भोजपुरी फिल्म ‘नदिया के पार’ (Nadiya Ke Paar) से चर्चा में आने वाली अभिनेत्री साधना सिंह (Sadhana Singh) ने हर फिल्म और धारावाहिक में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. बनारस में जन्मी साधना के पिता की पोस्टिंग के साथ-साथ वह कई स्थानों पर गयी. पहली फिल्म में उसके भोलेपन और खूबसूरती को निर्देशक द्वारा उतारे जाने से वह रातों रात प्रसिद्ध हो गयी. उन्होंने हमेशा अपनी एक अलग छवि फिल्मों में बनाने की कोशिश की है.
काम के दौरान वह फिल्म निर्माता राजकुमार शाहाबादी (Rajkumar Shahabadi) से मिली प्यार हुआ और शादी की. अभी उनकी बेटी शीना शाहाबादी (Sheena Shahabadi) है, जो एक अभिनेत्री है. ‘शेमारू बॉक्सऑफिस’ (Shemaroo Box Office) पर पहली बार साधना सिंह की फिल्म ‘रिगार्ड्स एंड पीस’ (Regards and Peace) रिलीज हो चुकी है. जिसमें उनकी बेटी ने भी साथ में काम किया है. हंसमुख स्वभाव की साधना से बात हुई, पेश है कुछ खास अंश-
प्र. ओ टी टी प्लेटफॉर्म पर आजकल सभी फिल्में किसी न किसी रूप में रिलीज हो रही है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?
मुझे इसके बारें में अधिक पता नहीं था, क्योंकि मेरी पहली फिल्म इस पर रिलीज हुई है. ‘शेमारू’ (Shemaroo) एक जानी मानी ब्रांड है. इसमें एक मर्डर मिस्ट्री को सोल्व किया गया है. रुचिकर विषय है. दर्शक पसंद कर रहे है. कलाकार के लिए इससे अधिक कुछ नहीं होता, जब उसकी भूमिका को सराहा जाए.
प्र. आपने एक लम्बी जर्नी तय की है, क्या आपने कभी सोचा था?
मैंने कभी नहीं सोचा था, क्योंकि मुझे संगीत में रूचि थी और उस क्षेत्र में कुछ करना चाहती थी. इंडस्ट्री में आकर फिल्म करना ये कभी सोचा ही नहीं था. ये मेरे दिमाग में भी नहीं था. फिल्में देखती थी और पसंद भी करती थी, पर खुद एक्ट्रेस बनूंगी ऐसा कभी नहीं सोचा था. ये मेरी बड़ी बहन की वजह से हुआ. वह कथक डांसर है और दिल्ली के रामलीला में वह सीता की भूमिका निभाती थी. बड़े-बड़े कलाकार उस रामलीला को जाकर देखते थे.
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उसी समय राजकुमार बडजात्या ने मेरी बहन को देखा और फिल्म ‘पायल की झंकार’ (Payal Ki Jhankar) फिल्म में एक क्लासिकली डांसर की जरुरत थी. उन्होंने मंच के पीछे जाकर उनसे बात की, ऐसे में पहले वह फिल्मों में आई. मैं छुट्टियों के दौरान उनसे मिलने आई थी. उस दौरान मुझे ‘नदिया के पार’ (Nadiya Ke Paar) फिल्म का ऑफर मिला और मैं भी फिल्मों में आ गयी.
प्र. आपका अभिनय बहुत ही सहज होता है, इसे कैसे अपनाया?
मेरी कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं थी, इसलिए जो भी करती थी, नेचुरल ही लगता था. मुझे देखकर लेखक निर्देशक गोविन्द मुनिस ने कहानी ‘नदिया के पार’ लिखी थी, इसलिए जो भी करती थी, हमेशा नेचुरल ही लगा.
प्र. इंडस्ट्री में आये बदलाव के बारें में आपकी सोच क्या है?
बदलाव होने पर कुछ अच्छा और कुछ खराब होता है, इसलिए जो भी हो रहा है, उसके हिसाब से अगर आप चलने लगे तो उसके फायदे और नुकसान पता चलते हैं. समय के साथ चलना जरुरी है, तभी आप खुश रह सकते हैं.
प्र. क्या आउटसाइडर को काम मिलना मुश्किल होता है?आपने कभी महसूस किया?
वह जमाना अलग था. मैं अधिक महत्वाकांक्षी नहीं थी और मेरा लौंच एक बड़े और अच्छे प्रोडक्शन हाउस के साथ हुआ था. मुझे शुरू से बहुत इज्जत और मान मिला है और आगे भी सभी ने बहुत मान दिया है. ये सही है कि मुंबई सबको अपना लेती है. ये आप पर निर्भर करता है कि आप क्या इससे लें और क्या न लें.
प्र. आपने कई बड़े निर्माता निर्देशकों के साथ काम किया है, कोई ऐसा पल जो आपको अभी भी याद आता हो?
अभिनेता सचिन पिलगांवकर को मैं फिल्म शुरू होने के पहले से जानती थी वह एक कम्फर्ट लेवल था. सचिन के साथ मेरा याराना था, क्योंकि मैंने उसके साथ कई फिल्में की है. कभी घबराहट नहीं थी. साथ में काम करने में मज़ा आता था. अभिनेता अरुण गोविल के साथ भी एक अच्छा रिश्ता था. मैंने बहुत अधिक काम नहीं किया है. ये लोग मुझे छेड़ते थे, तंग करते थे, क्योंकि मैं इंडस्ट्री के बाहर से थी और मुझे भी मस्ती पसंद थी. मेरी बेटी ने काम शुरू किया है, पर सवाईन फ्लू की वजह से उसकी फिल्म चल नहीं पायी. फिल्म अच्छी थी. हम दोनों पति-पत्नी नहीं चाहते थे कि वह फिल्म इंडस्ट्री में जाए, पर उसकी रूचि थी. साउथ में उसने 7 से 8 फिल्में की है. उसका संघर्ष चल रहा है, क्योंकि जब आपकी पहली पिक्चर नहीं चलती है तो सबकुछ ठप हो जाता है. दूबारा उभरने के लिए समय चाहिए और अभी उसे मिला नहीं है. अब उसे उसके हिसाब से हम दोनों चलने देते है.
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प्र. सफलता का मूल मन्त्र इंडस्ट्री में क्या है?
किस्मत सबसे बड़ी चीज इंडस्ट्री में होती है. अगर आप अच्छी कहानी, अच्छे निर्माता, निर्देशक के साथ जुड़ते है तो आपकी जिंदगी सफल हो जाती है. मेरी पहली फिल्म सुपरहिट होने की वजह से मुझे आगे भी काम मिला.
प्र. इंडस्ट्री में पहले एक परिवारवाद की भावना हुआ करती थी, अब वह नहीं रही, इस बारें में आपका क्या कहना है?
मुझे पता नहीं दुनिया कहां भागना चाह रही है. ह्युमन टच अब खत्म हो गया है. काम करों और निकलो बस यही सबकी सोच रहती है, कोई मजा अब नहीं रहा. कोई इंटरेक्शनअब नहीं रहा. लेकिन इस युग में भी मैंने एक फिल्म ‘जुगनी’ (Jugni) की थीजिसका माहौल ऐसा ही था. इस फिल्म में भी मैंने बहुत अच्छा समय बिताया है. कोई वैनिटी में जाकर नहीं बैठता और ये अच्छा लगता है. इसमें टीम के निर्माता का बहुत बड़ा हाथ होता है. वह टीम का माहौल कैसा बनाना चाहता है ये उसपर निर्भर करता है. अब ह्युमन टच की कमी हो गई है. इससे तनाव बढ़ता है. हर शॉट के बाद आप वैनिटी वैन में जाकर फ़ोन पर लगे रहते हो. सामने बैठे व्यक्ति से बात न कर आप किसी और से बातें कर रहे हो. किसी को किसी की आज पड़ी नहीं है. मैं अभी भी वैनिटी में जाना पसंद नहीं करती. मुझे तो किसी दूसरे के सीन्स को भी देखने में अच्छा लगता है. इससे जुड़ाव बढ़ता है. ये सबकी अलग-अलग सोच है.
प्र. क्या कुछ मलाल रह गया है ?
मलाल ये है कि अगर उस समय कैरियर को और अच्छे ढंग से शेप दिया होता तो और अच्छा कर पाती. अभी तो बहुत सारी एजेंसिया है, जो कलाकारों के काम को आकार देती है. हमारे समय में केवल एक सेक्रेटरी हुआ करता था. वह डूबाना चाहे तो डूबा दे और चाहे तो आगे बढ़ा दे. आज के जैसे प्लानिंग तब नहीं थी. कभी-कभी उसका रिग्रेट होता है, पर लगता है कि जैसे लाइफ चलनी थी वैसी ही चल रही है, दुःख नहीं है.
प्र. आगे और क्या कर रही है?
कुछ फिल्में है जो आगे करने वाली है. इसके अलावा मैं कुछ लिख भी लेती हूँ. इस समय मैं अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दे रही हूँ. अच्छा काम और स्क्रिप्ट मिले तो अवश्य करुँगी. गाना भी गाकर घर पर रहती हूँ. गाने की अभी कोई एल्बम नहीं बनाई है.
प्र. पति से मिलना कैसे हुआ, जबकि आप बहुत शांत दिखती है?
मैं बिलकुल भी शांत स्वभाव की नहीं हूं. मैं टॉम बॉय किस्म की लड़की थी. पहली फिल्म की सफलता के बाद मैंने दूसरी फिल्म की बात सोची भी नहीं थी, लेकिन राजकुमार मेरे पास आये मुझे लेकर ही फिल्म ‘ससुराल’ (Sasural) बनाने की इच्छा जाहिर की. शुरू में मैंने मना किया लेकिन बाद में बार-बार कहने पर हां कर दी. इसके बाद मैंने ‘तुलसी’ (Tulsi) फिल्म भी की थी. इस तरह जान पहचान बनी और शादी हुई.
प्र. क्या मेसेज देना चाहती है?
महिलाएं अपने आपमें सम्पूर्ण है, उन्हें सलाह देना मेरे वश में नहीं. वे खुद में बहुत ताकतवर हैं. वे एक इंसान को जन्म दे सकती है. इसलिए खुद में संतुष्ट रहिये.