Writer- शाहिद ए चौधरी

आधुनिक युग की अर्थव्यवस्था ने ज्यादातर लोगों के कामकाज के टाइमटेबल को बदल दिया है. लौकडाउन की वजह से अब वर्क फ्रौम होम और नाइट ड्यूटी करना आवश्यक सा हो गया है. ऐसे लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है जिन को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही है और जिस का असर उन के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.

कहते हैं कुंभकरण साल में 6 माह तक गहरी नींद में सोता था. अगर वह आज के युग में होता तो उसे शायद रोजाना की आवश्यक 8 घंटे की नींद भी न मिलती, वह भी हम लोगों की तरह इलैक्ट्रौनिक स्क्रीन से चिपका हुआ नींद के लिए तरसता रहता. इसमें कोई दोराय नहीं है कि 21वीं शताब्दी में ‘जो सोवत है सो खोवत है’ कहावत एकदम सही हो गई है. रात में सोने का अर्थ यह है कि आप बहुत नुकसान में?हैं.

आधुनिक युग की अर्थव्यवस्था ने ज्यादातर लोगों के कामकाज के टाइम टेबल को बदल दिया है. नाइट ड्यूटी और वर्क फ्रौम होम करना लगभग आवश्यक सा हो गया है. जाहिर है इस के कारण ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही?है जिन को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही है. हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार, लगभग एकतिहाई भारतीय पर्याप्त नींद से वंचित हैं. लेकिन इस का एक दूसरा पहलू यह भी है कि जो लोग नींद समस्या के समाधान संबंधी व्यापार से जुड़े हुए हैं उन की चांदी हो रही है.

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नींद न आना कोई नई बात नहीं?है. लेकिन आज के युग में अनेक चिंताजनक नए तत्त्वों ने इसे एक ऐसी महामारी बना दिया है कि जो किशोरों व युवाओं के साथसाथ बच्चों को भी प्रभावित कर रही है. इन तत्त्वों में बहुत अधिक तनाव से ले कर अतिसक्रिय दिमाग सहित हाइपर टैक्नोलौजी शामिल है.

दरअसल, अपर्याप्त नींद से जो स्वास्थ्य खतरे उत्पन्न हो रहे हैं उन के बारे में जानकारी को आम करना इतना आवश्यक हो गया है कि वर्ल्ड एसोसिएशन औफ स्लीप मैडिसिन को 15 मार्च को विश्व नींद दिवस मनाना पड़ा.

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि एकतिहाई कामकाजी भारतीय पर्याप्त नींद नहीं प्राप्त कर पा रहे?हैं, जिस से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो ही रही हैं, साथ ही, नींद के लिए बहुत ज्यादा पैसा भी खर्च करना पड़ रहा है.

कुछ वर्ष पहले यह सर्वे रीगस ने किया था जबकि टाइम पत्रिका की एक रिपोर्ट में कहा गया?था कि 2008 से प्रतिवर्ष नींद संबंधी खर्च में 8.8 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है.

एक अन्य सर्वे में मालूम हुआ कि 93 फीसदी भारतीय रात में 8 घंटे से भी कम की नींद ले पाते?हैं, जबकि 58 फीसदी का मानना है कि अपर्याप्त नींद के कारण उन का काम प्रभावित होता है और 38 फीसदी का कहना है कि उन्होंने कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों को सोते हुए देखा है. यह सर्वे नील्सन कंपनी ने फिलिप्स रेस्पीरौनिक्स के लिए किया?है, जो कि स्लीप एड व डायग्नौस्टिक उपकरणों के कारोबार से जुड़ी है.

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स्वास्थ्य समस्याएं

इस में कोई दोराय नहीं है कि पर्याप्त नींद न मिल पाने से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. स्लीप डिस्और्डर के 80 से अधिक प्रकार हैं. साथ ही, इस के कारण हार्ट अटैक, डिप्रैशन, हाई ब्लडप्रैशर, याददाश्त में कमी आदि समस्याएं भी हो सकती?हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि मोटापे को रोग समझने में हमें 25 वर्ष का समय लगा था, यही भूल नींद के सिलसिले में नहीं करनी चाहिए.

वहीं, अपर्याप्त नींद की समस्या ने नींद लाने का जबरदस्त बाजार खोल दिया है. पहले जो व्यक्ति रात में सही से सो पाता था तो अगले दिन कार्यस्थल पर जागते रहने के लिए एनर्जी ड्रिंक्स आदि लेने का प्रयास करता था, लेकिन अब नींद न आने से परेशान लोग मैडिकल हस्तक्षेप को महत्त्व देने लगे?हैं. यही वजह है कि देश में स्लीप क्लीनिक्स की बाढ़ सी आ गई है. मुंबई के लीलावती अस्पताल में पिछले कई वर्षों से स्लीप लैब मौजूद है. पहले इस लैब में सप्ताह में मुश्किल से एकदो रोगी आता था, लेकिन अब रोजाना ऐसे रोगियों की संख्या बढ़ती ही

जा रही है जिन को पोलीसोमोनिग्राम कराने की जरूरत पड़ती है. यह टैस्ट महंगा होता?है, इस से मालूम होता?है कि नींद क्यों नहीं आ रही. इस एक अस्पताल के आंकड़े से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाकी देश में क्या हाल होगा?  नींद न आने की समस्या ने गद्दों की मार्केट का भी विस्तार किया है.

बीमारी से फायदा

ऐसा नहीं है कि नींद न आने की समस्या से केवल मैडिकल प्रोफैशन से जुड़े लोगों व कंपनियों को ही लाभ हो रहा है. कुछ रोगियों ने तो अपनी इस बीमारी को भी फायदे में ही बदलने का प्रयास किया है. मसलन, ध्रुव मल्होत्रा को ही लें. इस 27 वर्षीय फोटोग्राफर को दिन में 3-4 घंटे से ज्यादा नींद नहीं आती?है. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि वे कई दिन लगातार नहीं सोए. लेकिन मल्होत्रा ने अपनी इस बीमारी का लाभ यह उठाया कि वे मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु, उड्डुपी व जयपुर में रातों को घूमे और फुटपाथों, रेलवे स्टेशनों, टैक्सियों, फ्लाइओवर के नीचे, पार्कों की बैंचों पर सोते हुए लोगों की तसवीर खींचने लगे. इस तरह ‘स्लीपर्स’ नामक उन की प्रदर्शनी के लिए उन्हें एक नया विषय मिला.

इसी तरह से देर राततक इंटरनैट के जरिए भी बहुत से रोगी अपनी परेशानी को फायदे में बदलने का प्रयास कर रहे?हैं. ये लोग इंटरनैट के जरिए ब्लौगिंग व लेखन के अन्य कार्य करते हैं, इस से इन को आर्थिक लाभ होता?है. रातों को जागने वाले पहले भी रहे?हैं और आज भी मौजूद हैं. इतिहास ऐसी महान शख्सीयतों से भरा हुआ है जो रात को सो नहीं पाते थे. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन व्हाइट हाउस में आधी रात के बाद देर तक चहलकदमी करने के लिए बदनाम रहे हैं. इसी तरह नेपोलियन बोनापार्ट, मर्लिन मुनरो, शेक्सपियर, चार्ल्स डिकिन्स आदि भी रतजगे किया करते थे. आज के दौर में देखें तो फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन व शाहरुख खान बमुश्किल ही रात को सो पाते?हैं.

इन शख्सीयतों के कारण ही साहित्य में ऐसे चरित्र भरे हुए हैं जो रात को आरामदायक नींद नहीं ले पाते थे, जैसे शरलौक होम्स आदि. वहीं, शायरों ने प्रेम के कारण नींद उड़ जाने को अपनी कविताओं का विषय बनाया है, मसलन, वीजेंद्र सिंह परवाज का एक शेर है:

जैसे तेरी याद ने मुझ को सारी रात जगाया है तेरे दिल पे क्या बीते जो तेरी नींद चुरा लूं मैं.

लेकिन आज नींद का न आना महान शख्सीयतों या उन से प्रेरित साहित्य के चरित्रों या रोमांटिक शायरी के विषयों तक सीमित नहीं रह गया है. आज नींद का न आना एक चिंताजनक महामारी बनती जा रही?है. इसलिए यह समझना आवश्यक?है कि इस समस्या के कारण?क्या हैं, यह किस तरह आधुनिक जीवन को प्रभावित कर रही है और इस का समाधान क्या है. लेकिन इस से पहले यह बताना आवश्यक है कि व्यक्ति को कितनी नींद रोजाना मिलनी चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार, नवजात शिशुओं को दिन में 12-18 घंटे की नींद मिलनी चाहिए, बच्चों को 11-14 घंटे की और वयस्कों को 6-9 घंटे की नींद कम से कम मिलनी चाहिए.

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एक मत यह भी

आधुनिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि व्यक्ति को दिन में कितनी नींद चाहिए, यह एक भ्रमित करने वाला प्रश्न है. शायद इसीलिए यह समस्या का हिस्सा भी है. उन के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति आप से मालूम करे कि आप को कितनी कैलोरी की जरूरत है तो यह बात बहुत चीजों पर निर्भर करती?है कि जैसे प्रेगनैंसी, आयु, ऐक्सरसाइज का स्तर, व्यवसाय आदि. कुछ लोग रात में 3-4 घंटे की नींद से काम चला लेते?हैं और कुछ को कम से कम 10-11 घंटे की नींद चाहिए होती?है. लेकिन नींद की अवधि व गुणवत्ता

2 अलगअलग बातें हैं.

अगर आप दिनभर ऊर्जा से भरे रहते हैं और अच्छे मूड में रहते?हैं, बिना कैफीन या शुगर का सेवन किए हुए तो समझ जाइए आप पर्याप्त नींद ले रहे हैं. दोपहर में नींद का आना सामान्य बात है, यह कोई बीमारी नहीं है.

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