शहीद सिपाही रतन लाल क्यों रखते थे अभिनंदन जैसी मूंछें

दिल्ली के गोकुलपुरी (Gokulpuri) में तैनात दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के कौंस्टेबल रतन लाल (Ratan Lal) न सिर्फ जिंदादिली में जीते थे, उन में गजब का साहस था.

24 फरवरी को वे अपने अन्य पुलिस कर्मियों के साथ ड्यूटी पर थे. दिल्ली के गोकुलपुरी क्षेत्र में तब सीएए के विरोध में प्रदर्शन चल रहा था. तभी उपद्रवियों ने तोङफोङ और पत्थरबाजी शुरू कर दी.

डटे रहे पर हटे नहीं

रतन लाल मुस्तैदी से डटे रहे. उन्होंने शांति से काम लिया और गुस्साई भीङ को समझाने की असफल कोशिश की. तभी एक उपद्रवी ने पीछे से उन के ऊपर पत्थर से हमला कर दिया. इस पत्थरबाजी में रतन लाल शहीद हो गए.

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हमला इतना सुनियोजित था कि उन्हें संभलने का मौका तक नहीं मिला.

इस घटना में अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और एसीपी को गंभीर अवस्था में अस्पताल में भरती कराया गया है.

एक जाबांज सिपाही

नौर्थ ईस्ट, दिल्ली के ऐडिशनल डीसीपी बिजेंद्र यादव ने कहा,”रतन एक जाबांज सिपाही थे. वे साहसी थे और कठिन परिस्थितियों में भी मुसकराते रहते थे.”

राजस्थान के सीकर में जन्मे रतन लाल अपने 3 भाईबहनों में सब से बङे थे. उन्होंने साल 1998 में दिल्ली पुलिस में बतौर कौंस्टेबल जौइन किया था.

अपने बच्चों के काफी करीब थे

अपने परिवार के साथ वे दिल्ली के बुराङी स्थित अमृत विहार कालोनी में रहते थे. रतन लाल की 2 बेटियां और 1 बेटा है. उन्होंने अपने बच्चों से वादा किया था कि इस होली में वे सब के साथ राजस्थान अपने गांव जाएंगे पर बच्चों को क्या मालूम कि उन के पिता अब इस वादे को पूरा करने के लिए कभी नहीं आएंगे.

घर में गृहिणी बीवी का रोरो कर बुरा हाल है.

अभिनंदन जैसी ही रखते थे मूंछें

रतन लाल के भाई दिनेश लाल बताते हैं,”भैया देशभक्त थे और जब से अभिनंदन वर्धमान ने पाकिस्तान का जेट विमान मार गिराया था तब से भैया अभिनंदन के जबरदस्त फैन बन गए थे. उन्होंने अपनी मूंछें भी अभिनंदन की तरह ही रख ली थीं.”

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रतन लाल के मूछों की तारीफ कोई करता तो वे फूले नहीं समाते और मूंछों पर ताव देना नहीं भूलते.

दिल्ली पुलिस के ही उन के एक करीबी दोस्त ने बताया,”रतन को अभिनंदन पर नाज था, जिस ने पाकिस्तान के लड़ाकू विमान को मार गिराने के बाद पाकिस्तान से भी सकुशल लौट आए थे. रतन अकसर कहता था कि एक जाबांज सिपाही को देश के लिए समर्पित रहना चाहिए.”

वे कहते हैं,”रतन अपने परिवार के काफी नजदीक था और अकसर गांव भी आताजाता रहता था. बच्चों के लिए वह हमेशा कुछ न कुछ ले कर जरूर जाता था.”

परिवार के एक सदस्य ने बताया,”रतन भैया शहीद हुए तो इस बात की जानकारी मां को नहीं दी जल्दी. वे पूछती रहीं पर हम बताते भी तो कैसे?”

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