आज 21वीं शताब्दी में भी अंधविश्वास किस तरह पैर पसारता चला जा रहा है. इसका एक ज्वलंत उदाहरण छत्तीसगढ़ के जिला कवर्धा के ग्राम धमकी में आप देख सकते हैं. जहां एक अर्जुन के पेड़ से जब पानी का स्रोत फूट पड़ा तो लोग पूजा अर्चना करने लगे और निकल रहे पानी को अमृत धारा मानकर पी रहे हैं.
ग्राम धमकी में अजीबो-गरीब मामला सामने आया है. कौहा अर्जुन वृक्ष का नाम सुनकर भले ही मुंह कड़वाहट से भर जाता हो, लेकिन यहां एक कौहा पेड़ लोगों को अंधविश्वास के युग में ले आया है क्योंकि आम लोग इस पानी को तमाम मर्जो की दवा मान रहे हैं.
स्थानीय लोग मासूमियत के साथ कह रहे हैं कि यह पानी पीने से स्वास्थ्य गत फायदा मिलेगा.दर असल, पानी का स्वाद नारियल पानी जैसा और रंग हल्का मटमैला है. और जन चर्चा में आने के कारण यह अफवाह फैल गई है कि यह लाभ ही लाभ देगा. मगर यह भोले-भाले लोग नहीं जानते कि पेड़ से पानी की धार फूटना एक सामान्य घटना है.
ये भी पढ़ें- जिंदगी का सफर: भारत की पहली महिला कुली संध्या मरावी
कवर्धा विकासखंड अंतर्गत ग्राम धमकी में एक पुराने कौहा पेड़ से पानी की धार निकल रही है, जिसे कुछ ग्रामीण दैवीय चमत्कार मान कर ग्रहण कर रहे हैं. भले ही मेडिकल विज्ञान में रोगों को दूर करने के नित नए प्रयोग किए जा रहे हो आधुनिक चिकित्सा से इलाज किया जा रहा हो, लेकिन शिक्षा और जागरूकता के आज के समय में लोग जड़ी-बूटियों के साथ रोगों को दूर करने का दावा करते हैं.
दरअसल, अशिक्षा और अपवाह बाजी के कारण अनेक झूठ हमारे समाज में अपना गहराई स्थान बना चुके हैं. जिसकी वजह से ऐसी घटनाओं का प्रचार होने लगता है.
ग्रामीण अंचल में एक कहावत है कि अगर दवा विश्वास के साथ ली जाए तो हर बीमारी ठीक हो जाती है. यही कारण है कि इन दिनों ग्राम धमकी पहुंच मुख्य मार्ग किनारे स्थित कौहा पेड़ से पानी की धार निकलने से ग्रामीणों में अंधविश्वास उछाल मार रहा है. ग्रामीण जन इसे एक “दैवीय चमत्कार” मानकर बोतलों में भर कर घर ले जा रहे हैं और उस पानी को पीकर अपने आप को रोग मुक्त होने का भ्रम पाल रहे हैं.
शुरू हो गया पूजा पाठ और अंधविश्वास
पेड़ से निकल रहे पानी को लोग चमत्कार मान रहे हैं. जबकि यह एक सामान्य घटना है,. इसके पूर्व भी अनेक जगहों पर पेड़ से पानी निकलने की घटना हुई है जिसे वैज्ञानिक और चिकित्सा शास्त्री विश्लेषण करके यह बता चुके हैं कि यह एक बहुत साधारण बात है.
मगर अंधविश्वास के मारे बड़ी मात्रा में निकल रहे इस सफेद द्रव्य को चखकर इसका स्वाद मीठा होना बता रहे हैं और यह मानते हैं कि इससे अनेक बीमारियां दूर हो जाती है. हमारे संवाददाता ने एक वन अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया वनस्पति विज्ञान की यह सामान्य घटना है जंगल में जब पानी नहीं मिलता तो कई बार जानकार वन अधिकारी, कर्मचारी पेड़ से पानी निकालकर प्यास बुझाते हैं.
ये भी पढ़ें- उत्तराखंड: टूटा ग्लेशियर, तबाही लाया इंसानी प्रोजेक्ट
मगर लोग इस पदार्थ को लेकर तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोग इसे चमत्कार मान “पूजा-अर्चना” कर रहे हैं. वहीं इस पानी को बोतल में भर कर अपने घर भी ले जा रहे हैं. यहां यह भी महत्वपूर्ण जानकारी आपको बता दें कि पेड़ से पानी निकलने की बात जैसे-जैसे ही आस-पास के गांव में फैली,यहां लोग जुटने लगे और पानी बोतल में भरकर घर ले जाने का सिलसिला लगातार चल रहा है. कुछ लोग इस पेड़ की अगरबत्ती जला कर पूजा अर्चना भी कर रहे हैं यहां यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि अभी तक शासन प्रशासन की ओर से लोगों को जागरूक करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है. जो यह बताता है कि हमारा शासन प्रशासन किस तरह लोगों को अंधविश्वास में डूबने उतरने के लिए छोड़कर कुंभकरण जैसी निंद्रा में है.
दरकार है अंधविश्वास भगाने की
वस्तुतः ऐसी घटनाएं हमारे देश में आमतौर पर घटित होती रहती हैं. और अशिक्षा, अंधविश्वास के कारण लोग इस के फेर में पड़कर अपना समय बर्बाद करते हैं और स्वास्थ्य भी.
छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध चिकित्सक और अंधविश्वास के खिलाफ लंबे समय से जागरूकता प्रसारित करने वाले डॉ .दिनेश मिश्र के मुताबिक बरसात और ठंड के मौसम में पेड़ों से इस प्रकार पानी निकलना एक सामान्य सी प्रक्रिया है ,यह कोई चमत्कार नहीं है .पेड़ों में जमीन से पानी ऊपर खींचने के लिए एक विशिष्ट उत्तक होता हैं ,जिन्हें जाइलम कहते हैं जाइलम का काम ही अपनी कोशिकाओं के माध्यम से जमीन से पानी खींच कर उस पानी को अपनी नलिकाओं से पूरे पेड़ के विभिन्न अंगों में पहुंचाना है इसके लिए विशिष्ट रचनाएं होती है जिससे पानी ऊपर चढ़कर पेड़ के सभी भागों अंग तक पहुंचता है,जल की आपूर्ति करता है बरसात और ठंड के मौसम में जब जमीन में पानी की मात्रा अच्छी ,व भूजल का दबाव अधिक रहता है.
उन्होंने जानकारी दी है कि वायुमण्डल में आर्द्रता होती है, तब पेड़ की जड़ों से जो पानी खींचा जाता है वह पेड़ के किसी भी हिस्से से जो कमजोर हो, अथवा तने में मौजूद छिद्रों से से पानी के रूप में निकलता है और यह कई बार एक पतली सी धारा से लेकर अधिक मोटे प्रवाह के रूप में भी कई स्थानों से भी निकलते हुए देखा गया है ,कभी-कभी यह जल स्वच्छ भी रहता है और कभी-कभी पेड़ के भीतरी अंगों उसमे उपस्थित जीवद्रव्य, कुछ बैक्टेरिया, और मेटाबोलिज्म के कारण उत्पन्न गैसों व अशुद्धियों से रंग में कुछ परिवर्तन हो सकता है. जो मटमैला, तो कभी दूधिया दिखाई पड़ता है है .
जॉन लिंडले की पुस्तक फ़्लोरा इंडिका में इस प्रकार से जल,व दूधिया स्त्राव का वर्णन है.वही डॉ रेड्डी की किताब वानिकी में इस प्रकार के स्त्राव का वर्णन आता है यह तने के वात रन्ध्र (स्टोमेटा) से निकलता है और कभी कभी तने के जख्मी हिस्से से भी स्त्रावित होता है.