लेखक- हरीश भंडारी
कोरोना वायरस के चलते मंगलवार की रात यानी 21 मार्च से लौक डाउन का सबसे ज्यादा असर मजदूरों पर पड़ा, जहां उन्हें दैनिक मजदूरी से हाथ धोना पीडीए, वहीं उन्हें अपने मौजूदा आवासों को भी छोड़ना पड़ा. यही नहीं उन्हें अपने पैतृक शहरों, कस्बों और गांवों तक सैकड़ों किलोमीटर तक जाने के लिए कोई व्यवस्था सरकार की तरफ से नहीं कि गई, जिसके फलस्वरूप उन्हें पैदल ही भूखे प्यासे यह सफर तय करना पड़ रहा है. यही नहीं वे अपने परिवार और छोटे मोटे समान को कंधों व सिर पर लादकर अपने गंतव्य की तरफ जा रहे हैं. ये बड़े ही भयावह हृदय विदारक दृश्य हैं, जिन्हें देखकर हर किसी का रोमरोम कांप जाता है, लेकिन हमारी केंद्र व राज्य सरकार ने अपने नाककान बंद कर रखे हैं. वे धिरतराष्ट्र की तरह बस अपने कौरवों की चिंता करते हैं, अन्य से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं. केंद्र और. राज्य सरकारें दिशा निर्देश देकर अपनी इतिश्री समझ रही हैं.
चारों तरफ अफरा तफरी
इस वायरस की भयावहता से जहां आमजन भयभीत हैं वहीं ये असहाय अपने परिवार, भूख प्यास और बारिश की परवाह न करते हुए येनकेन प्रकारेण अपने घर पहुचना चाहते हैं. ये लोग राष्ट्रीय राजमार्गों पर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर रहे हैं. सरकार की तरफ से इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. बस सरकार लॉक डाउन का शंखनाद करके इतिश्री समझ रही है. उसे न तो यह दिखाई दे रहा है कि किस तरह ये लोग सेकड़ों किलोमीटर का सफर तय करेंगे. हां, कहीं न कहीं गलती इनकी भी है, इन्हें आ निवास से बाहर नहीं निकलना चाहिए था, लेकिन कहते हैं न मरता क्या नहीं करता, ये बिना काम के कैसे रहते, क्योंकि दिनभर ये लोग जो कमाते हैं शाम को वही खाते हैं, यानी हैंड टू माउथ वाला हिसाब है.
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अच्छा तो यह होता कि जहां भी ये मजदूर थे उन्हें वहीं रैनबसेरों में रखा जाता, जिससे ये लोग कुछ हद तक निश्चिंत हो जाते और इस भयानक वायरस को भी फैलने से रोका जा सकता था. लेकिन भई ये तो मजदूर हैं , हां अगर किसी राजनेता या उद्योग पति का बेटा होता तो उसे एयर लिफ्ट किया जाता, कैसे भी samdamdndbhed से उन्हें लाया जाता. लेकिन सरकार की ओर से इनके लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं कि गई. यह तसवीर पिछले 3-4 दिन से लगभग सभी टीवी चैनल और अखबारों में प्रकाशित किए जा रहे हैं लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है. सोशल मीडिया द्वारा जरूर इस पर हायतोबा मचाई गई तो देश के सफेद पोशों की कुंभकर्णी निंद टूटी और सर कुछ हरकत में आई. इनके लिए रैनबसेरों में खानेपीने की व्यवस्था की गई. जैसे दिल्ली सरकार ने कश्मीरी गेट, आनंदविहार, रेलवे स्टेशनों पर फंसे हुए यात्रियों को खानापानी मुहैया कराया.
देश ने ठाना है कोरोना को हराना है
उपरोक्त स्लोगन जहां कोरोना वायरस को मात देने कि बात करता है, लेकिन देश में तो इसे मात देने वाले पहले ही सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर ह र गये हैं. इस स्थिति में वे कोरोना को कैसे हराएंगे. कहते हैं न भूखे पेट भजन नहीं भाई. दूसरी बात जो सोशल डिस्टेंस की है वह भी सड़कों पर उमड़े इस रैली जैसे माहौल में कैसे सम्भव होगा.
वहीं कुछ लोग ऐसे भी दिखे जो दिल्ली से बिहार के आरा तक अपनी हाथ ठेलों से ही जाने की कूवत रखते हैं, जबकि यदि ये सही सलामत चले तो इन्हें वहां पहुंचने में लगभग एक सप्ताह लगेगा. क्या इस स्थिति में देश की जनता कोरोना को मात दे पाएगी.
चारों तरफ अफरा तफरी
देश में हर तरफ अफरा तफरी मची है. प्रधानमंत्री की लक्षमण रेखा न पार करने की अपील को बिगड़ैल जनता मुंह चिढ़ा रही है. हर तरफ रेला दिखाई देता है चाहे वह राशन की दुकान हो, सब्जियों की या फिर दवाइयों की. जमकर कर्फ़्यू का उल्लंघन हो रहा है. प्रशासन को इनसे दोदो हाथ करने पड़ रहे हैं. पुलिस को इन्हें काबू करने में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. कहीं पुलिस इन्हें मुर्गा बना कर लठ बज रही है तो कहीं वह इनके हाथ पिटती भी नजर आ रही है.
वसूली करने वालों की पौबारह
कोरोना वायरस के भय से जहाँ लोग अपने घर मे दुबके हैं, वहीं कुछ मौके का फायदा उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं. भले ही सरकार ने इन वाहनों को सड़क पर चलने की छूट दे रखी है, लेकिन यह मौके का गलत फायदा उठा कर मुनाफा कमाने कीसोच रहे हैं. जैसे दूध के टैंकर और बड़े बड़े कन्टेनर मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठा कर उनसे जरा सी दूरी का भी 2 हजार किराया वसूल रहे हैं.
कुलमिलाकर हर तरफ से गरीब ही मारा जा रहा है.सरकार इन बातों पर बारीकी से नजर रखे और इन जालसाजों पर कड़ी कार्रवाई करे अन्यथा इस अफरा तफरी के माहौल को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा.