फैशन शो यानी तरहतरह के कपड़ों को नए अंदाज में पेश करने का जरीया. इसी तरह का एक फैशन शो चल रहा था, जिस में अनोखी कढ़ाई से सजे कपड़े पहन कर फैशनेबल मौडल रैंप पर आ कर सधी चाल में चल रही थीं.
आखिर में इन कपड़ों की डिजाइन तैयार करने वाली राजस्थानी अंदाज में सजीधजी मुसकराते हुए एक औरत स्टेज पर आई. यह वही औरत थी रूमा देवी, जिस ने अपनी क्षेत्रीय कला को मौडर्न रूप दे कर दुनियाभर में नाम दिलाया है.
रूमा देवी का जन्म नवंबर,1988 में राजस्थान के जिले बाड़मेर के एक छोटे से गांव रातवसर में एक सामान्य परिवार में हुआ था. उन के पिता का नाम खेतारम तो मां का नाम इमरती देवी था.
जब रूमा देवी 5 साल की थीं, तभी उन की मां की मौत हो गई थी. मां की मौत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली.
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सौतेली मां के साथ रहने के बजाय रूमा देवी अपने चाचा के साथ रहने लगीं. 7 बहनों और एक भाई में रूमा देवी सब से बड़ी थीं.
राजस्थान में तब पीने के पानी की बड़ी किल्लत थी. रूमा देवी ने वे दिन भी देखे हैं, जब पीने के लिए पानी 10 किलोमीटर दूर बैलगाड़ी से लाया जाता था.
8वीं जमात पास करने के बाद रूमा देवी की पढ़ाई छुड़वा दी गई. स्कूल छूटने के बाद वे अपनी चाची के साथ घरगृहस्थी के कामकाज सीखते हुए घर के कामों में मदद करने लगीं.
17 साल की ही छोटी उम्र में रूमा देवी की शादी बाड़मेर के ही गांव बेरी के रहने वाले टिकूराम से कर के उन्हें ससुराल भेज दिया गया.
टिकूराम नशामुक्ति संस्थान, जोधपुर के साथ मिल कर काम करते हैं. उसी छोटी उम्र में रूमा देवी ने एक बेटे को जन्म दिया, पर उन का मासूम बेटा उचित इलाज न मिलने की वजह से महज 48 घंटे बाद ही काल के गाल समा गया.
इस आघात से निकलना रूमा देवी के लिए आसान नहीं था, पर उन के घर की माली हालत काफी खराब थी, इसलिए उन्होंने घर से कुछ ऐसा करने के बारे में विचार किया, जिस से वे भी चार पैसे कमा कर घर वालों की मदद कर सकें.
रूमा देवी की दादी ने उन्हें कसीदाकारी की कला सिखाई थी. अपने बेटे की मौत के शोक में दिन काट रही रूमा देवी के मन में अपनी इस कला के जरीए आजीविका चलाने का विचार आया. उन्होंने परिवार वालों को बताया. पहले तो उन्होंने विरोध किया, पर किसी तरह राजी कर के रूमा देवी ने घर में ही हाथ द्वारा सिलाई कर के एक हैंडबैग बनाना शुरू किया.
रूमा देवी द्वारा बनाए गए पहले हैंडबैग को बेच कर कुल 70 रुपए की कमाई हुई. इस 70 रुपए से उन्होंने आगे के सफर के लिए कुशन, धागा, कपड़ा और प्लास्टिक का रैपर जैसा सामान खरीदा.
उन्हीं की तरह की दूसरी औरतें भी कुछ कमाई कर सकें, यह सोच कर रूमा देवी ने इस काम के लिए आसपड़ोस की दूसरी औरतों को साथ लेने का निश्चय किया.
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रूमा देवी द्वारा तैयार किए गए स्थानीय ‘महिला बाल विकास’ की 10 औरतों ने 100-100 रुपए जमा कर के अपने काम के लिए जरूरी सामान मंगाया. एक सैकंडहैंड सिलाई मशीन खरीदी.
दसों औरतों ने अलगअलग काम बांट लिए. उन्होंने खास शैली के बाड़मेरी कढ़ाई से सजे हैंडबैग, कुशन कवर, साड़ी और परदे बना कर उन्हें बेचना शुरू किया.
बाकी सहयोगी औरतों को काम मिलता रहे, इस के लिए रूमा देवी ने साल 2008 में बनी और विक्रम सिंह द्वारा चलाई जा रही संस्था ‘ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान’ से संपर्क किया. यह संस्था राजस्थान हस्तशिल्प उत्पादों द्वारा औरतों को आत्मनिर्भर बनाती है.
साल 2008 में रूमा देवी इस संस्था से जुड़ीं. इस संस्था से रूमा देवी को 3 दिनों का काम मिला. रूमा देवी और उन के साथ काम करने वाली औरतों में काम करने का इतना जोश था कि 3 दिनों का काम उन्होंने एक ही दिन में पूरा कर डाला. इस तरह उन्हें ज्यादा से ज्यादा काम मिलता गया और वे उसे समय से पहले कर के देती रहीं.
रूमा देवी ने संस्था से जुड़ कर उस के लिए हस्तशिल्प के नए डिजाइन तैयार किए. तैयार सामान की बाजार में मांग बढ़ाई, इसीलिए साल 2010 में संस्थान की कमान रूमा देवी को सौंप दी गई. उन्हें संस्था का अध्यक्ष बना दिया गया. इस संस्था का हैड औफिस बाड़मेर में ही है.
रूमा देवी के घर चार पैसे आने लगे, तो वे बाड़मेर के दूसरे गांवों में रहने वाली औरतों को अपने पैरों पर खड़ा करने का निश्चय किया. इस के लिए रूमा देवी ने खुद गाड़ी में बैठ कर दूरदूर तक गांवों में जा कर वहां रहने वाली औरतों से मिलना शुरू किया.
राजस्थान के गांवदेहात के इलाके में लोग दूरदूर अलगअलग छोटेछोटे घर बना कर रहते हैं, इसलिए रूमा देवी पूरे दिन घूमतीं तो 4-6 परिवारों से ही मुलाकात होती.
रूमा देवी खुद औरत थीं. उन का घर से निकलना किसी को पसंद नहीं था. उन के घर से बाहर जाने पर लोग तरहतरह की बातें करते, ताने मारते, फिर भी हालात से हारे बगैर उन्होंने औरतों और उन के घर वालों को समझाते हुए 75 गांवों की तकरीबन 22,000 औरतों को अपने साथ काम करने के लिए बढ़ावा दिया.
आज रूमा देवी की कोशिशों से ये औरतें अपने परिवार की माली तौर पर मदद कर रही हैं. इन औरतों द्वारा अलगअलग तरह के कपड़ों पर खास तरह के पैचवर्क और कढ़ाई कर के दुपट्टा, कुरती और साड़ी, परदों को सजाया जाता है. उन के बिकने पर जो फायदा होता है, सीधे वह इन औरतों को मिलता है.
आज इस संस्था से जुड़ी औरतों के कामकाज का सालाना टर्नओवर करोड़ों रुपए का है. रूमा देवी द्वारा की गई कोशिशों को साल 2018 में औरतों के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से नवाजा गया.
15 व 16 फरवरी, 2020 को अमेरिका में आयोजित 2 दिवसीय हार्वर्ड इंडिया कौंफ्रैंस में भी रूमा देवी को बुलाया गया था. तब वहां उन्हें हस्तशिल्प उत्पाद प्रदर्शित करने के साथसाथ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बच्चों को पढ़ाने का भी मौका मिला. इस के अलावा रूमा देवी को ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में अमिताभ बच्चन के सामने हौट सीट पर बैठने का मौका मिल चुका है.
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साल 2016-17 में जरमनी में दुनिया का सब से बड़ा ट्रेड फेयर लगा था. उस में शामिल होने के लिए तकरीबन 15 लाख रुपए फीस लगती थी. पर रूमा देवी की टीम को उस ट्रेड फेयर में मुफ्त में बुलाया गया था.
साल 2019 में जब रूमा देवी को ‘फैशन डिजाइनर औफ द ईयर’ घोषित किया गया, तो उन्होंने कहा कि हर महिला में एक खास काबिलीयत होती है. अपनी खूबी की पहचान कर के उसे बाहर लाएं. रूमा देवी पर हाल में एक किताब भी लिखी गई है, जिस का नाम है ‘हौसले का हुनर’.