पहले तो लगा कि वे अन्नू या अंगूरी भाभी की बात कर रहे हैं लेकिन सैकड़ों बार दर्जनों एंगल से गौर से देखने के बाद भी उस वीडियो में किसी भाभी के दर्शन नहीं हुए , हाँ इतना जरूर समझ आ गया कि जो पेकेट हाथ में लिए वे कोरोना को मारने का दावा कर रहे हैं उसमें पापड़ ही है और पापड़ के सिवा कुछ नहीं है . इस दिलचस्प और बेहूदे वाकिये के तीन पहलू हैं पहला भाभीजी दूसरा पापड़ और तीसरा कोरोना नाम का वायरस . लेकिन आम और औसत भारतीय देवरों की तरह मेरी दिलचस्पी सिर्फ भाभीजी में थी है और रहेगी कि आखिर वह खुशकिस्मत भाभी है कौन जिसके पापड़ों का प्रचार एलएलबी और एमबीए पास केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कर रहे हैं जो शायद फिलीपींस यूनिवर्सिटी में पढ़कर आया मंत्रिमंडल का पहला सदस्य है .
देश के लोग उनके मुरीद इसलिए हुए थे कि वे साधारण परिवार के हैं और बचपन में अपने पिता के साथ बुनकरी का काम करते थे लेकिन पढ़ाई में वे अव्वल रहे और उद्ध्योग विभाग के आला अफसर बन गए फिर सरकार ने उन्हें प्रमोशन देते आईएएस के समकक्ष ला दिया . कई सरकारी अधिकारियों की तरह महज सेवा करने के मकसद से अर्जुन मेघवाल भी व्हाया भाजपा राजनीति में आ गए और बीकानेर से तीसरी बार जीते तो उन्हें मंत्री पद से भी नवाज दिया गया. चूँकि करने कुछ ख़ास है नहीं इसलिए वे भाभीजी पापड़ के ब्रांड एम्बेसडर बन गए.
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मुझे उन पर गर्व हो आया कि विदेश जाकर भी वे अपने और अपनी पार्टी के संस्कार नहीं भूले यही हमारी असली पहचान भी है कि सात समुन्दर पार जाते हैं तो हम अपने झोले में आलू की सब्जी , पूरी अचार और बेग में रामायण गीता जरूर ठूंसते हैं जिससे कि मांसाहार और विदेशी सुन्दरियों के दैहिक आकर्षण से बचे रहें . लेकिन 8 – 10 दिन बाद ही ये दोनों व्रत खंडित हो जाते हैं . फिर जब ब्रह्मचर्य और एक पत्नी व्रत की बलि चढ़ाकर देश वापस आते हैं तो गंगा जी में डुबकी लगाकर पुनः पवित्र होकर राम राम श्याम श्याम करने भजने लगते हैं . मनु महाराज ऐसे ही मौकों के लिए डिस्काउंट दे गए हैं कि पुरुष तो स्नान मात्र से शुद्ध हो जाता है .
खैर बात बीकानेर की अनाम भाभीजी के पापड़ की जो रातों रात इतना मशहूर हो गया कि उसकी डिस्ट्रीब्यूटरशिप के लिए लोग कोई भी कीमत चुकाने तैयार हैं . इसका उत्पादक जो भी हो विज्ञापनों पर लाखों करोड़ों रु खर्च करने के बाद भी पापड़ ही बेलता रहता उन्हें बेच नहीं पाता क्योंकि प्रतिस्पर्धा के चलते बाजार पहले से ही तरह तरह के पापड़ों से भरा पड़ा है और फुटकर दुकानदार भी नए ब्रांड का पापड़ रखने तैयार नहीं होता .लेकिन भाभीजी पापड़ की बात निराली है जिसका विज्ञापन नई शैली में हुआ कि यह कोरोना किलर है .
अर्जुन मेघवाल का मजाक बना रहे लोग नादान हैं जो यह नहीं समझ पा रहे कि हम पापड़ों के जरिये भी न केवल आत्मनिर्भर हो सकते हैं बल्कि 5 ट्रिलियन डालर बाली अर्थव्यवस्था का लक्ष्य भी छू सकते हैं . अपने मन की बात में 26 जुलाई को खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर होने की जिद दोहराते मधुबनी के डिजायनर मास्कों और लद्दाख में पैदा होने बाले खुबानी फल का जिक्र किया लेकिन जाने क्यों वे यह नहीं बता पाए कि हम वेंटिलेटर क्यों नहीं बना पा रहे . अब बात समझने की है कि यह नए ज़माने का आर्थिक ज्ञान है जिसमें आत्मनिर्भरता बड़े बड़े कारखानों , भारी भरकम उद्ध्योगों और बांधों से नहीं बल्कि मंदिरों पीपीई किटों मास्कों और अब पापड़ों से आएगी ( चाय पकोड़ों से तो पहले ही आ चुकी है ) . इस बाबत हर कोई अपने अपने तरीके से प्रचार भी कर रहा है .
आजकल जिसे देखो प्रचार के नए टोटके आजमा रहा है . हर प्रोडक्ट में इम्युनिटी नाम की बला है जो सरकारी राशन की कृपा से 70 फ़ीसदी हिंदुस्तानियों की इतनी मजबूत है कि वे अनाज में अठखेलियाँ कर रहीं इल्लियाँ तक हजम कर जाते हैं . बाकी 30 फ़ीसदी गिलोय के फेर में पड़े हैं . हाल तो यह है कि जिन पर कोरोना झपट्टा नहीं मार पा रहा वे गिलोय खा खा कर बीमार पड़ रहे हैं . हर कोई कह रहा है कि हमारे प्रोडक्ट से वायरस की जुर्रत हमला करने की नहीं होती या हमारे प्रोडक्ट से इम्युनिटी बढ़ती है.
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अब तो अख़बार बाले भी पहले या आखिरी पेज पर मोटे मोटे अक्षरों में लिखने लगे हैं कि हम सिर्फ ख़बरें फैलाते हैं वायरस नहीं . इसके बाद भी लोग अख़बार नहीं ले रहे और जो ले रहे हैं वे उसे बासा करने धूप में सुखोते हैं फिर सेनेटाईज कर अन्दर लाते हैं . 22 मार्च 2020 के पहले तक यही अख़बार सवर्णों जैसे पूछा जाता था बेचारा अब शूद्रों सरीखा देहरी के बाहर घंटों अछूत सा पड़ा रहता है .
अभी तो कोरोना मारने बाला पापड़ ही मंत्री जी ने लांच किया है क्योंकि मोदी मंत्रिमंडल में सारे मंत्री दर्शनीय हुंडी हैं . कल को कोरोना मारने बाले या इम्युनिटी बढ़ाने बाले कच्छे बनियान यानी अंडर गारमेंट भी आने लगें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए . अदरक , तुलसी , लहसुन , गिलोय , हल्दी और तरह तरह के काढ़ों से कोरोना नहीं मरा तो हम पापड़ ले आये . उम्मीद है जल्द ही कोरोना मारक दादी , चाची , नानी , दीदी और बीबी छाप बडी , अचार , चटनी , मुरब्बे , सूप ,जेम , सास , चाकलेट , बिस्किट आदि भी आने लगेंगे . इसके बाद कोरोना अगर जरा भी समझदार और स्वाभिमानी होगा तो खुद ख़ुदकुशी कर लेगा .
एक वेक्सीन बनाने के अलावा हमने कोरोना को मारने और भगाने क्या क्या नहीं किया . हिजड़ों जैसे ताली तक बजा डाली , घर की थालियाँ फोड़ डालीं , दिए जलाये , गौ मूत्र पिया , गोबर तक खा लिया , एक साध्वी सांसद की सलाह पर हनुमान चालीसा भी पढ़ रहे हैं, ताबीज पहने और यज्ञ हवन तो अभी तक कर रहे हैं लेकिन मुआ नास्तिक कोरोना हमारे पाखंडों से इत्तफाक नहीं रख रहा . कोई गैरतमंद हिंदूवादी भारतीय वायरस होता तो अब तक घबराकर भाग गया होता लेकिन कोरोना नास्तिक देश से आया है और हमारे धार्मिक पाखंडों की असलियत उजागर करने की विदेशी साजिश है . कोरोना के जरिये हमारा , हमारे धर्म का , संस्कृति का मजाक बनाया जा रहा है . रोज इससे संक्रमित होने बालों और शहीद होने बालों की तादाद बढ़ रही है . यह जरुर वामपंथी है जो दक्षिणपंथ से नहीं मर रहा .
अब लगता है विष्णु को बहु प्रतीक्षित कल्किअवतार लेना ही पड़ेगा लेकिन उसके पहले 5 अगस्त तक देख लें शायद राम मंदिर शिलान्यास के हल्ले के डर से यह खिसक ले तब तक बीकानेरी भाभीजी का पापड़ खाइए लेकिन यह मत पूछिए कि ये पापड़ बाली भाभीजी हैं कौन और कोई हैं भी की नहीं.