Bhojpuri Cine Awards 2025: मनोज भावुक को मिला बैस्ट राइटर अवार्ड

Bhojpuri Cine Awards 2025: इस साल ‘छठे सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड्स’ शो में एक ऐसी नई कैटेगरी शामिल की गई थी, जो अपनेआप में खास थी. यह कैटेगरी थी साल 2024 में प्रकाशित भोजपुरी सिनेमा के अब तक के इतिहास पर आधारित बुक के लिए बैस्ट राइटर का अवार्ड.

अभी तक भोजपुरी सिनेमा को ले कर जितने भी अवार्ड शो होते रहे हैं, वे इस कैटेगरी से अछूते रहे हैं. पहली बार भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार को सम्मानित किया गया.

क्यों खास है यह पुस्तक अवार्ड ग्रहण करने के बाद मनोज भावुक ने कहा कि यह किताब उन के 30 वर्षों की मेहनत का फल है. उन्होंने आडियंस को पुस्तक दिखाते हुए बताया कि वे साल 1995 से ही भोजपुरी सिनेमा पर लगातार लिख रहे हैं. यह भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर भोजपुरी भाषा में पहली किताब है. इस किताब में वर्ष 1931 से ले कर अब तक के भोजपुरी सिनेमा के सफर का बहुत ही बारीकी से वर्णन किया गया है.

वर्ष 1962 में भोजपुरी की पहली फिल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो’ आई थी. उस के पहले 1931 से 1962 तक हिंदी सिनेमा में संवाद और गीतों के जरीए भोजपुरी भाषा कैसे अपना परचम लहराती रही, इस के रोचक किस्से भी इस पुस्तक में हैं.

अमिताभ बच्चन, सुजीत कुमार, राकेश पांडेय, कुणाल सिंह, रवि किशन और मनोज तिवारी जैसी सिनेमा हस्तियों के साक्षात्कार शामिल हैं, भोजपुरी सिनेमा की चुनौतियों, संभावनाओं, बिजनैस और भविष्य पर खुल कर लिखा गया है. साथ ही ओटीटी, भोजपुरी वैब सीरीज, टैलीफिल्म, सीरियल पर भी प्रकाश डाला गया है.

मैथिलीभोजपुरी अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित 405 पन्नों की इस पुस्तक में अलगअलग फिल्मों की शूटिंग के अनेक रोचक प्रसंग भी शामिल हैं. इस पुस्तक में भोजपुरी सिनेमा के सफर को 3 खंडों में बांटा गया है.

पहले खंड में वर्ष 1931 से वर्ष 2000 के कालखंड में फिल्मी दुनिया में भोजपुरी के प्रवेश की कहानी, पहली फिल्म के निर्माण की कहानी, भोजपुरी सिनेमा के भीष्म पितामह नाजिर हुसैन का दुर्लभ लेख, उस दौर के प्रतिमान, गीत व कथापटकथा के साथ कुछ खास साक्षात्कार भी शामिल हैं.

दूसरे खंड में वर्ष 2001 से वर्ष 2019 तक के सफर का बारीकी से वर्णन है. इस दौर के नायकनायिका, गीतकारसंगीतकार, निर्मातानिर्देशक व क्रिएटिव टीम के परिचय व योगदान के साथ बदलते सिनेमा, भूतल से रसातल तक जाते सिनेमा, चेतावनी और चुनौती पर खुल कर विमर्श है.

तीसरा खंड विविधा का है जिस में सिनेमा के विभिन्न आयामों पर चर्चा है. लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मोहम्मद रफी के भोजपुरी गीतों पर रोचक आलेख हैं. भोजपुरी सिनेमा, राजनीति और चुनाव का भी जिक्र है.

गौरतलब है कि मनोज भावुक को फिल्मफेयर व फेमिना द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है, लेकिन जिस पुस्तक के लिए उन्होंने 30 साल गहन शोध किया, जिस पुस्तक को भोजपुरी सिनेमा के महानायक कुणाल सिंह ‘भोजपुरी सिनेमा की रामायण’ कहते हैं, उस के लिए वे पहली बार सम्मानित हुए हैं.

कौन हैं मनोज भावुक

मनोज भावुक भोजपुरी के प्रख्यात साहित्यकार, संपादक, सुप्रसिद्ध कविगीतकार, टीवी पत्रकार और भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार हैं. लगभग एक दशक तक अफ्रीका और यूनाइटेड किंगडम में बतौर इंजीनियर सेवा देने के बाद मनोज पूरी तरह मीडिया से जुड़ गए और अनेक चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम किया. वे सारेगामापा (रीजनल) के प्रोजैक्ट हैड रहे हैं साथ ही कई पुस्तकों के प्रणेता हैं. वे एक सफल टीवी एंकर और अंतर्राष्ट्रीय मंच संचालक भी हैं. उन्होंने कई फिल्मों और धारावाहिकों में अभिनय किया है. कई फिल्मों में गीत भी लिखे हैं.

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भोजपुरी फिल्मों में गैरभोजपुरी बोली वाले कलाकारों का दबदबा बढ़ता जा रहा है. छोटेछोटे शहरों की लड़कियां भोजपुरी सिनेमा, म्यूजिक अलबम के जरीए ऐक्टिंग के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने के लिए आगे बढ़ रही हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर की रहने वाली पूजा सिंह राजपूत के पिता आर्मी में रहे थे. वे चाहते थे कि पूजा भी आर्मी जौइन करे. पर अच्छी लंबाई और खूबसूरत चेहरामोहरा होने के चलते उसे मौडलिंग के औफर मिलने लगे थे. पूजा सिंह राजपूत ने 14 साल की उम्र में ही कथक डांस सीखा और ऐक्टिंग व डांस के क्षेत्र में स्कूलकालेज में खूब नाम कमाया.

कालेज में मिली कामयाबी के बाद उस ने ऐक्टिंग के क्षेत्र में जाने का फैसला किया. आज वह कई टैलीविजन सीरियल और हिंदी, भोजपुरी व गुजराती फिल्में कर रही है. पेश हैं, उस से की गई बातचीत के खास अंश:

ऐक्टिंग में कैरियर बनाने की वजह क्या रही?

मुझे बचपन से ही डांस और ऐक्टिंग का शौक था. मैं ने बौलीवुड स्टाइल में कथक सीखा. मैं जिस माहौल और समाज में पलीबढ़ी, वहां पर मेरे घर वालों ने पुरानी दकियानूसी सोच को छोड़ कर आगे बढ़ने में मेरा साथ दिया. पिता चाहते थे कि मैं आर्मी में जाऊं, पर जब उन को पता चला कि मैं ऐक्टिंग में जाना चाहती हूं तो उन्होंने मेरा पूरा साथ दिया. मुंबई यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान मुझे काम मिलने लगा था.

अब तक आप को किस तरह के काम करने का मौका मिला है?

गुजराती और भोजपुरी फिल्मों के साथसाथ दूरदर्शन के लिए डौक्यूमैंट्री फिल्म की है. इप्टा के लिए नाटक किया है. सब टीवी पर अधिकारी ब्रदर्स के लिए काम किया है. मौडलिंग में साड़ी, टौनिक सिरप, बैंकिंग और हेयर रिमूवल क्रीम के लिए फोटो शूट किया है.कैरियर के शुरुआती एक साल में मेरे लिए ये उपलब्धियां संतोषजनक हैं.

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फिल्म और टैलीविजन में काम का अनुभव कैसा रहा?

मुझे यहां पर काम करने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मेरे साथ सब से खास बात यह होती है कि मैं कोई भी सीन एक बार में ही शूट कर लेती हूं, बारबार रीटेक करने की नौबत नहीं आती है. इस से लोग भी खुश रहते हैं और मुझे भी परेशानी नहीं होती है.

जिस शूट में आपको खुद लगता है कि यह परफैक्ट नहीं हुआ?

है तो उसे ही मैं दोबारा शूट करती हूं. फिल्मों में अंग प्रदर्शन को ले कर बहुत होहल्ला होता है. इस बारे में आप क्या सोचती हैं? अंग प्रदर्शन यानी ऐक्सपोजर में कोई बुराई नहीं है, बशर्ते वह बेवजह न किया गया हो. अगर किरदार की डिमांड है, कहानी के हिसाब से सही है तो कोई बुराई नहीं. बिना वजह केवल नंगापन दिखाना तो ठीक नहीं है. फिल्म, टैलीविजन, मौडलिंग हर क्षेत्र में लोग मनोरंजन चाहते हैं. ऐसे में ग्लैमर और अंग दिखाने से बचना मुमकिन नहीं है. एक कलाकार के रूप में आप किस तरह के काम करना चाहती हैं? ऐक्टर हमेशा ऐक्टर होता है.

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हर कलाकार के मन में रहता है कि वह लीड रोल करे. कहानी उस के किरदार के चारों तरफ ही घूमे. इस के साथ अगर किरदार छोटा हो, पर अहम हो तो भी करना चाहिए. कई बार छोटेछोटे रोल भी बड़ा असर डाल देते हैं.

आप के पसंदीदा कलाकार कौनकौन से हैं?

मुझे माधुरी दीक्षित, मधुबाला, श्रीदेवी, उर्मिला मातोंडकर, करिश्मा कपूर और दीपिका पादुकोण के साथ शाहरुख खान, सलमान खान, गोविंदा, अजय देवगन और रणबीर कपूर पसंद हैं. जो कलाकार डांस को प्रमुखता से रखते हैं, वे सब मुझे पसंद हैं.

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