छत्तीसगढ़ विधानसभा और कोरोना आमंत्रण सत्र

छत्तीसगढ़ में आगामी 25 अगस्त से  विशेष  “विधानसभा सत्र” आहुत करने की उद्घोषणा विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत के निर्देश पर हो गई है. तत्संबंधी निर्देश और कथित नियम जारी हो रहे हैं. ऐसे में यह सवाल राजनीतिक फिजा में सरगर्म है की क्या छत्तीसगढ़ कोई आकाश से उतारा गया विशिष्ट राज्य है जहां कोरोना वायरस कोविड-19 के समय काल में विधानसभा सत्र कराया जाना अपरिहार्य है.और विधानसभा सत्र के कारण कोरोना का प्रसार और तेजी से नहीं होगा ? उल्लेखनीय है कि

छत्तीसगढ़ में अनेक पुलिस स्टेशन, जिलाधीश कार्यालय, पुलिस अधीक्षक कार्यालय, विश्राम गृह, विधायक, बैंक कर्मचारी, गुपचुप बेचने वाला तलक कोरोना पॉजिटिव पाया गया है. यह संक्रमण निरंतर बढता चला जा रहा है ऐसे में “विधानसभा सत्र” की बैठक बुलाना क्या उचित कहा जा सकता है .अगरचे 90 विधायक जिनमे मंत्री, मुख्यमंत्री व सैकड़ों लोगों का अमला एक जगह पर एकत्रित होगा तो क्या यह सुरक्षित कार्य माना जाएगा. अगर कहीं एक भी कोरोना पॉजिटिव इस भीड़ में शामिल रहा तो क्या स्थितियां बनेंगी यह सहज कल्पना की जा सकती है. ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत का यह निर्णय चर्चा और समीक्षा का विषय है.

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डॉ. चरणदास – भूपेश बघेल एक हैं!

छत्तीसगढ़ में कोरोना की रफ्तार इन दिनों अपने चरम पर है. प्रतिदिन पांच सौ लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जा रहे हैं. 3 से 10 तलक लोग प्रतिदिन हलाक हो रहे हैं कोरोना का ग्रास बन रहे हैं . ऐसे विषम समय में  डॉ. चरणदास महंत ने भूपेश बघेल मुख्यमंत्री से मुलाकात की. दोनों नेताओं में  “विधानसभा सत्र” बुलाने के लिए सहमति बन गई और यह घोषणा सुर्खियां बन गई.

आजकल संपूर्ण देश में कोरोना अपने दंश से लोगों को भयभीत कर रहा है, मार रहा है.अभी तलक कोई इलाज, कोई वैक्सीन की खोज भी नहीं हो पाई है अभी सरकार स्वयं यह प्रचार प्रसार कर रही है की आपस में दूरी 2 गज की  बनाकर रखें, सोशल, फिजिकल डिसटेस्टिंग  बनाए रखें . स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है कॉलेज बंद है थिएटर बंद है यहां तक की लाइब्रेरी वाचनालय भी बंद है. ऐसे में अब अगर सरकार स्वयं विधानसभा का सत्र बुलाने की उतावली कर रही है  तो  “आ बैल मुझे मार” की तैयारी कर रही है तो इसे समझदारी भरा कदम कदापि नहीं कहा जा सकता. इस कारण प्रबुद्ध जन सहित कुछ विधायकों ने भी डॉक्टर चरणदास को अपने फैसले को स्थगित करने का अनुरोध किया है.मगर सरकार और विधानसभा सचिवालय अपने फैसले पर पुर्नविचार करने को तैयार नहीं है.

ननकीराम ने उठाई आवाज

छत्तीसगढ़ विधानसभा सत्र  आहूत की खबर जैसे ही सुर्खी बनी. लोगों में यह चर्चा का बयास बन गई. क्योंकि अभी कोरोना काल में विधानसभा का सत्र बुलाना सीधे-सीधे मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा ही है. इसका प्रखर व तार्किक विरोध डॉक्टर रमन सरकार में गृह मंत्री रहे पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने किया. आदिवासी ब्रिगेड के सिपाहसलार रहे ननकीराम कंवर प्रदेश के वरिष्ठम विधायकों में हैं और इन दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से उनकी गलबहियां चर्चा में है.

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डॉक्टर रमन सिंह के घुर विरोधी ननकीराम मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से अक्सर मिलते हैं और उनके सुझावो पर भूपेश बघेल तत्काल अमल भी करते देखे गए हैं. ननकीराम और भूपेश बघेल को लेकर भाजपा वक्रदृष्टि रखे हुए हैं ऐसे में ननकीराम का यह बयान की विधानसभा सत्र बुलाना कोरोना को आमंत्रित करने जैसा है और इसे स्थगित करके ऑनलाइन सत्र बुलाने का सुझाव देते हुए ननकीराम ने तल्ख स्वर में इस पहल की निंदा कर दी है.

स्थितियां बेकाबू सरकार मदहोश

छत्तीसगढ़ में कोरोना को लेकर स्थितियां बेकाबू होती जा रही हैं. बिलासपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय, आरटीओ दफ्तर, नगर निगम, नेता प्रतिपक्ष, डॉक्टर रमन सिंह और प्रदेश के कई नेता, महापौर जैसे लोग कोरोना की जद में आ चुके हैं. मगर छत्तीसगढ़ सरकार कोरोना को लेकर गंभीर नजर नहीं आती. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पोरा, हरेली का त्यौहार सार्वजनिक रूप से मनाते हैं लोगों की भीड़ जुटती है. यह गतिविधियां जनता में चर्चा का विषय बनी हुई है.

प्रतिदिन सिर्फ 6 हजार लोगों की कोरोना संक्रमित जांच हो रही है जो कि रेत में सुई की भांति है. कोरोना अपनी रफ्तार से बढ़ता चला जा रहा है स्थिति नियंत्रण में नहीं है.

ऐसी खतरनाक होती परिस्थितियों में प्रदेश के 90 विधायक, अधिकारी, कर्मचारी विधानसभा में एक साथ एकजुट  होकर मिलेंगे तो क्या होगा यह सहज कयास लगाया जा सकता है. कहीं ऐसा न हो की यह पहल छत्तीसगढ़ के लिए एक भयंकर त्रासदी बन जाए .

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लोकवाणी: भूपेश चले रमन के पथ पर!

छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों की डॉक्टर रमन सिंह, भाजपा सरकार के पश्चात कांग्रेस की भूपेश सरकार सत्तासीन हुई है. मगर कुछ फिजूल बेकार के मसले ऐसे हैं जिन पर भूपेश बघेल चाह कर भी  नकार नहीं पा रहे. अगर वह लीक तोड़कर नया काम करते हैं तो पता चलता कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ को नई दिशा दे सकते हैं, उनमें नई ऊर्जा है, कुछ नया करने का ताब है.

इसमें सबसे महत्वपूर्ण है डॉ रमन सिंह का रेडियो और आकाशवाणी से प्रतिमाह छत्तीसगढ़ की आवाम को संदेश देना और बातचीत करना. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी डॉ रमन सिंह की तर्ज पर “लोकवाणी” कार्यक्रम के माध्यम से आवाम से बात करते हैं जो सीधे-सीधे डॉ रमन सिंह की नकल के अलावा कुछ भी नहीं है.

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क्या यह अच्छा नहीं होता कि भूपेश बघेल और तरीका आम जनता से बातचीत करने के लिए  ईजाद करते. क्योंकि लोकवाणी का यह कार्यक्रम पूरी तरह फ्लाप और बेतुका  है. इसकी सच्चाई को जानना हो तो जिस दिन लोकवाणी का कार्यक्रम प्रसारित होता है उसे ग्राउंड पर जाकर, आप अपनी आंखों से देख लें . यह पूरी तरह से एक सरकारी आयोजन बन चुका है शासकीय पैसे पर, जिले के चुनिंदा जगहों पर व्यवस्था करके लोग सुनते हैं. आम आदमी का इससे कोई सरोकार दिखाई नहीं देता.

भूपेश बघेल की ‘लोकवाणी’!

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मासिक रेडियो वार्ता लोकवाणी की पांचवी कड़ी का प्रसारण  आगामी 8 दिसम्बर, रविवार को होगा. व्यवस्था यह बनाई गई है कि लोकवाणी का प्रसारण छत्तीसगढ़ स्थित आकाशवाणी के सभी केन्द्रों, एफ.एम.चैनलों और राज्य के क्षेत्रीय न्यूज चैनलों से सुबह 10.30 से 10.55 बजे तक हो.

जिस तरह डॉ रमन सिंह के  समय में  सरकारी अमला  जनसंपर्क,  संवाद  प्रचार प्रसार करता था,  वैसा ही  नकल पुन:भदेस रुप, ढंग से  अभी किया जा रहा है.  कहा जा रहा है “-उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समाज के हर वर्ग की भावनाओं, सवालों, और सुझावों से अवगत होने तथा अपने विचार साझा करने के लिए लोकवाणी रेडियोवार्ता शुरू की है.”

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लोकवाणी में इस बार का विषय ‘आदिवासी विकास: हमारी आस‘ रखा गया है. अच्छा होता लोकवाणी के नाम पर जो पैसा समय बर्बादी हो रही है और हाथ कुछ नहीं आ रहा, उससे अच्छा होता भूपेश बघेल अचानक कहीं पहुंच जाते और आम जन से चुपचाप बात कर निकल जाते!ऐसे मे उन्हें पता चल जाता कि जमीनी हकीकत क्या है. किसान, गरीब, मजदूर और मध्यमवर्ग का आदमी उनसे क्या कहना चाहता है उसे समझ कर  और बेहतरीन तरीके से छत्तीसगढ़ को आगे ले जा सकते हैं.

श्रेष्ठतम सलाहकार कहां है?

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री शपथ लेने के पश्चात जो पहला काम किया था उनमें उनके संघर्ष के समय के सहयोगी  पत्रकार  विनोद वर्मा, रुचिर गर्ग  जैसे बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को “मुख्यमंत्री का सलाहकार” नियुक्त करना था. इस सब के बाद ऐसा महसूस हुआ था कि डॉक्टर रमन सरकार की अपेक्षा भूपेश सरकार जमीन से ज्यादा जुड़ी होगी.

आम आदमी के जीवन संघर्ष, त्रासदी को भूपेश बघेल की सरकार संवेदनशीलता के साथ समझेगी और दूर करेंगी. जिस की सबसे पहली पहल किसानों के कर्ज माफी और 25 सौ रुपए क्विंटल धान खरीदी को लेकर की भी गई. मगर इसके पश्चात और इसके परिदृश्य में देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के हालात अच्छे नहीं हैं, इस संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला के कृषि मंडी के कुछ किसानों से बात की, किसानों ने बताया कि” हालात ऐसे हैं कि जबरा मारता है और रोने भी नहीं देता” जैसे हालात छत्तीसगढ़ में किसानों के साथ  बन चुके हैं.

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जो धान पहले पंद्रह सौ 1600 रुपये कुंटल  में गांव में बिक जाता था अब पुलिसिया प्रशासनिक एक्शन के कारण कोई खरीदने को तैयार नहीं है . यह हालात देखकर लगता है कहां है मुख्यमंत्री महोदय के सलाहकार, कहां है अभी एक डेढ़ वर्ष पूर्व  के संघर्षकारी भूपेश बघेल, टी एस सिंह देव और उनकी टीम.

धान खरीदी के भंवर में छत्तीसगढ़ सरकार!

छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा में आज सिर्फ एक ही मुद्दा है धान खरीदी और किसान का. छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने जो मास्टर स्ट्रोक चला था वह अब धीरे-धीरे कांग्रेस और भूपेश सरकार के लिए बढ़ते सर दर्द और ब्लड प्रेशर का हेतु बन रहा है. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पूर्व धान की खरीदी 2500 रूपये क्विंटल खरीदने और कर्जा मुआफी का वादा किया था. किसानों की कृपा से छत्तीसगढ़ में यह कार्ड चल गया और भूपेश बघेल की सरकार बहुत ताकत के साथ बन गई 67 विधायक चुन लिए गए मगर एक वर्ष बाद जब पुन: खरीफ फसल का समय आया है तो भूपेश सरकार के हाथ पांव फूलने लगे हैं और मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से रियायते चाहते हैं.

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनते ही जो वादा किया था उसे पूरा करने का ऐलान कर दिया किसानों की जेबें भर गई यही नहीं किसानों को किया गया असीमित कर्जा भी उन्होंने भामाशाह की तरह माफ कर दिया जबकि मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ. छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति इन्हीं कारणों से बदतर होती चली गई कर्ज पर कर्ज लेकर भूपेश सरकार एक खतरनाक ‘भंवर’ मे फंसती दिखाई दे रही है. जिसका अंजाम क्या होगा यह मुख्यमंत्री के रूप में एक कुशल रणनीतिक होने के कारण या तो प्रदेश को उबार ले जाएंगे अथवा छत्तीसगढ़ की आने वाले समय में बड़ी दुर्गति होगी यह बताएगा.

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मोदी सरकार से अपेक्षा !

भूपेश बघेल की सरकार किसानों से धान 2500 रूपये क्विंटल में खरीदने को कटिबद्ध है क्योंकि पीछे हटने का मतलब किसानों का रोष और छवि खराब होने की चिंता है .ऐसे में दो ही रास्ते हैं एक छत्तीसगढ़ सरकार शुचिता बरते, सादगी के साथ सिर्फ किसानों के हित साधती रहे और दूसरे दिगर विकास के कामों में ब्रेक लगा दे या फिर केंद्र के समक्ष हाथ पसारे.

भूपेश बघेल की शैली भीख मांगने यानी हाथ पसारने की कभी नहीं रही. भूपेश बघेल को एक आक्रमक छत्तीसगढ़ के चीते के स्वभाव वाला राजनीतिक माना गया है. ऐसे में उनकी सरकार मोदी सरकार के समक्ष हाथ पसारने की जगह सीना तान कर खड़ी हो गई है और केंद्र सरकार से मांग की जा रही है केंद्र को चेतावनी दी जा रही है की धान खरीदी में सहायता करो. छत्तीसगढ़ के एक मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने मोदी सरकार को चेतावनी दी केंद्र धान नहीं खरीदेगी तो हम छत्तीसगढ़ से होने वाले कोयले का परिवहन बंद कर देंगे .इस आक्रमकता  से यह दूध की तरह साफ हो चुका है कि भूपेश सरकार, नरेंद्र दामोदरदास मोदी के समक्ष झुकने को तैयार नहीं बल्कि झुकाने की ख्यामख्याली पाले हुए हैं.

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आज होगा आमना सामना

भूपेश बघेल को 14 जनवरी को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने का समय मिला था. छत्तीसगढ़ सरकार ने पूरी तैयारी कर रखी थी की दिल्ली पहुंचकर राष्ट्रपति से मिल केंद्र सरकार को घेरेगे और प्रदेश की जनता के मध्य यह संदेश प्रसारित होगा की केंद्र छत्तीसगढ़ की उपेक्षा कर रही है. मगर ऐन मौके पर चाल पलट गई. राष्ट्रपति भवन से 13 नवंबर की रात को संदेश आ गया की राष्ट्रपति महोदय से मुलाकात को निरस्त कर दिया गया है.

भूपेश बघेल सरकार नरेंद्र मोदी से मिलना चाहती थी मगर प्रधानमंत्री कार्यालय से भी लाल झंडी दिखाई दे रही है ऐसे में भूपेश बघेल स्वयं अपने चुनिंदा मंत्रियों के साथ केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिलकर आग्रह करेंगे की 85 लाख मैट्रिक टन धान खरीद पर केंद्र समर्थन मूल्य प्रदान करें । 32 लाख मैट्रिक धान का एफ सी  आई गोदाम में रखने की अनुमति दी जाए और समर्थन मूल्य पर बोनस पर केंद्र की लगी रोक को थिथिल किया जाए.

राजनीतिक प्रशासनिक चातुर्य की कमी  !

संपूर्ण प्रकरण पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट हो जाता है की भूपेश बघेल सरकार में जहां राजनीतिक चातुर्य की कमी है वहीं प्रशासनिक दक्षता जैसी दिखाई देनी चाहिए वह भी दृष्टिगोचर नहीं हो रही है. किसानों के खातिर तलवार भांजने वाली छत्तीसगढ़ सरकार यह कैसे भूल गई की विधानसभा में 68 सीटों का तोहफा देने वाली जनता और किसानों ने लोकसभा चुनाव में भूपेश बघेल की ऊंची ऊंची हांकने की हवा निकाल दी और बमुश्किल 11 में 9 सीटों पर दावा करने वाली कांग्रेस को 2 सीटें ही मिल पाई.

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किसानों का संपूर्ण कर्जा माफी करना भी भूपेश सरकार के गले का फंदा बन गया. अगरचे मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार से थोड़ा सबक सिखा होता तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल नहीं होती .वहीं केंद्र सरकार को आंख दिखाने की हिमाकत छत्तीसगढ़ सरकार को उल्टी न पड़ जाए. डॉक्टर रमन सिंह पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं,- केंद्र से सम्मान और विनय के साथ आग्रह करने की जगह जैसे भूपेश बघेल दो-दो हाथ करने का बॉडी लैंग्वेज दिखा रहे हैं यह गरिमा के अनुकूल नहीं है.

छत्तीसगढ़ के मंत्री, धान खरीदी के मुद्दे पर केंद्र को झुकाना चाहते हैं और केंद्र सरकार, भूपेश बघेल को धान के मुद्दे पर निपटाना चाहती है.! देखिए इस सोच में कौन कहां गिरता है और कहां उखडता है.

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अजीत जोगी का “भाग्य” उन्हें कहां ले आया ?

मगर कभी सत्ता के शीर्ष पर रहे अजीत जोगी ने जनता कांग्रेस पार्टी क्या बनाई उनका भाग्य उन्हें कहां से कहां ले आया. अगरचे वे कांग्रेस नहीं छोड़ते और शांत भाव से आलाकमान के अनुशासन में होते तो नि:संदेह उनकी जगह छत्तीसगढ़ में कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकता था.

अजीत जोगी ने विधानसभा समर के दो वर्ष पूर्व जो राजनीतिक गोटियां बिछाई उनमें उनके दोनों हाथों में लड्डू की स्थिति बन सकती थी. मगर अजीत जोगी का भाग्य इस करवट बैठेगा इसका अनुमान राजनीति के महा पंडितो को भी नहीं था.
अजीत जोगी ने अपनी पार्टी बनाई और छत्तीसगढ़ में धूम मचा दी उन्हे सुनने हजारों की भीड़ आती थी. यह सच है कि ऐसी भीड़ न कांग्रेस के नेताओं को सुनने आती थी ना ही भाजपा के नेताओं को . राहुल गांधी की विशाल सभा बिलासपुर के पेंड्रा के कोटमी में रखी गई थी अजीत जोगी ने इसे उनके घर में सेंध मान चुनौती दी और बीस किलोमीटर की दूरी पर उसी दिन अपनी सभा का आयोजन कियाऔर दिखा दिया कि उनकी सभा में भी हजारों लोग जुटते हैं और जूटे भी. मगर उस दिन राहुल के मन की फांस और बढ़ गई.

अजीत जोगी का दांव

अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने दांव खेला था . उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों के समकक्ष एक तीसरी पार्टी का गठन करके दोनों को चुनौती देनी शुरू कर दी थी . हालात ऐसे थे कि अजीत जोगी जब किसी मुद्दे पर आंदोलन का शंखनाद करते तो दूसरे दिन कांग्रेसी अपना बोरिया बिस्तर लेकर उसी आंदोलन को करने लगते . यह अद्भुत किंतु राजनीतिक सच था कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को दो वर्षों तक अजीत जोगी ने अपने पीछे पीछे खुब दौड़ाया और एक तरह से राजनीतिक हलाहल पैदा कर दिया . राजनीतिक हलचल उत्पन्न कर दिया.

यह माने जाने लगा की अबकी चुनाव में अजीत जोगी को नकारा नहीं जा सकता . भाजपा को कुछ सीटे कम मिली तो और कांग्रेस को कुछ सीटें कम मिली तो दोनों स्थितियों में अजीत जोगी के हाथ सत्ता की रास होगी और हो सकता है मुख्यमंत्री भी बन जाए . मगर हा… भाग्य ! ऐसा नहीं हो सका क्यों नीचे पढ़ें-

अजीत जोगी का कलेजा !

यह सच है विरोधी भी स्वीकार करते हैं कि छतीसगढ़ के इस राजनीतिक हस्ती का कलेजा बहुत बड़ा है . राजनीतिक सोच, चिंतन, व्यक्तित्व और कृतित्व विशालतम है . प्रदेश मेंआपके समक्ष कोई टिक नहीं सकता था . जैसी सोच कार्यप्राणी है वह अनुपम है प्रदेश हितकारी रही है .

अजीत जोगी जन जन के नेता हैं . आम आदमी उनसे अपनी छवि,ताकत देखता है . और अजीत जोगी इस ताकत इस शक्ति के बूते काम करते रहे . कांग्रेस में लगभग तीन दशकों तक उन्होंने अनेक पदो पर रहते हुए दिखा दिया कि अजीत जोगी का कोई पर्याय नहीं हो सकता . यही कारण है इस माद्दे के बूते उन्होंने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी अपनी मातृ पार्टी को चुनौती देनी शुरू कर दी . क्योंकि वे सच जानते थे कि छत्तीसगढ़ में राजनीतिक नेतृत्व देने की ताकत किसी भी दीगर कांग्रेस शख्स के पास नहीं है . कांग्रेस उन्हीं से प्रारंभ होती है और उन्हीं तक आकर खत्म होती है . उन्होंने बड़े साहस के साथ स्वयं होकर पार्टी को छोड़ा ऐसा इतिहास में शायद कभी नहीं हुआ है .

जो नहीं सोचा, वह हो गया …

छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी और राजनीतिक दिग्गजों ने जो नहीं सोचा था वह घटित हो गया . कांग्रेस को 68 सीटें मिल गई जो ऐतिहासिक विजय थी. इसकी परिकल्पना स्वयं कांग्रेस ने भी नहीं की थी . डॉ रमन और उनकी पार्टी भाजपा के हाथों के तो मानो तोते ही उड़ गए . और अजीत जोगी की प्रक्कलना धरी की धरी रह गई . नरेंद्र मोदी की शैली और डॉक्टर रमन सिंह का शिकंजा दोनों विधानसभा चुनाव मे ध्वस्त हो गए .अन्यथा अजीत जोगी आज ही महानायक होते और राजनीति की क, ख, ग, उनके सागौन बंगले से शुरू होती .
दरअसल उन्होंने कुछ गंभीर गलतियां की . अजीत जोगी के पार्टी के विधायक और कभी कांग्रेस से विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे धर्मजीत सिंह कहते हैं अगरचे साहब साफ स्वच्छ छवि के लोगों को तरजीह देते, केजरीवाल पैटर्न को अपनाकर नए जुझारू लोगों को टिकट देते तो स्थिति बदल सकती थी . वही उनके सिपहसालार विनोद शुक्ला कहते हैं साहब मैं कुछ अच्छाइयां है तो कुछ खामियां भी आप अपने मुंह लगे लोगों को छोड़ नहीं पाए .
जो भी हो समय बदल गया- समय मुट्ठी से रिसकर निकल गया और राजनीति का महानायक समय को शायद समझ नहीं सका.

मास्टर स्ट्रोक दांव धरा रह गया…

अजीत जोगी ने मायावती के साथ हाथ मिलाकर अपनी पार्टी खड़ी करने मास्टर स्ट्रोक खेला था. क्योंकि आज हिंदुस्तान की राजनीति में दो दलिय दलों का ही बोल बाला है. आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल दलित हर जगह ऐसे में छत्तीसगढ़ में यह प्रयोग अभिनव था और साहस पूर्ण भी .
आज विधानसभा समर में पराजय के पश्चात अजीत जोगी मानो विषाद में चले गए हैं . जैसे तेवर चुनाव पूर्व होते थे राजनीति पर बयान और सक्रियता वह शांत पड़ गई है .

उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद अपने युवा पुत्र अमित ऐश्वर्य जोगी को सौंप दिया है . और अमित जोगी ने एक तरह से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाक मे दम कर रखा है .

अजीत जोगी निर्णय लेने में कभी देरी नहीं करते . राजनीति के नब्ज पर उनका हाथ कल भी था और आज भी है . आप एक ऐसी विभूति हैं जो जहां खड़ी हो जाती है लाइन वहीं से लगती है . छत्तीसगढ़ की यह अनुपम बेजोड़ शख्सियत अब आने वाले दिनों में नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों के छक्के छुड़ाने की रणनीति में लगी हुई है….

अजीत-माया गठबंधन: अगर “हम साथ साथ” होते!

छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के रूप में उभर कर राज्य की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का टूट कर बिखर चुका है . प्रदेश की राजनीति को अपनी उंगलियों पर कठपुतली की भांति नचाने का गुरूर अजीत जोगी की आंखों में, बौडी लैंग्वेज में अब दिखाई नहीं देता…इन दिनों आप प्रदेश की राजनीति मैं हाशिए पर है .

मगर जब अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आलाकमान के सामने खम ठोंक कर जनता कांग्रेस ( जे ) का गठन किया था तब उनके पंख आकाश की ऊंचाई को छूने बेताब थे . यही कारण है कि अजीत जोगी के विशाल कद को देखकर बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने उनसे हाथ मिलाया और कांग्रेस के खिलाफ दोनों ने मिलकर छत्तीसगढ़ में अपनी अलग जमीन तैयार करने की कोशिश की जो असफल हो गई . अजीत जोगी के सामने 2018 का विधानसभा चुनाव नई आशा की किरणों को लेकर आया था . राजनीतिक प्रेक्षक यह मानने से गुरेज नहीं करते की अजीत जोगी जहां से खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से प्रारंभ होती है . मगर विधानसभा चुनाव के परिणामों ने अजीत जोगी और मायावती दोनों पर मानो “पाला” गिरा दिया. दोनों चुनाव परिणाम से सन्न, भौचक रह गए और अंततः यह गठबंधन आज टूट कर बिखर गया है .

अजीत जोगी : अकेले हम अकेले तुम
विधानसभा चुनाव के परिणाम के पश्चात अजीत जोगी और मायावती की राह जुदा हो गई . यह तो होना ही था क्योंकि अजीत जोगी और मायावती दोनों ही अति महत्वाकांक्षी राजनीतिज्ञ हैं . साथ ही जमीन पर पुख्ताई से पांव रखकर आगे बढ़ने वाले राजनेता भी माने जाते हैं. विधानसभा चुनाव में इलेक्शन गेम में अजीत जोगी ने कोई कमी नहीं की थी. यह आज विरोधी भी मानते हैं उन्होंने अपने फ्रंट को तीसरी ताकत बनाया उन्होंने जनता के नब्ज पर हाथ भी रखा था . संपूर्ण कयास यही लगाए जा रहे थे कि अजीत जोगी के बगैर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हवाओं में पत्ते भी नहीं हिलेंगे.
अगर कांग्रेस को दो चार सीटें कम पड़े तो अजीत जोगी साथ देंगे अगर भाजपा को दो चार सीटे कम मिली तो अजीत जोगी कठिन डगर में साथ देंने हाजिर हो जाएंगे . मगर प्रारब्ध किसको पता है ? छत्तीसगढ़ में अनुमानों को तोड़ते ढहाते हुए छत्तीसगढ़ की आवाम ने कांग्रेस को ऐतिहासिक 68 सीटों पर विजय दिलाई और सारे सारे ख्वाब, सारे मंसूबे चाहे वे अजीत जोगी के हो या मायावती के ध्वस्त हो गए .

अगर “हम साथ साथ होते” !
मायावती ने निसंदेह जल्दी बाजी की और छत्तीसगढ़ की राजनीति में अजीत जोगी और अपनी पार्टी के लिए स्वयं गड्ढा खोदा . विधानसभा चुनाव के अनुभव अगरचे मायावती और अजीत जोगी देश की 17 वीं लोकसभा समर में साथ होते तो कम से कम दो सीटें प्राप्त कर सकते थे . विधानसभा चुनाव में बिलासपुर संभाग की तीन लोकसभा सीटों पर इस गठबंधन को बेहतरीन प्रतिसाद साथ मिला था . और यह माना जा रहा था कि बिलासपुर और कोरबा लोकसभा सीट पर बसपा और जोगी कांग्रेस कब्जा कर सकते हैं . इसके अलावा तीसरी सीट जांजगीर लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक के साथ अच्छी बढ़त मिली जिससे यह माना जा रहा था कि यह गठबंधन बड़ी आसानी से यह लोकसभा सीट पर पताका फहरा सकता है . मगर बहन मायावती ने भाई अजीत जोगी जैसे मजबूत खंबे पर विश्वास नहीं किया और अपने प्रत्याशियों को मैदान-ए-जंग में उतारा . अजीत जोगी मन मसोस कर रह गए .

लोकसभा में दोनों की साख बढ़ती
यहां यह बताना आवश्यक है कि अजीत जोगी और मायावती की पार्टियों को विधानसभा चुनाव में आशा के अनुरूप भले ही परिणाम नहीं मिले मगर यह मोर्चा तीसरे मोर्चे के विरुद्ध समर्पित हो गया अजीत जोगी को 5 सीटें मिली और मायावती को सिर्फ दो विधान सभा क्षेत्रों मैं सफलता मिली . संभवत: इसी परिणाम से मायावती नाराज हो गई . क्योंकि छत्तीसगढ़ में बसपा को 2 से 3 सीटों पर तो विजयश्री मिलती ही रही है . ऐसे में यह आकलन की अजीत जोगी से गठबंधन का कोई लाभ नहीं मिला तो सौ फीसदी सही है मगर इसके कारणों का भी पार्टी को चिंतन करना चाहिए था जो नहीं किया गया और लोकसभा में अपनी-अपनी अलग डगर पकड़ ली गई जो भाजपा और कांग्रेस के लिए मुफीद रही .
लोकसभा समर में बसपा को कभी भी एक सीट भी नहीं मिली है अगरचे यह गठबंधन मैदान में होता तो बसपा आसानी से एक सीट पर विजय होती . यह क्षेत्र है जांजगीर लोकसभा का . मगर बसपा ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली भाजपा के नये चेहरे की राह आसान कर दी . दूसरी तरफ जोगी और उनकी पार्टी का भविष्य भी अंधकारमय हो चला .

नगरीय-निकाय चुनाव में क्या होगा ?
अजीत जोगी ने विधानसभा चुनाव में हाशिए पर जाते ही पार्टी की कमान अपने सुपुत्र अमित ऐश्वर्य जोगी को सौंप दी है . प्रदेश में वे अपना मोर्चा खोलकर आए दिन रूपेश सरकार की नाक में दम किए हुए हैं . अपने हौसले की उड़ान से अमित जोगी ने यह संदेश दिया है कि वे आने वाले समय में एक बड़ी चुनौती भाजपा और कांग्रेस के लिए बनेंगे . उन्होंने अकेले दम पर नगरीय चुनाव पंचायती चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है . इधर बीएसपी ने भी अपने बूते चुनाव लड़ने की घोषणा की है मगर बीएसपी नगरीय चुनाव में कभी भी अपना एक भी महापौर जीता पाने में सफलीभूत नहीं हुई है .

यह तथ्य समझने लायक है कि अजीत जोगी और मायावती की युती छत्तीसगढ़ में बड़े गुल खिला सकती थी. अजीत जोगी की रणनीति और घोषणा पत्र को कांग्रेस ने कापी करना शुरू किया और अपने बड़े संगठनिक ढांचे के कारण कांग्रेस आगे निकल गई अन्यथा अजीत जोगी के 2500 रुपए क्विंटल धान खरीदी और बिजली बिल हाफ फार्मूला को अगर कांग्रेस नहीं चुराती तो जोगी और बसपा की स्थिति आश्चर्यजनक गुल खिला सकती थी . राजनीति में संभावनाओं के द्वार खुले रहते हैं ऐसे में भविष्य में क्या होगा यह आप अनुमान लगा सकते हैं.

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