आइये आपको संजना और श्वेता का किस्सा सुनाते हैं. मगर रुकिये, संजना और श्वेता न तो बहनें थीं, न घनिष्ठ सहेलियां. इन्हें तो एक-दूसरे के वजूद के बारे में भी कुछ पता नहीं था. ये तो हम इनका दो पात्रों के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. खैर आगे बढ़ते हैं. इन दोनों लड़कियों में कुछ बातें बिल्कुल एक जैसे थी, कुछ एक दूसरे से अलग. पहली जो बात एक जैसे थी, वह यह कि ये दोनों मोटी थीं. कुछ ज्यादा मोटी कि चाहे तो आप बेडौल भी कह सकते हैं. लेकिन इस मोटोप के अलावा इनमें सब कुछ एक दूसरे से बिल्कुल अलग था. संजना गहरे सांवले रंग की थी, तो श्वेता अपने नाम की ही तरह गोरी. श्वेता के जहां नाक-नक्श तीखे और आकर्षक थे, वहीं संजना की नाक मोटी थी, आंखें छोटी थी और होंठ भी मोटे. मतलब यह कि मजाक उड़ाने के लिए व्यंग्य में जो कुछ भी कहा जा सकता था, संजना उन सबकी मालकिन थी.
सिर्फ इन दोनों लड़कियों के व्यक्तित्व में ही फर्क नहीं था, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी एक दूसरे से भिन्न थी. श्वेता के पिता एक मध्यम दर्जे के के सरकारी मुलाजिम थे. वेतन कम तो नहीं था, लेकिन एक जमाने में उसके मुकाबले सपने इतने बड़े थे कि इस वेतन से कभी वो संतुष्ट ही नहीं हुए. श्वेता की मां भी किसी चिड़चिड़ी गृहिणी का जीता जागता किरदार थी, शायद उसमें ये चिड़चिड़ापन श्वेता के मोटापे को लेकर बनी असुरक्षा से ही पैदा हुआ था. उसे श्वेता तो फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी, कारण कि उसे लगता था उसकी कभी शादी नहीं होगी.
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दूसरी तरफ संजना की पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग थी. संजना अपने माता-पिता की दो संतानों में एक थीं. उसका छोटा भाई अपने में मस्त रहने वाला खुशमिजाज लड़का था. मां स्कूल में पढ़ाती थी और पिता एक प्राइवेट कंपनी में प्रोडक्शन मैनेजर थे. घर में पढ़ने लिखने के साथ-साथ जागरूकता का माहौल था. संजना के मम्मी पापा ने बचपन से लेकर जवानी तक उसे कभी यह एहसास दिलाने की कोशिश नहीं की थी कि मोटापा उसके भावी वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ है बल्कि उसे हमेशा इस बात के लिए प्रेरित किया था कि वह अपनी मोटापे पर सोचने की जगह अपने अंदर तमाम गुण विकसित करे और संजना ने ऐसा ही किया था. श्वेता की हीनभावना और उसके परिवार का उसे लेकर असुरक्षाबोध ने जहां उसके दिल दिमाग में ऐसा दबाव बनाया कि वह 12वीं के आगे पढ़ ही न सकी. वहीं संजना ने न सिर्फ कौलेज से मास्टर डिग्री हासिल की बल्कि वह हमेशा लीडर की तरह रही.
परिवार के वातावरण के चलते संजना में गजब का आत्मविश्वास था. अगर कभी किसी ने उसके मोटापे को लेकर कोई ताना मारा तो वह पलटकर ऐसा करारा जबाव देती कि मजाक करने वाले को दोबारा ऐसे मजाक के नाम से भी घबराहट होती. घर के माहौल से मिले आत्मविश्वास के कारण संजना ने अपनी काया को हमेशा ऐसे सकारात्मक नजरिये से देखा कि उसे कभी सपने भी इस सुरक्षाबोध ने नहीं दबोचा कि उसकी शादी नहीं होगी. दूसरी तरफ न सिर्फ श्वेता इस असुरक्षा से बल्कि उसके मां-बाप भी हर समय इसी असुरक्षाबोध से ग्रस्त रहते कि उनकी लड़की से भला कौन शादी करेगा. बहरहाल जिंदगी ने फिर सबक देने वाला खेल खेला. दोनो लड़कियों की शादी हुई. दोनों के लिए ही लड़के उनके मां-बाप ने चुने थे. संयोग से श्वेता और संजना दोनो को ही उनकी उम्मीदों से ज्यादा बेहतर वर मिले. श्वेता का पति सर्वगुण संपन्न एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर था, तो संजना का पति भी हंसमुख, उसी की तरह आत्मविश्वास से लबालब एक सरकारी विभाग में हेड क्लर्क था. लड़कियों के विपरीत दोनो ही लड़के सामान्य वजन के थे और आश्चर्यजनक ढंग से अपनी पत्नियों को लेकर खुश थे. दोनो में से किसी को पत्नियों के मोटापे को लेकर कोई समस्या नहीं थी.
संजना के तो जीवन में चार चांद लग गये. शादी के रात से ही दोनों में ऐसी बनी कि लोग उन्हें दो जिस्म, एक जान कहने लगे. लेकिन श्वेता यहां भी अपने असुरक्षाबोध के चलते परेशान ही रही. संजना ने जहां अपनी सुशिक्षित मां के मार्गदर्शन में अपने भावी वैवाहिक जीवन की तैयारियां की थीं और सेक्स को उसने एक विज्ञान की तरह लिया था, वहीं श्वेता ने हर समय इसे डर और दहशत के रूप में अपने दिल दिमाग में पाला था. संजना ने जहां अपने मोटे होने की समस्या को यौन जीवन में आड़े नहीं आने दिया, वह जब भी अपने पति से अगतंरंग हुई, खुलकर हुई और जो समस्याएं आयीं उनके विकल्प ढूंढ़ लिये. वहीं श्वेता ने छप्पर फाड़कर मिली खुशी को भी मन ही मन घुलने वाले दुख में बदल दिया. श्वेता के मन में अपने मोटापे को लेकर मौजूद हीनग्रंथियों ने उसके पति की तमाम अच्छाईयों, संवेदनशीलता को भी बेमतलब कर दिया. श्वेता के पति का उसके मोटापे से कोई समस्या नहीं थी. उसने एक बार भी मोटापे के चलते उसके प्रति आकर्षित न हुआ हो, ऐसा कभी नहीं हुआ. उसने हमेशा बिस्तर में अपने से ज्यादा श्वेता का ख्याल रखा. श्वेता के प्रति उसके पति में पूर्ण समर्पण था. लेकिन श्वेता ने कभी बिस्तर में खुशी ही नहीं जतायी. हमेशा उसका मूड थका थका बिगड़ा बिगड़ा रहा. भले वह पति से कभी लड़ी न हो, लेकिन धीरे धीरे दोनो के बीच सेक्स दहशत का विषय बन गया.
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श्वेता के मन में कभी यौन उत्सुकता ही नहीं जगी. अपनी बौडी को लेकर हीनभावना ने हमेशा उसे डरा डरा, बुझा बुझा रखा. वह जब भी बाथरूम में होती शीशे में अपने आपको देखकर कहती ‘तुझे कोई प्यार नहीं करता’, तुझे तो खुश करने के लिए समर्पण की भीख दी जा रही है’. मतलब यह कि उसने अपने पति के सारे अच्छे व्यवहार को भी शून्य कर दिया. जबकि हकीकत यह थी कि श्वेता का पति सचमुच उसकी तमाम खूबियों पर मोहित था. उसके दिमाग में कभी मोटापे की बात आती नहीं थी. वह तो उसके गोरे बदन, चमकती त्वचा, तीखे नाक-नक्श और उसकी सुरीली आवाज पर फिदा था. लेकिन वह उसे अपने व्यवहार से कभी खुश ही नहीं कर सका. अंत में उसे श्वेता को यौन मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा और करीब एक साल की थैरेपी के बाद श्वेता अपने जीवन में वह सब पा सकी जो पहले से ही मौजूद था.
दो स्थूलकाय लड़कियों की यह कहानी हमें बताती है कि हमारे यौन जीवन की सफलता में काया से ज्यादा काया के प्रति हमारी धारणाओं में निहित. दरअसल हम सेक्स और काया का कुछ ज्यादा ही रिश्ता जोड़ते हैं. जबकि ऐसा कुछ होता नहीं. वास्तव में काया के प्रति हमारी यह धारणा जिसे मनोवैज्ञानिक बौडी इमेज कहते हैं, यह हमारे अपने, हमारे इर्दगिर्द के लोगों और उस समाज की बनायी हुई होती है, जहां हमारी परवरिश होती है. हकीकत में इसका यौन जीवन की बाधाओं से कोई लेना देना नहीं है. हमारे रूप, रंग और मोटे, पतले का हमारे सेक्स लाइफ से उतना ज्यादा रिश्ता नहीं है, जितना बौडी इमेज की धारणा से है. सकारात्मक ‘बौडी इमेज’ हमें सुख और सफलता देती है और नकारात्मक ‘बौडी इमेज’ हमारी सुख और सफलताओं को भी दुख और असफलताओं में बदल देती है. अपनी काया को आप अपनी नजरों में कितनी खूबसूरत देखती हैं या कितना बदसूरत समझती हैं कि इस बात से ही हमारी खुशी और हमारे यौन जीवन के आनंद का रिश्ता होता है.
यौन विशेषज्ञों का मानना है कि यौन संतुष्टि का रिश्ता सांचे में ढले बदन या दूध जैसी रंगत से नहीं होता बल्कि हमारी सोच से होता है. ऐसा होता तो यूरोप के बाहर की लड़कियां कभी खुश ही नहीं होतीं, विशेषकर अफ्रीकन लड़कियां क्योंकि वो तो काली भी होती हैं, मोटी भी होती हैं और कई देशों में बहुत दुबली भी होती हैं. मगर अमरीका में 35 फीसदी से ज्यादा मौडल अश्वेत हैं, चाहे वह लड़कियां हों या लड़के. अनेक मोटे नाक-नक्श वाली अफ्रो-अमरीकी लड़कियों को पूरे आत्मविश्वास के साथ सौंदर्य प्रतियोगिताओं में शामिल होते देखा जा सकता है. इनमें लबलबाता हुआ आत्मविश्वास उनके हर अंदाज से झलकता है. अमरीका की विश्व प्रसिद्ध टीवी प्रेेजेन्टर ओपरो विनफ्रे को ही देख लीजिए अगर हम सुंदरता के पारंपरिक पैमाने पर परखें तो उसकी दशा एक ऐसी मोटी, भद्दी और काली लड़की की होनी चाहिए, जो अपनी ‘असुंदरता’ के कारण हीनभावना से ग्रस्त होकर घर के से निकलते हुए घबराए. जबकि ओपरा के लिए पुरुषों की दीवानगी का एक जमाने में आलम यह रहा है कि जाने कितने करोड़पति युवकों ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा और ओपरा ने उन्हें ठुकरा दिया.
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कुछ लोग अपने मोटापे के कारण विपरीत लिंगियों के समक्ष हीनभावना के एहसास से ग्रस्त रहते हैं, तो कुछ लोगों की यही परेशानी उनके जरूरत से ज्यादा दुबलेपन के कारण रहती है. कोई लड़की अपने छोटे कद को लेकर अपने आपको पुरुष के योग्य नहीं मानती, तो कोई युवक अपने भद्दे नाक-नक्श के आधार पर यह मान बैठता है कि कोई लड़की उससे अपनी खुशी से शादी करना नहीं चाहेगी. ये सब एक नकारात्मकता के कारण जमीनी सच्चाई से वे अपना संबंध तोड़ बैठते हैं. उपरोक्त सारे तथ्यों को गहराई से देखें तो इनका आपके जीवन विशेषकर यौन जीवन से कोई विशेष फायदा या नुकसान नहीं होता. अगर आप (स्त्री या पुरुष) साधारण चेहरे-मोहरे वाले हैं, अगर आपकी कद-काठी आदर्श कही जा सकने के योग्य नहीं है या अगर आपने जीवन के मैदान में कोई बड़ा तीर नहीं मारा है, तो इस बात को लेकर नकारात्मक ‘बौडी इमेज’ बनाने की जरूरत बिल्कुल नहीं है. आपका साधारण, काला, मोटा या अत्यधिक दुबला होना यौन जीवन के लिए कोई बाधा नहीं है.