देवानंद को एकदम सामने देख कर मालिनी सन्न रह गई. देवानंद ने उसे देख कर मुसकराते हुए अपनी बाइक रोक दी थी. मालिनी तुरंत मुड़ कर दूसरी ओर बढ़ी, मगर वह तुरंत बाइक को मोड़ उस की राह के आगे खड़ा हो गया था. अभी वह कुछ सोचती या फैसला लेती कि एक दूसरी बाइक वहां आ खड़ी हुई.

मालिनी एकदम हक्कीबक्की रह गई थी कि उस ने उस की घेरेबंदी का यह नया पैंतरा शुरू किया है. यह जरूर उस का अपहरण करेगा. पहले ही देवानंद का नाम कई अपहरण कांड से जुड़ा है. उस के लिए यह कौन सी मुश्किल बात होगी. अचानक ही उस दूसरी बाइक से एक नौजवान उतरा और उस के बिलकुल नजदीक जा कर पिस्तौल निकाल कर गोलियां चला दीं.

तेज आवाज हुई और वह अब बाइक से छिटक कर सड़क पर छटपटा रहा था.

सुबह 10 बजे का समय था और बाजार में कोई भीड़ नहीं थी. सड़क पर कुछ ही गाडि़यां दौड़ रही थीं. लेकिन यहां पलक झपकते ही यह सबकुछ हो गया था. मालिनी का रास्ता रोकने वाले सड़क पर गिरे देवानंद की पीठ में 2 और गरदन पर एक गोली लगी थी. वहां से खून निकलना शुरू हो चुका था. अचानक उस के मुंह से खून का थक्का निकला और परनाले सा बह चला.

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वे दोनों नौजवान बाइक सहित भाग चुके थे. वह उसे सड़क पर छटपटाते देख रही थी, जिस से डर कर वह भागना चाहती थी, अभी वही उसे कातर शिकायती निगाहों से देख रहा था, जैसे वे उसी के आदमी हों, जिन्होंने यह करतूत की थी. समय और हालात कितनी जल्दी बदल जाते हैं.

अब वह बिलकुल शांत था. बाजार की भीड़ देवानंद की ओर बढ़ते हुए घेरा बना कर खड़ी हो चुकी थी. सड़क पर अब गाडि़यां तेजी से भागने लगी थीं, ताकि वे किसी बंद वगैरह के चक्कर में न फंसें.

पुलिस घटना वाली जगह पर आ चुकी थी और अब एंबुलैंस की आवाज सुनाई दे रही थी. दूसरे लोगों की तरह वह भी वहां से वापस अपने घर की ओर लौट चली थी, ताकि किसी लफड़े में न पड़े.

‘‘क्या हुआ रे,’’ मालिनी की मां ने उसे देख कर हैरानगी जाहिर की, ‘‘बड़ी जल्दी आ गई. दुकान नहीं गई क्या?’’

‘‘नहीं मां, मैं नहीं गई,’’ मालिनी ने गुसलखाने में घुसते हुए छोटा सा जवाब दिया, ‘‘रास्ते में तबीयत ठीक नहीं लगी, तो वापस लौट आई.’’

मालिनी की आंखों के सामने दोबारा देवानंद का चेहरा आ गया था, जिस के नाकमुंह से खून की धार बह निकली थी.

मालिनी नाली के पास बैठ उलटी करने लगी थी. उस ने जल्दी से अपने कपड़ों को रगड़रगड़ कर धोना शुरू किया, जैसे उस पर खून के छींटे पड़े हों. अब वह अपने शरीर को मलमल कर नहा रही थी.

‘‘इतनी हड़बड़ाई क्यों है?’’ मालिनी की मां उसे शक की निगाहों से देखते हुए बोली, ‘‘दुकान से फोन आया था कि तुम अभी तक आई नहीं हो. मैं ने उन्हें बता दिया है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए गई नहीं.

‘‘और हां, अभी पता चला है कि देवानंद को किसी ने गोली मार दी,’’ मां फिर बोली, ‘‘आजकल किसी का कोई ठिकाना नहीं. भला आदमी था बेचारा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं,’’ मालिनी सहज होते हुए बोली, ‘‘तुम मुझे एक कप चाय बना दो. मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा. चक्कर सा आ रहा है.’’

मालिनी तख्त पर लेट गई. ‘बेचारा, भला आदमी’ उस ने बुरा सा मुंह बनाया, क्योंकि वह जानती है कि वह कितना भला और बेचारा था.

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शहर के चुनिंदा बदमाशों में देवानंद की गिनती होती थी. न जाने कितने रंगदारी, चोरीडकैती से ले कर अपहरण तक में उस का नाम था. चुनाव के समय बूथ पर कब्जा तक का धंधा करता था वह. कई बार वह जेल भी जा चुका था. एक स्थानीय दबंग नेता के दम पर वह कारगुजारी कर बच निकलता था, इसलिए पुलिस भी सोचसमझ कर ही उस पर हाथ डालती थी. अकसर ही वह उस के साथ घूमता रहता था, इसलिए लोग उस से डरते थे और मां कहती है कि वह भला आदमी था.

आखिर क्यों नहीं बोलेगी कि वह भला आदमी था. कितनी ही बार वह उन के आड़े वक्त में काम आ चुका है. शहर के प्रमुख ‘साड़ी शौप’ में उसी ने उसकी नौकरी भी लगवाई थी. मगर उस  की कीमत उस ने चुकाई है, यह वही जानती है.

एक दिन मां कहीं बाहर गई थी. बापू भी रिकशा ले कर निकल गया था और भाई महेश स्कूल जा चुका था. देवानंद उस के घर में घुसा और उसे अकेली जान उस पर झपट पड़ा था और उस के रोनेछटपटाने का उस पर कोई असर नहीं पड़ा था.

मालिनी की आंखों के सामने देवानंद का छटपटाता चेहरा आ गया था. इसी तरह तो वह फर्श पर छटपटा रही थी और वह हवसी अपना काम कर गया था. वह उसी तरह लहूलुहान हो छटपटा रही थी और वह हंसता हुआ बाहर निकल गया था.

Serial Story: सोच- पार्ट 2

इस के बाद तो वह मौका देख कर घर में जब कभी घुस जाता और उस से अपनी हवस का शिकार बनाता था. शाम को फिर घर पर आता और मां को कुछ जरूरत की चीजें पकड़ा कर कहता, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो, तो बेझिझक कहना और किसी से डरने की जरूरत नहीं. मैं हूं न.’’

मां की सराहना और दुआओं के बीच मालिनी कुछ कह नहीं पाती थी और इस बीच उसे बच्चा ठहर गया था. उस ने उसे कुछ दवाएं ला कर दी थीं. उन दवाओं के खाने के बाद उसे इतना खून बहा कि उस का चलनाफिरना मुश्किल हो गया था. उन दिनों वह उसी तरह छटपटाती थी, जिस तरह आज वह सड़क पर गिर कर छटपटा रहा था. फिर भी उस के मन में शक था कि जिन खून के छींटों के बीच वह छटपटा रहा था, उसे महसूस कर उसे खुश होना चाहिए या नहीं?

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