कोरोना वायरस संक्रमण काल में देश की शिक्षा व्यवस्था पर जो आघात लगा है उस पर राष्ट्रव्यापी चर्चा करना आवश्यक है. इधर नरेंद्र मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू कर दी है जिसके विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं. क्योंकि किसी भी समाज में शिक्षा देश की “शिक्षा नीति” ही भविष्य की नींव को मजबूत बनाती है.
मगर कोरोना वायरस के आगमन के साथ देश की संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था तार तार हो गई है. देश के सत्ताधारी मुखिया और कार्यपालिका को यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर शिक्षा को बुलंद बनाए रखने की तोड़ क्या हो सकती है. और ऐसे में आज जब देश में नई शिक्षा नीति लाद दी गई है यह प्रसंग चर्चा का विषय है की कोरोना वायरस के इस समय में जब पहली प्राथमिकता लोगों की जिंदगी को बचाने की है लोगों को दो वक्त की रोटी मुहैया कराने की है. शिक्षा व्यवस्था के साथ किस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. और भगवाधारी हरावल दस्ता अपनी सोच को देश की युवा पीढ़ी के ऊपर लादने की षड्यंत्र पर अमल शुरू कर चुका है.आज चिंता का विषय है कि जब देश कोरोना के कारण त्राहि-त्राहि कर रहा है सत्ता में बैठी हुई नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार आहिस्ता से संपूर्ण शिक्षा नीति को ही बदल कर क्या देश को दुनिया के सबसे पीछे ले जाने की तैयारी कर रही है.
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सबसे बड़ी बात यह है कि जिस शक्ति और ताकत के साथ शिक्षा नीति का विरोध विपक्ष कांग्रेस को करना चाहिए था वह नहीं कर पा रही . दूसरी तरफ आज 7 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी नई शिक्षा नीति पर देश को संबोधित करने जा रहे है. आज प्रधानमंत्री एक कॉन्क्लेव को संबोधित करेंगे. मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदल दिया गया है और शिक्षा विभाग के रूप में उसे जाना जाएगा. यानी अब वह समय आ गया है जब धीरे धीरे संपूर्ण व्यवस्था और संस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन होगा. यहां यह भी जानना जरूरी होगा कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार अपने पुराने संघ के एजेंट पर आंखें बंद कर आगे बढ़ रही है. और कोई भी विरोध उसे स्वीकार नहीं है. इधर यह भी तथ्य सामने आ चुके हैं कि झारखंड सरकार नई शिक्षा नीति को सिरे से नकार चुकी है. वहां के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने ऐलान कर दिया है कि झारखंड में मोदी की शिक्षा नीति लागू नहीं होगी. अर्थात जहां-जहां भाजपा सरकारें नहीं है यथा पंजाब,राजस्थान, छत्तीसगढ़ ओडिशा आदि राज्यों में शिक्षा नीति का अश्वमेधी घोड़ा रोक दिया जाएगा?
शिक्षा की लॉक डाउन में बदहाली
एक तरफ नई शिक्षा नीति के तहत स्किल डेवलप ढोल पीटा जा रहा है दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि कोरोना काल मे विगत चार माह से यदाकदा मिली मामूली छूटों के साथ जारी लॉक डाउन शिक्षा प्रणाली के लिए घातक सिद्ध हुआ है. मार्च के अंतिम सप्ताह में लगे लॉक डाउन से लेकर अभी स्कूल कॉलेजों को किसी भी प्रकार की रियायत नही दी गई. इस बीच नए शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ होने का समय भी आ गया है. परंतु अभी भी महाविद्यालयो में परीक्षाएं रुकी हुई है. परीक्षा लेने के सम्बंध में यू जी सी द्वारा जारी दिशा निर्देशों के बाद भी विश्वविद्यालय तय नही कर पा रहे कि इतनी बड़ी पंजीकृत विद्यार्थियों की परीक्षा कैसे व किस तरह ली जाए.
कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा स्नातक प्रथम वर्ष में प्रवेश की अधिसूचना जारी कर आवेदन आमंत्रित किये जा रहे. परन्तु प्रवेश प्रक्रिया पूरी करके पढ़ाई कब शुरू की जाएगी इसके विषय मे कॉलेज व विश्वविद्यालय कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं है. कोरोना काल मे बन्द पड़े उच्च शिक्षण संस्थाओं में सभी तरह की परीक्षाएं स्थगित है. इन परीक्षाओं में विश्वविद्यालयीन प्रवेश परीक्षाएं भी सम्मिलित है. अलग अलग ग्रेड व प्रतिशत पाकर हाई स्कूल परीक्षा पास किये विद्यार्थीगण विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने सबको समान अवसर उपलब्ध कराने वाले प्रवेश परीक्षा में बैठने की तैयारी कर रहे थे. परंतु अब संक्रमण के भय से प्रवेश परीक्षा न आयोजित कर मेरिट के आधार पर प्रवेश देने की नीति पर विचार किया जा रहा.
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इससे ऐसे प्रतिभाशाली विद्यार्थी जो आर्थिक सामाजिक स्वास्थ्यगत आदि कारणों से अच्छा ग्रेड या प्रतिशत नही ले प्राप्त कर सके वे अच्छे संस्थानों में मनमाफिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने से वंचित रह जाएंगे. इससे उनका भविष्य की दशा व दिशा निर्धारण खटाई में पड़ता नजर आ रहा है. कमोबेश इसी हालात का सामना स्नातक करके मनचाहे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश की चाहने वालों विद्यार्थियों को करना पड़ेगा.
स्नातक व स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष के लिए जिस प्रकार की परीक्षा प्रणाली अपनाने की चर्चा की जा रही है प्रतियोगोगिता के स्तर को समाप्त करने वाला प्रतीत हो रहा है जो कि बेहद चिंताजनक है. दूसरी ओर स्कूल शिक्षा की स्थिति में अच्छी नही है.हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार कोरोना आपदा के आर्थिक परिणामों के कारण वर्तमान सत्र में वैश्विक स्तर पर करीब ढाई करोड़ बच्चों पर स्कूल नहीं लौटने खतरा उत्पन्न हो गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना काल में शैक्षणिक संस्थानो के बन्द होने से विश्व की करीब 94 प्रतिशत छात्र आबादी प्रभावित हुई है. इस महामारी में वर्तमान शिक्षण प्रणाली में असमानता हो बढ़ा दिया है. कोरोना काल मे संपन्न वर्ग की तुलना में आर्थिक रुप कमजोर व संवेदनशील वर्ग के बच्चे शिक्षा से ज्यादा दूर हुए है. रिपोर्ट के अनुसार 2020 को दूसरी तिमाही में निम्न आय वाले देशों में करीब 86 प्रतिशत बच्चे स्कूलों से बाहर हो गए हैं वहीं उच्च आय वाले देशों में यह आंकड़ा मात्र 20 प्रतिशत ही है.
अभिनव प्रयास भी फ्लाप
यहां यह स्पष्ट है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था की हालत बदतर हो गई है. हालांकि देश प्रदेश की सरकार प्रयास कर रही है की एजुकेशन की गंगा प्रवाहमान रहे. इसे हेतू सरकार ने ऑनलाइन पढ़ाई प्रारंभ करायी मगर धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि इसमें बहुतेरी खामियां हैं और एक विकासशील देश के लिए यह मुफीद नहीं है. क्योंकि यहां 90% छात्र तो ऐसे हैं जिनके पास मोबाइल ही नहीं है. इसी तरह सरकार यह प्रयास भी कर रही है कि ग्रामीण अंचल में गांव-गांव में लाउडस्पीकर के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई जारी रहे. मगर यह भी एक सफल शिक्षण प्रयोग नहीं माना जा रहा है.
अतः विशाल आबादी वाले निम्न आय श्रेणी में आने वाले विकासशील हमारे देश की हालत का अंदाज़ा इस विजन में आसानी से लगाया जा सकता है. शिक्षाविद ऋषभदेव पांडेय के अनुसार विभिन्न राज्य सरकारे स्कूल शिक्षा को शुरू करने के लिए अभिनव प्रयास कर रही हैं. विभिन्न स्थानों पर ऑनलाइन कक्षाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है.छत्तीसगढ़ के सरगुजा बस्तर जैसे मोबाइल नेटवर्क विहीन अंदुरुनी पिछड़े क्षेत्रों ध्वनिविस्तार यंत्रों के माध्यम शिक्षण कार्य किया जा रहा है. जो कि अनुकरणीय पहल कही जा सकती है. परन्तु सरकार के उक्त प्रयासों को स्थानीय प्रशासन द्वरा कोरोना नियंत्रण के लिए बनाई गई रणनीतियां नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं.
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ऋषभदेव पांडे बताते हैं छत्तीसगढ़ प्रदेश में
कोरोना काल मे स्थानीय प्रशासन द्वारा शासकीय शिक्षकों की ड्यूटी कोरेंनटाइन केंद्र सहित गांव गांव के चौक चौराहों पर लगा दी गई है.जो एक मजाक बनाकर पूरी शिक्षा व्यवस्था को चिड़ा रहा है. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में शिक्षण कार्यं के लिए मानव संशाधन की कमी साफ दिखाई दे रही है.
इसी तरह शिक्षाविद बीएल साहू के अनुसार कोरोना संक्रमण को रोकने के प्रयासों के बीच विद्यार्थियों के लिये ऐसे नीति अपनानी होगी जिससे उनके स्वास्थ्य के साथ साथ उनके भविष्य के साथ किसी भी प्रकार का समझौता न हो. सरकार को उच्च शिक्षण संस्थानों में स्नातक अंतिम वर्ष की स्तरहीन परीक्षाएं आयोजित करने के स्थान पर कोरोना वैक्सीन आने तक यथास्थिति बनाए रखते हुए प्रवेश परीक्षा की गुंजाइश बरकरार रखने पर विचार करना चाहिए. पुराने विद्यार्थियों को जोड़े रखते हुए स्कूल शिक्षा से जुड़ने हेतु नए विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए कोरोना प्रोटोकाल का पालन सुनिश्चित कराते हुए शिक्षकों को उनके मूल कार्य करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए. शासन स्तर पर किये गए उपर्युक्त प्रयासों में क्रियान्वित होने पर ही हम कोरोना के शिक्षा प्रणाली पर पड़ रहे कुप्रभाव को कम करते हुए अशिक्षा के कारण उत्पन्न होने वाले सामाजिक समस्याओं को बढ़ाने से रोक सकते हैं.