यह एक प्रसंग देश की संपूर्ण जमीनी हालत का ऐसा सच बता रहा है जिस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए कि कोई अपनी गरीबी के कारण ना तो अपना जिस्म बेचे और ना ही अपनी नवजात शिशु को.
महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले के शिरडी शहर में एक महिला ने कथित तौर पर गरीबी की वजह से अपने नवजात शिशु को मुंबई के एक व्यक्ति को 1.78 लाख रुपए में बेच दिया. यहां के डोंबीवली में मानपाड़ा पुलिस थाने मे दर्ज की गई प्राथमिकी से पता चलता है पुलिस ने महिला, बच्चा खरीदने वाले व्यक्ति और इस अपराध में महिला की मदद करने वाले चार लोगों को गिरफ्त में लिया है. पुलिस थाने के एक अधिकारी अनुसार महिला रेखा देवी (काल्पनिक नाम) ने सितंबर 2021 में एक बच्चे को जन्म दिया था, लेकिन खराब आर्थिक हालात के कारण वह बच्चे के पालन पोषण में असमर्थ थी, इसलिए उसने बच्चे को बेचने के लिए खरीदार की तलाश शुरू कर दी उसे कुछ बिचौलिए भी मिल गए बच्चे को बेचने की पटकथा लिखी जाने लगी. पुलिस अफसर के अनुसार अहमदनगर और ठाणे के कल्याण तथा मुलुंड की तीन महिलाओं ने इस काम में उसकी मदद की और उन्होंने मुलुंड के निवासी एक व्यक्ति को बच्चा बेचने का सौदा पक्का कर लिया. प्राथमिकी के अनुसार बच्चे की मां ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर कथित तौर पर व्यक्ति को 1.78 लाख रुपये में बच्चा बेचा. इसके लिए कोई कानूनी औपचारिकता पूरी नहीं की. जब कुछ हंगामा मचा और जानकारी पुलिस तक पहुंची तब सूचना के आधार पर पुलिस ने व्यक्ति के घर पर छापा मारा और बच्चा बरामद किया.इसके बाद बच्चे की मां, बच्चा खरीदने वाले व्यक्ति, तीन अन्य महिलाओं और एक अन्य व्यक्ति को हिरासत में लिया गया. भारतीय दंड संहिता तथा किशोर न्याय अधिनियम के संबंधित प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है.
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नवजात: जाने कितनी कहानियां
अगर हम इतिहास या पौराणिक कथाओं में जाएं तो ऐसे जाने कितने किस्से कहानियां आपको मिल जाएंगे जो नवजात शिशु के बिक्री और उसके इर्द-गिर्द बुनी गई हैं. फिल्में और साहित्य में ऐसी ही अनेक कहानियां हैं यह मामला समाज का एक ऐसा आईना है जिसे हम अपने आसपास भी अक्सर देखते हैं और महसूस करते हैं कि कभी नवजात को कथित रूप से अवैध संतान होने के कारण परिजन कूड़ेदान में फेंक देते हैं अथवा किसी को पालन पोषण के लिए दे देते हैं. अथवा नदी नालों में बहा दिया जाता है. भाग्यशाली कुछ नवजात शिशु बच जाते हैं अधिकांश अवैध नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है.
ऐसे ही एक कथा महाभारत में भी चर्चित है, यह पांडवों के बड़े भाई कर्ण की है. इसी तरह राजेश खन्ना की पहली फिल्म आराधना और अमिताभ बच्चन की लावारिश भी कुछ इसी ताने-बाने के साथ बनाई गई थीं.
नवजात शिशु के इस प्रसंग के अंतर्गत यह सच समझना होगा कि जाने कितने नवजात शिशुओं के साथ समाज में एक तरह से भयावह व्यवहार और अत्याचार होता है जिसकी आवाज कभी नहीं उठती.
इस संदर्भ में कानून की कुछ धाराओं का प्रावधान जरूर किया गया है मगर जैसे अन्य बहुतेरे कानून किताबों में कैद हैं नवजात शिशु के व्यवहार संबंधी आचरण भी इन कानूनी धाराओं से बहुत दूर होने के कारण अत्याचार जारी रहता है.हां, कभी कभी महाराष्ट्र के अहमदनगर की घटना के तारतम्य में मामला बहुचर्चित हो जाता है.
वस्तुतः यह मामला समाज की एक ऐसी संवेदनशील अपेक्षा का है जो कानून से बहुत दूर है. जब तक समाज में संवेदना का संचार नहीं होता नवजात शिशुओं के साथ ऐसा व्यवहार जाने कब तक चलता रहेगा इसे कोई नहीं जानता.
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नवजात शिशु के आचरण संबंधी कानून के संदर्भ में अधिवक्ता बीके शुक्ला के मुताबिक कानून की धाराएं अपनी पूरी संवेदना के साथ नवजात शिशुओं का संरक्षण करती है और उनकी बिक्री आदि पर कठोर नियम हैं. यही कारण है कि जब कभी इनका कोई उल्लंघन करता है तो कानून के शिकंजे से बच नहीं सकता.
अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल बताते हैं कि अक्सर ऐसे मामले प्रकाश में आते हैं जिनका सिर्फ एक कारण होता है अवैध संतान का ठप्पा जिसके कारण या तो नवजात शिशु के साथ अत्याचार करते हुए उन्हें कहीं फेंक दिया जाता है या फिर अपनी कथित रूप से इज्जत बचाने के लिए किसी जरूरतमंद को पालन पोषण के लिए बच्चे को सौंप दिया जाता है.