लेखक- डा. पुलकित शर्मा
हर किसी के मन में यह सोच घर कर चुकी है कि बच्चे अपने घरों में महफूज रहते हैं. चूंकि मांबाप उन के आदर्श होते हैं, इसलिए वे उन पर सब से ज्यादा यकीन करते हैं, पर यह भी कड़वी हकीकत है कि बहुत से मांबाप अपने बच्चों को निजी जायदाद समझ लेते हैं. वे मान लेते हैं कि बच्चा पैदा कर दिया है, तो वे किसी भी रूप में उस का इस्तेमाल कर सकते हैं.
हम कितनी ही खबरें सुनते हैं कि किसी मांबाप ने अपनी बेटी को किसी जानपहचान वाले या अजनबी को पैसों की खातिर बेच दिया. इतना ही नहीं, धर्म से जुड़े वाहियात अंधविश्वास के चलते बच्चों की बलि दे दी जाती है.
भारत के कुछ हिस्सों में तो जोगिनी या आदिवासी जैसी गलत प्रथाओं के नाम पर देवीदेवताओं को बच्चों को सौंप दिया जाता है. घर में बच्चों की पिटाई होना तो देश में जैसे एक आम बात हो गई है.
इस सिलसिले में मनोवैज्ञानिक डाक्टर पुलकित शर्मा ने बताया, ‘‘आजकल ऐसे केस बहुत आते हैं, जब मांबाप अपने बच्चों के बेवजह गुस्सा होने की बात कहते हैं. पर जब बच्चों से बात की जाती है, तो वे अकेले में अपने मांबाप पर भड़ास निकालते हैं.
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‘‘वे बताते हैं कि किस तरह घर पर उन के साथ बहुत ज्यादा गलत बरताव होता है. वे पूरी खुंदक निकालते हैं, गालियां देने तक से भी नहीं चूकते हैं.
‘‘जहां तक किसी मां के बेरहम होने की बात है, तो बहुत बार वह पिता से ज्यादा गुस्सैल हो सकती है. ठाणे वाले केस में हीना शेख को अपने बच्चे या पति से कोई मतलब नहीं है. उसे किसी भी कीमत पर अपनी जिंदगी सुख से भरी देखनी है.
‘‘पति से पैसों की डिमांड बढ़वाने के लिए उस ने बच्चे को पीटने का वीडियो तक बना डाला. इस से पता चलता है कि उसे अपने सुख से मतलब है.
‘‘इतना ही नहीं, लोगों में सहने की ताकत भी कम होती जा रही है. पहले मांबाप अपने बच्चों को मारते थे, तो उन में दया का भाव भी बहुत ज्यादा होता था. लेकिन अब नई पीढ़ी में यह दया भाव कम होता जा रहा है.
‘‘मां भी इस से अछूती नहीं है. बच्चे ने जरा सा कुछ गलत किया नहीं कि हाथ उठा दिया जाता है. फिर यह धीरेधीरे आदत बन जाती है.
‘‘इस का नतीजा बहुत बार भयंकर होता है. बच्चे ढीठ हो जाते हैं. वे अपने मांबाप से नफरत करने लगते हैं. कभीकभार तो जुर्म के रास्ते पर चल देते हैं.
‘‘ऐसे हालात से बचने के लिए खुद पर काबू रखना बहुत जरूरी है. बच्चे की गलती पर उन्हें समझाएं या जरूरत पड़ने पर डांट दें, पर उन पर हाथ उठाने से बचें.’’
दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंदी की लैक्चरर डाक्टर जया शर्मा ने इस मुद्दे की परतें खोलते हुए बताया, ‘‘इस समस्या के कई सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू हैं.
‘‘भौतिकवाद के बढ़ते पंजे ने लोगों को रुपएपैसे के लालच में इतना जकड़ लिया है कि पैसे के आगे सारे रिश्ते फीके लगने लगते हैं. फिर आप किसी के लिए इतना ज्यादा नफरत का भाव रखने लगते हैं कि मांबच्चे का रिश्ता भी तारतार होते देर नहीं लगती है.
‘‘कई बार घर में अपना दबदबा बनाने के लिए भी बच्चों के साथ मारपिटाई के किस्से होते रहते हैं. अगर औरत पढ़ीलिखी नहीं है तो उस में कमतर होने का भाव जाग जाता है. खूबसूरत न होना भी उस में कुंठा भर देती है.
‘‘अगर बच्चा पढ़ाई को ले कर ज्यादा जागरूक रहता है तो कई बार मां को वह बात भी सहन नहीं होती है. इस का नतीजा बच्चे की पिटाई होता है.
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‘‘जहां तक सौतेलेपन का बरताव है, तो इस समस्या को एक उदाहरण से समझते हैं. एक आईएएस अफसर की पहली पत्नी की बेटी को उन की वर्तमान पत्नी देखना तक पसंद नहीं करती है. वह लड़की अपनी नानी के घर रहती है. उस की नई मां अपने पति से भी उसे मिलने नहीं देती है.
‘‘नफरत का आलम यह है कि जब नई मां के बेटी हुई और उस का नामकरण था तो पति महोदय को यह सख्त हिदायत दे दी गई थी कि उस के नाम में इंगलिश का ‘एन’ अक्षर नहीं आना चाहिए, क्योंकि उस लड़की का नाम ‘एन’ से शुरू होता था.
‘‘यहां भी यह बात साबित होती है कि वह नई मां उस बच्ची को घर से इसलिए दूर रखना चाहती है, ताकि भविष्य में उस की पढ़ाईलिखाई, शादी के खर्चे वगैरह न उठाने पड़ें.’’