नेपाल ने भारत के 3 इलाकों को अपने नक्शे में शामिल कर भारत के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है. नेपाली सरकार ने इस सिलसिले में एक विधेयक संसद में पेश किया था, जिस पर 18 जून, 2020 को नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने दस्तखत कर दिए.

इस बिल को नेपाल के मुख्य विरोधी दल नेपाली कांग्रेस ने भी समर्थन दिया है. नए नक्शे में नेपाल ने भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा इलाके को अपना दिखाया है. इन इलाकों के अलावा भारत के गुंजी, नाभी और कुटी गांव को भी नेपाली नक्शे में दिखाया गया है.

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नेपाल ने भारत के जिन इलाकों को अपने नक्शे में दिखाया है, वह तकरीबन 395 वर्गकिलोमीटर का इलाका है. नेपाली संविधान का यह दूसरा संशोधन है, जिस में राजनीतिक नक्शे और राष्ट्रीय प्रतीक को बदला गया है.

गौरतलब है कि जब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाली लिंक रोड का उद्घाटन किया था, तो नेपाल ने उस का विरोध किया था. उस के बाद ही 18 मई, 2020 को नेपाल ने नए नक्शे में भारत के इस हिस्से को अपने में दिखाने का बखेड़ा खड़ा कर दिया. भारत कालापानी को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा मानता है, जबकि नेपाल उसे अपने धरचुला जिले का हिस्सा बताता है.

भारत का मानना है कि चीन के बहकावे में आ कर नेपाल ने अपने नक्शे में बदलाव किया है. गौरतलब है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली वामपंथी हैं और भारत विरोधी सियासत और सोच के लिए जाने जाते हैं.

पिथौरागढ़ और नेपाल की सीमा पर तकरीबन 80 किलोमीटर की छोटी सड़क ने ही बड़ा बवाल मचा दिया है. यह सड़क लिपुलेख के कालापानी से होती हुई कैलाश मानसरोवर तक जाती है. इस कच्ची सड़क को भारत ने पक्का कर दिया और राजनाथ सिंह ने उद्घाटन किया तो नेपाल में सियासी हलचल मच गई.

वैसे, इस मसले को ले कर नेपाल में भी प्रदर्शन शुरू हो चुका है. नेपाल के सत्तारूढ़ दल के सहअध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ भारत विरोधी प्रदर्शन को हवा दे रहे हैं. ‘प्रचंड’ ने दहाड़ लगाई कि भारत को सबक सिखाना जरूरी हो गया है. वहीं प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नेपाल में कोरोना वायरस के फैलाव के लिए भी भारत को जिम्मेदार ठहराया है और चीन को क्लीनचिट दी है.

गौरतलब है कि साल 1981 में भारत और नेपाल के बीच सीमा तय करने के लिए एक जौइंट कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी ने 98 फीसदी सीमा तय कर ली थी, केवल सुस्ता और कालापानी का मसला लटका रह गया था.

जब भारत ने कैलाश मानसरोवर तक सड़क बनाई, तो नेपाल ने भारत से बातचीत कर मामले को सुल झाने के बजाय आननफानन नया नक्शा छाप कर भारत के कई हिस्से को अपना साबित करने की कोशिश की है.

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साल 1962 के भारत और चीन की लड़ाई के समय भी नेपाल ने इस सड़क पर अपना दावा ठोंका था, पर नेपाल को कामयाबी नहीं मिली और उस हिस्से पर भारत का कब्जा अब तक बरकरार रहा है.

साल 2015 में जब भारत और चीन ने लिपुलेख इलाके से व्यापार रास्ते का करार किया, तो उस समय भी नेपाल ने विरोध जताया था.

इसी बीच नेपाल की केपी शर्मा ओली की सरकार को उन की ही पार्टी के नेता ‘प्रचंड’ उखाड़ने में लगे हुए हैं. ‘प्रचंड’ खुद प्रधनमंत्री बनने की ताक में हैं और ओली की जड़ें खोद रहे हैं. इसी वजह से उन्होंने भारत विरोध के अपने पुराने हथकंडे को फिर से सुलगा दिया है और नेपाल की सियासत को कंटीले तारों में उल झा दिया है.

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