बचपन में एक कहावत सुनी थी कि रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था, मगर जब इतिहास पढ़ना शुरू किया तो इस कहावत की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की. कहावत से आगे एक तानाशाह राजा की कारिस्तानी पता चली.

हुआ यों कि सम्राट नीरो ने एक बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया था. तेसतीस के बाग में पार्टी रखी गई थी और रोम साम्राज्य के तमाम बड़े लोगों को न्योता दिया गया था. उस समय उस बगीचे में शाम को रोशनी का इंतजाम नहीं हो पाया था.

रोशनी का बंदोबस्त किस तरह किया जाए, इस के लिए सम्राट नीरो चिंता में पड़ गया. देशभर के इज्जतदार लोगों के बीच अपनी इज्जत का सवाल था. रोशनी व चमकदमक हर हाल में जरूरी थी.
सम्राट नीरो को आइडिया आया और जेल प्रहरियों व अनाथाश्रम संचालकों को निर्देश दिया गया कि जितने भी जेलों में व गरीब और लाचार लोग अनाथाश्रम में पड़े हैं, उन सब को बगीचे के चारों तरफ खड़ा कर के उन को आग के हवाले कर दो, ताकि पूरा बगीचा रोशन हो जाए और देशभर के नामचीन लोगों के बीच उस की इज्जत बरकरार रहे.

मेरे मन में सवाल यह नहीं था कि कितने लोगों को फूंका गया था या वे मरने वाले लोग कौन थे? सवाल यह था कि उस पार्टी में शामिल लोग कौन थे, जो अपना ईमान और इनसानियत सबकुछ ठेंगे पर रख कर पार्टी का लुत्फ उठाते रहे थे?

सवाल यह नहीं था कि विभिन्न आरोपों में जेलों में बंद पड़े लोगों को फूंक दिया गया और न न्यायपालिका बोल पाई और न ही आम जनता. सवाल यह भी था कि जब बेबस और बेसहारा लोगों को उस पार्टी के लिए फूंका जा रहा था, तो किसी ने विरोध क्यों नहीं किया?

जब मैं इतिहास के इन छिपे पन्नों की सचाई खोज रहा था, तो मेरे मन में सवाल यह नहीं था कि गड़े मुरदे उखाड़ कर वर्तमान व भविष्य के लिए बदले व नफरत की फसल की बोआई करूं, बल्कि मेरा ध्यान उसी सवाल पर लगा था कि उस पार्टी में वे मेहमान कौन थे?

देश के किसानों और कमेरों के निकलते जनाजे के बीच खुद को लाचार पाया, तो उस को भूल कर आज भाषण सुनने लग गया. मेरी दुविधा या सवाल यह नहीं है कि देश में किसानों की बरबादी कैसे हुई, बल्कि मेरा सवाल यह है कि किसानों की चिताएं जब बगीचे के चारों तरफ खड़ी कर के फूंकी जा रही हैं, तो इन की पार्टी में शामिल मेहमान कौन हैं?

आज पूरे 20 मिनट भाषण सुना, तो मुझे यकीन हो गया कि नीरो मरा नहीं था, वह अभी जिंदा है.
मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो ऐसा क्यों कर रहा है? मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो की पार्टी की इज्जत के लिए कौन लोग जिंदा फूंके जा रहे हैं?

मेरा असली सवाल यह है कि नीरो की पार्टी में शामिल वे मेहमान कौन हैं, जो तानाशाह राजशाही में बगावत  करने वाले जेलों में बंद आरोपी को फूंक रहे हैं, मगर ह्विस्की का मजा उठा रहे हैं?

वे मेहमान कौन हैं, जो भूखप्यास, सर्दीगरमी में दिल्ली बौर्डर पर बैठे किसानों को पार्टी की इज्जत के लिए जिंदा फूंकने की तैयारी कर रहे हैं, मगर उन के ऐशोआराम में कोई रुकावट नहीं पड़ने देना चाहते.
मेरा सवाल यह नहीं है कि नीरो की पार्टी के चलते वैश्विक महामारी कोरोना में देश क्यों फूंका जा रहा है, बल्कि मेरा असली सवाल यह है कि पार्टी का लुत्फ उठाने वाले कौन लोग हैं?

किसान, बीमार, मजदूर के मुद्दों में कुछ बदलाव हो सकता है, मगर उन का दर्द एक ही है कि वे दिल्ली में बैठे नीरो की पार्टी को रोशन करने के लिए जिंदा फूंके जा रहे हैं. अब मैं बताता हूं कि नीरो की पार्टी के मेहमान कौन थे. सम्राट नीरो, उस के मंत्रिमंडल के सदस्य, सरकारी अफसर, जज, पत्रकार, साहित्यकार, कलाकार, पढ़ाने वाले, क्रांतिकारी विचारक और समाज के बुद्धिजीवी लोग.

जो पार्टी में शामिल नहीं थे, वे जलते गरीबों के बुतों के बीच से ह्विस्की की गिलास लेदे रहे थे और जैसे ही एक लाश जल कर गिरती, वैसे ही अंदर से बाहर की तरफ ऐशोआराम की दवा फेंक दी जाती थी. कुसूर भूतकाल के नीरो का नहीं था और न ही वर्तमान के नीरो का है. कुसूर न किसानों और मजदूरों का है और न ही महामारी से पीडि़तों का है.

नीरो की पार्टी में शामिल कौन लोग हैं, बस इतना देखते रहिए. देशभर में तकरीबन 700 हाईटैक दफ्तर बनाए जा चुके हैं और काम जारी है, बाकी जनता आपस में सहयोग कर के देख ले, शायद बचने का और कोई रास्ता निकल आए.

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