अप्राकृतिक यौन संबंध चिंरतन काल से होते रहे है. यही कारण है कि विधि में इसके सहमति और असहमति को देखते हुए सुस्पष्ट प्रावधान किया हुआ है. अप्राकृतिक योन अर्थात एक ऐसा मनोविज्ञान जो अपने साथी की और एक अलग नजरिए से आकर्षित करता है. इसे लेकर योन- शास्त्रों में भी चर्चा की गई है. लेकिन सार भूत तथ्य यही है कि यह एक बीमारी की जड़ है और इससे बचना चाहिए, मगर इसके बावजूद आम जनमानस में अप्राकृतिक योन के किस्से उजागर होते रहते हैं.कभी किसी शख्स पर या धारा 377 लगाकर हवालात में बंद कर दिया जाता है. हद तो तब हो जाती है जब कभी कोई पत्नी ही पुलिस थाना पहुंच मामले की रिपोर्ट लिखाती है. आखिर यह अप्राकृतिक यौन संबंध का सच क्या है, यह हमें समझना चाहिए.
पति पत्नी और अप्राकृतिक संबंध!
पति-पत्नी के बीच विवाद होना आम बात है. लेकिन छत्तीसगढ़ बालों जिला के डौंडी थाने में एक ऐसा मामला हाल ही में सामने आया है, जिसे सुनकर आप चौक जाएंगे. यहाँ महिला ने अपने पति पर अप्राकृतिक सेक्स करने का आरोप लगाया है. पति के इस उत्पीडन से तंग आकर पत्नी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है. जिसके बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया . पुलिस के अनुसार युवती की शादी एक साल पूर्व डौंडी थाना क्षेत्र के युवक डुमेश्वर गावडे पिता वीर सिंह गावडे से हुई थी. महिला का कहना है कि शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीक था. उसके बाद पति ने उसके साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने पर दबाव डालने लगा. मना करने पर उसके साथ मारपीट की गई. काफी दिनों से वह इस यौन उत्पीड़न से गुजर रही थी.लाख समझाने की कोशिश की, लेकिन नहीं माने और मारपीट कर जबरन अप्राकृतिक सेक्स करता रहा. एक दिन उसने हद ही कर दी. पति की ज्यादती बर्दाश्त से बाहर हो गई तो 18 जुलाई की शाम महिला डौंडी कोतवाली पहुंची और अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.पीड़िता ने महिला पुलिस को सारी बातें बताई और कठोर कार्रवाई की मांग की. महिला की शिकायत पर पुलिस ने पति के खिलाफ आइपीसी की धारा 376, 377, 323, 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया है. पुलिस ने आरोपी पति को गांव से गिरफ्तार कर लिया.
ऐसे जाने कितने सच्चे झूठे किस्से हमारे बीच मीडिया के माध्यम से आते जाते रहते हैं. विधि औचित्य की परिप्रेक्ष्य में ऐसे मामलों को देखना समझना होगा.
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अप्राकृतिक योनाचारी हमारे बीच भी हैं!
हमारे शहर में लगभग 40 वर्ष पूर्व एक सुमित्रर सिंह नामक शख्स हुआ करता था.वह पैसे देकर युवकों से अप्राकृतिक संबंध बनाया करता था. शहर में यह चर्चा रहती थी कि देखो! सुमित्रर सिंह आ रहा है…. हंसी मजाक में लोग एक दूसरे को छेड़ा करते थे और बताया करते थे कि यह शख्स अप्राकृतिक यौन संबंध बनाया करता है. इससे बचकर रहना. ऐसे ही सख्त सुमित्रर सिंह अरे शहर कस्बों में रहते हैं, यह एक अलग मनोविज्ञान है एक अलग मानसिक बनावट अथवा इसे बीमारी कहा जा सकता है. मगर ऐसे लोग हमारे बीच होते हैं यह एक बड़ी सच्चाई है यही शख्स जब एक से दो हो जाते हैं तो एक दूसरे का साथ देते हुए जीवन काटने का अवलंबन स्वीकार कर वैवाहिक बंधनों में भी बंध जाते हैं. जिन्हें आजकल समलैंगिक संबंध कहा जाने लगा है .अब देश की उच्चतम न्यायालय और हमारी सरकार ने भी इसे जायज ठहरा दिया है. जब यह संबंध सहमति से बनते हैं तो कानून अपने हाथ खड़े कर लेता है.
छत्तीसगढ़ के बार काउंसिल के अनुशासन समिति के अध्यक्ष बीके शुक्ला बताते हैं ऐसे मामलों में प्रतिरोध होने पर विधि-विधान में इसके लिए दंड की सजा निर्धारित है.
धारा का होता है दुरुपयोग भी!
इस लेखक के एक परिचित मित्र की धर्मपत्नी में तलाक लेने के लिए पति पर ऐसा दबाव बनाया कि आप भी असमंजस में रह सकते हैं…. जी हां! पत्नी ने बकायदा थाना,कोर्ट में यह कहा कि मेरे साथ अप्राकृतिक यौन संबंध मेरा पति बनाता है। महिला पति से बेजार थी व छुटकारा पाना चाहती थी. इसके लिए उसने अप्राकृतिक संबंधों की धारा 377 का दुरुपयोग करने का पूरा प्रयास किया. मगर सुखद तथ्य यह की पीड़ित पति पुलिस प्रशासन और न्यायालय दोनों ही जगह से एक तरह से बाल-बाल बच गया. यह एक ऐसी धारा है जिस का दुरुपयोग भी होता है और यह एक सच्चाई भी है अब यह पुलिस एवं न्यायालय पर निर्भर है क्या फैसला होगा. अगर आप बेगुनाह है तब भी यह धारा आप का मान मर्दन तो कर ही देती है. शातिर वकील, पुलिस एवं लोग इसका भरपूर दुरूपयोग करते रहते हैं. अपने विरोधियों को निपटाने के लिए धारा 377 इस्तेमाल करते हैं ,चाहे भले वह मामला कोर्ट में वर्षों घिसटने के बाद हो जाए. अधिवक्ता उत्पल अग्रवाल बताते हैं धारा 377 का इस्तेमाल अक्सर विरोधियों को निपटाने के लिए किया जाता है. ऐसा ही एक मामला हमारे कोर्ट में भी आया था जिसमें एक श्रमिक नेता ने कोल इंडिया के एक अधिकारी को फंसाने के लिए 377 धारा का मामला दर्ज कराया था. जिसकी शहर में बड़ी चर्चा थी. पुलिस प्रशासन भी जानता था की पेंच कहां है,मगर मामला पंजीबद्ध हुआ और न्यायालय में प्रस्तुत किया गया. दरअसल यह धारा ब्रिटिश शासन काल से1861 से विद्यमान रही है. इसका स्वरूप बदलता रहा है. कभी यह पूर्णता दंडनीय स्वरूप में रही है मगर 2018 के बाद सरकार ने इसे दो वयस्कों के बीच सहमति पर विधिवत मुहर लगा दी है कि यह अपराध नहीं है. इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर आज भी तलवारें खिंची हुई है और लोग पक्ष विपक्ष में अपनी-अपनी दलीलें प्रस्तुत कर रहे हैं. आप भी सोचिए और देखिए आप किस तरफ है.
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Edited By- Neelesh Singh Sisodia