मोदी सरकार का एक छिपा काम किसी तरह देश में फिर से पूरी तरह पौराणिक ऊंचनीच वाले समाज को बनाना है जिस में पैदा होते ही तय हो जाए कि कौन क्या बनेगा. रामायण और महाभारत में 2 राजसी घरों का ?ागड़ा ही सब से बड़ी बात है और पैदा होने के हक को देने या न देने पर इन पूजे जाने वाले भारीभरकम किताबों से निकलने वालों को पूजा भी जाता है और उन्हीं की तर्ज पर पैदा होने को ही जिंदगी की जड़ माना जाता है.
हमारे संविधान ने चाहे सभी अमीरों और गरीबों के बच्चों को बराबर का माना हो पर असलियत यही है कि रोजाना ऊंचे घरों में पैदा हुए लोगों की ही गारंटी है. अंबेडकर और मंडल की वजह से शैड्यूल कास्टों और बैकवर्डों को जगह मिलने लगी पर यह बात समाज के कर्ताधर्ताओं को पसंद नहीं आई और उन्होंने रामायण और महाभारत के पन्नों से कुछ पात्रों को निकाल कर जनता को ऐसा बहकाया है कि आज सादे घर में पैदा हुआ सिर्फ मजदूर बन कर रह गया है. उसे ज्यादा से ज्यादा कुछ मिल सकता है तो वह ऊंचे घरों में पैदा हुए लोगों के घरों और धंधों में छोटे कामकरना या उन की सुरक्षा करने का. पुलिस और सेना में खूब भरतियां हुई हैं पर अफसरी गिनेचुनों को मिली है. आम घरों के पैदा हुए तो सलूट ही मारते हैं चाहे उन्हें चुप करने के लिए अफसरी का बिल्ला लगाने को दे दिया गया हो.
देश में बढ़ती बेरोजगारी एक पूरी साजिश है. सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन हो गया है इसलिए सरकार ने सरकारी कारखाने धड़ाधड़ बेचने शुरू कर दिए ताकि सादे घरों में पैदा हुए लोगों को ऊंची सरकारी नौकरियां देनी ही न पड़ें. पुलिस और सेना के अलावा कहीं और थोक में भरतियां हो ही नहीं रहीं. आधुनिक टैक्नोलौजी ने निजी कंपनियों को वह रास्ता दिखा दिया जिस में सादे घरों के लोगों का काम मशीनें कर सकती हैं और उन मशीनों को ऊंचे घरों में पैदा हुए एयरकंडीशंड कमरों में बंद दफ्तरों से चला सकते हैं.
आज हालात ये हो गए हैं कि किसानों की मौतों का मुआवजा एक अदद सरकारी नौकरी रह गई है. करनाल और लखीमपुर खीरी में राकेश टिकैत जैसे जु?ारू नेता ने भी एकएक सरकारी नौकरी का वादा पा कर मौतों का सम?ौता कर लिया. बेकारी इतनी बढ़ा दी गई है कि एक सरकारी नौकरी किसान की जान से ज्यादा कीमती हो गई है.
नौकरियों को खत्म करने में नोटबंदी, जीएसटी, कृषि कानूनों, नागरिक कानूनों को जबरन साजिश के तौर पर लाया गया है. सरकार को पहले से पता था कि इन का क्या नुकसान होगा. इन से छोटे घरों से पनपते छोटेछोटे व्यापारी मारे जाएंगे यह एहसास सरकार को था और छोटे धंधे और छोटे व्यापार जो छोटे घरों के मेहनती युवा करने लगे थे, भारीभरकम टैक्सों, नियमों, नोटों की किल्लतों, बैंक अकाउंट रखने की जरूरत जिसे खोलना आसान नहीं है, एक पूरी साजिश की तरह थोपा गया है, ताकि देश की 80 फीसदी जनता गुलाम बन कर रह जाए. उन्हें बहलाने के लिए रामायण और महाभारत, जिसे पहले टीवी पर चला कर घरघर पहुंचा दिया गया था, से लिए पात्रों को दे दिया गया कि इन्हें बचाओ चाहे खुद मर जाओ.
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आज देश बुरी तरह कराह रहा है पर हर गरीब इसे अपने पिछले जन्मों का फल मानता है क्योंकि गीता में यही कृष्ण कह गए हैं. हर गरीब शंबूक, केवट या शबरी की तरह है, इस से ज्यादा नहीं. बेरोजगार हैं तो क्या हुआ, देश के धर्म का डंका तो बज रहा है न.