लेखक- हेमंत कुमार

किचन में खाना बना रही सुजाता को उस के फोन ने आवाज दी, जो डाइनिंग टेबल पर रखा था. सुजाता ने अपने आटे से सने हाथों को पानी से साफ किया और अपने फोन की ओर बढ़ी.

सुजाता ने देखा कि किसी अनजान नंबर से फोन आया है. पहली बार तो उस ने फोन उठाया ही नहीं, पर जब दोबारा फोन बजा तो फोन उस के हाथ में ही था, सो झट से उठा कर सुजाता ने पूछा, ‘‘हैलो… कौन बोल रहा है?’’

सामने से एक अनजान आवाज आई, ‘और भई सुजाता, आजकल तो लगता है भूल ही गई हो हमें?’

‘‘हां… पर आप कौन हैं?’’

‘अब आप तो फोन करेंगी नहीं, तो सोचा कि क्यों न हम ही कर लें,’ उस अनजान आदमी ने कहा.

‘‘पर माफ कीजिएगा, आप हैं कौन? आप को पहचाना नहीं,’’ सुजाता ने कहा.

‘अच्छा चलिए, अब आप ही बताइए कि मैं कौन हूं? देखता हूं, आप मुझे पहचान पाती हैं या नहीं?’

‘‘अच्छा तो आप बताइए कि आप मुझे कब से जानते हैं और कैसे जानते हैं?’’ सुजाता ने पूछा.

‘अरे, हम तो आप को बचपन से जानते हैं. बस, आप ही भूल गई हैं.’

‘‘तुम कहीं सचिन तो नहीं?’’

‘जी हां, अब कैसे पहचान लिया?’

‘‘तुम सच में सचिन ही हो?’’ सुजाता ने हैरानी से पूछा.

‘क्यों, कोई शक है क्या?’

‘‘अरे… नहीं यार, मैं ने तो बस ऐसे ही तुक्का मारा और सही लग गया. यह बताओ कि तुम्हारी आवाज कैसे बदल गई है पहले से?’’

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‘बदलेगी नहीं क्या… इतने दिन भी तो हो गए हैं,’ सचिन ने बताया.

‘‘और बताओ क्या चल रहा है आजकल? वैसे भी कालेज खत्म होने के बाद आज बात हो पा रही है हमारी,’’ सुजाता ने कहा.

‘बस, मेरा तो सब ऐसे ही है. तुम बताओ, शादीवादी हुई कि नहीं?’

‘‘शादी भी हो गई और अभी इन के लिए खाना ही बना रही थी. फोन आया तो सोचा पहले बात ही कर लेती हूं.’’

‘अरे नहीं सुजाता, तुम पहले खाने की तैयारी करो, हम तो कल भी बात कर लेंगे. अच्छा, सुनो…’

फोन रखते हुए सुजाता ने फिर से फोन कान पर लगा लिया और पूछा,  ‘‘हां, बोलो?’’

‘एक काम था तुम से.’

‘‘हां, बोलो?’’

‘वह जरा मुझे एक आदमी से 50,000 रुपए लेने थे, पर वह औनलाइन पेमेंट करना चाहता है.’

‘‘हां, तो इस में परेशानी वाली बात क्या?है?’’ सुजाता ने पूछा.

‘परेशानी यह है कि मैं कोई नैटबैंकिंग इस्तेमाल नहीं करता और न ही मुझे इन सब के बारे में कोई जानकारी है. मैं चाहता था कि अगर तुम मुझे अपनी नैटबैंकिंग का पासवर्ड बता दो, तो मैं इस आदमी से पेमेंट ले सकूं.

‘और एक बार पैसे तुम्हारे पास आ गए तो फिर तो मुझे मिल ही जाएंगे. पैसे तुम्हारे बैंक में हों या मेरे पास हों… बात तो एक ही है न,’ सचिन ने सुजाता से बनावटी हंसी हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा ठीक है… तो लिखो मेरा पासवर्ड,’’ सुजाता ने अपनी नैटबैंकिंग का पासवर्ड सचिन को दे दिया और फोन रख कर खाना बनाने में बिजी हो गई.

कुछ देर बाद अमीश औफिस से आया और हाथमुंह धो कर खाना खाने की तैयारी करने लगा. सुजाता ने जब तक खाना लगा दिया और दोनों एकसाथ खाने के लिए बैठ गए.

टेबल पर रखे सुजाता के फोन पर नोटिफिकेशन आया ‘25,000 रुपीज पेड.’ सुजाता को जोर का धक्का लगा मानो उस का निवाला उस के मुंह में ही अटक गया हो.

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सुजाता को गंभीरता से नोटिफिकेशन खंगालते देख अमीश ने उस से इस चिंता की वजह जाननी चाही. सुजाता ने उसे बताया कि किस तरह एक फ्रौड ने

उसे अपने झांसे में फंसा कर उस का  सारा अकाउंट खाली कर दिया.

सुजाता की इस बेवकूफी पर अमीश ने उसे खूब फटकार लगाई, पर अब सुजाता को उस की गलती का पछतावा हो चुका था. सुजाता को बस इस बात की फिक्र थी कि उस के पैसे किसी तरह से वापस मिल जाएं.

अमीश ने रोतीबिलखती सुजाता को एक बहुत ही रोचक जानकारी दी. अमीश ने बताया, ‘‘अब औनलाइन फ्रौड से डरने की कोई बात नहीं. भारतीय रिजर्व बैंक कहता है कि अगर आप के साथ किसी तरह की धोखाधड़ी या औनलाइन फ्रौड होता है, तो उस की सूचना बैंक को 3 दिन के अंदर दे देनी चाहिए.

‘‘अगर हम बैंक को 3 दिन के भीतर अपने साथ हुए फ्रौड की सूचना दे देते हैं, तो बैंक हमें सौ फीसदी रिफंड कर देगा. अगर हम से 3 दिन के भीतर सूचना देने में कोई चूक हो गई, तो इस के बाद बैंक की किसी भी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी.’’

सुजाता ने राहत की सांस ली और वे दोनों तुरंत बैंक को अपने साथ हुए फ्रौड के बारे में सूचित करने चले गए. तकरीबन 10 दिन के भीतर ही सुजाता के एकाउंट से निकले हुए 25,000 रुपए वापस उस के अकाउंट में आ गए.

दोनों को अपने पैसे वापस आते देख बड़ी खुशी हुई और सुजाता ने अब से ऐसे किसी अनजान इनसान पर भरोसा करने से कान पकड़ लिए.

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अगले दिन अखबार में लोगों को अपना सगासंबंधी बता कर उन के खाते का पासवर्ड पूछने वाले साइबर क्रिमिनल को पुलिस ने पकड़ा, जिस पर तकरीबन 2 दर्जन फ्रौड के केस दर्ज थे.

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