लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

लखनऊ के हजरतगंज इलाके के एक शानदार कौंप्लैक्स में बने अपने  औफिस में बैठा हुआ सुषेन दीवार पर लगे आईने में अपने चेहरे को देख रहा था. चेहरे की सफेदी को काली दाढ़ी ने काफी हद तक घेर रखा था. उस सफेदी के नीचे दबी हुई महीन नसें भी वह आईने में साफ देख सकता था.

इनसान की चमड़ी भी उस की जिंदगी में कितनी अहमियत रखती है… काली चमड़ी… गोरी चमड़ी… मोटी चमड़ी… महीन चमड़ी… खूबसूरत और बदसूरत चमड़ी…

खूबसूरत… हां… सुषेन भी तो खूबसूरत था… बांका और सजीला नौजवान… सुषेन 20 साल पहले की यादों में डूबने लगा था.

कालेज में बीएससी करते समय बहुत सी लड़कियां सुषेन की दीवानी थीं, क्योंकि वह दिखने में तो हैंडसम था ही, साथ ही साथ विज्ञान के प्रैक्टिकल करने में भी उसे महारत हासिल थी.

पर सुषेन के दिल में तो किसी और ही लड़की का राज था और वह लड़की थी एमएससी फाइनल में पढ़ने वाली सुरभि.

सुरभि और सुषेन दोनों अकसर लाइब्रेरी में मिलते थे और वहीं दोनों की आंखें मिलीं, बातें हुईं और 2 जवान दिलों में प्यार होते देर नहीं लगी. दोनों ने महसूस किया कि वे एकदूसरे को जाननेपहचानने लगे हैं और दोनों के विचार भी आपस में मिलते हैं. यकीनन वे एकदूसरे के लिए बने हैं, इसलिए सुषेन और सुरभि ने एकदूसरे से शादी का वादा भी कर डाला.

सुरभि के घर वालों को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी और सुषेन ने भी बगैर यह सोचे ही हामी भर दी थी कि क्या उस के घर वाले उस से उम्र में 2 साल बड़ी लड़की से शादी करने की इजाजत देंगे?

और वही हुआ भी. सुषेन के घर वालों को उस की उम्र से बड़ी लड़की से शादी कर लेने पर घोर एतराज हुआ, पर शायद सुषेन मन ही मन ठान चुका था कि उसे अपने आगे की जिंदगी कैसे और किस के साथ गुजारनी है,
इसलिए उस ने पहले अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर नौकरी लगने के बाद सुरभि के साथ ब्याह भी रचा लिया.

सुषेन और सुरभि के ब्याह में सुषेन के घर से कोई नहीं आया था. मतलब साफ था कि उस ने घर वालों से बगावत कर के यह शादी की थी और इसी के साथ ही सुषेन के घर वालों ने उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया था.

सुरभि को पाने के लिए सुषेन ने अपना सबकुछ खो दिया था और इतनी पढ़ीलिखी और समझदार पत्नी पा कर वह मन ही मन बहुत खुश भी था. दोनों अपने जिंदगी मन भर कर जी लेना चाहते थे और इस के लिए उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी थी.

सुरभि खुश थी और सुषेन भी, पर अचानक उन की खुशियों को तब ग्रहण लग गया जब एक दिन शेव करते समय सुषेन को अपने होंठों के किनारे एक छोटा सा सफेद दाग दिखाई दिया.

सभी की तरह सुषेन ने भी यह सोच कर अनदेखा कर दिया कि शायद ज्यादा सिगरेट पीने की वजह से होंठ कुछ सफेद हो गया होगा, पर उस की चिंता कुछ महीनों बाद बढ़ गई, क्योंकि वह छोटा सा दाग अब न केवल बड़ा हो गया था, बल्कि उसी तरह के चकत्ते शरीर में और जगह भी हो गए थे.

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“तो क्या मुझे सफेद दाग हो गया है?” सुषेन मन ही मन शक से बुदबुदा उठा था. ड़ाक्टर को दिखाया तो उस का डर सही निकला. सुषेन को सफेद दाग नामक बीमारी हो गई थी.

डाक्टर ने सुषेन से तनाव नहीं लेने को कहा और बताया कि यह बीमारी धीरेधीरे ही ठीक होती है, इसलिए बताए मुताबिक दवा खाते रहें. पर नियम से लगातार दवा खाने के बाद भी सुषेन के शरीर पर सफेद दाग फैलते ही गए.

‘आखिर मुझे सफेद दाग जैसी बीमारी कैसे हो गई, क्योंकि मैं तो बहुत साफसफाई से रहता हूं… जल्दी किसी से हाथ नहीं मिलाता और अगर मिलाना भी पड़ जाए तो तुरंत हाथों को सैनेटाइज़ करता हूं… फिर भी… मुझे… कैसे?… क्यों…’ वगैरह सवाल सुषेन के दिमाग में घूम रहे थे.

“लोग मुझे देख कर नजरें चुरा लेते हैं… मेरी सूरत की तरफ कोई देखना भी नहीं चाहता है… मैं क्या करूं?” एक दिन सुषेन ने अपने खास दोस्त राघव से कहा.

राघव ने उसे एक बाबा का पता बताया और कहा, “वे बाबा तुम्हारे बदन पर भभूत मलेंगे और कुछ तंत्रमंत्र… और बस तू भलाचंगा हो जाएगा.”

सुषेन बिना देर किए उस बाबा के पास पहुंचा. बाबा ने सुषेन को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, “यह सफेद दाग की बीमारी है जो पिछले जन्म के पाप कर्मों से ही पनपती है. तू ने जरूर किसी सफेद खाल वाले बेजबान जानवर को सताया होगा, इसीलिए तेरा खून खराब हो चुका है और तेरी खाल का रंग भी सफेद हो गया है.

“हमें तेरे खून को साफ करने के लिए सोनेचांदी की भस्म का लेप तेरे पूरे बदन पर लगाना होगा और सोने को गला कर उस का काढ़ा तुझे पिलाना होगा, तब कहीं जा कर यह बीमारी सही हो पाएगी, पर…”

“पर क्या बाबा?” सुषेन ने पूछा.

“क्या है कि इलाज थोड़ा महंगा होगा, इसलिए कुछ एडवांस भी जमा करना पड़ेगा तुझे,” बाबा ने कहा.

“कितना भी महंगा इलाज हो बाबा, आप बस मुझे ठीक कर दो. मैं तो समाज में बैठने लायक नहीं रह गया हूं. आप इलाज शुरू कीजिए, मैं पैसे का इंतजाम करता हूं,” यह कहते हुए सुषेन बहुत जोश में लग रहा था.

बाबा ने इलाज का खर्चा 50,000 रुपए बताया था और 25,000 रुपए पहले ही जमा करा लिए थे.

बाबा ने इलाज शुरू किया. सुषेन को कई तरह के काढ़े पिलाए गए, शरीर के ऊपर भभूत भी मली गई, पर उन सब चीजों से उसे फायदा मिलने के बजाय नुकसान ही होता गया.

धीरेधीरे सुषेन हर तरफ से इलाज करा कर हार गया था. पाखंडी तांत्रिकों, झोलाछाप डाक्टरों, मुल्लेमौलवियों सब ने सुषेन को बस लूटा ही था. अब कहीं न कहीं सुषेन भी यह मान चुका था कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है.

सुषेन एक तरफ तो इस बीमारी के चलते दिमागी तौर पर परेशान रहता था, दूसरी तरफ सामाजिक बहिष्कार ने उसे दुखी कर रखा था और तीसरी तरफ उसे यह भी लगने लगा था कि सुरभि की नजरों में अब उस के लिए प्यार की जगह तिरस्कार आता जा रहा है. अब वह पहले की तरह उस के पास नहीं बैठती थी और रात में उस के सोने के बाद वह अकसर सोफे पर चली जाती है और उसे शारीरिक संबंध भी नहीं बनाने देती है.

सुषेन को एहसास होने लगा था कि सुरभि अब उसे छोड़ देगी. सुरभि से इस बारे में पूछने पर उस का बड़ा सहज सा जवाब आया था, “हां.”

सुषेन के कानों में बहुतकुछ सनसनाता सा चला गया. उस ने जो सुना था, उस पर उसे भरोसा नहीं हो रहा था.

“बुरा मत मानना पर अब तुम्हें यह लाइलाज बीमारी हो गई है. तुम्हें तो इसी के साथ जीना होगा, पर मैं अभी जवान और खूबसूरत हूं. अपने पिछले जन्म के कर्मों का कियाधरा तुम भुगतो… मैं भला उस में क्यों पिसूं? मेरी और तुम्हारी राह आज से अलग है. मैं ने वकील से बात कर ली है. आपसी रजामंदी रहेगी तो तलाक आसानी से हो जाएगा…” और सुरभि ने बड़ी आसानी से इतनी बड़ी बात कह दी.

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दोनों में तलाक हो गया. सुरभि कहां गई, यह जानने में सुषेन को कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह अब मन ही मन घुटने लगा था. तनाव हमेशा उस के दिमाग और चेहरे को घेरे रहता. खुदकुशी तक करने का विचार आया, पर सुषेन को लगा कि यह तो सरासर बुजदिली होगी.

सुषेन ने अपनेआप को संभाला तो थोड़ा सहारा उसे रमोला ने भी दिया, जो उस के साथ ही काम करती थी. रमोला यह भी जानती थी कि अगर इस समय सुषेन को सहारा नहीं दिया गया तो वह कुछ भी कर सकता है.

“सुषेनजी, क्या आज आप मुझे मेरे घर तक छोड़ सकते हैं? अंधेरा ज्यादा हो गया है और आजकल शहर में अकेली औरत का निकलना सही नहीं है,” एक दिन रमोला ने सुषेन से कहा.

“क्यों नहीं… बिलकुल छोड़ दूंगा… बस, 15 मिनट और रुक जाइए, फिर साथ ही निकलते हैं,” सुषेन ने हामी भरते हुए कहा.

दरअसल, रमोला एक तलाकशुदा औरत थी. उस के पति ने सांवला रंग होने के चलते उस से तलाक ले लिया था और अब वह अकेली ही जिंदगी काट रही थी.

जब सुषेन अपनी मोटरसाइकिल पर रमोला को उस के घर छोड़ने जा रहा था, तब उस ने महसूस किया कि रमोला उस से कुछ ज्यादा ही सट कर बैठी है. पहले तो सुषेन को लगा कि यह अनजाने में भी हो सकता है, पर जब लगातार रमोला ने अपने गदराए जिस्म को सुषेन के बदन से सटाए रखा तो वह समझ गया कि रमोला को मर्दाना जिस्म की जरूरत है.

“अंदर आ कर एक कप चाय तो पी लीजिए,” रमोला ने कहा तो सुषेन भी मना नहीं कर सका.

वे दोनों अंदर आए ही थे कि बारिश शुरू हो गई. रमोला किचन में चाय बनाने चली गई. सुषेन को रमोला का यह लगाव बहुत सुहा रहा था.

“रमोलाजी, आप मुझे अपने घर के कप में चाय पिला रही हैं. क्या आप को मुझ से कोई परहेज नहीं है? मेरा मतलब है कि मेरे इन सफेद दाग की वजह से?”

“नहीं सुषेनजी, मैं ने आप को आज से पहले भी देखा है. आज भी आप इतने हैंडसम हैं, जितना पहले थे.”

यह सुन कर सुषेन को बहुत अच्छा लगा और वह रमोला की तरफ खिंचता चला गया. रमोला भी मन ही मन सुषेन को पसंद करती थी, जिस का नतीजा यह हुआ कि उन दोनों में जिस्मानी संबंध बन गए. जब एक बार दोनों ने एकदूसरे के जिस्म को भोगा तो फिर प्यार का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि दोनों के बीच अकसर संबंध बनने लगे.

बाद में उन दोनों ने इस रिश्ते को एक नाम देने की सोची और आपस में शादी कर ली. दोनों एक दूसरे के साथ जिंदगी बिता कर बहुत खुश थे, पर सुषेन के मन में कहीं न कहीं अपनी बीमारी को ले कर निराशा भी थी, क्योंकि समाज में उसे एक छूत की बीमारी माना जाता था और उस ने महसूस किया कि देश में ऐसे न जाने कितने लड़केलड़कियां हैं, जिन की शादी इस बीमारी के चलते नहीं हो पाती है.

लिहाजा, सुषेन और रमोला ने इस दिशा में कुछ ठोस काम करने की सोची और अपने खर्चे पर ऐसी 2 लड़कियों की शादी कराई, जिन की शादी में अड़चनें आ रही थीं. इस काम में कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने भी उन की पैसे से मदद की थी.

आज जीतोड़ मेहनत कर के उन्होंने देश में अपनी एक पहचान बना ली है और इस काम को ढंग से करने के लिए उन के पास एक शानदार औफिस भी है.

आज सुरभि को सुषेन की जिंदगी से गए पूरे 25 साल हो गए थे. सुषेन अपने औफिस में बैठा हुआ काम में बिजी था कि उस के चपरासी ने बताया, “सर, कोई आप से मिलना चाहता है.”

सुषेन ने अंदर बुलवाने को कहा. थोड़ी देर में एक औरत एक आदमी के साथ अंदर आई. उन के साथ शायद उन की भी बेटी थी.

25 साल का समय लंबा जरूर होता है पर इतना लंबा भी नहीं कि आप उसे पहचान न सकें, जिस से शादी करने के लिए आप ने अपने घर वालों से बगावत कर दी थी. यह सुरभि थी. सुषेन उसे देखते ही पहचान गया था.

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“जी, बात यह है कि मेरी बेटी को सफेद दाग की बीमारी है और इसी वजह से उस की शादी में अड़चन आ रही है,” वह आदमी बोला.

‘तो यह सुरभि का पति है. इस का मतलब है कि मुझे छोड़ते ही सुरभि ने इस आदमी से शादी कर ली थी और यह लड़की भी इसी आदमी की है, क्योंकि मुझे तो सुरभि ने अपने पास ही फटकने नहीं दिया था,’ सुषेन के मन में यह सब चल रहा था.

“जी, ठीक है. आप अपनी बेटी का नाम और उस के फोटो हमारे पास जमा करवा दीजिए. हमारी तरफ से जो भी मदद होगी, वह आप को दी जाएगी,” सुषेन ने सुरभि को देखते हुए कहा जो उस की घनी दाढ़ी के बीच छिपे चेहरे को पहचान लेने के बाद भी अनजान बनने की कोशिश कर रही थी.

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