विदेशों में वहां के लोगो को केवल कोरोना की बीमारी से लड़ना है भारत मे बीमारी के साथ ही साथ यँहा पैदा हुई आपसी दूरियों से भी लड़ना जरूरी हो गया है. यही वजह है कि एक वर्ग सरकार पर भरोसा नहीं कर पा रहा और वो अस्पताल जाने की जगह अपनी बीमारी छिपाने में लगा है.
कोरोना के मरीजों को आइसुलेशन सेंटर से भय लगता है. जिसकी वजह से वो लोग खुद का इलाज कराने की जगह से छिपाने में लग जाते है. भारत मे यह एक अलग तरह का डर लोगो मे देखा जा रहा है. इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार ने जो तरीका अपनाया वो काउंसलिंग करने की जगह डराने वाला हो गया है.
भारत मे करोना से प्रभावित मरीजों को चिन्हित करके अस्पताल भेजने में पुलिस और प्रशासन को सबसे बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई है. महत्वपूर्ण बात यह है कि यँहा 70 साल बीत जाने के बाद भी पुलिस अभी तक जनता के मित्र की भूमिका में नही बना सकी है.
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लोगों के मन मे यह ख़ौफ़ बैठा हुआ है कि करोना का पता चलते ही पुलिस पकड़ कर इलाज के लिए अस्पतालों के आइसुलेशन वार्ड में भेज देगी. जंहा पर उनको घर परिवार से मिलने नहीं दिया जाएगा. अगर इलाज के दौरान उनको कुछ हो गया तो परिवार से मिल भी नही पाएंगे. भारत मे रहने वाला हर कोई अंतिम समय अपने परिवार के बीच रहना चाहता है. इस वजह से इलाज कराने की जगह पर वो भागने की कोशिश करता है.
‘आइसुलेशन बनाम डिटेंशन सेंटर’
भारत मे जिस समय करोना का संकट बढ़ रहा था उसी समय नागरिकता कानून पर बहस चल रही थी. जिंसमे यह बात चल रही थी कि जिन लोगो के पास पेपर नही होंगे उनको ‘डिटेंशन सेंटर’ में रहना होगा. यह लोग देश के नागरिक नही माने जाएंगे. मुस्लिम वर्ग में यह बात अच्छी तरह से फैल गई कि मोदी सरकार नागरिकता कानून में मात खाने के बाद करोना संकट के बहाने लोगो को आइसुलेशन सेंटर में रखना चाहती है.
मुस्लिम समुदाय में यह भ्रांतियां भी तेजी से बढ़ी की करोना कुरान से निकला है और वो उनका कुछ नही कर पाएगा. इस तरह की भ्रंतियो से मुस्लिम वर्ग करोना टेस्ट नही कराता हैं. दिल्ली में जमात के कार्यक्रम में इसी वजह से लोगो ने कानून का पालन नहीं किया.
खराब व्यवहार पर कायम हुआ मुकदमा
जिसकी वजह से बहुत सारे लोगो मे करोना के वायरस फैलने का खतरा बद्व गया हैं. अब जब इन लोगो को ट्रेस करके इलाज के लिए अस्पताल भेजा जा रहा तो यह लोग वँहा भी दिक्कतें खड़ी कर रहे है. अस्पताल की महिला कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि यह लोग आइसुलेशन वार्ड में गलत हरकते कर रहे थे. महिलाओं को परेशान कर रहे थे.
इस शिकायत के बाद गाजियाबाद के जिला अस्पताल में नर्सों से छेड़छाड़ करने वाले जमाती मरीजों को आरकेजीआईटी के आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है.
तब्लीगी जमाती के कोरोना वायरस संदिग्ध के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. इनपर अश्लील हरकतें करने, सहयोग ना करने आदि के संबंध में थानाध्यक्ष ने अपराध संख्या 288/20 अंतर्गत धारा आईपीसी 354 294 509 269 270, 271 के तहत मुकदमा पंजीकृत किया.
संपूर्ण प्रकरण में समस्त पीड़ित के बयान लेने और साक्ष्य के आधार पर निष्पक्ष विवेचना सुनिश्चित करने हेतु आदेशित किया गया है.
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आइसुलेशन का मनोवैज्ञानिक दबाव :
असल मे जब लोगो को ज़बरदस्ती किसी ऐसी जगह रखा जाता है जंहा वह अपने घर परिवार से ना मिल सके और वह शारीरिक रूप से बीमार हो तो उसका असर उनके दिमाग पर भी पड़ना स्वाभाविक होता है. ऐसे में सामान्य मरीज में चिड़चिड़ापन हो जाता है. जब मन मे सरकार, प्रशासन और इलाज पर पूरा भरोसा ना हो और यह चिड़चिड़ापन दिमाग पर हावी हो जाता है. ऐसे में यह लोग कुछ गलत व्यवहार कर सकते है.
देश मे हिन्दू मुस्लिम समुदाय में दूरियां इतनी बद्व गई है कि हमारे अंदर एक दूसरे के प्रति भरोसा खत्म हो चुका है. यही वजह है कि जमात ले लोगो के पता लगते ही एक आरोप यह भी लगने लगा कि यह मरीज नही बल्कि मानव बम बन चुके लोग है जो भारत को खत्म करना चाहते है.
इस तरह की आपसी सोच से देश का सामाजिक जीवन खतरे में पड़ रहा है. इसके साथ ही साथ करोना के खिलाफ लड़ाई भी कमजोर पड़ रही है. समाजिक कार्यकर्ता और पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी कहते है ” समाज मे आपसी दूरी का ही परिणाम है कि एक वर्ग अविश्वास का शिकार हो गया है. सरकार को चाहिए था कि सबसे पहले आपस मे बात करके काम करती जिससे इस तरह को दिक्कते नही आती.’
मनोवैज्ञानिक नेहा आनंद कहती है कि जानलेवा बीमारी का शिकार हो चुके लोग अपना भरोसा ज्यादा खोते है. ऐसे लोगो का शारिरिक इलाज के साथ मानसिक इलाज भी बहुत जरूरी होता है. अगर यह मरीज मानसिक रूप से डॉक्टर और अस्पताल या इलाज करने वाली व्यवस्था पर भरोसा नहीं रखेंगे तो ठीक भी नही होंगे.
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