Writer- Madhu Sharma Katiha

कल रात औफ़िस से ‘वर्क फ़्रौम होम’ का  मेल मिला तो खुशी से मेरा दिल यूं बाग-बाग हो गया, मानो सुबह दफ़्तर जाते हुए मैट्रो में चढ़ते ही खाली सीट मिल गयी हो. एक तो पिछले कुछ दिनों से धर्मपत्नी, दिव्या का कोरोना पर कर्णभेदी भाषण और फिर हाल-चाल पूछने के बहाने मेरे औफ़िस पहुंचने से पहले ही लगातार कौल करने का नया ड्रामा ! उस पर आलम यह कि मुझे हल्की सी खांसी हुई नहीं कि क्वारंटिन का हवाला दे मेरी सांसों को अटका देना ! मेरी हालत किसी बौलीवुड हीरोइन की ज़ीरो फ़िगर से भी पतली हो गयी थी. वैसे वर्क फ़्रौम होम मेरे लिए भी उस गुलाबजामुन की तरह था, जिसे किसी दूसरे की प्लेट में देखकर मैं हमेशा लार टपकाता रहता था. इस और्डर से मेरे भीतर की प्रसन्नता उछल-उछल कर बाहर आ रही थी.

सुबह की बैड-टी के बाद आज के काम पर विचार कर ही रहा था कि “प्लीज़ आज ब्रैकफ़ास्ट आप बनाओ न!” कहते हुए दिव्या ने मधुर मुस्कान के साथ एक फ्लाइंग किस मेरी ओर उछाल दिया. यह बात अलग है कि मुझे वह चुम्मा ज़हर बुझे तीर सा लगा और घनी पीड़ा देता हुआ सीने में चुभ गया. अच्छा बहाना कि रोज़ एक वर्षीय बेटे नोनू की नींद टूट जाने के डर से पांच मिनट में नहाकर आ जाती हूं, आज फुल बौडी एक्सफोलिएशन करते हुए नहाऊंगी तो कम से कम आधा घंटा तो लग ही जायेगा.

औफ़िस में बौस के आगे सिर झुकाने की आदत का लाभ हुआ और मैं बिना किसी ना-नुकुर के नाश्ता बनाने को राज़ी हो गया. मैंने औफ़िस में हर काम शोर्टकट में निपटा डालने वाला अपना दिमाग यहां भी लगाया और कम से कम परिश्रम और समय में तैयार रेसिपीज़ खोजने के लिए इंटरनैट खंगालना शुरू कर दिया. मेरी मेहनत रंग ले ही आयी और पोहा बनाने की विधि देख मेरी आंखें ऐसे चमक उठीं जैसे किसी छात्र के प्रश्न-पत्र में वही प्रश्न आये हों, जिसकी चिट बनाते हुए उसने पूरी रात नैनों में काट दी हो.

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नाश्ते के बाद लैपटौप लेकर दूसरे कमरे में बैठा ही था कि मेरे बौस का फ़ोन आ गया. आवाज़ सुन दिव्या उस कमरे में चली आई और कुछ देर वहां ठहरने के बाद माथे पर त्योरियां चढ़ा मुझे घूरती हुई वापिस निकल ली. ढेर सारा काम देकर बौस ने फ़ोन काट दिया. मुझे मदद के लिए अपने असिस्टेंट को फ़ोन करना था. बेग़म डिस्टर्ब न हों इसलिए मैंने दरवाज़े को आधा बंद कर दिया, लेकिन वह भी अपने कान मेरे कमरे में लगाये थी. फ़ौरन कमरे का दरवाज़ा खोल भीतर झांकती हुई बोली, “काम कर लो न ! क्यों गप्पें मारकर अपना समय ख़राब कर रहे हो?”

“अरे, काम की ही बात कर रहा हूं.” मोबाइल को अपने मुंह से दूर करते हुए मैं बोला.

तिरछी नज़रों से मेरी और देखते हुए अपनी हथेली मुंह पर रख खी-खी करती हुई वह कमरे से चली गयी. उसकी भाव-भंगिमाएं कह रही थीं कि ‘आज पता लगा आप औफ़िस में भी कुछ काम नहीं करते !’

फ़ोन पर असिस्टेंट को काम समझाते हुए अपना दिमाग आधा खाली करवाने के बाद मैं लैपटौप में खो गया. दोपहर हुई और पेट में चूहे मटरगश्ती करने लगे. दिव्या को पुकारा तो वह गोदी में नोनू को लिए अन्दर घुसी. न जाने क्यों नोनू मुझे देख ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा. मैंने पुचकारते हुए अपने हाथ उसकी और बढ़ाये तो दिव्या बोल उठी, “आपको इस समय घर पर देख नोनू डर गया है.”

“क्यों सन्डे को भी तो होता हूं घर पर.”

“इस समय आप कुछ ज़्यादा ही टैंशन में हो, शक्ल तो बिल्कुल ऐसी लग रही है जैसे डेली सोप की किसी संस्कारी बहू की सास के चिल्लाने पर हो जाती है. ऐसा करो, या तो लंच आप तैयार करो या फिर मैं जब तक खाना बनाती हूं आप नोनू के खिलौनों में से किसी कार्टून करैक्टर का मास्क लेकर लगा लो. तभी खुश होकर खेलेगा यह आपके साथ !”

मरता क्या न करता ! दौड़कर बैडरूम में गया और दरवाज़े के पीछे लगे खूंटों से शिनचैन का मास्क उतराकर चेहरे पर लगा लिया.

खाना खाकर जितनी देर दिव्या किचन समेटती रही मैं मास्क पहनकर शिनचैन की आवाज़ में नोनू को हंसाता रहा. नोनू को मैंने अपने असली चेहरे की ओर इतने अपनेपन से ताकते हुए कभी नहीं देखा था. उसकी खिलखिलाहट देख जी चाह रहा था कि अब से मैं शिनचैनी पापा ही बनकर रहूं.

घड़ी की सुई तीन पर आने ही वाली थी. याद आया कि मैनेजर ने वीडियो-कौनफ्रैंस रखी थी, जिसमें मुझे अपनी प्रेज़ेन्टेशन दिखानी थी. किचन में जाकर नोनू को दिव्या की गोद में दे मैं हांफते हुए कमरे में आ गया और लैपटौप खोल मीटिंग के लिए लौग-इन कर लिया. मैनेजर और बाकी दो साथी पहले ही आ चुके थे. मेरे जौइन करते ही सब ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. ‘यह औफ़िस की मीटिंग है या लौफ्टर क्लब की?’ सोचकर सिर खुजलाते हुए हंसी के इस सैशन में मैं उनका साथ देने ही वाला था कि मैनेजर बोल पड़ा, “राहुल, बाज़ार से मास्क खरीद लाते. वैसे घर में रहते हुए मास्क लगाना इतना ज़रूरी भी नहीं कि तुम शिनचैन का मास्क लगाकर बैठ गये!” सब लोगों का मुझ पर हंसना जारी था. पूरी मीटिंग में मैं खिसियानी सूरत लेकर बैठा रहा.

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मीटिंग ख़त्म होने पर आते-जाते बैडरूम में झांक बैड को ललचाई दृष्टि से देखता रहा, लेकिन मजाल कि दो घड़ी भी चैन से लेटने को मिले हों.

रात को सोते हुए जहां रोज़ अगले दिन की प्रेज़ेन्टेशन के विषय में सोचा करता था, आज सोच रहा हूं कि कल नाश्ते में क्या बनाऊंगा? यह वर्क फ़्रौम होम का लड्डू भी शादी जैसा ही है, जिसने खाया वह भी पछताया और नहीं खाने वाले को इसने ख़ूब तरसाया !

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