प्रशांत किशोर यानी पीके कुछ सालों से चर्चा में है. पीके को राजनीति के कुशल रणनीतिकार के रूप में ख्याति मिली हुई है.2014 में भाजपा को जीतने का श्रेय भी दिया गया है. उसके बाद कुछ एक चुनाव में जीत दर्ज करवाने के बाद यह माना जाता है कि प्रशांत किशोर एक ऐसा रणनीति कार है जो अपना खासा  महत्व रखता है.

मगर सार तथ्य यह है कि भारतीय राजनीति में आई गिरावट का पूरा लाभ उसने उठाया है और यह प्रचारित किया  गया कि प्रशांत किशोर तो एक कुशल रणनीतिकार है! जो किसी को भी “सत्ता के शीर्ष” पर पहुंचाने का माद्दा रखता है.

मगर ऐसा नहीं है क्या है, प्रशांत किशोर का सच क्या है, प्रशांत किशोर की भूमिका क्या है, और क्या है प्रशांत की ताकत, हम इस रिपोर्ट में यह सब बताने जा रहे हैं.

इस रिपोर्ट में दरअसल, हम आपको यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं है. प्रशांत किशोर एक ऐसा शख्स है जो सिर्फ वक्त का फायदा उठाता रहा है. और इस देश को चलाने वाले रणनीतिकारों, राजनीतिज्ञों सत्ताधीशों के गर्भ गृह में घुसकर अपनी चला लेता है.

इसका सिर्फ एक कारण है राजनेता सत्ता के मोह में ऐसे लाचार और असहाय हो गए हैं कि उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता, कुछ दिखाई नहीं देता. ऐसे में अंधेरे में एक दिया उन्हें प्रशांत किशोर  में दिखाई देता है नेताओं को राजनीतिक पार्टियों को यह प्रतीत होता है कि प्रशांत किशोर उनकी डूबती नैया को पार लगवा सकता है.

ये भी पढ़ें- देश का उच्चतम न्यायालय और नरेंद्र दामोदरदास मोदी

प्रशांत किशोर के संपूर्ण कार्यकाल को खुली आंखों से देखें तो आप पाएंगे की यह पी के सिर्फ समय का सिकंदर है. इसने समय को साधा और आगे निकल गया.

क्या आपके पास इस प्रश्न का जवाब है कि 2014 में अगर प्रशांत किशोर ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता दिलाई, जिसमें नरेंद्र दामोदरदास मोदी प्रधानमंत्री बने तो क्या यह संभव है, सच है?

अगर प्रशांत किशोर भाजपा के साथ नहीं होते तो क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते? इसका सीधा सा जवाब यह है कि प्रशांत किशोर अगर नहीं भी होते तो भी भारतीय जनता पार्टी  बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज होने जा रही थी.

इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रशांत किशोर  शतरंज का एक ऐसा मोहरा है जिसे देश की राजनीतिक पार्टियां अपने हिसाब से चलाने का प्रयास करती है और वह अपने प्रारब्ध से किसी ऐसे दल से जुड़ जाता हैं जो सत्ता में आ जाती है और हवा यह बहने लगती है कि यह प्रशांत किशोर की रणनीति है कुशल रणनीति है जबकि असल में ऐसा कुछ भी नहीं है.

पी के की समझ और भूमिका

सीधी सी बात है कि अगर कोई शख्स सचमुच रणनीतिकार होता है तो ढोल पीटकर अपनी रणनीति बताता.

अगर आप खुद पर्दे के सामने है और कहा जा रहा है कि कुशल रणनीतिकार हैं तो यह एक साफ-साफ धोखा है, झूठ है. क्योंकि रणनीति कार पर्दे के पीछे ही काम करते हैं क्योंकि अगर आपकी बात सार्वजनिक हो गई तो फिर उसका सफल हो पाना संभव नहीं है. सीधी सी बात है कि अगर आप कोई खेल करने जा रहे हैं और वह सार्वजनिक हो जाता है तो सामने बैठे हुए राजनीतिक दल और उसकी घुर नेता, चूड़ियां पहन कर नहीं बैठें हैं.

सभी जानते हैं किप्रशांत किशोर 2014 के चुनाव में बीजेपी के साथ थे . बाद में उन्होंने बीजेपी को छोड़कर नीतीश कुमार का साथ पकड़ लिया . इसी साल 2021 हुए पश्चिम बंगाल के चुनाव में प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी के लिए पर्दे के पीछे से काम किया.

ये भी पढ़ें- पंजाब: पैरों में कुल्हाड़ी मारते अमरिंदर सिंह

जैसा कि हमने ऊपर स्पष्ट किया है और यह समझने वाली बात है कि जो राजनीतिक पार्टी और नेता जीत रहा होता है उसके साथ प्रशांत किशोर का नाम जुड़ जाता है और बाद में श्रेय बटोर लेते हैं. यह है कि इतने बड़े देश में कोई कभी सदैव सत्ता का भोग नहीं कर सकता. राजनीतिक पार्टियां तो बदलते रहेंगी और यह मानना कि किसी हारने वाले राजनेता और उसकी पार्टी को अपनी सूझबूझ से प्रशांत किशोर सत्ता से आसन पर बैठा देंगे एकदम असंभव है कोरी कल्पना है. अगर ऐसा कोई जादू का डंडा प्रशांत किशोर के पास होता तो राजनीतिक दल उसे अपने पास रखते वह इधर उधर राजनीतिक पार्टियों के दफ्तर में नेताओं के ईर्द-गिर्द चक्कर नहीं लगा रहा होता.

यह भी परम सत्य है की प्रशांत किशोर या किसी ने ऐसा गुण हो वह सत्ता दिलाने की रणनीति बना ले तो फिर देश के एक बड़े नेता प्रशांत किशोर को अपने यहां कैद कर के ना रख लें, की  हे प्रशांत किशोर अब तुम कहीं नहीं जा सकते!!

आप यह समझ लीजिए कि अगर प्रशांत किशोर दर-दर भटक रहा है तो वह कोई कुशल रणनीति कार कतई नहीं है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...