीकर जाने की जिद पूरी कर के ही मानी. उस के जाने के बाद हतप्रभ बेटे को बसंतीलाल ने यह कह कर दिलासा दी कि इस उम्र में लड़कियों का मातापिता से ज्यादा लगाव होता है. इसलिए इस बात को दिल से न लगाए, आहिस्ताआहिस्ता सब ठीक हो जाएगा.

जैसी उम्मीद थी कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा, लेकिन वैसा नहीं हुआ. अलबत्ता बसंतीलाल की उलझनें और बढ़ गईं. दरअसल, महीना भर बीतने के बाद भी जब नेहा नहीं लौटी और न ही उस ने कोई खबर दी तो आशंकित परिवार  ने उज्जैन जाना ठीक समझा. पर उज्जैन पहुंच कर उन्हें आघात तब लगा, जब पूनमचंद परिवार सहित अपने बताए पते पर नहीं मिला.

आशंकाओं में डूबतेउतराते बसंतीलाल ने जब फोन पर उन से संपर्क किया तो उन का कहना था कि वे फिलहाल अपने रिश्तेदारों के यहां आए हुए हैं. नेहा भी उन्हीं के साथ है. पूनमचंद ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि वह नेहा को ले कर जल्दी ही पहुंचेंगे.

हैरान परेशान बसंतीलाल के परिवार ने राहत की सांस ली. कुछ ही दिनों बाद नेहा कोटा पहुंच गई. लेकिन बसंतीलाल परिवार की खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रही सकी. एक पखवाड़े बाद ही नेहा ने यह कहते हुए उज्जैन जाने की रट लगा दी कि वह यहां के माहौल में ऊब गई है और कुछ दिनों के लिए चेंज चाहती है.

बसंतीलाल अच्छे कारोबारी थे तो दुनियादार भी थे. अंदेशों से घिरे बसंतीलाल ने नेहा की जिद पर यह सोच कर घुटने टेक दिए कि मनमानी पर उतारू लड़की ने कोई उलझन खड़ी कर दी तो बेमतलब की परेशानी खड़ी हो जाएगी. लेकिन पिछले 3 महीनों में नेहा की हरकतों ने उन के मन मे अंदेशों के हजार फन खड़े कर दिए थे. अपने बेटे सुशील और परिवार के शुभचिंतकों से अपनी शंका साझा करते हुए उन्होंने मशविरा मांगा कि अब उन्हें क्या करना चाहिए?

उन का शंकित होना स्वाभाविक था. सामने सवाल ही सवाल थे. टूट कर चाहने वाला शील स्वभाव पति, छोटी बहू होने के नाते परिवार का भरापूरा लाड़प्यार और मानसम्मान. इस के बावजूद नेहा ससुराल से बारबार क्यों भाग रही है? क्यों वह अपने पति को पास फटकने नहीं दे रही है? समधियाने में शादीब्याह हो रहे हैं, लेकिन उन्हें बुलाना तो दरकिनार, कोई खबर तक नहीं दी जा रही है.

रिश्ते की बात के समय स्नेह भाव उडे़लने वाले पूनमचंद जैन से सीधे मुंह बात तक करना मुश्किल हो रहा था. रिश्ते का जरिया बने अशोक जैन और संजय जैन भी बातचीत से कन्नी काट रहे थे. अशोक जैन का यह कहना उन्हें बुरी तरह आहत कर गया कि ‘भाई साहब, रिश्ता बताना मेरा काम था, ऊंचनीच और भलाबुरा आप को देखना चाहिए था. इस में मैं क्या कर सकता हूं?’

जिस समय बसंतीलाल का परिवार ऊहापोह में डूबा हुआ था, उसी समय एक विस्फोटक घटना ने उन की रहीसही उम्मीद छीन ली. बसंतीलाल जिस बहू के आने की उम्मीद गंवा चुके थे, वह एकाएक लौटी तो जरूर, लेकिन उस के चेहरे पर स्त्री सुलभ मुसकान के बजाय आक्रामक तेवर थे. अपने पिता पूनमचंद के साथ कोटा पहुंची नेहा ने जो कहा, उस ने पहले से ही हताश बंसतीलाल परिवार पर वज्रपात का काम किया.

नेहा ने गुस्से में कहा, ‘‘अब तुम सीधेसीधे 50 लाख रुपए देने की तैयारी कर लो, वरना घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना में फंसा कर तुम सभी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दूंगी.’’

यह सुन कर मनोज तो वहीं गश खा कर गिर पड़ा. नेहा और पूनमचंद जिस अफरातफरी के साथ आए थे, वैसे ही वापस लौट गए.

बदहवास और बेहाल करने वाली इन घटनाओं के बीच सदमे में डूबे जैन परिवार के लिए उम्मीदों का सूरज भी उगा. यह इत्तफाक ही था कि 25 मई को बसंतीलाल के बड़े बेटे सुशील की पत्नी शालिनी (परिवर्तित नाम) जब नेहा के कमरे की सफाई कर रही थी तो उसे बैड के नीचे एक मोबाइल फोन पड़ा मिला. वह मोबाइल फोन नेहा का था. उस ने मोबाइल अपने पति सुशील को दे दिया. उत्सुकतावश सुशील ने उस की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक ऐसा नंबर पकड़ में आया, जिस पर रोजाना सब से ज्यादा फोन किए गए थे. सुशील ने जब यह बात अपने पिता बसंतीलाल और भाई मनोज को बताईं तो उन्होंने जिज्ञासावश मैमोरी कार्ड को खंगालना शुरू किया.

फिर तो हकीकत जान कर उन की आंखें फटी रह गईं. मैमोरी कार्ड से पता चला कि नेहा का असली नाम माया उर्फ सोना ठाकुर था और किसी संजय से उस के अनैतिक संबंध थे. यह बात पता चलने के बाद जैन परिवार ने उस के नाम की फेसबुक खोजनी शुरू कर दी.

उन की मेहनत रंग लाई और नेहा उर्फ सोना ठाकुर की फेसबुक मिल गई. फेसबुक पर उस के अलगअलग लोगों के साथ उत्तेजक भावभंगिमाओं और अश्लील मुद्राओं वाले फोटोग्राफ्स थे. इस से यह पुष्टि हो गई कि नेहा उर्फ माया उर्फ सोना ठाकुर कालगर्ल थी और उस का पूरा गिरोह देहव्यापार में डूबा था. संजय जैन इस गिरोह का सरगना था. इस जानकारी के बाद ही बसंतीलाल एसपी अंशुमान भोमिया से मिले थे.

जांच आगे बढ़ाने और किसी भी ठोस नतीजे पर पहुंचने के लिए नेहा उर्फ माया उर्फ सोना ठाकुर के कोटा और उस के आसपास के संबंधों की जानकारी जरूरी थी. यह सूचना बसंतीलाल के परिवार अथवा उन के परिचितों से ही मिल सकती थी. श्रीचंद सिंह की इस थ्यौरी की ठोस वजह थी कि जो गिरोह देहव्यापार से जुड़ा है और शादी कर के लोगों को फंसाने का काम भी करता है, उस का कहीं न कहीं स्थानीय संपर्क जरूर होगा.

श्रीचंद सिंह के जेहन में एक ऐसी ही घटना और भी थी, जो नजदीकी कस्बे रामगंजमंडी में घटी थी. इस घटना में लुटेरी दुलहन ने पति की हत्या कर के उस की लाश को जमीन में गाड़ दिया था. इस वारदात को अंजाम देने में भी मध्य प्रदेश के ही किसी गिरोह का हाथ था.

रामगंजमंडी की वारदात को जेहन में रखने की वजह यह थी कि बसंतीलाल जैन ने अपने बयान में इस बात का जिक्र किया था कि रिश्ते की बातचीत के दौरान पूनमचंद ने नेहा का जो आधार कार्ड दिखाया था, वह रामगंजमंडी से बनवाया गया था.

रामगंजमंडी में श्रीचंद सिंह और उन की टीम को इस से ज्यादा कोई जानकारी नहीं मिली कि नेहा का आधार कार्ड बनवाने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया था. कार्ड बनवाने वाले कौन थे, काफी कोशिश के बाद भी उन का कुछ पता नहीं चला. पुलिस टीम ने सूत्र हाथ लगने की उम्मीद में करीबी शहर बारां में भी खोजखबर ली. वहां भी कुछ  समय पहले ऐसी ही वारदात हुई थी.

इस घटना में कोतवाली पुलिस ने एक मैरिज ब्यूरो संचालक तथा 2 युवतियों समेत 4 लोगों को गिरफ्तार किया था. लेकिन इस से भी श्रीचंद सिंह को नेहा के स्थानीय संपर्क सूत्रों की कोई जानकारी नहीं मिली. 5 दिनों तक आसपास के इलाकों की जांच में पुलिस को इस से ज्यादा कुछ नहीं मिला.

अपनी अब तक की जांच का ब्यौरा श्रीचंद सिंह ने एसपी अंशुमान भोमिया को दिया. उन्होंने अपनी जांच की सभी जानकारियां भी उन से साझा कीं. उन्होंने मामले की गहन जांच के लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन और इंदौर जाने के निर्देश दिए.

अगले दिन 6 जून को श्रीचंद सिंह अपनी टीम के साथ उज्जैन के लिए रवाना हो गए. इस बीच एसपी अंशुमान भोमिया ने इंदौर क्राइम ब्रांच के एएसपी अमरेंद्र सिंह को भी अपनी रणनीति से अवगत कराया.

उधर श्रीचंद सिंह अपनी टीम के साथ इंदौरउज्जैन के कस्बाई इलाकों में डेरा डाले हुए वहां की पुलिस की मदद से ऐसे गिरोहों की जानकारी जुटाने में लगे थे. 7 दिनों की अथक भागदौड़ के बाद आखिर नतीजा सामने आ गया. राजस्थान और मध्य प्रदेश का यह साझा औपरेशन कामयाब रहा.

8 जून को लुटेरी दुलहन नेहा उर्फ माया उर्फ सोना ठाकुर पुलिस की गिरफ्त में आ गई. इंदौर क्राइम ब्रांच के एएसपी अमरेंद्र सिंह के अनुसार, कोटा पुलिस से मिली सूचना के बाद नेहा को गिरफ्तार कर लिया गया. कोटा पुलिस के सीआई श्रीचंद सिंह ने इंदौर क्राइम ब्रांच के एएसपी को नेहा के उज्जैन स्थित लीला का बागीचा में छिपे होने की इत्तला दी थी.

नेहा के गिरफ्त में आते ही श्रीचंद सिंह ने एसपी भोमिया को टीम की कामयाबी की जानकारी दी. एमपी पुलिस ने आवश्यक काररवाई के बाद नेहा को कोटा पुलिस के हवाले कर दिया. उसी दिन नेहा को गिरफ्तार कर के श्रीचंद सिंह अपनी टीम के साथ कोटा आ गए.

कुन्हाड़ी थाना पुलिस ने नेहा को शनिवार 9 जून को न्यायालय में पेश कर रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान पुलिस पूछताछ में नेहा ने कई चौंकाने वाले रहस्य उजागर किए. उस ने स्वीकार किया कि 11 साल पहले उस की शादी इंदौर में गोमा की फैल निवासी मुकेश ठाकुर से हुई थी. उस की एक बेटी भी थी.

लेकिन पति से झगड़े के बाद वह अलग रहने लगी. संजय ने उसे दौलत कमाने के लिए फर्जी शादी का रास्ता बताया. वह उस के साथ इस धंधे से जुड़ गई. उस ने बताया कि संजय ने उसे जैन समाज की बेटी बता कर मनोज जैन के परिवार को उस का फोटो भेजा था.

फोटो पसंद करने और रिश्ता पक्का करने के लिए वह भी पूनमचंद जैन के साथ कोटा आया था. नेहा के नाम से आधार कार्ड भी उसी ने बनवाया था, ताकि राजस्थान का परिवार उस पर विश्वास कर सके.

फर्जी मातापिता रिश्तेदार और घराती भी संजय ने तैयार किए थे. उसी ने ही फर्जी शादी की पूरी प्लानिंग की थी, साथ ही उन लोगों ने एक माह तक मनोज और उस के घर वालों की रेकी की थी. नेहा उर्फ माया उर्फ सोना ठाकुर फिलहाल न्यायिक अभिरक्षा में है.

पुलिस की एक टीम अभी भी इंदौर में पड़ाव डाले हुए है, ताकि गिरोह के सरगना संजय और उन के साथियों को गिरफ्तार किया जा सके. पुलिस ने नेहा और उस के गिरोह के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 406 के तहत मुकदमा दर्ज किया है.

बसंतीलाल जैन और उन के घर वालों का कहना है कि हमारे लाखों रुपए चले गए और मनोज का घर भी नहीं बस पाया. पूरा परिवार सदमे में है. लेकिन उन का एक ही मकसद है कि ऐसे लोग बेनकाब हों, ताकि समाज के दूसरे लोग सतर्क हो सकें.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

महिला सिपाही का प्यार क्या कभी पूरा हो पाया

महिला सिपाही की खून से लथपथ लाश फर्श पर पड़ी थी. किसी ने बिस्तर से चादर उठा कर लाश के ऊपर डाल दी थी. पते की बात यह थी कि उस का पति कमरे या आसपास कहीं नजर नहीं आ रहा था.

बिस्तर पर महिला सिपाही की वरदी और एक बैग पड़ा हुआ था. नीचे फर्श पर एक मीटर के इर्दगिर्द में सिंदूर बिखरा पड़ा था. वरदी पर लगी नेमप्लेट से मृतका का नाम शोभा कुमारी पता चला. और तो और वरदी के पास ही 2 कट्टे (तमंचे) पड़े थे, जबकि नीचे फर्श पर एक कारतूस का खोखा पड़ा था.

पुलिस ने इसी से अनुमान लगाया कि हत्यारे ने इसी कट्टे से गोली मार कर इस की हत्या की होगी. पुलिस ने दोनों कट्टे और फायरशुदा खोखा अपने कब्जे में ले लिया.

20 अक्तूबर, 2023 की सुबह के 10 बज रहे थे. पटना में स्टेशन रोड पर स्थित होटल मीनाक्षी के कमरा नंबर-305 के मुसाफिर संजय कुमार अपना कमरा चेकआउट करने के लिए तैयार थे.

उन्होंने रिसैप्शन पर फोन कर के मैनेजर को बता दिया था कि एक बार आ कर वह कमरा चैक कर लें, वह रूम छोड़ रहे हैं. मैनेजर विकास ने कहा कि परेशान न हों, मैं अपने कर्मचारी को कमरे में भेज रहा हूं. वह चैक कर लेगा. फिलहाल थोड़ी देर के लिए कमरे से कहीं जाइएगा मत.

कुछ देर बाद कुछ सोच कर मैनेजर विकास कुमार किसी और को न भेज कर खुद ही कमरा चैकआउट करने तीसरी मंजिल पर स्थित कमरा नंबर-305 की ओर लिफ्ट में सवार हो कर पहुंचा, जहां लिफ्ट थी. वहां से कमरा नंबर-305 करीब 5 मीटर दूर पश्चिम की ओर था. वहां गैलरी से हो कर जाना होता था. उस गैलरी से हो कर मैनेजर जब आगे बढ़ा तो देखा कमरा नंबर-303 का दरवाजा अधखुला था.

भीतर कोई हलचल होती न देख कर मैनेजर विकास कुमार को कुछ शक हुआ तो वह कमरे में दाखिल हुआ. कमरे में महिला सिपाही की नग्नावस्था में खून से सनी लाश फर्श पर पड़ी हुई थी. उस की वरदी बिस्तर पर पड़ी थी.

होटल मीनाक्षी स्टेशन रोड स्थित कोतवाली थाने में पड़ता है. मैनेजर विकास ने फोन कर के घटना की सूचना कोतवाली थाने के इंसपेक्टर कौशलेंद्र सिंह को दे दी थी. घटना की सूचना मिलते ही वह आननफानन में कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पहुंच कर इंसपेक्टर सिंह ने सब से पहले कमरे का मुआयना किया.

किस ने की सिपाही की हत्या

पता चला कि कमरा 19 अक्तूबर को किसी गजेंद्र कुमार यादव ने अपने और अपनी पत्नी शोभा कुमारी के नाम पर बुक कराया था, जो जहानाबाद जिले के काको थानाक्षेत्र के दमुआ गांव का निवासी था.

इस के बाद इंसपेक्टर सिंह ने जिले के सभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को यह जानकारी दे दी थी. घटना की सूचना पा कर एसपी (सिटी) वैभव शर्मा, डीएसपी (कानून व्यवस्था) कृष्ण मुरारी प्रसाद मौके पर पहुंच गए थे. मौके से मृतका का पति गजेंद्र फरार था. इस से यही अनुमान लगाया जा रहा था कि घटना को अंजाम देने में उसी का हाथ होगा.

पुलिस ने काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेजवा दिया और अज्ञात हत्यारे के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और गजेंद्र की तलाश के लिए एक पुलिस टीम गठित कर के जहानाबाद भेज दी. खोजबीन करती हुई पटना पुलिस 22 अक्तूबर, 2023 को काको थाने पहुंची. काको थानेदार अजीत कुमार के साथ आरोपी गजेंद्र के घर दमुआ में दबिश दी. गजेंद्र घर पर नहीं मिला.

बताते चलें कि गजेंद्र यादव के पिता रामाशीष यादव पहले गांव के चौकीदार थे. उन को कैंसर हो गया था. वे ज्यादातर बेडरेस्ट पर रहते थे.

रामाशीष ने बताया, ”साहब, वह मेरे लिए कैंसर की दवा लेने के लिए 17 अक्तूबर को दिल्ली चला गया था और दवा ले कर 1-2 दिन में आ जाएगा.’

पुलिस ने बताया कि वह अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद फरार है. पुलिस द्वारा बहू की हत्या की जानकारी मिलते ही घर में कोहराम मच गया. घर में रोनाधोना शुरू हो गया.

पुलिस ने पकड़ी गजेंद्र की दुखती नस

फिलहाल गजेंद्र के न मिलने पर पटना पुलिस जहानाबाद से पटना खाली हाथ वापस लौट आई, लेकिन काको थाने को उस पर कड़ी नजर रखने को कह दिया.

करीब सप्ताह भर बाद यानी 28 अक्तूबर, 2023 को पुलिस ने कैंसर से पीडि़त पिता को हिरासत में ले लिया. पिता को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ले जाने की सूचना किसी तरह गजेंद्र तक पहुंच गई तो उस ने 30 अक्तूबर, 2023 को जहानाबाद की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया.

आरोपी गजेंद्र के आत्मसमर्पण करने की सूचना मिलते ही पहली नवंबर, 2023 को पटना पुलिस टीम जहानाबाद के लिए रवाना हो गई और आरोपी गजेंद्र को अदालत के सामने पेश कर उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले कर वहां से पटना के लिए वापस रवाना हो गई. 2 घंटे तक चली कड़ी पूछताछ में आरोपी गजेंद्र ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

 

पुलिस द्वारा पूछताछ में इस हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, उस से यही पता चलता है कि शोभा ने अपने हाथों खुद ही अपनी बदनसीबी की दर्दनाक पटकथा लिखी थी, जो इस तरह थी—

इस तरह हुआ गजेंद्र को शोभा से प्यार

30 वर्षीय गजेंद्र यादव मूलरूप से बिहार के जहानाबाद जिले के काको थानाक्षेत्र के गांव दमुआ का रहने वाला था. अपने 2 भाइयों में गजेंद्र बड़ा था. जितना पढऩे में गजेंद्र अव्वल था, उतना ही अपने अच्छे व्यवहार से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में महारथी था.

अपनी अलग पहचान बनाने के लिए उस ने घर से कुछ दूर कुर्था मोहल्ले में कोचिंग सेंटर खोल दिया. उस समय उस की उम्र 23-24 साल के आसपास रही होगी. उस का कोचिंग सेंटर चल निकला. बच्चों को वह मैथ और साइंस की कोचिंग देता था.

उस के कोचिंग सेंटर में मोहल्ले के अनेक लड़के लड़कियां कोचिंग के लिए आने लगे. शोभा भी गजेंद्र की कोचिंग सेंटर में आती थी. यह बात साल 2018 के आसपास की थी. उसी दौरान उसे शोभा से प्यार हो गया.

गजेंद्र जैसे प्रेमी को पा कर शोभा बहुत खुश थी और उस से शादी करने के लिए तैयार हो गई थी. एक दिन समय देख कर गजेंद्र ने अपने पिता से अपने और शोभा के रिश्ते की जानकारी दे कर शादी करने की अपनी इच्छा जाहिर की तो उन्होंने इजाजत दे दी. लेकिन उस के सामने एक शर्त यह रखी कि शादी के बाद पत्नी को ले कर यहां पुश्तैनी मकान में नहीं रहोगे.

गजेंद्र ने अपने प्यार को पाने के लिए पिता की इस शर्त पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी और शोभा से कोर्ट मैरिज कर के शहर में किराए का कमरा ले कर उस के साथ रहने लगा.

गजेंद्र का किस ने और क्यों किया अपहरण

गजेंद्र के पिता रामाशीष यादव की ऐसा करने के पीछे एक बड़ी और खास वजह थी. दरअसल, जब गजेंद्र 13 साल का था तो उस का अपहरण हो गया था. अपहरण एक लड़की के पिता ने किया था अपनी बेटी से शादी करने के लिए. बिहार में आज भी यह प्रचलन जारी है कि लोग अच्छे परिवार के लड़के का अपहरण कर अपनी बेटी के साथ जबरन उस की शादी कर देते हैं.

गजेंद्र की भी जबरन शादी करा दी गई थी. शादी कराने के बाद लड़की के घर वालों ने उसे उस के घर तक पहुंचा दिया था. समाज के रीतिरिवाजों को मानने वाले रामाशीष ने भी इस शादी पर मोहर लगा दी थी और लड़की को बहू का दरजा दे दिया था, जबकि गजेंद्र के दिल को इस घटना से ठेस पहुंची थी. उसे पत्नी नहीं स्वीकार किया था. इस से उस के पिता काफी नाराज रहते थे.

इस बात को ले कर बापबेटे के बीच काफी रस्साकशी भी चलती रही. बाद के दिनों में गजेंद्र और उस की पत्नी के बीच तलाक हो गया था. तलाक के बाद दोनों अलगअलग हो गए थे.

शोभा अतिमहत्त्वाकांक्षी युवती थी. गजेंद्र उस की महत्त्वाकांक्षाओं को अच्छी तरह पहचानता था. इसी बीच गजेंद्र एक बेटी का पिता बना. बेटी के आने से घर में खुशहाली आ गई.

उन दिनों बिहार में पुलिस की बड़ी पैमाने पर वैकेंसी निकली थी. गजेंद्र ने पत्नी शोभा को अप्लाई करा दिया. उस की मेहनत से बिहार पुलिस में वह भरती हो गई. इस के लिए गजेंद्र ने अपने हिस्से की 5 बीघा जमीन भी बेच दी थी. अपना कारोबार और अपना जीवन सब कुछ दांव पर लगा दिया था.

उस का सोचना था कि उस की भी प्राइवेट जौब है. अगर दोनों में से किसी एक की भी सरकारी नौकरी हो जाए तो जीवन सरल हो जाएगा. यही सोच कर उस ने पत्नी को नौकरी के लिए प्रेरित किया था.

शोभा की टे्रनिंग पटना में हो रही थी.  बेटी दादा दादी के पास रहती थी. उसे जब ट्रेनिंग से थोड़ा वक्त मिलता तो 1-2 दिन के लिए बेटी से मिलने जहानाबाद स्थित घर आ जाया करती थी या फिर गजेंद्र ही पत्नी से मिलने पटना चला जाया करता था.

 

ट्रेनिंग के दौरान ही शोभा को वहीं पर एसएसबी की तैयारी कर रहे धीरज से प्यार हो गया. यह घटना से करीब एक साल पहले की बात है. शोभा अपने परिवार के प्रति अति लापरवाह होती जा रही थी. शोभा की ये बातें पता नहीं क्यों गजेंद्र को अजीब लग रही थीं. वह सोचता कि ऐसी कौन सी मां होगी जो अपने बच्चे से मिलने तक के लिए वक्त नहीं निकाल सकती.

बात पहली जुलाई, 2023 की है. गजेंद्र किसी काम से पटना आया था. उस ने यह बात पत्नी को नहीं बताई थी. दोपहर के वक्त गजेंद्र ने देखा एक बाइक पर किसी युवक के साथ उस की पत्नी कहीं जा रही थी. जिस युवक के साथ वह जा रही थी, उस का न तो गजेंद्र के साथ कोई रिश्ता था और न ही वह उस कोई रिश्तेदार ही था. यह देख उस का माथा ठनक गया.

शोभा के इस कदम से गजेंद्र डिप्रेशन में चला गया और बुझाबुझा सा रहने लगा. गजेंद्र इस कदर डिप्रेशन में चला गया था कि खुद को अकेला समझने लगा था. गजेंद्र डिप्रेशन से बिलकुल टूट चुका था. अब उस में पत्नी की बेवफाई का दर्द सहने की क्षमता रह नहीं गई थी, इसलिए वह जल्द से जल्द किसी नतीजे पर पहुंच जाना चाहता था.

इसी बीच गजेंद्र ने एक खतरनाक फैसला ले लिया था कि अगर शोभा मेरी नहीं हुई तो उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. उसे मरना ही होगा.

अक्तूबर के महीने में दुर्गा पूजा थी. टे्रनिंग के दौरान शोभा की ड्यूटी कोतवाली क्षेत्र में लगी थी. यह बात गजेंद्र को पता चल चुकी थी. 17 अक्तूबर, 2023 को गजेंद्र पिता के कैंसर की दवा लेने के लिए जहानाबाद से दिल्ली के लिए निकला, लेकिन दिल्ली जाने के बजाय वह पटना आ गया. बेटी को उस ने छोटे भाई की जिम्मेदारी पर छोड़ दिया था.

होटल में दोनों के बीच क्या हुआ

19 अक्तूबर को वह पटना आ गया. पटना में उस ने स्टेशन रोड पर मीनाक्षी होटल में एक कमरा पतिपत्नी के नाम बुक कराया. उसे ठहरने के लिए कमरा नंबर-303 मिला. उस के पास एक पिट्ठू बैग था. उस में एक जोड़ी कपड़ा रखे थे. उन्हीं कपड़ों के बीच लोडेड 2 देसी तमंचे रख लिए थे.

रात में जब वह घूमफिर कर होटल लौटा तो 9 बजे के करीब उस ने पत्नी शोभा को फोन किया और उस का हालचाल लिया. उस ने उस से कहा कि वह स्टेशन रोड के होटल में ठहरा हुआ है. थोड़ी ही देर के लिए होटल में आ जाए. पति के कई बार आग्रह पर शोभा ने सुबह मिलने के लिए कह दिया.

अगली सुबह 8 बजे शोभा होटल पहुंची. उस समय गजेंद्र पूरी तरह तैयार हो चुका था और बैग से दोनों तमंचे निकाल कर कमर में खोंस लिए थे. शोभा कमरे में जैसे ही घुसी उसे बिना सिंदूर के देख उस का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. इस बात को ले कर दोनों के बीच विवाद छिड़ गया.

गजेंद्र अपने साथ सिंदूर की डिबिया भी ले कर गया था. वह अपने हाथों से पत्नी की मांग में सिंदूर भरना चाहता था, लेकिन शोभा तैयार नहीं हुई और दोनों के बीच हाथापाई होने लगी. इसी दौरान गजेंद्र के हाथ से सिंदूर की डिबिया छूट कर नीचे फर्श पर जा गिरी और सिंदूर फर्श पर बिखर गया.

यह देख कर तो गजेंद्र एकदम पागल सा हो गया. उस ने आव देखा न ताव, कमर में खोंस रखा कट्टा निकाला और उस के सीने पर गोली मार दिया. गोली लगते ही शोभा नीचे फर्श पर जा गिरी और काल के गाल में समा गई.

इस के बाद उस ने दोनों असलहे बिस्तर पर रख दिए और पत्नी की वरदी उस के जिस्म से उतार कर बैड पर रख दी. फिर कमरे से 9 बज कर 32 मिनट पर बड़े आराम से अपना बैग ले कर दिल्ली के लिए रवाना हो गया.

गजेंद्र से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया. कथा लिखने तक पुलिस गजेंद्र के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर न्यायालय में पेश करने की तैयारी में थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

झोपड़ी में मिली लाश, हत्या कर बुझाई मन की प्यास

बात मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के चितरंगी थानांतर्गत धवई गांव की है. थानाप्रभारी अपने औफिस में दैनिक कामों में लगे हुए थे. तभी उन्हें चितरंगी-कर्थुआ रोड पर स्थित एक झोपड़ी में किसी महिला की लाश मिलने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही पुलिस टीम के साथ वह पर घटनास्थल के लिए रवाना हुए. उन के वहां पहुंचने से पहले ही काफी भीड़ वहां जुट चुकी थी. थानाप्रभारी ने भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति से इस बारे में बात की.

उस व्यक्ति ने बताया कि हम गांव वालों को काफी दिनों से आसपास में अजीब सी दुर्गंध आ रही थी. हमें लगा कि कोई जानवर मरा होगा, उसी से बदबू आ रही होगी. किंतु ऐसा नहीं था. यह बदबू तो रसवंती नामक महिला की झोपड़ी से आ रही थी.

पुलिस द्वारा तुरंत मौके का बारीकी से निरीक्षण किया गया, वहां चारपाई के नीचे रसवंती की लाश पड़ी थी, जो पूरी तरह से सड़ चुकी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी डी.एन. राज ने इस की सूचना अपने एसडीपीओ राजीव पाठक को दी. सूचना मिलते ही वह तत्काल मौके पर पहुंचे. यह बात 11 नवंबर, 2021 की थी.

लाश को देखने के बाद यह तय कर पाना काफी मुश्किल था कि यह मामला स्वाभाविक मौत का है या हत्या का. पुलिस ने सुराग तलाशने के लिए शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. जिस के बाद गांव वालों से पूछताछ शुरू की, लेकिन कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने पर पता चला कि रसवंती की मृत्यु गला घोटने से हुई थी. जिस के बाद एसडीपीओ राजीव पाठक के निर्देश पर चितरंगी थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी.

चूंकि महिला की सुरक्षा एवं उन से जुड़े मामले शासन के उच्च प्राथमिकता वाले विषयों में से हैं, जिस के कारण एसपी (सिंगरौली) वीरेंद्र कुमार सिंह स्वयं ही इस मामले की जांच को खुद आगे बढ़े.

एसडीपीओ राजीव पाठक ने सब से पहले गांव वालों से पूछताछ की, जिस में पता चला कि रसवंती शादीशुदा और एक बच्चे की मां थी, मगर लंबे समय से अपने पति व बच्चे को छोड़ कर धवई गांव में अपने भाई के साथ रहती थी.

जिस के बाद पारिवारिक झगड़ों के चलते वह गांव से बाहर चितरंगी और कर्थुआ रोड पर एक झोपड़ी बना कर अकेली ही रहने लगी थी.

चूंकि रसवंती अकेली रहती थी और काफी समय से गांव में ही रहती थी, इस कारण उस के बारे में जो भी जानकारी मिल सकती थी, वह गांव वालों से ही मिलती. लेकिन गांव वालों का सहयोग पुलिस को नहीं मिला.

तब थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को सक्रिय किया और अपने मुखबिरों द्वारा जानकारी हासिल करने का प्रयास शुरू कर दिया था.

इस कोशिश में कई महत्त्वपूर्ण जानकारी पुलिस के हाथ लगी थीं. पता चला कि रसवंती कोई काम नहीं करती थी. वह केवल एक छोटी सी किराने की दुकान लगा कर अपना गुजारा करती थी, जोकि काफी नहीं था. पुलिस को पता चला कि वह इस दुकान की आड़ में अपना जिस्म बेच कर गुजारा चलाया करती थी.

इस की जानकारी मिलने पर थानाप्रभारी को यह मामला अवैध संबंधों का लगा. एसडीपीओ के निर्देश पर ऐसे लोगों की जानकारी जुटाने का काम शुरू किया गया जो अकसर रसंवती के संपर्क में रहते थे या उस से मिलने झोपड़ी में आया करते थे.

जांच के दौरान पुलिस को इस बात की जानकारी मिली कि रसवंती की झोपड़ी में बिजली नहीं थी. उसे अपने काम के लिए प्राकृतिक रोशनी पर ही निर्भर रहना पड़ता था. जिस वजह से वह अपने पास टौर्च या मोबाइल तो रखती ही होगी, लेकिन पुलिस को ये दोनों की सामान मौके से नहीं मिले.

इस से शक हुआ कि शायद मोबाइल और टौर्च दोनों ही हत्यारे अपने साथ ले गए होंगे. एसडीपीओ ने गांव वालों से पूछताछ करतेकरते इतना तो समझ लिया था कि हत्यारा इसी गांव का होगा.

इसलिए उन्होंने जांच के परिणामों को गांव वालों के बीच फैलाना शुरू कर दिया. इस का नतीजा भी जल्द ही सामने आ गया, जब 2 दिनों बाद गांव में एक जगह पर रसवंती की टौर्च पड़ी मिली, जो हत्या के बाद से ही गायब थी.

टौर्च जिस स्थान पर मिली, उस के आसपास रहने वालों की सूची तैयार करवाई गई तथा इस बात की जानकारी जुटाई कि इन में से कौन रसवंती से रात में मिलने आया करते थे. इस में से एक नाम सामने आया 22 साल के प्रिंस यादव का.

पुलिस को जानकारी मिली कि भले ही प्रिंस रसंवती से आधे से भी कम उम्र का था, लेकिन रसवंती के पास उस का आनाजाना भी काफी था. यहां तक कि शादी होने के बाद भी प्रिंस ने रसवंती के यहां आनाजाना नहीं छोड़ा था.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने प्रिंस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में पता चला कि प्रिंस और रसवंती के बीच अकसर फोन पर काफीकाफी देर तक बातचीत होती रहती थी.

इतना ही नहीं, लाश मिलने के 15 दिन पहले जिस रोज रसवंती का फोन बंद हुआ था. तब उस के फोन पर आखिरी बार बात प्रिंस ने ही की थी. इसलिए पुलिस ने प्रिंस यादव को हिरासत में ले कर पूछताछ की, जिस में पहले तो वह पुलिस को गुमराह करने का प्रयास करने लगा.

लेकिन वह ज्यादा देर टिक नहीं पाया और उस ने अपने दोस्त गांव के ही युवक अजीत यादव के साथ मिल कर रसवंती की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

इस के बाद पुलिस ने गांव से अजीत यादव को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस के बाद हत्या के पीछे की कहानी इस प्रकार सामने आई—

पति को छोड़ कर मायके लौटी रसवंती कुछ साल तक तो भाई के घर में आराम से रही, लेकिन समय के साथ उसे अपनी जिंदगी में एक पुरुष की कमी खलने लगी थी.

पति को छोड़ कर अकेली रह रही रसवंती पर गांव के कुछ युवकों की भी नजर थी और यह बात रसवंती भी जानती थी. फिर उस ने उन्हीं युवकों में से एक को चुन लिया और अपने तन की प्यास बुझाने का रास्ता खोज निकाला.

युवक से दोस्ती हुई तो वहां जरूरत पड़ने पर उसे खर्च करने के लिए पैसे भी देने लगा. यहीं से रसवंती को अपनी देह की कीमत का पता चला. उसे लगा कि यदि वह 2-4 युवकों को अपने पास आने का मौका दे तो उस की शारीरिक जरूरत तो पूरी होगी ही, साथ ही कुछ आमदनी भी हो जाया करेगी.

यही सोच कर उस ने गांव के कई युवकों से संबंध बना लिए थे. रसवंती के हरकतों की यह जानकारी जब उस के भाई को हुई तो उस ने उसे टोका तो 10 साल पहले रसवंती ने भाई का घर छोड़ दिया और खुद एक झोपड़ी बना कर रहने लगी.

चूंकि यह झोपड़ी रसवंती की अपनी थी तो वह जिसे चाहे उसे वहां मिलने के लिए बुला लिया करती थी. इस के अलावा उस ने दिखावे के लिए वहां एक छोटी सी दुकान भी लगा ली थी. वक्त के साथ रसवंती की उम्र बढ़ने लगी, इसलिए गांव के युवकों ने उस में दिलचस्पी लेनी कम कर दी.

जो उस की उम्र के थे, वे घरपरिवार वाले थे सो जब रसवंती के पास आने वाले मर्दों की संख्या घटने लगी तो रसवंती ने नया दांव खेला. उस ने कम उम्र के लड़कों को सैक्स का चस्का लगाना शुरू किया.

प्रिंस यादव भी रसवंती की इस योजना का शिकार 16 साल की उम्र में ही बन गया था. चूंकि उस वक्त तक प्रिंस के मन में सैक्स के प्रति एक नया ही नशा था, सो वह रसवंती को ही सब से बड़ा सुख मान कर उस के पास आने लगा.

रसवंती इश्क तो किसी से करती नहीं थी. उस के लिए तो यह काम भी पैसा कमाने का एक जरिया था. इसलिए प्रिंस से भी वह अपनी पूरी कीमत वसूलती थी.

वह रसवंती के पास केवल सैक्स का सुख लेने आया था, लेकिन धीरेधीरे वह उस का दीवाना हो गया. वह लगभग रोज ही उस से मिलने आने लगा.

कहना नहीं होगा कि अब रसवंती प्रिंस के लिए प्यार बन गई थी. जबकि प्रिंस, रसवंती के लिए एक सौदा था, इसलिए वह आए दिन उस से पैसों की मांग करती रहती थी. प्रिंस भी उसे यदाकदा खर्च के लिए पैसे देता रहता था.

प्रिंस 21 साल का हो गया तो उस के घर वालों ने उस की शादी कर दी. लेकिन पत्नी के आने के बाद भी उस का रसवंती के पास जाना कम नहीं हुआ.

दरअसल, रसवंती के लिए सैक्स एक धंधा था, इसलिए वह जानती थी कि उस के पास दूसरों से कुछ अलग नहीं होगा तब तक उस के पास ग्राहक क्यों आएगा. इसलिए प्रिंस जैसे युवकों को वह हर उस तरीके से संतुष्ट करने को राजी रहती थी. जिस की मांग युवा वर्ग में अधिक है.

इस की वह कीमत भी खूब वसूलती थी. लेकिन वह भूल चुकी थी कि प्रिंस के मन में जो पागलपन 16 साल में था, वह इन 6 सालों मे नहीं रह गया. दूसरा प्रिंस की शादी भी हो चुकी थी, इसलिए रसवंती उस की जरूरत भी नहीं रह गई थी. रसंवती द्वारा पैसों की मांग उस के लिए अब भारी पड़ने लगी थी.

जबकि उम्र बढ़ने से दीवानों की संख्या कम हो जाने के कारण रसवंती प्रिंस से ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूलना चाहती थी. इसलिए दोनों के बीच पैसों को ले कर विवाद होने लगा था.

इस से तंग आ कर प्रिंस ने रसवंती के पास जाना बंद कर दिया. रसवंती जवान होती तो दूसरा दीवाना खोज लेती. अब 48 साल की उम्र में उसे कोई प्रिंस के जैसा दीवाना तो मिलने से रहा, इसलिए वह प्रिंस पर मिलने के आने के लिए दबाव बनाने लगी.

उस का कहना था कि अगर प्रिंस उस से मिलने नहीं आएगा तो वह पूरे गांव में पिं्रस के साथ अपने संबंधों का ढिंढोरा पीट देगी. प्रिंस इस बात से परेशान हो गया तो उस ने अपने दोस्त अजीत यादव के साथ मिल कर रसवंती की आवाज हमेशा के लिए खामोश करने की ठान ली.

इस के लिए योजना बना कर दोनों दोस्त 27 अक्तूबर, 2021 की शाम रसवंती के पास पहुंचे, जहां उसे कुछ रुपए दे कर दोनों ने बारीबारी से पहले तो रसवंती के साथ संबंध बनाए. फिर साथ में लाई जानवर बांधने की रस्सी से उस का गला दबा कर हत्या कर दी और लाश को वहीं चारपाई के नीचे डाल कर घर आ गए.

चूंकि रसवंती गांव में बदनाम थी, इसलिए उस के गांव में न दिखने पर भी किसी ने न तो उस की चर्चा की और न ही खोजखबर ली.

रसवंती की हत्या का पता उस समय चला, जब उस की लाश सड़ जाने के कारण फैल रही बदबू से लोग परेशान हो गए और उन्होंने पुलिस को खबर दी.

पुलिस ने आरोपी प्रिंस यादव और अजीत यादव से पूछताछ कर उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

लव और सैक्स में कोई मासूम हुआ मौत का शिकार

कहते हैं कि अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, एक न एक दिन कानून की गिरफ्त में आता जरूर है, हालांकि हत्या जैसा जघन्य अपराध जब भी कोई अपराधी करता है, तो निश्चित ही वह यही सोचता है कि उस ने जो अपराध किया है, उसे करते किसी ने देखा नहीं है, अत: वह साफ बच निकलेगा.

इस कहानी में आरोपी का अगला शिकार बनने वाली उस की दूसरी पत्नी के साहस ने उस की असलियत पुलिस के सामने ला दी. गजब के चतुर आरोपी ने इस सनसनीखेज हत्याकांड को कैसे अंजाम दिया, इस में कौनकौन शामिल रहा? उस का इरादा क्या था? इतने लंबे समय तक वह कैसे पुलिस को छकाता रहा? ऐसे तमाम सवालों के जवाब सिलसिलेवार विस्तार से जानते हैं.

इस की शुरुआत मारपीट की शिकायत से हुई. 14 मार्च, 2022 की दोपहर अनामिका नाम की एक महिला बदहवास हालत में ग्वालियर शहर के झांसी रोड थाने पहुंची. वह काफी घबराई हुई थी. थाने के गेट पर राइफल ले कर खड़े संतरी से जब उस ने थानाप्रभारी के बारे में पूछा तो संतरी ने उन के कक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब अंदर बैठे हैं, आप चली जाइए.’’

अनामिका तेज कदमों से सीधे थानाप्रभारी के कक्ष में दाखिल हुई. उस वक्त थानाप्रभारी अपने मातहतों के साथ किसी अहम मसले पर चर्चा कर रहे थे. अनजान महिला को अपने कक्ष में आया देख कर उन्होंने उस से पूछा, ‘‘कहिए क्या काम है?’’

घबराई हुई अनामिका ने कहा, ‘‘साहब, मुझे अपने पति राजेंद्र यादव के जुर्म के संबंध में कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी मय दस्तावेज और फोटो के आप को देनी है और उस के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करवानी है.’’

थानाप्रभारी ने महिला को कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘आप आराम से बैठ कर पूरी बात बताइए. आखिरकार आप के साथ क्या हुआ?’’

थानाप्रभारी के कहने पर अनामिका कुरसी पर बैठ गई, लेकिन पता नहीं क्यों, उस के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी. उस की जुबान सूख गई थी. उस की हालत देख कर थानाप्रभारी ने उसे पानी पिलवाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम अनामिका है.’’

तसल्ली देते हुए थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के साथ क्या और कैसे हुआ, विस्तार से बताइए. मैं आप को भरोसा दिलाता हूं कि पुलिस आप की हरसंभव मदद करेगी.’’

थानाप्रभारी के भरोसा देने पर अनामिका के अंदर थोड़ी हिम्मत आई. उस ने उन से कहा, मेरे पति राजेश मेहरा (36) द्वारा मेरे साथ मारपीट और गालीगलौज करने की शिकायत दर्ज कराने के साथ ही उस की असलियत से भी आप को अवगत कराना है.

अनामिका ने बताया कि उस के पिता ग्वालियर के बड़े ट्रांसपोर्टर हैं. उन्होंने बड़ी शानोशौकत से उस की शादी राजेश के साथ की थी.

इस के बाद अनामिका के साथ जो हुआ, उस की कहानी इस तरह सामने आई. समय अपनी गति से गुजरता रहा. शादी के कुछ दिनों बाद ही पति उसे परेशान करने लगा था. पति के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था, वह बातबात में उस से झगड़ा करने लगा था. यही नहीं, उस के साथ मारपीट भी करने लगा था.

अनामिका पति के बदले व्यवहार से काफी खफा रहती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अनामिका जब भी कभी उस के बदले व्यवहार की शिकायत करती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता.

यही नहीं, इस के बाद जब देखो तब राजेश मेहरा अनामिका की पिटाई कर उसे घर से निकल जाने को भी कहता. यहां तक कि उस ने घर खर्च के लिए पैसे देने भी बंद कर दिए थे. जब राजेश के अत्याचारों की हद हो गई, तब अनामिका ने अपने पिता को सारी बातें बता दीं.

राजेश ने अनामिका के सामने इस तरह के हालात खड़े कर दिए कि अनामिका परेशान हो कर खुदबखुद अपने पति का घर छोड़ कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. 6 महीने पहल॒े पति की सच्चाई सामने आने के बाद वह अपने पति से अलग हो गई.

दरअसल, 6 महीने पहले इत्तफाक से कुछ कागजात अनामिका के हाथ लगे, जिस से उसे पता चला कि उस के पति का असली नाम राजेश मेहरा नहीं बल्कि राजेंद्र कमरिया है, राजेश मेहरा तो उस का बोगस नाम है. वह धोखाधड़ी और हत्या जैसे अपराधों में शामिल होने की वजह से फरार चल रहा है.

इस के बाद ही अनामिका पति से अलग हो कर अपने पिता के पास चेतकपुरी में रहने लगी थी. पति राजेश मेहरा उर्फ राजेंद्र कमरिया ने उसे फोन कर उस के पास लौटने को कहा. अनामिका ने जब लौटने को मना कर दिया तो राजेंद्र अनामिका को फोन पर जान से मारने की धमकी देने लगा,

एक दिन तो हद ही हो गई. 12 मार्च, 2022 को अनामिका अपने पिता से थोड़ी देर में आने को कह कर घर से निकली ही थी कि रास्ते में राजेंद्र अपने साथियों निक्की, प्रमोद और राजा के साथ खड़ा मिल गया.

वह अनामिका को जबरन अपनी गाड़ी में डाल कर सुनसान स्थान पर ले गया और उस के साथ जम कर मारपीट की.

इस मारपीट में अनामिका की आंख पर भी चोट लगी. अनामिका ने बताया कि उस दिन पति राजेंद्र उसे जान से मारने की फिराक में था, लेकिन वह जैसेतैसे उस के चंगुल से छूट कर भाग आई.

इस के बाद अनामिका सीधी ग्वालियर के झांसी रोड थाने पहुंची और पुलिस को अपने पति की असलियत बताने के साथ ही कई अहम दस्तावेज भी सौंपे.

जैसेजैसे जांच आगे बढ़ रही थी, पुलिस को नित नईनई जानकारी मिल रही थी. पुलिस ने अपना रिकौर्ड खंगाला तो इसी थाने में राजेंद्र मारपीट के एक मामले में फरार निकला. राजेंद्र को दबोचने के लिए बिलौआ पुलिस से संपर्क किया गया तो पता चला कि 2014 में हुई 36 लाख रुपए की धोखाधड़ी और मारपीट के मामले में वह वहां से भी फरार चल रहा है.

राजेंद्र यादव को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में क्राइम ब्रांच के टीआई दामोदर गुप्ता, थानाप्रभारी (बिलौआ) रमेश साख्य, क्राइम ब्रांच के एएसआई राजीव सोलंकी, हैडकांस्टेबल रामबाबू सिंह, कांस्टेबल आशीष शर्मा व सोनू परिहार तथा बिलौआ थाने में पदस्थ एएसआई जीत बहादुर, कांस्टेबल सुशांत पांडे, धरमवीर और महेश आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद मुखबिर की सूचना पर 16 मार्च, 2022 को पुलिस ने उसे बिलौआ क्षेत्र स्थित उस के फार्महाउस से हिरासत में लिया.

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पुलिस ने थाने ला कर उस से पूछताछ की तो उस ने एक ऐसे सनसनीखेज अपराध का खुलासा कर दिया, जिस के बारे में सुनते ही पुलिस वालों के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.

पकड़े गए युवक का असली नाम राजेंद्र यादव था. राजेंद्र ने पूछताछ में जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस असमंजस में पड़ गई. वजह यह थी कि वह एक संगीन अपराध था और वह आज जिन 4 हत्याओं के बारे में पुलिस को बता रहा था, उस से ग्वालियर पुलिस अभी तक पूरी तरह अनभिज्ञ थी.

पूछताछ में राजेश मेहरा उर्फ राजेंद्र मेहरा उर्फ राजेंद्र यादव उर्फ राजेंद्र कमरिया से पता चला कि वह सिर्फ 12वीं कक्षा तक ही पढ़ा है. ग्वालियर के बालाबाई के बाजार में उस का एक दोस्त मनोज गहलोत परिवार के साथ रहता था.

राजेंद्र यादव भी उस के पड़ोस में ही रहता था. दोनों में गहरी दोस्ती थी. राजेंद्र ने अपने से 10 साल बड़ी मनोज की पत्नी गीता को अपने प्रेम जाल में फांस लिया था. दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए थे.

31 दिसंबर, 2011 को राजेंद्र ने अपनी प्रेमिका गीता के साथ मिल कर उस के पति मनोज गहलोत को बियर में नशे की गोली मिला कर पिला दी.

इस के बाद उस का गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया और फिर मनोज की लाश झांसी के पास बेतवा नदी में फेंक दी थी. उधर मनोज के परिवार वालों ने कोतवाली थाने में मनोज की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

मनोज की हत्या के बाद राजेंद्र और गीता ने शादी कर ली थी. शादी के बाद गीता और राजेंद्र मऊरानीपुर रहने चले गए, यहां पर गीता का मकान था.

तकरीबन 2 साल बाद जब गीता से राजेंद्र का मन ऊब गया तो सन 2013 में राजेंद्र ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से गीता का मकान हड़प लिया. उस के बाद राजेंद्र ने रहस्यों से भरी किसी फिल्म की तरह गीता, उस के बेटे निक्की और भतीजे सूरज को भी चाकू से गोद कर मार डाला.

उस के इस अपराध में राजेंद्र के भाई कालू और उस के जीजा के भाई राहुल ने भी उस की मदद की थी. इस वारदात के बाद राजेंद्र मऊरानीपुर से फरार हो गया.

तिहरे हत्याकांड से मऊरानीपुर क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. इस के बाद पुलिस किसी तरह इस हत्याकांड के आरोपियों का पता लगाने में सफल हो गई.

इतना ही नहीं, पुलिस ने हत्याकांड में शामिल रहे कालू और राहुल को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. लेकिन राजेंद्र यादव नाम और हुलिया बदल कर इधरउधर छिपता रहा. पुलिस ने उस के ऊपर ईनाम तक घोषित कर दिया.

खुद को कुंवारा बता कर राजेश उर्फ राजेंद्र ने अनामिका को सन 2014 में अपने प्रेम जाल में फांस लिया. अनामिका ने पुलिस को बताया कि राजेश से उस की दोस्ती सन 2014 में ट्रेन के सफर में हुई थी.

दोस्ती बढ़ने पर राजेश ने दिल्ली में अनामिका की नौकरी लगवाने में काफी मदद की थी, इस वजह से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. बाद में दोनों ने आपसी सहमति से शादी कर ली थी.

शादी के वक्त राजेश उर्फ राजेंद्र ने अपने को कुंवारा बताया था. राजेंद्र ने अनामिका से एक नहीं, बल्कि कई झूठ बोले थे.

उन में सब से बड़ा तो यही था कि उस ने अपनी पत्नी से मकान मालिक कुलदीप मेहरा का परिचय अपने पिता के रूप में करवाया था. राजेंद्र ने अपना नाम भी अनामिका को राजेश मेहरा बताया था. बाद में अनामिका को पता चला कि कुलदीप मेहरा राजेश उर्फ राजेंद्र का पिता नहीं बल्कि मकान मालिक है.

बाद में पता चला कि राजेश ने कुलदीप मेहरा की तकरीबन 5 करोड़ रुपए की जमीन भी ठग ली थी. शादी के बाद राजेंद्र ने अपनी पत्नी को बहन के घर रखा था. राजेंद्र और अनामिका के एक बेटा भी है.

पिछले 10 सालों से राजेंद्र अपना नाम और भेष बदल कर रहता रहा. कभी पगड़ी लगा लेता तो कभी क्लीन शेव रहता. कभी दाढ़ी बढ़ा लेता था, कभी राजेंद्र यादव बन जाता तो कभी राजेश मेहरा. वह लग्जरी कारों का भी शौकीन है. साथ ही वह अय्याश प्रवृत्ति का तो है ही.

पहले वह लड़की से दोस्ती करता है, उस के बाद उन की प्रौपर्टी पर सुनियोजित ढंग से कब्जा कर खुर्दबुर्द कर देता. बात करने में हाजिरजवाब राजेंद्र यादव के अपराधों का कच्चा चिट्ठा खोलते हुए ग्वालियर के एसपी अमित सांघी, एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया ने संयुक्त रूप से पत्रकार सम्मेलन में पत्रकारों को जानकारी दी.

2011 में खास दोस्त मनोज गहलोत की हत्या, 2012 में ग्वालियर में पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर के मकान में भाड़े पर रहा. उस की पत्नी को फांस कर 60 लाख की ठगी की. चैक बाउंस मामले में गिरफ्तारी वारंट 18 जून, 2013 में धारा 420, 467, 468, 471, 120 भादंवि का केस उस के खिलाफ दर्ज हुआ.

2013 में अपने भाई और जीजा के छोटे भाई के साथ मिल कर अपनी प्रेमिका गीता और उस के बेटे और भतीजे की निर्मम हत्या कर दी.

कड़वा सच तो यह है कि अनामिका का कई मर्तबा मन हुआ कि वह अपने पति के बारे में पुलिस को सब कुछ सचसच बता दे, लेकिन राजेंद्र के खिलाफ मुंह खोलने का साहस नहीं जुटा पाई.

जब अति हो गई तो वह पति के खिलाफ पक्के सबूतों के साथ थाने में जा कर खड़ी हो गई, वैसे भी पति के खिलाफ खड़ी होने में ही अनामिका की भलाई थी.

पति की कारगुजारियों से अनामिका को गहरा झटका लगा है. इस से उबरने में फिलहाल उसे वक्त लगेगा.

पूछताछ के बाद राजेंद्र को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तंत्र मंत्र ने खेला सारा खेल, पूरे परिवार की हुई हत्या

फतेहपुर के थानाप्रभारी अमित शर्मा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास सड़क किनारे एक एक्सयूवी 500 कार के अंदर किसी आदमी की लाश पड़ी है.

सुबहसुबह लाश मिलने की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए. उसी समय वह एसएसआई अजय प्रताप गौड़, एसआई रघुनाथ सिंह, दीपचंद, बिजेंद्र, हैडकांस्टेबल संजय, सचिन और महिला सिपाहियों ऊषा व अल्पना के साथ घटनास्थल की तरफ चल दिए.

घटनास्थल वहां से 3-4 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 10 मिनट में ही वहां पहुंच गए. मौके पर काफी लोग जमा थे. वहां खड़ी एक्सयूवी500 कार नंबर यूके17सी 6808 की ड्राइविंग सीट पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. कार के पायदान पर भी खून पड़ा था. मृतक की उम्र करीब 40 साल थी. उस का गला कटा हुआ था. मृतक शायद आसपास के क्षेत्र का रहने वाला नहीं था, इसलिए कोई भी उसे पहचान नहीं सका.

चेहरेमोहरे से मृतक किसी संपन्न परिवार का लग रहा था. लोगों ने बताया कि उन्होंने यह कार आज सुबह तब देखी थी, जब वे अपने खेतों की ओर जा रहे थे. लोगों ने यह भी बताया कि यह कार सुबह लगभग 4-5 बजे से यहां खड़ी है. उस वक्त अंधेरा था. कार की ड्राइविंग सीट की ओर की खिड़की खुली हुई थी व कार का इंजन स्टार्ट था. पहले तो उधर से गुजरने वाले लोग कार को नजरअंदाज करते रहे, मगर जब 7 बजे सूरज की रोशनी बढ़ी तब ग्रामीणों ने कार के अंदर पड़े लहूलुहान शव को देखा था.

थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय, एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा तथा एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. थानाप्रभारी अमित शर्मा ने जरूरी काररवाई करने के बाद कुछ ग्रामीणों की सहायता से शव को कार से बाहर निकाला और उस का निरीक्षण किया. कुछ ही देर में एसएसपी दिनेश कुमार पी., एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्र और सीओ रजनीश कुमार भी वहां फोरैंसिक टीम के साथ आ गए.

तीनों अधिकारियों ने भी लाश का मुआयना कर इस हत्याकांड के बारे में वहां खड़े लोगों से बात की. इस के बाद एसएसपी ने थानाप्रभारी शर्मा को आरटीओ से कार मालिक का पता लगाने व केस को खोलने के निर्देश दिए.

पुलिस ने जब मृतक की तलाशी ली तो जेब से कुछ कागजात, मोबाइल फोन तथा पर्स में रखी नकदी मिली. पर्स में मिली नकदी और मोबाइल फोन से इस बात की तो पुष्टि हो ही गई कि उस की हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई थी.

पुलिस ने प्रारंभिक जांच का काम निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सहारनपुर के जिला अस्पताल भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने कार मालिक की जानकारी करने के लिए परिवहन विभाग से संपर्क किया. परिवहन विभाग से पता चला कि उक्त नंबर की कार सुभाषचंद पुत्र ओमपाल, निवासी गांव महेश्वरी, थाना भगवानपुर, जिला हरिद्वार के नाम पर रजिस्टर्ड है.

कार मालिक के नाम की जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी ने थाना भगवानपुर के एसओ से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दी.

भगवानपुर थाने की पुलिस ने जब गांव महेश्वरी में सुभाषचंद के घर पहुंच कर जब एक्सयूवी500 कार में शव मिलने की जानकारी दी तो सुभाष के भाई विश्वास ने बताया कि वह कल ही अपनी कार ले कर घर से निकले थे. इसलिए कार में शव मिलने की बात सुन कर विश्वास घबरा गया.

वह अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ जिला अस्पताल सहारनपुर पहुंच गया. विश्वास और उस के रिश्तेदारों को जब मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो विश्वास वहीं बिलख पड़ा. उस ने स्वीकार किया कि यह लाश उस के भाई सुभाषचंद की ही है. इस के बाद तो सुभाषचंद के घर में भी कोहराम मच गया.

पूछताछ करने पर विश्वास ने पुलिस को बताया कि सुभाषचंद काफी समय से लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदारी कर रहे थे. पिछले दिन वह सुबह 9 बजे किसी काम से देहरादून जाने के लिए अपनी कार ले कर घर से निकले थे. शाम 4 बजे तक वह परिजनों से मोबाइल पर बात करते रहे. इस के बाद उन का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया.

रात भर घर वाले बहुत परेशान रहे. सुभाषचंद के लापता होने पर घर वालों ने उन्हें आसपास रहने वाले रिश्तेदारों व उन के मित्रों के यहां तलाश किया.

विश्वास से पूछताछ के बाद पुलिस ने सुभाषचंद के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और सुभाषचंद के बेटे दीपक चौधरी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस हत्याकांड की विवेचना स्वयं थानाप्रभारी ने ही संभाली.

थानाप्रभारी अमित शर्मा ने परिजनों से पूछा कि सुभाषचंद की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी. इस सवाल के जवाब में परिजनों का कहना था कि वह काफी मिलनसार थे तथा वह सहकारिता की राजनीति में सक्रिय थे. वह इकबालपुर गन्ना समिति में निदेशक भी रह चुके थे.

पुलिस को सुभाषचंद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी, जिस में उन की मौत का कारण गला कटना व गला कटने से ज्यादा खून निकलना बताया गया. काल डिटेल्स मिलने पर पुलिस ने जब सुभाषचंद के मोबाइल पर आए नंबरों की जांच की तो पुलिस को एक मोबाइल नंबर पर संदेह हुआ. वह नंबर सहारनपुर के थाना सदर अंतर्गत मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद का था.

जब पुलिस ने अरशद के विषय में जानकारी जुटाई तो पुलिस को संदेह हो गया कि सुभाषचंद की हत्या में इस का हाथ हो सकता है. पुलिस के एक मुखबिर ने जानकारी दी कि 2 दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद्र की एक्सयूवी-500 कार अरशद के घर के बाहर देखी गई थी.

इस के अलावा मुखबिर ने पुलिस को यह भी जानकारी दी कि अरशद तंत्रमंत्र का काम करता है. यह जानकारी मिलने पर एसएसपी ने थानाप्रभारी अमित शर्मा को अरशद से पूछताछ के निर्देश दिए.

अगले दिन 5 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी ने अरशद के गणेश विहार स्थित मकान पर पहुंच कर दरवाजे पर दस्तक दी. तभी एक युवक ने दरवाजा खोला. वह युवक पुलिस देख कर सकपका गया और घबरा कर अंदर की ओर भागा.

उसे भागता देख कर पुलिस वालों ने उसे पकड़ लिया और उस से पूछा कि तू कौन है तथा अरशद कहां है. युवक ने घबराते हुए बताया कि मेरा नाम वकील उर्फ सोनू है तथा अरशद यहीं दूसरे कमरे में बैठा हुआ है.

जब पुलिस टीम के साथ वकील नाम का वह युवक अरशद के कमरे में पहुंचा तो वहां बैठे अरशद को माजरा समझते देर न लगी. अरशद पुलिस को देख कर थरथर कांपने लगा था. उन्होंने अरशद को हिरासत में ले लिया.

थानाप्रभारी शर्मा ने उसी समय अरशद से पूछा, ‘‘2 दिसंबर को सुभाषचंद की कार तुम्हारे घर के पास देखी गई थी, उसी रात तुम सुभाष के साथ गांव नानका के पास गए थे और वहां उसी की कार में तुम ने उस की हत्या कर दी.’’

थानाप्रभारी के इस सवाल का अरशद कोई उत्तर नहीं दे सका और चुप हो गया. थोड़ी देर चुप होने के बाद अरशद बोला, ‘‘सर, आप को जब इस बारे में पता चल ही गया है तो आप से कुछ छिपाने से कोई फायदा नहीं है. मैं आप को इस बारे में सब कुछ बताता हूं.’’

इस के बाद अरशद ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी

सुभाषचंद लोक निर्माण विभाग, रुड़की में ठेकेदार थे. वह अपने परिवार के साथ हरिद्वार के महेश्वरी गांव में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा दीपक और एक बेटी थी. करीब 2 साल पहले सुभाष के ही एक दोस्त अतीत कटारिया, निवासी गांव झबीरन, हरिद्वार ने उन की मुलाकात सहारनपुर के ही मोहल्ला गणेश विहार निवासी अरशद से कराई थी.

अरशद तंत्रमंत्र का काम करता था. अतीत कटारिया ने उन्हें बताया कि यह पहुंचे हुए तांत्रिक हैं. उस ने बताया कि यह तंत्रमंत्र द्वारा रकम को कई गुना बना सकते हैं. लालची स्वभाव के सुभाषचंद को इस बात पर विश्वास हो गया तो उन्होंने अरशद को साढ़े 3 लाख रुपए दिए थे और इस रकम को एक करोड़ रुपयों में बदलने को कहा था.

2 महीनों तक सुभाषचंद की रकम नहीं बढ़ी तो उन्होंने तांत्रिक अरशद से अपने पैसे मांगे. अरशद पैसे दैने में आनाकानी करने लगा तो ठेकेदार ने उस पर दबाव बनाया. इतना ही नहीं, उस ने उस तांत्रिक को पैसे देने के लिए धमका भी दिया. इस से तांत्रिक अरशद बहुत चिंतित रहने लगा.

इसलिए तांत्रिक अरशद ने अपने दोस्तों टीलू और वकील उर्फ सोनू के साथ मिल कर सुभाष ठेकेदार को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना के अनुसार, अरशद ने पहली दिसंबर, 2019 को सुभाषचंद को एक करोड़ रुपए ले जाने के लिए 2 बड़े थैले ले कर अपने घर बुलाया. 2 दिसंबर को सुभाषचंद खुश होते हुए अरशद के यहां पहुंचा. उसे उम्मीद थी कि आज अरशद उसे एक करोड़ रुपए दे देगा.

योजना के मुताबिक अरशद ने अपने घर पहुंचे सुभाष को अपनी बीवी फिरदौस से चाय बनवाई. अरशद की बेटियों आजमा व नगमा ने उस चाय में नशे की गोलियां मिला दीं. वह चाय सुभाषचंद को पीने को दी. चाय पीने के थोड़ी देर बाद सुभाष को बेहोशी सी छाने लगी तो उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया.

रात होने पर अरशद के दोस्त वकील तथा टीलू भी वहां पहुंच गए. फिर सभी ने सुभाष को उठा कर उन की कार में डाला. अरशद और वकील कार ले कर सहारनपुर-देहरादून हाइवे पर गांव नानका के पास पहुंचे थे. टीलू भी बाइक से उन के पीछेपीछे पहुंच गया. सड़क किनारे कार खड़ी कर के उन्होंने सुभाषचंद को ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया.

फिर टीलू ने गाड़ी के अंदर जा कर सुभाषचंद के हाथ पकड़ लिए और वकील ने सिर पकड़ कर पीछे की तरफ कर दिया. तभी अरशद ने ड्राइवर साइड की खिड़की खोल कर सुभाष का गला रेत दिया और चाकू से 3-4 प्रहार गरदन पर किए. सुभाषचंद को ठिकाने लगाने के बाद वे बाइक से घर लौट आए.

अरशद से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने वकील से भी पूछताछ की तो उस ने भी अरशद के बयान की पुष्टि कर दी. अरशद व वकील की निशानदेही पर पुलिस ने सुभाषचंद की हत्या में प्रयुक्त चाकू, सुभाष के चाय में दी गई नशे की गोलियों का रैपर तथा अरशद के रक्तरंजित कपड़े अरशद के घर से ही बरामद कर लिए.

पुलिस ने इस केस में धारा 120बी व आर्म्स एक्ट की धारा 251/4 और बढ़ा दी. इस के बाद एसएसपी दिनेश कुमार पी. व एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा ने उसी दिन पुलिस लाइंस सभागार में प्रैसवार्ता आयोजित कर ठेकेदार सुभाषचंद की हत्या का खुलासा किया और दोनों आरोपियों को मीडिया के सामने प्रस्तुत किया था.

दूसरे दिन ही पुलिस ने इस हत्याकांड में आरोपी अरशद की पत्नी फिरदौस के अलावा उस की बेटियों अजमा व नगमा को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. छठा आरोपी टीलू, निवासी नवादा फरार हो चुका था. पुलिस उसे सरगरमी से तलाश रही थी.  कथा लिखे जाने तक थानाप्रभारी अमित शर्मा केस की विवेचना पूरी करने के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट भेजने की तैयारी कर रहे थे.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्लैकमेलर बने आशिक ने रचा षडयंत्र

Blackmailer Lover : ‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’ ‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.

अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.

रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’

रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.

‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’

‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.

रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

कलंक बना मयंक

20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं.

रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.

बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.

यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आ कर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी.

मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.

इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.

मयंक बुनने लगा जाल

20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं.

मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.

अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी.

दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई.

उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.

रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.

कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई.

कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.

दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर

वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन.

यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.

मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था.

रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी.

रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.

नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला.

नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी.

कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.

योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया.

फंदे पर लटकी मोहब्बत

कानपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर बेला-बिधूना मार्ग पर एक गांव है-कंजती. कंजती गांव कानपुर देहात जनपद के चौबेपुर थाना अंतर्गत आता है. इसी गांव में रहने वाले सुनील की बेटी सोनी शिवली में स्थित ताराचंद्र इंटर कालेज में पढ़ती थी. इस कालेज में लड़केलड़कियां साथ पढ़ते थे. सोनी के साथ उसी की कक्षा में शिववीर भी पढ़ता था.

शिववीर धनपत का बेटा था. वह सोनी के घर के पास ही रहता था. शिववीर पढ़ने में होशियार था. जब वह 8वीं कक्षा में पढ़ता था, तभी उस की दोस्ती सोनी से हो गई थी. गंभीर प्रवृत्ति का शिववीर सोनी को इतना अच्छा लगता था कि उस का दिल चाहता था कि हर घड़ी वह उसी के साथ रहे. शायद उस का यही लगाव जल्दी ही प्यार में बदल गया. शिववीर को भी सोनी अच्छी लगती थी. वैसे तो क्लास में और भी लड़कियां थीं, लेकिन शिववीर को सोनी सब से अलग दिखती थी.

जैसे ही दोनों को लगा कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं, अन्य प्रेमियों की तरह उन्होंने भी साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं. उसी बीच एक दिन सोनी के पिता ने उसे बुला कर कहा, ‘‘पता चला है कि तू किसी जाटव के लड़के के साथ घूमतीफिरती है. तुझे पता नहीं कि हम यादव हैं. यादव और जाटव का कोई जोड़ नहीं, इसलिए तू उस से दूर ही रह.’’

पिता की बातें सुन कर सोनी सन्न रह गई. जाति की बात तो उस ने सोची ही नहीं थी. बस, शिववीर उसे अच्छा लगता था, इसलिए वह उसे प्यार करने लगी थी. अब उस की समझ में आया कि प्यार भी जाति पूछ कर किया जाता है. वह सोच में पड़ गई कि अब क्या होगा.

अगले रोज शिववीर कालेज में मिला तो उस ने उसे पिता की चेतावनी के बारे में बताया. शिववीर ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘प्यार करने वालों की राह आसान नहीं होती सोनी. हमें मजबूत बनना होगा. तभी हमें मंजिल मिलेगी.’’

सोनी को लगा कि शिववीर सब संभाल लेगा. लेकिन 8वीं पास करतेकरते सोनी और शिववीर के प्यार की चर्चा गांव वालों तक पहुंच गई थी. इस के बाद गांव वाले सुनील से कहने लगे कि वह अपनी बेटी पर नजर रखें, वरना वह नाक कटा कर रहेगी.

सुनील को लगा कि गांव वाले सच कह रहे हैं, इसलिए उस ने सोनी की पढ़ाई पर रोक लगा दी. जबकि शिववीर पढ़ता रहा. सुनील का सोचना था कि शिववीर से अलग हो कर सोनी उसे भूल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. दोनों लगातार मिलते रहे. जब इस बात की जानकारी सुनील को हुई तो उसे गहरा आघात लगा. उस ने बेटी को डांटा कि अगर उस ने उस जाटव के लड़के से मिलना नहीं छोड़ा, तो सख्त रुख अपनाना पड़ेगा.

 

गांव में सुनील की बेटी की आशिकी चर्चा का विषय बनती जा रही थी. लेकिन सुनील को ही नहीं, पूरे गांव को चिंता थी कि अगर यादव की बेटी जाटव के साथ भाग गई, तो उन की बिरादरी पर कलंक लग जाएगा. सुनील पर गांव वालों का दबाव बढ़ने लगा कि वह अपनी बेटी को संभाले.

सोनी को जब पता चला कि उसे शिववीर से दूर करने की साजिश रची जा रही है तो वह घबरा गई. लेकिन उस के इरादे कमजोर नहीं पड़े. उस ने तय कर लिया कि कुछ भी हो, वह किसी भी कीमत पर शिववीर को नहीं छोड़ेगी.

इस के बाद वह बागी होती गई. एक दिन उस ने अपनी मां संतोषी से खुल कर कह दिया, ‘‘आखिर क्या कमी है शिववीर में? दिखने में भी अच्छा है. पढ़ाई में भी ठीक है. सब से बड़ी बात तो यह है कि वह मुझे प्यार करता है.’’

बेटी की बात सुन कर संतोषी सन्न रह गई. उसे लगता था कि अभी बेटी छोटी है. डांटनेफटकारने से रास्ते घर आ जाएगी. लेकिन बेटी तो बहुत आगे निकल चुकी थी. तब मां ने सोनी को डांटा, ‘‘एक जाटव के लड़के के साथ तेरी शादी कभी नहीं हो सकती. समाज में रहने के लिए उस के नियमों को मानना पड़ता है.’’

लेकिन सोनी ने तय कर लिया था कि वह किसी की नहीं मानेगी. वह वही करेगी जो उस का दिल चाहता है. दूसरी ओर शिववीर के पिता धनपत को पता नहीं था कि वह यादव की बेटी से प्यार करता है. लेकिन जब इस बात की जानकारी उन्हें हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि वह जो कुछ कर रहा है, वह ठीक नहीं है.

आज भी समाज में ऊंचनीच की दीवार कायम है. अगर किसी ने उस दीवार को तोड़ने की कोशिश की है तो उस के साथ बुरा ही हुआ है.

धनपत बेटे के लिए परेशान रहने लगा था, उसे डर था कि यादव जाति के लोग उसे कोई नुकसान न पहुंचा दें. उसे शिववीर के सिर पर खतरा मंडराता नजर आया तो वह उस पर नजर रखने लगा. ऐसे में सोनी ने जब शिववीर से पूछा कि उस ने भविष्य के बारे में क्या सोचा है तो उस ने कहा, ‘‘हम समाज की बेडि़यों से बंधे हैं. अगर यह समाज हमें साथ जीने नहीं देगा तो हमें साथ मरने से तो नहीं रोक सकता.’’

‘‘मरने की बात कहां से आ गई शिववीर? मैं अभी जीना चाहती हूं, वह भी तुम्हारे साथ.’’ सोनी बोली.

शिववीर ने उसे समझाया कि जीना तो वह भी चाहता है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है. तब सोनी ने कहा, ‘‘चलो, हम घर छोड़ कर भाग चलते हैं.’’

तभी शिववीर ने कहा, ‘‘नहीं, ऐसा करने से दोनों के घर बरबाद हो जाएंगे. हम अपनी खुशियों के लिए अपने घर वालों की खुशियां नहीं छीन सकते. सोनी, हमारे सामने जो हालात हैं, उन्हें देख कर यही लगता है कि अब हमारे सामने एक ही रास्ता है कि हम मर कर सभी को दिखा दें कि हमारा प्यार सच्चा था. हमें मिलने से कोई नहीं रोक सका.’’

इधर सोनी पर घर वालों की बंदिशें इतनी बढ़ चुकी थीं कि वह परेशान रहने लगी थी. एक दिन उस ने शिववीर को फोन कर के बताया, ‘‘शिव, मुझे तो लगता है कि हम कभी नहीं मिल पाएंगे. क्योंकि घर वाले मेरी शादी की बात कर रहे हैं.’’

शिववीर ने सोचा कि अब उसे कोई निर्णय ले ही लेना चाहिए. समाज की पाबंदियों की वजह से जीवन के प्रति उस की उदासीनता बढ़ रही थी. उस के पास न तो ऐसे कोई साधन थे और न ही हिम्मत कि वह अपनी प्रेमिका को कहीं दूर ले जा कर अपना आशियाना बसा ले.

ऐसे में उस के सामने एक ही रास्ता था कि वह प्रेमिका के साथ मौत को गले लगा ले. ताकि इस जहान में न सही, उस जहान में तो मिल सके. वहां उन्हें रोकने के लिए न तो समाज होगा और न ही ऊंचनीच की कोई दीवार.

एक शाम गांव के बाहर रवि के बगीचे में दोनों का आमनासामना हुआ. बातचीत के दौरान सोनी ने पूछा, ‘‘शिववीर, क्या सोचा है तुम ने? क्योंकि अब मैं बंदिशों से परेशान हो गई हूं. घर वाले मुझ से काफी नाराज हैं.’’

‘‘सोनी, हम ने साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं. अब तक हमारी समझ में यह आ गया है कि हम साथसाथ जी नहीं सकते. लेकिन हम साथसाथ इस जालिम दुनिया को अलविदा तो कर ही सकते हैं.’’

‘‘शिववीर, मैं ने तुम्हें जीवन भर साथ निभाने का वचन दिया है, इसलिए पीछे नहीं हटूंगी. लेकिन मेरी इच्छा है कि मैं सुहागन हो कर मरूं. अगर हम ने इस जन्म में शादी नहीं की तो अगले जन्म में भी साथ नहीं रह सकेंगे.’’

शिववीर ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम जैसा चाहती हो, वैसा ही होगा. मरने से पहले हम शादी कर लेंगे.’’

इधर परेशान सुनील ने अपनी बेटी सोनी की शादी बिल्हौर थाना क्षेत्र के धंसी निवादा रहने वाले मेवाराम यादव के बेटे अमर के साथ तय कर दी. 20 मार्च को तिलक और 30 मार्च, 2021 को शादी की तारीख भी तय हो गई. इस के बाद वह शादी की तैयारी में जुट गया.

सोनी को अपनी शादी की बाबत पता चला तो वह परेशान हो उठी. उस ने शादी तय होने और 30 मार्च को बारात आने की जानकारी शिववीर को दी तो वह भी परेशान हो उठा. उस ने सोनी को समझाया भी. लेकिन सोनी ने साफ कह दिया कि वह दुलहन तो बनेगी, लेकिन किसी और की नहीं, केवल अपने मन के मीत की.

सुनील बेटी की शादी धूमधाम से करना चाहता था. घर में खुशी का माहौल था. घर में नातेरिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था. मंडप भी गड़ गया था और मंडप के नीचे मंगल गीत गाए जाने लगे थे. सोनी की काया को निखारने के लिए उस के शरीर पर उबटन लगाया जाने लगा था.

28 मार्च, 2021 को होली का त्यौहार था. रात 10 बजे होली जलाई गई. रात 12 बजे जब घर के लोग सो गए तो सोनी ने शिववीर को फोन किया और पूरी तैयारी के साथ उसे गांव के बाहर शीतला देवी के मंदिर पर मिलने को कहा.

उसी रात शिववीर घर से निकल कर शीतला देवी मंदिर पहुंच गया, जहां सोनी उस का इंतजार कर रही थी. रात में ही उन्होंने मां शीतला को साक्षी मान कर मंदिर में शादी कर ली. शिववीर ने सोनी की मांग भर कर उसे पत्नी बना लिया.

रात भर दोनों एकदूसरे की बांहों में समाए रहे. रात का अंधेरा और तारे उन की मोहब्बत के गवाह बने.

सुबह 4 बजे शिववीर ने कहा, ‘‘सोनी, अब हमें लंबे सफर पर चलना होगा.’’

इस के बाद सोनी और शिववीर कमल कटियार के खेत पहुंचे. खेत के किनारे नीम का पेड़ था. इस पेड़ पर दोनों चढ़ गए. सामान को उन्होंने 2 शाखाओं के बीच रखा, फिर रस्सी का फंदा गले में डाल कर दोनों झूल गए. कुछ देर में ही उन के प्राणपखेरू उड़ गए.

सुबह 7 बजे कंजती गांव का आशू कटियार दिशामैदान को गया तो उस ने नीम के पेड़ पर रस्सी के सहारे प्रेमी युगल को लटकते देखा. वह भाग कर गांव आया और गांव वालों को जानकारी दी. इस के बाद तो कंजती गांव में सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई.

सुनील की बेटी सोनी तथा धनपत का बेटा शिववीर भी अपनेअपने घर से नदारद थे. उन का माथा ठनका. सुनील अपनी पत्नी संतोषी के साथ घटनास्थल पहुंचा. वहां अपनी बेटी सोनी को फांसी के फंदे पर झूलता देख कर वह दहाड़ मार कर रो पड़ा. धनपत भी बेटे की मौत पर आंसू बहाने लगा.

इसी बीच गांव के प्रधान राजेश ने प्रेमी युगल द्वारा जीवनलीला समाप्त करने की सूचना थाना चौबेपुर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी कृष्णमोहन राय पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

मृतका सोनी और मृतक शिववीर कंजती गांव के ही रहने वाले थे. सोनी करीब 21 वर्ष की थी, जबकि शिववीर 22 वर्ष का था. सोनी की मांग में सिंदूर था. देखने से ऐसा लग रहा था कि मरने के पहले दोनों ने शादी कर ली थी.

थानाप्रभारी कृष्णमोहन राय अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि यादव और जाटव बिरादरी के लोगों में कहासुनी होने लगी. तनाव बढ़ता देख श्री राय ने सूचना पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पा कर एसपी (देहात) केशव कुमार चौधरी तथा डीएसपी संदीप सिंह वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा दोनों पक्षों के लोगों को समझा कर शांत किया. इस के बाद उन्होंने फंदे पर लटके दोनों शवों को नीचे उतरवाया. उन्होंने मृतकों के घर वालों से पूछताछ की.

मृतक शिववीर की जामातलाशी ली गई तो उस की जेब से मोबाइल फोन, पैन कार्ड, आधार कार्ड, डेबिट कार्ड तथा 597 रुपए मिले. इस के अलावा पेड़ की डाल पर चुनरी, गमछा, मोबाइल फोन, हाथ घड़ी, 2 जींस, पेड़ के नीचे लेडीज चप्पलें तथा पानी की बोतल मिली. पुलिस ने बरामद सामान को सुरक्षित किया तथा दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस माती भिजवा दिया.

थाना चौबेपुर पुलिस ने प्रेमी युगल आत्महत्या प्रकरण को जीडी में दर्ज तो किया, लेकिन दोनों की मृत्यु होने से उन्होंने इस प्रकरण की फाइल बंद कर दी. बेटी के गलत कदम से सुनील का सिर झुक गया था. यादव समाज का तिरस्कार उसे भारी पड़ रहा था.

क्या था हत्या का अनोखा राज

न्यूआजाद नगर स्थित ग्रामसमाज की जमीन पर एक सफेद प्लास्टिक की बोरी पड़ी थी. कुत्तों का झुंड बोरी को नोचने में लगा था. तभी कुछ मजदूरों की नजर कुत्तों के झुंड पर पड़ी. ये मजदूर डूडा कालोनी के पास प्रधानमंत्री आवास योजना निर्माण के काम में लगे थे.

चूंकि हवा के झोंकों के साथ दुर्गंध भी आ रही थी, इसलिए उत्सुकतावश 2-3 मजदूर वहां पहुंचे. उन्होंने कुत्तों को भगा कर बोरी पर नजर डाली तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बोरी के अंदर लाश है. मजदूरों ने बोरी में लाश होने की जानकारी अपने ठेकेदार को दी. उस ने यह जानकारी तुरंत धाना विधनू को दे दी.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह को लाश की सूचना मिली तो वह विचलित हो उठे. उन्होंने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी और पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी.

अनुराग सिंह ने बोरी से लाश निकलवाई तो तेज झोंका आया. उन्होंने नाक पर रूमाल रख कर शव का निरीक्षण किया. शव किसी युवती का था, जिस के गले में काले रंग के दुपट्टे का फंदा था. संभवत: उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मृतका क्रीम कलर की छींटदार कुरती और काली जींस पहने थी. उस के बाएं हाथ की कलाई में कलावा तथा दाएं हाथ पर टैटू बना था. एक हाथ में स्टील का कड़ा और दूसरे हाथ में काले रंग का कंगन था. उस की उम्र 30 साल के आसपास थी, रंग गोरा था.

शव से बदबू आने से ऐसा लग रहा था कि उस की हत्या 2 दिन पहले की गई थी. साथ ही यह भी कि हत्या कहीं और की गई थी और शव को बोरी में बंद कर यहां सुनसान जगह पर फेंका गया था.

अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह भी आ गए. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

साथ ही वहां मौजूद लोगों से शव के संबंध में पूछताछ की, लेकिन कोई भी शव की पहचान नहीं कर पाया. पुलिस ने शव के विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. यह 2 अगस्त, 2019 की बात है.

दूसरे दिन युवती के हुलिए सहित उस की लाश पाए जाने की खबर स्थानीय समाचार पत्रों में छपी तो श्यामनगर निवासी रिटायर्ड मेजर विद्याशंकर शर्मा का माथा ठनका. उन्होंने पूरी खबर विस्तार से पढ़ी, फिर पत्नी और बेटे मनीष को जानकारी दी.

पुलिस ने दर्ज नहीं की थी रिपोर्ट दरअसल, विद्याशंकर शर्मा की 30 वर्षीय विवाहित बेटी प्रीति शर्मा पिछले 2 दिन से घर वापस नहीं आई थी. उन्होंने श्यामनगर पुलिस चौकी जा कर गुमशुदगी दर्ज कराने का प्रयास किया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें टरका दिया था. खबर पढ़ कर शर्माजी घबरा गए.

विद्याशंकर शर्मा ने अपने बेटे मनीष और अन्य घरवालों को साथ लिया और पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. वहां जा कर उन्होंने विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह से बातचीत कर के अज्ञात युवती का शव दिखाने का अनुरोध किया.

अनुराग सिंह ने युवती का शव दिखाया तो विद्याशंकर शर्मा फफक पड़े, ‘‘सर, यह लाश मेरी बेटी प्रीति की है. मैं ने इसे हाथ में बंधे कलावा, कड़ा और टैटू से पहचाना है.’’

लाश की पहचान होते ही विद्याशंकर के घर में कोहराम मच गया. मनीष बहन की लाश देख कर रो पड़ा. उस की पत्नी कंचन भी सिसकने लगी. सब से ज्यादा बुरा हाल मनीष की मां मधु शर्मा का था. वह दहाड़ मार कर रो रही थीं. उन की बहू कंचन तथा परिवार की अन्य औरतें उन्हें धैर्य बंधा रही थीं.

लाश की शिनाख्त होने के बाद थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के पिता विद्याशंकर शर्मा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि 2 दिन पहले प्रीति को उस की सहेली वैदिका तथा उस का पति सत्येंद्र अपने घर ले गए थे. उस के बाद प्रीति वापस नहीं लौटी.

पुलिस ने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से पूछा तो दोनों बहाना बनाने लगे. पुलिस को संदेह हुआ कि कहीं प्रीति का सामान लूटने के लिए उस की हत्या वैदिका और उस के पति सत्येंद्र ने मिल कर तो नहीं की है. इस संदेह की वजह यह थी कि प्रीति जब घर से निकली थी, तब वह कई आभूषण पहने थी. पर्स, मोबाइल व एटीएम कार्ड उस के पास थे, जो लाश के पास नहीं मिले. पहने हुए आभूषण भी गायब थे.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के भाई मनीष शर्मा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि प्रीति की हत्या में उस की सहेली वैदिका और उस का पति सत्येंद्र ही शामिल हैं. इस के अलावा प्रशांत द्विवेदी नाम का युवक भी शामिल है. इन तीनों ने ही हत्या की योजना बनाई और प्रीति को मौत की नींद सुला दिया.

‘‘प्रशांत द्विवेदी कौन हैं?’’ सिंह ने पूछा.  ‘‘सर, प्रशांत द्विवेदी मेरी बहन का प्रेमी है. उस ने प्रीति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था और शादी का झांसा दे कर उस का शारीरिक शोषण करता था. जब प्रीति ने शादी का दबाव बनाया तो उस ने प्रीति की सहेली वैदिका के साथ मिल कर उसे मार डाला.’’

‘‘तुम्हारी बहन प्रीति तो ब्याहता थी? वह प्रशांत के जाल में कैसे फंस गई?’’ अनुराग सिंह ने सवाल किया.  ‘‘सर, प्रीति का अपने पति से मनमुटाव था. कोर्ट में दोनों के तलाक का मुकदमा चल रहा है. पति से मनमुटाव के बाद वह मायके आ कर रहने लगी थी. पति की उपेक्षा से ऊबी प्रीति को प्रशांत का साथ मिला तो वह उस की ओर आकर्षित हो गई और उस के साथ शादी के सपने संजोने लगी. पर प्रशांत छलिया निकला, वह उस से शादी नहीं करना  चाहता था.’’

‘‘कहीं प्रीति की हत्या मुकदमे से छुटकारा पाने के लिए उस के पति ने ही तो नहीं कर दी?’’ सिंह ने शंका जाहिर की.

‘‘नहीं सर, प्रीति के ससुराल वाले हत्या जैसा जोखिम नहीं उठा सकते. प्रीति का पति पीयूष शर्मा एयरफोर्स में है और अंबाला में तैनात है. ससुर भुजराम शर्मा रोडवेज से रिटायर हैं. उन पर हमें भरोसा है.’’

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह को लगा कि प्रीति की हत्या या तो अवैध रिश्तों के चलते हुई या फिर प्रीति की सहेली वैदिका ने उस के साथ विश्वासघात किया है. उन्होंने वैदिका, उस के पति सत्येंद्र तथा प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर तीनों से अलगअलग पूछताछ की गई.

वैदिका ने बताया कि प्रीति उस की घनिष्ठ सहेली थी. स्वर्णजयंत विहार में उस का ब्यूटी पार्लर है, जहां प्रीति मेकअप कराने आती थी. जब पति से उस का मनमुटाव हुआ तो उस ने भी ब्यूटी पार्लर चलाने की इच्छा जाहिर की. तब मैं ने उस की मदद की. प्रीति का मेरे घर आनाजाना था.

वैदिका का संदिग्ध बयान  30 जुलाई को फोन कर उस ने मुझे अपने घर बुलाया था. उसे कुछ सामान खरीदना था सो वह मेरे साथ गई थी. सामान खरीदने के बाद वह वापस घर चली गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे पता नहीं है.

वैदिका के पति सत्येंद्र ने बताया कि वह प्राइवेट नौकरी करता था. उस की नौकरी छूट गई है और वह बेरोजगार है. प्रीति, उस की पत्नी की सहेली थी. उस का घर में आनाजाना था. सो उस से अच्छा परिचय था. उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे नहीं पता. इसी बीच किसी का फोन आया तो अनुराग फोन पर बतियाने लगे.

थानाप्रभारी का ध्यान फोन पर केंद्रित हुआ तो वैदिका अपने पति से खुसरफुसर करने लगी. उस ने पति को जुबान बंद रखने का भी इशारा किया. अनुराग सिंह समझ गए कि वैदिका कुछ छिपा रही है और पति को भी ऐसा करने को मजबूर कर रही है. फिर भी उन्होंने वैदिका से कुछ नहीं कहा.

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह ने दोनों को इस हिदायत के साथ घर जाने दिया कि जब भी उन्हें बुलाया जाए, थाने आ जाएं. शहर छोड़ कर भी कहीं न जाएं.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह हैलट अस्पताल का कर्मचारी है. प्रीति से उस की मुलाकात 6 महीने पहले तब हुई थी, जब वह अपने भाई मनीष की 10 वर्षीय बेटी परी का इलाज कराने आई थी.

अस्पताल में दोनों की दोस्ती हुई और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई. वे दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन प्रीति का तलाक नहीं हुआ था. इसलिए उस ने प्रीति से कहा था कि तलाक होने के बाद शादी कर लेंगे. प्रशांत ने यह भी कहा कि उसे प्रीति का उस की सहेली वैदिका के घर जाना अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि वैदिका और उस का पति सत्येंद्र प्रीति से किसी न किसी बहाने पैसे वसूलते रहते थे.

कभी वे तंगहाली का रोना रोते तो कभी मकान का किराया देने का. उसे शक है कि प्रीति की सहेली वैदिका ने ही उस के साथ घात किया है. उस के गहने और नकदी लूट कर उस की हत्या कर दी और शव सुनसान जगह पर फेंक दिया.

प्रशांत द्विवेदी के बयान से थानाप्रभारी अनुराग का शक वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर और भी गहरा गया. उन्हें लगा कि प्रीति शर्मा की हत्या का राज उन दोनों के ही पेट में छिपा है. उन्होंने प्रशांत को तो थाने से जाने दिया, लेकिन वैदिका पर नजरें गड़ा दीं. अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा तथा उस की सहेली वैदिका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

पता चला कि प्रीति और वैदिका की लगभग हर रोज बातें होती थीं. प्रीति की एक अन्य नंबर पर भी ज्यादा बातें होती थीं. उस नंबर को ट्रेस किया गया तो पता चला कि वह प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी का है.

30 जुलाई, 2019 को भी प्रीति शर्मा की फोन पर वैदिका से कई बार बात हुई थी. रात 8 बजे के बाद उस का फोन बंद हो गया था. इस का मतलब यह था कि हत्या के बाद उस के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अब तक की जांच से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत कराया. साथ ही प्रीति की सहेली वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर हत्या का शक भी जताया. मामला हत्या का था, इसलिए रवीना त्यागी ने दोनों को गिरफ्तार कर के पूछताछ करने का आदेश दिया.

आदेश मिलते ही अनुराग सिंह ने 5 अगस्त की सुबह स्वर्ण जयंती विहार स्थित वैदिका के किराए वाले मकान पर छापा मार कर वैदिका और उस के पति को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना विधनू लाया गया. थाने आते समय दोनों के मुंह लटक गए थे. उन के चेहरों पर घबराहट और डर की परछाई साफ नजर आ रही थी.

अनुराग सिंह ने वैदिका और सत्येंद्र को अपने कक्ष में आमनेसामने बैठाया और कुछ देर उन के चेहरों के हावभाव पढ़ने की कोशिश करते रहे. उस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘सचसच बताओ, तुम दोनों ने प्रीति की हत्या क्यों और कैसे की?’’

‘‘सर, हम ने प्रीति की हत्या नहीं की. हम दोनों को फंसाया जा रहा है.’’

‘‘फिर झूठ, नरम व्यवहार का मतलब यह नहीं है कि तुम झूठ पर झूठ बोलते जाओ. हमें सच उगलवाना भी आता है.’’

कहते हुए उन्होंने महिला सिपाही ऊषा यादव तथा कांस्टेबल बलराम को बुला कर कहा, ‘‘इन दोनों को डार्क रूम में ले चलो. हम भी देखते हैं कि ये कब तक सच नहीं बोलते.’’

खुल गया हत्या का राज थानाप्रभारी अनुराग सिंह के तेवर देख कर वैदिका और सत्येंद्र डर गए. उन्हें लगा कि सच बोलने में ही भलाई है. अत: वे दोनों हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘सर, हमें माफ कर दो. हम से गलती हो गई. पैसों की तंगी के कारण प्रीति की हत्या हम दोनों ने ही की थी. हम अपना जुर्म कबूल करते हैं.’’

जुर्म कबूल करने के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति का मोबाइल, पर्स, ज्वैलरी आदि सामान बरामद करा दिया. पुलिस ने हत्या के बाद लाश फेंकने में इस्तेमाल की गई सत्येंद्र की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा की हत्या का राज खोलने और उस का सामान बरामद करने की जानकारी एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह को दे दी. पुलिस अधिकारी थाना विधनू आ गए. उन्होंने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से प्रीति की हत्या के संबंध में विस्तृत जानकारी हासिल की. फिर प्रैसवार्ता कर हत्यारोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

कातिलों ने हत्या का जुर्म कबूल कर के सामान भी बरामद करा दिया था. थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका के पिता विद्याशंकर शर्मा को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में सहेली द्वारा सहेली के साथ विश्वासघात करने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

कानपुर महानगर के थाना चकेरी क्षेत्र में एक मोहल्ला है श्यामनगर. इसी मोहल्ले के ई ब्लौक में विद्याशंकर शर्मा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मधु शर्मा के अलावा एक बेटा मनीष तथा बेटी प्रीति थी. विद्याशंकर शर्मा सेना के मेजर पद से रिटायर हुए थे. विद्याशंकर का परिवार संपन्न था और वह इज्जतदार व्यक्ति थे.

विद्याशंकर शर्मा खुद पढ़ेलिखे व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे मनीष और बेटी प्रीति को भी खूब पढ़ायालिखाया था. मनीष पढ़लिख कर जब काम पर लग गया तो उन्होंने उस का विवाह कंचन नाम की खूबसूरत युवती के साथ कर दिया.

कंचन पढ़ीलिखी तथा मृदुभाषी थी. ससुराल में आते ही उस ने सभी का दिल जीत लिया था. शादी के एक साल बाद कंचन ने बेटी परी को जन्म दिया.

प्रीति मनीष से छोटी थी. वह दिखने में जितनी सुंदर थी, पढ़ाई में भी उतनी ही तेज थी. खालसा गर्ल्स कालेज से उस ने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बीए की डिग्री बृहस्पति महाविद्यालय, किदवईनगर से हासिल की थी. यही नहीं, स्वरोजगार के लिए उस ने ब्यूटीशियन का पूरा कोर्स भी कर रखा था. प्रीति को बनसंवर कर रहना तथा स्वच्छंद घूमना पसंद था.

प्रीति जवान हुई तो विद्याशंकर शर्मा को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. वह प्रीति का विवाह धूमधाम से किसी ऐसे युवक से करना चाहते थे, जो पढ़ालिखा हो और सरकारी नौकरी में हो.

हालांकि प्रीति का हाथ मांगने के लिए कई रिश्तेदारों ने कोशिश की, लेकिन विद्याशंकर ने उन्हें मना कर दिया था. कारण यह कि उन के लड़के या तो व्यापारी थे या फिर प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. काफी दौड़धूप के बाद विद्याशंकर शर्मा को एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था पीयूष.

पीयूष के पिता भुजराम शर्मा चकेरी थाना क्षेत्र में आने वाले मोहल्ला कोयलानगर में रहते थे. वह रोडवेज से रिटायर हुए थे. कोयलानगर में उन का अपना आलीशान मकान था, जिस में वह परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पत्नी सुधा शर्मा के अलावा एक ही बेटा था पीयूष. पीयूष पढ़ालिखा युवक था. उस का चयन वायुसेना में हो गया था. ट्रेनिंग के बाद वह अंबाला में कार्यरत था.

विद्याशंकर शर्मा ने पीयूष को देखा तो वह उन्हें अपनी बेटी प्रीति के योग्य लगा. लेनदेन की बात तय होने के बाद दोनों परिवारों में सहमति बनी कि शादी तब तय मानी जाएगी, जब प्रीति और पीयूष एकदूसरे को पसंद कर शादी को राजी हो जाएंगे. नियत तिथि पर पीयूष और प्रीति ने एकदूसरे को देखा, आपस में बातचीत की. अंतत: दोनों शादी को राजी हो गए. उस के बाद 20 फरवरी, 2015 को प्रीति का विवाह पीयूष शर्मा के साथ धूमधाम से हो गया.

विद्याशंकर शर्मा ने शादी में काफी खर्च किया था. उन्होंने बेटी को आभूषणों के अलावा उस के ससुराल पक्ष को वह हर सामान दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी. शर्माजी ने हंसीखुशी से लाल जोड़े में लिपटी अपनी लाडली बेटी को विदा किया.

सास की वजह से मतभेद बढ़े पतिपत्नी में प्रीति शर्मा खूबसूरत थी. ससुराल में उसे जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की तारीफ की. पीयूष भी पढ़ीलिखी और खूबसूरत पत्नी पा कर खुश था. मुंहदिखाई रस्म के दौरान जब परिवार की महिलाएं प्रीति का घूंघट उठा कर देखतीं और उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करतीं तो सास सुधा शर्मा का सीना गर्व से तन जाता. प्रीति भी ससुराल वालों के व्यवहार से खुश थी. उसे खुशी इस बात की भी थी कि उस का पति स्मार्ट और सभ्य है.

जब गौने के बाद प्रीति ससुराल आई तो उसे सास का व्यवहार थोड़ा तल्ख लगा. सुधा शर्मा ने घर का सारा काम प्रीति को सौंप दिया. काम करने के बावजूद उसे सास की डांट सहनी पड़ती थी. कभी वह दाल में कम नमक को ले कर डांटती तो कभी साफसफाई को ले कर. कभीकभी दहेज कम देने को ले कर भी ताना मारतीं.

सास के तानों से प्रीति का दिल छलनी होने लगा. वह मानसिक प्रताड़ना से परेशान रहने लगी. पति उस से कोसों दूर था, वह अपनी पीड़ा कहती भी तो किस से. एक रोज उस की मां का फोन आया तो प्रीति के सब्र का बांध टूट गया. उस ने फोन पर ही सारी पीड़ा मां को बताई और फूटफूट कर रोने लगी. मां ने उसे धैर्य बंधाया और उस की सास को समझाने का भरोसा दिया.

मधु शर्मा ने प्रीति की प्रताड़ना को ले कर उस की सास से शिकायत की तो वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम्हारी बेटी इतनी नाजुक और कोमल है तो घर के काम के लिए नौकरचाकर लगवा दो या फिर इसे अपने घर बुला लो. मुझे कामचोर बहू की जरूरत नहीं है.’’

शिकायत के बाद सास का जुल्म और बढ़ गया. अब वह प्रीति के खानेपीने, उठनेबैठने और सजनेसंवरने पर भी सवाल खड़े करने लगी.

लगभग 3 महीने बाद पीयूष जब छुट्टी पर घर आया तो मां ने प्रीति के खिलाफ उस के कान भरे. इस पर पीयूष का व्यवहार भी प्रीति के प्रति कठोर हो गया. उस ने प्रीति से साफ कह दिया कि उसे घर का काम करना पड़ेगा. मां जो कहेगी, उसे बरदाश्त करना होगा. साथ ही मर्यादा में रहना पड़ेगा. मां से बगावत वह बरदाश्त नहीं करेगा.

पति की बात सुन कर प्रीति अवाक रह गई. वह जान गई कि पीयूष मातृभक्त है. उसे पत्नी की कोई चिंता नहीं है. घर में तनाव को ले कर पीयूष और प्रीति के बीच दरार पड़ गई. पीयूष को जहां अपनी सरकारी नौकरी का घमंड था, वहीं प्रीति को भी अपनी खूबसूरती का अहंकार था. इस अहंकार और घमंड ने प्रीति और पीयूष के जीवन को गर्त में धकेल दिया.

इधर पीयूष का साथ मिला तो सास सुधा प्रीति पर और जुल्म करने लगी. अब वह सीधे तौर पर दहेज के रूप में रुपयों की मांग करती. प्रीति रुपया लाने को राजी नहीं होती तो वह उसे प्रताडि़त करती.

प्रीति आखिर कब तक जुल्म सहती, एक साल बीततेबीतते वह ससुराल में इतनी ज्यादा परेशान हो गई कि उस ने ससुराल छोड़ दी और मायके में आ कर रहने लगी. कुछ महीने बाद पीयूष उसे लेने आया तो प्रीति ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया.

मायके में प्रीति कुछ समय तक असामान्य और गुमसुम रही. लेकिन जब मांबाप ने उसे समझाया और दहेज उत्पीड़न जैसी बुराई से लड़ने की हौसलाअफजाई की तो उस ने भी लड़ने की ठान ली. उस ने पिता और भाई के सहयोग से पति पीयूष, ससुर भुजराम शर्मा तथा सास सुधा शर्मा के विरुद्ध थाना चकेरी में दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही तलाक का मुकदमा भी कायम करा दिया.

मुकदमा करने के बाद प्रीति ने थाना चकेरी पुलिस पर दबाव बनाया कि वह आरोपियों को जल्द बंदी बनाए.

उधर पीयूष और उस के मातापिता को प्रीति द्वारा दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कायम कराने की जानकारी हुई, तो वे घबरा गए. गिरफ्तारी से बचने के लिए भुजराम शर्मा मकान में ताला लगा कर अंडरग्राउंड हो गए. पीयूष वायुसेना में था, गिरफ्तार होने पर उस की नौकरी खतरे में पड़ सकती थी.

दौड़धूप कर के पीयूष ने गिरफ्तारी के विरुद्ध हाइकोर्ट से स्टे ले लिया. स्टे मिलने के बाद पीयूष ने ससुराल वालों से समझौते की पहल की. प्रीति शर्मा पहले तो तैयार नहीं हुई, लेकिन मांबाप के समझाने पर तैयार हो गई. उस ने समझौते के लिए 10 लाख रुपए की मांग रखी, जो उस के मांबाप ने शादी में खर्च किए थे.

पीयूष दहेज उत्पीड़न का मुकदमा खत्म करने तथा तलाक मिलने पर 10 लाख रुपए देने को राजी हो गया. उस ने 5 लाख रुपए प्रीति को कोर्ट के माध्यम से दे दिए और बाकी रुपए तलाक मिलने के बाद देने का वादा किया.

प्रीति ने खोला ब्यूटी पार्लर प्रीति की एक घनिष्ठ सहेली थी वैदिका. वह अपने पति सत्येंद्र के साथ स्वर्ण जयंती विहार में रहती थी. यह क्षेत्र थाना विधनू के अंतर्गत आता है. वैदिका किराए पर सुलभ पांडेय के मकान में रहती थी. मकान के बाहरी भाग में उस ने ब्यूटी पार्लर खोल रखा था. प्रीति सजनेसंवरने उस के पार्लर में जाती थी.

आतेजाते दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. वैदिका का पति सत्येंद्र मूलरूप से बिल्हौर थाने के कल्वामऊ गांव का रहने वाला था. बेहतर जिंदगी की उम्मीद से वह कानपुर शहर आया था. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था, जबकि वैदिका ब्यूटी पार्लर चलाने लगी थी.

प्रीति ने भी ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा था, अत: सहेली के घर आतेजाते उस ने वैदिका से ब्यूटी पार्लर खोलने की इच्छा जाहिर की. वैदिका ने भरपूर मदद का आश्वासन दिया तो प्रीति ने श्याम नगर में अपने घर से कुछ दूरी पर एक दुकान किराए पर ले ली. फिर वैदिका की मदद से दुकान को सजा कर ब्यूटी पार्लर चलाने लगी.

चूंकि प्रीति व्यवहारकुशल, हंसमुख और सुंदर थी, इसलिए कुछ ही माह बाद उस का ब्यूटी पार्लर अच्छी तरह चलने लगा. उस के यहां महिलाओं, लड़कियों की भीड़ उमड़ने लगी. उसे अच्छी आमदनी होने लगी थी. प्रीति सहेली वैदिका की भी आर्थिक मदद करने लगी.

प्रीति की अपनी भाभी कंचन से खूब पटती थी. कंचन की बेटी का नाम परी था. परी अपनी बुआ प्रीति से खूब हिलीमिली थी. प्रीति भी परी को खूब प्यार करती थी. जनवरी 2019 में परी एक दिन अकस्मात बीमार पड़ गई. मनीष ने उसे हैलट अस्पताल के न्यूरो साइंस वार्ड में इलाज हेतु भरती कराया. चूंकि परी प्रीति से बहुत प्यार करती थी, इसलिए उस ने परी की देखभाल के लिए हैलट अस्पताल में डेरा जमा लिया.

हैलट अस्पताल में ही प्रीति की मुलाकात प्रशांत द्विवेदी से हुई. प्रशांत द्विवेदी न्यूरो साइंस डिपार्टमेंट का कर्मचारी था. परी की देखभाल के लिए उस का आनाजाना लगा रहता था.

प्रशांत के पिता पुलिस विभाग में हैडकांस्टेबल थे और औरेया जिले के फफूंद थाने में तैनात थे. प्रशांत ने खूबसूरत प्रीति को देखा तो वह उस के दिल में रचबस गई. परी की देखभाल के बहाने प्रशांत प्रीति से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह शरीर से हृष्टपुष्ट व दिखने में स्मार्ट था. प्रीति को भी उस की नजदीकी और लच्छेदार बातें अच्छी लगने लगीं. उस के दिल में प्रशांत के प्रति प्यार उमड़ने लगा.

एक दिन प्रशांत ने मौका देख कर प्रीति का हाथ थाम लिया और बोला, ‘‘प्रीति मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. यदि मुझे तुम्हारा साथ मिल जाए तो मेरा जीवन सुधर जाएगा. तुम्हारे बिना अब मैं खुद को अधूरा समझने लगा हूं. बोलो दोगी मेरा साथ?’’

प्रीति अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, प्यार तो मैं भी तुम्हें करने लगी हूं. लेकिन तुम्हें पता नहीं है कि मैं शादीशुदा हूं. कोर्ट में पति से मेरा तलाक का मामला चल रहा है.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बीते कल से कोई मतलब नहीं. रही बात तलाक की तो आज नहीं तो कल निपट ही जाएगा. मैं बस तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे डर लग रहा है प्रशांत, कहीं तुम ने धोखा दे दिया तो?’’ प्रीति ने आशंका जताई.

‘‘कैसी बातें कर रही हो प्रीति, मैं तुम्हारा साथ जीवन भर निभाऊंगा.’’ प्रशांत ने वादा किया.

इस के बाद प्रीति और प्रशांत का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने लगे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. देह संबंध भी बन गए. प्रीति ने अपने और प्रशांत के बारे में अपनी सहेली को भी बता दिया था. प्रशांत और प्रीति, वैदिका के घर मिलने लगे थे.

जब कभी उन का मिलन नहीं हो पाता था, तब दोनों मोबाइल फोन पर बतिया कर अपने दिल की बात एकदूसरे को बता देते थे. प्रीति के भाई को दोनों के प्रेमिल संबंधों का पता चल गया था, लेकिन वह कभी इस का विरोध नहीं करता था.

एक दिन प्रीति ने प्रशांत के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने टाल दिया. शादी को ले कर दोनों में विवाद भी हुआ. लेकिन प्रशांत ने यह कह कर प्रीति को शांत कर दिया कि हम तलाक के बाद तुरंत शादी कर लेंगे. क्योंकि तलाक के पहले शादी करने से तुम मुसीबत में फंस सकती हो. प्रीति को यह बात समझ में आ गई और उस ने शादी की रट छोड़ दी.

इधर प्रीति प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर रही थी, जबकि उस की सहेली वैदिका की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई थी. दरअसल, वैदिका के पति सत्येंद्र की नौकरी छूट गई थी और उस का पार्लर भी बंद हो गया था.

उस के ऊपर कई महीने का मकान का किराया बकाया था. अन्य लोगों से लिया कर्ज भी बढ़ गया था. ऊपर से प्रीति ने भी मदद देनी बंद कर दी थी. ऐसे में उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह कर्ज कैसे चुकाए या फिर मकान का किराया कैसे भरे.

एक दिन प्रीति वैदिका के घर आई तो उस की नजर प्रीति के शरीर के आभूषणों पर पड़ी, जो लगभग 2 लाख के थे. आभूषण देख कर वैदिका ने पति सत्येंद्र के साथ मिल कर सहेली प्रीति से घात करने की योजना बनाई. इस के बाद वह समय का इंतजार करने लगी.

30 जुलाई, 2019 को वैदिका अपने पति सत्येंद्र के साथ प्रीति के घर पहुंची. उस ने बताया कि वह ब्यूटी पार्लर का सामान बेच रही है, चल कर देख लो और जो तुम्हारे मतलब का हो उसे खरीद लो.

प्रीति सहेली की चाल समझ नहीं पाई और उस के साथ उस के घर पर आ गई. घर पर वैदिका ने उस का खूब आदरसत्कार किया. प्रीति जाने लगी तो उस ने यह कह कर रोक लिया कि खाना खा कर जाना. वैदिका ने शाम को खाना बनाया फिर रात 8 बजे तीनों ने बैठ कर खाना खाया.

खाना खाने के बाद प्रीति पलंग पर लेट गई. तभी वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति को दबोच लिया. वह चिल्लाने लगी तो सत्येंद्र ने उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और वैदिका ने प्रीति के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

प्रीति की हत्या के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने मिल कर प्रीति के गले की सोने की चैन, 2 अंगूठी, सोने का कड़ा, कान की बाली और नाक की लौंग उतार ली. इतना ही नहीं, वैदिका ने प्रीति के पर्स से नकद रुपया, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड भी निकाल लिया.

इस के बाद दोनों ने मिल कर प्रीति के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और मोटरसाइकिल पर रख कर न्यू आजाद नगर की ग्रामसमाज की खाली पड़ी जमीन पर फेंक आए. आभूषणों और नकदी को सुरक्षित कर के उन्होंने मोबाइल व पर्स को घर में छिपा दिया.

इधर जब प्रीति देर रात तक नहीं लौटी तो विद्याशंकर शर्मा को चिंता हुई. उन्होंने वैदिका से पूछा तो उस ने बता दिया कि प्रीति सामान ले कर वापस घर चली गई थी. जब 2 दिन तक प्रीति का कुछ पता नहीं चला तो विद्याशंकर गुमशुदगी दर्ज कराने श्यामनगर चौकी गए पर पुलिस ने उन्हें टरका दिया.

उधर 2 अगस्त, 2019 को कुछ मजदूरों ने एक प्लास्टिक बोरी में लाश देखी, जिसे कुत्ते नोच रहे थे. मजदूरों ने ठेकेदार को बताया. तब ठेकेदार ने लाश की सूचना थाना विधनू की पुलिस को दी. विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने केस की जांच की तो सारे भेद खुल गए.

6 अगस्त, 2019 को थाना विधनू पुलिस ने अभियुक्त सत्येंद्र तथा वैदिका को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी कर रहे हैं.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कातिल निकली सौतेली मां

‘‘देखो सरदारजी, एक बात सचसच बताना, झूठ मत बोलना. मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तुम अपनी भरजाई पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटा रहे हो. क्या मैं इस की वजह जान सकती हूं?’’ राजबीर कौर ने यह बात अपने पति हरदीप सिंह से जब पूछी तो वह उस से आंखें चुराने लगा.

पत्नी की बात का हरदीप को जवाब भी देना था, इसलिए अपने होंठों पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए उस ने राजबीर कौर से कहा, ‘‘तुम भी कमाल करती हो राजी. तुम तो जानती ही हो कि बड़े भाई काबल की मौत हुए अभी कुछ ही समय हुआ है. भाईसाहब की मौत से भाभीजी को कितना सदमा पहुंचा है. यह बात तुम भी समझ सकती हो. मैं बस उन्हें उस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं. और फिर भाईसाहब के दोनों बच्चे मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह भी अभी काफी छोटे हैं.’’

हरदीप अपनी पत्नी को प्यार से राजी कह कर बुलाता था. ‘‘हां, यह बात तो मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं पर कोई ऐसे तो नहीं करता, जैसे तुम कर रहे हो. तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अपना भी एक बेटा किरनजोत है. तुम अपनी बीवीबच्चे छोड़ कर हर समय अपनी विधवा भाभी और उन के बच्चों का ही खयाल रखोगे तो अपना घर कैसे चलेगा.’’ राजबीर कौर बोली.

‘‘मैं समझ सकता हूं और यह बात भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मेरी लापरवाही में तुम घर को अच्छी तरह संभाल सकती हो. फिर अब कुछ ही दिनों की तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’ पति ने समझाया.

कहने को तो यह बात यहीं खत्म हो गई थी पर राजबीर कौर अच्छी तरह जानती थी कि अब आगे कुछ ठीक होने वाला नहीं है. इसलिए उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि जहां तक संभव होगा, वह अपने घर को बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

पंजाब के अमृतसर देहात क्षेत्र के थाना रमदास के गांव कोटरजदा के मूल निवासी थे बलदेव सिंह. पत्नी के अलावा उन के 3 बेटे थे परगट सिंह, काबल सिंह और हरदीप सिंह. बलदेव सिंह ने समय रहते सभी बेटों की शादियां कर दी थीं और तीनों भाइयों में जमीन का बंटवारा भी कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा ली थी.

अपने हिस्से की जमीन ले कर परगट सिंह ने अपना अलग मकान बना लिया था. काबल और हरदीप अपने पुश्तैनी घर में मातापिता के साथ रहते थे. काबल सिंह की शादी मनजीत कौर के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे थे 13 वर्षीय मनप्रीत सिंह और 12 वर्षीय गुरप्रीत सिंह.

सन 2003 में हरदीप सिंह की शादी खतराये निवासी राजबीर कौर के साथ हुई थी. शादी के बाद उन के घर किरनजोत सिंह ने जन्म लिया था. बच्चे के जन्म से दोनों पतिपत्नी बड़े खुश थे. तीनों भाइयों की अपनी अलगअलग जमीनें थीं. सब अपनेअपने कामों और परिवारों में मस्त थे.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 24 जून, 2008 को काबल सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. इस के बाद तो उस घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. उस की खेती आदि के काम कोई करने वाला नहीं था क्योंकि उस समय बच्चे भी छोटे थे. तब भाई के खेतों के काम से ले कर उस के दोनों बच्चों की देखभाल का जिम्मा हरदीप सिंह ने संभाल लिया था.

अपनी विधवा भाभी मनजीत कौर से सहानुभूति रखने और उस की मदद करतेकरते हरदीप सिंह का झुकाव धीरेधीरे अपनी विधवा भाभी की ओर होने लगा. हरदीप की पत्नी राजबीर कौर इन सब बातों से बेखबर नहीं थी.

वह समयसमय पर पति हरदीप सिंह को उस की अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का अहसास दिलाती रहती थी. पर उस ने इन बातों को ले कर कभी पति से क्लेश या लड़ाईझगड़ा नहीं किया था. वह हर मसले को प्यार और समझदारी से निपटाने के पक्ष में थी और यही बात उस के हक में नहीं रही.

उसे जब इन सब बातों की समझ आई तब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका था. उस का पति हरदीप अब उस का नहीं रहा. वह कभी का अपनी विधवा भाभी मंजीत कौर की आगोश में जा चुका था. राजबीर कौर ने जब अपना घर उजड़ता देखा तब उस की नींद टूटी और उस ने इस रिश्ते का जम कर विरोध किया था.

बाद में उस ने इस मसले पर रिश्तेदारों से शिकायत भी की पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस पूरे मामले में राजबीर कौर की यह गलती रही कि उस ने अपने पति पर विश्वास करते हुए समय रहते इन सब बातों का विरोध नहीं किया था. शायद उसे पति की वफादारी और अपनी समझ पर भरोसा था. बहरहाल उस का बसाबसाया घर टूट गया था. हरदीप सिंह और राजबीर कौर के बीच तलाक हो गया था. यह सन 2013 की बात है.

राजबीर कौर का हरदीप सिंह से तलाक भले ही हो गया था, पर वह वहीं रहती रही. हरदीप सिंह अपने 9 वर्षीय बेटे किरनजोत सिंह और अपने दोनों भतीजों मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह के साथ मंजीत कौर के साथ रहने लगा था. भाभी के साथ रहने पर लोगों ने कुछ दिनों तक चर्चा जरूर की पर बाद में सब शांत हो गए.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सब अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए थे. हरदीप तीनों बच्चों और दूसरी पत्नी मंजीत कौर के साथ खुशी से रह रहा था.

बात 28 जून, 2018 की है. तीनों बच्चों सहित हरदीप और मंजीत कौर रात का खाना खा कर सो गए थे. हरदीप और मंजीत कौर कमरे के अंदर और तीनों बच्चे बाहर बरामदे में सो रहे थे. बिस्तर पर लेटते ही हरदीप को तो नींद आ गई थी पर मंजीत कौर अपने बिस्तर पर लेटेलेटे ही टीवी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी. कमरे की लाइट बंद थी पर टीवी चलने के कारण उस कमरे में पर्याप्त रोशनी थी.

रात के करीब 12 बजे का समय होगा कि मंजीत कौर ने अपने कमरे में एक साया देखा. साया कमरे से बाहर की ओर निकल गया था. फिर अचानक मंजीत कौर की नजर कमरे में रखी हुई अलमारी पर पड़ी. अलमारी खुली हुई थी और पास ही सामान बिखरा पड़ा था. यह देख कर वह चौंक गई. घबरा कर उस ने पास में सोए पति हरदीप को जगाया और अलमारी की ओर इशारा किया.

कमरे में चल रहे टीवी की रोशनी में उसे भी खुली अलमारी के आसपास कपड़े आदि बिखरे दिखे. इस के बाद हरदीप ने तुरंत उठ कर घर की लाइट जला दी. वह समझ गया कि घर में चोरी हो गई है. कमरे से निकल कर जब वह बरामदे में पहुंचा तो उस की नजर बरामदे में सोए बच्चों पर गई. वहां मनप्रीत और गुरप्रीत तो सो रहे थे, लेकिन उस का अपना 9 वर्षीय बेटा किरनजोत सिंह गायब था.

यह सब देख कर हरदीप ने चोरचोर का शोर मचाना शुरू कर दिया था. रात के सन्नाटे में उस की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर आ गए और जब सब को पता चला कि 9 वर्षीय किरनजोत को भी चोर अपने साथ उठा कर ले गए हैं तो सब हैरान रह गए.

किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. ऐसे में किरनजोत को कहां और कैसे ढूंढा जाए. फिर भी समय व्यर्थ न करते हुए सभी लोग रात में ही किरनजोत की तलाश में अलगअलग दिशाओं में निकल पड़े.

पूरी रात किरनजोत की तलाश होती रही. लोगों ने गांव से ले कर मुख्य मार्ग तक भी छान मारा पर वह नहीं मिला. पूरी रात बीत गई थी पर किरनजोत का कुछ पता नहीं चला था. हरदीप सिंह की पहली बीवी यानी किरनजोत को जन्म देने वाली मां राजबीर कौर को जब अपने बेटे के चोरी होने का पता चला तो रोरो कर उस ने अपना बुरा हाल कर लिया था.

किरनजोत को तलाश करतेकरते दिन निकल आया था. बच्चे के न मिलने पर सभी लोग निराश थे. कुछ देर बाद गांव के एक आदमी ने हरदीप सिंह को आ कर यह खबर दी कि किरनजोत की लाश नहर किनारे पड़ी है.

यह सुनते ही हरदीप व अन्य लोग नहर किनारे पहुंचे तो वास्तव में वहां किरनजोत की लाश मिली. कुछ ही देर में गांव के तमाम लोग नहर किनारे जमा हो गए. किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी.

सूचना मिलते ही थाना रमदास के थानाप्रभारी मनतेज सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने बच्चे की लाश को अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद मनतेज सिंह ने हरदीप सिंह के घर का मुआयना किया. हरदीप सिंह से बात करने के बाद पता चला कि उस के घर का कोई सामान चोरी नहीं हुआ था. इस से यही पता लगा कि वारदात को चोरी का रूप देने की कोशिश की गई है.

पुलिस को यह भी पता चला कि कमरे में कोई साया होने की बात सब से पहले हरदीप सिंह की पत्नी मंजीत कौर ने बताई थी, इसलिए थानाप्रभारी ने मंजीत कौर के ही बयान लिए.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह को मंजीत के बयानों में काफी झोल दिखाई दे रहे थे. यह बात भी उन्हें हजम नहीं हो रही थी कि कमरे में जागते और टीवी देखते हुए कैसे चोर की हिम्मत हो गई कि वह चोरी करने के साथसाथ बच्चे को भी उठा कर अपने साथ ले गया. भला उस बच्चे से उसे क्या मतलब था और किस मकसद से उस ने बच्चे को अगवा किया था. लाख सोचने पर भी मनतेज सिंह को यह बात समझ नहीं आ रही थी.

तब थानाप्रभारी ने अपने कुछ विश्वासपात्र लोगों को सच्चाई का पता करने पर लगाया. इस बीच अस्पताल में किरनजोत के पोस्टमार्टम के समय उस की मां राजबीर कौर ने खूब हंगामा खड़ा किया. उस ने अपनी जेठानी मंजीत कौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि किरनजोत की हत्या के पीछे मंजीत कौर का ही हाथ है क्योंकि वह उसे अपना सौतेला बेटा मानती थी.

राजबीर कौर के आरोप को मद्देनजर रखते हुए पुलिस ने अपने मुखबिरों को सच्चाई का पता लगाने के लिए लगाया. इस के बाद थानाप्रभारी को मंजीत कौर के बारे में जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किरनजोत की मौत के बारे में बताया कि उस की मौत गला घोंटने से हुई थी.

सोचने वाली बात यह थी कि मारने वाले ने बच्चे को घर से उठाया और हत्या के बाद वह उसे नहर के किनारे फेंक आया. इस में इकट्ठे सो रहे तीनों बच्चों में से उस ने किरनजोत सिंह को ही क्यों उठाया.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह ने मृतक किरनजोत की मां राजबीर कौर से भी पूछताछ की. राजबीर कौर ने बताया कि 10 साल पहले उस का विवाह हरदीप सिंह के साथ हुआ था.

उस के जेठ काबल सिंह की मौत हो जाने के बाद उस के पति हरदीप सिंह के उस की जेठानी मंजीत कौर से अवैध संबंध हो गए थे. इस कारण उस ने अपने पति को तलाक दे दिया और दूसरा विवाह कर लिया.

उस के पति हरदीप सिंह ने भी उस की जेठानी के साथ शादी कर ली थी. शादी के बाद न तो उस की जेठानी उसे उस के बेटे किरनजोत से मिलने देती थी और न ही वह उसे पसंद करती थी. उसे पूरा यकीन है कि उस के बेटे की हत्या मंजीत कौर ने ही करवाई है.

थानाप्रभारी ने महिला हवलदार सुरजीत कौर को भेज कर मंजीत कौर को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. शुरुआती दौर में वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए चोरी की कहानी पर डटी रही पर जब उस से पूछा गया कि क्याक्या सामान चोरी हुआ है तो यह सुन कर वह बगलें झांकने लगी.

थोड़ी सख्ती करने पर उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उसी ने किरनजोत की गला घोंट कर हत्या की थी और लाश को गोद में उठा कर नहर किनारे फेंक आई. फिर आधी रात को अपने पति हरदीप को जगा कर चोरी वाली कहानी सुनाई थी.

इस की वजह यह थी कि मंजीत कौर को हरदीप और किरनजोत के बीच का प्यार खलता था. वह नहीं चाहती थी कि उस के दोनों बेटों के अलावा उस का पति हरदीप अपनी पहली बीवी से हुए बेटे किरनजोत के साथ कोई भी रिश्ता रखे. पिता का यही प्यार बेटे की मौत का कारण बन गया.

दरअसल हरदीप सिंह तीनों बच्चों से तो प्यार करता था पर वह सब से अधिक अपने किरनजोत को चाहता था. पति के इस प्यार की वजह से मंजीत कौर को यह भ्रम हो गया था कि हरदीप सिंह किरनजोत के बड़े होने पर अपनी सारी जायदाद उसी के नाम कर देगा.

ऐसे में उस के पैदा किए बच्चे दानेदाने को मोहताज हो जाएंगे, जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी. हरदीप ने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि मंजीत कौर ऐसा भी कुछ सोच सकती है.

मंजीत कौर के बयान दर्ज करने के बाद किरनजोत सिंह की हत्या के आरोप में उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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