Family Story : मौलाना राशिद मदरसे में अपने काम में मशगूल थे कि तभी उन के कमरे में बुरके में लिपटी एक औरत 20 सालकी खूबसूरत लड़की के साथ दाखिल हुईं .

मौलाना राशिद ने उन्हें गौर से देख कर पूछा, ‘‘बाहर दरवाजे पर कोई नहीं है क्या?’’

‘‘जी, कोई नहीं है?’’ कह कर वह औरत चुप हो गई.

‘‘कहिए, क्या काम है आप को?’’ मौलाना राशिद ने पूछा.

‘‘जी, यह मेरी बेटी है. इसे मैं ने गोद लिया है. सोचती हूं कि इसे अपने पैरों पर खड़ा कर के इस की शादी करा दूंगी. आप की नेक दुआओं से इस की जिंदगी संवर जाएगी. मुझे किसी दूसरे पर एतबार नहीं है. क्या आप के मदरसे में पढ़ाने के लिए कोई नौकरी है?’’

मदरसे की शर्तों को मानने पर उस लड़की को वहां रख लिया गया. तकरीबन 60 साल की उम्र पूरी कर रहे मौलाना राशिद तकरीबन 20 साल से शहर से लगे एक गांव में मदरसा चला रहे थे. मदरसा खूब फलफूल रहा था.

बीवी की मौत के बाद मौलाना राशिद मदरसे के एक कमरे में रहते थे. मदरसे में ही होस्टल का इंतजाम था, जहां गरीब लड़कियां रहती थीं.

मौलाना राशिद ने वहां के नेताजी के कहने पर एक गांव की विधवा को वार्डन पद पर रखा था, इसलिए उन्हें खानेपीने का सामान व दूसरी सुविधाएं आसानी से मिल जाती थीं.

‘‘जरा सुनिए,’’ मौलाना राशिद ने आवाज दी.

‘‘जी,’’ कह कर वह लड़की पलटी.

‘‘आप मुझे ‘चाचा’ कह सकती हैं. मैं तुम्हें ‘आरजू’ कह कर ही बुलाऊंगा,’’ मौलाना राशिद ने हंसते हुए कहा.

वह लड़की शरमा कर अपनी जमात की ओर बढ़ गई.

‘‘शमा, तुम्हारा चेहरा पीला सा लग रहा है. क्या बात है? तबीयत तो ठीक है न?’’ आरजू ने एक लड़की से पूछा.

‘‘जी, मुझे अपनी तबीयत ठीक नहीं लग रही है.’’

‘‘मैं मौलाना साहब से कह कर तुम्हें छुट्टी दिलवा देती हूं.’’

आरजू ने मौलाना से इस बाबत बात की. मौलाना ने खुद उस का इलाज कराने की बात कह कर डाक्टर को फोन किया.

‘जी मौलाना, उसे वार्डन के साथ अस्पताल भेज दीजिए. मैं देख लूंगा,’ कह कर डाक्टर ने फोन रख दिया.

नेताजी के दोस्त डाक्टर रमेश मदरसे की सभी लड़कियों का इलाज करते थे. इस के एवज में उन्हें नेताओं की सरपरस्ती और काफी रकम मिलती थी.

‘‘अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. ये गोलियां खिला दो, ठीक हो जाएगी.’’ डाक्टर ने वार्डन से कहा.

2-3 दिन के आराम के बाद शमा ठीक हो गई और मदरसे में जाने लगी. जब भी मौका मिलता, मौलाना राशिद आरजू को अपने औफिस के कमरे में बिठा लेते और बातचीत करते.

मौलाना की बातचीत, हंसमुख स्वभाव के चलते आरजू भी उन के पास बैठ कर समय गुजारती. मौलाना राशिद ने वार्डन को आरजू को उन के करीब लाने की पेशकश की.

वार्डन ने आरजू पर डोरे डालने शुरू कर दिए. जब भी मौका मिलता, वह आरजू से मौलाना राशिद की तारीफ करती. अनजान आरजू भी मौलाना से घुलनेमिलने लगी थी.

वार्डन ने मौलाना राशिद को बताया, ‘‘नेताजी ने होस्टल से नई उम्र की किसी सुंदर लड़की को रात में बुलाया है. अगर आप कहें तो मैं किसी को भेज दूं?’’

‘‘तुम खुद साथ ले कर जाओ. पैसों का लालच दे देना. आधे पैसे उसे दे कर सुबह होने के पहले ही अपने कमरे में सुला लेना ताकि किसी को शक न हो.’’

होस्टल की लड़कियों पर महीने की 2-4 रातें कयामत बन कर आतीं और वे मदरसे के अहाते से निकल कर मजबूरी में अपने जिस्म का सौदा करातीं. उन्हें इतना डरा दिया जाता था कि उन के मुंह से आवाज तक नहीं निकलती थी.

बड़े लोगों, नेताओं की हवस की भूख मिटाने के लिए मदरसे का इस्तेमाल काफी लंबे समय से चल रहा था, जिस की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी.

आरजू को मदरसे में बच्चों को पढ़ाते हुए एक साल पूरा होने को आया था. वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था. लड़कियां दहशत में जी कर पढ़ाई कर रही थीं. वे न घर पर, न बाहर जबान खोल सकती थीं. कुछ लड़कियां यतीम थीं, जिन्हें पढ़ाई के लिए सरकार की ओर से रखा गया था.

वार्डन को एक  दिन की छुट्टी दे कर मौलाना राशिद ने आरजू को सारी जिम्मेदारी सौंप दी. नियमानुसार दिनरात उसे मदरसे में ही गुजारनी थी.

दिन तो कट गया, अब रात भी गुजारनी थी. खाना खा कर सब लड़कियां सो गईं. मौलाना राशिद के अंदर का शैतान जाग गया. उस की कई दिनों से आरजू के गदराए बदन पर नजर थी.

‘‘आरजू,’’ कहते हुए किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.

आरजू ने दरवाजा खोला. सामने मौलाना राशिद को देख कर वह बोली, ‘‘जी चाचा.’’

‘‘मेरे पेट में दर्द हो रहा है. जरा गरम पानी से सेंक दो.’’

‘‘जी,’’ कह कर वह खामोश हो गई.

‘‘मैं अपने कमरे में हूं,’’ कह कर मौलाना राशिद लौट गए.

आरजू पास ही बने कमरे में गई तो देखा कि मौलाना बिस्तर पर करवटें लेते हुए कराह रहे थे.

‘‘दरवाजे को बंद कर दो. किसी ने देख लिया तो बेवजह का शक करेगा.’’

दरवाजा बंद कर आरजू मौलाना का गरम पानी की बोतल से पेट सेंकने लगी. मौलाना उस का हाथ पकड़ कर पेटदर्द की जगह बता रहे थे.

आधा घंटे बाद मौलाना ने कहा, ‘‘टेबल पर केतली में चाय रखी है. अभी गरम होगी. एक कप मुझे दे दो और एक कप तुम ले लो.’’

आरजू ने चाय केतली से निकाल कर एक कप मौलाना को दिया, दूसरा कप खुद ले लिया.

‘‘पानी देना,’’ मौलाना ने कहा. आरजू ने देखा कि वहां रखा पानी का जग खाली था.

‘‘मैं अंदर से लाती हूं,’’ कह कर आरजू पानी लेने चली गई.

इसी बीच मौलाना ने तकिए के नीचे से एक पुडि़या निकाल कर उस के कप में मिला दी.

आरजू ने पानी ला कर दिया.

चाय पी कर वह फिर मौलाना का पेट सेंकने लगी.

कुछ देर बाद आरजू को बेहोशी छाने लगी. वह बिस्तर पर ही गिर गई. मौलाना ने उठ कर उसे अपने बगल में लिटाया.

थोड़ी ही देर में मौलाना ने आरजू के कोरे बदन पर गुनाह की एक लकीर खींच दी.

जब आरजू को सुबह होश आया तो उस ने उठ कर अपनेआप को सिर्फ कुरती में पाया. सलवार, जो उस की आबरू का कवच थी, एक तरफ पड़ी सिसक रही थी.

आरजू ने अपने कपड़े संभाले और बिना कुछ कहे मदरसे के गेट के बाहर चली गई.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...